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Downloaded From https://preetamch.blogspot.in वामी ववेकानद उठो, जागो और तब तक रको नही जब तक मंजल ात न हो जाये । जो सय है , उसे साहसपूवक ननीक होकर लोगौ से कहोउससे ककसी को कट होता है या नहीं , इस ओर यान मत दो। दुबवलता को की य मत दो। सय की योनत बुिमानमनुयौ के ललए यदद अयधिक माा म खर तीत होती है , और उह बहा ले जाती है , तो ले जाने दोे जजतना शी बह जाएँ उतना अछा ही है। तुम अपनी अंत:थ आमा को छो कसी और के सामने लसर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनु नहीं करते क तुम यं देौ के दे हो, तब तक तुम मुत नहीं हो सकते। ईर ही ईर की उपलजथथ कर सकता है। सी जींत ईर ह इस ा से सब को देखो। मनुय का अययन करो, मनुय ही जीत काय है। जगत म जतने ईसा या बुि ह ए ह , सी हमारी योनत से योनतमान ह। इस योनत को छो दे ने पर ये सब हमारे ललए और अधिक जीत नहीं रह सक गे , मर जाएंगे। तुम अपनी आमा के ऊपर जथर रहो। ान यमे तवमान है , मनुय के ल उसका आकार करता है। मान-देह ही सवेठ देह है , एं मनुय ही सोच ाणी है , यौकक इस मान-देह तथा इस जम म ही हम इस सापेिक जगत् से संपूणवतया बाहर हो सकते ह नचय ही मुजत की अथा ात कर सकते ह , और यह मुजत ही हमारा चरम लय है। जो मनुय इसी जम म मुजत ात करना चाहता है , उसे एक ही जम म हजारौ व का काम करना पेगा। ह जजस युग म जमा है , उससे उसे बह त आगे जाना पेगा, कतु सािारण लोग कसी तरह रगते-रगते ही आगे ब सकते ह।

स्वामीविवेकानन्दके अमृत वचन

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