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रतन परदोप 0.69 @7€868 अधवन लण नवरलो एव उपरलो का विसततविवचन |

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रतन परदोप 0.69 @7€868 अधवन

। लण‌

नवरलो एव उपरलो का विसतत विवचन |

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रतन-परदीप ^ ^ पा) शफर

07 (1.8

लखक : ° गौरीशकर कपर

® रजन सिक 16, अनसारी रोड, दरियागज

नई दिलली-110002

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परकाशक :

रजन पबलिकशनस

16, असारी रोड, दरियागज,

` नई दिलली - 110002

फोन - 3278835

© सरवाधिकार परकाशकाधीन

नवीन सशोधित ससकरण

. 2003

मलय : 100.00

डी जी परिटरस,

शाहदरा, दिललो-32

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एक ददि म

असली ओर बनावटी रतनो म अनतर

नौ बहमलय (?र६(1()।५) रतनो की विशषताय व पहचान

माणिकय ओर सपाइनल दखन म एक समान

नीलम ततकाल फल दिखान वाला

निहाल भी कर द ओर सताय भी बरी तरह

इसका मकाबला करता ह वनिटोइट (8८417017)

पनन क नाम पर बिकन वाला डायोषटज (17.८.५६)

कछ रतन अलपमोली (ऽ8)41-?२2100)) अवशय

परनत गणो (चमतकार) म विशष

बहमलय (एर६1०॥५) रतन का बदल कौन सा अलपमोली

कछ एस अलपमोली जो अचरजपरण कारय करत ह

किस रतन को किस रतन क साथ न पहन

आपक लिए कौन सा रतन ओर किस वजन का?

रतनो म दवीशकति ओर बरकत

रतन- जयोतिष क आइन म

हदय-रोग व अनय रोगो म रतनो का परयोग

हारट-अटक म मोती बल दन वाला

रतन खरीदन स पहल आप कया जान ?

बदधि की बढोतरी म सहायक तरमली (70011२41 114)

कनया क विवाह म विलमब ह तो पखराज

विचितर किनत सतय : सवय .परखिए

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परकाशकीय

हमन कछ समय परव “रतन परिचय" क नाम स रतनो क समबनध

म आरमभिक जानकारी दत हए पाठको स वजञानिक एव मनोवजञानिक परिचय कराया था, उसी समय यह भी आशवासन दिया था कि शीघर ही ^रतन-परदीप' नाम स रतनो क विषय म अधिक विसतत विवरण परसतत करग जिसम बहमलय एव अलपमोली रतनो की अधिक जानकारी होगी ।

परसतत रचना म विदवान‌ लखक न ससकत, हिनदी, उरद व अगरजी क विशाल साहितय स चन-चनकर उपयोगी सामगरी सकलित की ह। मधकरवतति स सचित यह सारा गरनथ मानो गागर म सागर भरन जसा भगीरथ उदयम ह । यदी नही, सथान-सथान पर निजी अनभव दकर गरनथ को अधिक परामाणिक एव उपादय बनाया ह ।

परव ओर पशचिम क अनक पराचीन एव नवीन लखको की रचनाओ, सरकारी ओकड आदि स लाभ उठान क साथ-साथ अपन दश क रतन-वयवसाय व उदयोग कनदर जयपर क परसिदध जौहरी शरीराजरप जी टक क अनभव की ओर पाठको का धयान विशष रप स आकपित किया ह । साथ ही “विचितर किनत सतय" सवय परखिय ! शीरषक स रतनो क विशष जानकार एव अनभवी शरी मानकचनद जन की लिखी हई सामगरी इस गरनथ का विशष आकरषण द । इस अधयाय म अलपमोली रतनो क विषय म विचितर. परतीत होन वाली सामगरी दी ह । उनका विशवास ह कि परख पर वह सही परमाणित सिदध होगी । इसस यह भी सपषट होता ह कि कितन ही अलपमोली रतन‌, जिनस साधारण वयकति अपरिचित ह, महतव की दषटि स कितन अनमोल ह|

वयापारियो की सविधा एव उपयोग की; सामगरी भी इसम सममिलित ह । साराश यह कि गरनथ म अधिक स अधिक जञानवरधक एव सामानय पाठक ओर रतन वयवसायी बनधओ क लिए परयापत सामगरी परसतत की ह ।

विनीत

परकाशक

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+ ।

विषय-सची

. चौरासी रतन ओर उपरतन

मलयवान ओर अलपमोली रतन, परारमभिक जानकारी ।

. रतनो की उतपतति गण, कटाई, रगाई व तोल

खान स निकलत समय आकार-परकार, जौच परख ।

. नवरतन : माणिकय (1२०।१)

आज का वजञानिक दषटिकोण, पराचानी मानयता,

नवगरहो स समबनध, सचच माणिकय की पहचान, नीलम

स भाई-चारा

„ मोती ( ८५1)

दसर रतनो स अधिक मद, नचरल ओर इमीटशन ।

. मगा ((07\॥)

खनिज नी, जनत की दन, रग, गण, दोष, नकली मग ।

पनना ( वालः)

सरवोततम पनना दब सा हरा, पानीदार व बिनदरहित

हमाय क पयाल कषनन, जगत सठ का पनना ।

- पखराज (वणषट)

मागलिक पखराज, पील पतथरो स इसम अनतर,

बदधिवरधक, कषठ का नाशक, परसता का मितर ।

40 - 50)

51- 03

04 - 0 ..

69 - 74

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8. हीरा (ता०१त‌) 2 - 99

अजय ओर अनपम, हठी ओर कठोर, रतनो म सरताज रतबा बढान वाला, बदल, नरम करन का भी उपाय ।

9. नीलम (ऽ ९) ५9१9 105

निहाल भी कर द ओर सताय भी बरी तरह,

परणिमा की खिली चादनी म नीलम का कौतक ।

10. गोमद (27८७१) 106 - 110

शरषठ गोमद, अनोखा गण, हीर का भरम, मनोरजक

रग, कया सब ही जिरकान रतन को गोमद कहना

उचित हट

11. वदरय लहसनिया (15 ५८१९) 111- 113

रगो को कौतक, बिजली की आखो जसा परकाशीय रप

12. अलपमोली रतन (ऽला-षललनाऽ) 114- 178

सपाइनल ओर माणिकय दखन म एक समान, पनन का मकाबला करन वाला ञायोषटज, उपल; गारनट, टरमलीन, परीडाट, एकवामरीन, कराइसोवरील, हमसफटिक या बिललौर धनला, सनला, कटला, अटक (हकीक) अमज नाइट चनदरकानत, सरयकानत, जड, लाजवरत, अमबर आदि ।

13. रतनो म दवी शकति बरकत

पराचीन काल म परचलित रतन मग ओर फीरोज दवारा रग बदलकर चतावनी दना, जड की मानयता, पाशचातय मानयता, वारो क अनसार रतन धारण ।

179 - 1५9

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14. रतन : जयोतिष क आइन म | 200 - 223

शरीर पर रतनो का परभाव, लगन राशि क अनसार

रतनो का चनाव, किस रतन क साथ कौन सा रतन

हानिकारक, अनिषट गरहो की शानति क लिए रतन क

सथान पर जडी बटियो ।

5. रतनो का ओषधीय उपयोग 224 - 228 +~

(1

आयरवद म रतनो की भसम का विशिषट सथान, दान

फिरग क लपस गद क दरद म लाम, पिततौनिया पितती

क लिए रामबाण ।

6. हदय रोगो म रतनो का उपयोग 229 - 235 ~~

17. विचितर किनत सतय : सवय परयिय । 236 - 260

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सरवपरथम हिनदी म परकाशित (

अक विदया रहसय

व ९ । (विशव क जान मान अक जयोतिषी)

कछ पसतक अपना शासतरीय मलय सवय परकट करती ह । एसा ही ह इस पसतक म । आप अपन अगरजी नामाकषरो स : अपना मलयाक : भागयाक, अरथ-लाभ एव सरवाग विचार क अलावा सवासथय, दामपतय, परम

परकरण, सडा-लाटरी अथवा घडदौड आदि का भागयाक भी सरलता स

निकाल सकत ह ।

सकषिपत एव सरल भाषा म यदहदी समपरदाय क परखयात लखक :

सफरियल (ऽनणणणण) दवारा लिखित कबाला-नमबर का भावारथ लकर

आधनिक भारतीय परिवश क अनसार लिखी गई अदमत पसतक म शभ अक एव विरोधी अक की पहचान-सौमागय अथवा दमागय का अक : रग क साथ अको का मिलान : रतन धारण, ओर भी बहत स रोचक सदरभो स जड अक-विदया क चमतकार ! शभ महरत का चनाव-लाटरी परकरण सहित सरल ओर ` सहज परयोग-अनक उदाहरणो सहित , विचितर किनत अनपम पदधति ।

मलय 50 रपय

जयोतिष सबधी सभी पसतक वी० पी० पी० दारा मगान क लिए निमन पत पर लिरखः

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शरीगणशाय नमः

| रतन-परदीप |

गजानन भत गणादिसवित कपितथ जमब‌ फल चार भकषणम‌

उमासत शोकविनाशकारक नमामि विषनशवरपादपकजम‌ । ।

चोरासी रतन ओर उपरतन

ससार क परतयक भाग म रतनो क परति आकरषण पराचीन काल स

ही चला आया ह । रतन अपन चितताकरषक रग तथा जवलत आमा क कारण बरबस मन को मोह लत ह ओर परकति की यह दन ससार म लगभग किसी न किसी अश म सव दही दशो म परापत ह । रतन कवल आभषणो की ही शोमा नही बदढात, परनत एसा विशवास द कि उनम दविक शकति भी निहित ह ओर इसक कारण भी रतनो क परति जन साधारण का आकरषण

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10 रतन-परदीप

ह । इसम भी जरा सदह नही ह कि रोग-निवारण म रतनो का उपयोग पराचीन काल स परचलित ह ओर उनम रोग निवारण की शकति भी ह।

रतनो की सखया काफी बडी ह, परनत भारत म जौहरियो न विशष मानयता कवल 84 रतन को दी ह । इन &4 रतनो म स 9 माणिकय, मोती,

` परवाल (मगा) पनना, पषपराग (पखराज), हीरा, नीलम, गोमद ओर वदरयमणि (लहसनिया) नवरतन की शरणी म परतिषठित ह । इन नवरतन म सभीऽ, रतन यथा माणिकय, मोती, हीरा, नीलम, ओर पनना को एक विशिषट सथान परापत ह ओर व महारतन मान जात ह, शष कवल रतन । इन नवरतन क अतिरिकत जो रतन ह उनह उपरतन माना जाता ह । परनत शोभा ओर मलय म कछ उपरतन कहलान वाल रतन कितन ही नवरतन की गणना म आय रतनो की आभा स कम नही होत । कठोरता, दिकाऊपन, दरलभता, चमक, दडक, पारदरशिता या पारभासिकता म व रतन किसी परकार पीछ नही ह | हम नीच, मानयता क अनसार 84 रतनो की सची तथा उनका अतयनत सकषिपत परिचय दत ह । आग चलकर हम इन रतनो तथा अनय परचलित रतनो का विसतत विवरण दग ।

चौरासी बहमलय, मलयवान ओर अलपमोली रतन

(॥) माणिकय या माणिक (२५+)-यह लाल रग का होता ह। 2 रतती क ऊपर होन पर लाल कहलाता ह । यह बहमलय रतन द । रग म गलाबी, शयाम या आसमानी भी होता ह । (2) हीरा (9००१५)-सफद, पीला, गलाबी, लाल तथा काल रग का होता ह। (3) पनना (५१४।५)-यह हरा, बोतली या हरी आई लिए सफद रग का होता ह। (4) नीलम (&4श१,९)-इसका रग नीला (मोर की गरदन सा) होता ह, य हलक रग क भी होत ह । 5) लहसनिया (५५५ ६,०)-इसम बिलली की ओख क समान सत पडता ह । इसी स इसको सतरमणि भी कहत ह । इसका रग पीलापन लिए या हरित सयाही लिए हए होता ह । (6) मोती (१००५) मोती सफद, लाल, पील तथा काल रग क होत ह । 7) मगा ((गग)-इसका रग लाल या सिनदरी होता ह । यह खनिज नही ह । (8) पखराज (४५१।८ ०, १५।०१, 580९) यह रतन पीला, सफद तथा नील रग म परापत ह, इसका नाम पषपराग भी ह । फल म जितन रग होत ह, उतन इसम भी ह । 9) गोमद (८८०० गोमद क कई रग होत र, परनत जिस रतन को हम गोमद कहत

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चौरासी रतन ओर उपरतन 11

ह वह लाल धरय क रग का होता ह। (10) लालडी-गलाव क फल क रग का रतन होता ह । (11) फिरोजा (1प५०७८)-आसमानी रग का होता ह । (12) रोमनी-यह गहर लाल रग का कछ शयामलता लिए होता ह । (13) जबरजदद (?८५०)- यह हलक रग का होता ह । इसम सत नही पडता । (14) ओपल (0९)-सब रगो म परापत ह । इस पर सब रगो का अबर पडता ह । (15) तरमली (1०५110:1१<)-नरम पतथर ह । इसम कई रग क रतन परापत होत ह |

(16) नरम (5०१५ 1२५९) यह रतन लाल जरदपन तथा शयामपन लिए होता ह । (17) सनहला (©""1<)-सोन क रग क समान हलका होता ह । (18) कटला (^ना४०)-रवजनी रग का नील म धओ मिला होता ह । (19) सितारा (७०५ 5'०१०)-गरव रग का रतन जिस पर सोन क छीट पड होत ह । 20) फिटक-सफटिक (०५ 0५।।)-सफद बिललौर को कहत ह । (21) ` गौदनती (००१ 5'०८)-गाय क रदत क समान थोडा जरदपन लिए होता ह । इसम सत भी पडत ह । (22) तामडा (७०१५)-काल रग म लाली लिए होता ह । (23) लघया-मजीठ क समान लाल रग का होता ह। (24) मरियम-यह सफद रग का होता ह । इसकी पालिश अचछी होती ह । (25) मकनातीस (1०४५ ऽ'०0८}-इस चकमक पतथर कहत ह । यह सफद रग कछ शयामपन लिए हय होता ह । (26) सिदरिया-यह गलाबी रग म कछ सफदी लिय होता ह । 2) नीली-नीलम जाति का होता ह परनत उसस नरम ओर कछ जरदी लिए होता ह । (28) धनला (5० ०५०५८९)-सोन क रग म कछ धआपन लिए होता ह । (29) वरज‌^१५०००१०)-इसका हलका हरा पनन कासा रग होता ह । (30) मरगज (1५०)-यह विना पानी का हर रग का होता ह । (31) पितौनिया (81००५ 5!0<)-यह हर रग का पतथर होता ह जिस पर लाल रग क छीट होत ह । (ॐ2) बौशी-हलक हर रग का सगमरमर स नरम होता ह। इसकी पालिश अचछी होती ह। (3) दरवनजफ-कचच धान क समान होता ह । पालिश अचछी होती ह। (३) सलमानी (0४)-काल रग का पतथर होता ह । उस पर सफद डोरा होता ह । (5) आलमानी-यह भी सलमानी की जाति का होता ह । इसका भरा रग होता ह, जिस पर डोरा होता ह । (36) जजमानी-यह भी सलमानी जाति का होता ह। रग भरा होता ह। उस पर डोरा पडता ह। (3) सावोर-यह हर रग का होता ह। इस पर भर रग का डरा पडता ह। (38) तरसावा-यह बहत नरम पतथर होता ह । गलाबी रग म कछ जरदी होती ह । (39) अहवा-इसका रग गलाबी होता ह । उस पर बड-बड छीट

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12 रतन-परदीप

होत ह । (40) आबरी-यह काल रग का पतथर होता ह । (41) लाजवरत (1.5 1.4८01)- यह नील रग का नरम पतथर होता ह, जिसम सफद बिनद या चकनत

भी पड होत ह । पहल इसी को नीलम समञजा जाता था । (42) कदरत-यह काल रग का होता ह। उसक ऊपर सफद जरद दाग होत ह । (५3) चितती-काल रग का होता ह। उसक ऊपर सोन का सा सफद डोरा होता ह । (44) सगसन (५५१८ 12५८)-यह सफद अगरी रग का होता ह । (45) लार-जात मारवर की । (46) मारवर-यह बोस जस रग का, लाल तथा

सफद होता ह । 7) दाना फिरग (1:५१ ऽ'०१८)-इसका रग पिशत क

समान हरा होता ह । (48) कसौटी-इस पतथर को सोन की परीकषा क लिए उपयोग म लाया जाता ह । (49) दारचना-यह दारचना क समान होता र । (50) हकीक गल बहार-यह जल म उतपनन होता ह । इसका रग हरा कछ पीलापन लिए होता ह। इसकी माला बनाई जाती ह । (51) हालन-यह गलाबी रग का होता ह। हिलान पर इसका रग भी हिलता ह। (2) सीजरी-यह सफद रग का होता ह । इस पर कालरगक वकष कारप बना होता ह । (53) मबनजफ-यह सफद रग का होता ह । इसम बाल क समान रगदार रखा होती ह । (54) कहरवा (^०८)-यह लाल रग होता ह इसकी माला बनती ह । (55) ना-मटिया-इसम पानी दन स ड‌ जाता ह । (56) सगवसरी-ओखो क लिए सरमा बनान क लिय उपयोग म आता ह । (57) दातला-पीलापन लिए जना शख क समान । (58) मकडा-हलका काला, ऊपर मकडी का जाला । (59) सगीया-शख क समान सफद । इसक घडी क लाकट बनत ह । (0) गदडी-कई तरह की, इस फकीर लोग पहनत ह । (61) कामला-रग हरा सफदी लिए हए । (62) सिफरी-रग आसमानी हरापन लिए हए । (८3) हरीद-काला भरापन लिय हय । वजन भारी । इसकी माला बनती ह । (64) हवास-यह हर रग का कछ सनहला-सा होता ह। दवा म काम आता ह। (65) सीगली-यह माणिकय जाति का रतन ह । लाल रग कछ शयाम आमा लिय हए । (७6) ढडी-काला । इसक खरल ओर पयाल बनत ह । (67) हकीक (^&:।८)-सब रग का । इसक खिलौन, मढ, पयाल बनत ह । (८8) गौरी-सब रग का । इस पर सफद सत होता ह । इसक पयाल तथा जवाहरात तौलन क बाट बनत ह । (७) सीया-काला । इसकी मरतियो बनती ह । (20) सीमाक-यह लाल रग का पीलापन लिय होता ह । इस पर गलाबी छीट होत ह । इसक खरलादि बनत ह । (21) मसा-सफद मटिया रग । इसक खरल, पयाल आदि बनत ह । (72) पनघन-यह काल रग म कछ हरापन लिय होता ह । इसक

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चौरासी रतन ओर उपरतन 13

खिलौन बनत ह । 73) अमलीया-थोडा कालापन लिय गलाबी । इसक खरल बनत ह । (५) इर-कतथ क रग का । इसक खरल बनत ह । (5) लिलियर-काला रग, उस पर सफद छीट । खरल बनत रह । 26) खारा-काला हरापन लिय । खरल बनत ह । (77) पारा जहर-सफद बस जसा । घाव पर लगान स घाव ठीक हो जाता ह। विषल घाव शीघर ठीक हो जात ह । (78) सीर खडी (0,25५१)-रग मिडी क समान । खिलौन बनत ह । (29) जहर मोहरा-कछ हरापन लिय हय सफद । इसक पयाल म विष भी अपन कपरमाव को खो बठता ह । (80) रवात-यह लाल रग का होता ह । रात म जवर आय तो बगल म बोधन स लाम होता ह । यह नील रग काभी होता ह, इसका ओषधि बनान म उपयोग होता ह । (81) सोहन मकखी-सफद मिदध क समान । मतर रोग म लाभ पहचाता ह । (82) हजरत ऊद-काला, ओख क लिय ओषधि बनती ह | (83) सरमा-काला । (84) पारस-लोह का सपरश कर तो सोना बन जाय । यह दरलम वसत ह ।

यह सची जयपर क जौहरियो की एक परसिदध ससथा दवारा परकाशित सची स ली गई ह । इसक अनक पतथर रतनो की शरणी म नही आत, परनत उनको तव भी 84 रतनो तथा उपरतनो की सची म रखा गया ह, इनम कछ एस भी ह जिनह अनय सथान म किनदी दसर नामो स पकारा जाता ह । उनक अगरजी नाम भी परापत नही ह।

परारमभिक जानकारी

रतनो की मानयता का सभयता क विकास स कोई समबनध नही ह । -दसर शबदो म, रतनो को मानयता सभयता क विकास क फलसवरप नही ह । कतिपय मलयवान रतन, जो आज हमारी दषटि म एक विशिषट सथान रखत ह, व पराचीन काल म भी उतन ही परतिषठित थ।

विदवान‌ इस बात को सवीकार करत ह कि ऋगवद ससार का सबस परथम गरनथ ह । पाशचातय विदवान‌ भी इसस अधिक पराचीन किसी गरनथ की खोज आज तक नही कर पाय ह । ऋगवद क अनक मनतरो म 'रतन' शबद का परयोग किया गया ह । इस महान‌ गरनथ क सबस परथम मनतर म `अगनि

को `रतन धाततम' कहा ह । (अगनिमील परोहित यजञसय दवमतविजम‌ । होतार रतनधाततम‌ ।ऋ०1-1-1) । हमार पराचीन धारमिक `तथा एतिहासिक गरनथो म,

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14 रतन-परदीप

जिनम रामायण, महाभारत आदि सममिलित रह, रतनो का जिकर ह । अपन दवताओ, दवियो तथा महापरषो क चितर म हम उनको बहमलय रतनमालाओ तथा आमषणो स आमषित दखत ह । अगनि पराण, गरड पराण, दवी भगवत तथा अनय पराचीन गरनथो म हीरा, माणिकय, नीलम, पनना आदि विविध महारलतनो तथा रतनो क नाम, परापति सथान, विशष लकषण, गण-दोष, उनकी परख, शभता-अशभता आदि का विसतत वरणन ह । आचारय वराहमिहिर रचित “बरहतसहिता" म रतनो क गण-दोषो का सपषट विवरण दिया ह। पराचीन आयरवद क गरनथो म, जिनम 'मावपरकाश", 'रस रतन समचचय, ` आयरवद परकाश" सममिलित ह, विविध रतनो की भसम ओर पिषटियो क बनान क तरीक ओर उनक उपयोग का वरणन ह । ससकत क महाकवियो, कालिदास आदि न रतनो क रप वमव का उपयोग अपन पातरो की उपमाय दन म किया ह । अगसतमति, कौटिलय का अरथशासतर, शकरनीति आदि नीति गरनथो म भी रतनो की विसतत चरचा ह । रतनो क समबनध म इस समय अनक पराचीन हसतलिखित गरनथ उपलबध ह ।

