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© 2019 JETIR April 2019, Volume 6, Issue 4 www.jetir.org (ISSN-2349-5162) JETIR2003390 Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (JETIR) www.jetir.org 593 समाज बिखरते पररवार की ासदी: सुरे Ⱦ वमा के नाटक ौपदीपर आधाररत Smti. Nita Samadder, MA(Hindi) & UGC NET सुरे Ⱦ वमा हिȽी समहि जगत के एक सुहस नमटककमर ि हिȽी नमटक पंरपरम ोिन रमकेशऔर जयशंकर समदकी तरि की नमटयमा को आगे बढमने तम अहिनयेतम को सश बनमने वमलो "सुरे Ⱦ वमा " की ुख िहकम रिी ि उɎोंने हिȽी नमटक एवं रं गंच को नई हदशम दमन हकयम ि उनकम जɉ हसतɾर को उर दे श झमसी (देश) वे एक आधुहनक सकमलीन के हसिˑ नमटककमर के सम-सम नई पीढी कम योगशीलतम नमटककमर िकिम जमतम ि उनके नमटक जीवन और संसमर की ʩमपकतम से जुडे नमटक ि उनके नमटकों कम शुरआत िमनव जीवन जैसे ˓ी पुरष संबंध, पररवमर और समज कम अयन करते हिर ʩ पर आकर िसमɑ ितम ि उनकम नमटक कम के हबदु ʩ िितम ि और इɎीं परɼरम को बढते , ोिन रमकेश के " आधे -अधूरे " की िमव उनके नमटक " ौपदी " हलतम ि ौपदी को हलखम गयम ि हजस एक िअहिनेतम से पमच पमों की िहकम रखने वमले ोिन रमकेश की रं ग- यु को सुरे Ⱦ वमा ने अपने नमटक ौपदी अपनमयम ि और एक ुखौटों कम योग करते एक िअहिनेतम से पमंच ऱपों की िहकम करवमने कम नमटय- हनदेश हकयम ि इस नमटक ौपदी शीषाक के हवषय 'जयदेव तनेजम' कम कन ि हक-

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समाज में बिखरते पररवार की त्रासदी: सुरेन्द्र वमाा के

नाटक ‘द्रौपदी’ पर आधाररत

Smti. Nita Samadder,

MA(Hindi) & UGC NET

“सुरेन्द्र वर्मा” हिन्दी समहित्य जगत के एक सुप्रहसद्ध नमटककमर िै। हिन्दी

नमटक पंरपरम र्ें ‘र्ोिन रमकेश’ और ‘जयशंकर प्रसमद’ की तरि की नमटयमर्ा को

आगे बढमने तर्म अहिनयेतम को सशक्त बनमने वमलो र्ें "सुरेन्द्र वर्मा" की प्ररु्ख

िूहर्कम रिी िैं ।उन्ोनें हिन्दी नमटक एवं रंगरं्च को नई हदशम प्रदमन हकयम

िै।उनकम जन्म ७ हसतम्बर १९४१ई० को उत्तर प्रदेश झमसी (र्ध्यप्रदेश) र्ें हुआ।

वे एक आधुहनक सर्कमलीन के हसद्धिस्त नमटककमर के समर्-समर् नई पीढी कम

प्रयोगशीलतम नमटककमर िी किम जमतम िै।

उनके नमटक जीवन और संसमर की व्यमपकतम से जुडे हुए नमटक िै। उनके

नमटको ंकम शुरुआत िी र्मनव जीवन जैसे स्त्री पुरुष संबंध, पररवमर और सर्मज

कम अध्ययन करते हुए हिर व्यक्तक्त पर आकर िी सर्मप्त िोतम िै। उनकम नमटक

कम केद्र हबन्दु व्यक्तक्त िी िोतम िै और इन्ी ंपरम्परम को बढते हुए, र्ोिन रमकेश

के " आधे-अधूरे" की प्रिमव उनके नमटक " द्रौपदी " र्ें हर्लतम िै । द्रौपदी १९७०

ई॰ को हलखम गयम िै। हजसर्ें एक िी अहिनेतम से पमच पमत्ो ंकी िूहर्कम रखने

वमले र्ोिन रमकेश की रंग- युक्तक्त को सुरेन्द्र वर्मा ने अपने नमटक द्रौपदी र्ें

अपनमयम िै और एक रु्खौटो ंकम प्रयोग करते हुए एक िी अहिनेतम से पमंच रूपो ं

की िूहर्कम करवमने कम नमटय- हनदेश हकयम िै। इस नमटक द्रौपदी शीषाक के

हवषय रे् 'जयदेव तनेजम' कम कर्न िै हक-

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"स्त्री की िूहर्कम प्ररु्ख निी ंिौने के कमरण शीषाक भ्रमर्क िै क्ोहंक नमटक की

