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UGC Journal No.: 41285 N : 2321-0443csttpublication.mhrd.gov.in/pdf/Gyan-Garima-Sindhu-59.pdf · UGC Journal No.: Ò COMMISS M 41285 ान ... ii UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान

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  • UGC Joournal No.:

    COMMISSM

    41285

    ान

    वैज्ञािनक

    SION FOR SMINISTRY O

    (DEPAR

    ग( ैमािस

    जनसंच

    अं

    (जुलाई-

    क तथा तकमानव ससंाध

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    SCIENTIFIOF HUMANRTMENT O

    GOVERN

    रमिसक पि क

    चार िवशे

    अंक - 59

    िसतंबर 2

    कनीकी श दधन िवकास मर िशक्षा िवभभारत सरकार

    IC AND TEN RESOURCOF HIGHER

    MENT OF I

    मा िसका)

    शेषांक

    018)

    दावली आमंत्रालय भाग)

    ECHNICALCE DEVELO

    R EDUCATIOINDIA

    ISS

    िसंधु

    आयोग

    L TERMINOOPMENT ON)

    SN : 2321-0

    धु

    OLOGY

    0443

  • ii UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443 

    *Kku xfjek fla/kq* ,d =Sekfld foKku if=dk gSA if=dk dk mn~ns'; gS& fganh ek/;e ls fo'ofon~;ky;h o vU; Nk=ksa ds fy, lkekftd foKku laca/kh mi;ksxh ,oa vn~;ru ikB~; iqLrdh; rFkk laiwjd lkfgR; dh izLrqfrA blesa oSKkfud ys[k] 'kks/k&ys[k] rduhdh fuca/k] 'kCn&laxzg] 'kCnkoyh&ppkZ] iqLrd&leh{kk vkfn dk lekos'k gksrk gSA

    ys[kdksa ds fy, funsZ'k 1- ys[k dh lkexzh ekSfyd] vizdkf'kr rFkk izkekf.kd gksuh pkfg,A 2- ys[k dk fo"k; ekufodh ,oa lkekftd foKku fo"k;ksa ls lacaf/kr gksuk pkfg,A 3- ys[k ljy gks ftls fon~;ky;@egkfon~;ky; ds Nk= vklkuh ls le> ldsaA 4- ys[k yxHkx 2000 ls 3000 'kCnksa dk gksA d`i;k Vkbi fd;k gqvk ;k dkxt ds ,d vksj Li"V gLrfyf[kr

    ys[k Hkstsa ftlds nksuksa rjQ gkf'k;k Hkh NksM+saA 5- izdk'ku gsrq Hksts x, ys[k ds lkFk mldk lkj Hkh fganh esa vo'; HkstsaA ys[k eas vk;ksx n~okjk fufeZr

    'kCnkoyh dk gh iz;ksx djsa rFkk iz;qDr rduhdh@oSKkfud fganh 'kCn dk ewy vaxzsth iz;kZ; Hkh vko';drkuqlkj dks"Bd esa nsaA

    6- 'osr&';ke ;k jaxhu QksVksxzkQ Lohdk;Z gSaA 7- ys[k ds izdk'ku ds laca/k esa laiknd dk fu.kZ; gh vafre gksxkA 8- ys[kksa dh Lohd`fr ds laca/k esa i= O;ogkj dk dksbZ izko/kku ugha gSA vLohd`r ys[k okil ugha Hksts tk,axsA

    vr% ys[kd d`i;k fVdV&yxk fyQkQk lkFk u HkstsaA 9- izdkf'kr ys[kksa ds fy, izksRlkgu ds rkSj ij vk;ksx ds fu;ekuqlkj ekuns; fn;k tk;sxkA Hkqxrku ys[k ds

    izdk'ku ds ckn gh fd;k tk,xkA 10- d`i;k ys[k dh nks izfr;ka fuEu irs ij Hksts% laiknd] Kku xfjek fla/kq oSKkfud rFkk rduhdh “kCnkoyh vk;ksx if'peh [kaM & 7] jked`".kiqje~ ubZ fnYyh & 110066 11- leh{kk gsrq d`i;k iqLrd@if=dk dh nks izfr;ka HkstsaA

    if=dk dk 'kqYd% Hkkjrh; eqnzk fons'kh enzk lkekU; xzkgdksa@lLaFkkvksa ds fy, izfr vad #- 14-00 ikSaM 1-64 MkWyj 4-84 okf’kZd pank #- 50-00 ikSaM 5-83 MkWyj 18-00 fon~;kfFkZ;ksa ds fy, izfr var #- 8-00 ikaSM 0-93 MkWyj 10-80 okf"kZd pank #- 30-00 ikSaM 3-50 MkWyj 2-88 osclkbV% www.mhrd.cstt.gov.in fcØh gsrq i=&O;ogkj dk irk% fcØh LFkku% dkihjkbV 2018 lgk;d funs'kd] fcØh ,dd izdk'ku fu;a=d] izdk'ku foHkkx izdk'kd% oSKkfud rFkk rduhdh “kCnkoyh Hkkjr ljdkj] oSKkfud rFkk rduhdh 'kCnkoyh vk;ksx vk;ksx] if'peh [kaM&7] flfoy ykbUl] fnYyh&110054 ekuo lalk/ku fodkl ea=ky; jked".kiqje~] lsDVj&1] Hkkjr ljdkj] if'peh [kaM&7 ubZ fnYyh& 110066 jked`".kiqje~] ubZ fnYyh & 110066 nwjHkk’k& ¼011½ 26105211 QSDl & ¼011½ 26102882 if=dk esa O;Dr fopkj ys[kdksas ds vius gSA laiknd eaMy dh buls lgefr vfuok;Z ugha gSA

  • UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443 iii 

    परामशर् एवं संपादन सिमित प्रधान सपंादक

    प्रोफेसर अवनीश कुमार, अ यक्ष

    सपंादक डॉ. अशोक सेलवटकर, सहायक िनदेशक

    एवं ीमती चक्प्रम िबनोिदनी देवी

    सहायक वैज्ञािनक अिधकारी (पत्रकािरता)

    प्रकाशन-मदु्रण यव था ी िशव कुमार चौधरी सहायक िनदेशक

    सपंादन सिमित

    डॉ. महावीर िसहं मा यम िवशषेज्ञ पूवर् िनदेशक, दरूदशर्न  भोपाल, म य प्रदेश 

    डॉ. रेणु िसहं  सहायक प्रोफ़ेसर, जनसंचार िवभाग  महा मा गांधी अंतररा ट्रीय िहदंी िव विव यालय वधार्, महारा ट्र 

    प्रो. ए.के. ठाकुर  पूवर् कायर्कारी संपादक,  दैिनक भा कर

    ी सुधीर कुमार िरटंन  सहायक प्रोफ़ेसर, जनसंचार िवभाग  महाराजा अग्रसेन कॉलेज, नई िद ली

    ी िवनय राय  सहायक प्रोफ़ेसर, जनसंचार िवभाग  महाराजा अग्रसेन कॉलेज, नई िद ली

  • iv

    पित्रकाएँ ज्ञछात्र , िवआव यकतमानिवकी सामािजकिहदंी म असे संबद्ध बनाना है।तकनीकी आिद प्रकअंक, जनस इससंबंिधत लेके िविभ नको ही सशोदधािथर्यिविदत है इस पित्रकपिरिश ट इसम अपनी अप्र यक्ष िबनोिदनी पूणर् िव वस मितय

