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ववववववव General Knowledge Category: ववववववव, ववववव ववववववव 50 451 0 1 वव वव वववववव वववव ववववव वववव 600 . वव. ववव ववववव वव ववववववववव ववववव वव वववव वव वव ववववव वववव वववववव वव वव वव वववव ववववव वव ववववव वववव वव वव ववववव वववव-वववव ववववववव वव वववव वव ववववववव वववव वव ववव व वववव वव वव ववव ववववव वववव वववववव ववववववववव वववव ववव, 'ववववववव' (electricty) वववववव वववव वववव वववव ववव वव वववव वववववव ववव वववव वव वव ववव वववव ववववववव (current electricity) वववव ववववववव वव वववववव वव - ववववववव वववव (+ve charge) व ववववववव वववव (-ve charge) वववव ववववववव ववव ववववव वववववव (Conductors & non- conductors) ववव वववववववव वव वववव ववववववव वववव ववववव वव वववववववव वववव वव, वववववव वववव वववव ववव ववव वव वववववव ववववव वववव वववव वव वववववव वववव वववव वव,

vivekshakya.files.wordpress.com  · Web viewविद्युत. General Knowledge Category: विज्ञान, भौतिक शास्त्र. 50. 451. 0. 1. आज

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वि�द्युतGeneral Knowledge Category: वि�ज्ञान, भौवितक शास्त्र

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आज से हजारों �र्ष� पू�� करीब 600 ई. पू. में यूनान के �ैज्ञाविनक थेल्स ने पाया विक जब अम्बर नामक पदाथ� को ऊन के विकसी कपडे़ से रगड़ा जाता है तो उसमें छोटी-छोटी �स्तुओं को अपनी ओर आकर्षिर्ष1त करने का गुण आ जाता है। �ह गुण जिजसके कारण पदाथ� वि�दु्यतमय होते हैं, 'वि�दु्यत' (electricty) कहलाता है। जब आ�ेश विकसी तार या चालक पदाथ� में बहता है तो उसे धारा वि�दु्यत (current electricity) कहते हैं। आ�ेश दो प्रकार के - धनात्मक आ�ेश (+ve charge) � ऋणात्मक आ�ेश (-ve charge) होते हैं।

चालक तथा अचालक पदाथ (Conductors & non- conductors) जिजन पदाथ< से होकर वि�दु्यत आ�ेश सरलता से प्र�ाविहत होता है, उन्हें चालक कहते हैं तथा �े पदाथ� जिजनसे होकर आ�ेश का प्र�ाह नहीं होता है, अचालक कहलाते हैं। लगभग सभी धातुएं, अम्ल क्षार, ल�णों के जलीय वि�लयन, मान� शरीर आदिद वि�दु्यत चालक पदाथ< के उदाहरण हैं तथा लकड़ी, रबड़, कागज, अभ्रक, आदिद अचालक पदाथ< के उदाहरण हैं।

वि�दु्यत धारा (Electric current) आ�ेश के प्र�ाह को वि�दु्यत धारा कहते हैं। ठोस चालकों में आ�ेश का प्र�ाह इलेक्ट्रॉनों के एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण के कारण होता है। जबविक द्र�ों जैसे- अम्लों, क्षारों � ल�णों के जलीय वि�लयनों तथा गैसों में यह प्र�ाह आयनों की गवित के कारण होता है। यदिद विकसी परिरपथ में धारा एक ही दिदशा में बहती है तो उसे दिदष्ट ï धारा (Direct current) कहते हैं तथा यदिद धारा की दिदशा लगातार बदलती रहती है तो उसे 'प्रत्या�तO धारा' (alternating current) कहते हैं।

वि�भ�ान्तर (Potential Difference )

एकांक आ�ेश द्वारा चालक के एक सिसरे से दूसरे सिसरे तक प्र�ाविहत होने में विकए गए काय� को ही दोनों सिसरों के मध्य वि�भ�ांतर कहते हैं। v = w/q (जहाँ v= वि�भ�ांतर, w= काय� � q = प्र�ाविहत आ�ेश है। वि�भ�ांतर का मात्रक �ोल्ट है।

वि�दु्यत सेल (Electric Cell)

वि�दु्यत सेल में वि�भिभन्न रासायविनक विVयाओं से रासायविनक ऊजा� को �ैदु्यत ऊजा� में परिर�र्षित1त विकया जाता है। वि�दु्यत सेल में धातु की दो छड़ें होती हैं जिजन्हें इलेक्ट्रोड (श्वद्यद्गष्ह्लह्म्शस्रद्ग) कहते हैं। वि�दु्यत सेल मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं-

प्राथमि�क सेल- इसमें रासायविनक ऊजा� को सीधे वि�दु्यत ऊजा� में परिर�र्षित1त विकया जाता है। �ोल्टीय सेल, लेक्लांशे सेल, डेविनयल सेल, बुनसेन सेल आदिद इसके उदाहरण हैं।

वि�तीयक सेल- इसमें पहले वि�दु्यत ऊजा� को रासायविनक ऊजा�, वि_र रासायविनक ऊजा� को वि�दु्यत ऊजा� में परिर�र्षित1त विकया जाता है। इसका इस्तेमाल मोटरकारों, ट्रकों इत्यादिद को स्टाट� करने में विकया जाता है।

कूलॉ� का वि�य� (Coulumb's Law) कूलाम के अनुसार दो स्थिस्थर आ�ेशों के बीच लगने �ाला बल, उनकी मात्राओं के गुणन_ल के अनुVमानुपाती � उनके बीच की दूरी के �ग� के वु्यत्Vमानुपाती होता है।

F=k(Q1Q2/R2)