अपने पुरूष के हवहिन्न व्यक्तक्तयो ंको उतनम निी ंझेलती हजतनम वि पहत स्वयं

झेलतम िै और उसकम आंतररक टूटन- छटपटमिट उसके बच्ो ंकी हजंदगी र्ें

सर्म जमती िै तो नमटक और िी ज्यमदम करूणम और त्मसदी प्रतीत िोने लगतम िै

। लेहकन तनेजम यि र्मनते िैं हक नमटक के हशल्प र्ें नयमपन िैं।" 7

द्रौपदी नमटक र्ें हववमिेतर जीवन की हवसंगहतयो ं से हबखरे पररवमर की

त्मसदी िै। सुरेखम की पहत र्नर्ोिन जो नमटक के नमयक िै हजस की व्यक्तक्तत्व

खंहित िै, उनकम चरीत् अनैहतक, र्ित्वमकमंक्षी, अर्ा-लोलुप, कमरु्क और

आत्ममने्वषी िी िै। उसके ये अलग- अलग रूप िी सुलेखम के हलए पमंच पहत बन

गये िैं। सिेगम के इस हवषय पर किनम िै हक-

"रे्रे पहत एक निी ंिै, यर्म की- जैसे अब वो आदर्ी एक निी,ं एक से ज्यमदम िै

। वि किती िै हक वि किी रु्झे ऊपर से छूकर िी संतोष पम लेतम िै तो किी

रे्री बोटी- बोटी नोचं िमलतम िै।" 5

इसी आधमर पर वे अपनी नमटक को आगे ले चलते िैं जो धीरे- धीरे हबखरते

पररवमर और उसी र्ें घुटते व्यक्तक्त की त्मसदी िै । यि नमटक वतार्मन सर्य

पररक्तथर्हतयो ंसे सीधे समक्षमत्कमर करवमतम िै। यि नमटक आज के आधुहनक जीवन

कमल की हवसंगहतयो ंऔर धटनमओ ं के हवषय र्ें आधुहनक र्मनव के खक्तित

व्यक्तक्तत्व की पिचमन, अंधहवरोधी और उसकी समू्पणातम की तलमश को आगे

बढतम िै।

"र्मनवीय सम्बन्ो ंके हबखरने- टूटने और समर् िी बदलते नैहतक रू्ल्ो ंऔर कमर्

सम्बन्ो ं को केन्द्र र्ें रखकर समू्पणा नमटक हलखम गयम िै। सर्कमलीन

पररक्तथर्हतयो ंके दबमव से व्यक्तक्त हकस प्रकमर टुकडो ंर्ें बॅहटंग जमतम िै और एक

समर् िी कई हजंदहगयमं जीतम िै और इसहलए कुक्तित िोतम िै। " 1

सुलेखम आधुहनक द्रौपदी िै जो अपने पहत और उसके रु्खौटो ंसे समर्नम

करती ंिैं। यि नमटक उसके सर्य और पररक्तथर्हत के अनुसमर बदलतम रितम िै

और उसे िी इन रूपो ंकम दि िुगतनम पडतम िै। द्रौपदी नमटक र्ें आज की

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र्मनव की हनयहत की तलमशम गयम िै, जो धन और ऐश्वया के समधनो ंकी प्रमक्तप्त र्ें

