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उपसंहार
आधुिनक युग म सािह य की जो िवधा सव िधक सश समृ और लोकि य है वह
कहानी ही है। िह दी कहानी का ार भ कई वष पुराना है। आज हम िजस सािह यक िवधा के
प म कहानी को जानते ह वह आधुिनक युग की देन है। कहानी, सािह य की अ य िवधाओं के
समान ही अं ेजी सािह य के भाव और स पक से िवकिसत हुई है। कहानी िवचारधारा को
सहज, सरल प म कट करने का आसान साधन है। इसका संबंध जीवन की वा तिवकताओं
और सम याओं स होता है य िक सािह यकार अपनी कहािनय के िवषय समाज और अपने
पिरवेश से ही लेता है।
इ ीसव शता दी म आधुिनक चेतना का वच व बना हुआ है। इसका पिरणाम यह
िनकला िक कहानीकार यि गत अनुभव और सोच को अपनी कहािनय म य करने लगे ह।
इस समय िह दी कहानी के े म कहानीकार की कई पीिढ़ या ँ सि य ह। इन पीिढ़ य के
कहानीकार म कुछ तो थािपत हो चुके ह और कुछ थािपत होने की ि या म है। इ ीसव सदी
के कहानीकार ने आधुिनक जीवन के अ त वरोध और भूम डलीकरण म उ प िवड बनाओं
को अिभ य िकया है। सामािजक एवं राजनैितक िवदपताओं और िवड बनाओं को बड़ी
सहजता से य िकया है। इ ीसव सदी म लेिखकाओं की सं या मे भी बहुत विृ हुई है।
इ ीसव सदी म लेिखकाओं की सं या मे भी बहुत विृ हुई है। सूयबाला, मनीषा कुल े ,
किवता, अ पना िम , सुधा ओम ढ गरा, मधु कांकिरया, दीपक शम , व दना राग आिद
कहानीकार ने अपनी एक अलग पहचान बना रखी है।
इ ीसव सद की कहािनय म सामािजक, आ थक धा मक, राजनीितक सभी े का
सू मता से अंकन िकया गया है। इ ीसव सद के कथा सािह य ने देश और काल की सीमा का
अित मण कर िन य ही नए पिर य िदये है, िजससे कहानी लेखन म एक नए कार का
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ांितकारी पिरवतन आया है। इ ीसव सद की कहािनय म आधुिनक चेतना के प म आये
पिरवतन के पीछे कई कारण रहे ह। राजनीितक, सामािजक, बौि क, वैयि क और सबसे
बढ़कर वैि क तर पर। आधुिनक चेतना ने नई सोच, नया वातावरण िदया है।
इ ीसव सदी के आर भ म अपनी तकनीकी उपल धय और सुिवधाओं के बावजदू
जीवन म ढ़ सं कार , सांमती मू य , बुिनयादी विृ य , मह वाकां ाओं और मानवीय -
शू ताओं की जड़ मे नई चेतना की आव यकता को अनुभव िकया जा रहा था। यही वजह है िक
इ ीसव सद की कहािनय म अपनी पिर थितय , िवड बनाओं, वसगितय और अ याय के
ित ोध और उसके िव िवरोध करने, संघष करने की भावना को जागतृ करने का यास
िकया गया है।
आधुिनक चेतना के कारण न केवल समकालीन िह दी कहानी को उ कष िमला है वर
इस अराजकता और भयावह समय म मनु यता को बचाने की मुिहम भी छेड़ी है। मशीनी युग म
जहा ँसंवेदनहीनता बढ़ती जा रही है, वह आधुिनक चेतना ने हम मानवता को जीवंत रखने का
संकेत भी िदया है। पिरवेश के साथ ि या- िति या करता हुआ यि सहज ही आधुिनक
चेतना स प न हो जाता है।
इ ीसव सदी के वतमान पिर य पर हम कहािनय म िचि त सामािजक जीवन पर
आधुिनक चेतना का भाव सबसे यादा िदखाई देता है। महानगर इ ीसव सदी के कहानीकार
