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Dr. Kamraj Sindhu Assistant Professor (Hindi) Directorate of Distance Education Kurukshetra University, Kurukshetra DDE Programme B.A. General Class: B.A. Part -3rd Subject: Hindi अऱंकार

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Dr. Kamraj Sindhu

Assistant Professor (Hindi)

Directorate of Distance Education

Kurukshetra University,

Kurukshetra

DDE

Programme

B.A. General

Class:

B.A. Part -3rd

Subject:

Hindi

अऱंकार

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अऱंकार अरॊकृतत ; अरॊकाय : अरभ ्अथाात ्बूषण। जो बूषषत कये वह अरॊकाय है। कहा lबायतीम साहहत्म भें अनुप्रास, उऩभा, रूऩक, अनन्वम, मभक, श्रेष, उत्प्रेऺा, सॊदेह, अततशमोक्तत, वक्रोक्तत आहद प्रभुख अरॊकाय हैं।इस कायण व्मुत्ऩक्त्त से उऩभा आहद अरॊकाय कहरात ेहैं। उऩभा आहद के लरए अरॊकाय शब्द का सॊकुचित अथा भें प्रमोग ककमा गमा है। व्माऩक रूऩ भें सौंदमा भात्र को अरॊकाय कहते हैं औय उसी से काव्म ग्रहण ककमा जाता है। (काव्मॊ ग्राह्भभरॊकायात।् सौंदमाभरॊकाय: - वाभन)। िारुत्व को बी अरॊकाय कहत ेहैं। (टीका, व्मक्ततषववेक)।बाभह के षविाय से वक्राथाषवजाएक शब्दोक्तत अथवा शब्दाथावैचित्र्म का नाभ अरॊकाय है

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दॊडी के लरए अरॊकाय काव्म के शोबाकय धभा हैं (काव्मशोबाकयान ्धभाान ्अरॊकायान ्प्रिऺते)। सौंदमा, िारुत्व, काव्मशोबाकय धभा इन तीन रूऩों भें अरॊकाय शब्द का प्रमोग व्माऩक अथा भें हुआ है औय शषे भें शब्द तथा अथा के अनुप्रासोऩभाहद अरॊकायों के सॊकुचित अथा भें। एक भें अरॊकाय काव्म के प्राणबतू तत्व के रूऩ भें ग्रहीत हैं औय दसूये भें सुसक्जजतकताा के रूऩ भें।

षवबाजनउऩमा अऱंकार

अतिशयोक्ति अऱंकारविभािना अऱकंार

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साभान्मत: कथनीम वस्तु को अच्छे से अच्छे रूऩ भें अलबव्मक्तत देने के षविाय से अरॊकाय प्रमुतत होते हैं। इनके द्वाया मा तो बावों को उत्कषा प्रदान ककमा जाता है मा रूऩ, गणु, तथा कक्रमा का अचधक तीव्र अनुबव कयामा जाता है।अत: भन का ओज ही अरॊकायों का वास्तषवक कायण है। रुचिबेद आएॉफय औय िभत्कायषप्रम व्मक्तत शब्दारॊकायों का औय बावुक व्मक्तत अथाारॊकायों का प्रमोग कयता है। शब्दारॊकायों के प्रमोग भें ऩुयरुक्तत, प्रमत्नराघव तथाउच्िायण मा ध्वतनसाम्म भुख्म आधायबूत लसद्ाॊत भाने जाते हैं औय ऩुनरुक्तत को ही आवकृ्त्त कहकय इसके वणा, शब्द तथा ऩद के क्रभ से तीन बेद भाने जाते हैं, क्जनभें क्रभश: अनुप्रास औय छेक एवॊ मभक, ऩयरुततावदाबास तथाराटानुप्रास को ग्रहण ककमा जाता है। वतृ्मनुप्रास प्रमत्नराघव का उदाहयण है। वकृ्त्तमों औय यीततमों का आषवष्कय इसी प्रमत्नराघव के कायण होता है। शु्रत्मनुप्रास भें ध्वतनसाम्म स्ऩष्ट है ही। इन प्रवकृ्त्तमों के अततरयततचित्रारॊकायों की यिना भें कौतूहरषप्रमता, वक्रोक्तत, अन्मोक्तत तथा षवबावनाहद अथाारॊकायों की यिना भॊ वैचित्र्म भें आनॊद भानने की वकृ्त्त कामायत यहती हैं।

