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Volume-11,Issue-3,December-2017 Page 457 of 9 Research Guru: Online Journal of Multidisciplinary Subjects (Peer Reviewed) वेद संहहताऑ : एक वऱेषणामक अययन Mr.Bhaveshkumar Patil Pacific Acadamy higher education Dr. Varshaben H. Patel Shamlaji Arts College College Affiliation सार इस शोधऩका भ म हेत बगवान् शशव का शब वऱऩ, पऩनाकी वऱऩ,गयीश वऱऩ, थाण वऱऩ, बव वऱऩ, बगवऱऩ, सदाशशव वऱऩ,शव वऱऩ हय वऱऩ, कऩारी वऱऩ औय शवग वऱऩ को पवरेततत ऱऩ भ चचाग कयना औय भानव जीवन भ उन सफ वऱऩ की उऩमोगगता शसध कयना है बाषा गततशीर तव है पववयणाभक पवरेषण कयने हेत हभ इस सॊशोधन भ बाषा को थय यखगे औय पववयणाभक पवरेषण कामगऩधतत का उऩमोग कयगे। इस सॊशोधन भ ऩभ राटमामी के ऩॊचभ अमाम के क रोक को पवरेषण के शरए भ रब त भाने गए है।इस अममन ऩय तबफॊबफत होता है की सबी शशव वऱऩ भानवजीवन के शरए फह म है रेककन उनका मथाथग धा के साथ ाथगना कयना आवमक है। इस शोधऩ के दामये को पवतारयत कयके ऩ न: सॊशोधन कय सकते है जी शद: शब वऱऩ, पऩनाकी वऱऩ,गयीश वऱऩ, थाण वऱऩ, बव वऱऩ, भानवजीवन ऩररचय वैददक धभग के देवतगण अनेक ह , उनभ एक रदेवता बी ह। ऋवेद भ र की त 'फशरट भ फशरट' कहकय की गमी है। मज वेद का ीरभ ् भॊ, र देवता को सभपऩगत है। मह भॊ शैव सदाम भ फह भहवऩ णग है। अनेक ण भ शव औय र भ सभानता है। वेद भ र नाभ ऩयभाभा, जीवाभा, तथा श यवीय के शरए म त ह आ है। मज वेद क े रामाम भ र के अनॊत ऱऩ वणगन कए ह। इस वणगन से ऩता चरता

वेद संहहताऑ एक ववश्ऱेषणात्मक अध्ययन 11/Issue 3/RG11-BP-62.pdf · अध्माम भेंगण /श जी क

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  • Volume-11,Issue-3,December-2017

    Page 457 of 9 Research Guru: Online Journal of Multidisciplinary Subjects (Peer Reviewed)

    वेद संहहताऑ में रूद्र : एक ववश्ऱेषणात्मक अध्ययन Mr.Bhaveshkumar Patil

    Pacific Acadamy higher education

    Dr. Varshaben H. Patel

    Shamlaji Arts College

    College Affiliation

    सार इस शोधऩत्रका भुख्म हेतु बगवान ्शशव का शम्बू स्वरूऩ, पऩनाकी स्वरूऩ,गगयीश स्वरूऩ, स्थाणु स्वरूऩ, बव स्वरूऩ, बगग स्वरूऩ, सदाशशव स्वरूऩ,शशव स्वरूऩ हय स्वरूऩ, कऩारी स्वरूऩ औय शवग स्वरूऩ को पवश्रेततत रूऩ भें चचाग कयना औय भानव जीवन भें उन सफ स्वरूऩों की उऩमोगगता शसद्ध कयना है । बाषा गततशीर तत्व है पववयणात्भक पवश्रेषण कयने हेतु हभ इस सॊशोधन भें बाषा को स्स्थय यखेंगे औय पववयणात्भक पवश्रेषण कामगऩद्धतत का उऩमोग कयेंगे। इस सॊशोधन भें ऩत्रभें रुद्राष्टध्मामी के ऩॊचभ अध्माम के कुछ श्रोकों को पवश्रेषण के शरए भुरबुत भाने गए है।इस अध्ममन ऩय प्रततबफॊबफत होता है की सबी शशव स्वरूऩ भानवजीवन के शरए फहुभूल्म है रेककन उनका मथाथग श्रद्धा के साथ प्राथगना कयना आवश्मक है। इस शोधऩत्र के दामये को पवस्तारयत कयके ऩुन: सॊशोधन कय सकते है

    क ं जी शब्दों: शम्बू स्वरूऩ, पऩनाकी स्वरूऩ,गगयीश स्वरूऩ, स्थाणु स्वरूऩ, बव स्वरूऩ, भानवजीवन

    ऩररचय

    वैददक धभग के देवतगण अनेक हैं, उनभें एक रुद्रदेवता बी हैं। ऋग्वेद भें रुद्र की स्तुतत 'फशरष्टों भें फशरष्ट'

    कहकय की गमी है। मजुवेद का श्रीरुद्रभ ्भॊत्र, रुद्र देवता को सभपऩगत है। मह भॊत्र शैव सम्प्रदाम भें फहुत

