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ससिंहासन बत्तीसी इततहास

ससिंहासन बत्तीसी (सिंस्कृत:ससिंहासन द्वात्र िंसिका, ववक्रमचरित) एक लोककथा सिंग्रह है। प्रजावत्सल, जननायक, प्रयोगवादी एविं दिूदिी महािाजा ववक्रमाददत्य भाितीय लोककथाओिं के एक बहुत ही चर्चित पार िहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गणुों पि प्रकाि डालने वाली कथाओिं की बहुत ही समदृ्ध पिम्पिा िही है। ससिंहासन बत्तीसी भी ३२ कथाओिं का सिंग्रह है जजसमें ३२ पतुसलयााँ ववक्रमाददत्य के ववसभन्न गणुों का कथा के रूप में वणिन किती हैं। अनकु्रम

1 इततहास व िचना काल

2 कथा की भसूमका 3 बत्तीस पतुसलयों के नाम

4 सिंबिंर्ित कड़ियााँ 5 वाह्य सरू

इततहास व िचना काल

ससिंहासन बत्तीसी भी बेत्ताल पच्चीसी या वेतालपञ्चवविंितत की भािंतत लोकवप्रय हुआ। सिंभवत: यह सिंस्कृत की िचना है जो उत्तिी सिंस्किण में ससिंहासनद्वात्र िंितत तथा "ववक्रमचरित के नाम से दक्षिणी सिंस्किण में उपलब्ि है। पहले के सिंस्कताि

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एक मतुन कहे जात ेहैं जजनका नाम िेभेन्र था। बिंगाल में विरुर्च के द्वािा प्रस्ततु सिंस्किण भी इसी के समरुप माना जाता है। इसका दक्षिणी रुप ज्यादा लोकवप्रय हुआ कक लोक भाषाओिं में इसके अनवुाद होत ेिहे औि पौिाणणक कथाओिं की तिह भाितीय समाज में मौणिक पिम्पिा के रुप में िच-बस गए। इन कथाओिं की िचना "वेतालपञ्चवविंितत" या "बेताल पच्चीसी" के बाद हुई पि तनजचचत रुप से इनके िचनाकाल के बािे में कुछ नहीिं कहा जा सकता है। इतना लगभग तय है कक इनकी िचना िािा के िाजा भोज के समय में नहीिं हुई। चूिंकक प्रत्येक कथा िाजा भोज का उल्लेि किती है, अत: इसका िचना काल ११वीिं िताब्दी के बाद होगा। इसे द्वारीिंित्पतु्तसलका के नाम से भी जाना जाता है। कथा की भसूमका इन कथाओिं की भसूमका भी कथा ही है जो िाजा भोज की कथा कहती है। ३२ कथाएाँ ३२ पतुसलयों के मिु से कही गई हैं जो एक ससिंहासन में लगी हुई हैं। यह ससिंहासन िाजा भोज को ववर्चर परिजस्थतत में प्राप्त होता है। एक ददन िाजा भोज को मालमू होता है कक एक सािािण-सा चिवाहा अपनी न्यायवप्रयता के सलए ववख्यात है, जबकक वह त्बल्कुल अनपढ़ है तथा पचुतैनी रुप से उनके ही िाज्य के कुम्हािों की गायें, भैंसे तथा बकरियााँ चिाता है। जब िाजा भोज ने तहकीकात किाई तो पता चला कक वह चिवाहा सािे फैसले एक टीले पि चढ़कि किता है। िाजा भोज की जजज्ञासा बढ़ी औि उन्होंने िुद भेष बदलकि उस चिवाहे को एक जदटल मामले में फैसला कित ेदेिा। उसके फैसले औि आत्मववचवास से भोज इतना अर्िक प्रभाववत हुए कक उन्होंने उससे उसकी इस अद्ववतीय िमता के बािे में जानना चाहा। जब चिवाहे ने जजसका नाम चन्रभान था बताया कक उसमें यह िजतत टीले पि बठैने के बाद स्वत: चली आती है, भोज ने सोचववचाि कि टीले को िुदवाकि देिने का फैसला ककया। जब िुदाई सम्पन्न हुई तो एक िाजससिंहासन समट्टी में दबा ददिा। यह ससिंहासन कािीगिी का अभतूपवूि रुप प्रस्तुत किता था। इसमें बत्तीस पतुसलयााँ लगी थीिं तथा कीमती ित्न ज़ि े हुए थे। जब िलू-समट्टी की सफाई हुई तो ससिंहासन की सनु्दिता देित ेबनती थी। उसे उठाकि महल लाया गया तथा िभु महूुति में िाजा का बठैना तनजचचत ककया गया। ज्योंदह िाजा ने बठैने का प्रयास ककया सािी पतुसलयााँ िाजा का उपहास किने लगीिं।

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णिलणिलाने का कािण पछूने पि सािी पतुसलयााँ एक-एक कि ववक्रमाददत्य की कहानी सनुाने लगीिं तथा बोली कक इस ससिंहासन जो कक िाजा ववक्रमाददत्य का है,