    UGC JOUR

    आयोग मूलज्ञान गिरमा िवान , िशक्षकताओं को पूरिवषय से

    क िवज्ञान िवषअ ययन करनेउपयोगी एवं ज्ञान गिरमालेख, शोध ले

    कािशत की जासंचार िवशषेाकंस िवशषेांक मलेख सि मिलतन िव वान ससि मिलत िकय के िलए ज्ञआयोग िविभ

    का के साथ आके प म सिस िवशषेांक केकृतज्ञता यप से इस िव

    देवी, स.वै.अ,वास है िक यह का वागत

    RNAL NO-4128

    ल लेखन को िसधंु एवं िवज्ञ, वैज्ञािनक , पूरा करती हैसंबिंधत एक

    षय से संबंिधन ेवाले छात्र व नवीनतम मा िसधंु िमले-जलख, िनबंध, मॉाती है। इसी क के प म प्रम मीिडया केत िकये गए हैसे लेख प्रा त कया जा सका ज्ञान गिरमा िसिभ न िवषय कआयोग वारा िि मिलत िकयेके िनमार्ण करयक्त करता हँू िवशषेांक के िन को साधुवाद ह िवशषेांक प्रहै I  

    5 ज्ञान

    अ य

    प्रो सािहत कज्ञान गिरमा िसपत्रकार आिद। ‘ज्ञान गिरक त्रमैािसक धत लेख प्रकािके िलए मानिमूल पाठ प्रदाजुले प्रकार कीॉडल श दाविलृंखला म मु

    प्र तुत करने क जुड़ ेसभी पहै तथा िवषयहुए, गुणव ताा है I आशा िसधं ुका यह िवका श द कोशिनिमर्त जनसंये गए है I रने म अपनाू I साथ ही उिनमार्ण म सहदेता हँू िजनक

    प्रयोक्ताओं के

    न गिरमा िसधंु: अ

    यक्ष की ओ

    करने के िलए िसधंु प्रकाशनकद की िवषय मिरमा िसधं’ु  सपित्रका है ििशत होते ह। निवकी और सादान करना तकी है, िजसम मिलयाँ, पिरभाषामुझ ेआप सबकम हषर् का अपहलुओं जैसे य िवशषेज्ञ केा सुिनि चत कहै िक िव वििवशषेांक अितश , पिरभाषा कसंचार श दावली  ा बहुमू य योउन सभी सं थहयोग िदया I अके प्रयास सेिलए उपयोगी

    अकं-59 (जुलाई-

    ओर से

    ए िहदंी म दोकरता है और म िहदंी ज्ञान सामािजक िविजसम मानि इस पित्रका सामािजक िवज्ञतथा पूरक ज्ञामानिवकी तथा-कोश,सूचनाएँके समक्ष यहअनुभव हो रहातकनीक, भाष

    क सहयोग से करने के उ ेविव यालयी िशत उपयोगी होगकोश एवं शली के लगभग

    ोगदान देने वथान का भी अंत म इस यसे योजना कोगी िसद्ध होगा

    -िसतंबर)

    ो त्रमैािसक इस प्रकार

    न वधर्न की वज्ञान और िवकी तथा का उ े य

    ज्ञान िवषय ानपरक सािथा सामािजक एँ, समाचार तह ज्ञान गिरमा है I  षा, सामािजकसंपादन िकयाय से इस म िशक्षा तथा सगा I  दाविलय का

    ग 3000 (अगें्र

    वाले उन सभीआभारी हँू िजयोजना से जड़ुको मूतर् प िदI िजज्ञासु पाठ

    (प्रोफे

    ISSN:232

    िह य को लोकिवज्ञान से सं

    तथा पु तक समा िसधंु का 5

    क स दभ आया गया है I इस केवल 14 आसंचार सं थान

    प्रकाशन करग्रजी-िहदंी) श द

    ी िवशषेज्ञ केिज ह ने प्र यक्षड़ी ीमती चिदया जा सका ठक के सुझा

    फसर अवनीश कु अ यक्ष

    1-0443 

    ोकिप्रय सबंिधत समीक्षा 59 वां

    आिद से स देश आलेख न एवं

    रती हैI द को

    क प्रित क्ष एवं चक्प्रम I मुझे ाव एव

    कुमार)

  • UGC JOUR

    नवाचार सस दभ सेके वा तिविलए और िवक प हैमूलकता कअपने िवचबाज़ार म मह ता कअपने लेखी पंकज

    रेखांिकत ि शएक प्रसंगशमार् के बगिरमा िसिविभ न क्ष डॉ रेणु िसके अ यक्षिमला I ससंबंिधत अिवशषेांक आ मूतर् प,

      

    RNAL NO-4128

    पत्र पित्रकाएँ,संबंधी सूचनाओसे संयोिजत किवक भाषानुवा कोई उपकरणहै I इस अंक का सा य रेचार यक्त िकख़बर की ि

    को रेखांिकत कख मीिडया के प्रसून और डिकया है I  शोध छात्र सुग सािबत होनेबाज़ार और जिसधंु के प्र ततुक्षेत्र की अनुभइस अंक को

    िसहं एवं ी िवक्ष महोदय का साथ ही आयोगअिधकारी एवंआप सब के अंत पुनःज्ञान गिरमा

    85 ज्ञ

    , शा त्रस मतओं का सतत करते हुए ज्ञानाद है क्य िक ण नहीं है I  म डॉ महावरेखांकन िकयािकये है I  ी सुि थित को रेखकर रहा है I िविभ न वडॉ. िदलीप ए

    ी सूयर्कुमारीन ेलायक है जन सरोकार पत अकं म भाभूितय को आ मूतर् प म िवनय कुमार र िवशषे आभारोग के िनयत्रणवं कमर्चारी केसमक्ष प्र तुत मै सभी िवशिसधंु का यह

    “अपना सारा

    ज्ञान गिरमा िसधंु

    संत ज्ञानिनिध प्रवाह होती हैन के नए संभाषा के आलपत्र-पित्रकाएं वीर िसहं ने ा है तो प्रो.गसुधीर कुमार िरखांिकत करता डॉ अिमता, ड

    व प और उसएव ं डॉ सुरेश

    ी पी. एव ं ीI इसके अितिपर केि द्रत लाषा, पत्रकािरत

    आपके स मुख लान ेम िवशेराय ने अपना ार िजनके मागण अिधकारी क प्रित कृतज्ञत कर पा रही शषेज्ञ , लेखक अंक आपके क्या है इस जलोहा उन लो

    : अकं-59 (जुला

    संपादकीय के बरक्स,  िकहै जो पाठक करण को प्रलावा, मानव सहमारी ता काजहाँ भाषा के

    गोपा बागची निरटंन का लेखहै I डॉ रेणु िडॉ बिबता अग्रसके सामािजक च द्र नायक

    ी वी राजे वर िरक्त डॉ अिमलेख पाठक कता एवं उससे रखने का यह

    शषज्ञ डॉ महाव अमू य योगगर् दशर्न एवं महोदय डॉ अ

    ज्ञता यक्त कहँू I   और अ य स मुख प्र तुजीवन म, सबोग का, अपनी

    ाई-िसतंबर)

    िकसी िवषय केकी िजज्ञासाओप्र तुत करती संवेदना या ज

    कािलक आव यके उ िवकास ने िहदंी पत्रक

    ख मीिडया म प्रिसहं का लेख ग्रवाल डॉ वितक सरोकार परक ने िवज्ञान प

    सायलु के लेिमत कुमार िवके िलए नई जुड़ ेकितपयह एक लघु प्रवीर िसहं, डॉ गदान िदया उनबहुमू य पे्ररणअशोक एन. करती हँू िजन