का थल रहा है। बदलती जीवन शैली, बदलती िवचारधारा समाज म नौकरी पाने के िलए बढ़ती
ित प और अपने आपको थािपत करने की भावना ने यि के जीवन मू य को बदल िदया
है। द तर म इसके कारण कई िवकृितया ँउभर कर सामने आयी है। मधु काकँिरया की कहािनया ँ
‘रहना नही देश वीराना है’, ‘लोड शे डग’, ‘लेडी बॉस’, सूयबाला की ‘बेणु का घर’ अवधेश ीत
की कवच, उड़ान, कीड़े, कहािनय म यि की बदलती िवचारधारा और जीवन शैली का िच ण
है। मनीषा कुल े की कहानी पीिढ़य का अंतराल, एक नदी िठठकी सी, राजे शम की 'यूज
एंड़ ो' म बदलती मानिसकता और िवचारधारा का मा मक िच ण िमलता है जो यह य
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करती है िक आज का युवा ‘यूज एंड ो’ की िवचारधारा को मानता जा रहा है। महानगर म यह
अ यिधक पिरलि त होता है।
इ ीसव सदी की कहािनय म िचि त बदलती िवचारधारा, नवीन जीवन मू य और
नैितक मा यताओं के फल व प आज सामािजक जीवन नई िदशा म अ सर हो रहा है। आज
की आधुिनक िज दगी म आधुिनक चेतना, समाज की ढ़ीगत मा यताओं को अ वीकार करती
है। ‘एक की हुई ी’, ‘हाकँा’ तथा अ य कहािनया ँ पलाल बेिदया का 'मा 'ँ, मनीषा कुल े
की 'पीिढ़य का अतरांल' म नई आधुिनक चेतना कट होती है, जो बदलती िवचारधारा का ही
पिरणाम है।
महानगर म बढ़ती ित प ने आज एक िवकराल प धारण कर िलया है। इसका
कारण आ थक बेरोजगारी को भी मान सकते ह िजसके कारण यि का मनोबल टूटता जाता है
और दसूरे यि य की सफलता से वह खुश नह हो पाता। ‘लोड़ शे डग’, ‘लेडी बॉस’, ‘पीिढ़य
का अंतराल’ कहािनय म इसका सजीव िच ण िमलता है। 'लेडी बास’ कहानी म जहा ँ मैडम
अपने आपको थािपत करने की दौड़ म अपने पिरवार से दरू हो जाती है और साथ ही द तर म
कोई दो त नह बना पाती य िक उसे भय लगा रहता है िक कोई उसका लाभ उठायेगा। पीिढ़य
के अ तराल म पसी की मा ँको साथी कमचािरय का भय लगा रहता है। वह उसको यो यता
के अनुसार काय न िमलने पर उसके मन म उठते दबाव का िच ण लेिखका ने अपनी कहािनय
म मा मक प से िचि त िकया है। संजय कंुदन की कहानी 'बॉस की पाट ’ म भी इसका सश त
उदाहरण िमलता है।
महानगर म ही नह , ब क ामीण पिरवेश को आधार बनाकर इ ीसव सदी की
कहािनया ँरची गई है। गावँ म आधुिनक चेतना का भाव खेती के संसाधनो म पिरवतन, बदलते
जीवन मू य तथा गावँ म बढ़ता उपभो ावाद और बाजारवाद के भाव के प म अंिकत हुआ
है। गावँ के लोग म सामािजक और राजनैितक चेतना का भी संचार होने लगा है। गावँ म बढ़ते
शहरीकरण तथा सरकार ारा िकये गये काय के ित लोग म चेतना जागतृ होने लगी है।
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इ ीसव सद की कहािनय म लु होती कला और शहरो के ित ामीण के बढ़ते मोह का
िच ण भी िकया गया है। अनुज की कहानी 'खूंटा', राकेश कुमार सह की ‘पुल’, सुभाष च
कुशवाहा की ामीण पिरवेश पर आधािरत ‘नून, तेल मोबाइल’, ‘िदनेश कन टक की ‘खाइया’ँ,
पंकज िम की ‘िबजली मह ो की अजब दा तान’ हो या पिरकथा के युवा िवशेषांक म छपी
िवमल च द पा डेय की ‘हाइवे पर कु ा' हो सभी म ामीण सं कृित म आये बदलाव का िच ण