स्पधमग्रथर् सुरेश कम हवचमर िै हक-

" हगनी- चुनी चमर छ: वसु्तओ ंसे र्ैंने अपनी गृिथर्ी बसमयी र्ीअब बहुत कुछ िै

रे्रे धर रे्, लेहकन बहुत कुछ निी ंिी िै। उसी को पमने की दौड चल रिी िै। "2

व्यक्तक्त अपनी जीवन की इसी दौड र्ें अकेलम रि जमतम िै और टूट िी जमतम

िै। आज की जीवन के अधूरेपन, अजनवी, तन्मई और आपनम पिचमन खोए जमने

कम गिरम अनुिव िरे् द्रौपदी की पमत्ो ंजैसे सुरेश, रं्दम, अलकम और र्नर्ोिन

आहद के द्वमरम व्यक्त िोतम िै।

प्रसु्तत नमटक र्ें र्ध्यर्वगीय पररवमर की प्रगहत की किमनी किी गई िै।

र्नर्ोिन अपने र्ध्यर्वगीय पररवमर को उच् र्ध्यर्वगीय बनतम िै। इस उन्नहत

के हलए वि धन प्रमक्तप्त के ऐस कोहशशें करतम िैं जो आज के िर उस व्यक्तक्त को

व्यक्त करते िैं, जो िर अवथर्म र्ें धन पमजान करनम चमितम िो। वि इस िमग-

दौड की जीवन र्ें अपनी पत्नी से ऊब गयम और इसी ऊब को दूर करने के हलए

अन्य औरतो ंसे संबंध बनतम िै पर जिमाँ उनको वैसम िी अनुिव िोतम िै। हकंतु

उसे एक सत्व िी रितम िै हक वि एक अच्छें आदर्ी के लक्षण हलए हुए िै लेहकन

उसकी बुरी आदतें उस पर िमवी िो जमतम िै।

र्नर्ोिन के पररवमर के र्मध्यर् से सर्मज की एक बडी सर्स्यम को दशमायम

गयम िै हक पररवमर र्ें जैसम पररवेश रितम िै जो कुछ िोतम िै यम हिर बच्ो ंको

जैसे संस्कमरो ंसे हसंचमई िै। बचे् िी वैसे िी बनते िैं। इसे नमटक र्ें सुरेश और

र्नर्ोिन के दो बचे् अलकम और अहनल िै। र्नर्ोिन के स्वच्छन्द और कुक्तित

रूपो ंकम प्रहतहबंब और संस्कमर उसके बच्ो ंके जीवन र्ें पूणातः लहक्षत िोतम िै ।

दोनो ंबच्ो ंर्ें दुगुाणो ंके दशान िो जमते िैं। अलकम, रमजेश और अहनल, वषमा यौन

कंुठमओ ंसे ग्रस्त िैं।प्यमर पे्रर्-प्रदशान को यिमाँ यौन प्रदशान बनम हदयम िै। दोनो ंने

िी यौन वजानमओ ंको बन्न को तोड हदयम िै। उन्ी ंकी पूहता के हलए प्रयत्नशील

िी िै। यि नमटक आधुहनकतम बोध के हवसंगहतयो ंकम दस्तमवेज़ िै और अपनी

सवेरम र्ें र्ोिन रमकेश के आधे- आधूरे करीब िै। इस तरि यि नमटक व्यक्तक्त,

पररवमर के खंहित िो जमने के समर् संसृ्कहत के पतन को िी दशातम िै। वतार्मन

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सर्य र्ें यि िर हवकृहत की हसर्म कम उलंघन कर हदयम िै इस हवश्व र्ें िमलम