बाइविल म भी विविध रतनो की सथान-सथान पर चरचा ह। हा, यह अवशय ह कि पराचीन काल म बहत स रतन दसर नामो स जान जात थः जस आजकल की `लपिस लजली' लाजवरत पराचीन काल म 'नीलम' क नाम स जानी जाती थी ओर "परीडोट" (हरितोपल) को 'पखराज' या 'टोपाज' कहा जाता था । सफटिक (रोक करिसटल) ओर कटला (एमीथिसट) जस नरम रतनो को बहत मानयता परापत थी, कयोकि उन पर सरलता स पौलिश हो सकती थी ओर उनको विविध परकार स मनमोहक बनाया जा सकता था । "तण मणि" (एमबर) ` विदरम" (मगा) ओर "मकता" (मोती) पराचीन काल म मलयवान रतन मान जात थ ओर इनक समबनध म अनक अनधविशवास ओर किवदनतिया परचलित शी |

जस आजकल होता ह, समय-समय पर कछ रतनो का शौक बद जाता था ओर कछ का घट जाता था। पराचीन काल स ही भारत रतनो का मणडार रहा ह, परनत पाशचातय दशो म भी रतनो की कद करन वालो कौ कमी नही थी । माइकल वीनसटीन दवारा लिखित पसतक -1८९।०५७ ५५ ऽन ८९००५ 5०१८5 क अनसार धनवान रोम निवासी रतनो क बहत शौकीन थ । उस समय कठोर रतनो पर सनदर नककाशी का काम परचलित हो गया था । इस कारय म सबस अधिक दकषता मिसर क कारीगरो को परापत थी । सिकनदर महन‌. मिचरी डडस, जलियस सीजर, आगसतस आदि इतिहास

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चौरासी रतन ओर उपरतन 15

परसिदध वयकति रतनो का सगरह करन क शौकीन थ । उनक सगरह क कछ रतन. सना जाता ह कि, आज भी मौजद रह ।

रतन विजञान न बहत परगति की ह ओर अब इतन अधिक रतनो का जञान परापत हो गया ह कि इस समबनध म दश-दश म अनक गरनथ लिख गय ह । हमारा परयास यही होगा कि हम अपनी इस पसतक म आज तक परकाश म आए मलयवान ओर अलपमोली रतनो क समबनध म परचर मातरा म जानकारी द।

रतनो क समबनध म सबस महततवपरण बात जानन की यह ह कि गिन हए कछ रतनो क अतिरिकत सब खनिज पदारथ ह ओर भगरभ स परापत होत ह । अतः वह अकारबनिक परकरम (101०८ ४०८०७) क उतपादन ह ओर एक ही परकार क पदारथो क बन होत ह । सब का एक निशचित रासायनिक सघठन होता ह जिसको सपषट फारमल क रपम लिखा जा सकता द ।

उनही पतथरो या खनिज पदारथो की मलयवान (१८८५०५५) रतनो म गणना की जा सकती ह जो दखन म अतयनत सनदर हो, दरलम हो ओर उनम दडक ओर टिकाऊपन हो ओर इसलिए बहमलय रतनो म कवल हीरा, माणिकय, नीलम, पनना ओर चन हए कीमती ओपल (0?) या दधिया पतथर की गणना होती ह । अपनी मनमोहक आमा ओर आकरषक रप क कारण मोती भी बहमलय रतनो की शरणी म आता ह, यदयपि वह जविक उतपादन ह, खनिज पदारथ नही ह ।

अलपमोली (ऽला1। [1९८}०४5) रतनो म व खनिज पदारथ आत ह जिनको

मलयवान रतन की शरणी म सथान परापत नही होता । परनत यह याद रखिय कि अलपमोली होन का यह अरथ नही ह कि व रतन कछ महततव नही रखत या रतन जगत म उनको परतिषठित सथान परापत नही ह । इस शरणी म अनक सनदर ओर आकरषक ओर आभषणो म अतयनत शौक स इसतमाल किए जान वाल रतन ह । उनम कछ क नाम हः जिरकन (८०), लाली (ऽ71१०।), पखराज (1079), हरितमणि (१०५९), चनदरकानत (14० 51०0५). कराइसोबरील, तरमली, , (010५7०7९), कटला या नीलमणि (^५।४७ परीडोट तथा एकवामरीन । इन पतथरो म परयापत मातरा म कठोरता, सनदरता, आभा ओर टिकाऊपन होता ह । काट ओर पालिश हो जान क पशचात‌ इनम स कछ तो मलयवान रतनो की शरणी म आनवाल रतनो का मकाबला करन लगत ह । विशषकर हमन सवय अपनी ओखा स दखा ह कि "परीडोट ओर `एकवामरीन' तो कभी-कभी अपनी आभा स पनना ओर नीलम को मात द

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16 रतन-परदीप

दत ह ओर सच पषिए तो बाजार म परायः व मलयवान रतनो क नाम स बिक जात ह । कवल अनभवी ओर पारखी जौहरी ही उनकी वासतविकता को जान पात ह।

एक बात ओर ह । मलयवान‌ ओर अलपमोली रतनो म, विशषकर जिनक समबनध म हमन ऊपर चरचा की ह, भिननता समञजना कही-कही पर उचित-सा नही लगता । उदाहरण क लिए हीरा एक मलयवान शरणी म आन वाला रतन ह, परनत एसा भी होता ह कि एक निमन सतर का हीरा एक सनदर ओर बदिया कट एकवामरीन या -एलकजाणडाइट स कम मलय म बिक जाता ह। इस परकार एस भी उदाहरण ह कि एक साधारण शरणी का पनन का हार कछ पाउणडो म बिका ओर चीन म तयार किए जड क हार का मलय पचचीस हजार पाउणड तक पहच गया ।

मलयवान (१८५५।०५४४) ओर अलमोली (ऽ) (1८९10४5) रतनो क अतिरिकत

रतन की दो शरणिया ओर र । एक सशलिषट (ऽ,१।।०।९) रतन । यह रतन की स परापत नही होत, बनाय जात र । इनक बनान म असली रतनो क

, ततवो का इस परकार मिशरण किया जाता ह कि तयार हो जान पर असली रतन क समान ही उनका सघटन (८००५५०१) ओर रप रग होता ह । दसरी शरणी म आत ह कतरिम रतन जिनको साधारण भाषा म 'इमीटशन" कहा जाता ह । सशलिषट रतन कतरिम रतनो स अधिक टिकाऊ होत ह । कतरिम `रतन" चाह रपरग वसा ही पा ल, परनत व कच या पलासटिक क बन होत ह । अपारदरशक कतरिम 'रतनो' को बनान म तो अधिकतर पलासटिक का ही इसतमाल होन लगा ह ।

सशिलषट ओर कतरिम रतन क अतिरिकत एक ओर शरणी क रतन भी बनत ह जिनम दो पतथरो को जोडकर एक रतन बनाया जाता ह। इसको यगम (०५७५) रतन कहत ह । यह करिया परायः कम रप वाल असली

` रतन को आमापरण ओर आकरषक बनान क लिए परयोग म आती ह । इसका ऊपरी भाग तो असली रतन होता ह ओर उसी रग का नीच का भाग नकली होता ह । परायः नीच वाला नकली माग जरा गहर रग का रखा जाता ह जिसस असली रतन का रग निखर आता ह । इसी परकार तीन भाग वाल रतन भी बनाए जत ह । इनक बनान की करिया म ऊपरी ओर निचला भाग असली रतन का होता ह ओर मधय म नकली पतथर (काचादि) लगाया जाता ह । इस करिया स रतन का रग दोनो ओर स सधर जाता ह ।

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चौरासी रतन ओर उपरतन 17

ङस परकार तयार किय हए पनन, नीलम, माणिकय, ओपल ओर कई अनय

रतन परायः जौहरी बाजार म दिखाई दत ह ।

अव विजञान न इतनी उननति कर ली ह कि अधिकाश मलयवान

रतनो क परतिनिधि सशलिषट रतन बनन लग र, परनत बनान म वयय अधिक

होन क कारण सशलिषट रतन बड आकार क रतन नही बनाय जात । मोपसन

नामक एक फासीसी कमिसट परथम वयकति था जो सशलिषट हीर बनान म

सफल हआ था । उसन लोह ओर शदध कारबन क मिशरण को बिजली की

भटटी दवारा गरमी पटचाई । कछ समय तक चार हजार डिगरी सणटीगरड क

तापमान म रखकर उस मिशरण को ठणड जल म डाल दिया गया । इस

परकार सहसा ठणड होन स तरल पदारथ क चारो ओर फलत हए बाहय

भाग पर एक लोह की पपडी सी जम गई । इस परकार जो दबाव पडा वह

इतना अधिक था कि कछ कारबन जो बाहर निकल पडी उसन हीरो का

रप धारण कर लिया । परनत इसम कारबन ओर लोह को पथकपथक‌. करन

की करिया अतयनत कठिन थी । अतः विजञान की दषटि स यदयपि यह परयोग

बहत महतवपरण माना गया, परनत वयापारिक दषटि स वह कछ लाभदायक

परमाणित नही हआ । हन ओर फाइडलणडर नामक कमिसटो न भी सशलिषट

हीर तयार किए थ, परनत उनका परयास भी वयापारिक दषटि स विशष

सफलता नही परापत कर सका । सशलिषट हीर अभी तक जौहरी बाजार म

नही आ सक ह ।

नीलम, पखराज ओर माणिकय क सशलिषट रतनो का परयापत मातरा

म उतपादन होता ह ओर आमषणो म उनका उपयोग होता ह । यह रतन

एक ही रासायनिक सघटन (८७१०७५०१) अलयमिना क ह ओर अपनी परकत

अवसथा म करलदम (८०५१५५०) वरग म आत दह । उनक रगो म भिननता

उनम मिल मटलिक ओकसाङडस (५०।०॥८ ०४०८७) क कारण होती ह । इस

समबनध म परण सफलता सन‌ 1904 ई० म परापत हई थी । उस वरष एक

फासीसी कमिसट वरनील (५५५०५५५) परयोगशाला म सशलिषट माणिकय, नीलम

. ओर पखराज तयार करन म सफल हआ था ओर इस परकार उतपादित

रतनौ क जौहरी बाजार म आ जान स परकत रतनो क मलय तथा विकरी म

गिरावट आ गई । इस परकार सशलिषट रतनो क परयोगशाला म उतपादन स

परव इसी कमिसट न मलयहीन परकत माणिकय क चर को माणिकय क रप

म परिवरतित करन म सफलता परापत की थी ।

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18 रतन-परदीप

यदयपि य सशलिषट रतन जौहरी बाजार म अपना सथान बनान म सफल हए, परनत दकष जौहरी सशलिषट रतनो ओर परकत रतनो क अनतर को पहचान जात ह । अतः अव भी जो परतिषठा ओर आदर परकत रतनो को परपत ह, वह य सशलिषट रतन नही पा सक ह । वासतव म अव सथिति यह ह कि परकत रतनो की दरलमता क कारण उनका मलय पहल स भी अधिक बद गया ह ।

माणिकय, नीलम ओर पखराज की नकल क सशलिषट रतनो क बनान म सफलता परापत होन क बाद अनय रतन की नकल क सशलिषट रतन भी बनन लग ह । इनम लालडी (५) ओर एलकजाणडाइट (^।५.अण0प) का उतपादन अधिक महततवपरण ह । इनका काफी उपयोग आभषणो म होता ह । परनत एक दकष जौहरी सदा सशलिषट ओर परकत रतनो को अभयास स सकषमदरशक यतर की सहायता स सरलता स पहचान सकता ह।

इस समबनध म निमनलिखित तथय धयान दन योगय ह

(क) सशलिषट रतनो म छोट-छोट हवा क बलबल दिखाई दत ह जो साधारणतया बिलकल गोल होत ह । परकत रतनो म यदि बलबल होत ह तो व अनियमित (पपवण०) आकार क होत ह ओर उनका रप रग परकत रतनो क समान ही होता ह । (ख) सशलिषट रतनो म रासायनिक पदारथ क जर वकरता क साथ बन होत ह । परकत रतना म जर छोट-बड होत ह ओर अनियमित रप स तितर-वितर होत ह ।

(ग) यदि आनतरिक धारिया वरतमान होती ह तो परकत रतनो म सीधी होती ह । सशलिषट रतनो म व साधारणतया वकर होती ह । (घ) जो आनतरिक परकाशीय परमाव (01८७1 ५८८५) माणिकय, नीलम ओर पखराज म दिखाई दता ह जिस `रशम' कहा जाता ह, सशलिषट रतनो म कभी भी नही दिखाई दता । (ङ) सशलिषट रतनो का रग परायः ठीक नही होता । वह एकसार होता ह ओर उसम कोच की सी चमक होती ह । परकत माणिकयो,

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चौरासी रतन ओर उपरतन 19

नीलम आदि म रतन क विभिनन अशो क रग म कछ भिननता

होती ह ओर यदि धारिया दिखाई दती र तो व समानानतर होती

ह या अनियमित होती ह, वकर कभी नही होती ।

(च) यदि मथीलीन आयोडाइड क विलयन (§०।५५०१) म सशलिषट

ओर परकत रतन जाल दिय जाय तो परकत रतन डब जायगा ओर

सशलिषट सतह पर तरन लगगा ।

अधिकतर सशलिषट रतन जरमनी ओर फरास म तयार होत ह । इटली,

सविटजरलणड ओर रस म भी उनका उतपादन होता हलि ॥

व रतन (वासतव म उनको रतन कहना उचित न होगा) जो बिलकल

कतरिम होत ह, तरह-तरह क कौच क बन होत ह ओर उन पर कडक‌

सिलवर (०५५ 5५) का लप होता ह । अचछ किसमो क कतरिम मणिया

म लड ओकसाइड (1५2५ ०४०५) की मातरा काफी अधिक होती ह जिसस

कौच की चमक बढ जाती ह; परनत यह चमक शीघर की मिट जाती ह

जबकि परकत रतनो की चमक-दमक काफी सथायी होती ह । कतरिम मणियो

म मटलिक ओकसाङड की सहायता स तरह-तरह क रग भर जात हः

परनत य रग परकत रतनो क रगो क समान नही होत ।

परिस नगर क जविवस नामक एक वयकति न सन‌ 1656 ई० म

मोम भर कतरिम मोती बनाए । उसकी चलाई करिया क अनसार शीश क गोल

दानो क अनदर चादी क रग की रगत दकर उसम मोम भर दिया जाता

था । परनत इस परकार क कतरिम मोतिया का अब चलन नही ह । अब तो

ठोस कतरिम मोती बनन लग गय ह । जापान न इस कषतर म सबस अगरिम

सथान परापत कर लिया ह । कतरिम ओर परकत रतन को पहचानन म जरा

भी कठिनता नही ह । यह ठोस कतरिम मोती सपरश स बिलकल चिकन

मालम होत ह, जब कि परकत मोती म उतना चिकनापन नही होता । यदि

कोड नकीली चीज की नोक कतरिम मोती की सतह पर लगाई जाय तो

वह कछ दब जाएगा । परकत मोती पर एसा नही होगा । मोती म छद किया

जाय तो जो कतरिम पदारथ उसम भरा होता द । वह छद क सथान पर

दिखाई द जाता ह । वासतविक कठिनाई तो परकत ओर कलचर मोतियो को

पहचानन म होती ह । इसकी चरचा हम मोती स समबनधित परिचछद म

करग ।

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रतनो की उतपतति, गण, कटाई, रगाई व तोल

उतपतति - रतन की उतपतति या तो भगरभ स होती ह जहा व धीर-धीर बनत ह याव परापत होत ह अपन जनम सथान स दर । परथम शरणी म आन वाल रतन उन चटधानो क भाग होत ह जिनम व जनम पात ह । अपन जनम सथान स दर पाय जान वाल व रतन होत ह जो मौसम, गरमी, सरदी, वरषा क कारण मल चडानो स पथक होकर नदियो, रनो तथा अनय जल सरोतो

` क साथ बहत हए दर निकल जात ह । बहत-बहत ओर अनक परकार स रगड खान स य रतनीय पतथर जब नदियो की तलहटियो म पाय जात ह तो व आकार म गोल या अणडाकार हो जाद ह । उनकी सतह चिकनी हो जाती ह ओर उनकी नोक या खरदरापन निरनतर रगड स मिट जाती ह । इस परकार रतनीय ककडा की तलहदिया म जो शरी लका म बहतायत म पाई जाती द, विविध परकार क रतनीय पतथर पाय जात ह ओर उनको अनय चिपक हए या जड हए पदारथो स अलग करन म उतनी कठिनाई नही होती ह जितनी उन रतनीय पतथरो को परापत करन म होती ह जो

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रतनो की उतपतति, गण, कटाई, रगाई व तौल 21

कडी चडधानो क अग बन होत ह । इनम कछ रतनीय पतथर एस भी होत ह

जो कभी-कभी चटानो म जड नही होत बलकि उनकी दरारो या छदो म

चिपक होत र । य पतथर भी अपना एक निशचित आकार बना लत ह ओर

मणिभ (८5ग) क रप क हो जात ह ।

अब यह जानना आवशयक ह कि रतनीय पतथर ओर मणिभ म

कया अनतर ह ? रतनीय पतथर तो वह ह जो चटधानो स जडा होता ह ओर

पथक‌ होन पर उसका कोई निशचित आकार नी होता द । मणिम (फ)

वह रतनीय पतथर ह जो एक निशचित आकार धारण किय हए ठोस पदारथ

हः जिसकी चारो ओर की सतह चिकनी होती हः जिसका अनतरग एक

निशचित ढाचा बन जाता ह । उसका वादय रप वासतव म उसकी आनतरिक

बनावट की आकति होती ह ओर इसी तथय को दखकर हम एक परकत

रतनीय पतथर ओर नकली काच क बन रतन म होन वाल अनतर का जञान

परापत होता ह । जबकि परकत मणिम उसी आकार क धीर-धीर छोट मणिभ

कणो क निरनतर जडन स बनकर बडा होता ह, कतरिम कच का इस

परकार तयार नही होता । मणिभो को छः परकार की पदधतियो म विमाजित

किया गया ह-घन पदधति (५७१८ ७८) चतषफलक पदधति (1५14६619

55611), षडमजीय समह (11८४४७१4 §#ऽ1ल)), समचतरभज पदधति (1२॥0पा०६८

5)/51८111) एकपदी पदधति (,101106][716 = 9४ऽएल)) तरिपदी पदधति ((ला१1९

ॐऽला1) |

यह एक मनोरजक पराकतिक सयोग ह कि जो रतनीय पतथर मणिरयो

क रप म परापत ह व ससार क किसी भी भाग म पाय जाय, उनक आकार

म कोई भिननता नही होगी । पनन सदा षडभजीय आकार क मिलग चाह

व भारत म परापत हो या मिस ओर दकषिण अमरीका म।

इस परिचछद म हम मणिया या रतनीय पतथरो क उतपतति सथाना

का विवरण नदी द रह ह । वह परतयक जाति क मणिभ क साथ ही दना

उपयकत होगा, परनत एक मनोरजक बात धयान दन योगय ह । वह यह कि

कछ जातियो क रतनीय पतथर एक साथ भी पाय जात ह । जस माणिकय

परायः लाली (७१५) क साथ मिलत ह ओर हीर तामड (2५) क साथ ॥

यदि की माणिकय मिला तो व सपाइनल की तलाश भी की जाती ह

ओर जहौ तामडा मिला तो हीरा भी दढा जाता द । यह परकति की विलकषणता

ही समञजी जानी चाहिए, कयोकि इन रतनीय पतथरो का रासायनिक सघटन

(20५1९ (7०७९१) एक-सा नही होता ।

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22 रतन-परदीप

रतनीय पतथरो का रासायनिक सघटन ((ाला11९8| (णा0०9101)--- यदि सब रतनीय पतथरो का रासायनिक विशलषण या परीकषण किया जाय तो हम यही पारयग कि निमनलिखित तततव उनम महततवपरण पारट अदा करत

सिलीकन, अलयमिनियम, लोहा, कारबन, ओकसीजन, हाइदधोजन, रतौबा, कलशियम, मगनीशियम, सोडियम, जिरकोनियम, वरीनियम व फासफोरस ।

हीर को छोडकर, जो बिलकल शदध कारबन ह, अनय रतनीय पतथर उपरयकत दो या दो स अधिक ततवो का सममिशरण होत ह । उदाहरण क लिए सफटिक (२०० ०५५०) को ल लीजिए । वह सिलीकन का आकसाइड ह ओर उसम एक निशचित अनपात म ओकसीजन ओर सिलिकन मिल हए ह । यहो यह बता दना आवशयक ह कि किसी भी रतनीय पतथर क रग का उसक रासायनिक सघटन (८५१।९५। (01705110) स कोई समबनध नही रहता । रग का कारण होता ह उस रतनीय पतथर म किसी `ओरगनिकः या *इनओरगनिकः (0129016 01 [71जाटशा॥९) पदारथ का परभाव ।

कठोरता ओर चिराव (11५1५0८5 ६५ ।००५२९८)-आमभषणो आदि म जिन रतनो का उपयोग होता ह व यदि कठोर न हा तो उनम टिकाऊपन न होगा । कठोरता का अरथ ह रतन की न टटन या न चिटकन की कषमता | एक रतन स दसर रतन को खरोच कर उनकी आपसी कठोरता का अनपात लगाया जा सकता ह । जो रतन दसर रतन पर खरोच डाल दगा वह उसस अधिक कठोर माना जायगा । विभिन रतनीय पतथरो की एक-दसर क मकाबल म *मोह क सकल. (11015 ७6९३८ ० [०1५९७७) क अनसार जो कठोरता का करम आका गया ह वह नीच की सारिणी म दिया गया ह । विभिनन रतनीय पतथरो म कठोरता कितनी दह, यह उस रतन क परकरण म दग :-

1. टालक या घीयामीठा 2. जिपसम या खडडी 3. कलसाइट 4. फलोर सपार 5, एपाटाइट 6. फलसपार 7. कवाट‌रज (0०५०५) इसम सफटिक 8, पखराज जाति क रतनीय पतथर सममिलित र ।

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रतनो की उतपतति, गण, कटाई, रगाई व तौल 23