पि बठैने वाला उसकी तिह योग्य, पिाक्रमी, दानवीि तथा वववेकिील होना चादहए। ये कथाएाँ इतनी लोकवप्रय हैं कक कई सिंकलनकत्तािओिं ने इन्हें अपनी-अपनी तिह से प्रस्तुत ककया है। सभी सिंकलनों में पतुसलयों के नाम ददए गए हैं पि हि सिंकलन में कथाओिं में कथाओिं के क्रम में तथा नामों में औि उनके क्रम में सभन्नता पाई जाती है। बत्तीस पतुसलयों के नाम एक सिंकलन में (जो कक प्रामाणणक नहीिं है) नामों का क्रम इस प्रकाि है-

1. ित्नमिंजिी 2. र्चरलेिा 3. चन्रकला 4. कामकिं दला 5. लीलावती 6. िववभामा 7. कौमुदी 8. पुष्पवती 9. मिुमालती 10. प्रभावती 11. त्रलोचना 12. पद्मावती 13. कीततिमती 14. सुनयना 15. सुन्दिवती 16. सत्यवती 17. ववद्यावती 18. तािावती 19. रुपिेिा 20. ज्ञानवती 21. चन्रज्योतत 22. अनुिोिवती 23. िमिवती 24. करुणावती 25. त्रनेरी 26. मगृनयनी

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27. मलयवती 28. वैदेही 29. मानवती 30. जयलक्ष्मी 31. कौिल्या 32. िानी रुपवती

1] ित्नमिंजिी (ससिंहासन बत्तीसी) से अनपेु्रवषत

यह ससिंहासन बत्तीसी की पहली पतुली थी। उसने िाजा ववक्रम के जन्म तथा इस ससिंहासन प्राजप्त की कथा सनुायी।

आयािव में एक िाज्य था जजसका नाम था अम्बावती। वहााँ के िाजा गिंिविसेन न ेचािों वणाç की सियों से चाि वववाह ककये थे। ब्राह्मणी के परु का नाम ब्रह्मवीत था। िराणी के तीन परु हुए- ििंि, ववक्रम तथा भतृिहरि। वचैय पत्नी ने चन्र नामक परु को जन्म ददया तथा िरू पत्नी ने िन्वन्तरि नामक परु को। ब्रह्मणीत को गिंिविसेन न ेअपना दीवान बनाया, पि वह अपनी जजम्मेवािी अच्छी तिह नहीिं तनभा सका औि िाज्य से पलायन कि गया। कुछ समय भटकने के बाद िािानगिी में ऊाँ चा ओहदा प्राप्त ककया तथा एक ददन िाजा का वि किके खुद िाजा बन गया। काफी ददनों के बाद उसने उज्जैन लौटने का ववचाि ककया, लेककन उज्जैन आत ेही उसकी मतृ्य ुहो गई।

िराणी के ब़ि ेपरु ििंि को ििंका हुई कक उसके वपता ववक्रम को योग्य समझकि उसे अपना उत्तिार्िकािी घोवषत कि सकते हैं औि उसने एक ददन सोए हुए वपता का वि किके स्वयिं को िाजा घोवषत कि ददया। हत्या का समाचाि दावानल की तिह फैला औि उसके सभी भाई प्राण ििा के सलए भाग तनकले। ववक्रम को छो़िकि बाकी सभी भाइयों का पता उसे चल गया औि व ेसभी माि डाले गए। बहुत प्रयास के बाद ििंि को पता चला कक घने जिंगल में सिोवि के बगल में एक

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कुदटया में ववक्रम िह िहा है तथा किं दमलू िाकि घनघोि तपस्या में ित है। वह उसे मािने की योजना बनाने लगा औि एक तािंत्रक को उसने अपने षडयिंर में िासमल कि सलया।

योजनानसुाि तािंत्रक ववक्रम को भगवती आिािना के सलए िाजी किता तथा भगवती के आगे ववक्रम के सि झकुाते ही ििंि तलवाि से वाि किके उसकी गदिन काट डालता। मगि ववक्रम ने ितिे को भााँप सलया औि तािंत्रक को सि झकुाने की ववर्ि ददिाने को कहा। ििंि मजन्दि में तछपा हुआ था। उसने ववक्रम के िोिे में तािंत्रक की हत्या कि दी। ववक्रम ने झपट कि ििंि की तलवाि छीन कि उसका सि ि़ि से अलग कि ददया। ििंि की मतृ्य ुके बाद उसका िाज्यािोहण हुआ।

एक ददन सिकाि के सलए ववक्रम जिंगल गए। मगृ का पीछा कित-ेकित े सबसे त्बछु़िकि बहुत दिू चले आए। उन्हें एक महल ददिा औि पास आकि पता चला कक वह महल तूतविण का है जो कक िाजा बाहुबल का दीवान है। तूतविण ने बात ही बात में कहा कक ववक्रम ब़ि ेही यिस्वी िाजा बन सकत ेहैं, यदद िाजा बाहुबल उनका िाजततलक किें। औि उसने यह भी बताया कक भगवान सिव द्वािा प्रदत्त अपना स्वणि ससिंहासन अगि बाहुबल ववक्रम को दे दें तो ववक्रम चक्रवती सम्राट बन जािंएगे। बाहुबल ने ववक्रम का न केवल िाजततलक ककया, बजल्क िुिी-िुिी उन्हें स्वणि ससिंहासन भी भेंट कि ददया। कालािंति में ववक्रमाददत्य चक्रवती सम्राट बन गए औि उनकी कीततिपताका सविर लहिा उठी।