    भहत्वऩूणग है। अनेक गुणों भें शशव औय रुद्र भें सभानता है। वेदों भें रुद्र नाभ ऩयभात्भा, जीवात्भा, तथा शूयवीय के शरए प्रमुक्त हुआ है। मजुवेद के रुद्राध्माम भें रुद्र के अनॊत रूऩ वणगन ककए हैं। इस वणगन से ऩता चरता

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    है कक मह सॊऩूणग पवश्व इन रुद्रों से बया हुआ है। वेदों भें रुद्र नाभ ऩयभात्भा, जीवात्भा, तथा शूयवीय के शरए प्रमुक्त हुआ है। मजुवेद के रुद्राध्माम भें रुद्र के अनॊत रूऩ वणगन ककए हैं। इस वणगन से ऩता चरता है कक मह सॊऩूणग पवश्व इन रुद्रों से बया हुआ है। रु' का अथग 'शब्द कयना' है - जो शब्द कयता है, अथवा शब्द कयता हुआ पऩघरता है, वह रुद्र है।' ऐस काठकों का भत है। शब्द कयना, मह रुद्र का रऺण है।'रुद्र' ऩद के मे अथग स्ऩष्ट रूऩ से फता यहे हैं कक मह रुद्र सवगव्माऩक ऩयभात्भा ही है। मही बाव इस वेदभॊत्र भें है-

    'अॊतरयच्छस्तत तॊ जने रुद्रॊ ऩयो भनीषमा। (ऋ.८.७२.३)

    इस शोध तनफतध भें हभने रूद्र के अरग अरग स्वरूऩ को सभझने के शरए मथाथग प्रमत्न ककमा है इस ेशुक्रमजुवेदीम रुद्राष्टाध्मामी बी कहते हैं। शशव औय अष्टाध्मामी अथागत ्आठ अध्मामों वारा, इन आठ अध्मामों भें शशव सभाए हैं। वैसे तो रुद्राष्टाध्मामी भें कुर दस अध्माम हैं ऩयॊतु आठ तक को ही भखु्म भाना जाता है। इसी रुद्र (शशव) के उऩासना के तनशभत्त रुद्राष्टाध्मामी ग्रॊथ वेद का ही सायबूत सॊग्रह है। स्जस प्रकाय दधू से भक्खन तनकारते हैं उसी प्रकाय जनकल्माणाथग शुक्रमजुवेद से रुद्राष्टाध्मामी का बी सॊग्रह हुआ है। इस ग्रॊथ भें गहृस्थधभग, याजधभग, ऻान-वैयाऻ, शाॊतत, ईश्वयस्तुतत आदद अनेक सवोत्तभ पवषमों का वणगन है।भनुष्म का भन पवषमरोरुऩ होकय अधोगतत को प्राप्त न हो औय व्मस्क्त अऩनी गचत्तवपृत्तमों को स्वच्छ यख सके इसके तनशभत्त रुद्र का अनुष्ठान कयना भुख्म औय उत्कृष्ट साधन है। मह रुद्रानुष्ठान प्रवपृत्त भागग स ेतनवपृत्त भागग को प्राप्त कयने भें सभथग है। इसभें ब्रह्भ (शशव) के तनगुगण औय सगुण दोनो रूऩों का वणगन

    हुआ है। जहाॉ रोक भें इसके जऩ, ऩाठ तथा अशबषेक आदद साधनों से बगवद्बस्क्त, शाॊतत, ऩुत्र ऩौत्रादद

    वदृ्गध, धन धातम की सम्ऩतनता औय स्वस्थ जीवन की प्रास्प्त होती है; वहीॊ ऩयरोक भें सद्गतत एवॊ भोऺ

    बी प्राप्त होता है। । वदे के ब्राह्भण ग्रॊथों भें, उऩतनषद, स्भतृत तथा कई ऩुयाणों भें रुद्राष्टाध्मामी तथा

    रुद्राशबषेक की भदहभा का वणगन है।रुद्राष्टाध्मामी अत्मॊत ही भूल्मवान है, न ही इससे बफना रुद्राशबषेक ही सॊबव है औय न ही इसके बफना शशव ऩूजन ही ककमा जा सकता है। मह शुक्रमजुवेद का भुख्म बाग है। इसभें भुख्मत: आठ अध्माम हैं ऩय अॊततभ भें शातत्मध्माम: नाभक नवभ तथा स्वस्स्तप्राथगनाभतत्राध्माम:

    नाभक दशभ अध्माम बी हैं। इसके प्रथभ अध्माम भें कुर 10 श्रोक है तथा सवगप्रथभ गणेशावाहन भॊत्र है,

    प्रथभ अध्माम भें शशवसॊकल्ऩसुक्त है। द्पवतीम अध्माम भें कुर 22 वैददक श्रोक हैं स्जनभें ऩुरुसुक्त

    (भुख्मत: 16 श्रोक) है। इसी प्रकाय आददत्म सुक्त तथा वज्र सुक्त बी सस्म्भशरत हैं। ऩॊचभ अध्माम भें ऩयभ ्