    सहयोगी सहकतुत करते हुए ब तो िलया उनी केवल धार” के

    (चसहयक

    ISSN:232

    के अधुनातन ओं एवं अिभहै I जनमा य

    जीवनानुभव कयकता की अनऔर उसकी

    कािरता एवं शप्र तुत ख़बर राजनीितक सितर्का नंदा, डॉ र अपने िवचापित्रका म िहदं

    लेख नवांकुर अिव वास एवं सामग्री उपल

    य सामािजक सप्रयास है I ए.के ठाकुर, नका बहुत-बहुणा से इस िवशसेलवटकर एव

    जनके सहयोग

    हकमीर् िमत्र केअ ण कमल

    उधार ” साथ बहुत ब

    चक्प्रम िबनोिदवैज्ञािनक अिध

    21-0443

    िववेचन एवं िचय को वयम, मानव सको यक्त करनुपूित र् का उपमीिडया म

    श दावली सजृन की बाज़ार मसंचार को िहदं पूिणर्मा कुमार यक्त िकयहदी के योगदा

    अ येताओं केी ल मी ना

    ल ध करायगे सरोकार को  ी सधुीर के

    हुत आभार I आशषेांक को मूतवं आयोग से से यह जन

    क अथक प्रयाल की पंिक्तयाँ

    बहुत आभार I

    िदनी देवी) िधकारी (पत्रका

    प्रगट तर्मान संवेदना रने के पयुक्त प्रयोग

    जन पर म और दी की मारी न ेये हैI ान को

    क िलए ारायण I ज्ञान समेटे

    िरटंन, आयोग ूतर् प

    स सभी नसंचार

    ास का ाँ

    कािरता)

  • vi UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443 

    अनुक्रमिणका

    अ यक्ष की ओर से संपादकीय आलेख शीषर्क लेखक पृ ठ संख्या 1 आधुिनक संचार मा यम म भारतीय

    भाषाओं की श दावली का िवकासडॉ. महावीर िसहं 1

    2 भारत म िहदंी पत्रकािरता और श दावली सजृन

    डॉ. गोपा बागची 7

    3 राजनीितक संचार और मीिडया साक्षरता म िहदंी एवं क्षेत्रीय भाषा की भूिमका

    डॉ. रेणु िसहं 14

    4 ख़बर का बाज़ार या बाज़ार म ख़बर ी सुधीर के िरटंन 225 सोशल मीिडयाः जनांदोलन का हिथयार डॉ. अिमता 286 समाचार पत्र और सोशल मीिडया डॉ. बिबता अग्रवाल 357 िहदंी म िवज्ञान लेखन

    डॉ. िदलीप कुमार प्रो. (डॉ.) सुरेश चंद्र नायक

    39

    8 िहदंी म िवज्ञान पत्रकािरता ी पंकज प्रसून 479 खुली जेल मानवािधकार और मीिडया की

    भूिमका डॉ. वितर्का न दा 51

    10 भारतीय मीिडया म त्री की सहभािगता: संभावनाएं एवं चुनौितयाँ

    डॉ. पूिणर्मा कुमारी 57

    11 मीिडया का ‘अनुकूलन कारोबार’ डॉ. अिमत कुमार िव वास 62

    12 जनमा यम म जनसरोकार के प्र न और उनकी िह सेदारी

    ी ल मी नारायण शमार् 68

    13 िहदंी म वैज्ञािनक एवं तकनीकी श दावली का िवकास :पत्रकािरता के संदभर् म

    सु ी सूयर् कुमारी. पी. 73

    14 िहदंी पत्रकािरता म आिदवासी स दभर् ी बोलचेटवार राजे वर सायलु 79

    जनसंचार मूलभूत श दवाली 83

  • UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443 1  

      

    आधुिनक संचार मा यम म भारतीय भाषाओ ंकी श दावली का िवकास  

    डॉ. महावीर िसहं

    भारतीय भाषाओं म जो भी क्रांितकारी पिरवतर्न हो रहे ह उनका सीधा संबंध प्रौ योिगकी से जोड़ा जा सकता है िवकास की अवधारणा भी िडिजटाइजेशन से संब ध है। वतर्मान भारत सरकार के िवकास संबंधी सम त कायर्क्रम िडिजटल तकनीक पर आधािरत है। अथर् यव था को “कैशलैश” बनाने के िलए नोटबंदी तथी जीएसटी जैसे क्रांितकारी कदम उठाये गये ह। हमारा देश प्रौ योिगकी समृ ध देश बनने की िदशा म आगे बढ़ चुका है। इंटरनेट या संजाल आधािरत अथर् यव था, प्रशासन म पारदिशर्ता तथा दािय व भावना से पे्रिरत हो कर देश के 125 करोड़ नागिरक को संसार के उ नतशील देश म अिग्रम पंिक्त पर खड़ा करने म सक्षम ह। इन सभी भूिमकाओं म आधुिनक जनसंचार की भूिमका अहम है। मुद्रण मा यम, इलैक्ट्रॉिनक मा यम तथा इंटरनेट मा यम तेज गित से जनसंचार की िवधाओं को दरू थ अंचल म फैला रहे ह। दरू संचार के क्षेत्र म उपग्रह के कारण ‘कनेिक्टिवटी’ का िव तार हुआ है। हमारा पूरा देश 24 घ टे ऑनलाईन संचार से जुड़ा है तथा मोबाईल-फोन सुिवधा के कारण सारी दिुनया हमारी मुट्ठी म है।  साइबर संचार के युग म जहाँ हम अग्रणी देश की पंिक्त म खड़ ेह वहीं नई सम याओं से भी जूझ रहे ह। प्रौ योिगकी के प्रसार के कारण हमारे देश म लगभग एक लाख पत्र-पित्रकाओं का प्रकाशन हो रहा है तथा इलैक्ट्रॉिनक मीिडया के क्षेत्र म लगभग एक हजार से अिधक प्रसारण चैनल रा ट्रीय तर पर सेवाएं दे रहे ह, वहीं रेिडयो प्रसारण के भी कद्र की संख्या हजार से अिधक ह। िफ म िनमार्ण और प्रदशर्न की सुिवधाओं का तेजी से िव तार हुआ है।  इस िवकास की दौड़ म तकनीकी िव तार संतोष का िवषय है लेिकन संचार मात्र प्रौ योिगकी नहीं है। यह मानव संवेदनाओं का भाषानुवाद है। संचार तकनीकी की अपेक्षा भाषागत संवेदना का प्राितशाख्य या उपिनष है। मनु य की िजज्ञासाओं की संतुि ट करना संचार का मुख्य येय है िजसकी प्राि त एक सावर्भौिमक भाषा प्रतीक वारा संभव है। मनु य पर पर संपकर् एवं संबंध- थापना के िलए श द को एक मा यम के प म अंगीकार करता है। इसीिलए श द को ब्र म कहा गया है क्य िक श द की साम यर् उसकी अिभ यिक्त क्षमता से अिधक है।  भारतीय भाषाओं के श द भंडार को समृ ध बनाने के िलए भारतवषर् म सदैव प्रयास होते रहे ह। वतंत्रता प्राि त के समय संिवधान िनमार्त्री सं था ने संिवधान की धारा 344 खंड (4) के अंतगर्त श दावली आयोग के गठन का प्रावधान िकया था। 1 अक्टूबर, 1961 को मानव संसाधन िवकास मंत्रालय के अंतगर्त भारत सरकार ने श दावली आयोग का गठन िकया िजसका येय भारतीय भाषाओं म तकनीकी श दावली का िवकास करना था।  हमारे देश म भाषाओं की बहुलता एक वरदान है। हमारे संिवधान म 22 राजभाषाएँ सि मिलत ह जो अपने सािहि यक वैभव के कारण नागिरक की सामािजक-सां कृितक समृ िध का प्रतीक है। एक-एक अनुभूित को या आशय को यक्त करने के िलए पयार्यवाची श द का बाहु य है। लोक जीवन म