2] छठी पतुली िववभामा ने जो कथा सनुाई वह इस प्रकाि है-

एक ददन ववक्रमाददत्य नदी के तट पि बने हुए अपने महल से प्राकृततक सौन्दयि को तनहाि िहे थे। बिसात का महीना था, इससलए नदी उफन िही थी औि अत्यन्त तेजी से बह िही थी। इतने में उनकी नजि एक परुुष, एक िी औि एक बच्च ेपि

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प़िी। उनके वि ताि-ताि थे औि चहेिे पीले। िाजा देित ेही समझ गए ये बहुत ही तनििन हैं। सहसा वे तीनों उस नदी में छलािंग लगा गए। अगले ही पल प्राणों की ििा के सलए र्चल्लाने लगे।

ववक्रम ने त्बना एक पल गाँवाए नदी में उनकी ििा के सलए छलािंग लगा दी। अकेले तीनों को बचाना सम्भव नहीिं था, इससलए उन्होंन ेदोनों बेतालों का स्मिण ककया। दोनों बेतालों ने िी औि बच्च ेको तथा ववक्रम ने उस परुुष को डूबने से बचा सलया । तट पि पहुाँचकि उन्होंने जानना चाहा व ेआत्महत्या तयों कि िहे थे। परुुष ने बताया कक वह उन्हीिं के िाज्य का एक अत्यन्त तनििन ब्राह्मण है जो अपनी दरिरता से तिंग आकि जान देना चाहता है। वह अपनी बीवी तथा बच्च ेको भिू से मिता हुआ नहीिं देि सकता औि आत्महत्या के ससवा अपनी समस्या का कोई अन्त नहीिं नजि आता।

इस िाज्य के लोग इतने आत्मतनभिि है#े ेकक सािा काम िुद ही किते हैं, इससलए उसे कोई िोजगाि भी नहीिं देता। ववक्रम ने ब्राह्मण से कहा कक वह उनके अततर्थिाला में जब तक चाहे अपने परिवाि के साथ िह सकता है तथा उसकी हि जरुित पिूी की जाएगी। ब्राह्मण ने कहा कक िहने में तो कोई हजि नहीिं है, लेककन उसे डि है कक कुछ समय बाद आततथ्य में कमी आ जाएगी औि उसे अपमातनत होकि जाना प़िगेा।

ववक्रम ने उसे ववचवास ददलाया कक ऐसी कोई बात नहीिं होगी औि उसे भगवान समझकि उसके साथ हमेिा अच्छा बतािव ककया जाएगा। ववक्रम के इस तिह ववचवास ददलाने पि ब्राह्मण परिवाि अततर्थिाला में आकि िहने लगा। उसकी देि-िेि के सलए नौकि-चाकि तनयतुत कि ददए गए। वे मौज से िहत,े अपनी मजी से िात-ेपीत ेऔि आिामदेह पलिंग पि सोते। ककसी चीज की उन्हें कमी नहीिं थी। लेककन वे सफाई पि त्बल्कुल ध्यान नहीिं देते। जो कप़ि ेपहनत ेथे उन्हें कई ददनों

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तक नहीिं बदलते। जहााँ सोत े वहीिं थकूते औि मल-मरू त्याग भी कि देते। चािों तिफ गिंदगी-ही गिंदगी फैल गई।

दगुिन्ि के मािे उनका स्थान एक पल भी ठहिने लायक नहीिं िहा। नौकि-चाकि कुछ ददनों तक तो िीिज से सब कुछ सहते िहे लेककन कब तक ऐसा चलता?

िाजा के कोप की भी उन्होंने पहवाह नहीिं की औि भाग ि़ि े हुए। िाजा ने कई अन्य नौकि भेजे, पि सब के सब एक ही जैसे तनकले। सबके सलए यह काम असिंभव सात्बत हुआ। तब ववक्रम ने िुद ही उनकी सेवा का बी़िा उठाया। उठत-ेबठैते, सोत-ेजगते वे ब्राह्मण परिवाि की हि इच्छा पिूी कित।े दगुिन्ि के मािे माथा फटा जाता, कफि भी कभी अपिब्द का व्यवहाि नहीिं किते। उनके कहने पि ववक्रम उनके पााँव भी दबाते।

ब्राह्मण परिवाि ने हि सम्भव प्रयत्न ककया कक ववक्रम उनके आततत्थ से तिंग आकि अततर्थ-सत्काि भलू जाएाँ औि अभरता से पेि आएाँ, मगि उनकी कोसिि असफल िही। ब़ि ेसब्र से ववक्रम उनकी सेवा में लगे िहे। कभी उन्हें सिकायत का कोई मौका नहीिं ददया। एक ददन ब्राह्मण ने जैसे उनकी पिीिा लेन ेकी ठान ली। उसने िाजा को कहा कक वे उसके ििीि पि लगी ववष्ठा साफ किें तथा उसे अच्छी तिह नहला-िोकि साफ वि पहनाएाँ।

