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हदीकोश www.hindikosh.in ेमचद मानसरोवर भाग 7

प्रेमचिंद मानसरोवरarvindguptatoys.com/arvindgupta/manasarovar7.pdf · ह िंदीकोश प्रेमचिंद मानसरोवर

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  • ह िंदीकोश

    www.hindikosh.in

    पे्रमचिंद मानसरोवर

    भाग 7

    http://www.hindikosh.in/

  • Manasarovar – Part 7

    By Premchand

    य पुस्तक प्रकाशनाधिकार मुक्त ै क्योंकक इसकी प्रकाशनाधिकार अवधि समाप्त ो चुकी ैं।

    This work is in the public domain in India because its term of copyright

    has expired.

    यूनीकोड सिंस्करण: सिंजय खत्री. 2012

    Unicode Edition: Sanjay Khatri, 2012

    आवरण धचत्र: ववककपीडडया (पे्रमचिंद, मानसरोवर झील)

    Cover image: Wikipedia.org (Premchand, Manasarovar Lake).

    ह िंदीकोश

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  • Contents जेल ............................................................................................................. 4 पत्नी से पतत ............................................................................................. 16 शराब की दकूान ......................................................................................... 32 जुलूस ........................................................................................................ 54 मैकू ........................................................................................................... 67 समर यात्रा ................................................................................................. 73 बैंक का हदवाला .......................................................................................... 89 आत्माराम ................................................................................................ 116 दगुाा का मन्ददर ........................................................................................ 125 बड ेघर की बेटी ........................................................................................ 140 पिंच परमेश्वर ............................................................................................ 151 शिंखनाद ................................................................................................... 165 न्ज ाद...................................................................................................... 173 फातत ा .................................................................................................... 185 वैर का अदत ............................................................................................ 211 दो भाई .................................................................................................... 222 म ातीर्ा ................................................................................................... 230 ववस्मतृत ................................................................................................... 243 प्रारब्ि...................................................................................................... 269 सु ाग की साडी ........................................................................................ 282 लोकमत का सम्मान ................................................................................. 294

  • जेल

    मदृलुा मैन्जस्रेट के इजलास से जनाने जेल में वापस आयी, तो उसका मुख प्रसदन र्ा। बरी ो जोने की गुलाबी आशा उसके कपोलों पर चमक र ी र्ी। उसे देखत े ी राजनैततक कैहदयों के एक धगरो ने घेर ललया ओर पूछने लगीिं, ककतने हदन की ुई?

    मदृलुा ने ववजय-गवा से क ा – मैंने तो साफ-साफ क हदया, मैने िरना न ीिं हदया। यों आप जबदास्त ें, जो फैसला चा ें, करें। न मैंने ककसी को रोक, न पकडा, न िक्का हदया, न ककसी से आरजू-लमदनत ी की। कोई गा क मेरे सामने आया ी न ीिं। ॉँ, मै दकूान पर खडी जरूर र्ीिं। व कई वालिंहटयर धगरफ्तार ो गये रे्। जनता जामा ो गयी र्ी मैं भी खडी ो गयी। बस, र्ानेदार ने आ कर मुझ ेपकड ललया।

    क्षमादेवी कुछ कानून जानती र्ीिं। बोलीिं – मैन्जस्रेट पुललस के बयान पर फैसला करेगा। मैं ऐसे ककतने ी मुकदमे देख चुकी।

    मदृलुा ने प्रततवाद ककया – पुललसवालों को मैंने ऐसा रगडा कक व भी याद करेंगे। मैं मुकदत ेकी कारावाई में भाग न लेना चा ती र्ी; लेककन जब मैंने उनके गवा ों सरासर झूठ बोलत ेदेखा, तो मुझसे जब्त न ो सका। मैंने उनसे न्जर करनी शुरू की। मैंने भी इतने हदनों घास न ीिं खोदी ै। र्ोडा-सा कानून जानती ूिं पुललस ने समझा ोगा, य कुछ बालेगी तो ै न ीिं, म जो बयान चा ेंगे, देंगे। जब मैने न्जर शुरू की, तो सब बगलें झााँकने लगे। मैंने तीनों गवा ों को झूठा साबबत कर हदया। उस समय जाने कैसे मुझ ेचोट सूझती गई। मैन्जस्रैट ने र्ानेदार को दो तीन बार फटकार भी बतायी। व मेरे प्रश्नों का ऊल-जलूल जवाब देता र्ा, तो मैन्जस्रेट बोल उठता र्ा- व जो कुछ पूछती ैं, उसका जवाब दो, फजूल की बातें क्यों करत े ो। तब लमयााँ जी का मुाँ जरा–सा तनकल आता र्ा। मैंने सबों का मूाँ बिंद कर हदया। अभी सा ब ने फैसला तो न ीिं सुनाया,

  • लेककन मुझ ेववश्वास ै, बरी ो जाऊाँ गी। मैं जेंल से न ीिं डरती; लेककन बेवकूफ भी न ीिं बनना चा ती। व ााँ मारे मिंत्री जी भी रे् और ब ुत-सी ब नें र्ीिं। सब य ी क ती र्ी, तुम छूट जाओगी।

    मह लाऍ उसे द्वेष-भरी आिंखों से देखती ुई चली गयी। उनमें ककसी की लमयाद साल- भर की र्ीिं, ककसी की छ मास की। उद ोंने उदालत के सामने जबान ी न खोली र्ीिं। उनकी नीतत में य अिमा से कम न र्ा। मदृलु पुललस से न्जर करके उनकी नजरों में धगर गयी र्ी। सजा ो जाने पर उसका व्यव ार क्षम्य ो सकता र्ा, लेककन बरी ो जाने में तो उसका कुछ प्रायन्श्चत ी न र्ा।

    दरू जा एक देवी ने का ा – इस तर तो म लोग भी छूट जात।े में तो य हदखाना ै, नौकरशा ी से में दयाय की कोई आशा ी न ीिं।

    दसूरी मह ला बोली– य तो क्षमा मााँग लेने के बराबर ैं। गयी तो र्ीिं िरना देने, न ीिं दकुान पर जाने का काम ी क्या र्ा। वालिंहटयर धगरफ्तार ुए रे् आपकी बला से। आप व ॉँ क्यों गयी; मगर अब क ती ै, मैं िरना देने गयी ी न ीिं। य क्षमा मााँगना ुआ, साफ!

    तीसरी देवी मु ाँ बनाकर बोली—जेल में र ने के ललए बडा कलेजा चाह ए। उस वक्त तो वा -वा लूटने के ललए आ गयीिं, अब रोना आ र ा ैं ऐसी न्स्त्रयों को तो राष्टीय कामों के नगीच ी न आना चाह ए। आिंदोलन को बदनाम करने से क्या फायदा।

    केवल क्षमादेवी अब तक मदृलुा के पास धचिंता में डूबी खडी र्ीिं। उद ोंने एक उद्दिंड व्याख्यान देने के अपराि में साल- भर की सजा पायी र्ीिं दसूरे न्जले से एक म ीना ुआ य ााँ आयी र्ीिं। अभी लमयाद पूरी ोने में आठ म ीने बाकी र्ें। य िं की पिंद्र कैहदयों में ककसी से उनका हदल न लमलता र्ा। जरा-जरा सी बातों के ललए उनका आपस में झगडना, बनाव-लसिंगर की चीजों के ललये लेडीवाडारों की खुशामदें करना,घरवालों से लमलने के ललए व्यग्रता हदखलाना उसे पिंसद न र्ा।