9 करनदम जाति क रतनीय पतथर जस 10. हीरा ।

माणिकय, नीलम आदि ।

जिस रतनीय पतथर की कठोरता मालम करनी हो उस मोह-माप

शरणी क किसी खनिज स खरोच कर दखना चाहिए । यदि परीकषा किय

जान वाला खनिज उपरयकत माप शरणी क उस खनिज पर खरोच डाल द

तो वह उसस अधिक कठोर होगा । परनत यह सपषट रप स समञज लना

चाहिए कि इस माप योजना का परिमाण समबधी (०५९१५५।१५९) कोई महततव

नी ह । वासतव म हीर ओर माणिकय की कठोरता म जितना अधिक अनतर

ह उतना माणिकय ओर टालक म नही ह । यह समरण रखिए कि रती स

सफटिक या उसस अधिक कठोर रतनीय पतथरो पर कोई परभाव नही पडगा,

परनत उसस कौच पर सरलता स खरोच पड जायगी । एक साधारण कोच

की कठोरता लगभग साढ पच होती ह । इसी तरह जिपसम की कठोरता

इतनी कम होती ह कि नाखन स भी उस पर खरोच पड जाती ह । एक

वात ओर जाननी आवशयक ह । वह यह कि किसी खान क एक ही जाति

क दो विभिनन खानो क रतनीय पतथरो की कठोरता कम अधिक होती ह ।

हीरो म यह वात विशषकर दखी गई ह ओर यह भी दखा गया ह कि एक

ही रतनीय पतथर क विभिनन भागो म कठोरता कम-अधिक होती ह । इसका

कारण उनकी बनावट का आनतिरक विकास द।

चिराव-- का अरथ ह रतनीय पतथर क किस अश या भाग म

विशष सरलता स टट जान या काट जान की कषमता ह भिसक परिणाम

सवरप उसनकी विभकत सतह चिकनी रह । रतनीय पतथरो म भाजकता का

परयापत महततव माना जाता ह । इसक बिना उनकी कटाई आदि सरलता ओर

सफाई स नही हो सकती । हीरो म विशषकर उनकी कठोरता क बावजद

भाजकता बहत अचछी पाई जाती ह ।

आपकषिक गरतव (७१५५।८ ५५५५) अथवा दडक-- आपकषिक गरतव

का अरथ ह किसी पदारथ का चार डिगरी सणटीगरड क तापमान क शदध

पानी क मकाबल की तौल । ठोस पदारथ की तलना एक सी° सी० (।. ५

५) पानी स की जाती ह, जिसकी तौल एक गराम होती ह । इस अनपात

स । सी० सी० (1. < ८) कारनीलियन की तौल 246 गराम होगी । अतः

उसक आपकषिक घनतव म विभिननता होती ह जो हम हर रतनीय पतथर क

परकरण क साथ सपषट करग ।

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24 रतन-परदीप

रतनीय पतथरो क आपकषिक गरतव को मालम करन क कई तरीक ह । छोट पतथरो क लिए एक सरल तरीका यह ह कि उनको एक जान हए आपकषिक गरतव क तरल पदारथ म डबो दिया जाय । यदि पतथर सतह पर तरन., लग तो उसका अपकषिक गरतव तरल पदारथ क गरतव स कम होगा । यदि वह डबा रह तो उसका आपकषिक गरव तरल पदारथ स अधिक होगा ।

इस समबनध म जो तरल पदारथ परायः इसतमाल होत र व ह वरामो फारम (अपकषिक गरतव 29) मथीलीन आयोडाइड (आपकषिक गरतव 3.32), कलीनस सोलयशन (आपकषिक गरतव 3.28), सोनसिटाटस सोलयशन (अपकषिक गरतव 3.18), रटगर सोलयशन (आपकषिक गरतव 4.6) । इन तरल पदारथो म परथम ओर दवितीय का इसतमाल बहत सरल ह ओर अधिकतर उनदी को काम म लाया जाता ह। 5

परनत सावधान रहिए । कछ रतनीय पतथर जस ओपल ओर फीरोजा सथिदर००४७) होत ह । उनकी परीकषा जल क अतिरिकत किसी ओर तरल पदारथ म नही करनी चाहिए ।

रतनीय पतथर म विदयत शकति

कछ रतनीय पतथर एस होत ह जिनम गरम किय जान पर विदयत शकति उतपनन हो जाती ह । इनम मखय ह -पखराज, सफटिक, हीरा ओर तरमली (0817९) | अमबर (तणमणि) मभी रगडन पर ऋण (1९८९१।।५९) विदयत शकति आ जाती ह।

रतनीय पतथरो पर ताप का परभाव

कछ रतनीय पतथर जस जिरकन ओर पखराज को सावधानी बरतत हए उनक रग को उभारन क लिए गरम किया जाता ह । परनत यदि अधिक गरमी पहच गई तो अधिकतर रतनीय पतथर खराव हो जात ह । ओपल चटख जाता ह ओर उसकी आमा जाती रहती दह । फीरोज का रग भी उतर जाता ह । तरमली म विदयत शकति आ जाती ह । कटला (१९७) पीला हो जाता ह ओर बहत सफटिक वरग क रतनीय पतथर भर या पील

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रतनो की उतपतति, गण, कटाई, रगाई व तौल 25

पड जात ह । कछ साई पतथरो म कासीलियन का रप आ जाता ह । परनत

जिरकन सफद हो जात ह ओर उनकी दमक बढ जाती ह । बहत ऊच

तापमान पर हीरा काल कारबन क रप म परिवरतित हो जाता ह । कछ पखराज

अपना रग खो वठत ह, कछ गलाबी लाल हो जात ह । माणिकय ओर कषठ

अनय पतथर एस ह जो अधिक गरमी स रग खो दत ह. परनत ठणड होन

पर पनः अपन मौलिक रग को परापत कर लत ह । मोती बादामी रग क हो

जात ह ओर टट जात ह ओर अमबर जलन लगता ह ओर उनम स कपर

की गनध आती ह । एसा विशवास ह कि यदि रतनीय पतथर का रग उसम

मिशरित किसी `ओरगनिक' (0४०१९) पदारथ क कारण ह तो ताप उसक रग

को नषट कर दता ह। यदि रतनीय पतथर म रग किसी इनरओरगनिक

(0जषट) पतथर क कारण ह तो परायः ठणडक पान पर मौलिक रग उस

फिर परापत हो जाता ह।

रतनीय पतथर क परकाशीय गण (00 7०५५5) --- य गण

अतयनत महततव क ह, कयोकि इनदी क दवारा विभिनन पतथरो की विशष जौच

होती ह । इस समबनध म परकाश (1.81) का वजञानिक जञान अतयनत आवशयक

ह, परनत विसतार म न जाकर हम अपन आप को अपन विषय तक सीमित

रखग । रतनीय पतथरो की सरचना, चकि मणिभ (51४ 1201111100) होती

ह, अतः उन पर परकाश का बहत परभाव पडता ह ओर इसलिए उनक

परकाशीय गणो का बहत अधिक महततव ह ।

बहतो की यह धारणा द कि रलतनीय पतथर क रग स उसकी रजौच

कर लना परयापत ह, परनत विचितर एव सतय बात यह ह कि इस समबनध

म जितना अधिक अनभव हो उतनी ही यह जच गलत निकलती ह । सफद परकाश म विभिनन अनपातो म सात रग होत ह-लाल, नारगी, पीला, हरा, नीला, आसमानी (1१५४०) ओर वजनी । य साता रग परिजम' (पऽण) दवारा

सफद रग का अकस डालन पर पथक‌-पथक‌ सपषट दिखाई द जात ह ।

जब सफद परकाश किसी रतनीय पतथर क समपक म आता ह तो कषठ

परकाश तो उसकी सतह म समा जाता ह ओर कछ पतथर को पार कर

जाता ह । इसी करिया पर रतनीय पतथर का वासतविक रग आधारित होता

ह । इन सातो रगो म कछ रगो को तो रतनीय पतथर अचछी तरह सोख

(८७०४) लत ह ओर कछ रगो को सोखन की करिया सीमित होती ह । कछ

खनिज कवल कछ दी रगो को सोख पात ह, अतः उनस पार (पव)

होन स रगो म विषमता आ जाती ह । एसा भी होता ह कि एक ही पतथर

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26 रतन-परदीप

म रग सोखन की करिया म विभिननता हो । यही कारण ह कि कछ पतथर

एस होत ह कि उनको अलग-अलग किनारो या कोणो स दख तो उनम

मिनन-भिनन परकार क रग दिखाई दत ह । यह बात तरमली (वणणय०।१८)

म विशष रप स पाई जाती ह । यह गण रतनीय पतथर की परमाण समबनधी

बनावट (4जावटणकः 507५6५7८) पर निरभर करता ह ।

परकाश की किरण जब रतनीय पतथर जस माधयम पर पडती ह

तो वह परावरतित (१२०००५०) हो जाती ह अरथात‌ अपन सामानय (सीधी रखा

म विदयमान) पथ स मड जाती ह ओर यह मडी हई किरण सामानय पथ

पर एक कोण-सा बनाती ह जो एक जाति क परतयक पतथर म सदा एक

सा सथिर रहता ह । परावरतन क इस कोण की माप स ही पतथर की पहचान

होती ह । वजञानिक मत स पतथर की असलियत की पहचान का यह सबस

निशचित तरीका ह । इस परावरतन की करिया की माप स परतयक रतनीय पतथर

का वरतनाक (१२५१००५८ 10०) निशचित किया जाता ह । इस परकार की माप

क लिए एक यनतर परापत ह जिसको रफरकटोमीटर (न०य०८ल) कहत ह ।

यहो पर यह बात धयान दन योगय ह कि कई रतनीय पतथरो क

वरतनाक एक स अधिक होत ह । कयविक समह क तथा असफटिक

(4७१.(७।०॥१८५) रतनीय पतथरो का, जिन ओपल ओर गारनट सममिलित ह, कवल एक दी वरतनाक होता ह । पारदरशक रतनीय पतथरो म परकाशीय किरण एक स अधिक दिशाओ म परावरतित हो जाती ह, इसलिए इनक एक स

अधिक वरतनाक होत ह । य वरतनाक रफकटोमीटर स सरलता स निशचित किए जा सकत ह । .

हम ऊपर बता चक ह कि कष रतनीय पतथरो म स, जस तरमली म स विभिनन कोण स दखन स एक स अधिक रग दिखाई दत र । इस गण को दविवरणिता (लीला) कहत ह ।

इस गण कौ परीकषा करन क लिए एक यनतर भी उपलबध ह जिसको डाईकरोसकोप (०१५०५९०८) कहत ह । कयविक समह (घन समह) या कतरिम पतथरो म दविवरणिता नही हो सकती । कवल इस गणमातर स गारनट ओर तरमली क अनतर को पहचाना जा सकता ह । इसी परकार रगीन पतथरो म दविवरणित पतथरो की सची तथा उनक वरतनाक दिए जात ह :

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रतनो की उतपतति, गण, कटाई, रगाई व तौल 27

अदिवरणित रतनीय पतथर :

नाम वरतनाक

फलोर सपार 1.43

ओपल (उपल) 1.45

नाम

पाडरोप गारनट

आबसीडियन 1.50 एलमनडाइन गारनट

अमबर (तणमणि) 1.54 जिरकन

सरपनटाङन(कीटरतन) 1.57 डमनटायड गारनट

सपाइनल (लालडी) 1.72 हीरा

दविवरणिति रतनीय पतथर :

नाम वरतनाक नाम वरतनाक

फलसपर

(वनदरकानतमणि आदि) 153154 = जड 11@ | सफटिक वरग 1.54-1.55 कराइसोबरील 1.74-1.75

वबरील 1.57-1.58 करनदम वरग 1.76-1.77

नफराइट 1.60-1.63 मलाकाडट 1.87-1.५8

"कीरा = = न कीन 17

पखराज 1.61-1.62 जिरकान 1.92-1.98

[ तरी 1.62-1.65 परीडोट

सपोडयमीन 1.66-1.68 (हरितमणि) 1.05-1.69

रतनीय पतथर दवारा सफद परकाश को तोडन तथा उस करिया दवारा

एक वषय वरणपट (७७० ०५५१) की सषटि करन को परकाश का छितराव

(01५१५5०0) कहत ह ओर इस कषमता स उसकी दमक (1५) का निशचय

किया जाता ह । यह दमक बडी सपषटता स हीर, सफीन (७१५१५) ओर जिरकान म कटाई क पशचात‌ दिखाई दती ह ।

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28 रतन-परदीप

कछ रतनीय पतथरो पर रग का मनोरजक करिशमा दिखाई दता

ह ओर कछ पर रग दीपत ओर तारो की छिटक-सी लिए रहत ह । इसका

कारण उनकी विलकषण आनतरिक बनावट ह जिसस परकाश क फलाव म

बाधा पडती ह । इसका विसतत विवरण हम उपयकत सथानो पर दग।

(क) रतनीय पतथर ओर रनटजन रज (कष-रशमि) (1२०1८ 1२९)ऽ)

रनटजन रज उन बिजली की विशिषट किरणो को कहत ह, जिनका

परयोग किसी ठोस पदारथ क आनतरिक भाग को दखन क लिए किया जाता

ह । इनको 'कष-रशिमरयो' भी कहा जाता द । इन किरणो दवारा भी असली

ओर नकली रतनीय पतथरो को पहचानन म बहत सहायता मिलती द । हीरा,

अमबर ओर जड पर जब य किरण पडती ह तो व बिलकल पारदरशक

दिखाई दत ह । इस तरीक स अनय सफद रतनीय पतथरो या कच स हीर

को सरलता स पहचाना जाता ह । इसी परकार माणिकय ओर नीलम को

भी इन किरणो क परयोग स उनदीक रग क अनय रतनीय पतथरो स

सपषटतया पथक‌ किया जा सकता ह । ओपल ओर कराईसोबरील पर जब य

रशमिया डाली जाती ह तो व कम पारदरशक दिखाई दत ह । सफटिक वरग

क पतथर फलसपार, पखराज इनः रशिमिया क पडन पर अदरधपारदरशक मालम

होत ह । फीरोजा, तरमली, परीडाट ओर एपीटाइट लगभग अपारदरशक

लगत र । एलमनडाइन गारनट, बरील, जिरकान ओर सब परकार क काच

इन रशमयो क पडन पर बिलकल अपारदरशक लगत ह ।

डालटर नाम क एक जरमनी क वजञानिक न परथम बार रनटजन

रज दवारा रतनीय पतथर क परीकषण की करिया आरमभ की थी।

इस विषय को कछ विसतत रप म लिखन का हमारा उददशय यह ह कि रतनीय पतथरो को कवल उनक रग ओर आमा दी स नी (जो एक

धोखा द जान वाला तरीका परमाणित हो सकता ह). वरन‌ उनक अनय गरणो

दवारा भी पहचान करना आवशयक दह । बिना साफ किए ओर बिना काट

पतथरो की परीकषा क लिए उनक सफटिक आकार (@५५०॥१८ 5०८), कठोरता, आपकषिक गरतव तथा रग दखना आवशयक ह । कट हए रतनीय पतथरो की

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रतनो की उतपतति, गण, कटाई, रगाई व तौल 29

परीकषा करत समय उनका वरतनाक, आपकषिक गरतव, दिवरणिता, कठोरता, रगादि जाचना उचित ह । हमार कहन का सकषप म अरथ यह ह कि रतनीय पतथरो क कवल किनही दो-एक गणो को दखकर किस) निरणय की चषटा करन म धोखा खा जान की सदा समभावना वनी रहगी ।

(ख) रतनो की कटाई, रगाई तथा उनकी तौल

जो चमक-दमक वाल मोहक रतन हम आमषणो म जड दखत ह, व अपन मौलिक रप स बिलकल भिनन होत ह । एसा. आकरषक रप उनकी सनदर कटाई ओर पालिश स चमकान क बाद ही परापत होता ह। उनका परकत आकार अनियमित ओर बडौल होता ह। कभी व ककडो क रपम परापत होत ह ओर कभी टट हए मणियो या पतथरो क टकड क रप म । समय ओर मौसम उनक आकार को तथा बाहय रप को विचितर कर दत ह ओर उनकी सनदरता ओर अतरिक आभा का निखार तभी दखन को मिलता ह जब ,उनकी कटाई ओर पालिश हो जाती ह । इस काम को बडी कषमता की आवशयकता होती ह । जो खनिज अतयनत दोषी हो जात ह उनको रतनो क रप म नही परिणित किया जाता । कटाई म रतनीय पतथर की कठोरता ओर चिराव (८०५६६) पर परण रप स धयान दिया जाता ह ओर

इस दिशा म अनभव ओर परवीणता क विकास स रतनीय पतथरो की कटाई विभिनन आकारा ओर अनपातो म होन लगी ह।

यदयपि अव भारत म रतनीय पतथरो की कटाई काफी अचछी होन

लगी ह, परनत सबस सनदर ओर साफ कटाई हालणड, बलजियम, जरमनी ओर परास म होती ह । जड की सबस ऊमदा कटाई चीन की मानी गई ह एनटवरप ओर एमसटरडम हीर की कटाई क मखय कषतर ह । भारत म जयपर ओर बमबई म भी हीरो की कटाई होती ह । अनय मलयवान ओर अलपमोली रतनीय पतथरो की कटाई क लिए जरमनी म ईडर, ओबरसटीन नामक सथान

ह । यह पर इन पतथरो की रगाई भी होती ह ओर सशलिषट रतन भी तयार

किए जात ह । लनदन म भी कटाई का काम होता ह, परनत यह काम उततम

जाति क रतनीय पतथरो तक सीमित ह । दकषिण अफरीका म यह काम आरमभ

किया गया, परनत उसम कोई विशष उननति न हो सकी । हो, भारत म

इस दिशा म दिन- परतिदिन उननति हो रही ह ओर एसी आशा की जाती

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30 रतन-परदीप

ह कि कछ दिनो म हमारा दश इस कषतर म एक विशिषट सथान परापत कर

लगा ।

बड-बड कटाई क ससथानो म आजकल कटाई क काम म विदयत

शकति (।००१०९॥ ०५०२) की सहायता ली जाती ह, परनत सकषमता ओर बहत

सफाई का काम हाथ स चलाई जान वाली मशीन या ओजारोस ही किया

जाता ह । रतनीय पतथरो क पहल घमत हए खड बल स (५५५९) चरखियो

स टकड किए जात ह, फिर उनको आड बल स (ा०टमाम) चलाई जान

वाली चरय स रगड पहचाई जाती द । हीरो की पालिश क लिए य

चरयया मलायम लोह की बनी होती ह । भिनन-भिनन परकार की पालिश

की ओर चिकनाई दन वाली (५9९०1108) सामगरी इसतमाल की जाती ह

ओर एक कठोर शरणी का हीरा, जिस बोरट (७०४५) कहत ह, कटठोरतर पतथरो

को रगडन ओर पालिश करन क लिए इसतमाल किया जाता ह । रगीन

पतथरो म अनीक (१५८०७) हीर क समान बिलकल ठीक नदी होत, कयोकि

रगीन पतथरो की कटाई म मखय धयय होता ह उनक वासतविक रग का

उततम स उततम रप म निखार लाना ओर साथ ही साथ रतनीय पतथर कौ

उपयकत तौल को कायम रखना ।

रतनीय पतथरो की कटाई कई परकार स होती द । यहा पर मखय

काटो का सकषिपत विवरण दत हः

(1) कबीकोन काट-- रतनो की काट की कला क परचलन ओर

विकास क परव परकत रलतनीय पतथर, जिनह ` खरड' कहा जाता ह, साधारण

तौर पर गोल किए जात थ तथा पिसकर बनाय जात थ । अधिकतर रतनो

म छद बनाकर उनको माला क रप म पिरोकर इसतमाल किया जाता था ।

कबीकोन काट दवारा या उननतोदर कबीकोन काट, मसराकार काट, उचच

काट, सरल या सादी एव खोखला या नतोदर उननतोदर होता ह । कबीकोन

काट वाल रतन की बाहय रखा वतताकार, दीरघवततीय या अडाकार (७५५) हो

सकती द । दहर कबीकोन काट म रतन क ऊपरी तथा नीच की सतह

दोनो उननतोदर होती ह| यदि दोनो की वकरता एक जसी हो तो वह

"मसराकार काट कहलाती ह । उचच कबीकोन आकार म रतनीय पतथर को

काटन पर उसका ऊपरी भाग बहत ऊचा हो जाता ह। सादी काट म

नीच की सतह चपटी होती ह । खोखली कटाई म नीच की सतह खोखली

बना दन क कारण वह नतोदर हो जाती ह । उसम ऊपर का भाग उननतोदर

रहता ह ।

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रतनो की उतपतति, गण, कटाई, रगाई व तौल 31

ओपल, चनदरकानत मणि, लहसनिया परायः कबीकोन काट म दख जात ह । गारनट रतनीय पतथर खोखली काट म काट जात ह । उसस उनक रग म निखार आ जाता ह। फीरोजा, तरमली भी परायः इस परकार की काट म दख जात ह ।

2) जवलत काट (५॥५। ©५1)-- जवलनत काट हीर क लिए इतनी अधिक परचलित ह कि इस रतन को ही "जवलनतः (1949) कहा जान लगा ह । इस काट को `कवल घाट" भी कहत ह । यह काट कतरिम नगीनो क लिए भी उपयकत मानी गई ह । इसम कल 58 बधिरया (२७८५।७) होती ह । 33 बधिरयो (८५७) रख की ओर होती ह ओर 25 चोटी कौ ओर होती ह । इन बधियो क मधय म एक निशचित अनपात होना आवशयक इह । रख की ओर की बधियो ओर किनार क बीच का कोण ॐ स 7 अश का होना चाहिए । इसी तरह चोटी की ओर की बधियो ओर किनार स मधय का कोण +0 अश का होना चाहिए । एक अचछ बन हए नगीन म रख की ऊचाई कल ऊचाई स 13 होनी चाहिय ओर टीक (टाल की चौडाई) नगीन की कल चौडाई क 4/५ भाग स अधिक नही होनी चाहिय ।

(3) पटल काट-इस काट म रतनीय पतथर (विशषकर हीर) क सवाभाविक अषटानीक क ऊपरी तथा नीच क सिर को चिकना बनाकर चमका दिया जाता ह । ऊपर का 'अनीक पटलः कहलाता दह ओर नीच क अनीक कयलट स कही अधिक चौडा होता द ।

4) गलाबी काट-इस कटाई क तरीक को कवल बहत छोट हीरो क लिए काम म लाया जाता ह । आकार सादा कबीकोन होता ह, परनत वकर सतह पर बधियो (५५५५) होती ह । अधिकतर 24 बधियो होती ह । यद काट उन छोट-छोट नगीना क लिए उपयकत ह जो किसी बड नगीन क चारो ओर जड जात ह ।

(5) सटप काट (७५० ५0--- यह काट परायः पनन ओर पखराज क लिए की जाती ह । ऊपर ओर नीच की बधिरयो (१४०५७) आडी (110५0१1) ओर समानानतर होती ह । व किस अनपात म हो इसक लिए कोई निशचित नियम नही ह ।

(6) मिशरित काट-- इस काट पदधति म नगीन का ऊपरी भाग जवलनत काट का होता ह ओर नीच का भाग दसरी काट का। एमीथिसट (कटला) अधिकतर इसी पदधति क अनसार काट जात ह ।

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32 रतन-परदीप

ऊपर दी हई काट क अतिरिकत बहत-स अनय आकार भी रतनो म मिलत ह । इनम मखय ह-बगट, सिर कट तरिकोण, इपौलट, अरधचनदर, कजी पतथर, पतग, टिकिया, नवट, पटगन, सम आयत, दरपीज तथा तरिकोण ।

(7) जाल या गददा काट (८५७० (५)-- पनन या ट‌रमलीन की

तरह क रतनो को जाल काट या गददा काट (५७1०) (५) क रप म बनाया

जाता द । इस तरह क पतथर को कछ चपटा काटा जाता ह ओर इसम अनीक की एक या अधिक पकति मखला (6७५,५।८) क समानानतर रखी

जाती ह । इसस मिलता-जलता पटल काट ह जिसम पटल बहत बडा होता ह ओर वह मखला स परवणित (४५.०००) सिरो म मिलता ह । कभी-कभी रतन क ऊपरी भाग का काट उसक पषठ भाग क काट स भिनन होता ह।

(8) नग बनाना-- पराचीन यग म रतनो की सफाई करक सनदर

नग बनान की परकरिया इतनी परशसत नही थी जितनी कि आज ह ।

पराचीन परकरिया यह थी कि जिस पतथर का नग तयार किया जाता

था, उसस कठोर पतथर का चरण बनाकर तथा चपडी म मिलाकर साण बनाई जाती थी । उसी पर धिसकर नग तयार हो जाता था । अतः वयवसथित

तिकोणादि नी बनत थ ।

यदयपि हीरा सब रतनो म बहत सखत, टिकाऊ तथा कीमती ह तथापि उस यग म साधनाभाव क कारण इसक बदिया धार क बनान की परकरिया नी थी । अतः इस परधानता नही मिल पाई, अपित मोती ओर मगा ही परधान मान गय |

(9) आधनिक परकरिया-- खान स निकलन क पशचात‌ जो माल बाजार म आता ह उस खरड कहत ह । खरड को पहल नीब ओर सोड

म भिगोकर साफ कर लना चाहिए ओर उसक साथ कोई विजातीय पदारथ चिपक हए हो तो उनह पथक‌ कर दना चाहिए । नई खरड को दो या तीन घणट भिगोना ही परयापत होगा । यदि खरड परानी पडी हई हो तो उस बारह स चौबीस घणट तक भिगोना पडगा । फिर उस पानी स धोकर साफ करक सखा लना चाहिय, ततपशचात‌ उसम तिलली का तल दना चाहिए जिसस उसम चिकनापन आ जाय । तल लगान स टकडी क भीतर की सथिति का जञान हो जाता ह । फिर उस चौकी पर फलाकर रग पानी क हिसाब स छोट लना चाहिए तथा हलक ओर गहर रग व पानी क अनपात स भिनन-भिनन राशियो म विभकत कर दना चाहिय । इन राशियो की

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रतनो की उतपतति, गण, कटाई, रगाई व तौल 33

एक-एक दकडी दखकर यह भी विभाजन कर लना उपयकत होगा कि

इनम स किस-किस टकडी का कया-कया बनवाना ठीक रहगा ?