ववक्रम तुिन्त उसकी आज्ञा मानकि अपने हाथों से ववष्ठा साफ किने को बढे़। अचानक चमत्काि हुआ। ब्राह्मण के सािे गिंदे वि गायब हो गए। उसके ििीि पि देवताओिं द्वािा पहने जाने वाले वि आ गए। उसका मिु मण्डल तजे से प्रदीप्त हो गया। सािे ििीि से सगुन्ि तनकलन ेलगी। ववक्रम आचचयि चककत थे। तभी वह ब्राह्मण बोला कक दिअसल वह वरुण है। वरुण देव न ेउनकी पिीिा लेने के सलए यह रुप ििा था। ववक्रम के अततर्थ-सत्काि की प्रििंसा सनुकि वे सपरिवाि यहााँ आओ थे। जैसा उन्होंने सनुा था वसैा ही उन्होंने पाया, इससलए ववक्रम को उन्होंने

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विदान ददया कक उसके िाज्य में कभी भी अनावजृष्ट नहीिं होगी तथा वहााँ की जमीन से तीन-तीन फसलें तनकलेंगी। ववक्रम को विदान देकि व े सपरिवाि अन्तध्र्यान हो गए। यह ससिंहासन बत्तीसी की दसूिी पतुली थी। उसके द्वािा सनुायी गई कथा इस प्रकाि है।

एक ददन िाजा ववक्रमाददत्य सिकाि िेलते-िेलत े एक ऊाँ च े पहा़ि पि आए। वहााँ उन्होंने देिा एक साि ुतपस्या कि िहा है। साि ुकी तपस्या में ववघ्न नहीिं प़ि ेयह सोचकि वे उसे श्रद्धापवूिक प्रणाम किके लौटने लगे। उनके म़ुित ेही साि ुने आवाज दी औि उन्हें रुकने को कहा। ववक्रमाददत्य रुक गए औि साि ु ने उनसे प्रसन्न होकि उन्हें एक फल ददया।

उसने कहा- "जो भी इस फल को िाएगा तेजस्वी औि यिस्वी परु प्राप्त किेगा।" फल प्राप्त कि जब वे लौट िहे थे, तो उनकी नजि एक तेजी से दौ़िती मदहला पि प़िी। दौ़ित-ेदौ़िते एक कुाँ ए के पास आई औि छलािंग लगाने को उद्यत हुई। ववक्रम ने उसे थाम सलया औि इस प्रकाि आत्महत्या किने का कािण जानना चाहा। मदहला ने बताया कक उसकी कई ल़िककयााँ हैं पि परु एक भी नहीिं। चूाँकक हि बाि ल़िकी ही जनती है, इससलए उसका पतत उससे नािाज है औि गाली-गलौज तथा माि-पीट किता है। वह इस ददुििा से तिंग होकि आत्महत्या किने जा िही थी।

िाजा ववक्रमाददत्य ने साि ुवाला फल उसे दे ददया तथा आचवासन ददया कक अगि उसका पतत फल िाएगा, तो इस बाि उसे परु ही होगा। कुछ ददन बीत गए। एक ददन एक ब्राह्मण ववक्रम के पास आया औि उसन े वही फल उसे भेट ककया। ववक्रम िी की चरिरहीनता से बहुत दिुी हुए। ब्राह्मण को ववदा किने के बाद वे फल लेकि अपनी पत्नी के पास आए औि उसे वह फल दे ददया। ववक्रम की पत्नी भी चरिरहीन थी औि नगि के कोतवाल से प्रेम किती थी। उसने वह फल नगि

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कोतवाल को ददया ताकक उसके घि यिस्वी परु जन्म ले। नगि कोतवाल एक वेचया के पे्रम में पागल था औि उसने वह फल उस वेचया को दे ददया। वेचया ने सोचा कक वेचया का परु लाि यिस्वी हो तो भी उसे सामाजजक प्रततष्ठा नहीिं प्राप्त हो सकती है।

उसने काफी सोचन ेके बाद यह तनष्कषि तनकाला कक इस फल को िान ेका असली अर्िकािी िाजा ववक्रमाददत्य ही है। उसका परु उसी की तिह योग्य औि सामध्र्यवान होगा तो प्रजा की देि-िेि अच्छी तिहा होगी औि सभी िुि िहेगे। यही सोचकि उसने ववक्रमाददत्य को वह फल भेंट कि ददया। फल को देिकि ववक्रमाददत्य ठगे-से िह गए। उन्होंने प़िताल किाई तो नगि कोतवाल औि िानी के अविै सम्बन्ि का पता चल गया। वे इतने दिुी औि णिन्न हो गए कक िाज्य को ज्यों का त्यों छो़िकि वन चले गए औि कदठन तपस्या किन ेलगे।

चूाँकक ववक्रमाददत्य देवताओिं औि मनषु्यों को समान रुप से वप्रय थे, देविाज इन्र न ेउनकी अनपुजस्थतत में िाज्य की िि के सलए एक िजततिाली देव भेज ददया। वह देव नपृववहीन िाज्य की ब़िी मसु्तैदी से ििा तथा पहिेदािी किने लगा। कुछ ददनों के बाद ववक्रमाददत्य का मन अपनी प्रजा को देिन ेको किन ेलगा। जब उन्होंन ेअपने िाज्य में प्रवेि किने की चषे्टा की तो देव सामने आ ि़िा हुआ। उसे अपनी वास्तववक पहचान देने के सलए ववक्रम ने उससे यदु्ध ककया औि पिाजजत ककया। पिाजजत देव मान गया कक उसे हिाने वाले ववक्रमाददत्य ही हैं औि उसने उन्हें बताया कक उनका एक वपछले जन्म का िर ुयहााँ आ पहुाँचा है औि ससवद्ध कि िहा है। वह उन्हें ित्म किने का हि सम्भव प्रयास किेगा।