    राबदामक रुद्रसुक्त है, इसभें कुर 66 श्रोक हैं। छठें अध्माम के ऩॊचभ श्रोक के रूऩ भें भहान

    भहाभतृ्मुञ्जम श्रोक है। सप्तभ अध्माम भें 7 श्रोकों की अयण्मक श्रतुत है प्रामस्श्चत्त हवन आदद भें इसका

    उऩमोग होता है। अष्टभ अध्माम को नभक-चभक बी कहते हैं स्जसभें 24 श्रोक हैं।

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    हभ भुख्मत्वे रूद्र तत्व को सभझने के शरए रुद्राष्टध्मामी के आठ अध्माम को सतदबग रेते हुए पवश्रेषण कयेंगे इस पवश्रेषण के शरए भूर ग्रतथ के रूऩ भें श्री मजुवेदीम रुद्राष्टाध्मामी- खेभयाज -श्री कृष्णदास स्रस्ष्ट

    (भुॊफई) सॊवत २०१३ शके १८७८ को सतदबग के रूऩभें शरमा है । इस अध्ययन का दायरा

    इस शोधऩत्र भें रुद्रातत्व को सभझने के शरए उनका पवश्रेषण ककमा गमा है रूद्र स्वरूऩ,रूद्र तत्त्व औय रूद्रभदहभा को सभझने के शरमे रभ्म ग्रॊथों का सतदबग शरमा गमा है। रुद्राष्टाध्मामी भें मथाथग रूऩसे रूद्र के फाये भें पववयण ककमा गामा है रेककन सयर पवश्रेषण उनभें यहर बावों को सभझने के शरए श्रोकों का तरस्ऩशी अभ्मास कयना अतत आवश्मक है। रुद्राष्टाध्मामी के भुख्म आठ अध्माम के अभ्मास द्वाया रूद्र को सभजना औय उनकी भानवजीवन भें उऩमोगगता प्रस्तुत कयने का हभाया उद्देश्म है । इस सॊशोधन भें रुद्राष्टध्मामी के ऩॊचभ अध्माम के ६६ श्रोकों को पवश्रेषण के शरए भुरबुत भाने गए है क्मों की ऐसा भाना जाता है की ऩॊचभ अध्माम भनुष्मजातत के शरमे कष्ट दयू कयनेवारा माने अत्मॊत राबदामक है प्रधभ अध्माम भें गणेश जी के सूक्त है जो प्रायॊशबक है द्पवतीम अध्मामभें ऩुरुसूक्त है जो तीसया अध्माम आददत्मसूक्त है चतुथग अध्माम वज्रसूक्त है ऩॊचभ अध्माम रुद्रसूक्त है जो जो इस सॊशोधभें कें द्रीम स्थान ऩय है छठे अध्मामभें श्रोक के रूऩ भें भहान भहाभतृ्मुञ्जम श्रोक है। सप्तभ अध्माम भें अयण्मक श्रतुत है प्रामस्श्चत्त हवन आदद भें इसका उऩमोग होता है। अष्टभ अध्माम को नभक-चभक बी कहते हैं । इसी तयह रूद्र को सभझने के शरए इन सफ का आधाय शरमा है ।

    ऩ रवसाहहत्त्यक कायय का म लयांकन

    रुद्राष्टाध्मामी(२००६) गीता प्रेस गोयखऩुय से प्रकाशशत ग्रतध भें ऋचाओॊ का दहॊदी भें सटीक शरखते हुए फतात ेहै की अध्माम ऩॊचभ भें भहाभतृ्मुॊजम स्वमॊ आयाधतमत ककमा गमा है स्जसकी उऩासना से भनुष्मभात्र कष्टपवहीन होता है मही कहा गमा है की भतृ्मु सम्फतधी जो बी डय है वह दयू हो जाता है। मह एक शशवजी की शस्क्त है जो खदु शशवजी उऩासक के शयीयभें ग्राह्म कय देते है । इस सॊशोधन का पर:स्वरूऩ भानना है की इस ग्रतथ का अध्ममन रुद्र्तत्व को सभजने के शरमे कापी हद तक भददरूऩ होगा ।

    शुक्रमजुवेदीम रुद्राष्टाध्मामी (२०१५) भें ऩॊडडत वेणीयाभ शभाग अऩनी सकायात्भक फात यखते हुए शरखते है की भनुष्म जीवन को सुखभम फनाने के शरए औय शशवतत्व सभझने के शरए शुक्रमजुवेदीम रुद्राष्टाध्मामी की आयाधना जरुयी है। वह अऩने इस ग्रतधभें श्रोकों का बावानुवाद देते हुए कहते है की रूद्र ही सफ कुछ है इनके अरावा सफ शभथ्मा है । इस सॊशोधकों का ऩऺ है की रूद्र तत्त्व को सभझने के शरए शसपग ग्रतथ ऩठान ही आवश्मक नहीॊ है ककततु उनकी आयाधना कयके जीवन भें उतायना जरुयी है।