ततपशचात‌ टकडियो क एव आदि दखकर निकालना चाहिए । एब

पथक‌ करन क लिए परव काल म सरोता कटिग को काम म लिया जाता.

था, लकिन आजकल अधिक सविधा उपलबय होन क कारण कटाई पलास

स की जाती ह"। यह भी धयान म रखना चाहिय कि चीर या कमजोर भागा

पर ही पलास का परयोग धीर-धीर किया जाय । बलपरवक पलास का परयोग

करन स खरड म चीर पडकर खराब हो जान काडर ह।

परवकाल म धनष क आकार क बस पर तार बोधकर करड क

चरण दवारा कटाई की जाती थी, परनत आजकल पहिए क दवारा कटाई

(आल) की जाती ह । सनदर कटाई वह समञञी जाती ह जिसम चौती क

दवारा धार न पड ओर यह भी धयान रह कि काटत समय चोती इस परकार

काम म ली जाव कि जिसस उसका घाट (52) बनान म रख सही तौर

पर आ जाव । कटाई म लगान का मसाला मरदा सीगी, करड ओर मलतानी

मिलाकर तयार किया जाता ह।

परवकाल म खरड जसी भी सामन आ जाती थी उसका वसा ही

माल बना लिया जाता था । आज यह बात धयान दन योगय ह कि नगीन

बाजार की मग क अनसार बनाय जाय ओर तौल म भी यथासमभव अधिक

कमी न आव।

उपरयकत करिया क पशचात‌ टकडिरयो घाट बनान क लिए तयार हो

जावगी ओर कारीगर को बनान क लिए दी जा सकगी ।

कारीगर इनह जिस साण पर धिसकर बनात ह, वह साण करड

ओर चमडी की होती ह । आजकल साण म विलायती पाउडर भी डालत

ह । यदयपि इसस धिसाई शीघर हो जाती ह, किनत लोच वसा नही रहता ।

मलायम जाति क पतथर तो करड की साण स आसानी स धिस जात ह,

किनत माणिक, नीलम आदि कठोर पतथरो को धिसन क लिए साण को

नील का चरण मिलाकर खब तीकषण कर लिया जाता ह जिसस कठोर पतथर

की खरड भी आसानी स शीघर धिस जाती ह ओर अचछ घाट क नग बन

जात ह । इस पदधति स खरड बनान म लोच व चमक ठीक रहती ह ओर

तौल की भी हानि कम होती ह।

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34 रतन-परदीप

(10) हीर क नगीन बनान की पदधति अनय रतनो स भिनन ह। कवल घाट (माग ९०५) जो हीर व नकली रतनो क नगीन म अधिक परचलित ह उसम कवल 58 बधिरयो होती ह । ॐ बधिरयौ रख की ओर होती ह, 25 बधिरयो चोटी की ओर होती ह । इन बधियो क मधय एक निशचित अनपात होना आवशयक ह । रख की ओर की बधियो ओर किनार क बीच का कोण ॐ स 7 अश का होना चाहिए । इसी तरह चोटी की ओर की बधियो ओर किनार क मधय का कोण 40 अश का होना चाहिए । एक अचछ

बन हए नगीन म रख की ऊचाई कल ऊचाई स एक तिहाई होनी चाहिय ओर टीक (टाल) की चौडाई नगीन की कल चौडाई क 49 भाग स अधिक नही होनी चाहिए ।

घाट करन क बाद उसकी सधाई करना भी आवशयक ह । सधाई

का अरथ ह यह दखना कि किस परकार की बनदिश स नगीन म चमक आ सकगी । सधाई गोल या वज नगीन की करत समय सरवपरथम हवला (फारसी) बोधा जाता ह । उस हवल को आठ भागो म विभकत किया जाता ह, उस `अदठा" कहत ह । इसक बाद म बधि लगाई जाती ह । य चौबीस

होती ह ओर इसक पशचात‌ तल जिलह किया जाता ह। बाद म बधियो पर जिलह की जाती ह । जिलह गव की बरी स की जाती ह। गवा एक परकार का पतथर होता ह। उस आग म भसम करक बरी बनाई जाती ह ।

चोटी की तरफ किनार स लकर चोटी तक उसकी मोटाई क अनपात स थड‌ डाल जात ह । कम स कम तीन तीन थड होन आवशयक ह । वरिलियनट काट म थ‌ नही पडती । चोटी पर फल की बनदिश की जाती ह । बाकी

भागो म फिर छोट-छोट दास लगाए जात ह । आठवास ओर चौकी म

अमरल होना आवशयक ह । यह अमरल तल की तरफ टीक ओर दास क बीच म पालिश की एक बारीक लाइन लगान स बनी ह । इसस नगीन

की सनदरता बद जाती ह । चौकी ओर अठवास म गिरद कौ भोति अटठ नही लगाय जात । उसम कवल दास लगाय जात ह । चोटी की तरफ लमब दास ही लगाय जात ह । गिरद की भोति छोट-छोट दास नही लगाय जात ।

पान ओर मारकीस काट म चोटी की तरफ बारीक बनदिश की जाती ह, परनत नोक क ऊपर ताल की तरफ बारीक बनदिश की जगह दो लमब दास लगान स नगीना सनदर व चमकदार बनता ह । यदि नोक

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रतनो की उतपतति, गण, कटाई, रगाई व तौल 35

पर दो तिलकडी लगा दी जायगी तो पान की शकल बिगड जायगी ।

इसलिए दो तिलकडी नही लगानी चाहिए ।

परानी मणियो को काटकर नग बनान की विधि खरड स बिलकल

भिनन ह । पहल मणि क सराख म स दो टकड करन चाहिए । यह धयान

रखना ह कि कही कटाई स नगीना बरखा तो नही होता ह । कटाई करत

समय यह भी धयान दना आवशयक ह कि कटाई का रख आता ह या

नही । रख आ जान स नगीना बनान म सगमता रहती द । मणि काटत

समय यह भी धयान रखना चाहिए कि चमक (कषट) का भाग कटाई मन

चला जाय । यथासमभव रचौबी को काटन म बचाना चाहिए । यदि रचौबी

कट जाय तो रग कम जो जायगा ।

घाट बन जान क बाद पालिश की जाती ह। पनना आदि नरम

पतथरो पर तो राग अथवा कास की साण पर ओर माणिक आदि कठोर

पतथरो पर तौब की साण पर पालिश होती ह । जिलद (पालिश) करत

समय बरी का मसाला साण पर लगया जाता ह | नरम पतथर क मणि

मथल अकट पर जिलह (पालिश) किय जात द । यह अकटा, अर‌, ओक

ओर आकड की लकडी का बनता ह । पालिश करन स परव कवल नरम

पतथर क मणि, मथलो की पनियाई करना आवशयक हि |

मणियो की बिधाई लोह क तार पर बारीक हीर की कणी लगाकर

की जाती ह।

इसक बाद मणि, मथला, तावडा आदि परतयक माल को नीब. क

रस म सोडा मिलाकर कम स कम 12 घणट भिगोन क अननतर निकाला

जाता ह । बाद म धोया जाता ह । धोत समय याद रह कि गरम माल ठड

पानी स नरी धोना चाहिए, कयोकि ठणड पानी स चीर टटन या माल म

नई चीर पड जान की समभावना रहती ह । अतः गरम पानी स धोना

चाहिए । तदननतर माल को भली परकार सखाकर जोबन म दना चाहिए ।

पनन का जोबन बरजा, जगाल, रमी मसतगी ओर हलदी स तयार

किया जाता ह । माणिक का जोबन रतनजोत स तयार होता ह । आजकल

रतनजोत क बजाय लाल रग क दवारा जोबन तयार करत ह । इस जोबन

क दवारा एक बार तो माल अचछा तयार हो जाता द, परनत शीघर ही खराब

होन लगता ह । खार मनववत आदि की भिनन-भिनन करिया ह ।

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36 रतन-परदीप

सिदधाततः तो भिनन-भिनन पतथरो क बनान की परकरिया पथक‌-पथक‌ ह, परनत य जो परकरिया बताई गई ह य सामानयतः सब रतना क निरमाण म उपयोगी ह-कवल हीर म यह विशषता ह कि वह हीर स ही धिसा जाता ह ओर सटील की साण पर पालिश होती ह।

आजकल तावड पटसान म बनाय जात ह, इस पर पालिश अचछी

आती ह । यह परव करिया का विकसित रप ह ।

रतनो म कतरिम रप स रग भरना-- रतनीय पतथरो म कतरिम रप स रग भरन की करिया उनक मौलिक रप को अधिक आकरषक बनान क लिय काम म लाई जाती ह । उनक रप लावणय म वदिध स उनका मलय भी बद जाता ह । यह परकरिया नई नही ह । पलिनी क लखो क अनसार पराचीन काल म जौहरी इस परकरिया की परण रप स भिजञता रखत थ । उनक अपनाय हए बहत-स तरीक अब परचलित नही ह ओर अनय म सधार हो गया ह।

„ सभी सणिदर रतनीय पतथरो (२००४५ 51०) म बडी सफलता स रग

भरा जाता ह । परनत वह रग सथायी नही होता । इस परकरिया म परयापत समय लगता ह ओर बहत सावधानी की आवशयकता होती ह जिसस रतन खराब न हो जाय । इसम रतन को गरम किया जाता ह ओर तापमान उपयकत मान स अधिक न हो जाय इस बात का धयान रखना बहत जररी ह । यदि रगाई का काम किसी मिशरित तरल रसायन म किया जाय तो इस बात पर धयान रखना आवशयक ह कि रतनीय पतथर तरल पदारथ म उपयकत समय स अधिक दर न पडा रह। इस परकरिया क लिए समय की अवधि विभिनन पतथरो क लिए पथक‌-पथक‌ होती ह ।

ससत रतनीय पतथरो म कालसडोनी (0०००००११), जो सफटिक जाति का एक अलपमोली पतथर ह, बिना कतरिम रगाई क बाजार म नही आता । उसम चमकत नील रग की रगाई होती ह ओर जिसम लाल रग भरा जाता ह व बाजार म 'रोजलीन" क नाम स बिकत ह । दोनो रग शीघर ही हलक पड जात ह ओर पतथर पर इधर उधर धबव दिखाई दन लगत ह । इनकी रगाई कटाई क बाद होती ह । हकीक (^४।८) जाति क रतनीय पतथरो म कवल ताप दन स ही रग उमर आता ह । चमकत लाल रग क कारनीलियन कतरिम ताप दवारा एसा रगीय निखार पात ह । मारत म उतपनन इस वरग क रतनो का पराकतिक रग ही अचछा होता ह । उनकी रगाई की आवशयकता नही होती । ताप दन स परव लाल पतथरो क अनदर आयरन विटरियाल (७ ५६०) का घोल (§०५५०) पहचाया जाता ह । हर ओर

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रतनो की उतपतति, गण, कटाई, रगाई व तौल 37

नील रग क हकीक अपनी परकत अवसथा म इतन सनदर नही होत । उनम

सनदर नीला रग उनको पहल फरिक आकसाइड (एल (०५५९) क ओर

फिर पोटशियम फरोसिनाङड 0155) 6700110९) क घोल म डालन स

परापत होता ह । उसम आकरषक हरा रग निकिल सालट (९५५ 91४) या

करोमिक एसिड ("०५८ ^<०) क घोल म डालन तथा ताप दन स परापत

होता ह । उनम पीला रग हाइदधोकलोरिक एसिड (ःणनाणप५ ^त५) म

लगभग पनदरह दिन तक हलकी गरमाहट दन स परापत होता ह।

एसा भी होता ह कि कछ हकीक पतथरो म छिदररहित‌ (14070105)

अश होत र । इन अशो म कतरिम रग नही चद पाता । इसका परिणाम

यह होता ह कि एस पतथरो म रग क साथ कछ सफद अश रह जात ह ।

हकीक पतथरो पर चढाय रग अधिकतर सथायी होत ह ओर इस कारण य

पतथर अपनी परकत अवसथा क मकाबल रगाई क बाद अतयनत आकरषक

बन जात ह ।

इसी परकार ओनिकस (0) म सफद ओर काली धारिरयो ताप

ओर रासायनिक परभाव स निखर आती ह । जसपर नाम क रतनीय पतथर

को परायः नील रग म रगा जाता ह ओर बाद म वह बाजार म सविस लपिस

(७५55 1.5) या जरमन लपिस (उदपा 1.5) क नाम स बिकता ह । उसम

अचछा नीला रग लान की विभिनन परकरिया हः परनत कोई भी सथायी रग

नही द पाता ओर न दही रग वासतविक लपिस ल जली (लाजवरत) का

मकाबिला कर पाता ह। फीरोज को भी कतरिम रग दिया जाता ह, परनत

वह सथायी नही होता । जब परकत अवसथा म अचछ रग वाल फीरोज अपन

रगकोखो वठत रतो फिर कतरिम रपसरग हए रतन. कह स सथायी रप

म अपना रग टिकाऊ रख सकत ह ।

परान किसम क अमबर की माग क कारण नय परापत रतनीय पतथरो

को रगा जाता ह । अचछ कट हए दकडो को तल मिल रग म डबोया

जाता ह ओर उस पर थोडा-सा ताप पहचाया जाता ह । फिर टकडो को

सखाकर साफ कर लिया जाता ह । कयोकि अमबर अतयनत भगर (७1९)

होता ह, अतः इस परकरिया स बहत दकड खराब भी हो जात ह या उनकी

तोल घट जाती ह । इनक रग आकरषक तो बन जात ह, परनत परण रप स

सथायी नही होत । सना ह कि नयी परकरिया दवारा अमबर म दिय कतरिम रग

को सथायी बनान म सफलता परापत हो गयी ह ।

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38 रतन-परदीप

जिरकान म रग भरा कम जाता ह, उनका रग उतारा अधिक

जाता ह। तपान सय रगहीन हो जात. ह ओर इनको आभा बढ जाती

ह । वासतव म परायः इस परकार क रगीन जिरकान हीर क रप म बच दिय जात ह । परनत यदि उसकी कम कठोरता ओर अधिक आपकषिक गरतव पर धयान दिया जाय तो हीर ओर जिरकान म अनतर जानन म कठिनता

नही होती ।

सफटिक रप क रतनीय पतथरो तथा पखराज (10) ओर अनय

रतनीय पतथरो क रप म कतरिम परकरिया स सधार किया जाता ह । इसका विवचन हम उपयकत सथान पर करग । परनत इतना हम बता सकत ह कि अधिकतर कतरिम सधार असथायी होत रह ओर यदि सावधानी ओर धयान स

एस पतथरो की परीकषा की जाय तो कतरिम परकरिया का परभाव सपषट हो जाता

ह । यहौ पर यह बता दना भी आवशयक ह कि बहत स बिना रग रतनीय

पतथर जस नील जिरकान, पील पखराज, गलाबी सफटिक ओर कटला

(७1४७) तज धप क लगन स अपना परकत रग खो वठत ह ।

तौल-आजकल रतनो का अनतरषदरीय वयापार करट परणाली स

होता ह जो इस परकार हः-

100 सनट = 1 करट,58 करट = 1 भरी (तोला)

5000 करट = 1 किलोगराम, ऽ करट = 1 गराम

200 मि० गराम = 1 करट

अब भारतीय बाजारो म यदयपि करट परणाली चल गयी ह तब भी

"रतती" का नाम गराहक ओर दकानदार दोनो नही भल ह ।

भारत म रतनो की भिनन-भिननन सथानो की तौल इस परकार रः

बमबई

पाव आना भर = रतती का चौसठवा भाग

आधा आना भर = रतती का बततीसवा भाग

एक आना भर =. 1 रतती

24 रतती =1 रटोक, 2 रतती =।1 तोला

दकषिण भारत म परायः बमबई तोल परचलित ह ।

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रतनो की उतपतति, गण, कटाई, रगाई व तौल 39

ह।

राजसथान

20 विसवा = 1 रतती, 24 रतती = 1 टक

८५ रतती =1 भरी (तोला)

पशचिमी बगाल

20 विसवा =! रतती, 24 रतती = । रटोक

८4 रतती =1 भरी (तोला)

उततर परदश, आसाम, विहार म परायः कलकतता की तोल ही परचलित

तोलो का अनतरपरनतीय भद

वमबई 200 रतती = करट

जयपर 100 रतती = % करट, कलकतता 100 रतती =%0* करट

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--11 |3|| 0 ~ |

नवरतन : माणिकय (सए)

| . २.9 महारतन का अहो स समबनध : नवरनो क विषय | । स पराचीनः मानयताए : आज का वजञानिकः दषटिकोण :

माणिकय एक बहमलय रतन : नीलम क साथ भाई चारा | | मनमोहकः रग : परापति सथान व इतिहास 1 |

विविध नाम-- ससकत : माणिकय, पदमराग, लोहित, शोणरतन, रविरतन शोणोतपल, करविनद, सौगनधिक, वसरतन । हिनदी : चननी, रगल । अगरजी : १२५०५ । उरद-फारसी : याकत ।

नवररनो का नवगरहो स समबनध -- जसा कि हम पहल कह आए ह भारतीय मानयता क अनसार - (1) माणिकय (पदमराग), (2) मोती (मकता), (3) मगा (परवाल), (५) पनना, (5) पखराज, (८) हीरा, (7 नीलम,(४) गोमद तथा (9) वदरयमणि य ५ रतन ह ओर शष उप रतन ।

इन नवरतन का समबनध करमशः (1) सरय, (2) चनदर , (3) मगल,(4) बध, (5) बहसपति, (6) शकर (7) शनि, (8) राह ओर ५) कत स माना जाता ह । `जातक पारिजात, म लिखा ह कि सरय का रतन माणिकय, चनदरमा का सवचछ मोती, मगल का मगा, बध का गरतमक (पनना), बहसपति का पषपराग (पखराज), शकर का हीरा, शनि का निरमल नील (नीलम), राह का गोमद ओर कत का वदरय (लहसनियो) ह ।

उतपतति क समबनध म पराचीन मानयताए-- रतनो कौ उतपतति क समबनध म कितनी ही पराचीन मानयताए ओर उनस समबदध पौराणिक कथा परसिदध ह ।

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नवरतन : माणिकय 41

अगनि पराण" क अनसार महाबली वतरासर क वध क लिए विषण

भगवान‌ न इनदर को सञचाव दिया कि महा तपसवी दधीचि की हडडियो स

असतर बनाया जाय । दवताओ की परारथना पर सहामनि न अपना शरीर

दवताओ को भट किया ओर दवराज इनदर न उनकी हङडियो स वज बनाकर

उसस वतर का वध किया । असतर निरमाण करत समय पथवी पर गिर

असथि-खणडो स हीरा" (व) की खान बन गयी । वसततः यह दनत कथा

यही बताती ह कि ससार म हीर स अधिक कठोर कोई दसरी वसत नही

ह ।

राजा बलि की कथा-- एक दसरी पौराणिक कथा क अनसार

महरषि पराशर न राजा अमबरीष क परशन क उततर म बताया कि दतयराज

बलि का वध करन क लिए विषण भगवान न वामन अवतार धारण किया

ओर उसक दरप को चरण किया । इस अवसर पर भगवान‌ क चरण- सपरश

स. बलि का सारा शरीर रतनो का वन गया । तब दवराज इनदर न उस

पर व की चोट की । इस परकार टटकर विखर हए बलि क रतनमय

खणडो को भगवान शिव न अपन तरिशल पर धारण कर लिया ओर उसम

नवगरह ओर बारह राशियो क परभतव का आधार करक पथवी पर गिरा दिया।

पथवी पर गिराय गय इन खणडो स ही विविध रतनो की खान पथवी क

गरभ म बन गयी । कहत ह कि राजा बलि क शरीर क विभिनन अग स

ही 84 परकार क रतन पतथरो ओर मणियो की उतपतति हई । जस कि रकत

स माणिकय, मन स मोती, पितत स पनना, मास स पखराज आदि की उतपतति

हई । बलासर की कथा-- गरड पराण म इसी स मिलती-जलती कथा

बलासर की वरणित ह । उसन दवराज इनदर को यदध म हरा दिया । यह

दतय होत हए भी महा दानी तथा अपन वचन का पकका था । दवराज

इनदर न उसक इस गण का लाम उठाकर उस ठगा । बराहमण वश म

उसस परारथना करक यह माग लिया कि वह दवताओ क यजञ क लिए अपना

शरीर बलि क रप म उनह सोप दगा । बलि पश बन बलासर का शरीर

अगनि म होम करन पर उसक विभिनन अग पथवी पर जरहौ -जहौ गिर, वहा

विविध रतनो की खान बन गयी ।

समदर-मनथन की कथा-- यह भी पराणो म वरणित ह । इसक

अनसार जब सरो ओर असरो न समदर का मनथन किया तो ॥4 रतन पदारथ

निकल-उनम कौसतभ मणि एक रतन था । फिर इसस निकल अमत को

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42 रतन-परदीप

लकर सरो-असरो का सघरष हआ । छीना-पटी म अमत की बद जरहौ- जहो गिरी, वहा ही पथवी की मिटटी स मिलकर विविध परकार क