यदद ववक्रम न ेउसका वि कि ददया तो लम्बे समय तक वे तनवविघ्न िाज्य किेंगे। योगी के बािे में सब कुछ बताकि उस देव ने िाजा से अनमुतत ली औि चला गया। ववक्रम की चरिरहीन पत्नी तब तक ग्लातन से ववष िाकि मि चकुी थी।

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ववक्रम ने आकि अपना िाजपाट सम्भाल सलया औि िाज्य का सभी काम सचुारुपवूिक चलने लगा। कुछ ददनों के बाद उनके दिबाि में वह योगी आ पहुाँचा। उसने ववक्रम को एक ऐसा फल ददया जजसे काटने पि एक कीमती लाल तनकला। पारितोवषक के बदले उसने ववक्रम से उनकी सहायता की कामना की। ववक्रम सहषि तैयाि हो गए औि उसके साथ चल प़ि।े वे दोनों चमिान पहुाँच ेतो योगी न ेबताया कक एक पे़ि पि बतेाल लटक िहा है औि एक ससवद्ध के सलए उसे बतेाल की आवचयकता है। उसने ववक्रम से अनिुोि ककया कक वे बेताल को उताि कि उसके पास ले आएाँ।

ववक्रम उस पे़ि से बतेाल को उताि कि किं िे पि लादकि लाने की कोसिि किन ेलगे। बतेाल बाि-बाि उनकी असाविानी का फायदा उठा कि उ़ि जाता औि पे़ि पि लटक जाता। ऐसा चौबीस बाि हुआ। हि बाि बेताल िास्त े में ववक्रम को एक कहानी सनुाता। पच्चीसवीिं बाि बेताल ने ववक्रम को बताया कक जजस योगी ने उसे लाने भेजा है वह दषु्ट औि िोिेबाज है। उसकी तािंत्रक ससद्धी की आज समाजप्त है तथा आज वह ववक्रम की बसल दे देगा जब ववक्रम देवी के सामने सि झकुाएगा। िाजा की बसल से ही उसकी ससवद्ध पिूी हो सकती है।

ववक्रम को तुिन्त इन्र के देव की चतेावनी याद आई। उन्होंने बेताल को िन्यवाद ददया औि उसे लादकि योगी के पास आए। योगी उसे देिकि अत्यन्त हवषित हुआ औि ववक्रम से देवी के चिणों में सि झकुाने को कहा। ववक्रम ने योगी को सि झकुाकि सि झकुाने की ववर्ि बतलाने को कहा। ज्योंदह योगी ने अपना सि देवी चिणों में झकुाया कक ववक्रम ने तलवाि से उसकी गदिन काट दी। देवी बसल पाकि प्रसन्न हुईं औि उन्होंने ववक्रम को दो बतेाल सेवक ददए। उन्होंने कहा कक स्मिण कित ेही ये दोनों बेताल ववक्रम की सेवा में उपजस्थत हो जाएाँगे। ववक्रम देवी का आसिष पाकि आनन्दपवूिक वापस महल लौटे।

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3] तीसिी पतुली चन्रकला ने जो कथा सनुाई वह इस प्रकाि है-

एक बाि परुुषाथि औि भाग्य में इस बात पि ठन गई कक कौन ब़िा है। परुुषाथि कहता कक बगैि मेहनत के कुछ भी सम्भव नहीिं है जबकक भाग्य का मानना था कक जजसको जो भी समलता है भाग्य से समलता है परिश्रम की कोई भसूमका नहीिं होती है। उनके वववाद न ेऐसा उग्र रुप ग्रहण कि सलया कक दोनों को देविाज इन्र के पास जाना प़िा। झग़िा बहुत ही पेचीदा था इससलए इन्र भी चकिा गए। परुुषाथि को वे नहीिं मानत ेजजन्हें भाग्य से ही सब कुछ प्राप्त हो चकुा था।

दसूिी तिफ अगि भाग्य को ब़िा बतात ेतो परुुषाथि उनका उदाहिण प्रस्ततु किता जजन्होंने मेहनत से सब कुछ अजजित ककया था। असमिंजस में प़ि गए औि ककसी तनष्कषि पि नहीिं पहुाँच।े काफी सोचने के बाद उन्हें ववक्रमाददत्य की याद आई। उन्हें लगा सािे ववचव में इस झग़ि ेका समािान ससफि वही कि सकत ेहै।