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    ऩॊडडत ज्वाराप्रसाद शभश्रा (२०१३) अऩनी प्रकाशशत सादहत्म ग्रतथावरकक के अॊतगगत "श्री मजुवेदीम रुद्राष्टाध्मामी " भें अऩना सतदबग देते हुए शरखते है की वेद ही सम्ऩूणगऻान का बडाय है। आगे शरखते है की जो शाट रूदद्रम ऩाठ कयता है। वह जैसे अस्ग्न से तनकारे ऩदाथग सुवणग आदद ऩपवत्र हो जाते है तदवत ऩपवत्र होता है ,कृत्मकृत्म से ऩपवत्र होता है ।वह सॊसाय सागय ऩाय कयने की ऺभता यखता है ।अथागत इस शोष भहातनफतध के सॊशोधकों को उस फात का अध्ममन कयके प्रततऩाददत कयना है की उनकी उऩरस्ब्ध औय उऩमोगगमा के अॊश ककतने है ।ऐसी तयह इस सतदबग ग्रतथ हभाये पवषम का भुख्म स्त्रोत्र है।

    शशवऩुयाण (२००६) गीताप्रेस से प्रकाशशत हुए ग्रॊथभें बगवान ्शशव के जीवन चरयत्र के फायेभें शरखागमा है । उनभें शशवबस्क्त औय उनके पवपवध स्वरूऩ का पववयण ककमा गामा है । बगवान ्शॊकय का त्माग,वात्सल्म आदद का पववयण ककमा गमा है । जो इस शॊशोधन की ऩूवगबूशभका यचने के शरमे भदद रूऩ हो सकता है।

    ऩॊडडत धनञ्जम शभाग(२००८) अऩने आदटगकर भें शरखते है की बगवान ्शशवा के अरग अरग रूद्र स्वरूऩ का कतुगत्व क्मा था ? शास्त्रों के भुताबफ़ आगेफतात ेहै की रूद्र का शास्ब्दक अथग होता है की - रुत मातन द:ुखों को अॊत कयने वारा। मही कायण है कक शशव को द:ुखों को नाश कयने वारे देवता के रुऩ भें ऩूजा जाता है। व्मावहारयक जीवन भें कोई द:ुखों को तबी बोगताहै, जफ तन, भन मा कभग ककसी न ककसी रूऩ भें अऩपवत्र होते हैं। शशव के रुद्र रूऩ की आयाधना का भहत्व मही है कक इससे व्मस्क्त का गचत्त ऩपवत्र यहता है औय वह ऐसे कभग औय पवचायों से दयू होता है, जो भन भें फुये बाव ऩैदा कयें। शास्त्रों के भुताबफक शशव ग्मायह अरग-अरग रुद्र रूऩों भें द:ुखों का नाश कयते हैं। मह ग्मायह रूऩ एकादश रुद्र के नाभ से जाने जाते हैं। जानते हैं ऐसे ही ग्मायह रूद्र रूऩों को (1). शम्बू – शास्त्रों के भुताबफक मह रुद्र रूऩ साऺात ब्रह्भ है। इस रूऩ भें ही वह जगत की यचना, ऩारन औय सॊहाय कयते हैं। (2.) पऩनाकी – ऻान शस्क्त रुऩी चायों वेदों के के स्वरुऩ भाने जान ेवारे पऩनाकी रुद्र द:ुखों का अॊत कयते हैं। (3) गगयीश – कैराशवासी होने से रुद्र का तीसया रुऩ गगयीश कहराता है। इस रुऩ भें रुद्र सुख औय आनॊद देने वारे भाने गए हैं। (4) स्थाणु – सभागध, तऩ औय आत्भरीन होने से रुद्र का चौथा अवताय स्थाणु कहराता है। इस रुऩ भें ऩावगती रूऩ शस्क्त फाएॊ बाग भें पवयास्जत होती है। (5) बगग – बगवान रुद्र का मह रुऩ फहुत तेजोभमी है। इस रुऩ भें रुद्र हय बम औय ऩीडा का नाश कयने वारे होते हैं। (6) बव – रुद्र का बव रुऩ ऻान फर, मोग फर औय बगवत प्रेभ के रुऩ भें सुख देने वारा भाना जाता है। ( 7) सदाशशव – रुद्र का मह स्वरुऩ तनयाकाय ब्रह्भका साकाय रूऩ भाना जाता है। जो सबी वैबव, सुख औय आनॊद देने वारा भाना जाता है। ( 8)शशव – मह रुद्र रूऩ अॊतहीन सुख देने वारा मातन कल्माण कयने वारा भाना जाता है। भोऺ प्रास्प्त के शरए शशव आयाधना भहत्वऩूणग भानीजाती है। ( 9) हय – इस रुऩ भें नाग धायण कयने वारे रुद्र शायीरयक, भानशसक औय साॊसारयक द:ुखों को हय रेते हैं। नाग रूऩी कार ऩय इन का तनमॊत्रण होता है। (10) शवग – कार को बी काफू भें यखने वारा मह रुद्र रूऩ शवग कहराता है। (11) कऩारी – कऩार यखने के कायण रुद्र का मह रूऩ कऩारी कहराता है। इस रुऩ भें ही दऺ का दॊब नष्ट ककमा, ककॊ तु प्राणीभात्र