`रतन' बन गय ।

आचारय वराह मिहिर न बहतसहिता म इन कथाओ को धयान म रखकर ही, मानो यह बताया कि किसी का मत ह कि `बल' नामक दतय क शरीर स रतनो की उतपतति हई कोई दधीचि की हडिडयो स रतन का

बनना मानता ह ओर-किसी-किसी की मानयता यह ह कि मिटटी क सवभाव

स ही सब रतन भमि क गरभम बन । व इस पर अपना कोई मत नही परकट करत ।

आज का वजञानिक यग-- परनत आज चनदरलोक की यातरा करन ओर अनतरिकष म अपना घर बनान वाला वजञानिक मानव इन कथाओ को जसा का तसा मान ल, यह समभव नही ह । आज तो वजञानिको न यह जान लिया ह कि किन-किन खाना म किस-किस परकार क रतन पाय जात -ह, उनकी भौतिक तथा रासायनिक बनावट कसी ह । इसलिय हम

यह मानना पडता ह कि य कथाय ओर मानयतारए कवल रतनो क विशष

गणो को पाठक क मन पर अकित करन क लिए वरणित ह । दधीचि की हडिडयो स बन हीर म कठोरता की, शरीर क रकत स उतपनन माणिकय म रकत जस लाल रग की विशषता ह, आदि दिखलान क लिए हीय

कथारण वरणित होती ह ।

माणिकय ओर नीलम करनदम समह क रतन ह । व रासायनिक रप म अलयमीनियम आकसाङड ह । करनदम क दानदार रतनीय पतथर को `एमरी' कहा जाता ह । इनकी कठोरता 9, अपकषित गरतव 4.03. वरतनाक

1.76 - 1.77, दहसारतन 0008 ह । दविवरणिता तीवर ह ।

माणिकय ओर नीलम दोनो मलयवान ओर लोकपरिय रतन ह । दोनो की महारतन म गणना ह । माणिकय सनदर लाल रग काहोता ह ओर नीलम आकरषक नील रग का ओर एमरी काल रग की होती ह ।

माणिकय की लाल जगमगाहट तथा नीलम की शानदार नील रग की दमक किसी ओर रतन को परापत नही ह । यह परकति का करिशमा ह कि एक ही पदारथ क इस परकार विभिनन रग हो । माणिकय क मणिम अधिकतर

- षडमखी ` परिजम' म ओर नीलम क दवादशमखी 'परिजम' म परापत होत ह । दोनो षडभजीय पदधति (५५०६०१० ॐ) क अनतरगत आत ह । सब रतन पारदरशक या पारभासक (छाऽषला। छा गताजपतलाप) होत ह ओर अपनी

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नवरतन : माणिकय 43

कठोरता, आकरषक ओर विविध रगो म परापत होन क कारण आमषणीय

उपयोग म उनको एक विशिषट सथान परापत ह । इस समह म जो पील

रग क पतथर परापत होत र इनद 'पीला पखराज' कहा जाता ह । जो रग

विहीन होत ह व सफद पखराज होत ह । हर रग क रतनीय पतथर परापत

होत ह उनको 'हरा पखराज' (6८८१ ऽवशीपट) या पराचय पनना (छपलभ

8०००) कहा जाता ह । बजनी रग क रतनीय पतथर पराचय एमीथिसट बन

जात ह । गलाब रग क रतनीय पतथर भी करनदम समह म परापत होत ह

रगो म विभिननता उनम निहित `मटलिक आकसाइडस क कारण होती

ह | सटार रबी ओर सफायर भी कमी--कभी परापत होत ह ओर जब इनको

कवीकोन काट म काटा जाता ह तो इनक शिखर पर छः किरणो की तारक

छटा दिखाई दती ह । कभी-कभी एक ही रतनीय पतथर म विभिनन रग

मी दिखाई दत ह । लगभग सभी रतनीय पतथरो म कछ न कछ दोष

अवशय होता ह ।

माणिकय का अधिक मलयवान रग वह होता ह जो कबतर क रकत

क समान हो । बड ओर निरदोष रतनीय परतथर दरलभम होत ह ओर यदि

की मिल भी जाय तो उनका मलय बहत होता ह । अधिकाश पतथर

दोषपरण होत ह ओर उनम कमी-कभी `रशम" जस धव दिखाई दत ह ।

एसा अनभव हआ ह कि य रशम क धवव माणिकय म, विशषकर व जो

सयाम (ाईरलड) म परापत होत ह 'टिटनिक आइरन' क सकषम कणा क

कारण पड जात ह । गहर रग क रतनीय पतथरो म आङरन आकसाङड

की मातरा अधिक होती ह ओर यही माणिकय म लाल रग क वरतमान होन

का कारण माना जाता ह ।

कबतर क रकत क समान लाल माणिकय, जो परथम शरणी का माना

जाता ह, यदि पोच करट स ऊपर वजन काहो तो दरलभ माना जाता ह

ओर अतयनत मलयवान बन जाता ह 1 वासतविक बात यह ह कि माणिकय

क बड आकार क तथा अधिक वजन क रतन कम ही दख जात ह ।

दरलभता क ही कारण माणिकय हीर स अधिक मलयवान हो गया ह । अब

तो कया, सोलहवी शताबदी तक म उस समय का परसिदध जौहरी एरविनयर.

जो रतनो की तलाश म दश-विदश घमा करता था, बड आकार क माणिकय

की खोज म असफल रहा ।

सटार रबीअतयनत दरलम रतनो म स ह ओर बड आकार क माणिकय

भी उसी परकार दरलभ ह । दस करट की तौल क माणिकय का परापत होना

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44 रतन-परदीप

लगभग असमभव माना जाता ह ओर यदि सयोग या सौभागय स उततम जाति का इस तौल का माणिकय परापत हो जाय तो उतनी ही तौल क हीर स (जो सबस अधिक महगा रतन माना जाता ह) अधिक मलय का होता ह । सन‌ 1919 म एक 42 करट का माणिकय परापत हआ था जो खरड क रप म बाइस हजार पाउणड का बिकाथा । एक काटा हआ साढ सात करट का माणिकय सन 1935 म दस हजार पाउणड का बविका'था ।

इस समह क सभी रगीन पतथरो म शकतिशाली दविवरणिता या दरगापन (फलणञ७ण) होता ह ओर रतन की कटाई म इसका धयान रखना आवशयक ह । यदयपि य रतन पतथर अतयनत कठोर होत ह, परनत विदरण क तल पर मणिम बडी सरलता स टट जात ह । एक बात ओर ह : इस समह क सब पतथरो की कठोरता एक समान नही होती । माणिकय नीलम स कछ कम कठोर होत ह । आपकषिक गरतव सबका लगभग एक समान होता ह ओर उसका दहरावरतन तो यो ही आखो स दखा जा सकता ह । हा, रग की दमक ("८) अधिक नही होती । कवल इसी गण स रग विहीन करनदम को हीर स पहचाना जा सकता ह ।

जब लाल या माणिकय पर नील लोहितोततर रशमयो (१५४ \०1५। २०४5) डाली जाती ह तो रगो का बडा चमतकारी परभाव दखन म आता ह । माणिकय क रतनीय पतथर या कट हय रतन जवलनत परकाश म एस मालम होत र जस व जल रह हो । नील लोहितोततर परकाश स इनह हटा लन पर इनका जो लाल रग होता ह वह उतना सनदर नही दिखता । -इस

रतनीय पतथर की कौतकपरण परकति को परतिदीपति (।५०५९७९०१०९) कहा जाता ह । इसम मणिभ तरग दरधय क परिवरतक का काम करता ह । छोट दरधय वाली अदशय रशमियो का अवशोषण कर लिया जाता ह ओर उनक सथान

पर लाल परकाश क तरग दधय क बराबर वाली लमबी रशमिय का निरगमन होता ह । व महिलाय जो अपन माणिकयो की खब चमक दिखान को उतसक हो तो उनह अपन आपको कम तरग दरधय वाल परकाश म रखना चाहिए । रगो का अदभत चमतकार हाथ तथा मख पर थोडा सा तल लगा लन तथा रगो स रग हए वसतरो को पहनन पर समभव हो सकता ह ।

नील लोहितोततर परकाश म विभिनन परकार क रतनो म सहसा अजीब रग-परिवरतन दखन म आता ह । कई माणिकय म कवल निषपरभ लाल दयति पाई जाती ह तो अनय म पीली चमक दिखाई पडती ह । कतरिम लाल रतना ऊा रग नही बदलता । कतरिम ओर असली माणिकय क अनतर को

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नवरतन : माणिकय 45

सपषट करन वाली दो बात-- रशम क सदशच दयति एव तारकतव ह ।

पराकतिक रतनो म य होत हः परनत कतरिम म इनका सरवथा अभाव होता

ह।

विभिनन सथानो स परापत माणिकय क रग म भी अनतर होता ह । वरमा स परापत माणिकय का रग सयाम क माणिकय स कम गहरा होता ह

। शरीलका स परापत माणिकय क रगो म कछ पीलापन होता ह । सबस

उततम जाति क माणिकय उततरी वरमा क मोगोल नामक सथान स परापत होत

ह । सयाम म माणिकय वकाक क निकट चानटबन नामक सथान म पाय

जात ह । य व रतीली मिटटी म परापत होत ह । बरमा की माणिकय की

खदान सबस परानी मानी जाती ह ओर ससार क सवस उततम ओर बड

माणिकय यदी स परापत हए ह । यहा की खदानो स अति उततम रतन जो तौल म बततीस ओर अडतीस करट क थ, कमशः दस हजार ओर बीस हजार

पाउणड म विक थ । वरमा म माणिकय ओर नीलम दोनो पाय जात ह ओर व क मखय कषतर म उततरी वरमा म मोगोक, गीविनए खाबिन ओर बरनार डिनियो आदि ह ।

1

वरमा स परापत विशिषट रतन

सन 1875 म बरमा क राजा न दो बदिया माणिकय वच डाल। इनम एक जो बदिया लाल रग काथा, ॐ करट काथा । दसरा 4 करट काथा । इन दोनो को लनदन म काटा गया । परथम रतन का तौल

घटकर 32.3 करट ओर दसर का 38.6 करट रह गया । इनह कमशः 10.900 तथा 20.000 पाउणड म बच दिया गया । बरमा म एक बडा भारी माणिकय 400 करट का भी परापत हआ था । इसको तोडकर तीन रतन बनाय गय

इसका एक टकडा कलकतत म सात लाख रपय म बिका । एक सनदर माणिकय जिस 'नाग बोह' का नाम दिया था, अपन मल रप म 44 करट का था । काट जान पर वह 20 करट का रह गया । रबी माइनस लिमिटड क अधिकार क समय एक समय म एक सनदर माणिकय सथल रप म 18.5 करट का था । यह रतन परणतया निरमल तथा बड शानदार रग काथा

इस काटन क बाद 700 पौड म बचा गया । बाद म उसका मलय 10.000 पड ओका गया । सन‌ 18% म एक 77 करट का माणिकय परापत हआ ।

इस सन‌ 1904 म भारत म चार लाख रपयो म बचा गया । सन‌ 1887 म

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46 रतन-परदीप

49 करट का एक माणिकय परापत हआ । सन‌ 1890 म एक बहत बडा माणिकय

204 करट का भी मिला । सन‌ 1777 म गसताव ततीय न रस की सागराजञी

कथरीन को उनक सट पीटरसबरग क आगमन पर कबतर ऊ अणड क समान

बडा माणिकय भट किया । यह रस क राज वश क रतनो म शामिल था।

अचछ माणिकय, जो अधिकतर गहर रग क होत ह, काफी मातरा

म थाईलणड म वकाक क निकट पाय जात ह यहा पर माणिकय लाल रग

क सपाइनल पतथर क सहयोग म पाय जात ह । काबल क निकट खाना

म तथा बदखशौ की लाजवरत की खानो क उततर म भी माणिकय पाय जात

ह । अमरीका क उततरी करोलीना राजय म परापत कछ माणिकय बरमा क

रतनीय पतथरो स अधिक सनदर होत द । शरी लका म भी माणिकय परापत

होत द, परनत बहत कम । व तो नीलम की परचरता ह ।

शरीलका म परापत सबस बडा माणिकय 425 करट का था, पर

इसम निशचित रप स नील रग की आभा थी । आसदरलिया म सभी परकार

क करनदम की खान ह जिनम माणिकय भी पाय जात ह । दकषिणी

रोडशिया क हीरक कषतर म सोमाबला जगल परदश क निकट रतनयकत

ककड म अनय करनदम जाति क रतन क साथ कछ छोट-छोट लाल परापत

हए ह ।

माणिकय रतनो की कीमत अधिक होती ह । काटन क बाद उनका

मलय 500 स 7500 रपय परति करट तक होता ह । बहत उततम जाति क,

निरमलता लिय हय माणिकय तो ओर भी अधिक दामो म बिकत ह । रतनौ

क अतिरिकत माणिकय ओर नीलम का उपयोग घडियो म जवल क रपम

तथा बहत स वजञानिक यनतरो म आधार क तौर पर किया जाता ह ।

शरीलका तथा आसदरलिया म परापत लाल एव नीलम तो अधिकतर इस काम

म अत ह ।

विभिनन सथानो स परापत माणिकयो म अतर--रतन परकाश क

अनसार वरमा का माणिकय सरवोततम माना जाता ह । वहा स परापत हए

माणिकय गलाब की पतती स लकर गहर लाल रग का होता ह । ाईलणड

स परापत उजजवल स उजजवल रग क माणिकय को भी वरमा क समकष रखा

जाय तो उसकी शयाम आभा रहगी । वहा क माणिकय का दघक धला

हआ होता ह । इसी दधक क अभाव म उसम सटार नही आता, जबकि

अनय खान क माणिकय का दधक एक सथान म एकतरित दिखाई दता ह

ओर घमाकर दखन स चलता हआ नजर आता ह । शरीलका म रतनपर

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नवरतन : माणिकय 47

नाम क सथान म पाय जान वाल माणिकय म यदयपि पानी अधिक होता ह,

परनत वरमा क मकाबल म लोच कम होती ह । जसा पीठ कह चक ह,

व स परापत अधिकाश माणिकय नील आभायकत (विनोसी) होत ह ।

काबल क माणिकय म पानी मोटा होता ह ओर चरचरापन भी होता ह।

सफद डक अधिक होता द । परनत रग सनदर होता ह । कभी-कभी पानी

वाला टकडा भी परापत होता ह जो बरमा स भी अचछा होता ह । दकषिण

भारत म कागयिम नामक सथान म भी माणिकय की खान निकली ह ।

यदौ का रतनीय पतथर गमलाल होता ह ओर शयाम नील आभायकत

होता ह । उसम मलापन होता ह । यह नरम जसा होता ह । कोई

टकडा बहत अचछा होता ह । उसको काटन पर दकडो म पानी नजर

आन लगता ह । यहौ स परापत रतनीय पतथर गम, पारदरशक एव अरधपारदरशक

तीनो परकार का होता ह । टगानिका अगरिका का माणिकय बहत चरचरा होता

ह । लाल रग म शयाम आभा तो होती ही ह, इसम पीत आमा भी मिशरित

होती ह ।

शरषठ ओर उततम माणिकय क गण

(1) जिस माणिकय को परातःकाल सरय क सामन रखत ही उसम

स लाल रग की किरण चारो तरफ बिखरन लग वह माणिकय महान उततम

गण का माना जाता ह।

2) सौ गन दघ म माणिकय को डालन स दध लाल दिखाई द

अथवा लाल किरण दिखाई दन लग तो वह माणिकय उततम तवि ॥

(3) अनधकार म माणिकय को रखन पर वह सरय की आभा क

समान परकाशित होता हो तो वह शरषठ माणिकय होगा ।

4) कमल की पखडियो म रखन स यदि माणिकय चमकन लग

तो उस शरषठ समञचना चाहिय ।

(5) परातःकाल सरय क सामन दरपण पर माणिकय को रख । यदि

दपरण क नीच की तरफ छाया भाग म किरण दिखाई द तो बह उततस

माणिकय ह ।

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48 रतन-परदीप

(6) यदि माणिकय को पतथर पर धिसन स पतथर धिस जाय परनत

माणिकय न धिस ओर उसका वजन न घट एव धिसन स उसकी शोभा ओर बद जाय तो उस माणिकय को उततम जाति का समञजना चाहिय ।

(7) शरषठ माणिकय लाल कमल की पखडियो क समान लाल,

निरमल, दङकदार, दखन म सनदर, गोल, समान अग-अवयव वाला दीपतिमान

होता ह ।

जाच ओर परख

माणिकय क दोष : (1) सनन (विना खमक), (2) दघक (दघ जसा),

(3) दरगा (एक ही नग म दो रग). (५) चरचरापन (सरलता स खिल जान

वाला), 5) जठरा (पानी का मोटा-पारदरशकता की कमी), (५) जाला, (7)

पर (पकषी क समान), (8) चीर, (५) रग म मलिनता, (10) धमरवरण, (11) काला

या सफद, (12) शहद का रग अथवा इस रग का छठीटा, (13) नीलापन

(बिननोसी) ओर (14) गडढा ।

माणिकय म खरड क विभद-- (1) नीमा-यह समबोधन उस माल

को दिया जाता ह जिसम पीलापन हो, दोषपरण हो ओर पानी मोटा हो ।

(2) जातबनद-यह उस माणिकय को कहत ह जिसक पानी म निरमलता हो,

रग साफ हो ओर रग कनधारी अनार जसा या रकत कमल या तोत कौ

चोच जसा हो या गलाब की पखडी क समान हो । (3) नीमा

जातबनद-नीलापन हो, पानी कछ मोटा हो ओर चिकनाई अधिक हो । ~)

लदी कलर का माणिकय-यह माणिकय का सरवोततम रग माना जाता ह ।

यह लाल कधारी अनार क समान होता ह ।

सचच माणिकय की पहचान-- (1) सचच माणिकय को ओखो पर

रखन स ठडक मालम होती ह । शीशा या इमीटशन शीघर गरम लगन लगत र । 2 सचच माणिकय का आपकषिक गरतव (वजन की दडक)

कतरिम स अधिक होता ह । 3) बलबल दिखाई द या रतन हलका हो तो

कच या इमीटशन समञजना चाहिय । 4) यदि माणिकय म दध ह, उस दध म नीलिमा ह ओर दधक चलता हआ नही ह तो वह इमीटशन ह । (5) यदि चीर ह तो यह दखना आवशयक ह कि चीर शीश कीर या माणिकय की । यदि चीर शीश की होगी तो चीर कच क समान होगी

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नवरतन : माणिकय 49

ओर चीर क अनदर चमक होगी । रतन म सवतः जो चीर होती ह वह शीश की चीर स सरवथा भिनन होती ह । उसम चमक नही होती । उस चीर म असवाभाविकता नदी होती, बलकि वह टदी-मदी होती ह ओर उसम

सफाई नही होती । इमीटशन म सीधी ओर साफ चीर होती ह । (6) कोचि व इमीटशन म विनद‌ गोल, रख व शवतवरण ओर कही-कही पील होत ह । माणिकय म उसी रग क होत ह, परनत गोल नही होत । एस बिनद‌. असली रतन म कम पाय जात ह । यदि होत ह तो सकषमता स परीकषा करन पर अनतर मालम हो जाता ह । (7) माणिकय ओर इमीटशन म जो

परत होती ह उनम बहत भद होत ह । माणिकय की परत सीधी होती ह ओर इमीटशन की अरध वलयाकार होती ह । यह एक बहत महतवपरण अनतर ह । (8) इमीटशन नगीना म भी गदड ओर रशा होता ह । वह

रखा ओर सफद होता ह । माणिकय का गदड चिकना व रगीन होता ह यदि इमीटशन की खरड क पद का भाग नगमआ गया हो तो उसम

सफद-सफद कण सपषट दिखाई दत ह ।

नवीन परीकषा विधि

फिलाडलफिया म एक पराकतिक विजञान ससथान ह । इसक परधान मिसटर समअल जी० गडिन न माणिकय-परीकषा क लिय एक नवीन ओर बहत ही सरल तरीका खोज निकाला ह । वह यह ह कि यदि किसी माणिकय म खोट का सनदह हो तो उस बरफ क टकड क सामन रख दो

यदि माणिकय असली होगा तो जोर की आवाज होगी । नकली होगा तो कोई आवाज नही होगी ।

सशलिषट ओर इमीटशन रम अनतर-- जौहरियो की भाषा म

सशलिषट रतन को "छदम" कहत ह । सशलिषट म माणिकय क समान दोष

होत ह, परनत दधक म दधियापन न होकर नीलापन होता ह ओर घमता

हआ नही होता । नील लोहितोततर रशमिया (11५ ५०५ [२५५) पडन पर

इमीटशन ओर सशलिषट दोनो नारगी रग क दिखारद दग ओर माङकरोसकोप

क ऊपर दोनो म एक समान दोष दिखाई दग ।

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50 रतन-परदीप

माणिकय ओर “बहत‌ सहिता

बहत‌ सहिता क अनसार सौगधिक, करविनद ओर सफटिक इन तीन भाति क पतथरो स पदमराग (लाल) का. जनम होता ह । सौगनधिक पाषाण स उतपननन हए लाल भरमर, अजन मघ ओर जामन फल क समान कानतिमान‌ होत र । करविनद पतथर स उतपनन हए पदमराग अनक रग वाल, कानतिमान‌ ओर शदध होत ह । सनिगध, अपनी आभा स चमकता हआ, अचछ रग वाला एसा पदमराग शरषठ होता ह । मलिन, धधली कानतिवाला

रखाओ स वयापत मततिकादि धातओ स यकत खडित, बिधन क अयोगय ओर ककडदार पदमराग मनोहर नी होता, यही उसक दोष ह । भरमर

ओर मोर क कठ क समान रग वाला, दीपक की शिखा क समान कानतिमान‌

जो मणि सरप क मसतक म उतपनन होती ह, वह अमोल होती ह । जो राजा उस मणि को धारण करता हः उसको कभी भी विष या रोगकत दोष परापत नी होता । उस मणि क परभाव स दवता लोग नितय उसक राजय म वरषा करत ह ओर उसक शतरओ का भी नाश हो जाता ह।

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विविध नाम-- मोती को ससकत म- मकता, मौकतिक, शकतिज, इनद रतनः उरद फारसी म - मरवावीद ओर अगरजी म परल (२५०) कहत ह ।

भौतिक गण -- मोती खनिज नही, जविक रचना ह । इसकी कठोरता 34, आपकषिक गरतव 265 या 269 स लकर 284 व 289 तक ।

मोती की गणना अननत काल स बहमलय रतनो म होती आई ह । भारत म पराचीन मानधता क अनसार मोती अपनी उतपतति क अनसार आठ परकार क होत ह--

(1) अभरमकता-- यह बादलो स उतपनन होता ह । इसका रग पीत आभायकत होता ह ।

2) सरप मकता-- वह सरप क फण म होता ह । नील आभायकत ओर बहत चमक वाला होता ह।

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52 रतन-परदीप

(3) बौस मकता -- यह बोस स निकलता ह । कछ हरित आभायकत होता ह तथा बर क आकार का कछ लमबा सा होता ह।