उन्होंने परुुषाथि औि भाग्य को ववक्रमाददत्य के पास जाने के सलए कहा। परुुषाथि औि भाग्य मानव भेष में ववक्रम के पास चल प़ि।े ववक्रम के पास आकि उन्होंन ेअपने झग़ि ेकी बात ििी। ववक्रमाददत्य को भी तुिन्त कोई समािान नहीिं सझूा। उन्होंन ेदोनों से छ: महीने की मोहलत मािंगी औि उनसे छ: महीने के बाद आन ेको कहा। जब व ेचले गए तो ववक्रमाददत्य न ेकाफी सोचा। ककसी तनष्कषि पि नहीिं पहुाँच सके तो उन्होंने सामान्य जनता के बीच भेष बदलकि घमूना िरुु ककया। काफी घमूने के बाद भी जब कोई सिंतोषजनक हल नहीिं िोज पाए तो दसूिे िाज्यों में भी घमूने का तनणिय ककया। काफी भटकने के बाद भी जब कोई समािान नहीिं तनकला तो उन्होंने एक व्यापािी के यहााँ नौकिी कि ली। व्यापािी ने उन्हें नौकिी उनके यह कहने पि कक जो काम दसूिे नहीिं कि सकत ेहैं वे कि देंगे, दी।

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कुछ ददनों बाद वह व्यापािी जहाज पि अपना माल लादकि दसूिे देिों में व्यापाि किने के सलए समरुी िास्ते से चल प़िा। अन्य नौकिों के अलावा उसके साथ ववक्रमाददत्य भी थे। जहाज कुछ ही दिू गया होगा कक भयानक तफूान आ गया। जहाज पि सवाि लोगों में भय औि हतािा की लहि दौ़ि गई। ककसी तिह जहाज एक टाप ूके पास आया औि वहााँ लिंगि डाल ददया गया। जब तूफान समाप्त हुआ तो लिंगि उठाया जान ेलगा। मगि लिंगि ककसी के उठाए न उठा। अब व्यापािी को याद आया कक ववक्रमाददत्य न े यह कहकि नौकिी ली थी कक जो कोई न कि सकेगा वे कि देंगे। उसने ववक्रम से लिंगि उठाने को कहा। लिंगि उनसे आसानी से उठ गया।

लिंगि उठते ही जहाज ऐसी गतत से बढ़ गया कक टाप ूपि ववक्रम छूट गए। उनकी समझ में नहीिं आया तया ककया जाए। द्वीप पि घमून-ेकफिन ेचल प़ि।े नगि के द्वाि पि एक पदट्टका टिंगी थी जजस पि सलिा था कक वहााँ की िाजकुमािी का वववाह ववक्रमाददत्य से होगा। व ेचलते-चलते महल तक पहुाँच।े िाजकुमािी उनका परिचय पाकि िुि हुई औि दोनों का वववाह हो गया। कुछ समय बाद वे कुछ सेवकों को साथ ले अपने िाज्य की ओि चल प़ि।े िास्त ेमें ववश्राम के सलए जहााँ डिेा डाला वहीिं एक सन्यासी से उनकी भेंट हुई।

सन्यासी ने उन्हें एक माला औि एक छ़िी दी। उस माला की दो वविषेताएाँ थीिं- उसे पहननेवाला अदृचय होकि सब कुछ देि सकता था तथा गले में माला िहने पि उसका हि कायि ससद्ध हो जाता। छ़िी से उसका मासलक सोने के पवूि कोई भी आभषूण मािंग सकता था। सन्यासी को िन्यवाद देकि ववक्रम अपने िाज्य लौटे। एक उद्यान में ठहिकि सिंग आए सेवकों को वापस भेज ददया तथा अपनी पत्नी को सिंदेि सभजवाया कक िीघ्र ही वे उसे अपने िाज्य बलुवा लेंगे। उद्यान में ही उनकी भेंट एक ब्राह्मण औि एक भाट से हुई। वे दोनों काफी समय से उस उद्यान की देिभाल कि िहे थे।

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उन्हें आिा थी कक उनके िाजा कभी उनकी सिु लेंगे तथा उनकी ववपन्नता को दिू किेंगे। ववक्रम पसीज गए। उन्होंने सन्यासी वाली माला भाट को तथा छ़िी ब्राह्मण को दे दी। ऐसी अमलू्य चीजें पाकि दोनों िन्य हुए औि ववक्रम का गणुगान कित ेहुए चले गए।

ववक्रम िाज दिबाि में पहुाँचकि अपने कायि में सिंलग्न हो गए। छ: मास की अवर्ि पिूी हुई तो परुुषाथि तथा भाग्य अपने फैसले के सलए उनके पास आए। ववक्रम ने उन्हें बताया कक वे एक-दसूिे के पिूक हैं। उन्हें छ़िी औि माला का उदाहिण याद आया। जो छ़िी औि माला उन्हें भाग्य से सन्यासी से प्राप्त हुई थीिं उन्हें ब्राह्मण औि भाट ने परुुषाथि से प्राप्त ककया। परुुषाथि औि भाग्य पिूी तिह सिंतुष्ट होकि वहााँ से चले गए।

4] चौथी पतुली कामकिं दला की कथा से भी ववक्रमाददत्य की दानवीिता तथा त्याग की भावना का पता चलता है। वह इस प्रकाि है-

