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ramesh-menon
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अपने घर का वास्तु सुधारे जन्मकंुडली द्वार! हम हमेशा कोशिशश करतेहै किक हमारा घर या भवन शत-प्रकितशत वास्तु शास्त्र के अनुसार बने, और इसके लिलए हम भरपूर प्रयत्न भी करते है, लेकिकन देखने में आता है किक इतनी सारी कोशिशश करने</p> <p>के बावजूद घर के सभी भाग समान रूप से सुन्दर या वास्तु के अनुरूप नहीं बन पाते</p> <p>है कहीं ना कहीं हमें वास्तु से समझोता करना पड़ता है, कभी शयन कक्ष सुन्दर</p> <p>होता है तो भोजन कक्ष बेकार होता है, कभी अकितलि3 कक्ष भव्य होता है तो रसोई</p> <p>रूलि6 अनुसार नहीं बन पाती है, बालकनी की तरह किबखरी होती है. स्नान घर में कमी</p> <p>हो जाती है. यह सब यूं ही नहीं होता है इसके पीछे ग्रहों का खेल है आइये जाने</p> <p>व समझे किक ऐसा क्यों होता है त3ा इसका उपाय क्या है..</p> <p>वास्तु का ज्योकितष से गहरा रिरश्ता है. ज्योकितष शास्त्र का मानना है किक मनुष्य</p> <p>के जीवन पर नवग्रहों का पूरा प्रभाव होता है. वास्तु शास्त्र में इन ग्रहों की</p> <p>स्थिDकितयों का पूरा ध्यान रखा जाता है. वास्तु के लिसद्धांतों के अनुसार भवन का</p> <p>किनमाGण कराकर आप उत्तरी ध्रुव से 6लने वाली 6ुम्बकीय ऊजाG, सूयG के प्रकाश</p> <p>में मोजूद अल्ट्रा वायलेट रेज और इन्फ्रारेड रेज, गुरुत्वाकषGण – शलिS त3ा</p> <p>अनेक अदृश्य ब्रह्मांडीय तत्व जो मनुष्य को प्रभाकिवत करते है के शुभ परिरणाम</p> <p>प्राप्त कर सकते है. और अकिनष्टकारी प्रभावों से अपनी रक्षा भी कर सकते है.</p> <p>वास्तु शास्त्र में दिदशाओं का सबसे अलिधक महत्व है. समू्पणG वास्तु शास्त्र</p> <p>दिदशाओं पर ही किनभGर होता है. क्योंकिक वास्तु की दृकिष्ट में हर दिदशा का अपना</p> <p>एक अलग ही महत्व है!</p> <p>आज किकसी भी भवन किनमाGण में वास्तुशास्त्री की पहली भूमिमका होती है, क्योंकिक</p> <p>लोगों में अपने घर या कायाGलय को वास्तु के अनुसार बनाने की सो6 बढ़ रही है।</p> <p>यही वजह है किक किपछले करीब एक दशक से वास्तुशास्त्री की मांग में तेजी से इजाफा</p> <p>हुआ है।</p> <p>वास्तु और ज्योकितष में अत्यंत घकिनष्ठ संबंध है। एक तरह से दोनों एक लिसक्के के</p> <p>दो पहलू हैं। दोनों के बी6 के इस संबंध को समझने के लिलए वास्तु 6क्र और</p> <p>ज्योकितष को जानना आवश्यक है। किकसी जातक की जन्मकंुडली के किवशे्लषण में उसके</p> <p>भवन या घर का वास्तु सहायक हो सकता है। उसी प्रकार किकसी व्यलिS के घर के</p> <p>वास्तु के किवशे्लषण में उसकी जन्मकंुडली सहायक हो सकती है। वास्तु शास्त्र एक</p> <p>किवलक्षण शास्त्र है। इसके 81 पदों में 45 देवताओं का समावेश है और किवदिदशा समेत</p> <p>आठ दिदशाओं को जोड़कर 53 देवता होते हैं। इसी प्रकार, जन्मकंुडली में 12 भाव और</p> <p>9 ग्रह होते हैं।</p> <p>किबना ज्योकितष ज्ञान के वास्तु का प्रयोग अधूरा होता है. इसलिलए वास्तु शास्त्र का उपयोग करने से</p> <p>पूवG ज्योकितष को भी ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक होता है.