Q1, Q2 दो बिब1दु आ�ेश एक दूसरे से R दूरी पर स्थिस्थत है

वि�दु्यत के्षत्र की तीव्रता (Intensity of electric field) �ैदु्यत के्षत्र में परीक्षण आ�ेश पर लगने �ाले बल तथा स्�यं परीक्षण आ�ेश के अनुपात को विकसी बिब1दु पर के्षत्र की तीव्रता कहते हैं। यदिद परीक्षण आ�ेश का मान ह्नश � इस पर लगने �ाला बल स्न हो तो �ैदु्यत के्षत्र की तीव्रता-

E=F / Q0

खोखले चालक के भीतर �ैद्युत के्षत्र विकसी खोखले आ�ेसिशत चालक के भीतर �ैदु्यत के्षत्र शून्य होता है तथा इसको दिदया गया सम्पूण� आ�ेश, इसके बाहरी पृष्ठ ï पर ही संसिचत रहता है।

संधारिरत्र (capacitor)संधारिरत्र में समान आकार की दो प्लेटें होती हैं, जिजन पर बराबर � वि�परीत आ�ेश संसिचत रहता है। इसका प्रयोग आ�ेश के संचय में विकया जाता है।

�ैद्युत अपघट� (Electrolysis)कुछ ऐसे पदाथ� होते हैं विक जब उनमें �ैदु्यत धारा प्र�ाविहत की जाती है तो �े अपघदिटत हो जाते हैं। इन्हें �ैदु्यत अपघट्य (electrolyte) कहते हैं। उदाहरण- अम्लीय जल, नमक का जल इत्यादिद।

फैराडे के �ैद्युत अपघट� सम्बंधी वि�य�

प्रथ� वि�य�- �ैदु्यत अपघटन की विVया में विकसी इलेक्ट्रोड पर मुक्त हुए पदाथ� की मात्रा, सम्पूण� प्र�ाविहत आ�ेश के अनुVमानुपाती होती है। यदिद i एम्पिम्पयर की धारा t समय तक प्र�ाविहत करने पर मुक्त हुए पदाथ� का द्रव्यमान m हो तो,

m= Zit (जहाq Z एक विनयतांक है, जिजसे मुक्त हुए तत्� का �ैदु्यत रासायविनक तुल्यांक कहते हैं।

दूसरा वि�य�- यदिद वि�भिभन्न �ैदु्यत अपघट्यों में समान धारा, समान समय तक प्र�ाविहत की जाए तो मुक्त हुए तत्�ों के द्रव्यमान उनके रासायविनक तुल्यांकों के अनुVमानुपाती होते हैं। यदिद मुक्त हुए तत्�ों के द्रव्यमान m1 � m2 तथा उनके रासायविनक तुल्यांक W1 � W2 हों तो,

फैराडे संख्या (faradey number)

_ैराडे संख्या आ�ेश की �ह मात्रा है जो विकसी तत्� के एक विकग्रा. तुल्यांक को �ैदु्यत अपघटन द्वारा मुक्त करती है। इसका मान 9.65&107 कूलाम प्रवित विकग्रा. तुल्यांक होता है।

प्रवितरोधजब विकसी चालक में वि�दु्यत धारा प्र�ाविहत की जाती है तो चालक में गवितशील इलेक्ट्रॉन अपने माग� में आने �ाले परमाणुओं से विनरंतर टकराते हैं। इस व्य�धान को ही चालक का प्रवितरोध करते हैं। इसका मात्रक 'ओम' होता है।

ओ� का वि�य� (Ohm's law) यदिद विकसी चालक की भौवितक अ�स्था (ताप इत्यादिद) में कोई परिर�त�न न हो तो चालक के सिसरों पर लगाया गया वि�भ�ांतर उसमें प्र�ाविहत धारा के अनुVमानुपाती होता है। v =IR (जहाँ v = �ोल्ट, i = प्र�ाविहत धारा � R = चालक का प्रवितरोध)

प्रवितरोधों का संयोज� (Combination of resistance) सामान्यतया प्रवितरोध को परिरपथ में दो प्रकार से संयोजिजत विकया जा सकता है-श्रेणी क्र� (Series Combination) - इस Vम में जोडे़ गए प्रवितरोधों में सामान धारा प्र�ाविहत होती है तथा भिभन्न-भिभन्न प्रवितरोधों के बीच भिभन्न-भिभन्न वि�भ�ांतर होता है। बिब1दुओं A � B के बीच तुल्य प्रवितरोध (Resultant resistance) की गणना विनम्न सूत्र से की जाती है। R = r1 + R2 + R3 + - - स�ान्तर क्र� (Parallel resistence)- इस प्रकार के संयोजन में सभी प्रवितरोधों के बीच वि�भ�ांतर तो समान रहता है, लेविकन धारा की मात्रा भिभन्न-भिभन्न प्रवितरोधों में भिभन्न-भिभन्न रहती है। यदिद A � B के बीच तुल्य प्रवितरोध R है तो

प्रकाशGeneral Knowledge Category: वि�ज्ञान, भौवितक शास्त्र

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प्रकाश

प्रकाश, ऊजा� का ही एक रूप है जो हमारी दृष्टिष्टï के सं�ेदन का कारण है। प्रकाश द्वारा अपनाए गए सरल पथ को विकरण (ray) कहते हैं। अनेक विकरणों से विकरण पंुज (beam) बनता है जो अपसारी (diverging) � अभिभसारी (converging) हो सकते हैं।

परा�त� (Reflection) जब विकसी सतह पर प्रकाश पड़ता है तो उसका कुछ भाग सतह द्वारा परा�र्षित1त कर दिदया जाता है, बिक1तु कुछ सतह, जैसे- दप�ण, धातु की पासिलश की सतह, आदिद आपवितत प्रकाश को लगभग पूण�त: परा�र्षित1त कर देती हैं।