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    के शरए रुद्र का मही रूऩ सभस्त सुख देने वारा भाना जाता है। हभाया भानना है की मह ग्मायह रुद्ररूऩ आगे सॊशोधन के शरमे सतदबग के शरमे ,उद्देश्मप्रास्प्त के शरमे काभ रग सकते है।

    ऩॊडडत धनञ्जम शभाग(२००७) अऩने आदटगकर भें शरखते है की बगवान ्शशवा देवों के देव भहादेव तीनों रोकों के स ् वाभी हैं। ससृ्ष्ट के सॊहायक औय ऩारक बगवान शशव, शरॊग रूऩ भें प्रकट हुए थे। शशव के अनेक रूऩ हैं स्जसभें उनका रूद्र औय नटयाज रूऩ कापी प्रशसद्ध है। शशव ऩुयाण भें बोरेनाथ के सबी रूऩों का वणगन पवस ् ताय से है। शशव ने असॊख ् म रूऩ ससृ्ष्ट के कर ् माण के शरए धायण ककए औय हय रूऩ भें अऩने बक् तों के भन को भोह शरमा। शशव के रूद्र औय नटयाज रूऩ के ऩीछे तछऩे यहस ् म के फाये भें आइए जानते हैं-:। बगवान शशव को अजत भा अपवनाशी कहा गमा है। उनकी उत् ऩपत्त की कोई कथा नहीॊ है ककॊ त ुसॊसाय भें आन ेवारे हय प्राणी, वस् त ुका कहीॊ न कहीॊ आदद जरूय है। पवष् णु ऩुयाण भें वर्णगत एक कथा से ऻात होता है कक ब्रह्भा जी ने शशव के रूद्र रूऩ को जत भ ददमा था। कथा के अनुसाय ओॊकाय स् वरूऩ शशव ने ब्रह्भा जी से अऩने शयीय की यचना का आग्रह ककमा तो ब्रह्भा जी ने एक सुॊदय से फारक का तनभागण ककमा। जतभ रेते ही वह फारक योने रगा औय ब्रह्भा जी से अऩना नाभ ऩूछा तो उत होंने ऩयभेश्वय के उस स्वरूऩ को अऩनी गोद भें फैठा शर मा औय कहा कक जतभ रेते ही आऩने रुदन कक मा है इसशर ए आऩ रूद्र कहराएॊगे। रेखक आगे फताते है की ससृ्ष्ट के प्रथभ नतगक के रूऩ भें बगवान शशव बत्रऩुय असुय का वध कयने के फाद प्रसत नता से नतृ् म कयने रगे। प्रायॊब भें वह अऩनी ऩूयी बुजाएॊ खोरकय नतृ्म नहीॊ कयत ेक् मोंकक ऐसा कयन ेसे ससृ्ष् ट तछतन शबतन होने रगेगी इसशरए वह अऩनी बुजाओॊ को सॊकुगचत कयके नतृ्म कयते हैं रेककन धीये-धीये नतृ्म भें ऐस ेशशव भग्न होने रगत ेहैं कक उतहें ककसी फात का होश नहीॊ यहता है औय ससृ्ष् ट का सॊतुरन बफगडने रगता है। तफ सॊसाय की यऺा के शरए देवी ऩावगती प्रेभ औय आनॊद से ‘रास् म‘ नतृ् म कयने रगती हैं। देवी ऩावगती के नतृ्म से ससृ्ष् ट भें सॊतुरन आता है औय शशव शाॊत होते हैं। नतृ् म कयते हुए शशव का मही रूऩ नटयाज कहराता है।

    भुकुॊ जा शभाग (१९८६) अऩनी सम्ऩाददत ऩुस्तक तनरुक्तॊ भें फताते है की शशव बगवान ् के पवशबतन स्वरूऩ ऩथृ्वीरोक के स्जव भात्र को शशऺा के साथ तनमतत के फायेभें फतामा है । मह ग्रतथ के अभ्मास से प्रतीत होता है की रूद्र तत्व जरुयी है औय देवताशास्त्र आज के जभाने भें बी कोड ऑप कदकत के रूऩभें इॊसान को काभ रग सकता है । इसी तयह ऩूवग सादहत्मकी भीभाॊसा कयने से हभाये शरए सॊशोधन के उद्देश्म साफ़ दीखते जा यहे है औय जो ऻान अॊतय है वह अगरे ऩॉइॊट भें फता सकते है।

    शोध अतंराऱ

    (1) शास्त्रों के अनुसाय शम्बू स्वरूऩ सभजने के शरमे पवपवध रेखों औय ऩॊडडतों के ग्रॊथों भें उगचत वणगन ककमा है रेककन अकादभी रूऩभें फहुत ही कभ सॊशोधन हुआ ददखता है इस शरए शबु का स्वरूऩ रूद्र स्वरूऩ के सॊदबगभें ऩहचान कयेंगें । (2) शास्त्रों के अनुसाय पऩनाकी स्वरूऩ सभजने के शरमे पवपवध रेखों औय ऩॊडडतों