वास्तु में ज्योकितष</p> <p>का किवशेष Dान इसलिलए है क्योंकिक ज्योकितष के अभाव में ग्रहों के प्रकोप से हम</p> <p>ब6 नहीं सकते है, एक तरह से वास्तु और ज्योकितष का 6ोली-दामन का सा3 है. हमारें</p> <p>ग्रहों की स्थिDकित क्या है, हमें उनके प्रकोप से ब6ने के लिलए क्या उपाय करने</p> <p>6ाकिहए, हमारा पहनावा, आभूषण, घर की दीवारों, वाहन, दरवाजे आदिद का आकार और रंग</p> <p>कैसा होना 6ाकिहए इसका ज्ञान हमें ज्योकितष त3ा वास्तु के द्वारा ही हो सकता है.</p> <p>वास्तु से मतलब लिसफG घर या ब्य्हावन से ही नहीं बल्किल्क मनुष्य की सम्पूणG</p> <p>जीवन शैली से भी होता है, हमें कैसे रहना 6ाकिहए, किकस दिदशा में लिसर करके सोना</p> <p>6ाकिहए, किकस दिदशा में बैठ कर खाना खाना 6ाकिहए आदिद आदिद बहुत से प्रश्नों का</p> <p>ज्ञान होता है.</p> <p>यदिद कोई परेशानी है, तो उस समस्या का समाधान भी हम वास्तु और ज्योकितष के संयोग से जान सकते है,भवन में प्रकाश किक स्थिDकित प्र3म भाव अ3ाGत लग्न से समझना 6ाकिहए यदिद आपके घर</p> <p>में प्रकाश की स्थिDकित खराब है तो समझे किक मंगल की स्थिDकित शुभ नहीं है इसके लिलए</p> <p>आप मंगल का उपाय करें प्रत्येक मंगलवार श्री हनुमान जी की प्रकितमा को भोग लगा</p> <p>कर सभी को प्रसाद दें . और श्री हनुमान 6ालीसा का पाठ करने से भी प्र3म भाव के</p> <p>समत दोष समाप्त हो जाते है. आपके घर या भवन में हवा की स्थिDकित संतोषजनक नहीं</p> <p>है या आपका घर यदिद हवादार नहीं है तो समझना 6ाकिहए किक हमारा शुक्र ग्रह पीकिड़त</p> <p>है और इसका किव6ार दूसरे भाव से होता है उपाय के लिलए आप 6ावल और कपूर किकसी</p>
<p>योग्य ब्राह्मण को दान दें . और शुक्र ग्रह की शान्तिन्त किवद्वान ज्योकितषी की सलाह</p> <p>अनुसार करें तो आपको लाभ होगा और आपका बैंक के कोष की भी वृशिद्ध होने लगेगी.</p> <p>वास्तु 6क्र में ठीक ऊपर उत्तर दिदशा होती है जबकिक जन्मकंुडली में पूवG दिदशा</p> <p>पड़ने वाले किवकणG वास्तु पुरुष के अंगों को कष्ट पहं6ाते हैं। वास्तु पुरुष के</p> <p>अनुसार पूवG एवं उत्तर दिदशा अगम सदृश्य और दशिक्षण और पशिrम दिदशा अंत सदृश्य</p> <p>है। ज्योकितष के अनुसार पूवG दिदशा में सूयG एवं उत्तर दिदशा में बृहस्पकित</p> <p>कारक है। पशिrम में शकिन और दशिक्षण में मंगल की प्रबलता है।</p> <p>लग्न में नी6 राशिश का पीकिड़त होना पूवG दिदशा में दोष का सू6क है।</p> <p>आग्नेय (एकादश-द्वादश) में पापग्रह, षषे्ठश या अष्टमेश के होने से</p> <p>ईशान कोण में दोष होता है। लग्नेश का पं6म में होना वायव्य में दोष का द्योतक</p> <p>है।यदिद कोई भावेश पं6म या षष्ठ (वायव्य) में हो, तो उस भाव संबंधी Dान में</p> <p>महादोष उत्पन्न होता है। ग्रह की प्रकृकित, उसकी मिमत्र एवं शतु्र राशिश त3ा उसकी</p> <p>अंशात्मक शुशिद्ध के किवश्लेषण से जातक के जीवन में घटने वाली खास घटनाओं का</p> <p>अनुमान लगाया जा सकता है। घर में अन्तिग्न का सम्बन्ध तो छठे भाव से जाना जाता है!</p> <p>और रसोई इसका कारक है घर में यदिद सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक नहीं है!