अप�त� (Refraction) जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में वितरछे होकर गमन करता है तो �ह अपने पथ से मुड़ा जाता है। इसे प्रकाश का अप�त�न कहते हैं। �ायुमंडलीय अप�त�नपृथ्�ी के चारों ओर �ायुमंडल में ऊँचाई के साथ-साथ �ायु का घनत्� कम होता है। प्रकाश को �ायु की परतों से

गुरजना पड़ता है और यह भी Vमश: मुड़ता हुआ �V पथ अपना लेता है। पृथ्�ी के �ायुमंडल में प्रकाश के इसी अप�त�न प्रभा� के कारण ही �ास्तवि�क सूया�स्त के बाद भी सूय� भिक्षवितज के ऊपर कुछ क्षणों तक दृष्टिष्टï गोचर होता है। तारों का दिटमदिटमाना भी कुछ इसी प्रकार �ायुमंडलीय अप�त�न के कारण होता है। पूण� आंतरिरक परा�त�नप्रकाश हमेशा ही एक माध्यम से प्रकाशीय रूप से सघन माध्यम में जा सकता है, लेविकन यह वि�रल माध्यम में हमेशा ही नहीं जा सकता है। जब प्रकाश विकरणें सघन माध्यम से वि�रल माध्यम के पृष्ठ ï पर आपावितत हो रही हों और आपतन कोण Vांवितक कोण से अष्टिधक हो तब प्रकाश का अप�त�न नहीं होता, बल्किल्क संपूण� प्रकाश परा�र्षित1त होकर उसी माध्यम में लौट जाता है। इस घटना को पूण� आंतरिरक परा�त�न (Total Internal Relection) कहते हैं। पूण� आंतरिरक परा�त�न का एक उपयोगी प्रयोग ऑजिप्टकल _ाइबर में विकया जाता है।

लेंस- कैमरों, प्रोजेक्टरों, दूरबीनों, सूक्ष्मदर्शिश1यों आदिद प्रकाशीय यंत्रों में लेंसों का उपयोग प्रवितविबम्ब प्राप्त करने के सिलए विकया जाता है। दृष्टिष्टï दोर्षों के विन�ारण हेतु भी लेंस लगे चश्मों का प्रयोग विकया जाता है।

दृवि8 का स्थामियत्� (Persistance of Vision)

रेदिटना पर पडऩे �ाले प्रकाश की सं�ेदना प्रकाश स्रोत या प्रवितरूप के हटने के कुछ क्षण बाद तक रहती है जिजसे दृष्टिष्टï का स्थाष्टियत्� कहते हैं। यदिद विकसी विVया के वि�भिभन्न पहलुओं के सिचत्रों को एक Vम में तैयार विकया जाए और उन्हें एक द्रुत Vम में देखा जाए तो आँखें सिचत्रों को जोडऩे की प्र�ृभि� रखती हैं और परिरणामत: चलते हुए प्रवितरूप का भ्रम होता है। इस तथ्य का उपयोग प्रोजेक्टर ए�ं टेलीवि�ज़न में विकया जाता है।

दीघदृवि8 (Long Sight या हाइपर�ैट्रि?या )- इससे ग्रस्त व्यसिक्त दूर की �स्तुओं को तो स्पष्ट ï रूप से देख पाता है बिक1तु विनकट की �स्तुओं को नहीं। यह नेत्र दोर्ष, नेत्र गोलक (Eye-Ball) के कुछ छोटा होने के कारण होता है तथा अभिभसारी लेंस का ऐनक लगाकर दूर विकया जा सकता है।

वि�कट दृवि8 (Short Sight या �ायोविपया )- इससे ग्रसिसत व्यसिक्त में प्रवितविबम्� दृष्टिष्टï पटल से पहले ही _ोकस हो जाता है। ऐसा नेत्र गोलक के कुछ लम्बा होने के कारण होता है। इससे ग्रसिसत व्यसिक्त दूर की �स्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता है। इस दोर्ष को अपसारी लेंस का चश्मा लगाकर ठीक विकया जा सकता है। लेंस की क्षमता को _ोकल दूरी के वु्यत्Vम से मीटर में व्यक्त करते हैं तथा इसका मात्रक डायोप्टर (D) है।

प्रकाश का �ण वि�के्षपण (Dispersion Of Light) जब सूय� का प्रकाश विकसी विप्रज़्म से गुजरता है तो यह अप�त�न के पश्चात् विप्रज्म के आधार की ओर झुकने के साथ-साथ वि�भिभन्न रंगों के प्रकाश में बंट जाता है। इस प्रकार से प्राप्त रंगों के समूह को �ण�-Vम (spectrum) कहते हैं तथा प्रकाश के इस प्रकार अ�य�ी रंगों में वि�भक्त होने की प्रविVया को �ण� वि�के्षपण कहते है। बैंगनी रंग का वि�के्षपण सबसे अष्टिधक ए�ं लाल रंग का वि�के्षपण सबसे कम होता है। परा�त�न, पूण�

आंतरिरक परा�त�न तथा अप�त�न द्वारा �ण� वि�के्षपण का सबसे अच्छा उदाहरण आकाश में �र्षा� के बाद दिदखाई देने �ाला इंद्र धनुर्ष है।

प्रकाश प्रकीण� (Scattering of Light) जब प्रकाश अणुओं, परमाणुओं � छोटे-छोटे कणों पर आपवितत होता है तो उसका वि�भिभन्न दिदशाओं में प्रकीण�न हो जाता है। जब सूय� का प्रकाश जो विक सात रंगों का बना होता है �ायुमंडल से गुजरता है तो �ह �ायुमंडल में उपस्थिस्थत कणों द्वारा वि�भिभन्न दशाओं में प्रसारिरत हो जाता है। इस प्रविVया को ही प्रकाश का प्रकीण�न कहते हैं। आकाश का रंग सूय� के प्रकाश के प्रकीण�न के कारण ही नीला दिदखाई देता है.

