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वेदात वेदात वेदात वेदात - दशन दशन दशन दशन (परम परम परम परम पय पय पय पय वामी वामी वामी वामी शंकरानद शंकरानद शंकरानद शंकरानद) वेद के उराध भाग उपनष है। वे वेदात कहलाते है। उपनष अनेक है जैस ईश, कठ, के न आद। वभन ऋषय ने इनमे परमतव का तपादन कया है। ऊपर से इनम मतभेद दखाई देता है। उसम संगत बैठालने के लए बादरायण ने रचना क। ीमगवीता भी वेदात का माना जाता है। इस कार उपनष, और गीता को वेदात का थानय कहते ह। इन पर शंकराचाय आद भाय लखे है। बाद इन भाय पर वातक, टकाय आद लखी गई। अनेक आचाय वेदात के वतं भी लखे है। इस कार वेदात दशन पर आज वपल साहय उपलध है। भायकार ने वेदात का तपादन अपनी अपनी से कया है। इनम मख भायकार शंकराचाय , रामानजाचाय और मवाचाय है। जीव और के सबंध उनके कोण अतर होन के कारण उनके सदाय चल पडे। शंकराचाय के मतानसार जीव और दो नह है। अत: उनका मत अैतवाद कहलाता है। रामानजाचाय वगत भेद वीकार ईर, जीव और जगत को उसी का मानते है। वे वशाैतवाद है। नबकाचाय जीव और को एक से अभन और एक से भन मानकर अपने मत को ैताैत कहते है। मवाचाय इन दोनो दो वतं साय मानकर ेतवाद का तपादन करते है। वे इसके समथन उपनषद से उदाहरण देकर माण तत करते है। इन आचाय सबसे शंकराचाय और रामानजाचाय है। शंकराचाय शंकराचाय शंकराचाय शंकराचाय का का का का अैत अैत अैत अैत वेदात वेदात वेदात वेदात शंकराचाय का अैत वेदात एक अतीय सा है। उसम सजातीय, वजातीय या वांगत कोई भेद नह है। जीव अपने वातवक है। जगत् मायामय आभास मा है अत: के अतर कहं कछ नह है। इस सात परमतव को कहते है। वह सत् , चत् और आनद वप है। ये उसके वप लण है। चेतना है। वह अनाद, अनत और नय होने के कारण सत् है। वह पण होन के कारण आनदवप है। सत् और चत् दोनो आनद के अंतगत जाते है। ये तीन नह एक है। सत् , चत् और आनद कसी पदाथ के धम या गण नहं है। जगत का कारण भी है। यह उसका तटथ लण है। तटथ लण वत के आगतक और परणामी धम का वणन करता है। से जगत उप होती है , उसी िथत रहता है और उसी

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