</p> <p>तो इसकी स्थिDकित सुधारें. इस दोष को दूर करने के लिलए,आप धकिनया (साबुत)</p> <p>कपडे़ में बाँध कर रसोई के किकसी भी भाग में टांग देंगे तो लाभ होना आरम्भ हो जाएगा !</p> <p>अगर आपके घर में जल का संकट है या पानी की तंगी रहती है, या माता से सम्बन्ध अचे्छ नहीं है अ3वा आपका वाहन प्रकितदिदन खराब रहने लगता है, या आप अपनी पारिरवारिरक संपलित्त के लिलए</p> <p>परेशान है, तो आप समझ लीजिजए किक 6तु3G भाव दूकिषत है. इस दोष से मुलिS पाने के</p> <p>लिलए आप 6ावल की खीर सोमवार के दिदन प्रातः अवश्य बनाए ँऔर अपने परिरवार सकिहत</p> <p>इसका सेवन करें यदिद इसी समय कोई अकितलि3 आ जाए तो बहुत अच्छा शगुन है उसे भी यह</p> <p>खीर खिखलायंगे तो अकित शुभ फल शीघ्र आपको प्राप्त होगा.!</p> <p>यदिद आपकी संतान आज्ञाकारी नहीं है या संतान सुख आपको प्राप्त नहीं हो पा रहा है,</p> <p>तो आपका पं6म भाव दूकिषत हो राह है जो किक आपके घर या भवन का प्रवेश द्वार है, प्रवेश द्वार</p> <p>में टॉयलेट या सीवर अवश्य होगा और उत्तर दिदशा दूकिषत है इसके इसको सुधारें और सूयG यंत्र या ताम्बा प्रवेश द्वार पर Dाकिपत करने से आपको लाभ प्राप्त होगा! यदिद घर में तुलसी</p> <p>के पौधे फलते फूलते नहीं है या घर में लगे! पौधे फल या फूल नहीं दे रहें है और पकित – पत्नी के मध्य किबना बात के कलह होती है, तो छठा भाव दूकिषत है इसके लिलए आप गमलों में सफेद 6ावल और कपूर रख कर उसके ऊपर मिमटटी लिछड़क दे तो आप भी प्रसन्न और पौधे भी फलने फूलने लगेंगे.त3ा परिरवार में सद्भावना का वातावरण बन जाएगा !</p> <p>यदिद परिरवार में कोई अकित गंभीर रोग का आगमन हो 6ुका है तो समझो किक कंुडली का</p> <p>आठवाँ भाव खराब हो रहा है इसके लिलए आप घर में पुराने गुड का प्रयोग आरम्भ कर</p> <p>दें तो रोग किनयंकित्रत होने लगेगा.!</p> <p>जब से आपने नया मकान या भवन लिलया है या बनवाया है तब से भाग्य सा3 नहीं दे</p> <p>रहा है तो समझो किक नवम भाव में दोष आ गया है इसकी शान्तिन्त के लिलए आप पीले रंग</p> <p>को पद� में प्रयोग करे. सारे घर में हल्दी के छींटे मारे और सा3 ही अपने</p> <p>गुरु को पीले वस्त्र दान करे. त3ा घर के बुजुग� को मां सम्मान प्रदान करे</p> <p>इससे भाग्य सम्बन्धी बाधा दूर होती जायेगी.!</p> <p>व्यवसाय में किगरावट, पारिरवारिरक सदस्यों में गुस्सा बढ़ना, या लि6डलि6डा स्वभाव बन जाना, रोज़गार छूट जाना एवं आर्थि3�क तंगी हो जाए तो समझो किक दशम भाव दूकिषत हो गया है, इस 0 दोष को</p> <p>दूर करने के लिलए आप तेल का दान करें, पीपल के नी6े तेल का दीपक जलाए,ं काले</p> <p>उडद की डाल का प्रयोग करें तो आशातीत लाभ होने लगेगा.!</p> <p>गो6रीय ग्रहों के प्रभाव के किवशे्लषण से भी वास्तु दोषों का आकलन किकया जा</p> <p>सकता है। जैसे मेष लग्न वालों के लिलए दशमेश त3ा षष्ठेश भाव गो6रीय हैं। शकिन</p> <p>अपनी मिमत्र राशिश में गो6रीय है, इसलिलए जातक के दशम भाव से संबंलिधत दिदशा में</p> <p>दोष होगा। इस योग के कारण किपता को कष्ट अ3वा जातक के किपतृ सुख में कमी संभव</p> <p>है, क्योंकिक दशम भाव किपता का भाव होता है। उS परिरणाम तब अलिधक आएगें जब</p> <p>गो6रीय व जन्मकालिलक महादशाए ंभी प्रकितकूल हों। जन्मकंुडली सबसे बलवान ग्रह शुभ</p> <p>भाव कें द्र व कित्रकोण में शुभ स्थिDकित में हो, तो वह दिदशा जातक को श्रेष्ठ</p> <p>परिरणाम देने वाली होगी। वास्तु लिसद्धांत के अनुसार संपूणG भूखंड को 82 पदों</p> <p>में किवभाजिजत होता है, जिजनमें होती है।