प्रकाश का वि��त� (Deffraction of Light) यदिद विकसी प्रकाश स्रोत � पद� के बीच कोई अपारदशO अ�रोध (Obstacle) रख दिदया जाए तो हमें पद� पर अ�रोध की स्पष्ट ï छाया दिदखाई पड़ती है। इससे प्रतीत होता है विक प्रकाश का संचरण सीधी रेखा में होता है। लेविकन यदिद अ�रोध का आकार बहुत छोटा हो तो प्रकाश अपने सरल रेखीय संचरण से हट जाता है � अ�रोध के विकनारों पर मुड़कर छाया में प्र�ेश कर जाता है। इस घटना को 'प्रकाश का वि��त�न' कहते हैं।

प्रकाश तरंगों का व्यवितकरण (Interference of Light) जब सामान आ�ृभि� � समान आयाम की दो प्रकाश तरंगें जो मूलत: एक ही प्रकाश स्रोत से एक ही दिदशा में संचारिरत होती हैं तो माध्यम के कुछ बिब1दुओं पर प्रकाश की तीव्रता अष्टिधकतम � कुछ बिब1दुओं पर तीव्रता न्यूनतम या शून्य पाई जाती है। इस घटना को ही प्रकाश तरंगों का व्यवितकरण कहते हैं। इसी कारण तेल की पत� � साबुन के बुलबुले रंगीन दिदखाई देते हैं।

प्रकाश तरंगों का धु्र�ीकरण (Polarisation Of light Wavs) जब दो कारें एक दूसरे की ओर आती हैं तो उनके प्रकाश के चकाचौंध से दुघ�टना हो सकती है। इसे रोकने के सिलए कारों में पोलेराइडों का उपयोग विकया जाता है। सिसनेमाघर में पोलेराइड के चश्में पहनकर तीन वि�माओं �ाले सिचत्रों को देखा जाता है।

तरंगGeneral Knowledge Category: वि�ज्ञान, भौवितक शास्त्र

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तरंग (Waves)

प्रकाश � ध्�विन दोनों ही तरंग रूप में गमन करते हैं। पदाथ� के अंतरण के विबना ही ऊजा� के अंतरण (गमन) को तरंग गवित कहते हैं। तरंग के इस रूप को जिजसमें कणों की गवित तरंग गवित के लम्ब�त् हो अनुप्रस्थ तरंग (Transverse wave) कहलाते हैं,। प्रकाश की तरंग अनुप्रस्थ तरंग होती है। जब विकसी माध्यम में यांवित्रक तरंगें इस प्रकार चलती हैं विक माध्यम के कण तरंग के संचरण की दिदशा में समांतर कंपन करते हैं तो ऐसी तरंगों को अनुदैध्र्य (longitudinal) तरंगें कहते हैं।

तरंग के उच्चतम � विनम्नतम भागों को Vमश: शीर्ष� (crest) � गत� (trough) कहते हैं। 'A' दूरी तरंग का आयाम (amplitude) होता है। तरंग दैध्र्य (λ) तरंगों की अनुप्रस्थ तरंग के मामले में विनकट�तO दो शीर्ष< (अथ�ा गत<) के मध्य की दूरी अथ�ा अनुदैध्र्य तरंग के मामले में विनकट�तO दो संपीडनों में (अथ�ा वि�रलनों) के मध्य की दूरी को व्यक्त करती है। तरंग की आ�ृभि� V (frequency) उन तरंगों की संख्या है जो विकसी बिब1दु से प्रवित सेकेण्ड गुजरती हैं। आ�ृभि� का मात्रक कंपन/सेकेण्ड अथ�ा हटज (Hz) है। सभी प्रकार की तरंगों की गवित के सिलए समीकरण - V = vλ (तरंग की आ�ृभि� 1 तथा तरंग दैध्र्य द्य है)

वि�दु्यत - चुम्बकीय वि�विकरण वि�दु्यत-चुम्बकीय तरंगों के संचरण के सिलए विकसी माध्यम की आ�श्यकता नहीं होती तथा ये तरंगें विन�ा�त (space) में भी संचरिरत हो सकती हैं। ये तरंगें चुम्बकीय ए�ं वि�दु्यत के्षत्रों के दोलन से उत्पन्न होने �ाली अनुप्रस्थ तरंगें हैं। प्रकाश तरंगें, ऊष्मीय वि�विकरण, एक्स विकरणें, रेविडयो तरंगें आदिद वि�दु्यत-चुम्बकीय तरंगों के उदाहरण हैं। इन तरंगों का तरंग दैध्र्य परास (wave length) का_ी वि�स्तृत होता है। इनका परास 10-14 मी. से लेकर 104 मी. तक होता है।

वि�दु्यत - चुम्बकीय से्पक्?� सूय� के प्रकाश में से्पक्ट्रम में लाल रंग से लेकर बैंगनी रंग तक दिदखाई पड़ते हैं। सूय� के प्रकाश � से्पक्ट्रम का वि�स्तार लाल रंग के ऊपर तथा बैंगनी रंग के नीचे भी होता है जिजसे अदृश्य से्पक्ट्रम (invisble spectrum) कहते हैं। लाल रंग के ऊपर बड़ी तरंग दैध्र्य �ाले भाग को अ�रक्त से्पक्ट्रम (infrared spectrum) तथा बैंगनी रंग से नीचे छोटी तरंग दैध्र्य �ाले भाग को पराबैंगनी से्पक्ट्रम (Ultra violet spectrum) कहते हैं।