  • 2 UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443  

    सािहि यक अनुभव को अिभ यक्त करने के िलए भाषा का समृ ध भंडार हमारे पास है लेिकन प्रौ योिगकी के क्षेत्र म हमारी दीनता या िनधर्नता भी बड़ी सम या है। श दावली आयोग वारा िविभ न िवषय की मानक श दावली तैयार की गई है। उ चतम यायालय म इन श दाविलय को शासकीय सं थाओं तथा िशक्षण एवं प्रकाशन सं थान के िलए मानक श दावली के प म मा यता प्रदान की है। तकनीकी श दावली म एक पता एवं मानकीकरण की सम या आज भी बनी हुई है।  आयोग ने 1961 के प चात ्अनेक श दावली ग्रंथ का प्रकाशन िकया है। सवर्प्रथम प्रशासिनक श दावली का प्रकाशन 1965 म िकया गया था और अभी तक उसके 15 संशोिधत एवं पिरविधर्त सं करण प्रकािशत हो चुके ह। आजकल श दावली आयोग रा ट्रीय तर पर आधुिनक तकनीकी ज्ञान को भारतीय भाषाओं म उपल ध कराने का कायर् स पािदत कर रहा है। इन ग्रंथ को कं यूटर तकनीक वारा वेबसाइ स के प म उपल ध कराया जा रहा है। सूचना प्रौ योिगकी का िवकिसत प हमारी भारतीय भाषाओं म िजतना शीघ्र उपल ध होगा देश देश म िडिजटल सं करण की प्रिक्रया उतनी ही शीघ्र संप न होगी। यह युग िडिजटल तकनीक का युग है जहाँ एक ही थल पर सभी िवधाओं का अिभसरण या क वजस संभव है।   आज के प्रौ योिगकी प्रधान युग म िकसी भाषा की समृ िध इस त य पर िनभर्र है िक वह िवज्ञान एवं प्रौ योिगकी के क्षेत्र म प्रयुक्त होने वाली िवदेशी भाषाओं के समतु य श द का िनमार्ण िकतनी तेजी स कर पाती है। कला, सािह य और सं कृित के क्षेत्र म भारतीय भाषाएं िवशषेतः िहदंी भाषा िकसी भी िवदेशी भाषा से पीछे नहीं है। भारतीय भाषाओं म रचनाकार ने श द के पयार्य रचने म गहरी िच प्रदिशर्त की है। िजतने पयार्यवाची श द की उपल धता भारतीय भाषाओं म है उतनी समृ िध अिधकांश िवदेशी भाषाओं म नहीं है। उदाहरण के तौर पर िहदंी भाषा के किवय ने अपनी रचनाओं म पयार्यवाची श द की बहुलता को अ यिधक मह व िदया है। रीितकालीन किवय ने इस क्षेत्र म आ चयर्जनक सफलता प्रा त की है। एक ही छंद मे अनेक पयार्यवाची श द का उपयोग अनेक िहदंी किवय की रचनाओं म हुआ है। गो वामी तुलतीदास ने “रामचिरतमानस” म अपने एक दोहे म िस धु के दस

    बां यो वनिनिध, नीरिनिध, जलिध, िसधंु वारीश। स य तोयिनिध, क पती, उदिध, पयोिध, नदीश।।

    लेिकन िवज्ञान, उ योग, उपकरण िनमार्ण आिद के क्षेत्र म पयार्यवाची श द का अकाल सा है। मशीन का िनमार्ण हमारे देश म अभी हाल म ही प्रार भ हुआ है। हम मशीन तथा उपकरण का आयात ही करते रहे ह। प ट है िक आयात के साथ-साथ िवदेशी भाषा की श दावली की भी आयात होता है और आयाितत श द पर हमारी िनभर्रता बढ़ जाती है। एक लंबे अंतराल के प चात ्जब हम भारतीय भाषाओं म िवदेशी भाषाओं के समतु य नए श द का िनमार्ण करते ह तो हमारे श द उ चारण के तर पर अटपटे और अनजाने से लगते ह। इस प्रकार के श द जन वीकृित प्रा त नहीं कर पाते। श द िनमार्ण की िविधयाँ भी पारंपिरक शलैी से मुक्त नहीं हो सकी है। हम मूल श द की रचना नहीं करते वरन ्उपल ध श द म उपसगर्, प्र यय या संिध-समास आिद की प्रयुिक्त से नए श द गढ़ते ह

  • UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443 3  

    जो न तो समतु य होते ह और न मौिलक अथर्व ता के धनी बन पात ेह। अभी तक श दावली आयोग ने लगभग छह लाख नए श द का चयन िकया है या उनके मूल प को पांतिरत कर नया आकार िदया है। यह कायर् िनःसदेह एक मह वपूणर् उपल ध है लेिकन इन श द म मूल श द की रचना नग य है। हम उपल ध श द के पांतरण से संतोषप्रद हल प्रा त नहीं हो सकता जब तक िक नए मूल श द का िनमार्ण न िकया जाए। ऐसा नहीं है िक हमारी भारतीय भाषाओं म सटीक श द का अभाव है लेिकन इनकी संख्या को बढ़ाना आव यक है।  िवदेशी भाषाओं के श द की तुलना म भारतीय भाषाओं के अनेक समतु य श द अथर् एवं विन की ि ट से अिधक उ तम लगते ह। इस त य के कारण हम नए मूल श द का िनमार्ण कर तो हम इस क्षेत्र म सफलता प्रा त हो सकती है। अपनी भारतीय भाषाओं की श दावली का उपहास करने से कोई लाभ नहीं होगा। नए श द की लोकिप्रयता उनके बारंबार उपयोग/प्रयोग से बढ़ती है। रेिडयो से प्रसािरत िहदंी तथा अ य भारतीय भाषाओं म भाषागत सुधार की झलक समाचार बुलेिटन म देखी जा सकती है। अगें्रजी तथा िहदंी भाषा के अनूिदत श द की तुलनाः- 

    अंगे्रजी भाषा के श द  िहदंी भाषा म अनूिदत े ठतर श द Aberration िवपथन Abort िवफलन Absorb अवशोषण Acoustic वािनक Adapter अनुकूलक Air conducting वातानुकूलन Ambience पिरवेशी Analog अनु प Attenuation क्षीणन Booster वधर्क Capsule संपुिटका Caption शीषर्क Carking उ कीणर्न Coating लेपन Convergence अिभसरण Distortion िव पण Emission उ सजर्न Format आ प Hack िव छेदक 

  • 4 UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443  

    Impedance प्रितबाधा Innovation नवाचार Modulation मॉडुलन Orientation उ मुखीकरण Oscillator दोिलत्र Partial आंिशक Proportional समानुपाितक Radiation िविकरण Random या ि छत Reflection परावतर्न Sample प्रितदशर् Satellite उपग्रह Signal संकेत Transmitter पे्रिषत्र Variable चर 