  • व ी कुत्सा और कनफुसककय जेल के भीतर भी र्ी। व आत्मालभमान, जो उसके ववचार में एक पोललहटकल कैदी में ोना चाह ए, ककसी में भी न र्ा। क्षमा उन सबों से दरू र ती र्ी। उसके जातत-पे्रम का वारापार न र्ा। इस रिंग में पगी ुई र्ी; पर अदय देववय िं उसे घमिंडडन समझती र्ीिं और उपेक्षा का जवाब उपेक्षा से देती र्ीिं मदृलुा को ह रासत में आये आट हदन ुए रे्। इतने ी हदनों में क्षामा को उससे ववशेष स्ने ो गया र्ा। मदृलु में व सिंकीणात और ईष्याा न र्ी, न तनददा करने की आदत, न श्ृिंगार की िुन, न भद्दी हदल्लगी का शौक। उसके ृददय में करूणी र्ी, सेवा का भाव र्ा : देश का अनुराग र्ा क्षमा न सोचा र्ा। इसके सार् छ म ीने आनदद से कट जािंऍगे; लेककन दभुााग्य य ााँ भी उसके पीछे पडा ुआ र्ा। कल मदृृल य ााँ से चली जाएगी। कफर अकेली ो जाएगी। य ॉँ ऐसा कौन ै, न्जसके सार् घडी भर बैठकर अपना द:ुख–ददा सुनयेगी, देश चचाा करेगी; य तो सभी के लमजाज आसमान पर ैं।

    मदृलुा ने पूछा— तुम् ें तो अभी आठ म ीने बाकी ै, ब न!

    क्षमा ने सरत के सार् क ा— ककसी-न- ककसी तर कट ी जाएाँगे ब न ! पर तुम् ारी याद बराबर सताती र ेगी। इसी एक सप्ता के अददर तुमने मुझ ेपर न जाने से क्या जाद ूकर हदया। जब से तुम आयी ो, मुझ ेजेल जेल न मालूम ोता र्ा। कभी-कभी लमलती र ना।

    मदृलुा ने देखा, क्षमा की आिंखे डबडबायी ुई र्ीिं। ढाढसा देती ुई बोली- जरूर लमलूिंगी दीदी ! मुझसे तो खुद न र ा जाएगा। भान को भी लाऊाँ गीिं। क ूाँगी— चल, तरेी मोसी आयी ै, तुझ ेबुला र ी ै। दौडा ुआ आयेगा। अब तुमसे आज क ती ूाँ ब न, मुझ ेय ााँ ककसी की याद र्ी, तो भान की। बेचरा - रोया करता ोगा। मुझ ेदेखकर रूठ जायेगा। तुम का ााँ चलीिं गयी ? मुझ ेछोडकर क्यों चली गयी ? जाओ, मैं। तुमसे न ीिं बोलता, तुम मेरे घर से तनकल जाओ। बडा शैतान ै ब न! छन- भर तनचला न ीिं बैठता, सवेरे उठत े ी गाता ै—‘ झदना ऊाँ ता लये अमाला’ ‘छोलाज का मन्ददर देल में ै।’ जब एक झिंडी कदिे पर रखकर क ता

  • ै—‘ताली-छलाब पानी लाम ै’ तो देखत े ी बनता ै।बाप को तो क ता ै—तुम गुलाम ो। व एक अाँगरेजी कम्पनी में ै, बार-बार इस्तीफा देने का ववचार करके र जात े ैं। लेककन गुजर –बसर के ललए कोई उद्यम करना ी पडगेा । कैसे छोड।े व तो छोड बैठे ोत।े तुमसे सच क कती ूाँ, गुलामी से उद ें घणृा ै, लेककन में ी समझती र ती ूाँ बेचारे कैसे दफ्तर जात े ोंगे, कैसे भान को सॅभालत े ोंगे। सास जी के पास तो र ता ी न ीिं। व बेचारी बुढी, उसके सार् का ॉँ-क दौडें! चा ती ै कक मेरी गोद में दबक कर बैठा र े। और भान को गेद से धचढ ै। अम्मााँ मुझ पर ब ुत बबगडेंती, बस य ी डर लग र ा ै। मुझ ेदेखने एक बार भी न ीिं आयें। कल अदालत में बाबू जी मुझसे क त ेरे्, तुमसे ब ुत खफा ै। तीन हदन तक तो दाना-पानी छोड ेर ीिं। इस छोकरी ने कुल-मरजाद डूबा दी, खानदान में दाग लगा हदया, कलमुाँ ी, न जाने क्या-क्या बकती र ीिं मैं उनकी बातो को बुरा न ीिं मानती। पुराने जमाने की ैं उद ें। कोई चा ै कक आकर इन लोगों में लमल जाएाँ, तो उसका अदयय ै। चल कार मनाना पडगेा।बडी लमदनतों से मानेंगी। कल ी कर्ा ोगी, देख लेना। ब्राह्राण खायेंगे। बबरादरी जमा ोगी। जेल प्रायन्श्चत तो करना ी पडगा। तुम मारे घर दो-चार हदन र कर तब ब न ! मैं आकर तुम् ें ले जाऊाँ गी।

    क्षमा आनदद के इन प्रसिंगो से विंधचत ै। वविवा ै, अकेली ै। जललयानवाला बाग में उसका सवास्व लुट चुका ै, पतत और पुत्र दोनों ी की आ ुतत जा चुकी ै। अब कोई ऐसा न ीिं, न्जसे व अपना क सके। अभी उसका ृददय इतना ववशाल न ीिं ुआ ै कक प्राणी- मात्र को अपना समझ सके। इन दस बरसों से उसका व्यधर्त ृददय जातत सेवा में िैया और शािंतत खोज र ा ैं न्जन कारणें ने उसके बसे ुए घर को उजाड हदया, उसकी गोद सूनी कर दी, उन कारणें का अदत करने— उनको लमटाने-में व जी-जान से लगी ुई र्ीिं। बड-ेसे-बड ेबललदान तो व प ले ी कर चुकी र्ी। अब अपने ृददय के लसवाय उसके पास ोम करने को और क्या र गया र्ा? औरों के ललए जातत-सेवा सभ्यता का एक सिंस्कार ो, या यशोपाजान का एक सािन; क्षमा के ललए तो य तपस्या र्ी और व नारीत्व की सारी शन्क्त और श्द्धा के सार् उससी सािना में लगी ुई र्ी।

  • लेककन आकाश में उडने वाले पक्षी को भी तो अपने बसेरे की याद आती ी ै क्षमा के ललए व आश्य क ााँ र्ा? य ी व अवसर रे्, जब क्षमा भी आत्म-समवेदना के ललए आकुल ो जाती र्ी। य ॉँ मदृलु को पाकर व अपने को िदय मान र ी र्ी; पर य छााँ भी इतनी जल्दी ट गयी !

    क्षमा ने व्यधर्त किं ठ से क ा – य ााँ से जाकर भूल जाओगी मदृलुा। तुम् ारे ललए तो रेलगाडी का पररचय ै और मेरे ललए तुम् ारे वादे उसी पररचय के वादे ैं। कभी भेंट ो जाएगी तो या तो प चानोगी ी न ीिं, या जरा मुस्कराकर नमस्त ेकरती ुई अपनी रा चली जाओगी। य ी दतुनया का दस्तूर ै। अपने रोने से छुट्टी ी न ीिं लमलती, दसूरों के ललए कोई क्योंकर राये। तुम् ारे ललए तो में कुछ न ीिं र्ी, मेरे ललए तुम ब ुत अच्छी र्ी। मगर अपने वप्रयजनों में बैठकर कभी-कभी इस अभाधगनी को जरूर याद कर ललया करना। लभखारी के ललए चुटकी भर आटा ी ब ुत ै। दसूरे हदन मैन्जस्रेट ने फैसला सुना हदया। मदृलुा बरी ो गयी। सिंध्या समय व सब ब नों से गले लमलकर, रोकर-रुलाकर चली गयी, मानो मैके से ववदा ुई ो।

    2

    तीन मह ने बीत गये: पर मदृलुा एक बार भी न आयी। और कैहदयों से लमलनेवाले आत ेर त ेरे् ककसी-ककसी के घर से खाने-पीने की चीजें और सोगात ेआ जाती र्ी; लेककन क्षमा का पूछने वाला कौन बैठा र्ा? र मह ने के अन्दतम रवववार को प्रात: काल से ी मदृलु की बाट जो ने लगती। जब मुलाकात का समय तनकल जाता, तो जरा देर रोकर मन को समझा लेती—जमाने का य ी दस्तूर ै

  • एक हदन शाम को क्षमा सिंध्या करके उठी र्ी कक देखा, मदृलुा सामने चली आ र ी ै। न व रूप–रिंग ै, न व कािंतत। दौडकर उसके गले से ललपट गयी ओर रोती ुई बोली- य तरेी क्या दशा ै मदृलुा ! सूरत ी बदल गयी। क्या, बीमार ै क्या?