ध्�वि� तरंगे ध्�विन एक स्थान से दूसरे स्थान तक तरंगों के रूप में गमन करती है। ध्�विन तरंगें अनुदैध्र्य यांवित्रक तरंगें होती हैं। ध्�विन तरंगें ध्रुवि�त (Polarised) नहीं हो सकती हैं। ध्�विन तरंगों के गमन के सिलए माध्यम की आ�श्यकता होती है। इन तरंगों में व्यवितकरण (interference) होता है।

ध्�वि� तरंगों का आ�ृत्तिI परास

शृव्य तरंगें (audible waves) - ये यांवित्रक तरंगें हैं जिजनकी आ�ृभि� का परास 20 हत्जर् से लेकर 20,000 हत्जर तक होता है। इन तरंगों को हम सुन सकते हैं।

अ�शृव्य तरंगें (Infrasonic waves)- ये यांवित्रक तरंगें है जिजनकी आ�ृभि� 20 हत्जर् से कम होती है। ये तरंगें हमें सुनाई नहीं देती है।

पराशृव्य तरंगें (Ultrasonic waves)- �े अनुदैध्र्य यांवित्रक तरंगें हैं, जिजनकी आ�ृभि� 20,000 हत्जर् से अष्टिधक होती है। मनुष्य के कान इन्हें नहीं सुन सकते हैं।

ध्�वि�यों के लक्षण ध्�विनयों के मुख्यत: तीन लक्षण होते हैं-

तीव्रता (Intensity)- तीव्रता ध्�विन का �ह लक्षण है, जिजसके कारण हमें कोई ध्�विन धीमी अथ�ा तेज सुनाई देता है।

तारत्� (pitch) - तारत्� ध्�विन का �ह लक्षण है, जिजसके कारण हम ध्�विन को मोटी या पतली कहते हैं। गुण�Iा (Quality)- गुण��ा ध्�विन का �ह लक्षण है, जो समान तीव्रता � समान आ�ृभि�यों की ध्�विनयों

में अंतर स्पष्ट ï करता है।

0oC पर वि�भिभन्न �ाध्य�ों से ध्�वि� की चाल

माध्यम ध्�विन की चाल

शुष्क �ायु 332 मी./से.

जल 1,450 मी./से.

लोहा 5,100 मी./से.

अल्युष्टिमविनयम 6,400 मी./से.

हाइड्रोजन 1,269 मी./से.

काब�न-डाई-ऑक्साइड 260 मी./से.

समुद्री जल 1,533 मी./से.

पारा 1,450 मी./से.

काँच 5,640 मी./से.

भौवितक रासिशयाँ, मानक ए�ं मात्रकGeneral Knowledge Category: वि�ज्ञान, भौवितक शास्त्र

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भौवितक राभिशयाँ , �ा�क ए�ं �ात्रक

भौवितक संबंधी विनयमों को- समय, बल, ताप, घनत्� जैसी तथा अन्य अनेक भौवितक रासिशयों के संबंध सूत्रों के रूप में व्यक्त विकया जा सकता है। सभी भौवितक रासिशयों को सामान्यत: मूल (लंबाई, द्रव्यमान � समय) ए�ं वु्यत्पन्न (गवित, के्षत्र_ल, घनत्� इत्यादिद) रासिशयों में बाँटा जा सकता है। भौवितक रासिशयों को को दो �ग< में बाँटा जा सकता है:

(1) अदिदश (Scalar) (इनमें के�ल परिरमाण होता है) रासिशयाँ

(2) सदिदश (vector) (इनमें परिरमाण � दिदशा दोनों होते हैं) रासिशयाँ।

लंबाई का �ात्रक

भार � माप का सामान्य सम्मेलन (General Conferences of Weight & Measures) ने 1893 में मीटर को पुन: परिरभाविर्षत विकया, जिजसके अनुसार यह प्रकाश द्वारा 1/299792458 सेकें ड में तय की गई दूरी है।

1. विकमी = 1000 मी., 1 सेमी. = 10-2 मी.,

1 ष्टिममी. = 10-3 मी. 1 प्रकाश �र्ष� = 9.46&1015 मी.

द्रव्य�ा� का �ात्रक

मानक विकग्रा. प्लेदिटनम-इरीविडयम ष्टिमश्रधातु के वि�शेर्ष ठोस बेलन का द्रव्यमान है, यह बेलन से�ेस�, फ्रांस में रखा है। 1 टन = 103 विकग्रा. 1 ग्रा. = 10-3 विकग्रा.,

1 ष्टिममी. = 10-6 विकग्रा.

स�य का �ात्रक

समय का मात्रक सेकें ड है। सेकें ड को 1967 में गैसीय सीजिजयम परमाणुओं में ऊजा� परिर�त�न पर आधारिरत परमाणु-घड़ी के अनुसार पुन: परिरभाविर्षत विकया गया।

बल वि�ज्ञा� (Mechanics) बिप1डों की गवित का अध्ययन ही बल-वि�ज्ञान है। गवितयह यांवित्रक गवित दो प्रकार की होती है- स्थानांतरण (Linear) ए�ं घूण�न (Rotational) ।

चालविकसी गवितशील �स्तु की चाल, �स्तु द्वारा दूरी तय करने की दर होती है-

�ेगविकसी �स्तु द्वारा इकाई समय में विनर्दिद1ष्ट ï दिदशा में तय की गई दूरी को �ेग कहते हैं।

गुरुत्�ीय त्�रणगुरुत्� के कारण होने �ाला त्�रण सबसे सामान्य है। पृथ्�ी की सतह पर गुरुत्�ीय त्�रण का मान लगभग 9.8 मी./से.2 होता है।