    िवदेशी भाषाओं ने अ य देश की भाषाओं के श द को अपनी मूल भाषा म समािहत कर अपनी भाषा को समदृ्ध िकया गया है। अंगे्रजी भाषा म लैिटन, ग्रीक, फ्रच, जमर्न, पेिनश आिद अनेक भाषाओं के श द सि मिलत ह। वयं िहदंी भाषा म अ य भारतीय भाषाओं के श द को वीकार िकया गया है अतः हम नए मूल श द का िनमार्ण करने के िलए देशी तथा िवदेशी भाषाओं का आ य लेना चािहए। िजन देश म नवीन प्रौ योिगकी का िवकास हुआ है वहीं की श दावली से उपयुक्त श द का चयन कर िहदंी भाषा म पांतिरत कर सकते ह। िहदंी याकरण के िनयम म भी कुछ सीमा तक छूट दी जानी चािहए। अंगे्रजी भाषा के अनेक श द को हम िहदंी के िलगं-वचन िनयम के अनुसार िलखने लगे ह। 

    खिनज, वन पितय , भूगोल, प्राकृितक िवज्ञान, िचिक सा आिद िवषय म ग्रीक, लैिटन या अ य प्राचीन भाषाओं से िलए गए श द अंगे्रजी, पेिनश, जापानी, मंदािरन आिद अनेक भाषाओं म वीकृत हो रहे ह तब हम भी भारतीय भाषाओं म इन पािरभािषक श द को वीकार करना चािहए और भारतीय भाषाओं म मूल श द की कमी को पूरा करना चािहए। श दावली आयोग को सवर्प्रथम िहदंी भाषा म ऐसे श दकोश का िनमार्ण अिवलंब करना चािहए तािक सभी भारतीय भाषाओं को अपनी श द स पदा को समदृ्ध करने का अवसर प्रा त हो सके। िहदंी भाषा के “िवकारी श द ” म थोड़ी आरंिभक सम या याकरण के िनयम को लेकर आ सकती है लेिकन “अिवकारी श द ” म यह सम या नग य ही रहेगी क्य िक यहां पद के प म अिधक पिरवतर्न नहीं होता। 

    भाषा एक थाई िवधा नहीं है इसम देश, काल और पिरि थितओं के अनुसार पिरवतर्न होते रहते ह। अंगे्रजी भाषा के मूल श द भारतीय भाषाओं म वीकार होते रहे ह। जनसंचार मा यम ने िपछले 100 वष म

  • UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443 5  

    अपनी भाषा तथा िवषयव तु म आमूल पिरवतर्न िकये ह। इस प्रिक्रया म अनेक िशक्षण सं थाओं तथा शासकीय िवभाग ने अपना योगदान िदया है। जनमा यम की श दावली को अ यतन प देने के िलए वैज्ञािनक तथा तकनीकी श दावली आयोग ने अथक पिर म करते हुए िहदंी भाषा के श द भंडार को समदृ्ध बनाया है। प्रायः जनमा यम की िवषयव तु म अंगे्रजी श द की अिधकता रहती है। यह आिधक्य अनेक कारण से आज भी बना हुआ है। तकनीकी श दावली म अंगे्रजी श द की प्रधानता एक सम या है। अंगे्रजी के लोक प्रचिलत श द को भारतीय भाषाओं म य का य वीकार कर िलया गया है। इन श द को अब अलग नहीं िकया जा सकता क्य िक उ ह मूल भाषा जैसी वीकृित प्रा त हो चुकी है। उदाहरण के िलए रेल, रोड, इंिजन, बाइक, कार, िशप, िगयर, पेट्रोल, डीजल, टीवी, सैट, रेिडयो, शूट, टाई, पट-शटर्, प्रोफेसर, डायरेक्टर, अिस टट, कीबोडर्, प्रोजेक्टर, मोबाईल, िडिजटल, रेम, रोम, माउस, टीचर, क सोल, केबलटीवी, इ टरनेट, मा यूलेशन, ब ड, बारकोड, बाइट, लै प, केिबनेट, कैमरा, कैसेट, चैनल, चाटर्, िचप, टेशन, िटिकट, साइबर कैफे, डाटा, डसेीबल, एंिटना, िड क, ड्रायवर, डाउनलोड, अपलोड, ईयरफोन, इंजीिनयर, फाइबर, िफ म, िफलर, फेडर, माइक, िफ टर, लॉपी, फोकस, फ्रीक्वे सी, यूज, िग्रड, गन, गाडर्, हाडर्वेयर, हैड, िवडंो, नॉब, लोड, बैटरी, लॉगबुक, टेप, कवरेज, क पीयर, कॉपी, मॉडल, मोडमे, मोटर, नेटवकर् , नट-बो ट, आफसेट, ऑनलाइन, इनपुट, आउटपुट, ट्रांसफामर्र, ब ब, पैकेट, पेज, पेन, पैच, पॉवर स लाई, पोटर्, लाि टक, िप्रटंर, रेिडएशन, रडम, रिज टर, रेलवे, क्रीन, माटर्काडर्, पैक्ट्रम, ि वचबोडर्, ट्राली, ट्रांिज टर, टेबल, वीिडयो आिद-आिद। 

    अंगे्रजी श द के समतु य श द या पयार्य को वीकार करने के िलए िन न िबदंओुं पर िवचार आव यक हैः 

    अ) कभी-कभी श द के पिरिनि ठत प इतने जिटल एवं बोिझल हो जाते ह िक बोलचाल की शैली से मेल नहीं खाते। उदाहरण के िलए “लौह पथ गािमनी” श द प्रचिलत नहीं हो सका। ह के-फु के श द तुरंत प्रचलन म आ जाते ह। सरल, सुबोध तथा प्रामािणक श दावली ही पाठक या ोता की आव यकताओं को पूरा कर सकती है। 

    ब) लोक वीकृित भी एक ऐसी ही शतर् है िजसका यान नवीन श दावली गढ़ने के िलए िकया गया है। श द का चलन लोक वीकृित के कारण ही बढ़ता है। पािरभािषक श द का वभाव ही गौरव-गिरमा से पिरपूणर् होता है अतः उनकी रचना को ग भीर आवरण म पिरवेि ठत करना हमारी बा यता है। कायर्पािलका एवं यायपािलका संबंधी पद-नाम तथा संवैधािनक याख्याओं म गिरमामय श दावली का िनमार्ण आव यक है लेिकन दु हता एवं अनाव यक पांिड य प्रदशर्न से बचना ही ेय कर है। 

    स) िवषयव तु की िववेचना के संदभर् म मह वपूणर् है िक पयार्य का चयन िवषय के वभाव से मेल खाता हो तथा िवषयव तु की सटीक जानकारी देने वाला हो। िवज्ञान तथा प्रौ योिगकी संबंधी श दावली कभी-कभी मूल अंगे्रजी श द से भी किठन लगती है। वाक्य के गठन म भी सरलता एवं प टता का पुट आव यक है। िवज्ञान संबंधी िवषय की श दावली को लोकिप्रय बनाना आज भी एक चुनौती ही है। 

  • 6 UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443  

    द) िवज्ञान िवषय म अंतररा ट्रीय मानक को प्राथिमकता दी जानी चािहए। गिणत के प्रतीक िच ह रोमन िलिप म ही िदए जाने चािहए। 