(4) शकर मकता-- वह सअर क मसतिक स निकलता ह । कछ

पीलापन लिय हय सरसो क तल क समान होता ह।

(5) गज मकता-- यह एरावत वशीय हाथी की कनपटी स उतपनन

होता ह। आकार म अवल क समान होता ह। इसम चमक नही होती

ह ।

(6) शख मकता-- यह हलका गरओ या सफद रग काहोताह इसम चमक बहत कम होती ह, परनत चिकना बहत होता ह ।

(2) मीन मकता-- यह मछली क गरभ स उतपनन होता ह, कछ हरापन लिय हए मोतिया क फल क समान या पाड क समान रग वाला होता ह । कहा जाता ह कि इस मोती को मख म रखकर पानी म परवश करन स भीतर की समसत वसतए दिखाई द जाती ह ।

(8) शकति मकता-- यह सीप क अनदर स निकलता ह । आजकल

कवल सीप क गरभ स परापत मोतियो का परचलन ह ओर ऊपर अनय भद क वरणिति मोती अपरापय ह । वजञानिक तो यह सवीकार करन को भी तयार नी ह कि मोती सीप क अतिरिकत किसी ओर परकार स परापत हो सकत

ह ॥

जसा हम ऊपर कह चक ह कि आजकल की मानयता तो यह ह कि मोती कवल सीपस दही परापत हो सकता ह । यदयपि वह जविक उतपतति का ह, परनत उसकी बनावट विशषतः खनिज पदारथ क समान ह । इसलिय हम मोती को रतनीय पतथर तो कह नही सकत, परनत वह मलयवान रतन अवशय ह ।

मोती का जनम एक अतयनत मनोरजक रीति स होता ह ओर उसको जनम दन वाला एक छोटा सा जीव होता ह जो सीपी क अनदर अपना घर बनाता ह । मोती बनान वाला घोघा `मसल' (५५५७) जाति का एक जल म उतपनन होन वाला जीव ह जो आकार म सकरलप (ऽ०५॥०) स मिलता-जलता होता ह । उसक शरीर म मोट धागो क समान कछ अग होत ह जिनक दवारा वह चटटानो या अनय जलीय सथानो म अपन आपको चिपका सकता ह । परायः एक वरष म इसक जनन (जनम लन) की दो ऋत

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मोती 53

होती ह जब असखय घाघ जल म उतपनन होत र । जो घाध चटटानो का अवलमब पाजातदहव ही इस योगय होत ह कि उनम मोती बन सक ।

घोघा दो मास क आवरण क अनदर होता ह जिनको 'मनटल'

(2१112) कहत ह ओर यह मनटल अतयनत सकषम छततो स ठका होता ह जिनम लाइम काबोनिट ओर अनय कठोर पदारथ क मिशरण को निकालन की कषमता होती ह । यह मिशरण जमकर धीर-धीर सीपी का रप धारण का लता ह

य सीपियो हर घोघ म एक ही आकार ओर लमबाई- चौडाई ओर गोलाई क दो टकडो म होती ह । व एक ओर जडी होती ह ओर अचछी तरह घोघ को ठककर उसकी रकषा करती ह । इनही क पट को आवशयकतानसार खोलकर घाघा अपना भोजन परापत करता ह ।

सीपी म चार परत होती ह । परथम परत एक सीग क समान पदारथ की होती ह जिसको *कोचलिन' कहत ह । यह पदारथ *मनटल' स निकलता ह । दसरी परत `परिजमटिकः (7४७११०९) परत होती ह जो कलसाइट या ओरगोनाइट तथा कोचिलिन की बनी होती ह ओर सीपी की सतह पर समान कोण बनाती हई जमती जाती ह । कोचिलिन दवारा एक ढचा बन जाता ह जिस पर कलशियम कारबनिट जमा हो जाता ह । यह पदारथ भी मनटल स परापत होता ह । तीसरी परत मकता-माता की होती ह जो कि वासतव म `मनटल' की समपरण सतह स निकलन वाला कलशियम काबनिट होता ह । इसक किनार टढ-मद ओर खल होत ह जिसस उस पर सनदर चमक आ जाती ह । चौथी परत जिसको `हाइपोसदरकम (जञावणटणणो) कहत ह, घोध की मासपशियो ओर सीप की सतह क बीच

म होती ह । यह परत कटशियम कारबानिट क खाना (©००१०७) की होती ह ओर सीप की सतह स समकोण होती ह ।

य परत बहत धीर-धीर बनती ह ओर विभिनन परतो स पडत हए

परकाश क अकश स मोती म वह सनदर आभा आ जाती ह जिसको पराचय आभा" कहत ह ।

घोघा जब उपरयकत रप स अपना घर बना लता ह तो अपन को सरकषित समञजन लगता ह, परनत परकति को ससार को मोती जसा रतन दना ह, इसलिए उसक दवारा एस उपकरण बनत ह कि घोघ क सरकषण म बाधा पड जाती ह । एसा होता ह कि कोई विजातीय पदारथ, रत का कण, कोई कीडा या चटटान का कोई कण घोध क दरग म परविषट हो

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54 रतन-परदीप

जाता ह । घोघा उसस छटकारा पान का परण परयतन करता ह ओर कभी-कभी उस बाहर निकाल दन म सफल हो जाता ह । जब यह सभव

नही होता तो घोघा उस विजातीय पदारथ को सीपी म वरतमान पदारथ स

ठढकन लगता ह ओर इस परकार उस पर चककरदार परत चदती जाती ह

। वह पदारथ वही होता र जिसस सीपी बनी होती ह । अनत म यरी परत

एक कानतिपरण मोती का रप धारण कर लती ह । यही मोती अनततः जौहरी

की रतनो की पटी की शोभा बढाता ह । इस तरह किसी भी रप म बन

जान क कारण चकि उसम अनततः आणविक नियमो का पालन नही होता,

अतः मोती का आकार किसी भी परकार का हो सकता ह। इसी परकार

विभिनन आकति क मोती पाय जात ह । य गोल अडाकार, नाशपाती क

समान या अनियमित आकार क होत ह । परणतः गोल मोती बहत अचछा

तथा मलयवान सममा जाता ह ।

कभी-कभी यह विजातीय पदारथ सीपी ओर मनटल क वीच म

पहच जाता ह या कोड चिपकन कीडा सीपी म छद कर दता ह । एसी

दशा मजो मोती बनत ह व सीपी स चिपक होत ह ओर उनह सीपी स

काटा जाता ह। व चपट तथा अनियमित आकार क होत ह । य मोती

बलिसटर परल (194५ २०४) कहलात ह ओर गोल मोतियो कौ अपकषा उनका

मलय बहत कम होता ह ।

एक परण मोती म जो एक-दसर पर रखी हई परत पडती ह उनकी सखया जानना असमभव ह । य परत कितनी पतली होती ह इसकी

जौच सकषमदरशक यनतर क नीच मोती की सतह रखकर की जा सकती ह । इसकी सतह बहत दही सकषम अनियमित पर मोट तौर पर समानानतर

रखाओ स घिरी होती र । य रखाय वासतव म निकषप की महीन परता क किनार रह । इन पतली पारभासक पटिटयो क अधयारोपण ओर उनक पास-पास वाल एक दसर स मिल हए सिरो क सममिलित परभाव पर मोती की सथिति निरभर ह। सबस सनदर कतरिम मोती की जाच करन पर पता लग जाता ह कि उसम इस विशिषट बनावट का सरवथा अभाव होता र। दोतिदार पटिटका क सिर जितन अधिक पास-पास होग उतनी दही अचछी मौकतिक दयति होगी ।

मोतियो की कठोरता एक दसर स भिनन होती रह । इसी परकार उनक गरतव म भी अनतर होता ह । विभिन समदर स अलग-अलग परकार क मोती पाय जात ह । मोती की दयति को.ही दखकर एक दकष जौहरी

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मोती 55

बता सकता र कि मोती का उतपतति सथान कौन -साह । मोती कई रग

क होत ई- सफद, काल, पील, नील, गलाबी, लाल, भर ओर शयाम आभा

लिए हए हर । जिन मोतिरयो पर हलकी गलाबी दयति दिखाई दती ह व

सरवोततम मान जात ह । इस परकार क मोती कवल परशिया की खाडी

(एलऽवा 6४) स परापत होत ह ।

मोतियो की कटाई रतनीय पतथरो की तरह नही होती । नही

उनम पालिश की जाती ह । ह, कषठ को रगा अवशय जाता ह, परनत

अधिकतर आभषण म इसतमाल करन क लिय कवल बिधाई ही होती ह ।

मोती अगठियो म, बरचो म, इयर रिग म, हाथ क बटनो तथा अनय आभषण

म अनय रतनो क साथ इसतमाल किय जात ह । परनत मालाओ (नकलस)

म पिरोय हय मोती बहत सनदर लगत द ओर इसी रप म उनक सबस

अधिक दाम परापत होत ह । मोती क उपयोग क समबनध म रामचनदर जी

क विवाह क समय की निमनलिखित चौपाडइया अतयनत उपयकत ह--

"पठए बोलि गनी तिनह नाना । ज वितान बिधि कसल सजाना ।।

विधिहि वदि तिनह कीनह अरभा । विरच कनक कदलि क खमभा । ॥“

हरित मनिनह क पतर फल पदमराग क फल । रचना दखि विचितर अति मन बिरचि कर भल ।।

वन हरित मनिमय सब कीनह । सरल सपरब परहि नहि चीनद ।।

कनक कलित अहिबलि बनाई । लखि नहि परइ सपरन सहाई । ।

तहि क रचि पचि बध बनाए । बिच-बिच मकता दाम सहाए ।।

मानिक मरकत कलिस पिरोजा । चीरि कोरि पचि रच सरोजा ।।

परनत सावधान! मोती अनय रतनो की अपकषा मद होत ह, अतः उनम

सहज ही खरोच आ जाती ह । व टट भी सकत ह । इसक अतिरिकत उन

पर अमलो (५५५५) की रासायनिक परतिकरिया भी होती ह ओर शरीर क पसीन

स भी उनक खराब होन की आशका होती ह । बहत सावधानी स रखन

पर भी जविक भाग क कषय क कारण कछ समय पशचात‌ मोती निकमम हो

जात ह । परान समाधि सथानो म पाय गए मोती छन मातर स चर-चर हो

जात र । परातन अगठियो म जड गय मोती आज दिखाई नही दत ।

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36 रतन-परदीप

परापति सथान

मोती क मखय परापति-सथान ह : फारस (अब ईरान) की खाडी, मनार की खाडी शरीलका), आसदररलिया क समदर तट, वनिजयला, जापान, लाल सागर, पनामा ओर पसिफिक सागर क दवीप । सबस उततम जाति क मोती फारस की खाडी (एन 0५10) स आत ह जहो मोतिया क उतपादन का सारा कारय वयापारियो क हाथम ह । वहा स परापत मोती अधिकतर बमबई लाय जात ह जौ उनको अलग-अलग वरगो म रखा जाता ह, बीघा यारगाजाता ह । फिर उनकी बिकरी होती ह। एसा भी होता ह कि मोती सीध लनदन या परिस विकरी क लिए भज दिए जात ह ।

शरीलका का समदर तट मोतियो क उतपादन म बहत महततवपरण सथान नही रखता । य क मोती क दान छोट तो होत ह परनत व होत उततम जाति क ह । य मोतिया को निकालन का काम सरकार क नियतरण महोता ह ।

आसदरलिया क समदर तट पर आधनिक तरीको स काम किया जाता ह ओर गोताखोरो को उपयकत वसतर ओर काम का परशिकषण दिया जाता ह । यहो स परापत मोतिया म सफद दयति होती ह जिसकी अमरीका ओर इगलणड म बहत कदर होती ह । यदयपि य फारस की खाडी क समान मलयवान रतन नही परापत होत, परनत सन‌ 1911 म एक 178 गन का मोती पाया गया था जो तीन हजार पौडम बिकाथा |

वनिजयला क मोती अधिकतर काल रग क होत ह । कछ मोतिया म शयाम, रग क साथ हरी आमा होती ह । एस मोती दरलभ ह ओर अतयनत मलयवान मान जात ह । भकसिको की खाडी क शखवरगीय जीवा स भी सनदर काल रग क मोती मिलत ह ।

विभिनन सथारनो क मोती ओर उनकी विशषताए (1) फारस की खाडी (१८७०१ ७५।0 य क मोती को "बसरा का मोती" कहत ह । यह सबस उततम जाति का माना जाता ह कयोकि यह सबस अधिक टिका होता ह ओर चमक व चमडी अचछी होती ह।

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मोती 57

(2) सिहल दवीप (शरीलका) -इसको `काहिल का मोती कहत ह । यह बहत चमकदार होता ह । वसर क मोती क मकाबिल म यह शयाम आभायकत परतीत होता ह । वजन म भी यह बसर स कछ हलका होता ह । (3) वनिजयला (दकषिण अमरिका)- यह भी बसर क सदश होता ह, किनत इसका घाट (आकार) गोल कम होता ह. सफद अधिक होता ह। (4)

भकसिको- यरहो का कागावासी ( काल रग) का मोती बहत अचछा होता ह । 5) चना खाडी- (ए 9 (३५६३) |

यह मोती गलाबी रग का होता ह। इसम का घाट गोल अधिक होता ह । यह बसर स रग म नरम होता ह। पहनन स शरीर क पसीन क कारण सफद हो जाता ह तथा सदरता बढती ह, कित इसक रग म समानता न होन क कारण रसायन दवारा इस सफद कर लिया जाता ह। इस कारणवश इसकी सदरता कम हो जाती ह ओर कछ रखापन भी आ जाता ह। धोन म जरा सी असावधानी स मोती नषट हो जाता ह। (6) दरभगा(मसही ) - यहा का मोती चना खाडी (0५ ५ ४८०४६) स मिलता-जलता ही होता ह, कित यह उसस घटिया जाति का होता ह। अधिकाश खान क काम म आता ह। इसी परकार का मोती गोमती नदी म भी परापत होता ह । (7) उडन मरगी (चवलिया)- यह कचचापन लिय हए हलका व चमकहीन होता ह । यह घाट का अचछा होता ह, किनत कपड पर रगाडन स ही इसका वजन कम हो जाता ह । अतः यह हीन जाति का माना जाता ह। (८) दकषिण भारत म मदरास परानत (तमिलनाड) म भी मोती पाया जाता ह । यह बसर स मिलता जलता ह । यह ततीकोरिन क मोती क नाम स परचलित ह। (9) आसटरलिया का मोती सफद होता ह, किनत कठोर बहत होता ह । इसम .दात क आकार क चिनह अधिक होत ह । शवत होन पर भी सनदरता नही होती ।

दकषिण भारत मोती उतपादन का बहत पराना कषतर -- दश-विदश क लखको न तमिलनाड‌ क समदरी छोर पर मकता ओर सीपी कषतर होन क बार म लिखा ह । परिपलस गरनथ म तथा पलिनी ओर टोलमी न खोखिक खाडी ओर मकता कषतरो क भणडार का उललख किया ह । यही खाखी मननार की खाडी ह ।

दकषिण भारत म निकाल गए मोती वयापार की परमख वसतओ म होत थ । भारत क परवी छोर पर पाडिचरी स दो मील दकषिण म आरिकमड क हाल क उतखनन स पता चला ह कि भारत का रोम क साथ बहत

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58 रतन-परदीप

उननत वयापार समबनध था । मिसर, रोम, यनान ओर चीन को मोती निरयाति किए जात थ । रोम क कई लखको न रोमन सामराजय म मोतियो क विसतत उपयोग का वरणन किया ह।

ततीकोरिन का नाम बहत पहल स मकता कषतरो क लिए परसिदध रहा ह । सन‌ 1630 म फादर जौडनस नामक मिशनरी बिशप भारत आया था । उसन लिखा कि ततीकोरिन ओर शरीलका क मकता कषतरो म करीब 8000 नावा का विसतत उपयोग किया जाता था ।

ततीकोरिन का जल-कतर ससार क उन तीन मखय कषतरो म ह जरहौ य सीपिरयो वयापारिक सतर पर पाई जाती ह । दसर कषतर ह-फारस की खाडी, बसरा ओर जापान स लगा महासागर का छोर । दकषिण भारत वासतव म भागयशाली ह जो कि समदरी निधि को भी एकतरित कर सकता हि |

जौच ओर परय

मोती क दोष (1) गरज (८०५) अरथात‌ चमडी म फटापन हो । (2) लहर (बारीक रखा) । (3) गिडली- यह मोती म जोड क समान होती ह जस दो टकड जोड दिए गए हो । एस दोषी मोती क चारो ओर गोलाकार रखा होती ह । ५) मससा - मसस क समान होता ह । यदि शयाम वरण हो तो अनिषटकारक माना जाता ह । (5) रखा चमकहीन ।(6) चोभा- चचक क दाग क समान । (7) छाला । (8) छववा । 9) मटिया- जिसक अनवर मिटटी हो । (10) मयानी एस दोष वाला मोती मधय म काठ क समान होता ह । ऊपर मोती की चमडी लली क समान होती ह । उसक मधय का काठ सपषट दिखाई दता ह । वीघत समय चमडी क अतिरिकत काठ भी सरलता स बिध जाता ह । दसर मोतियो क समान कठिनता नही होती । अिलली पर शयाम आमा भी दिखाई दती ह ।

एतिहासिक मोती -- सन‌ 1%01 म फारस की खाडी म एक मोती मिला जो 28 गरन का था। वह आसदरलिया म 3000 पोड म बिका । ससार म सबस बडा मोती हनरी फिलिप होप क सगरहालय म ह । इस की लमबाई 2 इच व मोटाई 34 इच ओर घरा 49 इच ह । रग तीन चौथाई भाग सफद

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मोती 59

ओर एक चौथाई भाग कसि (छषजट) क रग का ह । उसका मलय 12000

पड ओर वजन 454 करट ह । एक मोती 30 करट का आसदरलिया क

शाही ताज म ह, दसरा ईरान क शाह क ताज म, जो सजनी आकार का

ह । एक उततम मोती मासको म जोसिम (2०7४) क सगरहालय म ह । इस

का नाम `जा पलिगरिना' (2 एगाणःप०>) ह । एक ओर परसिदध मोती समह

ह जिसका नाम महान‌ दकषिणी बराहमक' ह । इसम नौ बड मोती परसपर

करास अरथात‌ सवसतिक क रप म जड ह । यह पशचिमी आसदरलिया क समदर

तट स सन‌ 1886 म जाल म पकडी गई सीप म मिला था। इसडन क

रतन सकलन म विचितर आकति क कई रतन ह ।

उतकषट मोतियो का एक सगरह भतपरव महाराजा गायकवाड‌ क

पास था । यह सात मकता-मालाओ क रप म था । इसका मलय लगमग

एक करोड रपय ओका गया था ।

महाराजा गायकवाड क पास `परागन* नामक एक ओर- मोती था

जिसका मलय लगभग डद करोड रपय ह ।

सवरधित या कलवर मोती -- सन‌ 1921 म जब कलचर मोती परथम

बार लनदन ओर परिस क जौहरी बाजारो म परकट हए तो लोग अचरज

म पड गए, कयोकि उनम ओर असली मोतियो म किचित‌ मातर भी अनतर

नही मालम होता था । परनत शीघ ही जौहरियो न अनतर को मालम कर

लिया ओर कलचर मोती अनय सशलिषट रतनो की शरणी म आ गए ।

कलवर मोती कस बनता ह -- आधा ओर तीन चौथाई मोती

एक परकार स *वलिसटर' मोती होता ह । एक कतरिम उकसान वाला पदारथ

सीपी ओर मनटल' क बीच पहचा दिया जाता ह । यह पदारथ मकता-माता

का छोट-सा दाना होता द । बस, घाधा इसी पर परत डालन लगता ह,

जसा वह एक परकत विजातीय पदारथ क अनदर आन पर करता ह । इस

परकार जो 'वलिसटर' मोती बनता ह उसको सीपी स काट दिया जाता ह `

ओर उस पर मकता-माता का आवरण चदा दिया जाता ह । फिर उस पर

पालिश की जाती ह, परनत मकता-माता ओर 'बलिसटर' मोती की

जडाई सरलता स दखी जा सकती ह । य मोती अगठियो आदि म एस

जड जात ह कि जोड अनदर छिप जाए ।

इमीटशन मोती -- नकली मोती जिनह `डमीटशन या मोमिया

मती" भी कहत ह पतल कच क खोखल गोल होत ह । य मछली क

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60 रतन-परदीप

शलक स तयार किए पदारथ दवारा आवत होत ह जिनस इनम मोती की दयति आ जाती ह । फिर कच क गोल को मोम स भर दिया जाता ह। पारमासिक सफद कोच का, जिनस इनम मौकतिक दयति हो, परयोग पराकतिक रतन का अनकरण करन म किया जाता ह । इन नकली मोतियो को निकट स दखन पर सहज म पहचाना जा सकता ह । किसी भी अवसथा म इन मोतियो पर सकषम रप म सथित दतदार चिनह नही पाए जात । य कवल सचच एव कलवर मोतियो की ही विशषता ह । इनकी उपसथिति म यह मालम किया जा सकता ह कि मोती का विकास सीपी क अनदर हआ ह या नही|

नकली अरथात‌ इमीटशन मोतिय को दता क बीच रखन पर व चिकन मालम पडत ह,परनत इसक विपरीत सचच मोती रतील लगत ह । सबस सरल तथा अचछा परीकषण यह ह कि लस की सहायता स इसक विध छद क सिरो को दखा जाए । एसा करन स जञात होता ह किय काचि क दान क बन हए ह ओर यदि काच क अतिरिकत किसी अनय पदारथ क मोती हए तो उनक ऊपर चदाए आवरण क कठ उतर जान क चिनह अवशय मिल जाएग ।

इमीटशन मोतियो म काच क गोल की भीतरी या बाहरी सतह मछली क शलक स बन पदारथ स आवत होती ह । इन दोनो परकार क ही मोतिया का सरवाधिक सखया म आपकषिक गरतव मालम करन क पशचात राबरट वबसटर न यह बतलाया कि ठोस नकली मोतियो का आपकषिक गरतव सचच मोतियो क आपकषिक गरतव स काफी अधिक होता ह । यह 288 स 3.18 ह ।

एसा भी दखा गया ह कि हीमटाइट क चमकदार दान मोती क रप म बच जात ह, परनत यह धोखा ह । इसम जवलनत धातविक दयति होती ह ओर इसका गरतव बहत अधिक अरथात‌ 50 होता ह ।

मोती का परीकषण

बहत स परकाशीय तथा कष-किरण स समबनधित मोती की कई परीकषण विधिरयो मालम की गई ह लकिन यहो पर एक सरल विधि का , उललख किया जा रहा ह । इस विधि का आधार कलचर जस सचच दिखाई