िमलता है।
इसे हम आधुिनक चेतना का दु पयोग ही कह सकते ह िक आज लोग अपनी लोक
कलाओं, पर पराओं से अलग होते जा रहे ह। मधु काकँिरया - गािडया लुहार की ख म होती
सं कृित का िच ण करती है तो वह मनीषा कुल े ' वांग’ कहानी म पुराने कलाकार के ित
सरकार की उदासीनता का िच ण करती है। राकेश कुमार सह ‘ओह! पलामू’ म इसे य करते
हुये कहते ह िक आयाितत मू य वाली नागरीय जीवन शैली से लोक जीवन के ाण त व इतनी
तेजी से समा होते जा रहे ह िक हमको अपना बना लेने की िवचारधारा म पार पिरक लोक कला
के बीजा र को भूलते जा रहे ह। उमा शकंर चौधरी की कहानी ‘कट टु िद ली : कहानी म
धानमं ी का वेश’ म भी यही िचि त होता है िक शहर के आधुिनकीकरण और औ ोगीकरण
म कला, कला का हुनर और अदाकारी िसमटती जा रही है।
इ कीसव सदी की कहािनय म करोड़ के सपने पालता एक ऐसा म य वग तेजी से
अ त व म आ रहा िजसम आधुिनक चेतना का सव िधक िवकास िदखाई देता है। ितभा,
यो यता आिद ने समाज को वग म बांट िदया है। वह िन न वग अब भी गरीबी म डूबा हुआ है।
मजदरू और म य वग के लोग का शोषण करने वाला उ च वग शोषक के प म उभरा है। मधु
काकँिरया की ‘लेडी बॉस’, ‘लोड शे डग’, ‘भरी दोपहरी के अंधेरे’, राकेश कुमार सह की ‘काश’,
नीला ी सह की ‘ ितयोगी’, वंदना राग की ‘टोली’, मनोज कुमार पा डेय की ‘खाल’, दीपक
शम की ‘ढलाई घर’ म कारपोरेट जगत म िमक के शोषण पर रची गई कहािनयां ह। मनीषा
कुल े ठ की टकर, हाइड एंड सीक तथा अजय नाविरया की गंगा सागर म यही बताया गया है
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िक इस देश म मेहनतकश संघषशील लोग के िह से म हमेशा एक ही चीज़ आती है। वह है
बदहाली। हाड़ तोड़ मेहनत उनके जीने का तरीका है तो लुटते जाना उनकी िनयित।
िह दी कहानी म 2000 से 2013 तक के युग म ढेर कहािनया ँ कािशत हुई ह। नये
ितभाशाली रचनाकार ने कहानी के अंतरंग और बाहरी बदलाव के बारे म सजगता से अपनी
लेखनी चलाई है। समाज तथा जीवन की छोटी-छोटी िवसंगितय तथा िवषमताओं पर गहराई से
अवलोकन िकया गया है। नगरीय चेतना, ामीण चेतना, सा दाियक चेतना के साथ समकालीन
समाज की उन बुराइय को भी अपने सािह य म सू म प म अंिकत िकया है। दहेज की सम या,
टाचार की सम या, ूण ह या की सम या, अकेलेपन और कंुठा की सम या, शोषण,
बेरोजगारी, बढ़ती आपरािधक वृि य के साथ पीिढ़य के म य बढ़ते संघष को भी मुखता से
अपना िवषय बनाया है। योित कुमारी की ‘नाना की गुिड़या’, ‘अनिझपी आंख’, िवनोदनी की
हंसू या रोऊं’, मनीषा कुल े ठ की ‘एक नदी िठठकी सी’, इंिदरा दागी की ‘रे ा म बाय ड’,
मधु काकँिरया की कहािनय म दहेज था का िवरोध सश त प म िमलता है। इ कीसव सदी
के कहानीकार इसे अिभशाप मानकर इसका िवरोध कर रहे ह और अपनी लेखनी के मा यम से
लड़के और लड़िकया ँदोन को ही जागतृ करने का यास करते तीत होते ह।
सामािजक जीवन को टाचार की सम या ने भी खोखला कर िदया है। जीवन मू य का
पतन, िर वतखोरी को अपनी कहािनय का िवषय ाय: सभी कहानीकार ने बनाया है तथा साथ