    मदृलुा की आाँखों से आाँसुओिं की झाडी लगी र्ी। बोली– बीमार तो न ीिं ूाँ ब न; ववपन्त्त से बब िंिी ुई ूाँ। तुम मुझ ेखूब कोस र ी ोगी। उन सारी तनठुराइयों का प्रायन्श्चत करने आयी ूाँ। और सब धचिंताओिं से मुक्त ोकर आया ूाँ।

    क्षमा कााँप उठी। अिंतस्तल की ग राइयों से एक ल र–सी उठती ुई जान पडी, न्जसमें उनका अपना अिंतीिंत जीवन टूटी ुई नौकाओिं की भािंतत उतराता ुआ हदखायी हदया। रूाँ िे ुए किं ठ से बोली – कुशल तो ै ब न, इतनी जल्दी तुम य ााँ कफर क्यों आ गयीिं ? अभी तो तीन म ीने भी न ीिं ुए।

    मदृलुा मुस्करायी; पर उसकी मसु्करा ट में रुदन तछपा ुआ र्ा। कफर बोली – अब सब कुशल ै। ब न, सदा के ललए कुशल ै। कोई धचिंता ी न ीिं र ी।अब य ॉँ जीवन पयादत र ने को तैयार ूाँ। तुम् ारे स्ने और कृपा का मूल्य अब समझ र ी ूाँ।

    उसने एक ठिंडी सााँस ली और सजल नेत्रों से बोली- तुम् ें बा र की खबरे क्या लमली ोंगी! परसों श रों मे गोललयों चली। दे ातों में आजकल सिंगीनों की नोक पर लगान वसूल ककया जा र ा ै। ककसानों के पास रूपये ैं न ीिं, दें तो क ााँ से दें। अनाज का भाव हदन-हदन धगरता जाता ै। पौने दो रूपये में मन भर गे ूाँ आता ै। मेरी उम्र ी अभी क्या ै, अम्मााँ जी भी क ती ै कक अनाज इतना सस्ता कभी न ीिं र्ा। खेत की उपज से बीजों तक के दाम न ीिं आत।े मे नत और लसिंचाई इसके ऊपर। गरीब ककसान लगान क ााँ से दें ? उस पर सरकार का ुक्म ै कक लगान कडाई के सार् वसूल ककया जाए। ककसान इस पर भी राजी ैं कक मारी जमा–जर्ा नीलाम कर लो, घर कुका कर लो, अपन जमीन ले लो; मगर य ााँ तो अधिकाररयों को अपनी कारगुजारी हदखाने की कफक्र पडी ुई ै।

  • व चा े प्रजा को चक्की में पीस ी क्यों न डालें; सरकार उद ें मना न करेगी। मैंने सुना ै कक व उलटे और शा देती ै। सरकार को तो अपने कर से मतलब ैं प्रजा मरे या न्जये, उससे कोई प्रयोजन न ीिं। अकसर जमीिंनदारों ने तो लगान वसूल करने से इदकार कर हदया ै। अब पुललस उनकी मदद पर भेजी गयी ै। भैरोगिंज का सारा इलाका लूटा जा र ा ै। मरता क्या न करता, ककसान भी घर-बार छोड-छोडकर भागे जा र े ैं। एक ककसान के घर में घूसकर कई कािंस्टेबलोंने उसे पीटना शुरू ककया। बेचारा बैठा मार खाता र ा। उसकी स्त्री से न र ा गया। शामत की मारी कािंस्टेबलों का कुवचन क ने लगी। बस, एक लसपा ी ने उसे निंगा कर हदया। क्या क ूाँ ब न, क त ेशमा आती ै। मारा ी भाई इतनी तनदायता करें , इससे ज्यादा द:ुख और ल्ज्जा की और क्या बात ोगी ? ककसान से जब्त न ुआ। कभी पेट भर गरीबों को खाने को तो लमलता ी न ीिं, इस पर इतना कहठर पररश्म, न दे में बल ै, न हदल में ह म्मत, पर मनुष्य का ृददय ी तो ठ रा। बेचारा बेदम पडा ुआ र्ा। स्त्री का धचल्लाना स ुनकर उठ बैठा और उस दषु्ठ लसपा ी को िक्का देकर जमीन पर धगरा हदया। कफर दोनों में कुश्तम-कुश्ती ोने लगी। एक ककसान ककसी पलुलस के आदमी के सार् इतनी बेअदबी करे, इसे भला व क ीिं बरदाश्त कर सकती ै। सब कािंस्टेबलों ने गरीब को इतना मारा कक व मर गया।

    क्षमा ने क ा – ग ॉँव के और लोग तमाश देखत ेर े ोंगे?

    मदृलुा तीव्र किं ठ से बोली— ब न , प्रजा की तो र तर से मरन ैं अगर दस- बीस आदमी जमा ो जाते, तो पुललस क ती, मसे लडने आये ैं। डड ेचलाने शुरू करती और अगर कोई आदमी क्रोि में आकर एकाि किं कड फें क देता, तो गोललयााँ चला देती। दस–बीस आदमी भुन जात।ेइसललए लोग जमा न ीिं ोत;े लेककन जब व ककसान मर गया तो गााँव वालो को तैश आ गया। लाहठयााँ ले–लेकर दौड पड ेऔर कािंस्टेबलों को घेर ललया। सम्भव ै दो-चार आदलमयों ने लाहठय ॉँ चलायी भी ो। कािंस्टेबलों ने गोललयााँ चलानी शुरू की। दो-तीन लसपाह यों को ल्की चोटे आयी। उसके बदले में बार आदलमयों मी जानें ले ली