    इलेक्ट्रािनक मा यम के आिवभार्व के कारण ोता-दशर्क की संख्या म तेजी से विृद्ध हुई है। देश म रेिडयो का प्रसारण 23 जुलाई, 1927 को मु बई कद्र से प्रार भ हुआ था लेिकन रेिडयो कद्र की संख्या वतंत्रता प्राि त के प चात ही बढ़ सकी। आज कुल ोताओं म से 43 प्रितशत ोता िहदंी भाषा के कायर्क्रम सुनते ह। इसी प्रकार देश म दरूदशर्न की थापना 15 िसत बर, 1959 को हुई थी। बाद म िनजी क्षेत्र के केबल टीवी चैनल भी अपना प्रसारण करने लगे। प्रसार भारती के अलावा िनजी केबल टीवी चैन स म जी टीवी, टार टीवी, सोनी टीवी, आजतक टीवी, एनडी टीवी, सहारा टीवी, इंिडया टीवी, इनाडू टीवी आिद अनेक टीवी सं थान कायर्रत ् ह जो वािण य, धमर्, खेल-कूद, काटूर्न तथा मनोरंजन संबंधी कायर्क्रम प्रसािरत कर रहे ह। इन कायर्क्रम का प्रसारण उपग्रह वारा िडस ऐंटीना के मा यम से 24 घ टे िकया जा रहा है। मोबाईल क्रीन पर भी इंटरनेट के मा यम से यह कायर्क्रम उपल ध है।  इंटरनेट की सुिवधाओं म िव तार के कारण तथा ब्रॉडबड की उपल धता के कारण सभी कायर्क्रम कनवरजस- लेटफामर् पर उपल ध ह। सोशल साइ स की लोकिप्रयता ने आम आदमी को नेटीजन बना िदया है। देश की राजनीित आज ऑनलाइन हो चुकी है। बिकंग, ई िबजनेस आिद की लोकिप्रयता के कारण हमारी परंपरागत भाषा म बड़ ेपिरवतर्न हो रहे ह। बीज भाषा एवं कूट भाषा का प्रयोग िदनो-िदन बढ़ रहा है। इस ि थित म याकरण और भाषा िवज्ञान की आव यकता कम हो रही है। श दावली आयोग का यह भी प्रयास है िक वह बदले हुए संदभर् म ोता-पाठक के िलए नई भाषा का िनमार्ण करे। 

    जनमा यम की श दावली के संदभर् म यह त य भी मह वपूणर् है िक यहाँ िवज्ञान, प्रौ योिगकी, मानिवकी, िचिक सा, प्राकृितक िवज्ञान, अंतिरक्ष, पो र्स, अथर्तंत्र आिद िवषय का समावेश करते हुए ऐसी श दावली का िनमार्ण िकया जाये जो अंगे्रजी तथा भारतीय भाषाओं के बीच के अंतराल को पाट सके। यही कारण है श दावली आयोग वारा प्रकािशत ग्रंथ म िनरंतर संशोधन की आव यकता है। अभी भी आयोग वारा प्रकािशत श दावली म ऐसे श द ह जो उ चारण की ि थित से दु ह ह। जब तक पाठक का ज्ञान भारतीय भाषाओं के संदभर् म उ नत नहीं होती, तब-तक कुछ सम याएँ बनी रहगी। अतः हम दोन पक्ष पर यान देना होगा। श दावली के िनमार्णकतार् और उसके उपयोगकतार् दोन की क्षमता तथा योग्यता म सुधार की अपेक्षा है कुछ क्षेत्र म श द के साथ छेड़खानी करने की भी प्रथा है तथा मनोरंजन के िलए भाषा म तोड़-फोड़ करने की भी प्रविृ त है। िवशषेज्ञ से इन िबदंओुं पर िवचार-िवमशर् करने की अपेक्षा है।  

    डॉ. महावीर िसहं मा यम िवशषेज्ञ 

    5/12, झरने वर कॉ पलेक्स जवाहर चौक, भोपाल-462003 

    मो. 9329042672 

  • UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443 7  

    भारत म िहदंी पत्रकािरता और श दावली सजृन

    डॉ. गोपा बागची

    पिरचय आज िहदंी एक देश म नहीं अिपतु यह कई देश म बोली और समझी जाती है, अथार्त वै वीकरण के युग म आज िहदंी वैि वक भाषा के प म िवकिसत हो रही है। वै वीकरण पर इस सदी के प्रमखु िवचारक नोम चो सकी का कहना है िक “सैद्धाि तक प से वै वीकरण श द का उपयोग आिथर्क वै वीकरण के नव उदार प का वणर्न करने से है।” वतर्मान म िनजीकरण, उदारीकरण और िवकिसत देश की भेदभाव पूणर् नीित ने वै वीकरण के अथर् को संकुिचत सा कर िदया है। हालांिक सूचना प्रौ योिगकीने वै वीकरण को एक अलग आयाम प्रदान िकया है िजसम न केवल व तुओं के उ पादन-िवतरण और िवपणन का मागर् िव ततृ हुआ है बि क भाषा के प्रयोग म भी िविवधता के दशर्न हो रह ह। इसिलए यह कहना अितशयोिक्त नहीं होगी िक वै वीकरण ने भी भारत म िहदंी पत्रकािरता के िवकास का मागर् प्रश त िकया है, भले ही यह वाथर्वश यापार हेतु िकया गया हो लेिकन कहीं ना कहीं इसके फल व प िहदंी पत्रकािरता का वैि वक िव तार हो रहा है।

    तभी तो आज हमारी सरकार िहदंी भाषा को संयुक्त रा ट्र म आिधकािरक भाषा का दजार् िदलाने हेतु प्रय नशील है। इस समय भारत से बाहर सौ से अिधक सं थान म िहदंी का पठन-पाठन इस बात का योतक है िक िहदंी मात्र पत्रकािरता और सािह य की चीज नहीं वरन वह दय को जोड़ने वाली ऊजार् भी है और पे्रम की गंगा भी। िहदंी जो कभी देश पे्रम की अिभ यिक्त का एक प था, वह आज़ादी के सात दशक के बाद िफर से अपने उ कषर् की ओर अग्रसर होती िदख रही है। भले ही क्षते्रीय राजनीितक वाथर् की पूित र् के िलए िहदंी की अबतक अनदेखी की जाती रही हो लेिकन भारत माता की वंदना के िलए आज भी िहदंी से बिढ़या अ य कोई भाषा नहीं है।

    मुंबई िव विव यालय के डॉ. क णाशकंर उपा याय अपनी पु तक "िहदंी का िव व संदभर्" म सारणीब ध आंकड़ े देते हुए कहते ह िक भारत एक उभरती हुई अथर् यव था है। यहां के पेशवेर युवा दिुनया के सभी देश म पहंुच रहे ह और दिुनया भर की बहुरा ट्रीय कंपिनयां भारत म िनवेश के िलए आ रही ह। इसिलए एक तरफ िहदंी भाषी दिुनया भर म फैल रहे ह, तो दसूरी ओर बहुरा ट्रीय कंपिनय को अपना यवसाय चलाने के िलए अपने कमर्चािरय को िहदंी िसखानी पड़ रही है। यिद हम िहदंी बोलने और समझने वाले आंकड़ो पर िव वास कर तो संख्याबल के आधार पर िहदंी को आज िव वभाषा माना जा सकता है। िहदंी म सािह य-सजृन की परंपरा गगंा की अिवरल धारा की भांित प्रवाहमान है। उसका का य सािह य तो सं कृत के बाद िव व के े ठतम सािह य की क्षमता रखता है। उसम िलिखत

  • 8 UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443  

    उप यास एवं समालोचना भी िव व तरीय है। उसकी श द संपदा िवपुल है। इसके पास प चीस लाख से यादा श द की सेना है। इसने अ या य भाषाओं के बहुप्रयुक्त श द को उदारतापूवर्क ग्रहण िकया है।