बलबल विकसी �स्तु की वि�रामा�स्था या एक समान गवित से सीधी रेखा में चलने की अ�स्था में परिर�त�न करता है।

गुरुत्�ाकर्षण बल- जो बल हमें पृथ्�ी की ओर खींचे रखता है, इस बल को गुरुत्�ाकर्ष�ण बल कहते है। विकन्हीं दो �स्तुओं के मध्य परस्पर गुरुत्�ाकर्ष�ण काय�रत होता है।

न्यूट� का सा�वित्रक गुरुत्�ाकर्षण का वि�य�- इसके अनुसार, ब्रह्म ïाांड का प्रत्येक कण अन्य कणों में प्रत्येक को अपनी ओर एक बल से आकर्षिर्ष1त करता है, इस गुरुत्�ाकर्ष�ण बल का समीकरण सूत्र,

F= G[(m1m2)/r2]

जहाँ कणों के मध्य दूरी ह्म् तथा कणों के द्रव्यमान द्व१ � द्व२ हैं, त्र सा��वित्रक गुरुत्�ाकर्ष�ण स्थिस्थरांक है जिजसका मान ६.६६&१०-११ है।

अभिभकेन्द्र बल- विकसी �स्तु को �ृ�ीय गवित में बनाए रखने के सिलए उस पर एक बल �ृ� के कें द्र की ओर काय� करता है। यह अभिभकें द्र बल कहलाता है। और इसी बल की �जह से �स्तु की गवित की दिदशा में विनरंतर परिर�त�न होने से �ह �ृ�ीय गवित में आती है।

अपकें द्री बल- �ृ�ीय गवित में घूमती �स्तु पर कस्थिल्पत बल काय� करने लगता है, जो अपकेन्द्री बल कहलाता है।

भारविकसी �स्तु का भार �ह बल है जो पृथ्�ी के गुरुत्�ाकर्ष�ण के कारण उस पर लगता है तथा पृथ्�ी के कें द्र की ओर काय�रत होता है।। जबविक द्रव्यमान �स्तु में विनविहत पदाथ� की मात्रा का माप है। जब हम कहते हैं विक एक व्यसिक्त का �जन 60 विकग्रा. है तो �ास्त� में हम उसका द्रव्यमान बताते हैं न विक भार।

घर्षणघर्ष�ण �ह बल है जो परस्पर स्पश� करती दो सतहों के मध्य सापेक्ष गवित के वि�परीत काय� करता है।

न्यूट� के गवित सम्बंधी वि�य� न्यूटन के गवित संबंधी तीन विनयमों में गवित के मूलभूत सिसद्धांत विनविहत हैं।

प्रथम विनयम- प्रत्येक �स्तु अपनी वि�रामा�स्था या समरूप गवित में जब तक बनी रहती है जब तक उस पर कोई काय� न करे।

चलती बस से नीचे उतरने पर आप को रुकने के पू�� बस की दिदशा में कुछ दूर तक दौडऩा पड़ता है। यदिद आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप आगे की ओर विगर सकते हैं, क्योंविक सड़क के स्पश� में आते ही आपके पैर स्थिस्थर होना चाहते हैं और शरीर का ऊपरी भाग गवित में बना रहना चाहता है।

विद्वतीय विनयम- इस विनयम के अनुसार, ''विकसी �स्तु के सं�ेग की परिर�त�न की दर लगाए गए बल के समानुपाती होती है और बल की दिदशा में काय� करती है।"

F=ma

तृतीय विनयम- इस विनयम के अनुसार, ''प्रत्येक बल के सिलए बराबर और वि�परीत प्रवितविVया होती है।"

यदिद कोई व्यसिक्त दी�ार पर घूंसा मारे तो दी�ार पर लगा बल मु पर लगे बल के बराबर और वि�परीत होता है।

काय , शत्तिT ए�ं ऊजा

काय- साधारण बोलचाल में काय� का अथ� है विक शारीरिरक अथ�ा मानसिसक विVया। जब बल लगने पर �स्तु में गवित (वि�स्थापन) हो तो बल द्वारा काय� विकया जाता है और बल � बल की दिदशा में वि�स्थापन का गुणन_ल काय� को व्यक्त करता है। काय� = बल & बल की दिदशा में चली गई दूरी। W = F x d (काय� का मात्रक जूल है)

शत्तिT- काय� करने की दर को शसिक्त कहते हैं,

P =w/t (शत्तिT का �ात्रक �ाट (w) है

ऊजा- काय� करने की कुल क्षमता को ऊजा� कहते हैं। ऊजा� का मात्रक जूल ही है। यांवित्रक ऊजा� दो प्रकार की होती है- गवितज (ा्यद्बठ्ठद्गह्लद्बर््ष) और स्थिस्थवितज (क्कशह्लद्गठ्ठह्लद्बड्डद्य) ऊजा�।

गवितज ऊजा- �स्तु की गवित से उत्पन्न ऊजा�, गवितज ऊजा� कहलाती है तथा इसका समीकरण है -

गवितज ऊजा� (KE) = 1/2 mv2

जहाँ �स्तु का द्रव्यमान द्व तथा उसका �ेग 1 है। गवितमान बंदूक की गोली अथ�ा गवितमान पत्थर के टुकडे़ में गवितज ऊजा� होती है।

स्थिस्थवितज ऊजा- विकसी �स्तु की अपनी स्थिस्थवित (बल के्षत्र में) के कारण जो ऊजा� होती है �ह स्थिस्थवितज ऊजा� कहलाती है। इसका समीकरण सूत्र है-