  • गयी और ककतनों ी के अिंगभिंग कर हदये गयें इन छोटे-छोटे आदलमयों को इसललए तो इतने अधिकार हदये गये ैं कक उनका दरुुपयोग करें। आिे ग ॉँव का कत्लेआम करके पुललस ववजय के नगाड ेबजाती ुई लौट गयी। ग िंव वालो की फररयाद कौन सुनता ! गरीब ै, अपिंग ै, न्जतने आदलमयों को चा ो, मार डालो। अदालत ओर ाककमों से तो उद ोने दयाय की आशा करना ी छोड हदया। आखखर सरकार ी ने तो कािंस्टेबलों को य मुह म सर करने के ललए भेजा र्ा। व ककसानों की फररयाद क्यों सुनने लगी। मगर आदमी का हदल फररयाद करने ककये बगैर न ीिं मानता। गािंववालों ने अपने श रों के भाइयों से फररयाद करने का तनश्चय ककया। जनता और कुछ न ीिं कर सकती, मददी तो करती ै। द:ुख-कर्ा सुनकर आिंसू तो ब ाती ै। दखुखयारों को मददी के आिंसू भी कम प्यारे न ीिं ोत।े अगर आस-पास के गाँवो के लोग जमा ोकर उनके सार् रो लेत ेतो गरीबों के आाँस-ू पूाँछ जात;े ककदतु पुललस ने उस ग ॉँव की नाकेबिंदी कर रखी र्ी, चारो सीमाओिं पर प रे बबठा हदये गये रे्। य घाव पर नमक र्ा मारत ेभी ो और रोने भी न ीिं देत।े अखखर लोगों ने लाशे उठायीिं और श र वालों को अपनी ववपन्त्त की कर्ा सुनाने चले। इस िंगामे की खबर प ले ी श र में प ुाँच गयी र्ी। इन लाशों को देखकर जनता उत्तने्जत ो गयी और जब पुललस के अध्यक्ष ने इन लाशों का जुलूस तनकालने की अनुमतत न दी, तो लोग और भी झल्लायें। ब ुत बडा जमाव ो गया। मेरे बाबूजी भी इसी दल में रे्। और मैंने उद ें रोका-मत जाओ, आज का रिंग अच्छा न ीिं ै। तो क ने लगे – मैं ककसी से लडने र्ोड े ी जाता ूाँ। जब सरकार की आज्ञा के ववरूद्ध जनाजा चला तो पचास जार आदमी सार् रे्। उिर प ॉँच सौ सशस्त्र पुललस रास्ता रोके खडी र्ी- सवार, प्यादे, सारजट – पूरी फौज र्ी। म तन त्र्ों के सामने इन नामदो को तलवारे चमकात ेऔर झिंकारत ेशमा भी न ीिं आती ! जब बार-बार पुललस की िमककयों पर भी लोग न भागे, तो गोललय ॉँ चलाने का ुक्म ो गया। घिंटे- भर बराबर फैर ोत ेर ै, घिंट-भर तक ! ककतने मरे, ककतने घायल ुए, कौन जानता ै। मेरा मकान सडक पर ै। मैं छज्जे पर खडी, दोनों ार्ों से हदल, र्ामे, कािंपती र्ी। प ली बाढ चलत े ी भगदड पड गयी। जारों आदमी बद वास भागे चले आ र े रे्। ब न ! व दृश्य अभी तक आखों के सामने ै। ककतना भीषण, ककतना रोमािंचकारी और

  • ककतना लज्जास्पद ! ऐसा जान पडता र्ा कक लागों के प्राण ऑखों से तनकल पडत े ै; मगर इन भागने वालो की पीछे वीर व्रतिाररयों का दल र्ा, जो पवात की भािंतत अटल खडा छाततयों कपर गोललयााँ खा र ा र्ा और पीछे टने का नाम न लेता र्ा बददकूों की आवाजें साफ सुनायी देती र्ीिं और रे िायाँ-िायाँ के बाद जारों गलों से जय की ग री गगन-भेदी ध्वतन तनकलती र्ी। उस ध्वतन में ककतनी उत्तेजना र्ी ! ककतना आकषाण ! ककतना उदमाद ! बस, य ी जी चा ता र्ा कक जा कर गोललयो के सामने खडी ो जाऊाँ ॅंसत- ॅंसते मर जाऊाँ । उस समय ऐसा भान ोता र्ा कक मर जाना कोई खेल ै। अम्म िं जी कमरे में भान को ललए मुझ ेबार-बार भीतर बुला र ी र्ीिं। जब मैं न गयी, तो व भान को ललए ुए छज्जे पर आ गयी। उसी वक्त दस–बार आदमी एक स्टेचर पर ह्रदयेश की लाश ललए ुए द्वार पर आये। अम्म िं की उन पर नजर पडी। समझ गयी। मुझ ेतो सकता-सा ो गया। अम्मााँ ने जाकर एक बार बेटे का देखा, उसे छाती से लगाया, चूमा, आलशवााद हदया और उदमत्त दशा में चौरास्त ेकी तरफ चली, ज ािं से अब भी िािंय और जय की ध्वतन बारी –बारी से आ र ी र्ी। मैं तबुवद्ध- सी खडी कभी स्वामी की लाश को देखती र्ी, कभी अम्मााँ को। न कुछ बोली, न जग से ह ली, न रोयी, न घबरायी।मुसमें जेसे स्पिंदन ी न र्ा।चेतना जेसे लुप्त ो गयी ो।

    क्षमा—तो क्या अम्मााँ भी गोललयों के स्र्ान पर प ुिंच गयी?

    मदृलुा – ॉँ, य ी तो ववधचत्रता ै ब न ! बिंदकू की आवाजें सुनकर कानों पर ार् रख लेती र्ीिं, खून देखकर मूतछात ो ताजी र्ीिं। व ी अम्मािं वीर सत्याग्रह यों का सफों को चीरती ुई सामने खडी ो गयी और एक ी क्षण में उनकी लाश भी जमीन पर धगर पडी। उनके धगरत े ी योद्धाओिं का िेया टूट गया। व्रत का बिंिन टूट गया। सभी के लसरों पर खून –सा सवार ो गया। तन त्रे् रे्, अशक्त रे्, पर र एक अपने अिंदर अपार शन्क्त का अनुभव कर र ा र्ा पुललस पर िावा कर हदया। लसपाह यों ने इस बाढ को आते- देखा तो ोश जात ेर ै। जानें लेकर भागे, मगर भागत े ुए भी गोललयााँ चलात ेजात ेरे्। भान छज्जे पर खडा र्ा, न जाने

  • ककिर से एक गोली आकर उसकी छाती में लगी। मेरा लाल व ीिं पर धगर पडा , सािंस तक न ली; मगर मेरी आिंखों में अब भी आिंसू न रे्। मेने प्यारे भान को गोद मे उठा ललया। उसकी छाती से खून से के फव्वारे तनकल र े रे्। मैंने उसे जो दिू वपलाया र्ा, उसे व खून से अदा कर र ा र्ा। उसके खून से तर कपड ेप ने ुए मुझ ेव नशा ो र ा र्ा जो शायद उसके वववा में गुलाल से तर रेशमी कपड ेप नकर भी न ोता। लडकपन, जवानी और मौत ! तीनों मिंन्जलें एक ी ह चकी में तमाम ो गयी। मैने बेटे को बाप की गोद में लेटा हदया। इतने में कई स्विंय अम्मािं जी को भी लाये। मालूम ोता र्ा, लेटी ुई मुस्करा र ी ै। मूझ ेतो रोकती र ती र्ीिं ओर खुद इस तर जाकर आग में कूद पडी, मानो व स्वगा का मागा ो ! बेटे ी के ललए जीती र्ीिं, बेटे को अकेला कैसे छोडतीिं।

    जब नदी के ककनारे तीनों लाशें एक ी धचता में रखी गयीिं, तब मेरा सकता टुटा, ोश आया। एक बार जी में आया धचता में जा बैठू, सारा कुनबा एक सार् ईश्वर के दरबार में जा प ुिंच।े लेककन कफर सोचा–तूने अभी ऐसा कौन काम ककया ै, न्जसका इतना ऊाँ चा पुरस्कार लमले? ब न धचता का लपटों में मुझ ेऐसा मालुम ो र ा र्ा कक अम्म जी सचमुच भान को गोद में ललए बैठी मुस्करा र ीिं ै और स्वामी जी खड ेमुझसे क र े ैं, तुम जाओ और तनन्श्चत ोकर काम करो। मुझ पर ककतना तजे र्ा। रक्त और अन्ग्न ी में तो देवता बसेत ैं।

    मैंने लसर उठाकर देखा। नदी के ककनारे न जाने ककतनी धचत ॉँए जल र ी र्ीिं। दरू से व धचतवली ऐसी मालूम ोती र्ी, मानो देवता ने भारत का भाग्य गढने के ललए भहट्टय ॉँ जलायीिं ों।

    जब धचतािंए राख ो गयी; तो म लोग लोटे; लेककन उस घर मे जाने की ह म्मत न पडी। मेरे ललए अब व घर, घर न र्ा! मेरा घर तो अब य ै, ज ााँ बैठी ूिं, या कफर व ी धचता। मैंने घर का द्वार भी न खोला। मह ला आश्म में चली गयी। कल की गोललयों में कािंगे्रस–कमेटी का सफया ो गया र्ा। य सिंस्र्ा