चन्द्रशेखर इस तरि व्यक्त करते िैं-

" सिी हनषेधो, प्रहतबंधो,ं वजानमओ ंऔर परिेज से सदैव रु्क्त िोकर नई-नई

हकतमबो ंकी तलमश िी जीवन िै। सर्ग्रत:प्रसु्तत नमटक सर्कमलीन व्यक्तक्त के

आत्मम हविमजन की उन हदशमओ ंको अनमवृत्त करतम िै जो हवससृ्कहतकरण की

यमंहत्क प्रहियम से उत्तरोत्तर ियंकर हवदेश िोतम जम रिी िैं। "3

यि संसृ्कहत और िर्मरे परंपरम की हवदुपतम निी तो और क्म िै। द्रोपती

नमटक रे् ररस्तो कम हलिमज़ नम रखते हुए र्म बेटी और िमई बिन की र्यमादम को

पूरी तरि से टूटते हुए हदखमयम गयम िै। सर्य की बदलती पररक्तथर्तो के कमरण

बच्ो के समर् दोस्तो की तरि व्यविमर को सिी िी र्मन हलयम जमए तो िी बेटी से

पे्रर्ी के समर् शरीररक संबंधो ंकी आलोचनम र्न र्ें जुगुप्सम िी जगमती िै जो इस

प्रकमर िै-

"प्रते्यक युग की अपनी हवचमर धमरम, हवशेष िमवनमए तर्म हवशेष दृहिकोण िोतम

िै जो उस युग के समहित्य र्ें प्रहतिहलत िोतम िै । " 4

द्रौपदी नमटक र्मनवीय संबंधो ंके हबखरमव और टूटने को प्रसु्तत हकयम िै

इस नमटक र्ें बदलते नौहतक रू्ल्ो ंऔर कमर्-संबंधो को कें द्र पर रखकर रचम

गयम िै। िौहतक समधनो ंऔर धन की अॅधी दौड, आपमधमंपी और िमलतो ंके दबमव

र्ें नमटक कम नमयक र्नर्ोिन वि अपनी सिी ररश्ो ंको पीछे छोडतम हुआ जमतम

िैं वि इस अंधी दौड र्ें वि अपनी, जर्ीन से, घर से कट जमतम िैं, इसके अलमवम

अपने-आप से, पत्नी और बच्ो ंसे और सबसे र्ित्वपूणा अपने सुकून और शमंहत

से दूर िोतम चलम जमतम िैं । उसकी पत्नी सुरेखम को यि अनुिव िोतम िै हक पहत

र्नर्ोिन कई हिस्ो ंर्ें बट गयम िै वि तिी घर र्ें तो किी दफ्तर र्ें िूबम रितम

िै । वि संबंिीनतम उसे ग्रस्त लेती िै इसी पर िम॰ ब्रजरमज हकशोर कम कर्न िै

हक-

"आत्मघमती हकंतु स्वयंवर इन क्तथर्हतयो ंर्ें वि जीवन, सुख, तृक्तप्त नयमपन और

तमजगी की तलमश र्ें किी अंजमन के पमस जमतम िै, किी रंजनम के पमस, तो किी

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वंदनम के पमस । लेहकन सब रृ्गर्ररहचकम िी हसध्द िोतम िै।पमनी निी ंहर्लतम,

प्यमस निी ंबुझती, सुरेखम नमर्क अंजली से एक-एक बंूद पमनी ररसने की अनुिूहत

के बमद अंजनम और दूसरी अंजहलयो ंर्ें जीवन दमयी पमनी की तलमश र्नर्ोिन

को किम निी ंिटकमती। "6

द्रौपदी र्ें ये चमर पमत् अलकम- रमजेश तर्म अहनल- वषमा के पमररवमररक

हबखरमव के ओर संकेत करते िैं । नमटक र्ें र्मनव जीवन की तनमवो ंसे टूटते

पहत-पत्नी कम बदलते पररक्तथर्हत िर् को ईट-पत्थर कम र्कमन र्ें बदल देतम िै।

दोनो ंिी पमत्ो ंअपने- अपने नगरीय से नीरसतम से संसमर हनिम रिें िैं। इसर्ें बेटम

नगरो ंकी आज के कमल के आदतो ंकम हशकमर तर्म बेटी तो एक क्लमस के बिमने

अपने पे्रर्ी के समर् हपक्चर तर्म संबंध थर्महपत करती िैं।

द्रौपदी नमटक से यि तो स्पि िै हक स्त्री- पुरूष संबंधो ं से उत्पन्न उसके

र्मध्यर् तनमव, हदन िर की व्यवथर् जीवन, पमररवमररक टूटने और पररक्तथर्हतयो ं

के दबमव र्ें अंदर घटते तर्म खोखले िो चुके सर्कमलीन व्यक्तक्त की हनर्ार् और

वमलम सच्ी जीवन कम प्रसु्तत हकयम गयम िै। हजसर्ें नमटक के पमत् यर्मर्ा से हधरे

और उलझते- झेलते अधूरेपन और पूरेपन की तलमश करते िै। इस नमटक र्ें

सुरेन्द्र वर्मा ने आधुहनक सर्मज व्यवथर्म, टूटते पररवमर तर्म िौहतकवमदी पध्दहत

को प्रत्यक्ष प्रसु्तत हकयम िै । इसे सुरेन्द्र वर्मा कम यि नमटक व्यमपक अर्ा र्ें टूटते

पमररवमररक सम्बन्ो ंअर्ा एवं ऐश्वया के चमि र्ें दौडते र्मनव, पमश्चमत्य सभ्यतम के

पीछे दौडते अंधी युवम वगा उच् व उच् र्ध्यवगीय कमर् चेतनम तर्म आधुहनक

शिरी र्मनव कम जीवन हचत्ण को समर्ाक रूप से प्रत्यक्ष समक्षमत्कमर करतम िै।

सन्दर्ा ग्रन्थ

1. सर्कमलीन हिंदी नमटककमर, हगरीश रस्तोगी पृष्ठ-६२ संस्करण-२००८

लोकिमरती प्रकमशन, इलमिमबमद ।

2. तीन नमटक, सुरेंद्र वर्मा, पृ -९०, संस्करण -२००६, वमणी प्रकमशन, नई हदल्ली

3. सर्कमलीन हिंदी नमटक: कथ्य चेतनम, िम॰ चंद्रशेखर ६६

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4. गध पर्, सुहर्त्म नंदन पंत १४७

5. तीन नमटक, सुरेंद्र वर्मा - पृ ९२६

6. िम॰ ब्रमजरमज हकशोर, हिंदी नमटक और रंगरं्च : सर्कमलीन पररदृश्य - पृ ६६

7. जयदेव तनेजम, आज के हिंदी रंग नमटक - पृ १३३-१३४

Smti. Nita Samadder, MA(Hindi) & UGC NET

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9531843147