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    के ग्रॊथों भें उगचत वणगन ककमा है रेककन अकादभी रूऩभें फहुत ही कभ सॊशोधन हुआ ददखता है इस शरए शबु का स्वरूऩ रूद्र स्वरूऩ के सॊदबगभें ऩहचान कयेंगें । (3) शास्त्रों के अनुसाय गगयीश स्वरूऩ सभजने के शरमे पवपवध रेखों औय ऩॊडडतों के ग्रॊथों भें उगचत वणगन ककमा है रेककन अकादभी रूऩभें फहुत ही कभ सॊशोधन हुआ ददखता है इस शरए शबु का स्वरूऩ रूद्र स्वरूऩ के सॊदबगभें ऩहचान कयेंगें । (4) शास्त्रों के अनुसाय स्थाणु स्वरूऩ सभजने के शरमे पवपवध रेखों औय ऩॊडडतों के ग्रॊथों भें उगचत वणगन ककमा है रेककन अकादभी रूऩभें फहुत ही कभ सॊशोधन हुआ ददखता है इस शरए शबु का स्वरूऩ रूद्र स्वरूऩ के सॊदबगभें ऩहचान कयेंगें । (5) शास्त्रों के अनुसाय भर्य स्वरूऩ सभजने के शरमे पवपवध रेखों औय ऩॊडडतों के ग्रॊथों भें उगचत वणगन ककमा है रेककन अकादभी रूऩभें फहुत ही कभ सॊशोधन हुआ ददखता है इस शरए शबु का स्वरूऩ रूद्र स्वरूऩ के सॊदबगभें ऩहचान कयेंगें । (6) शास्त्रों के अनुसाय भव स्वरूऩ सभजने के शरमे पवपवध रेखों औय ऩॊडडतों के ग्रॊथों भें उगचत वणगन ककमा है रेककन अकादभी रूऩभें फहुत ही कभ सॊशोधन हुआ ददखता है इस शरए शबु का स्वरूऩ रूद्र स्वरूऩ के सॊदबगभें ऩहचान कयेंगें । (7) शास्त्रों के अनुसाय सदाशशव स्वरूऩ सभजने के शरमे पवपवध रेखों औय ऩॊडडतों के ग्रॊथों भें उगचत वणगन ककमा है रेककन अकादभी रूऩभें फहुत ही कभ सॊशोधन हुआ ददखता है इस शरए शबु का स्वरूऩ रूद्र स्वरूऩ के सॊदबगभें ऩहचान कयेंगें । (8) शास्त्रों के अनुसाय शशव स्वरूऩ सभजने के शरमे पवपवध रेखों औय ऩॊडडतों के ग्रॊथों भें उगचत वणगन ककमा है रेककन अकादभी रूऩभें फहुत ही कभ सॊशोधन हुआ ददखता है इस शरए शबु का स्वरूऩ रूद्र स्वरूऩ के सॊदबगभें ऩहचान कयेंगें । (9) शास्त्रों के अनुसाय हय स्वरूऩ सभजने के शरमे पवपवध रेखों औय ऩॊडडतों के ग्रॊथों भें उगचत वणगन ककमा है रेककन अकादभी रूऩभें फहुत ही कभ सॊशोधन हुआ ददखता है इस शरए शबु का स्वरूऩ रूद्र स्वरूऩ के सॊदबगभें ऩहचान कयेंगें । (10) शास्त्रों के अनुसाय शवग स्वरूऩ सभजने के शरमे पवपवध रेखों औय ऩॊडडतों के ग्रॊथों भें उगचत वणगन ककमा है रेककन अकादभी रूऩभें फहुत ही कभ सॊशोधन हुआ ददखता है इस शरए शबु का स्वरूऩ रूद्र स्वरूऩ के सॊदबगभें ऩहचान कयेंगें । (11) शास्त्रों के अनुसाय कऩारी स्वरूऩ सभजने के शरमे पवपवध रेखों औय ऩॊडडतों के ग्रॊथों भें उगचत वणगन ककमा है रेककन अकादभी रूऩभें फहुत ही कभ सॊशोधन हुआ ददखता है इस शरए शबु का स्वरूऩ रूद्र स्वरूऩ के सॊदबगभें ऩहचान कयेंगें ।

    इस शोध कामगभें हेतुशसद्गध के शरए तनस्श्चत ककमे गए ऩरयभाण को ध्मान भें यखते हुए तनम्नतनददगष्ट शोधऩद्धततमों को हभ प्रस्तापवत कयते है । हभायी जानकायी सहामक स्वरूऩ का सादहत्म है औय इस वजह स ेहभ ११ उद्देश्म को ध्मानभें यखते हुए पववयणात्भक पवश्रेषण कयके हेतुशसद्गध कयने की कोशशश कयेंगे सादहत्मभें पववयणात्भक पवश्रेषण फहुधा उऩमोगभें आता है । बाषा गततशीर तत्व है पववयणात्भक पवश्रेषण कयने हेतु हभ इस सॊशोधन भें बाषा को स्स्थय यखेंगे औय पववयणात्भक पवश्रेषण कामगऩद्धतत का उऩमोग कयेंगे सॊशोधको के साभने दो फाते यहती है। (१) बाषा स्ऩष्ट है रेककन जो उऩरब्ध कयना कहते है वह स्ऩष्ट