  • बागी बना डाली गयी र्ी। उसके दफ्तर पर पुललस ने छापा मारा और उस पर अपना ताला डाल हदया। मह ला आश्म पी भी मला ुआ। उस पर अपना ताला डाल हदया। मने एक वकृ्ष की छ ॉँ में अपना नया दफ्तर बनाया और स्वच्छिंदता के सार् काम करत ेर े। य दीवारें में कैद न करी सकती र्ीिं। म भी वायु के समान मुक्त रे्।

    सिंध्या समय मने एक जुलूस तनकालने का फैसला ककया। कल के रक्तपात की स्मतृत, षा और मुबारकबाद में जुलूस तनकालना आवयश्क र्ा। लोग क त े ैं, जुलूस तनकालने से क्या ोता ै? इससे य लसद्ध ोता ै कक मजीववत ैं, अटल ैं और मैदान से टे न ीिं ै। में अपने ार न मानने वाले आत्मलभमान का प्रमाण देना र्ा। में य हदखाना र्ा कक, म गोललयों और अत्याचार से भयभीत ोकर अपने लक्ष्य से टने वाले न ीिं और म उस व्यवस्र्ा का अदत करके र ेंगे, न्जसका आिार स्वार्ा-परता और खून पर ै। उिर पुललस ने भी जुलूस को रोककर अपनी शान्क्त ओर बबजय का प्रमाण देना आवश्यक समझा। शायद जनता को िोखा ो गया ो कक कल की दघुटाना ने नौकरशा ी का नैततक ज्ञान जाग्रत कर हदया ै इस िोखे को दरू करना उसने अपना कत्ताव्य समझा। व य हदखा देना चा ती र्ी कक म तुम् ारे ऊपर शासन करेंगे। तुम् ारी खुशी या नाराजी की में परवा न ीिं ैं। जुलूस तनकालने की मना ी ो गयी। जनता को चतेावनी दी गई गयी कक खबरदार जुलूस में न आना , न ीिं दगुातत ोगी। इसका जनता ने व जवाब हदया, न्जसने अधिकारयों की आिंखे खोल दी ोगी। सिंध्या समय पचास जार आदमी जमा ो गये। आज का नेततृ्व मुझ ेसौंपा गया र्ा। में अपने ह्रदय में एक ववधचत्र बल उत्सा का अनुभव कर र ी र्ी। एक अबला स्त्री न्जसे सिंसार का कुछ ज्ञान न ीिं, न्जसने कभी घर से बा र प व न ीिं तनकाला, आज अपने प्यारों के उत्सगा की बदौलत उस म ान ्पद पर प ुाँच गयी र्ी, जो बड-ेबड ेअफसरों को भी, बड-ेसे-बड ेम ाराजा को भी प्राप्त न ीिं- में इस समय जनता के ह्रदय पर राज कर र ी र्ी। पुललस अधिकाररयों की इसीललए गुलामी करती ै कक उसे वेतन लमलता ै। पेट की गुलामी उससे सब कुछ करवा लेती ै। म ाराजा का ुक्म लोग इसललए मानत े ै कक उससे उपकार की आशा

  • या ातन का भय ोता ै। य अपार जन-समु क्या मुझसे ककसी फायदे की आशा रखता र्ा, उसे मुझसे ककसी ातन का भय र्ा? कदावप न ीिं। कफर भी व कडे-से कड े ुक्म को मानने के ललए तैयार र्ा इसललए कक जनता मेर बललदानों का आदर करती र्ीिं, इसललए कक उनके हदलों में स्वािीनता की जो तडप र्ी, गुलामी के जिंजीरों को तोड देने की जो बेचैनी र्ी मै उस तडप और बैचैनी की सजीव मूतता समझी जा र ी र्ीिं तनन्श्चत समय पर जुलूस ने प्रस्र्ान ककया। उसी वक्त पुललस ने मेरी धगरफ्तारी का वारिंट हदखाया। वारिंट देखत े ी तुम् ारी याद आयी। अब मुझ ेतुम् ारी जरूरत ै। उस वक्त तुम मेरी मददी की भूखी र्ीिं। अब मैं स ानुभूतत की लभक्षा मािंग र ी ूिं। मगर मुझमें अब लेशमात्र भी दबुालता न ीिं ैं मैं धचिंताओिं से मुक्त ूिं। मैन्जस्रेट जो कठोर-से कठोर दिंड प्रदान करे उसका स्वागत करूिं गी। अब मैं पुललस के ककसी आक्षेप का असत्य आरोपण का प्रततपाद न करूिं गी; क्योंकक मैं जानती ूाँ, मैं जेल के बा र र कर जो कुछ कर सकती ूिं, जेल के अददर र कर उससे क ीिं ज्यादा कर सकती ूाँ। जेल के बा र भूलों की सम्भावना ै, ब कने का भय ै, समझौत ेका प्रलोभन ै, स्पिाा की धचदता ै, जेल सम्मान और भन्क्त की एक रेखा ै, न्जसके भीतर शैतान कदम न ीिं रख सकता। मैदान में जलता ुआ अलाव वायु मे अपनी उष्णता को खो देता ै; लेककन इिंन्जन में बदद ोकर व ी आग सिंचालक शन्क्त का अखिंड भिंडार बन जाती ै।

    अदय देववयााँ भी आ प ुिंचीिं और मदृलुा सबसे गले लमलने लगी। कफर ‘भारत माता की जय’ की ध्वतन जेल की दीवारों को चीरती ुई आकाश में जा प ुाँची।

    ***

  • पत्नी से पति

    लमस्टर सेठ को सभी ह ददसु्तानी चीजों से नफरत र्ी ओर उनकी सुददरी पत्नी गोदावरी को सभी ववदेशी चीजों से धचढ ! मगर िैया ओर ववनय भारत की देववयों का आभूषण ै गोदावरी हदल पर जार जब्र करके पतत की लायी ुई ववदेशी चीजों का व्यव ार करती र्ी, ालािंकक भीतर ी भीतर उसका दय अपनी परवशता पर रोता र्ा। व न्जस वक्त अपने छज्जे पर खडी ोकर सडक पर तनगा दौडाती ओर ककतनी ी मह लाओिं को खद्दर की साडडयों प ने गवा से लसर उठात ेचलत ेदेख्रती, तो उसके भीतर की वेदना एक ठिंडी आ बनकर तनकल जाती र्ी। उसे ऐसा मालूम ोता र्ा कक मुझसे ज्यादा बदनसीब औरत सिंसार में न ीिं ैं मै अपने स्वदेश वालसिंयों की इतनी भी सेवा न ीिं कर सकती? शाम को लमस्टर सेठ के आग्र करने पर व क ीिं मनोरिंजन या सैर के ललए जाती, तो ववदेशी कपड ेप ने ुए तनकलत ेशमा से उसकी गदान झुक जाती र्ी। व पत्रों मे मह लाओिं के जोश-भरे व्याख्यान पढती तो उसकी आिंखें जगमगा उठती, र्ोडी देर के ललए व भूल जाती कक मैं य ािं बदिनों मे जकडी ह़ई ूिं।

    ोली का हदन र्ा, आठ बजे रात का समय । स्वदेश के नाम पर बबके ुए अनुराधगयों का जुलूस आकर लमस्टर सेठ के मकान के सामने रूका ओर उसी चौड ेमैदान में ववलायती कपडों ी ोललयािं लगाने की तैयाररयािं ोने ल्रगीिं। गोदावरी अपने कमरे में खखडकी पर खडी य समारो देखती र्ी ओर हदल मसोसकर र जाती र्ी एक व ै, जो यों खुश-खुश, आजादी के नशे-मतवाले, गवा से लसर उठाये ोली लगा र े ैं, और एक में ूिं कक वपिंजड ेमें बदद पक्षी की तर फडफडा र ी ूिं । इन तीललयों को केसे तोड दूिं? उसने कमरे मे तनगा दौडायी । सभी चीजें ववदेशी र्ीिं । स्वेदेशी का एक सूत भी न र्ा य ी चीजें व ॉँ जलायी जा र ी र्ी ओर व ी चीजें य ॉँ उसके ह्रदय में सिंधचत ग्लातन की भािंतत सददकुों में रखी ुई र्ीिं। उसके जी में एक ल र उठ र ी र्ी कक इन चीजों को उठाकर उसी ोली में डाल दे, उसकी सारी ग्लातन और दबुालता जलकर भस्म ो जाय।