PE = mgh (जहाँ m �स्तु का द्रव्यमान, g गुरुत्�ीय त्�रण तथा h पृथ्�ी की सतह से �स्तु की ऊँचाई है )। स्थिस्थवितज ऊजा� के अनेक उदाहरण हैं- पृथ्�ी की सतह से कुछ ऊँचाई पर पकड़कर रखा गया पत्थर।

दाब

प्रवित इकाई के्षत्र_ल पर लगे बल को दाब कहते हैं।

दाब का मात्रक न्यूटन प्रवित �ग� मी. अथ�ा पास्कल है।

�ायु�ंडलीय दाब- पृथ्�ी के चारों ओर का_ी ऊँचाई तक �ायु है जिजसे �ायुमंडल कहते हैं। �ायु का भार होता है अत: यह पृथ्�ी की सतह पर ही नहीं, बल्किल्क पृथ्�ी पर स्थिस्थत सभी �स्तुओं पर दाब डालती है। �ास्त� में, मान� ए�ं समुद्र की �ायुमंडलीय दाब को �ायुदाबमापी (barometer) द्वारा मापा जाता है।

ऊजा संरक्षण (Energy Conversation) ऊजा� को न तो समाप्त तथा न ही उत्पन्न विकया जा सकता है, बल्किल्क इसे एक से दूसरे रूप में रूपांतरिरत विकया जा सकता है और इस प्रकार कुल ऊजा� एक समान संरभिक्षत बनी रहती है। गुरुत्� कें द्र- विकसी �स्तु का गुरुत्� कें द्र �ह बिब1दु होता है जिजस पर �स्तु का संपूण� भार काय� करता है अथ�ा कें दिद्रत होता है। गुरुत्� कें द्र �स्तु के �ास्तवि�क पदाथ� के बाहर भी स्थिस्थत हो सकता है। विकसी �स्तु की स्थिस्थरता उसके गुरुत्� कें द्र की स्थिस्थवित पर विनभ�र करती है। ना� में बैठे यावित्रयों को नदी में तैरती ना� में खडे़ नहीं होने दिदया जाता है, क्योंविक ना� का गुरुत्� कें द्र यावित्रयों सविहत ना� के आधार पर विनकट बना रहता है और ना� स्थिस्थर रहती है।

�शी� - मशीन �ह युसिक्त (साधन) है जिजसकी सहायता से विकसी सुवि�धाजनक बिब1दु पर कम बल लगाकर अन्य बिब1दु पर लगे भारी बल (भार) को हटाया (संतुसिलत) जा सकता है। काय� विन�ेश (work input) = काय� बविह��श (work output)

�शी� की दक्षता- मशीन द्वारा विकए गए लाभदायक काय� और विनवि�ष्ट ï काय� (input work) के अनुपात को मशीन की दक्षता कहते हैं। विकसी भी मशीन की क्षमता हरदम 100 से कम ही होती है।

घ�त्�- विकसी पदाथ� के इकाई आयतन के द्रव्यमान को घनत्� कहते हैं।

जल का घनत्� 1000 विकग्रा./मी.3 है।

आपेभिक्षत घ�त्�विकसी पदाथ� का आपेभिक्षक घनत्� (RD) पदाथ� के घनत्� � जल के घनत्� के अनुपात द्वारा व्यक्त विकया जाता है। इसका कोई मात्रक नहीं होता।

उत्प्ला�� (Upthrust)

यदिद लकड़ी के एक गुटके को जल की सतह से नीचे पकड़कर छोड़ दिदया जाता है तो हम देखते हैं विक �ह तुरंत ही ऊपर सतह पर आ जाता है। इसका कारण यह है विक गुटके पर ऊपर की ओर जल के कारण एक बल काय� करता है जिजसे उत्प्ला�न बल कहते हैं। द्र� की तरह गैसें भी �स्तु पर उत्प्ला�न लगाती हैं।

आर्किकZमि�डीज़ का त्तिसद्धांत-इस सिसद्धांत के अनुसार, जब कोई �स्तु आंसिशक रूप से विकसी द्र� में डूबी हो तो उस पर एक उत्प्ला�न काय� करता है जो �स्तु द्वारा हटाए गए द्र� के भार के बराबर होता है।

ऊष्�ाआंतरिरक ऊजा- पदाथ� के अणु विनरंतर गवित में होते हैं और इन अणुओं की कुल गवितज � स्थिस्थवितज ऊजा� को पदाथ� की 'आन्तरिरक ऊजा�' कहते हैं। आंतरिरक ऊजा� जिजतनी अष्टिधक होगी पदाथ� उतना ही अष्टिधक गम� होगा।

ताप � ऊष्�ा- विकसी �स्तु का ताप �ह मात्रा है जिजससे हमें यह ज्ञात होता है विक एक मानक �स्तु की अपेक्षा �ह �स्तु विकतनी गम� अथ�ा ठंडी है। ताप को तापमापी (Thermometer) से मापा जाता है। तापमापी के वि�ïिा�ध प्रकार हैं, बिक1तु सामान्य प्रचलन में काँच की नली में भरे पारे के बने तापमापी में पारे के प्रसार � संकुचन से ताप का मापन विकया जाता है।

तापमापी के पैमाने का विनधा�रण उसका शून्यांक शुद्ध ब_� के गलनांक को शून्य मानकर तथा पारे के 760 ष्टिममी के मानक �ायुमंडलीय दाब पर उबलते जल से विनकलती भाप के ताप को 100 का अंशाकार मानकर, करते हैं। शून्य � 100 बराबर अंशों में वि�भक्त कर प्रत्येक अंश को एक अंश (विडग्री) मान लेते हैं। इस प्रकार प्राप्त पैमाना सैस्थिल्सयस पैमाना कहलाता है तथा इस पर ताप को अंश (oC) से व्यक्त करते हैं।