ही बढ़ती ूण ह या का िवरोध करते हुए उसे ख म करने का यास िकया है। किवता, मधु
कांकिरया, अजय नाविरया की प थर, माटी और दबू, पोिल िथन म पृ वी शू य होते हुए, अनचाहा
म भी इसकी कटु आलोचना की गई है।
इ कीसव सदी की कहािनया ँसा दाियक दंगे, आतंकवाद जाितवाद का भी िवरोध करती
है। अजय नाविरया की ‘शाप-कव’, अ पना िम की ‘बेदखल’, सूयबाला की ‘शहर की ददनाक
खबर’ राकेश कुमार सह की ‘स भवािम युगे-युगे’, ‘रैन भई चहु ँदेश’ म सा दाियक चेतना मु य
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िवषय बनकर उभरी है। इ कीसव सदी के कहानीकार ने इस िवषय पर बहुत रचनाएँ की है।
मनोज पड़ा की ‘सुबह’, सुधा अरोड़ा की ‘काला शु वार’ आिद सभी कहािनया ँइस दौर म े ठ
सा दाियक िवरोधी कहािनया ँ बनकर उभरी है और सा दाियकता के कई पिर य और
पहलुओं को उजागर करती है।
आधुिनक जीवन की िवषा त एवं जजिरत पिर थितय म गित के नाम पर मनु य अपने
पिरवार से दरू होता जा रहा है। इसी असंतुिलत ि या और मानिसक ं के कारण यि
पर पर सौहाद संबंध से दरू होकर, भौितक आड बर म फंस कर नैितकता का गला घ टता जा
रहा है। पािरवािरक दािय व को बोझ समझकर संबंध के मू य को उपेि त कर रहे ह।
इ कीसव सदी के कहानीकार ने पिरवार की तरफ लोग को िफर से आक षत करने का यास
िकया है। जीवन का मह व, पािरवािरक संबंध की मह ता को मजबूत करने का यास िकया है।
यह मानते ह िक पिरवार समाज की िविश ट सं था है जो अपने िव वास, आ मीयता और
भावना मकता की बुिनयाद िलये होती है। यि के िनम ण म सहायक होती है। नामद, आर
आसवो ना, बड़ा पो टर, दरअसल म मी, प नी का चेहरा, साथक जीवन, पीिढ़य का अंतराल म
पािरवािरक जीवन और पिरवार का मह व उ घा टत होता है।
इ कीसव सदी के पािरवािरक जीवन म आधुिनक चेतना के कारण कई बदलाव आए ह
जहा ँएकल पिरवार की अवधारणा को बल िमला है, वह पािरवािरक संबंध म िव वास की कमी
आयी है। आ थक पिर थितय के कारण संबंध पर दबाव भी पड़ा है। जीवन मू य , िवचारधारा
म भी पिरवतन िदखाई देता है।
पािरवािरक िढ़य , लड़िकय के ज म संबंधी बदलती िवचारधारा का िवरोध तथा दा प य
संबंध और ब च म बढ़ती हीन भावना भी मुख िवषय रही है, िजन पर आधुिनक चेतना के
कारण पिरवतन हुआ है। पािरवािरक संबंध म भी नेह और कटुता का भाव पड़ा है। मनोज
कुमार पा डेय, िवनोदनी, राकेश कुमार सह, सूयबाला, सुषम बेदी, अवधेश ीत, सुधा ओम
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ढ गरा, संजय कंुदन, अनुज, योित कुमारी, अ पना िम , कुणाल सह, राकेश भारती, उमा
शंकर चौधरी, मनीषा कुल े ठ, ए. असफल, किवता की कहािनय म पािरवािरक जीवन
सफलतापवूक िचि त हुआ है।
बढ़ते बाजारवाद और आधुिनक चेतना ने िववाह-सं था के संकट को और बढ़ाया है।
21व सदी म अभूतपूव पिरवतन हुए ह। उनके चलते मानवीय संवेदना को चोट पहुँची है। राकेश
भारतीय की कहानी ‘कचरा’ म हमारी स यता के सारे मू य ही कचरे म बदलते िदखाई देते ह
और मनु य वयं कचरे की तरह वहा ँफक िदया जाता है। दहेज को समाज से ख म करने के िलए