  • मगर पतत को अप्रसदनता के भय ने उसका ार् पकड ललया । स सा लम० सेठ के आकर अददर क ा- जरा इन लसरफरों को देखों, कपड ेजला र े ैं। य पागलपन, उदमाद और ववद्रो न ीिं तो और क्या ै। ककसी ने सच क ा ै, ह दसु्तातनयों के न अक्ल आयी ै न आयेगी । कोई कल भी तो सीिी न ीिं ।

    गोदावरी ने क ा – तुम भी ह िंदसु्तानी ो।

    सेठ ने गमा ोकर क ा- , लेककन मुझ ेइसका मेशा खेद र ता ै कक ऐसे अभागे देश में क्यों पैदा ुआ। मैं न ीिं चा ता कक कोई मुझे ह ददसु्तानी क े या समझ े। कम- से–कम मैंने आचार –व्यव ार वेश-भुषा, रीतत-नीतत, कमा – वचन में कोई ऐसी बात न ीिं रखी, न्जससे में कोई ह ददसु्तानी ोने का कलिंक लगाए । पूतछए, जब में आठ आने गज में बहढया कपडा लमलता ै, तो म क्यों मोटा टाट खरीदें । इस ववषय में र एक को पूरी स्वािीनता ोनी चाह ए । न जाने क्यों गवनामेंट ने इन दषु्टों को य ािं। जमा ोने हदया । अगर मेरे ार् में अधिकार ोता, तो सबों को ज दनुम रसीद कर देता । तब आटे- दाल का भाव मालूम ोता ।

    गोदावरी ने अपने शब्द मे तीक्ष्ण ततरस्कार भर के क ा—तुम् ें अपने भइयों का जरा ख्याल न ीिं आता ? भारत के लसवा और भी कोई देश ै, न्जस पर ककसी दसूरी जातत के शासन ो? छोटे-छोटे राष्र भी ककसी दसूरी जातत के गुलाम बनकर न ीिं र ना चा त े। क्या एक ह ददसु्तानी के ललए य लज्जा की बात न ीिं ै कक व अपने ी भाइयों के सार् अदयाय करे ?

    सेठ ने भों ैं चढाकर क ा- मैं इद े अपना भाई न ीिं समझता।

    गोदावरी- आखखर तुम् ें सरकार जो वेतन देती ै, व इद ीिं की जेब से तो आता ैं !

  • सेठ- मुझ ेइससे कोई मतलब न ीिं कक मेरा वेतन ककसकी जेब से आता ै मुझ ेन्जसके ार् से लमलता ै, व मेरा स्वामी ै, न जाने इन दषु्टों को क्या सनक सवार ुई ै क त े ैं, भारत आध्यान्त्मक देश ै। क्या अध्यामत्म का य ी आशय ै कक परमात्मा के वविानों का ववरोि ककया जाय? जब य मालूम ै कक परमात्मा की इच्छा के ववरूद्ध एक पत्ती भी न ीिं ह ल सकती, तो य मुमककन ै कक य इतना बडा देश परामात्मा की मजी बगैर अिंगरेजों के अिीन ो? क्यों इन दीवानों को इतनी अक्ल न ीिं आती कक जब तक परमात्मा की इच्छा न ोगी, कोई अिंग्ररेजों का बाल भी ब का न कर सकेगा !

    गोदावरी - तो कफर क्यों नौकरी करत े ो? परमात्मा की इच्छा ोगी, तो आप ी आप भोजन लमल जाएगा बीमार ोत े ो , तो क्यों दौड ेवैद्य के घर जात े ो? पररमात्मा उद ीिं की मदद करता ै, जो अपनी मदद आप करत े ै।

    सेठ—बेशक करता ै; लेककन अपने घर में आग लगा देना, घर की चीजों को जला देना, ऐसे काम ै, न्जद ें परमात्मा कभी पसिंद न ीिं कर सकता।

    गोदावरी –तो य ााँ के लोगों का चुपचाप बैठे र ना चाह ए?

    सेठ- न ीिं, रोना चाह ए । इस तर रोना चाह ए, जैसे बच्च ेमाता के दिू के ललए रोत े ै।

    स सा ोली जली, आग की लशखाएिं आसमान से बातें करने लगीिं, मानों स्वािनीता की देवी अन्ग्न- बस्त्र िारण ककए ुए आकाश के देवताओिं से गले लमलने जा र ी ो ।

    दीनानार् ने खखडकी बदद कर दी, उनके ललए य दृश्य भी असह्य र्ा।

    गोदावरी इस तर खडी र ी, जैसे कोई गाय कसाई के खूिंटे पर खडी ो । उसी वक्त ककसी के गाने का आवाज आयी-

  • ‘वतन की देखखए तकदरी कब बदलती ैं’

    गोदावरी के ववषाद से भरे ुए ह्रदय में एक चोट लगी । उसने खखडकी खोल दी और नीच ेकी तरफ झ ॉँका । ोली अब भी जल र ी र्ी और एक अिंिा लडका अपनी खाँजरी बजाकर गा र ा र्ा-

    ‘वतन की देखखए तकदीर कब बदलती ै।’

    व खखडकी के सामने प ुिंचा तो गोदावरी पे पुकारा- ओ अदिे ! खडा र ा ।

    अदिा खडा ो गया। गोदवारी ने सददकु खोला, पर उसेमें उसे एक पैसा लमला । नोट ओर रूपये रे्, मगर अदिे फकीर को नोट या रूपये देने का सवाल ी न र्ा पैसे अगर दो –चार लमल जात,े तो इस वक्त व जरूर दे देती । पर व ािं एक ी पैसा र्ा, व भी इतना तघसा ुआ कक क ार बाजार से लौटा लाया र्ा । ककसी दकूानदार ने न ललया र्ा । अदिे को व पैसा देत े ुए गोदावरी को शमा आ र ी र्ी। व जरा देर तक पैसे को ार् मे ललए सिंशय में खडी र ी । तब अदिे को बुलाया और पैसा दे हदया ।

    अदिे ने क ा—माता जी कुछ खाने को दीन्जए। आज हदन भर से कुछ न ीिं खाया ।

    गोदावरी—हदन भर म ॉँगता ै, तब भी तुझ ेखाने को न ीिं लमलता?