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िामों ने काव्म शयीय, उसके तनत्मधभा तथा फहहयॊग उऩकायक का षविाय कयते हुए काव्म भें अरॊकाय के स्थान औय भहत्व का व्माख्मान ककमा है। इस सॊफॊधभें इनका षविाय, गुण, यस, ध्वतन तथा स्वमॊ के प्रसॊग भें ककमा जाता है। इस प्रकाय के षविायों से अरॊकायशास्त्र भें दो ऩऺों की नीॊव ऩड़ गई। एक ऩऺ ने, जो यस को ही काव्म की आत्भा भानता है, अरॊकायों को गौण भानकय उन्हें अक्स्थयधभा भाना औय दसूये ऩऺ ने उन्हें गुणों के स्थान ऩय तनत्मधभा स्वीकाय कय लरमा। काव्म के शयीय की कल्ऩना कयके उनका तनरूऩण ककमा जाने रगा। आिामा वाभन ने व्माऩक अथा को ग्रहण कयत ेहुए सॊकीणा अथा की ििाा के सभम अरॊकायों को काव्म का शोबाकाय धभा न भानकय उन्हें केवर गुणों भें अततशमता रानेवारा हेतु भाना l

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इन भतों के षवयोध भें 13वीॊ शती भें जमदेव ने अरॊकायों को काव्मधभा के रूऩ भें प्रततक्ष्ित कयते हुए उन्हें अतनवामा स्थान हदमा है। जो व्मक्तत अक्नन भें उष्णता न भानता हो, उसी की फुषद्वारा व्मक्तत वह होगा जो काव्म भें अरॊकाय न भानता हो। अरॊकाय काव्म के तनत्मधभा हैं (अॊगीकयोतत म: काव्मॊ शब्दाथाावनरॊकृती। असौ न भन्मते कस्भादनुष्णभनरॊ कृती ।-िॊद्रारोक)।इस षववाद के यहते हुए बी आनॊदवधान जसेै सभन्वमवाहदमों ने अरॊकायों का भहत्व प्रततऩाहदत कयते हुए उन्हें आॊतय भानने भें हहिक नहीॊ हदखाई है। यसों को अलबव्मॊजना वाच्मषवशषे से ही होती है औय वाच्मषवशषे के प्रततऩादक शब्दों से यसाहद के प्रकाशक अरॊकाय, रूऩक आहद बी वाच्मषवशषे ही हैं, अतएव उन्हें अॊतयॊग यसाहद ही भानना िाहहए।

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विभाजनअरॊकाय के भुख्मत: बेद भाने जाते हैं--शब्दारॊकाय, अथाारॊकाय तथा उबमारॊकाय। शब्द के ऩरयवकृ्त्तसह स्थरों भें अथाारॊकाय औय शब्दों की ऩरयवकृ्त्त न सहनेवारे स्थरों भें शब्दारॊकाय की षवलशष्टता यहने ऩय उबमारॊकाय होता है। अरॊकायों की क्स्थतत दो रूऩें भें हो सकती है--केवर रूऩ औय लभचश्रत रूऩ। लभश्रण की द्षवषवधता के कायण "सॊकय" तथा "सॊसकृ्ष्ट" अरॊकायों का उदम होता है। शब्दारॊकायों भें अनुप्रास, मभक तथा वक्रोक्तत की प्रभखुता है। अथाारॊकायों की सॊख्मा रगबग एक सौ ऩिीस तक ऩहुॉि गई है।