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मोती 61

दन वाल मोतियो ओसत घनतव म अनतर द। इसम मारी दरव बरोमोफारम का परयोग किया जाता ह । यदि इस परीकषण को कवल एक ही दरव तक सीमित रखना हो तो बोमौफारम को रवजीन, टोलईन या मोनोवरोमो नपथलीन मिलाकर इतना हलका कर लना आवशयक ह जिसस उसम आइसरलड पार अरथात‌ कलसाईट का टकडा जो निरदशक क रप म परयकत होता ह धीर धीर सतह पर उठ आए । शदध कलसाइट का आपकषिक गरतव 271 ह | इसलिए इस परकार हलका करन पर दरव का घनतव 2715 या 272 मान लिया जाता ह। इस परकार क दरव म बहत सार सचच मोती तरत ह । एसा ओसतन परतिशत सचच मोतियो क साथ होता ह । सचचा मोती यदि दरव म बता भी ह तो धधर-धीर एसा होता ह। इसक विपरीत कलचर मोतियो म स अधिकाश दरव म डब जात ह ओर इनम कछ निशचत रप स ततकाल नीच वठ जात ह ।

नचरल मोती

यह मोती भी कलवर क समान यनतर दवारा सीप क उदर म परवश कराकर ही बनाया जाता ह, किनत इसम पडा रसायन बिधाई म निकल जाता ह । अतः मशीन पर यह असली ही मालम होता ह । नचरल यदयपि मशीन स असली लगता ह,परनत इसक अग व रग म इतना अनतर होता ह कि पहचाना जा सकता ह । इस पर नीली आमा सपषट ञजलकती ह ।

मोती की परीकषा क पाच तरीक ह । (1)कलवर - इसम काच क

समान विजातीय पदारथ की गोली होती ह, जो बीधन पर सराख म दिखाई दती ह । (2) सराख म समानता नही होती । कलचर का छद बीच म चौडा

होता द । बीधत पर या तो गोली निकल जाती ह या रहती हतो छद क

आरमभ क सथान स बीच का सथान अधिक बडा हो जाता ह ओर अनदर

यह गोली चमकती रहती ह । इसको यनतर दवारा दखा जा सकता ह । (3)

कलवर मोती म ऊपर की चमडी कछ कठोर होती ह जबकि सचच मोती

की चमडी म कोमलता होती ह । 4) गोमतर या खार म सचचा कलवर ओर नकली मोतियो को चौबीस घणट तक रखा जाए तो सचचा खराब नही

होगा । दसरो म अनतर आ जाएगा । ७) . चावल म मोती को रगडन स

सचच मोती की चमक बढगी ओर नकली कौ कम हो जाएगी ।

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62 रतन-परदीप

मोती क घाट क आकारो क नाम

(किलकी (2) सिरा (3) चोखा सिरा (4)सजनी (5) तीर गामा (6) गामा (7) खडी कमर (8)कमर ()वटला (10) सिमटा असार (11) चिकना असार (12) कडकड‌ (13) पाया (14 }तलिया (15)वठकी ।

जब मोती दर तक पहन जात ह तो धल, पानी ओर पसीन क परभाव स उसकी आमा जाती रहती ह । पराचीन काल म इसको चमकान की अनक विधिरयो परचलित थी । कहत ह, मल मोती को कवबतर को खिला दिया जाता था ओर 20 धट तक उसक पट म रहन दिया जाता था। निकालन क बाद ( जो शायद कबतर को मारकर ही हो सकता ह) मोती म चमक आ जाती थी, यदयपि वह तौल म कम हो जाता था । एक अनय विधि यह बताई जाती ह कि चावल ओर पानी एक वरतन म डालकर नीच स गरम किया जाता था। जब पानी गनगना हो जाता था तो आग पर स उतार कर चावल क माड स मोती को कछ समय तक साफ किया जाता था। इसस मोती साफ हो जाता था ओर उसम चमक आ जाती थी ।

मकता शोधन - परान मोती का मल साफ करन क लिए पराचीन . समय म अरीठ क पानीस भी धोया करत थ अथवा मली म खडा बनाकर

उसम मोती भर दत थ.खड क शष भाग को बर शककर स भर दतथ, तो मोती साफ हो जाता था । इस करिया स मोती साफ हो जाता था ओर खराब भी नही होता था । अनय करियाओ म थोडी सी असावधानी स मोती खराब हो जाता ह । आधनिक परकरिया स परान मोती को हाइदधोजन पराकसाङड ओर ईथर क दवारा साफ करत ह । इस परकरिया स 2 घट म मोती साफ ओर चमकदार बनता ह, परनत असावधानी स रखा हो जाता ह । रसायन म डालन स परव यह दख लना उचित ह कि मोती उसम डालन योगय ह भी या नही । रसायन म डाल दन क बाद भी बराबर धयान रखना चाहिय कि मोती रखा न होन पाय ।

मोती रततियो की तौल स नही बिकता ~ अनय रतनो क समान मोती रततिया की तौल स नही बिकता । वह चव स बिकता ह । चव एक तौल का नाम ह जिसका निकालन का तरीका यह ह कि एक मोती जितनी

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रतती का हो उसको उतनी ही सखया स गणा करक वरग बना ल । फिर उसका तीन चौथाई भाग निकालकर उस भाग का तीन चौथाई भाग निकालना चाहिए । जो उततर आए वही टकड उपरोकत वरग म जोड दिया जाए तो जो सखया निकलगी -वह मोती का चव होगा । उदाहरण क लिए हम एक चार रतती का मोती लत ह । उसको चार स गणा किया तो 16 आया । उसका तीन चौथाई भाग 12 हआ । 12 का तीन चौथाई भाग 9 हआ । अव मोती का चव 9 दकड 16 निकलता ह।

यदि मोती एक स अधिक हा तो उसम यानि चवो म जितन मोती

हो उसी सखया का भाग दन स जो भागफल होगा वही उन मोतियो का चव होगा । इसकी तालिका इस परकार द-

16वादाम का 1 टकडा

५4 टकड का । आना

100 टकड का । चव

मोती का बरादा एक शानदार फस पाउडर

यह भद मालम होन की एक मनोरजक कहानी ह । एक पफरासीसी यातरी एक बार लका म मलयाली लडकियो क चमकत मख दख कर विसमय म पड गया । उनक चहर कषण वरण क थ, परनत उन पर अतयनत आकरषक

चमक दमक थी। बाद म पछताछ स जञात हआ कि व लडकिया मोतिया की काट छाट करती शी । बिध मोतिया का बरादा उनक शरीर की कानति का उददीपक था । उसक बाद स ही फरास म मोतिया का बरादा सौनदरयवरधक पाउडर क रप म बिकन लगा ।

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मगा ((01२५.)

विविध नाम -- ससकत : परवाल, विदरम, लतामणि, अगारक मणि, रकताग । हिनदी : मगा । उरद‌-फारसी : मिरजान ओर अगरजी : कोरल (८०) मरा पराचीन काल स आमषणो म उपयोग होता आया ह । रोम निवासी इसको बहत उपयोग म लात थ ओर इसक ताबीज भी बनात थ । इसकी दवी शकति क समबनध म अनको आसथाए ह जिनका विवरण हम एक पथक परकरण म दग | भारत म भी पराचीन काल स मगा एक मानय रतन रहा ह । इसकी आकरषक आमा ओर रग क कारण मग को नवरतन म सममिलित किया गया ह, यदयपि यह एक मलयवान रतन नही ह ।

मोती क समान मगा भी खनिज पदारथ नही ह । इसकी उतपतति वानसपतिक मानी गई ह । परनत यह मोती क समान समदर स ही परापत होता ह । दखन म इसका रप बल की शाखाओ जसा लगता ह । आधनिक वजञानिको क अनसार यह मगा जलजत(८०० 0०7) चन की ठठरी क समान (८०।९,८०५५ ७६००१ ९) जमाव दिए रहता ह ओर उसका अधिकाश भाग समदर स निकल कलशियम कारबोनिट का बना होता ह । मग नाम का एक जत. जो गद या जलौ क समान लसलसा होता ह, समदर म डबी हई कछ चटटानो म चिपक जाता ह । उपयकत परिसथितियो म वह अपन बाहरी

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मगा £ 05

ओर निचल भाग पर कलशियम कारबोनट क कठोर जमाव को एकतरित कर लता ह । बनावट म लाल मगा उन छोटी-छोटी नलियो क समान होता ह जो एक-दसर स जडी होती ह ओर फिर एक वकष क समान बढती जाती द । मगा बनान वाल जमाव (०५७५) सब समदरो म या किसी समदर क सब भागो म नही पाय जात । इनक लिए एक निशचित तापमान की आवशयकता होती ह । मग क जमाव लगभग नौसनौ सौ फीट की गहराई म पाय गय ह, परनत परापतिसथान की गहराई जितनी अधिक होती ह, उतनी ही मग क रग कौ गहराई कम होती ह। मगा एक जल-जत स बनता द, इसलिए जमाव को परिपकव होन म कई वरष लग जात हः ओर जब तक जमाव परिपकव नही हो जाता उसको सपरश नही किया जाता ।

मगा जल जत जो विना पतती, परनत शाखाओ वाला वकष बनाता ह वह कभी कभी मनषय क शरीर क समान होता ह, परनत सामानयतः एक फट ऊचा ओर एक इच मोटा होता ह । इसका अतयनत सनदर लाल रग होता ह ओर इसको खब चमकाया जा सकता ह । इसम शहद क छतता जस खान बन होत ह-इनदी खानो म जनत रहत ह । तन क ऊपर जाली जसी अिलली चढी रहती ह । अपन इन घरो म बठ कीड को सकषमदरशक यनतर स दखन पर पता लगता ह कि इनक मह पर नकीली म होती ह । इनम सपरश शकति अतयनत परबल होती ह-इसक दवारा ही य अपना भोजन परापत करत ह । इनका भोजन छोट-छोट समदरी कीड या वनसपतियो क छोट-छोट कण होत ह ।

य पराणी समदर म डबी (जसा हम ऊपर कह चक ह) चटटानो पर अपना लतामय दोचा बनात ह, अरथात‌ मगा बनात ह जो उनक रहन का घर होता ह। मोती बनान वाला घोघा अपन घर क भीतर मोती बनाता ह, परनत मग का जमाव तो एक परकार स सवय कीड का घर होता ह।

लिगो नाइस नामक एक वयकति न सन‌ 1502 म मग का वरणन करत हए बताया ह कि मगा समदर म पड की तरह बढता ह। उसम

पततिया नदी होती । उसक अनसार आकार म यह दो फट स बडा नही होता ।

आभषणो म जिस किसम का मगा उपयोग म आता ह उस "कोरलियम रबरम" (८७१४॥५॥ 1२५07५7) कहत ह । मग करई रग क होत

ह, परनत विभिन लाल रग की परधानता होती ह । लाल रग क मग पाय

भी अधिक जात ह यदयपि सफद ओर पील रग क मग भी मिलत ह।

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66 रतन-परदीप

अधिकतर गलाबी, लाल ओर गहर लाल रग क मगो की माग अधिक ह। मग को परायः उसका रप सधारन क लिएरगाभी जाता ह, परनतयरग टिकाऊ नही होत। योतो मग म पराकतिक रग कस आत ह, इसको निशचित रप स नही कटा जा सकता, परनत अनमान यह ह कि उनको कलशियम ओर मगनीशियम कारबनिट तथा आइरन ओकसाइड क मिशरण स रग परापत होता ह ।

परापति सथान -- भमधय सागर क समदरी तट पर मग क जत पाय जान क परमख सथान ह । एलजीरिया, टयनीसिया, कारसिका, सारडीनिया ओर सिसली क समदरी तटो स मगा परापत होता ह । जापानी हीपो क समदरी तटो पर भी मग क जमाव पाय जात ह, परनत मग को निकालन का काम अधिकतर इटली क निवासी ही करत ह ओर उनको रतन का रप नपलस नगर म दिया जाता ह। अधिकतर मगा बल क खन क रग (0,००५

००५१) का होता ह जिस `मोरो कोरल' भी कहत ह । एडियाटिक सागर

तट स भी कछ मग परापत होत रह ह । सपन क समदर तट स भी मगा परापत . होता ह जो गहर लाल रग का होता ह। पहल जमान म फरासीसी, सपन निवासी ओर अगरज भी मगो को समदरी तट स निकाला करत थ ओर मारसल म उस समय इस उदयोग का कषतर था, परनत अब इस उदयोग का परधान कषतर नपलस ही ह, जौ सहसर वयकति इस काम म सलगन रहत ह ।

किसी समय अफीका तट पर नील रग का मगा परापत हआ था, परनत अव इस रग का मगा नजर नही आता ।

भौतिक गण -- मग अरधपारदरशक भी होत ह, परनत अधिकतर अपारदरशक रही होत ह । मगा शवत, गलाबी, नारगी, लाल, काल रगो म मिलता ह। काला मगा शष रगो क मग स इस बात म भिनन होता द कि वह अधिकतर कलशियम काबोनट का बना नही होता, बलकि सीग सरीख पदारथ का बना होता ह । चनदार मग क गण कलसाइट (चरणशम) जस ही होत ह । मग का एक विशष लकषण यह ह कि समदर म जिस चटटान पर लगा होता ह उसकी सतह पर यह सदा लमब रप म खडा होता द । इसक तत परतयक शाखा क कनदर स उसकी लमबाई स लमब रप म सतह पर फल हए होत ह । सकषमदरशक यनतर स दखन पर परतयक शाखा अपनी लमबाई क समानानतर एक धारी सरीखी दिखायी दती ह । मगा टटन क सथान पर निसतज दिखाई दता द । मग का आपकषिक गरतव 265 होता ह । कठोरता 3.5 स 4 तक की होती ह। इसक वरततनाक 1486 तथा 1658 ह

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मगा 67

इस परकार दहरावरततक अधिक होता ह। काल मग क वरततनाक 1.56 तथा 157 ह ओर दहरावरततन लगमग .1 ह; इसका आपकषिक घनतव 1.37 तथा कठोरता 3 ह । मग पर हाइदरोकलोरिक एसिड डालन स आग उठत ह । काल मग पर इसका परभाव नही होता । काल मग को यदि तपायी हई तार स छआ जाय तो उसस एसी दरगनध आती ह जसी कि बाल जलन स आती ह ।

जोच ओर परख

उततम मगा -- सात परकार की विशषताओ वाला मगा आयरवद क अनसार शभ माना जाता ह- (1) पक हए बिमब फल क समान, (2) गोल, (3) लमबा, (4) सीधा, 5) चिकना, (७) खाचा या गढा या उभार आदि वरण रहित, (7) मोटा । इसका रग सिनदर, हिगल अथवा सिगरफ स मिलता-जलता होता ह ।

शवत रग का मगा भी सनदर ओर आभायकत होता ह । शवत रग क मग को बगाल म बहत पसनद किया जाता ह । वासतविक बात यही ह कि अनय रतनो स इतना असमान होत हए भी इसका आकरषण इसक सनवर रग की बदौलत ह। इसी कारण यह नव रतना म स एक ह ।

मग क दोष -- धवबा, सफद छठीटा, बीध, चीर, दरग ओर गडढा ।

नकली मगा -- नकली मगा सचच मग स भारी होती ह । इसको यनतर (८ ७।७७६) स दखन पर बारीक मोट-मोट रव सपषट मालम होत ह जो ठल हए कोच क समान होत ह । नकली मग को धिसन स शीश क समान सपषट आवाज आती ह ।

, एतिहासिक मग -- मगो पर सनदर नककाशी का चलन अब नही रहा ह, परनत पराचीन काल क कछ नककाशी मग अब भी मौजद ह । बरलिन म सन‌ 1880 म लगी एक परदरशनी म एक मग का हार (000 पाउणड का

परदरशित किया गया था । इटली क शाही परिवार क पास एक नककाशी काम की मठ थी जिसका मलय 36 पाउणड था ।

आभषणो म मरगो का उपयोग ~ मगा अगणयो म, इयररिग तथा नकलस म उपयोग होता ह । पजा करन क लिय भी मगो की माला का

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68 रतन- परदीप

चलन ह, परनत अब इनका दाम बद जान स इसका परचलन कम हो गया ह । छोट-छोट मगो क दानो को उसी आकार क मोतियो क दान क साथ बनी हई मालाओ क पहनन का बहत चलन ह ।

विशवविखयात भविषय वकता कीरो दवारा लिखित पसतक

- हसत रखा बोलती ह ` . 9 ल ह

इस पसतक दवारा आप इस भाषा अरथात हसत-रखा विजञान क जञाता आसानी स बन सकत ह ओर किसी भी वयकति का हाथ दखकर उसका सवभाव, चरितर, भत, भविषय, वरतमान वताकर आशचरय चकित कर सकत ह ।

हसतरखा विजञान पर यह शरषठ व परण पसतक ह मलय 40 रपय

त | | [[)| | | | | (षा7ाधघरर०ा.0७४)

आपक समपरण जीवन का नकशा ` कवल जनमतारीख स भविषय जानन की अदभत पसतक

इस पटकर आप जान सकग कि आपकी मल परकति तथा सवभाव कया ह, कौन स वरष आपक जीवन म महततवपरण रहग? कौन वयविति आपका सबस उपयकत जीवन साथी हो सकता ह! किन वयवितयो क साथ भतरी तथा साञचदारी आपक लिए लाभदायक रहगी „+ कौन स दिन आपक लिए भागयशाली सिदध होग » आपक सवासथय की कया दशा रहगी ओर आपक लिए भविषय कया-कया सभावनाए लकर उपसथित हो सकता ह, आदि विचितर जानकारी पाकर आप परसनन हो जायग ।

मलय : 40 रपय

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6 | पनना (एर)

विविध नाम-ससकत : मरकत, पाचि, गरतम, हरित मणि, गरडाकित, गरडोदगीरण, गरलारि, सौपरणि । हिनदी : पनना । उरद-फारसी-जमरद । अगरजी : {111८1410.

भौतिक गण-- कठोरता 7.75 आपकषिक गरतव 2.69 स 280; वरततनाक 1.57-1.58 । नियमित षडमजीय आकति । दहरावरततन । अपकिरणन 001\ (अधिक नही) । पारदरशक या पारभाषिक । दिवरणिता-हरा ओर नीला-सा हरा |

वरज (ए) वरग का पनना हर मखमली अनपम मनमोहक रग स ससार क बहमलय रतनो म माना गया ह ओर कभी-कभी कोई निरमल रतन तो हीर स कई गण अधिक मलय का होता ह। बनावट म यह अलयमीनियम ओर बरीलियम का सिलीकट ह । एकवामरीन, सनहला बरज ओर लाल रग का रतनीय पतथर मारगनाइट भी वरील परिवार क ह ओर उनकी रासायनिक बनावट पनन क समान ह । पनन म 1.2 परतिशत जल भी होता ह।

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70 रतन-परदीप

निरदोष पनन का पौच-छः करट स अधिक का रतन परापत होना असमभव नही तो कठिन अवशय ह । यदि मिल भी जाय तो उसका मलय अतयधिक होगा । अतः छोट ही रतनो स पनन क शौकीन लोगो को सनतोष करना पडता ह । पनना बडा भी न हो, यदि निरदोष हो ओर आकरषक रप स कटा ओर जडा हो तो बरबस मन को अपनी ओर खीच लता ह । परनत पनना अपना वयकतितव बहत सभाल कर रखता ह । यदि हीरो क बीचम भी पनन जड हो तो व अपन आकरषक वयकतितव को पथक रखत ह ओर नजर स नही छिपत । यदि किसी आमषण म पनन ही पनन जडषोतो एसा लगता ह कि उनकी हरी आभा खिलखिलाकर हस रही हो ।

पनन म दोष होना अनिवारय ह । पनन क चनाव म यही दखना होता द कि किस रतन म कम स कम दोष ह, कयोकि माणिकय ओर नीलम म उनका गहरा रग परायः कटाई क बाद उनक दोषो पर परदा डाल दता ह, परनत पनन क समबनध म एसा नही होता ।

अचछी छवि का सदोष पनना भी अनय मलयवान रतनो को मात द दता ह । यही कारण ह कि आखो को शीतलता दन वाला पनना इतना लोकपरिय ह ।

पनन क रतनीय पतथर अधिकतर षडभजीय ।परिजम' क रप म पाए जात ह । यह एक महतवपरण जानन योगय तथय ह कि पनन अधिकतर सदोष परापत होत ह । इसक विपरीत बरज जाति क अनय पतथर एकवामरीन (हरित नीलमणि) बड-बड टकडो म पाए जात ह । यही कारण ह कि निरदषि पनन बहमलय होत ह । जसा कि हमन कहा कि अधिकतर पननो म दोष ओर विजातीय पदारथ मिशरित होत ह जिसक कारण इन रतनीय पदारथो का मलय कम हो जाता ह । जो पनन पीत आभा लिए होत ह व मलयवान नही होत । पनन क सरवोततम रग गहर मखमली ओर घास क हर रग मान जात ह । एक उततम पतथर की कचमय चमक उसको सनदर मखमली रप द दती ह।

पनन म भाजकता कम होती ह ओर इतन मलयवान पतथर क लिए इसकी कठोरता भी कम ह । कयोकि अयपकषिक गरतव भी कम ह । अतः यह तौल म भी कम होता ह । इसको आभषणो म जडन क समय अतयत सावधानी की आवशयकता होती ह कयोकि पनन भगर होत ह । इसलिए यह भी आवशयक ह कि इसकी मखला बहत पतली न काटी जाए । अचछ रग क रतनो म दविवरणिता सपषट रप स दिखाई पडती ह । पनना अधिकतर `सटप

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पनना 71

काट" म काटा जाता ह। अगठियो, बरचो आदि क नगीन इसी काट क

दिखाई दत ह । परनत भारतीय कारीगरो म इसका एक कबीकोन काट अति परिय ह। इसक विपरीत एकवामरीन सामन की ओर जवलनत काट (एषा ९५तथा पीछ जालकाट (5"“ ०५) रप क बनाए जात ह ।

अपन मल या परिशदध रप म बरज रगहीन होता ह, पर शायद ही कभी यह हर या नील रग की आई स रहित हो । हर रग का रतन पनना होता ह । पनन का हरा रग करोमिक आकसाइड क कारण होता ह । कोच म भी यदि पनन म वरतमान करोमिक आकसाइड की मातरा मिला दी जाए तो उसका रग भी हरा बन जाता ह। पनन को गरम करन पर उसम विदयमान पानी उड जाता ह, पर उसका रग वसा ही बना रहता ह । एसिडो का भी

पनन पर कोई परभाव नही पडता । -

दकषिण अफरीका म मिली कछ खदाना म पनन तरमली, सफटिक एपाटाइट, फलसपार क साथ पाए जात ह । यहा स निकल अधिकतर पनन सदोष, चिटख हए या धरओपन लिए हए होत ह । कभी-कभी निरमल रतन भी परापत हए ह जिनका मलय सौ पाउणड परति करट था । पनन क अनय परापति सथान रस ओर दकषिण पशचिमी अफरीका ह । रस क पनन पीलापन लिए

हए होत ह ओर अफरीका वाल पनन गहर हर क साथ कछ नीलापन लिए सदोष रहत ह ।

आसदरिया क सलजवरग सथान म एक बहत परानी पनन की खदान ह जिसम स बहत आम जाति क रतन परापत हए थ । बराजील स पनन परापत