    अदिा- क्या करूिं माता, कोई खाने को न ीिं देता ।

    गोदावरी- इस पैसे का चवैना लेकर खा ले ।

    अदिा- खा लूिंगा माता जी, भगवान ्आपको खुशी रखे । अब य ीिं सोता ूाँ।

    2

  • दसूरे हदन प्रात: काल क ॉँगे्रस की तरफ से एक आम जलसा ुआ । लमस्टर सेठ ने ववलायती टूर् पाउडर बबलायती ब्रुश से द ॉँतो पर मला , ववलायती साबुन से न ाया, ववलायती चाय ववलायती प्याललयों में पी, ववलायती बबस्कुट ववलायती मक्खन के सार् खाया, ववलायती दिू वपया। कफर ववलायती सूट िारण करके ववलायती लसिंगार मुिं में दबाकर घर से तनकले, और अपनी मोटर साइककल पर बैठ फ्लावर शो देखने चले गये ।

    गोदावरी को रात भर नीिंद न ीिं आयी र्ी, दरुाशा ओर पराजय की कहठन यदत्रणा ककसी कोड ेकी तर उसे ह्रदय पर पड र ी र्ी । ऐसा मालमु ोता र्ा कक उसके किं ठ में कोई कडवी चीज अटक गयी ै। लमस्टर सेठ का अपने प्रभाव मे लाने की उसने व सब योजनाएाँ की, जो एक रमणी कर सकती ै; पर उस भले आदमी पर उसके सारे ाव –भाव, मदृ ुमुस्कान ओर वाणी-ववलास को कोई असर न ुआ । खुद तो स्वदेशी वस्त्रों के व्यव ार करने पर क्या राजी ोत,े गोदावरी के ललए एक खद्दर की साडी लाने पर भी स मत न ुए । य ाँ तक कक गोदाबरी ने उनसे कभी कोई चीज मािंगने की कसम खा ली ।

    क्रोि और ग्लातन ने उसकी सद्भावना को इस तर ववकृत कर हदया जेसे कोई मैली बस्तु तनमाल जल को दवूषत कर देती ै उसने सोंचा, ‘जब य मेरी इतनी सी बात न ीिं मान सकते; तब कफर मैं क्या इनके इशारों पर चलूिं, क्यों इनकी इच्छाओिं की लौंडी बनी र ूिं? मैंने इनके ार् कुछ अपनी आत्मा न ीिं बेची ै। अगर आज ये चोरी या गबन करें , तो क्या में सजा पाऊाँ गी? उसी सजा ये खुद झलेेगें । उसका अपराि इनके ऊपर ोगा। इद ें अपने कमा और वचन का अन्ख्तयार ैं मुझ ेअपने कमा और वचन का अन्ख्तयार । य अपनी सरकार की गुलामी करें, अिंगरेजों की चौखट पर नाक रगडें, मुझ ेक्या गरज ै कक उसमें उनका स योग करूाँ ! न्जसमें आत्मालभमान न ीिं, न्जसने अपने को स्वार्ा के ार्ों बेच हदया, उसके प्रतत अगर मेरे मन में भन्क्त न ो तो मेरा दोष न ीिं। य नौकर ै या गुलाम ? नौकरी और गुलामी में अदतर ै नौकर कुछ तनयमों के अिीन अपना तनहदाष्ट काम करता ै। व तनयम स्वामी और सेवक दोनों ी

  • पर लागू ोत े ैं। स्वामी अगर अपमान करे, अपशब्द क े तो नौकर उसको स न करने के ललए मजबूर न ीिं। गुलाम के ललए कोई शता न ीिं, उसकी दैह क गुलामी पीछे ोती ै, मानलसक गुलामी प ले ी ो जाती ैं। सरकार ने इनसे कब क ा ै कक देशी चीजें न खरीदों।’ सरकारी हटकटों तक पर शब्द ललखे ोत े ैं ‘स्वेदेशी चीजें खरीदो। इससे ववहदत ै कक सरकार देशी चीजें का तनषेि न ीिं करती। कफर भी य म ाश्य सुखारू बनने की कफक्र में सरकार से भी दो अिंगुल आगे बढना चा त े ै !

    लमस्टर सेठ ने कुछ झेंपत े ुए क ा—कल न फ्लावर शो देखने चलोगी?

    गोदावरी ने ववरक्त मन से क ा- न ीिं !

    ‘ब ुत अच्छा तमाशा ै।’

    ‘मैं क ॉँगे्रस के जलसे में जा र ी ूिं ।

    लमस्टर सेठ के ऊपर यहद छत धगर पडी ोती या उद ोंने बबजली का तार ार् से पकड ललया ोता, तो भी व इतने बद वास न ोत े। आाँखें फाडकर बोले- तुम क गे्रस के जलसे में जाओगी ?

    ‘ ािं जरूर जािंउगी !,

    ‘ मै न ीिं चा ता कक तुम व ाँ जाओ।’

    ‘अगर तुम मेरी परवा न ीिं करते, तो मेरा िमा न ीिं कक तुम् ारी र एक आज्ञा का पालन करूाँ ।’

    लमस्टर सेठ ने आिंखों मे ववष भर कर क ा – नतीजा बुरा ोगा ।

  • गोदावरी मानों तलवार के सामने छाती खोल कर बोली- इसकी धचिंता न ीिं, तुम ककसी के ईश्वर न ीिं ो।

    लमस्टर सेठ सूब गमा पड,े िमककय दी; आखखर मुिं फेरकर लेटे र े। प्रात: काल फ्लावर शो जात ेसमय भी उद ोंने गोदावरी से कुछ न क ा ।

    3

    गोदावरी न्जस समय काँ गे्रस के जलसे में प ुिंची, तो कई जार मदो और औरतों का जमाव र्ा। मदत्री ने चददे की अपील की र्ी और कुछ लोग चददा दे र े रे् । गोदावरी उस जग खडी ो गई ज ॉँ और न्स्त्रय ॉँ जमा र्ी ओर देखने लगी कक लोग क्या देत े ैं। अधिकाश लोग दो-दो चार-चार आना ी दे र े रे् । व ािं ऐसा िनवान र्ा ी कौन? उसने अपनी जेब टटोली, तो एक रूपया तनकला । उसने समझा य काफी ै। इसी इदतजार में र्ी कक झोली सामने आवे तो उसमें डाल दूाँ? स सा व ी अदिा लडका, न्जसे कक उसने पैसा हदया र्ा, न जाने ककिर से आ गया और ज्यों ी चददे की झोली उसके सामने प ुाँचीिं, उसने उसमें कुछ डाल हदया । सबकी आाँखें उसकी तरफ उठ गयीिं । सबको कुतू ल ो र ा र्ा कक अदिे ने क्या हदया? क ी एक-आि पैसा लमल गया ोगा। हदन भर गला फाडता ै, तब भी तो उस बेचारे को रोटी न ीिं लमलती ! अगर य ी गाना वपश्वाज और साज के सार् ककसी म कफल में ोता तो रूपये बरसते; लेककन सडक पर गाने वाले अदिे की कौन परवा करता ै।

    झोली में पैसा डालकर अदिा व ााँ से चल हदया और कुछ दरू जाकर गाने लगा-

    ‘वतन की देखखए तकदीर कब बदलती ै।’

    सभापतत ने क ा – लमत्रों, देखखए, य व पैसा ै,जो एक गरीब उदिा लडका इस झोली में डाल गया ै। मेरी आिंखों में इस एक पैसें की कीमत ककसी अमीर के एक जार रूपये से कम न ीिं । शायद य ी इस गरीब की सारी बबसात ोगी।

  • जब ऐसे गरीबों की स ानुभूतत मारे सार् ै, तो मुझ ेसत्य की ववजय में सिंदे न ीिं मालूम ोता । मारे य ााँ क्यों इतने फकीर हदखायी देती ैं? या तो इसललए कक समाज में इद ें कोई काम न ीिं लमलता या दररद्रता से पैदा ुई बीमाररयों के कारण य अब इस योग्य ी न ीिं र गये कक कुछ काम करें। या लभक्षावतृत ने इनमें कोई सामर्थया ी न ीिं छोडी । स्वराज्य के लसवा इन गरीबों का अब उद्धार कौन कर सकता ै। देखखए, व गा र ा ै।–

    ‘वतन की देखखए तकदीर कब बदलती ै।’

    इस पीडडत ह्रदय में ककतना उत्सगा ! क्या अब भी कोई सिंदे कर सकता ै कक म ककसकी आवाज ैं? (पैसा उपर उठा कर) आपमें कौन इस रत्न को खरीद सकता ै?

    गोदावरी के मन में न्जज्ञासा ुई, क्या व व ी तौ पेसा न ीिं ै, जो रात मैंने उसे हदया र्ा? क्या उसने सचमुच रात को कुछ न ीिं खाया?