</p> <p>वास्तु देवता वास्तु 6क्र में उलटे लेटे मनुष्य</p> <p>के समान हैं, जिजनका मुख ईशान में, दोनों टांगें व हा3 पेट में धंसे हुए और</p> <p>पंूछ किनकलकर मंुह में घुसी हुई है। किकसी बीम, खंभा, द्वार, दीवार आदिद से जो</p> <p>अंग पीकिड़त होगा वही दसरी ओर उसी अंग में गृह
स्वामी को पीड़ा होगी। इसी भांकित</p> <p>षष्टम हाकिन-महाममG Dान-लिसर, मुख, हृदय, दोनों वक्ष, नी6 को वेध रकिहत रखा</p> <p>जाता है। प्रत्येक देवता अपनी प्रकृकित के अनुसार शुभाशुभ परिरणाम देते हैं। शुभ देवता के</p> <p>समीप आसुरी शलिS संबंधी कायG किकए जाए ंतो वह पीकिड़त होकर अशुभ परिरणाम देते हैं।</p> <p>पुत्री के किववाह में कदिठनाइयां आ रही है, या रिरश्तेदारों से मनमुटाव, आमदनी में किगरावट,</p> <p>नौकरी का बार बार छूटना, उन्नकित का ना होना, घर की बरकत समाप्त होना अ3वा दामाद से कलह</p> <p>यह सब एकादश भाव के दूकिषत होने का परिरणाम होता है. इसको दूर करने के लिलए आप</p> <p>तांबे का पैसा दान करें त3ा एक लोहे का लिसक्का शमशान में फें के तो पयाGप्त</p> <p>लाभ होगा. पुत्री से छाया दान करवाए तो शीघ्र किववाह का योग बन जाएगा!</p> <p>पहले आप जहां रहते 3े वहां के पडौसी अचे्छ हो अब पडौसी झगडा करते है मिमलनसार नहीं है,</p> <p>ऐसे दोष बारहवें भाव के खराब होने से होते है मिमत्र धन लेकर मुकर जाए या धन डूब रहा हो</p> <p>तो अपना बारहवां भाव को दोष से मुS करें इस दोष की शान्तिन्त के लिलए आप गंगा</p> <p>स्नान करें और वहां से कोई धार्मिम�क ग्रन्थ खरीदकर घर लाए ंउसे सम्मानपूवGक घर</p> <p>में रखे तो परिरवतGन स्पष्ट नजर आएगा. महाभारत का ग्रन्थ भूल कर भी घर में ना</p> <p>ले कर आना 6ाकिहए.!</p> <p>इमारत, फामG हाउस, मंदिदर, मल्टीप्लेक्स मॉल, छोटा-बड़ा घर, भवन, दुकान कुछ</p> <p>भी हो, उसका वास्तु के अनुसार बना होना जरूरी है, क्योंकिक आजकल सभी सुख-शांकित</p> <p>और शारीरिरक कष्टों से छुटकारा 6ाहते हैं। इस सबके लिलए किकस दिदशा या कौन से कोण</p> <p>में क्या होना 6ाकिहए, इस तरह के किव6ार की जरूरत पड़ती है और यह किव6ार ही</p> <p>वास्तु किव6ार कहलाता है। किकसी भी भवन किनमाGण में वास्तुशास्त्री की पहली</p> <p>भमूिमका होती है।</p> <p>वास्तु दोष व्यलिS को गलत मागG की ओर अग्रसर भी करते है. आपके घर का वास्तु</p> <p>ठीक नहीं है, तो आपकी संतान बेटा हो या बेटी हो वह अपना रास्ता भटक सकती है और</p> <p>गलत फैसले लेकर अपना जीवन तबाह भी कर सकती है यहां तक किक घर से भाग जाने का</p> <p>साहस भी कर सकती है.वास्तु दोष सबसे पहले मन और दिदल को प्रभाकिवत कर बुशिद्ध को</p> <p>भ्रष्ट कर देते है.!समू्पणG वास्तु शास्त्र दिदशाओं पर ही किनभGर होता है. क्योंकिक वास्तु की</p> <p>दृकिष्ट में हर दिदशा का अपना एक अलग ही महत्व है.!</p> <p>पूवG-दिदशा:- पूवG की दिदशा सूयG प्रधान होती है.