सूझबूझ और समझदारी से लड़ते हुए नई पीढ़ी सामने आयी है।
21व सदी के कहानीकार ने िपतसृ ता मक यव था, नारी अ मता को बड़े ही अ छे ढंग
से य त िकया है। आधुिनक चेतना ने िढ़य को ख म करने का यास िकया है। आज नारी
अपने चार ओर बने सामािजक, पािरवािरक दायर को तोड़कर बाहर िनकल रही है। 21व सदी
के रचनाकार म िवशेषकर मिहला रचनाकार ने एक नई ि नई िदशा तलाशी है। घरेल ुदबाव
और तनाव म रहते हुए खुद को जदा रखने की जमीन दान की है। नारी चेतना और भावनाओं
को बहुत आगे बढ़ाया है। वह समाज से अपना हक मागँ ही नह रही हािसल भी कर रही है।
इसके िलए नारी को जीवन म कई सम याओं का सामना भी करना पड़ रहा है।
21व सदी की कहािनय म शहरी- ामीण, संप न, कामकाजी, सभी वग की नारी का
िच ण है। जहा ँ वह अपने शोषण के िखलाफ आवाज उठा रही है। पर तु कई सम याओं के
कारण संघष भी कर रही है। कामकाजी नारी की सम या, दा प य जीवन की सम या, अकेलेपन
और कंुठा की सम याओं का िच ण हम मधु काकँिरया की ‘चूहे को चूहा रहने दो’, ‘माता-
कुमाता’, ‘दरअसल म मी‘, ‘लेडी बॉस’, 'बीतते हुए', किवता की 'उस पार रोशनी', ‘तमाशा’,
‘आिशयाना’, अजय नाविरया की ‘शाट कट’, 'इ जत', अ पना िम की ‘मुि संग’, 'छावनी म
बेघर', ‘ योित कुमारी की ‘अनिझप आँखे’, सुधा ओम ढ गरा की ‘ि ितज से परे’, मनोज पड़ा
की ‘कमली’, राकेश कुमार सह – ‘ लेिशयस’, ‘महुआ मादल और अंधेरा’, ‘ ेम न हाट
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िबकाय’, य ा – िशकार, ए.असफल की ‘एक मोड़ ऐसा भी’, मनीषा कुल े ठ की ‘केयर
ऑफ वाती घाटी’, दीपक शम की ‘पा व’, मनोज कुमार पा डेय की ‘पु ष’, वंदना राग की
‘शहादत और अित मण’ नारी जीवन म आधुिनक चेतना के सव े ठ उदाहरण ह। नाियका
शोषण के िखलाफ आवाज उठाकर नई जागिृत लाना चाहती है। पु ष नारी की गित चाहता तो
है पर यह गित बाहरी प म ही नजर आने वाली गित है। इसका यथाथ परक िच ण 21व
सदी की कहािनय म िमलता है।
भूमंडलीकरण, उदारीकरण, बाजारवाद ने नई अथ यव थाओं म येक यि को
आ मके त, वाथ के त कर िदया है। संजय कंुदन की कहािनया ँके.एन.टी. कार, आपरेशन
माउस, उ मीदवार, झीलवाला, क यूटर, बॉस की पाट , सुरि त आदमी कोई है, मेरे सपने वापस
करो, म कशमकश कट होती है। वै वीकरण और उदारीकरण ने लाख लोग को बेरोजगार
िकया है। 21व सदी की कहािनय म संजय कंुदन की कहानी ‘कोई है’ उस आधुिनक आ थक
चेतना का िवरोध करती है जो हम िन:सहाय, अकेला और िवक पहीन बना रही है। कंपनी के
कमचािरय म छंटनी होने का भय और आशंका बनाये रखती है। बड़ी कंपिनया,ँ िवदेशी कंपिनया ँ
मजदरू का शोषण कर रही है।
आज की आ थक नीितय के कारण कुछ लोग एक िदन म लाख कमा रहा है तो कुछ
अगले ही िदन छंटनी के कारण सड़क पर होते ह।
बढ़ते उपभो तावाद, बाजारवाद के कारण जीिवका के नये साधन के कारण यि म
आ मिव वास बढ़ गया है। 21व सदी के कहानीकार ने ामीण जीवन, शहरी जीवन पर