    रा ट्रीय आंदोलन के दौरान िहदंी भाषा की पत्रकािरता ने रा ट्र को एकता के सूत्र म िपरोने का कायर् िकया था और उस समय िहदंी का स मान, दायरा लगातार िवकिसत हो रहा था, हालाँिक कालांतर म उपभोक्तावाद ने िहदंी भाषा के प्रचार-प्रसार पर नकारा मक असर डाला। लेिकन िहदंी अपने व प, कायर् यवहार और आम जन की भाषा होने के कारण आज संयुक्त रा ट्र म एक आिधकािरक भाषा के दज को प्रा त करने के िलए प्रयासरत है। शोध अ ययन की परेखा भारत सरकार के गहृ मंत्रालय के राजभाषा िवभाग की त्रमैािसक पित्रका राजभाषा भारती एवं भारतीय संिवधान म िहदंी तथा अ य भाषाओं की ि थित का अ ययन इस शोध आलेख हेतु िकया गया है। अ ययन के उपरांत यह पाया गया िक अनु छेद 351 के अनुसार भारतीय संिवधान म िहदंी को संघ की राजभाषा के प म मा यता प्रदान करते हुये इस संबंध म अनु छेद 343 से 351 म प्रावधान िकए गए ह। इसम िहदंी भाषा के िवकास संबंधी अनु छेद 351 िवशषे तौर पर उ लेखनीय है िजसम कहा गया है िक संघ का यह कतर् य होगा िक वह िहदंी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका िवकास करे तािक वह भारत की सं कृित के सभी त व की अिभ यिक्त का मा यम बन सके। वहीं डॉ. मािणक मगेृश की पु तक समाचार पत्र की भाषा म लेखक ने बताया है िक कैसे अलग-अलग अखबार म क्षेत्रीय िहदंी श द का प्रयोग िकया जाता है। लेखक ने राजनीितक व सामािजक समाचार का शलैीय पक्ष, िवचलन और भाषागत वैिभ य, िविश ट शलैी, कोड िम ण, अंगे्रजी के श द के िहदंीकरण पर भी चचार् की है। एक अ य पु तक जनसंचार मा यम भाषा और सािह य िजसम सुधीश पचौरी ने जो िवचार प्र तुत िकए ह उससे प्र तुत शोध आलेख म एक ि टगत सहायता प्रा त होती है, इसम भाषा को आमजन के बीच कैसे प्रचिलत कर मानकीकृत िकया जाता है इसका बखूबी वणर्न िकया गया है। वहीं िहदंी भाषा की संवैधािनक व तुि थित संबंधी जानकारी डॉ. दगुार् दास बसु की पु तक भारत का संिवधान- एक पिरचय से प्रा त की गई है। इसके अितिरक्त भी कई अ य पु तक एवं इ टरनेट पर उपल ध आलेख का भी साभार आधार िलया गया है।

    भारत म िहदंी पत्रकािरता का योगदान भारत म पत्रकािरता की शु आत जे स आग टस िहक्की के िवद्रोही तेवर के साथ हुई, िहक्की भारत के प्रथम पत्रकार थ ेिज ह ने पे्रस की वतंत्रता के िलये िब्रिटश सरकार से संघषर् िकया। संघषर् की इस परंपरा का िनवर्हन हमारे उन सभी रा ट्रीय आंदोलनकारी पत्रकार ने तब तक जारी रखा, जब तक की हम आज़ादी नहीं िमली। िहदंी पत्रकािरता जगत म पंिडत जुगल िकशोर शुक्ल और भारते द ुसे लेकर ितलक, िववेदी, िव याथीर्, माखनलाल और गांधी जैसे अनेक पत्रकार ने िजस परंपरा का पालन पोषण िकया, आज भी उसी परंपरा के िनवार्ह की अपेक्षा हमारे समकालीन पत्रकार बधंुओं से की जाती है। आज भी हम उसी गौरवमयी पत्रकािरता के नैितक मू य का हवाला देकर िकसी पत्रकार को कसौटी पर कसते ह िजसका िनमार्ण रा ट्रीय आंदोलन के दौरान हुआ था। वैसे, वतर्मान म आज कई आचार संिहताएं और

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  • UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443 11  

    पत्रकार और सािह यकार को खड़ीबोली िहदंी म िलखने के िलए पे्रिरत िकया और ’सर वती’ म छापकर उ ह थािपत िकया। िववेदी जी ने िहदंी भाषा के श द के पिर कार का अथक प्रय न िकया और िहदंी म लेखक तथा किवय की एक भावी पीढ़ी तैयार की। कभी आचायर् महावीर प्रसाद िववेदी ने कहा था िक ‘िहदंी’ िकसी भाषा के अधीन ना हो क्य िक अधीन भाषा हो या समाज हो या देश, वह कभी भी िवकास नहीं कर सकेगा। वैसे भी िहदंी सामािजक मेल िमलाप की ऐसी भाषा है िजसम एक तरफ सं कृत की शिक्त है तो दसूरी तरफ अरबी, फारसी, अंगे्रजी, उदूर् से उसने श द ग्रहण िकए और जन भाषाएं यथा अवधी, भोजपुरी, ब्रज आिद तो उसके रक्त म भरपूर घुले-िमले ह। इसिलए उ होने ज़ोर देकर कहा है िक सं कृत, फारसी, अंगे्रजी आिद भाषाओं के जो श द प्रचिलत हो गए ह उनका प्रयोग िहदंी म होना ही चािहए। िहदंी की बोिलय और अ य भारतीय भाषाओं को िहदंी की अधीनता के नज़िरये से देखने के अपेक्षा िहदंी की ग्रहणशीलता के नज़िरये से देखे जाने की ज रत है, क्य िक कोई भी भाषा अपनी नम्रता, मेलजोल एव ं अ य भाषा के श द को आ मसात करने से ही स प न बनती है ना िक उससे प्रित वंिदता करने से।

    छ तीसगढ के माधवराव सपे्र जी रा ट्रीयता के प्रितमूित र् थे, उनकी िहदंी िन ठा अपराजेय थी। उनका कहना था, ‘म महारा ट्र से हंू, परंतु िहदंी के िवषय म मुझ ेउतना ही अिभमान है िजतना िकसी भी िहदंी भाषी को हो सकता है। म चाहता हँू िक इस रा ट्रभाषा के सामने भारतवषर् का प्र येक यिक्त इस बात को भूल जाए िक म महारा ट्रीय हंू, बंगाली हंू, गुजराती हंू या मद्रासी हंू।’

    वहीं िहदंी के मूधर् य कथाकार ‘पे्रमचंद’ का एक पे्ररक व प उनके जाग क पत्रकार होने का भी है। ’माधुरी’ और ’हंस’ जैसी पित्रकाओं का संपादन करके उ ह ने अपनी इस प्रितभा का भी उ कृ ट उदाहरण पेश िकया और िहदंु तानी शैली को सभी लोग के बीच लोकिप्रय बनाने का मह वपूणर् कायर् िकया।