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    नहीॊ (२) जो उऩरब्ध कयना है वह स्ऩष्ट है रेककन बाषा स्ऩष्ट नहीॊ है हभायी देवबाषा सॊस्कृत फहुत ही प्राचीन है औय वेद इस बाषाभें शरखे गए है। दहतद ूशास्त्रों की एक ही साभातम बाषा का उऩमोग है । हभाये प्राचीन शास्त्रों को प्रभाणबूत कयने के शरए ज्मादातय तकग अवॊ पवश्वास की भदद री गई है ऐसे हभ उऩरब्ध ग्रॊघों का अध्ममन कयके पववयणात्भक पवश्रेषण को ही इस सॊशोधन हेतु शसद्ध कयेंगे।

    ऩररकलऩना ऩररऺण इस सॊशोधन भें हभाये उद्देश्म के दहसाफ से कुछ ऩरयकल्ऩनाऑ का ऩरयखाॊ कयने की जरुयत ऩडी तो हभ तनभतनददगष्ट ऩरयकल्ऩनाओ के आधाय ऩय आगे फढ़ेंगे । (१) शास्त्रों अनुसाय शशव बगवान ्के ११ रूद्र स्वरूऩ भानव जाती को उऩमोगी है मा नहीॊ है वह शसद्ध् कयनेकी कोशशश कयेंगे । (२) शास्त्रों अनुसाय शशव बगवान ्के ११ रूद्र स्वरूऩ भानव जाती को उऩमोगी है तो कैसे उऩमोगी है वह प्रततऩाददत कयने की कोशशश कयेंगे । (३) शास्त्रों अनुसाय शशव बगवान ्के ११ रूद्र स्वरूऩ भानव जाती को उऩमोगी है तो क्मों उऩमोगी है वह प्रततऩाददत कयने की कोशशश कयेंगे । (४) शास्त्रों के अनुसाय रुद्राष्टध्मामी का शसपग धाशभगक आधाय है मा नहीॊ वह शसद्ध् कयने की कोशशश कयेंगे ।

    ववचार-ववमशय

    शास्त्रों के भुताबफक शशव ग्मायह अरग-अरग रुद्र रूऩों भें द:ुखों का नाश कयते हैं। मह ग्मायह रूऩ एकादश रुद्र के नाभ से जाने जाते हैं। जानते हैं ऐसे ही ग्मायह रूद्र रूऩों को (1) शम्बू - शास्त्रों के भुताबफक मह रुद्र रूऩ साऺात ब्रह्भ है। इस रूऩ भें ही वह जगत की यचना, ऩारन औय सॊहाय कयते हैं।(2) पऩनाकी - ऻान शस्क्त रुऩी चायों वेदों के के स्वरुऩ भाने जाने वारे पऩनाकी रुद्र द:ुखों काअॊत कयते हैं।(3) गगयीश - कैराशवासी होने से रुद्र का तीसया रुऩ गगयीश कहराता है। इस रुऩ भें रुद्र सुख औय आनॊद देने वारे भान ेगए हैं।(4) स्थाणु - सभागध, तऩ औय आत्भरीन होने से रुद्र का चौथा अवताय स्थाणु कहराता है। इस रुऩ भें ऩावगती रूऩ शस्क्त फाएॊ बाग भें पवयास्जत होती है।(5) बगग - बगवान रुद्र का मह रुऩ फहुत तेजोभमी है। इस रुऩ भें रुद्र हय बम औय ऩीडा का नाश कयने वारे होते हैं।(6) बव - रुद्र का बव रुऩ ऻान फर, मोग फर औय बगवत प्रेभ के रुऩ भें सुख देने वारा भाना जाता है।(7) सदाशशव - रुद्र का मह स्वरुऩ तनयाकाय ब्रह्भका साकाय रूऩ भानाजाता है। जो सबी वैबव, सुख औय आनॊददेने वारा भाना जाता है। (8) शशव - मह रुद्र रूऩ अॊतहीन सुख देने वारा मातन कल्माण कयने वारा भाना जाता है। भोऺ प्रास्प्त के शरए शशव आयाधना भहत्वऩूणग भानीजाती है।(9) हय - इस रुऩ भें नाग धायण कयने वारे रुद्र शायीरयक, भानशसक औय साॊसारयक द:ुखों को हय रेते हैं। नाग रूऩी कार ऩय इन का तनमॊत्रण होता है।10. शवग - कार को बी काफू भें यखनेवारा