एक ददन िाजा ववक्रमाददत्य दिबाि को सम्बोर्ित कि िहे थे तभी ककसी ने सचूना दी कक एक ब्राह्मण उनसे समलना चाहता है। ववक्रमाददत्य ने कहा कक ब्राह्मण को अन्दि लाया जाए। जब ब्राह्मण उनसे समला तो ववक्रम न ेउसके आने का प्रयोजन पछूा। ब्राह्मण ने कहा कक वह ककसी दान की इच्छा से नहीिं आया है, बजल्क उन्हें कुछ बतलाने आया है। उसने बतलाया कक मानसिोवि में सयूोदय होते ही एक िम्भा प्रकट होता है जो सयूि का प्रकाि ज्यों-ज्यों फैलता है ऊपि उठता चला जाता है औि जब सयूि की गमी अपनी पिाकाष्ठा पि होती है तो सयूि को स्पिि किता है। ज्यों-ज्यों सयूि की गमी घटती है छोटा होता जाता है तथा सयूािस्त होत ेही जल में ववलीन हो जाता है।

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ववक्रम के मन में जजज्ञासा हुई कक ब्राह्मण का इससे असभप्राय तया है। ब्राह्मण उनकी जजज्ञासा को भााँप गया औि उसने बतलाया कक भगवान इन्र का दतू बनकि वह आया है ताकक उनके आत्मववचवास की ििा ववक्रम कि सकें । उसने कहा कक सयूि देवता को घमण्ड है कक समरु देवता को छो़िकि पिेू ब्रह्माण्ड में कोई भी उनकी गमी को सहन नहीिं कि सकता।

देविाज इन्र उनकी इस बात से सहमत नहीिं हैं। उनका मानना हे कक उनकी अनकुम्पा प्राप्त मतृ्यलुोक का एक िाजा सयूि की गमी की पिवाह न किके उनके तनकट जा सकता है। वह िाजा आप हैं। िाजा ववक्रमाददत्य को अब सािी बात समझ में आ गई। उन्होंने सोच सलया कक प्राणोत्सगि किके भी सयूि भगवान को समीप से जाकि नमस्काि किेंगे तथा देविाज के आत्मववचवास की ििा किेंगे। उन्होंने ब्राह्मण को समरु्चत दान-दक्षिणा देकि ववदा ककया तथा अपनी योजना को कायि-रुप देने का उपाय सोचने लगे। उन्हें इस बात की िुिी थी कक देवतागण भी उन्हें योग्य समझत ेहैं।

भोि होने पि दसूिे ददन वे अपना िाज्य छो़िकि चल प़ि।े एकान्त में उन्होंने मााँ काली द्वािा प्रदत्त दोनों बेतालों का स्मिण ककया। दोनों बतेाल तत्िण उपजस्थत हो गए। ववक्रम को उन्होंने बताया कक उन्हें उस िम्भे के बािे में सब कुछ पता है। दोनों बेताल उन्हें मानसिोवि के तट पि लाए। िात उन्होंने हरियाली से भिी जगह पि काटी औि भोि होत ेही उस जगह पि नजि दटका दी जहााँ से िम्भा प्रकट होता। सयूि की ककिणों ने ज्योंदह मानसिोवि के जल को छुआ कक एक िम्भा प्रकट हुआ।

ववक्रम तुिन्त तैिकि उस िम्भे तक पहुाँच।े िम्भे पि ज्योंदह ववक्रम चढे़ जल में हलचल हुई औि लहिें उठकि ववक्रम के पााँव छूने लगीिं। ज्यों-ज्यों सयूि की गमी बढी, िम्भा बढ़ता िहा। दोपहि आते-आत ेिम्भा सयूि के त्बल्कुल किीब आ गया।

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तब तक ववक्रम का ििीि जलकि त्बल्कुल िाि हो गया था। सयूि भगवान ने जब िम्भे पि एक मानव को जला हुआ पाया तो उन्हें समझत े देि नहीिं लगी कक ववक्रम को छो़िकि कोई दसूिा नहीिं होगा। उन्होंने भगवान इन्र के दावे को त्बल्कुल सच पाया।

उन्होंने अमतृ की बनू्दों से ववक्रम को जीववत ककया तथा अपने स्वणि कुण्डल उतािकि उन्हें भेंट कि ददए। उन कुण्डलों की वविषेता थी कक कोई भी इजच्छत वस्तु वे कभी भी प्रदान कि देते। सयूि देव ने अपना िथ अस्ताचल की ददिा में बढ़ाया तो िम्भा घटने लगा। सयूािस्त होत े ही िम्भा पिूी तिह घट गया औि ववक्रम जल पि तैिन ेलगे। तिैकि सिोवि के ककनािे आए औि दोनों बेतालों का स्मिण ककया। बेताल उन्हें कफि उसी जगह लाए जहााँ से उन्हें सिोवि ले गए थे। ववक्रम पदैल अपने महल की ददिा में चल प़ि।े

कुछ ही दिू पि एक ब्राह्मण समला जजसने उनसे वे कुण्डल मािंग सलए। ववक्रम ने बेदहचक उसे दोनों कुण्डल दे ददए। उन्हें त्बल्कुल मलाल नहीिं हुआ।

5] पााँचवीिं पतुली लीलावती ने भी िाजा भोज को ववक्रमाददत्य के बािे में जो कुछ सनुाया उससे उनकी दानवीिता ही झलकती थी। कथा इस प्रकाि थी-