    ‘पत्रकार और पत्रकािरता श दावली’ पर आलेख म बाबूराव िव णुराव पराड़कर जी के नाम की चचार् ना हो तो कोई भी आलेख पूरा नहीं कहा जा सकता, क्य िक िहदंी के मािसक पत्र के संपादन म जो ख्याित महावीर प्रसाद िववेदी और पे्रमचंद की है, वैसी ही ख्याित दैिनक पत्र के संपादन म बाबूराव िव णुराव पराड़कर जी (‘आज’) की भी है। दैिनक िहदंी पत्रकािरता के वे आिद-पु ष कहे जाते है। उ ह ने िहदंी भाषा का मानकीकरण ही नहीं, आधुिनकीकरण भी िकया और पत्रकािरता के जिरए िहदंी की पािरभािषक श द संपदा म अभूतपूवर् योगदान िदया। श द गढ़ना एक बात है और श द को लोकिप्रय करके िकसी प्रयुिक्त का अंग बना देना दसूरी बात है। पराड़कर जी ने इस दसूरी बात को संभव करके िदखाया है। इसिलए पत्रकािरता और िहदंी श दावली िनमार्ण म बाबूराव िव णुराव पराड़कर जी के योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। पत्रकािरता श दावली पर िवचार भाषा की सम त इकाइय म श द की सवार्िधक मह ता है। सं कृत भाषा म श द को ब्र म कह कर इसकी े ठता िस ध की गई है। भतृर्हिर ने तो ‘श द प्रयोग’ को ही भाषा कहकर श द का मह व प्रितपािदत िकया है। परंतु वतर्मान वैज्ञािनक, तकनीकी, मीिडया के इस युग म संचार मा यम से िविवध भाषाओं के गढ़े-अनगढ़े श द का प्रयोग बढ़ता ही नहीं बि क लोकिप्रय भी होता जा रहा है ऐसे म

  • 12 UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443  

    पत्रकािरता श दावली पर िवचार करना आव यक प्रतीत होता है। िकसी भी भाषा को जीवंत बनाए रखने के िलये उसम नए-नए प्रयोग होते रहने चािहए। उसम नये-नये श द जुड़ते रहने चािहये। ‘चक्काजाम’ और ‘लाठीचाजर्’ कुछ ऐसे ही श द ह िजनम दो भाषाओं का प ट िम ण िदखता है। इसी प्रकार ‘रोजगारो मुख’ श द, जो उदूर् और िहदंी के िम ण से बना है। यह बात बहुत ही प ट है िक भाषा संवाद के िलये होती है, वहीं यिद भाषा म उदारता रहेगी और यह समय के अनुसार बदलती रहेगी तो जीवंत भी रहेगी; अ यथा, मर जायेगी। िहदंी की पािरभािषक एवं तकनीकी श दावली म सूचना क्रांित के बाद तेजी से पिरवतर्न हुए ह। पत्रकािरता श दावली म इंटरनेट और वेब मीिडया प्रितपल पिरवतर्न ला रह ह। िडजीटल तकनीक से आए सूचना के इस महाजाल म िहदंी के श द को िवदेशी श द से प्रितपल -ब- होना पड़ रहा है। सन ्2000 के बाद पत्रकािरता, सािह य और मीिडया के िविवध क्षेत्र तेजी से िवकिसत हुए ह। मीिडया पर सूचना प्रौ योिगकी का वचर् व बढ़ा है। समाचार-संकलन से लेकर िप्रटं होने तक, मोबाइल फोन, इंटरनेट, लैपटाप, मॉडम, इ यािद साधन का लगातार प्रयोग िकया जा रहा है। समाचारपत्र के कायार्लय अब क यूटर पर आधािरत ह। िप्रटं मीिडया के साथ-साथ इलेक्ट्रािनक मीिडया म भी िहदंी के तकनीकी-श द की संख्या तजेी से बढ है। आज अंगे्रजी के यापक प्रभाव के कारण अनेक तकनीकी श द को य का य ग्रहण कर िलया जाता है। यह प्रविृ त लगातार जारी है। हालात यह है िक जब हम अपना नेट बंद कर राित्र म सो जाते ह तब भी सुबह उठने से पहले दजर्न नए श द अलग अलग थान से क्रीन पर आ जाते ह। जािहर है िक इंटरनेट और वेब पत्रकािरता म आ रहे ऐसे अंगे्रजी श द को रोमन से देवनागरी म िल यंतिरत िकया जा रहा है।

    सवाल यह उठता है िक क्या हम अंगे्रजी के श द को ऐसे ही प्रितिदन आने द? तकनीकी और पािरभािषक श दावली की प्रिक्रया को केवल सरकारी आयोग के भरोसे छोडऩा ठीक नहीं है। इसिलए पत्रकािरता कर रहे लोग की िज मेदारी बनती है िक वे इसम अपना योगदान द। सुखद बात यह है िक लगातार कुछ लोग अपनी िज मेदारी िनभाने आगे आ रहे ह और इंटरनेट तथा वेब पत्रकािरता म नए-नए श द गढ़े जा रहे ह। मेरा ऐसा मानना है िक आधुिनकता और तकनीक के कारण जो नए श द अंगे्रजी म आ रहे ह, उसके िहदंीकरण के िलए आम जनता भी अपनी भूिमका िनरंतर अदा कर रही है। पत्रकािरता और िवज्ञापन जैसे क्षेत्र म तो यह काम पहले से हो रहा है। हम सबसे पहले इंटरनेट की बात कर तो सूचना-तंत्र और पत्रकािरता को आम आदमी तक पहंुचाने की कवायद इस तकनीक ने सरल की है। दिुनया के अनेक अखबार अब इंटरनेट पर पढ़े जा सकते ह। वहीं लॉग-लेखन के काम ने समूची दिुनया म हलचल मचा दी है। सचमुच िव व एक गॉवं बन चुका है और आम आदमी अब सूचनाओं के िलए िकसी सरकारी या गैर सरकारी तंत्र का मोहताज नहीं रहा है। भारत म यिद वेब पत्रकािरता की बात कर तो यह यादा पुरानी नहीं है। देश म सबसे पहले चे नई ि थत िहदं ूअखबार ने अपना पहला इंटरनेट सं करण जारी िकया था। िहदं ूका इंटरनेट सं करण 1995 म आया था। इसके बाद 1998 तक तकरीबन 48 समाचार पत्र ने अपने इंटरनेट सं करण लांच िकए, लेिकन मौजूदा समय म देख तो लगभग सभी मुख्य समाचार पत्र , समाचार पित्रकाओं और टेलीिवजन चैनल ने नेट सं करण मौजूद ह।

  • UGC JOURNAL NO-41285 ज्ञान गिरमा िसधंु: अकं-59 (जुलाई-िसतंबर) ISSN:2321-0443 13  

    िन कषर् िन कषर् के प म कहा जा सकता है िक िहदंी के पत्रकार ने समय के साथ चलते हुए और

    नवीनता के आग्रह को अपनाते हुए सामािजक आव यकता के तहत िहदंी भाषा के िवकास का कायर् अ यंत त परता, वैज्ञािनकता और दरू ि ट से िकया है। वहीं िहदंी पत्रकािरता ने सहज संपे्रषणीय भाषा म नई संक पनाओं को यक्त करने के िलए भाषा-िनमार्ण िबना िकसी दबाव के करके िदखाया है, िजसे िहदंी भाषा म िवकास की आदशर् ि थित कही जा सकता है। इसी प्रकार िहदंी म नए नए श द गढ़ ही नहीं जाएंगे बि क अ य भाषाओं से आ मसात भी िकए जा रहे ह। इसिलए कहा जा सकता ही िक िहदंी भाषा के उ कषर् का यह कायर् िहदंी पत्रकािरता म अनवरत जारी रहेगा। संदभर् सचूी िम , डॉ. अ ण प्रकाश (1989), भाषा की भ