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विभािना अऱंकारजहाॉ कायण के न होत ेहुए बी कामा का होना ऩामा जाता है, वहाॉ षवबावना अरॊकाय होता है। उदाहयण -

बफनु ऩग िरै सुनै बफनु काना। कय बफनु कभा कयै षवचध नाना। आनन यहहत सकर यस बोगी। धा फदन िन्द्र सो सुन्दय।

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अतिशयोक्ति अऱंकारअततशमोक्तत = अततशम + उक्तत = फढा-िढाकय कहना । जफ ककसी फात को फढा िढा कय फतामा जामे हनुभान की ऩूॉछ भें, रग न ऩामी आग।रॊका सायी जर गई, गए तनशािय बाग।।अनुप्रास अऱंकारअनुप्रास शब्द 'अनु' तथा 'प्रास' शब्दों से लभरकय फना है। 'अनु' शब्द का अथा है- फाय- फाय तथा 'प्रास' शब्द का अथा है- वणा।क्जस जगह स्वय की सभानता के बफना बी वणों की फाय -फाय आवकृ्त्त होती है, उस जगह अनुप्रास अरॊकाय होता है।इस अरॊकाय भें एक ही वणा का फाय -फाय प्रमोग ककमा जाता है।उदाहयण जन यॊजन भॊजन दनुज भनुज रूऩ सुय बूऩ।

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छेकानुप्रास जहाॉ स्वरूऩ औय क्रभ से अनेक व्मॊजनों की आवकृ्त्त एक फाय हो, वहाॉ छेकानुप्रास होता है।जसेै यीझझ यीझझ यहलस यहलस हॉलस हॉलस उिै,साॉसैं बरय आॉसू बरय कहत दई दई।महाॉ 'यीझझ-यीझझ', 'यहलस-यहलस', 'हॉलस-हॉलस', औय 'दई-दई' भें छेकानुप्रास है, तमोंकक व्मॊजन वणों की आवकृ्त्त उसी क्रभ औय स्वरूऩ भें हुई है।ऱाटानुप्रास जफ एक शब्द मा वातमखण्ड की आवकृ्त्त उसी अथा भें हो, ऩय तात्ऩमा मा अन्वम भें बेद हो, तो वहाॉ 'राटानुप्रास' होता है।जैसे तेगफहादयु, हाॉ, वे ही थे गरुु-ऩदवी के ऩात्र सभथा,तेगफफादयु, हाॉ, वे ही थे गरुु-ऩदवी थी क्जनके अथा।इन दो ऩॊक्ततमों भें शब्द प्राम् एक से हैं औय अथा बी एक ही हैं। अत् महाॉ राटानुप्रास अरॊकाय

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यमक अऱंकारअरॊकाय, ऊॉ िे घोय भन्दय के अन्दय यहन वायी, ऊॉ िे घोय भन्दय के अन्दय यहाती हैं।, यमक अऱंकार है।अर्ााऱंकारक्जस अरॊकाय भें अथा के भाध्मभ से काव्म भें िभत्काय उत्ऩन्न होता है, वहाॉ अथाारॊकाय होता है। इसके प्रभुख बेद हैं। उऩभा अरॊकाय जहाॉ एक वस्तु मा प्राणी की तुरना अत्मॊत सादृश्म के कायण प्रलसद् वस्तु मा प्राणी से की जाए, वहाॉ उऩभा अरॊकाय होता है। उऩभा अरॊकाय के िाय तत्व होते हैं- उऩमेय - क्जसकी उऩभा दी जाए अथाात क्जसका वणान हो यहा है।उऩमान - क्जससे उऩभा दी जाए।साधारण धमा - उऩभेम तथा उऩभान भें ऩामा जाने वारा ऩयम्ऩय सभान गणु।िाचक शब्द - उऩभेम औय उऩभान भें सभानता प्रकट कयने वारा शब्द जसेै- जमों, सभ, सा, सी, तुल्म, नाई।