सूयG का महत्व सभी देशो</p> <p>में है. पूवG सूयG के उगने की दिदशा है. सूयG पूवG दिदशा के स्वामी है. यही</p> <p>वजह है किक पूवG दिदशा ज्ञान, प्रकाश, आध्यात्म की प्रान्तिप्त में व्यलिS की मदद</p> <p>करती है. पूवG दिदशा किपता का Dान भी होता है. पूवG दिदशा बंद, दबी, ढकी होने</p> <p>पर गृहस्वामी कष्टों से मिघर जाता है. वास्तु शास्त्र में इन्ही बातो को दृकिष्ट</p> <p>में रख कर पूवG दिदशा को खुला छोड़ने की सलाह दी गयी है.!</p> <p>दशिक्षण-दिदशा:- दशिक्षण-दिदशा यम की दिदशा मानी गयी है. यम बुराइयों का नाश करने</p> <p>वाला देव है और पापों से छुटकारा दिदलाता है. किपतर इसी दिदशा में वास करते है.</p> <p>यह दिदशा सुख समृशिद्ध और अन्न का स्रोत है. यह दिदशा दूकिषत होने पर गृहस्वामी का</p> <p>किवकास रुक जाता है. दशिक्षण दिदशा का ग्रह मंगल है.और मंगल एक बहुत ही</p> <p>महत्वपूणG ग्रह है.!</p> <p>उत्तर-दिदशा:- यह दिदशा मातृ Dान और कुबेर की दिदशा है. इस दिदशा का स्वामी बुध</p> <p>ग्रह है. उत्तर में खाली Dान ना होने पर माता को कष्ट आने की संभावना बढ़</p> <p>जाती है.</p> <p>दशिक्षण-पूवG की दिदशा:- इस दिदशा के अलिधपकित अन्तिग्न देवता है. अन्तिग्नदेव व्यलिS</p> <p>के व्यलिSत्व को तेजस्वी, सुंदर और आकषGक बनाते है. जीवन में सभी सुख प्रदान</p> <p>करते है.जीवन में खुशी और स्वास्थ्य के लिलए इस दिदशा में ही आग, भोजन पकाने त3ा</p> <p>भोजन से सम्बंलिधत कायG करना 6ाकिहए. इस दिदशा के अलिधष्ठाता शुक्र ग्रह है.</p> <p>उत्तर-पूवG दिदशा:- यह सोम और शिशव का Dान होता है. यह दिदशा धन, स्वास्थ्य</p> <p>औए एश्वयG देने वाली है. यह दिदशा वंश में वृशिद्ध कर उसे Dामियत्व प्रदान</p> <p>करती है. यह दिदशा पुरुष व पुत्र संतान को भी उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करती है.</p> <p>और धन प्रान्तिप्त का स्रोत है. इसकी पकिवत्रता का हमेशा ध्यान रखना 6ाकिहए.</p> <p>दशिक्षण-पशिrम दिदशा:- यह दिदशा मृत्यु की है. यहां किपशा6 का वास होता है. इस</p> <p>दिदशा का ग्रह राहू है. इस दिदशा में दोष होने पर परिरवार में असमय मौत की आशंका</p> <p>बनी रहती है.!</p> <p>उत्तर-पशिrम दिदशा:- यह वायुदेव की दिदशा है. वायुदेव शलिS, प्राण, स्वास्थ्य</p> <p>प्रदान करते है. यह दिदशा मिमत्रता और शतु्रता का आधार है. इस दिदशा का स्वामी</p> <p>ग्रह 6ंद्रमा है.!</p> <p>पशिrम-दिदशा:- यह वरुण का Dान है. सफलता, यश और भव्यता का आधार यह दिदशा है.</p> <p>इस दिदशा के ग्रह शकिन है. लक्ष्मी से सम्बंलिधत पूजा पशिrम की तरफ मंुह करके भी</p> <p>की जाती है !</p> <p>vaastu zivan jine ki kalaa to hai he, sath he acha sawasth or labh ki v sathi hai.</p> <p>jai maa
bharti</p> <p>आजकल भवन केवल प्राकृकितक आपदाओं से ब6ने का साधन मात्र नहीं, बल्किल्क वे आनंद,</p> <p>शांकित, सुख-सुकिवधाओं और शारीरिरक त3ा मानलिसक कष्ट से मुलिS का साधन भी माने</p> <p>जाते हैं। पर यह तभी संभव होता है, जब हमारा घर या व्यवसाय का Dान प्रकृकित</p> <p>के अनुकूल हो। भवन किनमाGण की इस अनुकूलता के लिलए ही हम वास्तुशास्त्र का</p> प्रयोग करते हैं और इसके जानकारों को वास्तुशास्त्री कहते हैं।Like · Comment