आधुिनक आ थक चेतना के भाव, गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, वै वीकरण और बाजारवाद के
कारण युवा वग म भटकाव, बहुरा ीय कंपिनय का बढ़ता भाव, आ थक शोषण को अपनी
कहािनय का िवषय बनाया है। मधु काकँिरया, संजय कंुदन, िवमल च पा डेय, अजय
नवािरया, अ पना िम , राकेश कुमार सह की कहािनय म आधुिनक आ थक चेतना का भाव
पिरलि त हुआ है।
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भारत धमिनरपे रा है और यहा ँ के नागिरक को अिभ यि की वतं ता ा त है।
लेिकन जब िकसी धम के नाम पर होने वाले आड बर पर हार होता है तब धम के तथाकिथत
ठेकेदार के हाथ धम कठपुतली बन जाता है। 21व सदी के कहानीकार ने ढ़ीवादी पर पराओं,
धा मक संकीणताओं का खुलकर खंडन िकया है। जाितगत भेद-भाव िव मान है। उ तर कथा,
एक देर शाम, म यह सू मता से य त हुई है। 'मंगल' को 'उ तर कथा' कहानी म मैला ढोने के
िलए िववश िकया जाता है य िक यह उसका पु तैनी काय है। धम के नाम पर संकीणताएं
िव मान है। समाज की िवसंगित है िक आज लड़िकय को अपनी जदगी पर कोई अिधकार नह
है। समाज अपने कानून, फरमान उन पर थोपता जा रहा है। रीित िरवाज की कैद और बंिदश म
पकड़े रखना चाहता है। इस संकुिचत मानिसकता, धा मक जड़ता और सड़ी-गली मा यताओं का
िवरोध लेखक ने िकया है।
कुणाल सह की ‘रोिमयो जिूलयट और अँधेरा’ म असम म या त हसा का िच ण है।
वंदना राग की शहादत और अित मण, अजय नाविरया की 'गंगासागर' आिद कहािनय म यथाथ
िच ण हुआ है। धा मक जिटलताओं, अंधिव वास , आड बर , आ था के नाम पर फैलते
यिभचार का िवरोध आधुिनक चेतना का ही पिरणाम है। िजसका प ट और सू म िच ण
लेखक ारा िकया गया है।
21व सदी म अभूतपूव पिरवतन हुए ह। िव व बाजार और अथ यव था के एकीकरण के
कारण लोबल गावँ की या या हुई है। समाज और राजनीित पर भी इसका असर पड़ा है। ये दो
मह वपूण त व ह जो समय की थित का िनध रण करते ह। सािह य के के म समाज और
राजनीित अिनवाय प से मौजदू है। आज की राजनीित सा ा यवाद िवरोधी है। राजनेता धम को
राजनीित से जोड़ने लगे ह। राजनैितक चेतना को लेकर भी कई कहािनया ँ िलखी गई है। वतमान
यव था, शोषण ट राजनीित, राजनीित म धम का ह त ेप, बढ़ता अपराधीकरण राजनीित
जीवन के मु य िवषय बनकर उभरे ह।
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मधु काकँिरया, किवता, अ पना िम , पिव ा अ वाल, अजय नाविरया, िवमल च द
पा डेय, स यनारायण पटेल, दीपक शम की कहािनय म राजनैितक चेतना िदखाई देती है। वंदना
राग, योित कुमारी, सुषमा मुनी की कहािनय म बदलते सव प का िच ण िमलता है।
अत: हम कह सकते ह िक ‘इ कीसव सदी की कहािनय म आधुिनक चेतना’ का भाव
मा मक प से लेखक ने तुत िकया है। सामािजक, धा मक, आ थक, राजनीितक सभी े म
बदलाव इसी आधुिनक चेतना का पिरणाम है। आज की कहािनया ँ पाठक तथा समाज म नई
चेतना का संचार करती है। चाहे ी देह की आजादी हो या पर पराओं के िवरोध की ेरणा।
इ कीसव सदी के कहानीकार ने नये िवचार, नई धारणाएं, नये चतन और नये ि कोण को
तुत िकया है जो आधुिनक चेतना का पय य ही है।