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रूऩक अरॊकाय जहाॉ गणु की अत्मन्त सभानता के कायण उऩभेम भें उऩभान का अबेद आयोऩन हो, वहाॉ रूऩक अरॊकाय होता है।जसेै भैमा भैं तो िॊद्र झखरौना रैहों।महाॉ िन्द्रभा (उऩभेम) भें झखरौना (उऩभान) का आयोऩ होने से रूऩक अरॊकाय होता है।

उत्पे्रऺा अरॊकाय जहाॉ सभानता के कायण उऩभेम भें सॊबावना मा कल्ऩना की जाए वहाॉ उत्पे्रऺा अरॊकाय होता है। भानो, भनु, भनहु, जानो, जनु, जनहु आहद इसके फोधक शब्द हैं।जसेै कहती हुई मों उत्तया के नेत्र जर से बय गए।हहभ के कणों से ऩणूा भानो हो गए ऩॊकज नए॥महाॉ उत्तया के अशु्रऩणूा नेत्रों (उऩभेम) भें ओस-कण मुतत ऩॊकज (उऩभान) की सॊबावना की गई है।

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उऩभेमोऩभा अरॊकाय उऩभेम औय उऩभान को ऩयस्ऩय उऩभान औय उऩभेम फनाने की प्रकक्रमा को उऩभेमोऩभा कहते हैं।अततशमोक्तत अरॊकाय जहाॉ उऩभेम का वणान रोक सीभा से फढकय ककमा जाए वहाॉ अततशमोक्तत अरॊकाय होता है।जैसे आगे नहदमा ऩड़ी अऩाय, घोड़ा कैसे उतये ऩाय।याणा ने सोिा इस ऩाय, तफ तक िेतक था उस ऩाय।महाॉ सोिने की कक्रमा की ऩूतत ा होने से ऩहरे ही घोड़ ेका नदी के ऩाय ऩहुॉिना रोक-सीभा का

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उल्ऱेख अऱंकारजहाॉ एक वस्तु का वणान अनेक प्रकाय से ककमा जाए, वहाॉ उल्रेख अरॊकाय होता है।जैसे तू रूऩ है ककयण भें, सौन्दमा है सुभन भें,तू प्राण है ककयण भें, षवस्ताय है गगन भें।

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विरोधाभास अऱकंारजहाॉ षवयोध न होते हुए बी षवयोध का आबास हदमा जाए, वहाॉ षवयोधाबास अरॊकाय होता है।जसेै फैन सुन्म जफतें भधुय, तफतें सुनत न फैन।महाॉ 'फैन सुन्म' औय 'सुनत न फैन' भें षवयोध हदखाई ऩड़ता है जफकक दोनों भें वास्तषवक षवयोध नहीॊ है।दृष्टान्ि अऱकंारजहाॉ उऩभेम औय उऩभान तथा उनके साधायण धभों भें बफम्फ-प्रततबफम्फ बाव हो, दृष्टान्त अरॊकाय होता है।जसेै सुख-दखु के भधुय लभरन से मह जीवन हो ऩरयऩूयन।कपय घन भें ओझर हो शलश, कपय शलश भें ओझर हो घन।महाॉ सुख-दखु औय शलश तथा घन भें बफम्फ-प्रततबफम्फ बाव है।

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रूऩक अऱंकार·क्जस जगह उऩभेम ऩय उऩभान का आयोऩ ककमा जाए, उस अरॊकाय को रूऩक अरॊकाय कहा जाता है, मानी उऩभेम औय उऩभान भें कोई अन्तय न हदखाई ऩड़।े फीती षवबावयी जाग यी।अम्फय-ऩनघट भें डुफों यही, ताया-घट उषा नागयी।महाॉ ऩय अम्फय भें ऩनघट, ताया भें घट तथा उषा भें नागयी का अबेद कथन है।