हमेिा की तिह एक ददन ववक्रमाददत्य अपने दिबाि में िाजकाज तनबटा िहे थे तभी एक ब्राह्मण दिबाि में आकि उनसे समला। उसने उन्हें बताया कक उनके िाज्य की जनता िुिहाल हो जाएगी औि उनकी भी कीतति चािों तिफ फैल जाएगी, अगि वे तुला लग्न में अपने सलए कोई महल बनवाएाँ। ववक्रम को उसकी बात जाँच गई औि उन्होंने एक ब़ि े ही भव्य महल का तनमािण किवाया। कािीगिों ने उसे िाजा के तनदेि पि सोने-चााँदी, हीिे-जवाहिात औि मणण-मोततयों से पिूी तिह सजा ददया।

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महल जब बनकि तयैाि हुआ तो उसकी भव्यता देित ेबनती थी। ववक्रम अपने सगे-सम्बजन्ियों तथा नौकि-चाकिों के साथ उसे देिने गए। उनके साथ वह ब्राह्मण भी था। ववक्रम तो जो मिंरमगु्ि हुए, वह ब्राह्मण मुाँह िोले देिता ही िह गया। त्बना सोच े उसके मुाँह से तनकला-"काि, इस महल का मासलक मैं होता!" ववक्रमाददत्य ने उसकी इच्छा जानत ेही झट वह भव्य महल उसे दान में दे ददया।

ब्राह्मण के तो मानो पााँव ही जमीन पि नहीिं प़ि िहे थे। वह भागता हुआ अपनी पत्नी को यह समाचाि सनुाने पहुाँचा। इिि ब्राह्मणी उसे िाली हाथ आते देि कुछ बोलती उससे पहले ही उसने उसे हीिे-जवाहिात औि मणण-मतुताओिं से ज़ि े हुए महल को दान में प्राप्त किने की बात बता दी। ब्राह्मण की पत्नी की तो िुिी की सीमा न िही। उसे एकबािगी लगा मानो उसका पतत पागल हो गया औि यों ही अनाप-िनाप बक िहा हों, मगि उसके बाि-बाि कहने पि वह उसके साथ महल देिने के सलए चलने को तैयाि हो गई।

महल की िोभा देिकि उसकी आाँिे िलुी िह गईं। महक का कोना-कोना देिते-देित ेकब िाम हो गई उन्हें पता ही नहीिं चला। थके-मााँदे व ेएक ियन-कि में जाकि तनढाल हो गए। अद्धि िात्र में उनकी आाँिे ककसी आवाज से िुल गई।

सािे महल में िुिब ूफैली थी औि सािा महक प्रकाि मान था। उन्होंने ध्यान से सनुा तो लक्ष्मी बोल िही थी। वह कह िही थी कक उनके भाग्य से वह यहााँ आई है औि उनकी कोई भी इच्छा पिूी किने को तैयाि है। ब्राह्मण दम्पतत का डि के मािे बिुा हाल हो गया। ब्राह्मणी तो बेहोि ही हो गई। लक्ष्मी न ेतीन बाि अपनी बात दहुिाई। लेककन ब्राह्मण ने कुछ नहीिं मािंगा तो कु्रद्ध होकि चली गई। उसके जात ेही प्रकाि तथआ िुिब-ू दोनों गायब।

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काफी देि बाद ब्राह्मणी को होि आया तो उसने कहा- "यह महल जरुि भतुहा है,

इससलए दान में समला। इससे अच्छआ तो हमािा टूटा-फूटा घि है जहााँ चनै की नीिंद सो सकते हैं।" ब्राह्मण को पत्नी की बात जाँच गई। सहमे-सहमे बाकी िात काटकि त़िके ही उन्होंने अपना सामान समेटा औि पिुानी कुदटया को लौट आए। ब्राह्मण अपने घि से सीिा िाजभवन आया औि ववक्रमाददत्य से अनिुोि किने लगा कक वे अपना महल वापस ले लें। पि दान दी गई वस्तु को वे कैसे ग्रहण कि लेते।

काफी सोचने के बाद उन्होंने महल का उर्चत मलू्य लगाकिउसे खिीद सलया। ब्राह्मण िुिी-िुिी अपने घि लौट गया। ब्राह्मण से महल ििीदने के बाद िाजा ववक्रमाददत्य उसमें आकि िहने लगे। वहीिं अब दिबाि भी लगता था। एक ददन व ेसोए हुए थे तो लक्ष्मी कफि आई। जब लक्ष्मी ने उनसे कुछ भी मािंगने को कहा तो वे बोल-े "आपकी कृपा से मेिे पास सब कुछ है। कफि भी आप अगि देना ही चाहती हैं तो मेिे पिेू िाज्य में िन की वषाि कि दें औि मेिी प्रजा को ककसी चीज की कमी न िहने दें।" सबुह उठकि उन्हें पता चला कक सािे िाज्य में िन वषाि हुई है औि लोग वषाि वाला िन िाजा को सौंप देना चाहते हैं। ववक्रमाददत्य ने आदेि ककया कक कोई भी ककसी अन्य के दहस्से का िना नहीिं समेटेगा औि अपने दहस्से का िन अपनी सम्पजत्त मानगेा। जनता जय-जय काि कि उठी।