    उसने जाकर समीप से पैसे को देखा, जो मेज पर रखा हदया गया र्ा। उसका ह्रदय िक् से ो गया । य व ी तघसा ुआ पैसा र्ा।

    उस अिंिे की दशा, उसके त्याग का स्मरण करके गोदावरी अनुरक्त ो उठी । काँ पत े ुए स्वर में बोली – मुझ ेआप य पैसा दे दीन्जए, मैं प ॉँच रूपये दूिंगी ।

    सभापतत ने क ा – एक ब न इस पैसे के दाम पािंच रूपये दे र ी ै।

    दसूरी आवाज आयी –दस रुपये।

    तीसरी आवाज आयी- बीस रुपये ।

    गोदावरी ने इस अन्दतम व्यन्क्त की ओर देखा । उसके मुख पर आत्मालभमान झलक र ा र्ा, मानों क र ा ो कक य ॉँ कौन ै, जो मेरी बराबरी कर सके !

  • गोदावरी के मन मे स्पद्धाा का भाव जाग उठा । चा े कुछ ो जाय, इसके ार् में य पैसा न जाय । समझता ै, इसने बीस रुपये क्या क हदये, सारे सिंसार का मोल ले ललया ।

    गोदावरी ने क ा – चालीस रूपये ।

    उस पुरूष ने तुरिंत क ा—पचास रूपये ।

    जारों आाँखें गोदावरी की ओर उठ गयीिं मानो क र ी ों, अब की आप ी मारी लाज रखखए ।

    गोदावरी ने उस आदमी की ओर देखकर िमकी से लमले ुए स्वर में क ा – सौ रुपये।

    िनी आदमी ने भी तुरिंत क ा- एकिं सौ बीस रूपये ।

    लोगों के च ेरे पर वाइयााँ उडने लगीिं। समझ गयें, इसी के ार् ववजय र ी। तनराश आिंखों से गोदावरी की ओर ताकने लगे; मगर ज्यों ी गोदावरी के मुाँ से तनकला डढे सौ, कक चारों तरफ ताललय पडने लगीिं, मानो ककसी दिंगल के दशाक अपने प लवान की ववजय पर मतवाले ो गये ों।

    उस आदमी ने कफर क ा – पौने दो सौ।

    गोदावरी बोली – दो सौ।

    कफर चारों तरफ से ताललयाँ पडी। प्रततद्विंद्वी ने अब मदैान से ट जाने ी में अपनी कुशल समझी ।

    गोदावरी ववजय के गवा पर नम्रता का पदाा डाले ुए खडी र्ी और जारो शुभ कामनाऍ िं उस पर फुलों की तर बरस र ी र्ीिं।

  • 4

    जब लोगो को मालूम ुआ कक य देवी लमस्टर सेठ की बीबी ै।, तो उद ें ईष्याामय आनिंद के सार् उस पर दया भी आयी ।

    लमस्टर सेठ अभी फ्लावर शों मे ी र्ें कक एक पुललस के अफसर ने उद ें य घातक सिंवाद सुनाया । लमस्टर सेठ सकत ेमें पड गये, मानो सारी दे शुदय पड गयी ो । कफर दानों मुहटयाँ बािंि लीिं । दािंत पीसे, ओठ चबाये और उसी वक्त घर चले । उनकी मोटर –साईककल कभी इतनी तजे न चली र्ी।

    घर में कदम रखत े ी उद ोंने धचनगाररयों –भरी ऑ िंखों से देखत े ुए क ा- क्या तुम मेरे मुिं में काललख पुतवाना चा ती ो?

    गोदावरी ने शािंत भाव से क ा-कुछ मु से भी तो क ो या गाललय ॉँ ी हदये जाओगे? तुम् ारे मु ाँ में काललख लगेगी, तो क्या मेरे मु ाँ में न लगेगी? तुम् ारी जड खुदेगी, तो मेरे ललए दसूरा कौन-सा स ारा ै।

    लमस्टर सेठ—सारे श र में तूफान मचा ुआ ै। तुमने मेरे ललए रुपये हदये क्यों?

    गोदावरी ने उसी शािंत भाव से क ा—इसललए कक मैं उसे अपना ी रुपया समझती ूाँ।

    लमस्टर सेठ द ॉँत ककटककटा कर बोले— रधगज न ीिं, तुम् ें मेरा रुपया खचा करने का कोई क न ीिं ै।

    गोदावरी-बबलकुल गलत, तुम् ारे खचा करने का तुम् ें न्जतना अन्ख्तयार ै, उतना ी मुझको भी ै। ॉँ, जब तलाक का कानून पास करा लोगे और तलाक दे दोगे, तब न र ेगा।

  • लमस्टर सेठ ने अपना ैट इतने जोर से मेज पर फें का कक व लुढकता ुआ जमीन पर धगर पडा और बोले—मुझ ेतुम् ारी अक्ल पर अफसोस आता ै। जानती ो तुम् ारी इस उद्दिंडता का क्या नतीजा ोगा? मुझसे जवाब तलब ो जाएगा। बतलाओ, क्या जवाब दूाँगा? जब य जाह र ै कक कािंगे्रस सरकार से दशु्मनी कर र ी ै तो कािंगे्रस की मदद करना सरकार के सार् दशु्मनी करनी ै।

    ‘तुमने तो न ीिं की कािंगे्रस की मदद!’

    ‘तुमने तो की!’

    ‘इसकी सजा मुझ ेलमलेगी या तुम् ें? अगर मैं चोरी करूाँ , तो क्या तुम जेल जाओगे?’

    ‘चोरी की बात और ै, और य बात और ै।’

    ‘तो क्या कािंगे्रस की मदद करना चोरी या डाके से भी बुरा ै?’

    ‘ ॉँ, सरकारी नौकर के ललए चोरी या डाके से भी बुरा ै।’

    ‘मैंने य न ीिं समझा र्ा।’

    अगर तुमने य न ीिं समझा र्ा, तो तुम् ारी ी बुवद्ध का भ्रम र्ा। रोज अखबारों में देखती ो, कफर भी मुझसे पूछती ो। एक क ॉँगे्रस का आदमी प्लेटफामा पर बोलने खडा ोता ै, तो बीलसयों सादे कपड ेवाले पुललस अफसर उसकी ररपोटा लेने बैठत े ैं। कााँगे्रस के सरगनाओिं के पीछे कई-कई मुखबबर लगा हदए जात े ैं, न्जनका काम य ी ै कक उन पर कडी तनगा रखें। चोरों के सार् तो इतनी सख्ती कभी न ीिं की जाती। इसीललए जारों चोररय ॉँ और डाके और खून रोज ोत ेर त े ैं, ककसी का कुछ पता न ीिं चलता, न पुललस इसकी परवा करती ै। मगर पुललस को न्जस मामले में राजनीतत की गिंि भी आ जाती ै। कफर देखो पुललस की मुस्तैदी। इदसपेक्टर जरनल से लेकर कािंस्टेबबल तक ऐडडयों तक का

  • जोर लगात े ैं। सरकार को चोरों से भय न ीिं। चोर सरकार पर चोट न ीिं करता। क ॉँगे्रस सरकार को अन्ख्तयार पर मला करती ै, इसललए सरकार भी अपनी रक्षा के ललए अपने अन्ख्तयार से काम लेती ै। य तो प्रकृतत का तनयम ै।

    लमस्टर सेठ आज दफ्तर चले, तो उनके कदम पीछे र जात ेरे्! न जाने आज व ॉँ क्या ाल ो। रोज की तर दफ्तर में प ुाँच कर उद ोंने चपरालसयों को ड िंटा न ीिं, क्लकों पर रोब न ीिं जमाया, चुपके से जाकर कुसी पर बैठ गये। ऐसा मालूम ोता र्ा, कोई तलवार लसर पर लटक र ी ै। सा ब की मोटर की आवाज सुनत े ी उनके प्राण सूख गये। रोज व अपने कमरे में बैठ र त ेरे्। जब सा ब आकर बैठ जात ेरे्, तब आि घण