_ारेनहाइट पैमाने में 0oC को 32o तथा 100oC में 212o अंशांविकत विकया जाता है। _ारेनहाइट से सेस्थिल्सयस में ताप गणना के सिलए संबंध सूत्र विनम्न हैं-

tc = 5/9(tF - 32)

tc � tF Vमश: सेस्थिल्सयस � _ारेनहाइट पैमाने पर संगत ताप हैं।

ऊष्�ीय प्रसार- ठोसों, द्र�ों � गैसों को गम� करने पर सामान्यतया उनमें प्रसार और ठंडा करने पर संकुचन होता है।

प्रसारणीयता (Expansivity) - विकसी 1 मी. लम्बी लोहे की छड़ को 1oC गम� करें तो उसकी लंबाई में 0.000012 मी. की �ृजिद्ध होगी। इससिलए हम कह सकते हैं विक लोहे की रेखीय-प्रसरणीयता 0.000012/oC है।

जल का अंसगत प्रसार (anomalous)

जल में असंगत रूप से प्रसार होता है। जल के असंगत प्रसार की �जह से ही जल में रहने �ाले जी�-जंतु बहुत ठंडे मौसम में जीवि�त रह जाते हैं। ऊष्मा-संचरणऊष्मा का संचरण विनम्नसिलखिखत तीन प्रकार से होता है-

चाल�- लोहे की एक छड़ को एक सिसरे से पकड़ कर दूसरे को गम� करें तो हम पाते हैं विक कुछ समय बाद हाथ से पकड़ा सिसरा भी इतना ही गम� हो जाता है। ऊष्मा छड़ के एक सिसरे से प्र�ेश कर धीरे-धीरे दूसरे तक संचरिरत हो पूरी छड़ को गम� कर देती है। ऊष्मा संचरण की यह प्रविVया चालन कहलाती है। यह मुख्यत: ठोसों में संभ� है।

सं�ह�- द्र�ों � गैसों में ऊष्मा सं�हन (convection) द्वारा संचरिरत होती है। इस प्रविVया में ऊष्मा एक स्थान से दूसरे तक, द्र� � गैसों के अपने गमन द्वारा संचरिरत होती है। इससिलए गम� द्र� कम घनत्� का हो जाने के कारण ऊपर उठता है तथा उसके स्थान पर ऊपर का ठंडा द्र� नीचे की ओर आ जाता है। इस प्रकार 'सं�हन धाराएंÓ बन जाती हैं और समस्त द्र� एक सामान ताप पर गम� हो जाता है।

वि�विकरण- चालन � सं�हन द्वारा ऊष्मा संचरण हेतु पदाथ� रूपी माध्यम की आ�श्यकता होती है। वि�विकरण में ऊष्मा संचरण के सिलए विकसी माध्यम की आ�श्यकता नहीं होती। सूय� से वि�विकरण ऊष्मा वि�दु्यत-चंुबकीय तरंगों के रूप से विन�ा�त (vaccum) से होकर सीधे पृथ्�ी पर पहुँचता है।

न्यूट� का शीतल� वि�य�

इस विनयम के अनुसार, विकसी �स्तु द्वारा ऊष्मा हाविन की दर �स्तु � उसके चारों ओर के ताप के अंतर के समानुपाती होती है। उदाहरणस्�रूप, गम� जल 40oC से 30oC तक ठंडा होने की अपेक्षा 90oC से 80oC तक ठंडा होने में बहुत कम समय लेता है।

ऊष्�ा धारिरता ए�ं वि�भिश8 ï ऊष्�ाधारिरता विकसी �स्तु की ऊष्माधारिरता (heat capacity) ऊष्मा की �ह मात्रा है जो �स्तु के ताप में 1oK की �ृजिद्ध कर सके। �स्तु की वि�सिशष्ट ï ऊष्माधारिरता ऊष्मा की �ह मात्रा है जो उसके 1 विकलोग्राम द्रव्यमान के ताप में 1oK की �ृजिद्ध कर सके। अ�स्था �ें परिर�त�- -5oC ताप के ब_� के एक टुकडे़ को गम� करने पर उसका तापमान धीरे-धीरे 0oC तक बढ़ता है तत्पश्चात् 0oC पर स्थिस्थर हो जाता है, बिक1तु अब यह पानी में विपघलने लगता है। जब तक यह पूण�त: पानी में नहीं परिर�र्षित1त होता ऊष्मा तो लेता है बिक1तु इसके ताप (0oC) में कोई परिर�त�न नहीं होता। इस प्रविVया में यह पाया जाता है विक 1 विकग्रा. ब_� से ०शष्ट के स्थिस्थर ताप पर पूण�त: जल में परिर�त�न करने हेतु 336000J ऊष्मा की आ�श्यकता होती है। इसे ब_� के गलनांक की वि�सिशष्ट ï गुप्त ऊष्मा कहते हैं। �ह ऊष्मा जो विकसी पदाथ� के इकाई द्रव्यमान को विबना ताप परिर�त�न के (क्�थनांक पर) द्र� से �ाष्प अ�स्था में परिर�र्षित1त कर दे, पदाथ� के �ाष्पन की वि�सिशष्ट ï गुप्त ऊष्मा कहलाती है।

आपेभिक्षक आद्रर्ता �ायु के एक ज्ञात आयतन में �त�मान जल �ाष्प की मात्रा तथा उसी ताप पर उतनी ही �ायु को संतृप्त करने के सिलए आ�श्यक जल-�ाष्प की मात्रा के अनुपात को �ायु की आपेभिक्षक आद्रर्ता (relative humidity) कहते हैं।