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    मह रुद्र रूऩ शवग कहराता है।(11) कऩारी - कऩार यखने के कायण रुद्र का मह रूऩ कऩारी कहराता है।इस रुऩ भें ही दऺ का दॊब नष्ट ककमा, ककॊ तु प्राणीभात्र के शरए रुद्र का मही रूऩ सभस्त सुख देने वारा भाना जाता है। उऩयोक्त ग्मायह स्वयको भानवजीवन के शरए उऩमोगी भाना जाता है। क्मों की जीवन जीने की आचायसॊदहता है। इस तयह हभ शसद्ध कय सकए है की शशव के ग्मायह स्वरूऩ भानव जीवन के शरए उऩमोगी है।

    मदद देखा जाए तो बगवान शशव का सॊहायक रूऩ रूद्र है, रूद्र अथागत अस्ग्न। भानव भात्र पवशबतन प्रकाय की अस्ग्न से तप्त है जैसे योग, शत्र,ु आगथगक कष्ट, भानशसक कष्ट मे सबी प्रकाय के कष्ट भनुष्मों को तप्त कयते यहें हैं। सबी प्रकाय की कष्ट रूऩी अस्ग्न ककसी ना ककसी प्रकाय से रूद्र का ही स्वरूऩ है, क्मोंकक शशव ऩुयाण के अनुसाय शशव ही ब्रह्भ रूऩ भें ससृ्ष्ट के यचतमता, पवष्णु रूऩ भें ऩारनकताग तथा रूद्र रूऩ भें सॊहाय कताग हैं। इसी कष्ट रूऩी अस्ग्न अथागत रूद्र को शाॊत कयने के शरए हभ उतहें अशबषेक अथागत स्नान कयात ेहैं। बावदहॊ भेदट सकदह बत्रऩुयायी ! अथागत होनी को कोई टार सकने का साभथ्मग यखता है तो बगवान शशव ही हैं। ककसी बी ग्रह का दषु्प्रबाव क्मों ना हो उसके प्रबाव को कभ मा सभाप्त कयने का अॊततभ उऩाम बगवान शशव की आयाधना ही है। प्राणी भात्र के स्जतने बी साॊसारयक कष्ट हैं उनका कायण ककसी ना ककसी ग्रह का दषु्प्रबाव होना ही है, जो सफसे अगधक ऩाऩ ग्रह अथागत कष्ट देने वारे ग्रह हैं वे हैं - शतन, याहु औय केत।ु ककसी बी व्मस्क्त की कुॊ डरी भें अगधकाॊशत् औय सफसे दषु्कय स्जतने बी मोग हैं वे इतही के कायण फनत ेहैं, शतन साढ़े साती, ढैमा, कार सऩग, केऩद्रभु मोग, पवष्कुम्ब मोग, फारारयष्ट मोग, भायकेश मोग जैस ेअत्मॊत ही कष्टकायी मोगों का तनदान केवर औय केवर बगवान शशव की आयाधना मा अनुष्ठान ही है। आऩ चाहे साॊसारयक कष्टों से छुटकाया ऩाना चाहते हों मा भोऺ, शशव अॊततभ गॊतव्म हैं। उऩयोक्त पवचाय-पवभशग को ध्मानभें यखते हुए हभें मह बी जानना जरुयी है की रुद्रस्वरूऩ की आयाधना भानवजीवन के शरए क्मों उऩमोगी है। मह सॊशोधन धभग आधारयत तथ्मों ऩय है अगय धभग है तो श्रद्धा बी होनी चादहए औय श्रद्धा है तो सफुयी मा ने धीयज यखनी चादहए । भतरफ की रुद्रके पवपवध स्वरूऩ को ऩहचानना अतत आवश्मक है औय उनकी आयाधना ही भनुष्मजीवन का उद्धायक फनता है। मह श्रद्धा कामभ कयने के शरए ऩूजा अचगना कयना जरुयी है। ऩूजा के शरए अरग अरग प्रकिमाओॊ है स्जसका अनुकयण कयना अतत आवश्मक है । मह ऩूजा सम्फतधी प्रकिमाओॊ स्जि कयना इस सॊशोधनऩतया के दामयेभें नहीॊ है इसीशरए हभ सादय पवचायपवभशगसे दयू यहेंगें ।

    इसी तयह इस पवचायपवभशग के ऩरयऩेक्ष्मभें हभन े तीनों ऩरयकल्ऩनाओॊ को शसद्ध कयने का मथाथग प्रमत्न ककमा है।

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    ननष्कषय

    पवपवश रुद्रस्वरूऩ की सेवा कयने से भानवजीवन भें से पवऩपत्तमों दयू होती है। भानव तनभूगर हो कय अऩनी स्जॊदगी अच्छी तयह स ेव्मतीत कय सकता है ।अरग अरग रुद्रस्वरूऩ की अरग अरग ऩूजा पवगध है। उसका सेवन कयने से अरग अरग शुब पर की प्रास्प्त होती है । उगचत रूऩसे ऩूजा कयने से भानव को उगचत परप्रास्प्त होती है। मह सफ चचाग को वैग्नातनक आधाय बी शभरा है।

    सन्दभयसूचच

    १.Hymns of the Rigveda –

    ५ ” ”