होत ह, परनत व पीला रग लिए हए ओर सदोष होत ह ।

अब भारत म पनन की खान पाई गयी ह । भारतवरष पनन की

कटाई .पालिश तथा करय विकरय का परमख कनदर ह ।

उतपतति सथान क अनसार अतरः विभिनन खाना क माल म अतर

डस परकार ह : (1) अमरीका (कोलमबिया)- यहा की खानो का माल पषट

होता ह । यहौ का पनना `बकस' क नाम स परसिदध ह। यहो क मालका

रग व पानी सरवोततम होता ह । इस खान क किसी-किसी पनन म सवरण

मकषिका भी पाई जाती द । परानी खान म जरदी, रग, पानी व लोच अधिक

होता ह । अधिकाश माल उलीनमा होता ह । नई खान का माल कलमनमा

होता ह तथा उसम जरदी कम होती ह । 2 रस - य की खाना म सव

तरह का माल पाया जाता ह । परनत आकरषण अमरीका क मकाबल म कम

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72 रतन-परदीप

होता ह ओर इसकी कठोरता भी अपकषाकत कम होती ह। पानी भी कोलमबियन पनन स कम होता ह । (3) अफरीका- यहा का माल अधिकतर शयाम आभा लिए हए ओर काल छटीट वाला होता ह । बनवात समय उसक बहत छोट-छोट टकड करन पडत ह । वयवहार म उस बाटली भी कहत ह, कयोकि इसका रग हर व काल मिशरित रग वाली बोतल क समान होता ह । (4) उदयपर - यह का माल गहर रग का किनत चरचरा होता ह । पानी कम होता ह । (5) अजमर- यह क मालम जरदी होती द। रग भी आकषक होता ह तथा पानी भी अचछा होता ह, परनत कोलमबियन क मकाबल कठोरता बहत कम होती ह । नय माल म कोलमबियन क माल स अधिक जरदी पाई जाती ह । (9) बराजील - यह पनना बाजार म कछ दिनो स आन लगा ह । इसम चीर काफी होती ह तथा पीलापन भी काफी मातरा म. होता ह। इसस तयार माल म पीलापन अधिक आ जाता ह। (7) पाकिसतान - यह भी पनन की खान निकली ह । इनका पनना रग का बहत गहरा ओर चरचरा होता ह । (४) सनडवाना- यह अफरीका म ह । यहौ क पनन को सनडवाना कहत ह । इसका माल सरवोततम माना जाता ह । इसम जरदी ओर निममस ओर रग परान पनन जसा भी पाया जाता ह। (५) रोडशिया- रोडशिया क नाम स जो पनना परसिदध ह उसकी खान अफरीका म ह । इसका माल पानी म कछ मोटा होता ह ओर काल छठीट बाटली क समान नही होत । रग म शयाम आभा भी बाटली क मकाबल कम हीती ह । (10) कोलमबिया स एक नयी खरड आयी ह जो दविपची क नाम स परसिदध ह । इसकी बनावट 6 कलियो की होती ह ओर कलिया को धिसकर बीच की गिरी का माल तयार किया जाता ह। इसम पनन क दसर एब बहत कम मातरा म पाए जात ह । इसकी अनदर की बनावट दसरी खरडो स बिलकल भिनन ह । एसी खरड परथम बार रतन जगत म दखन म आई ह । (11) मिच - मि स पहल जो पनना आता था वह रग का बहत गहरा होता था : लकिन चमक बिलकल नही होती थी ।

उततम पनना--- जो पनना हर रग का , दडकदार , चिकनापन लिए हए , पारदरशक तथा उजजवल किरणो वाला होता ह वह पनना उततम माना जाता ह । उततम पनना पानीदार ओर बिदरहित होना चाहिए |

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पनना 73

जाच ओर परख

सचच पनन की पहचान- भारत म पराचीन काल म पनन का नकली कोच होता था, किनत अव वजञानिको न पनन का इमीटशन निकाला ह। कचि अतयनत सरलता स पहचाना जा सकता ह : (1) कोच म सफद मनक

होत ह । 2) टट पर चमकीली धारियो होती ह । (3) कच को हलदी क साथ पतथर पर धिसा जाएगा तो हलदी लाल हो. जाएगी ॥ (4) कोच को चसस फिलटर (एक परकार का ८ &०«ः) स दखा जाए तो पनना गलाबी रग का दिखाई दगा ओर कोच का रग हरा ही रहगा, किनत इमीटशन को पनन क [ॐ८ &०७ऽ दवारा दखन स पनन क समान दिखाई दगा । (5) इमीटशन म जरदी नही होती । (6) रश आदि रख ओर सफद होत ह । (7) इमीटशन म असली पतथर क जो दोष होत ह व सब दिखाई दत ह, किनत इन दोषा म ओर असली पतथर क दोषो म अतर होता रह। जो दखन स ही जञात हो जाता ह। (8) इमीटशन की चीर शीश की चीर क समान होती ह। (५) सचच पनन का रग कतरिम परकाश म भी हरा दिखाई दता ह ।

पनन क दोष

(1) गाजा- मोटा पानी , (2) अभरकी - अभरक क समान चमक

वाला । यह वह पनना होता ह जो अभरक क साथ निकलता ह तथा उसम

अभरक का कछ भाग आ जाता ह ओर यह सपषट ञलकन लगता ह, (3)

गडढा, (4) चीर, 5) दरग , (0) सन, (7) काला या पीला टीटा, ($) सोना

मकखी, ५) रखा चमकहीन, (10) चरचरा ।

एतिहासिक पनन

(1) इमाय क पयाल का पनना -- कहा जाता ह कि मगल बादशाह

हमाय‌ क पास पनन क पयाल थ, व टट गए । उनक जो टकड की पाए

जात ह व ही “पयाल क पनन" कहलात ह । व सरवोततम जाति क पनन ह ।

(2) जगत सठ का पनना- यह कहा जाता ह कि मरशिदाबाद निवासी जगत

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74 रतन-परदीप

सठ क पास एक विदशी नाविक आया । जो अपन साथ परचर मातरा म पनन की खरड लाया था । यह माल अब भी जगत सठ क पनन क नाम स परसिदध ह । 3) भारत म एक पनना- अलवर क मतपरव महाराजा तजसिह जी क पास ह जो 365 रतती का ह । उसका मलय लगभग 3ॐ0 लाख र5० ह । 4) एक पनना इगलणड म डवनशायर क उयक क पास ह । यह अब तक परापत पनन म सबस बडा ह । यह 1347 करट का ह । इसम कछ दोष भी ह|

= (हिनदी वयाखया व मल पाठ सहित)

हिनदी वयाखया व समपादन-ड० सरश चनदर मिशर

लगभग 300 वरष पराना यह गरनथ सामदरिक शासतर पर भारतीय पदधति स लिख गय गरनथो म अनपम व परामाणिक ह1 मल. गरनथकार मघविजय गणि महाराज न, जो एक जन साध थ, अपनी तपः पत परतिभा स निषपनन जञान को सामदरिक शासतर क साथ अनठ ढग स समायोजित किया ह ।

सरल वयाखया पदधति व विषय का सनदर विवचन शासतर क गढ ततवो को आपक समकष परकाशित कर दगा । ॥ हाथ का सपरश करन मातर स ही जीवन क परशनो का समाधान ।

2. हाथ दखकर ही जनम कणडली आदि बनाकर सकषम फलादश ।

3. शरीर क सभी अगो का परामाणिक फल विवक । + कवल हाथ दखकर ही मक परशन का निरणय । 5. हाथ दखन स ही भमणडल क फल का जञान | | 6. सामदरिक क बततीस चिनह का फल | 7. सतरी व बालक क हाथ दखन की पदधति । | 8. हथली पर अनक चितर का नयास करक परमाणिक फल ॥

~= ~ ~

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|

बदलन की म‌ अनोखा बहरगापन : कषठ का नाशक

| £ बदल पील पतथो ओर । पखरान ।

विविध नाम : ससकत : पषपराग, पीत सफटिक, पीतमणि, जीवरतन

आदि ; हिदी : पखराज ; फारसी : याकत : अगरजी : 10^2 ।

भोतिक गण - कठोरता : 8 : आ० ग 353 स 350 वरतनाक

; ।.७18 तथा 1८27 : दहरावरतन : 0008 तथा अपकिरण 001५ ।

पखराज अथवा पषपराग जवाहराता म सबस अधिक लोकपरिय पीला

रतन ह । इसका उपयोग पिना, दयमको अथवा लटकना, अगठिया ओर कान

क आभषण म किया जाता ह । पखराज क साथ पील रग का समबनध

इतना घनिषठ ह कि सामानयतया यह समजञा जाता ह कि पखराज का

अपना असली रग पीला ह-वासतविक बात यह द कि शदध पखराज रगीन

रतन ह । पहल तो परतयक पील रतन को पखराज ही का जाता था ओर

पीला ओलिवीन (कासोलाइट) तथा पीला सफटिक साइदरीन तो पखराज क

नाम स ही विकत थ । आजकल भी पीला नीलम पराचय पखराज, घमरा

सफटिक, धमायित पखराज, साइदरीन अथवा पीला सफटिक, सकाच पखराज

आदि क नामो स बिकत ह-परनत वसततः य पखराज नही ह । 'पराचय

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76 रतन- परदीप

-पखराज" अथवा पील नीलम की कठोरता 9 ओर आ० ग० 4 ह; `सकोचि पखराज की कठोरता 7 ओर आ० ग० 3.65 ह, जबकि असली पखराज की कठोरता 8 तथा आ० ग० 3.53 क लगभग ह ।

रग ओर रग परिवरतन-- रासायनिक बनावट की दषटि स 'पखराज' पलओन सिलिकट ह, परनत इसकी वजञानिक रचना क अनसार इसम फलोरिन तततव 20.6 होना चाहिए । जबकि इसकी मातरा 15.5 ही ह । इसम उपसथित जल कीमातरा क कारण फलोरिन कछ कम हो जाती ह । जल क अतिरिकत कछ दसरी अशदधियो भी पखराज म विदयमान रहती ह । यही कारण ह कि परकति स रगहीन होत हए भी यह जल जसी सवचछ दशा म कम उपलबध होता ह । पील स लकर शरी-शराव की-सी आभाओ वाल पखराज अधिक परचलित ह । भर सलटी, हलक नील तथा हलक हर रग क पखराज नही मिलत । बाजार म जो गलाबी पखराज बिकत ह, उनम स अधिकाश को कतरिम परकिया स गलाबी बनाया हआ होता ह । भर स पील रग तक क अथवा गहर पील रग क बराजील पखराज को एक छोटी सी कठाली अथवा हकक की चिलम म रखकर उसम रत अथवा भगनीशिया सरीखा वह पदारथ भर दिया जाता ह कि जिस पर गरमी आदि स कोई रासायनिक परकिया नदी होती । इसको सावधानी स गरम करत रहन पर पराकतिक रग निकल आयगा ओर ठडा होन पर गलाबी रग परकट हो जायगा । यह भी एक अवमत बात ह कि पखराज जब तक गरम रहगा-गलाबी रग परकट नही होगा ; ठडा हो जान पर यह पकका बन जायगा । यह भी दखा गया ह कि इस परकिया म यदि ओच धीमी रखी जाय तो गलाबी रग न बनकर सामन मछली की खाल का-सा नारगी हलका गलाबी रग आता ह | शरीलका स परापत पीला पखराज गरम करन पर रगहीन हो जाता ह । रस स मिलन वाल हलक पील भर रग क पखराज का रग धप म रखा रहन पर फीका पड जाता ह । यही कारण ह कि बरिटिश सगरहालय म रस स परापत पखराज ठक कर रख जात ह |

मागलिक पखराज -- भारतीय मानयता क अनसार शरषठ एव मागलिक पखराज का वरणन इस परकार ह :_

पषपराग गरसनिगध सवचछ सथल सम मदः । मसण शभमषटधा | |

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पखराज 77

मागलिक पखराज आठ गणो वाला होता ह-हाथ पर रखन पर वजनी (गर) हो ;छवि उसकी सनिगध हो; सवचछ हो अरथात‌ उसम धबब न

हो, दाना बडा (सथल) हो ; सम अरथात‌ परतरहित हो ; मलायम हो ; खिल हय पील कणडीर क फल की आमा सरीखी आमा वाला हो ; छन पर चिकना परतीत हो । उततम जाति का पखराज कसौटी पर धिसन स अपना रग ओर अधिक बढा दता ह।

अगराहय एव सदोष पखराज क लिय बताया ह कि :

निषपरभ करकश रकष पीतशयाम नतोननतम‌ । कपिश कपिल पाणडपषपराग परितयजत‌ । ।

परभाहीन अरथात‌ जिसकी चमक उसक रग (पीलपन) को परकाशित

न करती होः छन म बाल क समान करकश (खरहरा) लग; रखापन लिय

होः पीलपन म कालिमा मिली हई होः काल रग की बद-बद सी वाला ;

ऊचा-नीचा : मनकका क रग का : लाल-पील मिल रग का : पीला

सफद मिल (पाणड) रग का पखराज सदोष ओर इसलिए तयाजय ह ।

बनावट ओर परापति -- रतनो की मणिम रचना उनकी पहचान

का एक आवशयक वजञानिक अग ह । अधिकाश रतन रव (८५५५) अथवा

मणिभ रप म मिलत ह । रवा उस पराकतिक ठोस पदारथ को कहत ह कि

जिसका एक नियत आकार होता ह, जिसकी सब सतह समतल ओर चिकनी

होती ह ओर बनावट भी एक नियत रप की होती ह । बाहर स जिस आकार

का दिखाई दता द, इसकी भीतरी बनावट भी उसी आकार की होती ह

कि मानो उसका अपनी बाहरी आकति स कोई वासता ही न हो ओर फिर

किसी खनिज का रवा एक सथान पर जिस आकति का पाया जायगा-ससार

क किसी भी कोन म पाया जान वाला उस खनिज का रवा उसी आकति

का पाया जायगा । इसलिय रव की आकति उसकी पहचान अथवा दसर

परकार क रवा स भद जानन म एक आवशयक तततव ह । आकति की दषटि

स खनिजो क रव छः परकार क मान जात ह ।

पखराज ओर हरितोपल (ओलिवीन) ऋजतिरयक समह क रतन ह|

इस समह क रवो म तीन एक दसर क साथ समकोण बनात हय, परनत

असमान अकष होत ह ओर रव सामानयतया परिजम या तरिभज क आकार क

होत ह ।

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ति रतन-परदीप

परापति -- पखराज परायः गरनाइट, नाइस तथा पगमटाइट शिलाओ म मिलता ह । इन शिलाओ म आगनय पदारथो स निकलन वाली जल वाषप तथा फलोरीन गस की अनतःकरिया स वहा पखराज बन जाता ह । पखराज क साथ इनही शिलाओ म टरमलीन, सफटिक, टगसटन आदि खनिज भी होत हः परनत पखराज भारी तथा टिकारऊ होन क कारण इन शिलाओ क बहकर आय ककडा की शकल म नदी पर भी मिल जाता ह।

सकसनी म पखराज बिललौरी शिलाओ म असतर की तरह जमा हआ मिलता ह । रस ओर साइवरिया म गरनाइट की शिलाओ की गफाओ म नील रग का पखराज मिलता ह । बराजील की खानो स मिलन वाल पखराज सबस बदिया किसम क होत ह । रोडशिया की खानो म मिल पखराज बदढिया किसम क होत ह : काटन पर य सनदर लगत ह । इसी परकार शरीलका, जापान, मकसिको, तसमानिया, नय इगलणड आदि म भी अचछ पखराज मिल ह । शरीलका का पखराज पीला, हलका हरा अथवा रग रहित होता ह ओर `जल नीलम" क नाम स परसिदध ह। बरहम दश क पखराज म लोच व चिकनापन अधिक होता ह ।

पखराज का निखार -- इसकी सनदरता को जगान क लिय इसको `जवलनत' ओर 'जाल' काट म काटा जाता ह । बड टकडा म कछ नय फलक भी बनाय जात ह । मखलाय इसकी अडाकार, वतताकार अथवा दीरघवतत क आकार म बनाई जाती ह ।

सहज म चिरन वाला -- यह सब करत हय इस बात का धयान रखना चाहिय कि पखराज सहज ही चिर जाता ह । तरिपारशव क किनार क समकोण पर पखराज का चिराव आसानी स होता ह । पखराज को काटत तथा उसको पहनत समय इस बात का धयान रखना चाहिय कि वह भाजन तल म न टट जाय । परनत कठोरता म य हीर तथा करनदम वरग क (लाल व नीलम) पतथरो स ही कम ह , इसलिय इस खब चमकाया जा सकता ह । इसकी अपनी एक निराली मसण चमक होती ह । दविवरणिता धधल पखराजो म तो कम दिखायी दती ह, परनत खब रगीन पखराजो म यह सपषट होती ह । पखराज को रगडकर उसस बिजली उतपनन की जा सकती ह-इसको सफटताप विदयत गण कहत ह । इस गण म यह सभी रतना म कवल टरमलीन स ही कम ह |

चिकितसा क लिए उपयोगी -- आचारय वराहमिहिर न बहतसहिता“ म पराण परमपरा का आशरय लत हए रतनो की उतपतति क समबनध म यह

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पखराज न)

समभावना भी परकट की दह कि बलि दतय क विभिनन अगो स विभिनन रतनो की उतपतति हई हो । इस समभावना को वजञानिक तथय भल दही न माना जाय, परनत शरीर शासतर क विशषजञो न चिकितसा म रततो का जो परयोग लिखा ह उसका समनवय अवशय इस दनत कथा स होता ह | र० त० क अनसार पखराज लघ, शीत वीरय, कफ-वात-शामक ओर विषघन ह । इसकी उतपतति, पराण क अनसार बलि क चरम स मानी गई ह । यह कषठ एव चरम रोगो का शतर ह । यह निमनलिखित वयाधियो को नषट करता हः-

पखराज को गलाब जल ओर कवडा जल म 2 दिन तक घोट कर, कजजल की माति पीसकर घप म सखा लना चाहिय । वदय लोग शवत पखराज की भसम बनाकर काम म लात ह । इसकी मातरा चौथाई रतती स आधी रतती तक ह । रतन चिकितसा म भी शवत पखराज का परयोग किया जाता ह । परिजम कचि स दखन पर यह आसमानी रग का दिखायी दता ह । अलकोहल म रखन पर शवत पखराज हीर की भाति चमकता ह ।

पखराज को रगडन पर अथवा गरम करन पर इसस विदयत- लहर

निकलती ह । इस विशषता क आधार पर परसति क समय इसको गरम करक

गरभिणी क हाथ म दन का उललख मिलता ह । कहत ह कि इसस गरभिणी

को परसती म सहलियत पहचती ह ।

जयोतिष शासतर क अनसार पखराज गर गरह का परतिनिधि ह ।

जिन वयकतियो की जनम तिथि धन राशि म अथवा ।5 दिसमबर स 14 जनवरी

क अनतर म हो उनका रतन पखराज ह । सात या बारह करट का पीला

पखराज, विशष रप स तीसरी अगली म, सोन की अगठी म जङवाकर धारण

करना चाहिए । बरिटिश सगरहालय म सगरहीत एक पराचीन गरनथ क अनसार

'पखराज धारण करन वाल को रात को डर नही लगता | बदधिवरधक तो

यह ह हीः करोध ओर पागलपन को शानत करता ह ओर आकसमिक मतय की

आशका को दर करता ह ।“

बदल -- जो वयकति असली पखराज नी खरीद सकत व इसक

उपरतन `सनला' या 'सोनला' को धारण कर सकत ह । सोनला साइदिन

एक पीला पतथर ह । यह पील पखराज जसा लगता ह, परनत इसकी दङक

कम ओर अग नरम होता ह ओर यह परण पारदरशक होता ह ।

असली पखराज तथा नकली पखराज -- यो तो पखराज को

जोहरी तथा सामानय जन, सभी खब जानत ह । परनत फिर भी साइदविन,

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80 रतन- परदीप

विललौर' तथा नकली- परतिकत कच क पखराज को पखराज समञच तन की भल परायः हो जाती ह । परान समय म हर पील रतन क आग "पराचय" (01९५५) विशषण जोडकर पखराज कह दिया जाता था । आजकल असली पखराज को जौहरी बहमलय पखराज क नाम स वचत ह ।

यो तो बहमलय पखराज अपन पारदरशक पील रग, पीलापन लिय भरा ओर नारगी भर रग क लिय परसिदध ह। यखराज बीच म लाल, जो परायः गरम करन पर ही आता ह, हलका नीला, बहत हलका हरा, वजनी हलका हरा-सा तथा रगहीन भी मिलता ह, परनत कवल बाहरी रग रप स पहचान करना कठिन होता ह ।

पखराज क समान दीखन वाल पतथर -- निमनलिखित रतनौ ओर पतथरो म पखराज का भरम होना समभव ह-विललौर (५।॥०५ छा [णम ५८।।०५ 0012) (इसको 0८०५८१३ अथवा अवा15॥ [जच कहत ह) टरमलीन : करनदम समह क रतन-0,५१५ 1७9० (गलाबी, पीला ओर हलका नीला); वरज वरग क रतन (सवरण वरज, हरितमणि आदि); सशलिषट करनदम ओर कोच ।

इनम स दरमलीन ओर कच क बन नकली पखराज दखन म असली पखराज क समान लगत ह । इनका वरतनाक पखराज क वरतनाक क बराबर ही होता ह । अनतर य (1) टरमलीन का. आ० ग° पखराज स बहत कम ह । (2) काच म दहरावरतन नही ह । पखराज, यदयपि हलकी आभा का रतन ह तथापि उसम बहवरणिता आशा स अधिक पाई जाती ह । पील पखराज म सपषटतया तीन रग-भरा-सा पीला, पीला ओर नारगी पीला-दिखाई दत ह । नील पखराज म रगहीनता ओर हलका नीला-दो रग दिखायी दत ह ।

पील बिललौर (५५०५ ०४०) स इसकी पहचान करन क लिय उसका आपकषिक गरतव पता लगाना चाहिय । सरल विधि यह ह कि बरोमो फरम म वजीन आदि म स कोई दरव मिलाकर उसका 265 आ० ग० का बना ल । इसम असली पखराज डव जायगा । परनत रगहीन या पीला बिललौर, एमीथीसट आदि अनय सब पतथर या तो लटक रहग अथवा धीर-धीर डग अथवा धीर-धीर ऊपर उठग ।

दसर रगो क पखराज भिलत- यलत पतथरो का पखराज स अनतर उनक वरतनाक को जानकर किया जा र पखराज सकता ह । इसक लिय वरतनाक

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पखराज 1

मापक यनतर (रणा शय०गालला) का परयोग करना चाहिय । यह यतर खरा ओर

विशवसनीय ह- परनत हीरा, गोमद, विकरानत आदि बहत अधिक वरतनाक क

रतनो म इसका परयोग नही किया जा सकता । जिस नमन की परीकषा कर

रह ह यदि उसका वरतनाक 166 क लगभग नही ह तो वह पखराज नदी

हो सकता । यदि इसका वरतनाक 1.63 क आस-पास ह तो वह तीना म स

एक होगा - 1. पखराज, 2. टरमलीन, 3. पसट । यदि दो किनार दिखाई

दत ह ओर वरतनाक म 002 का अनतर हो तो नमना दरमलीन द । यदि

दविवरणिता हो अथवा नमना पोलिश किय हए सफटिक या विललौर (0५२)

को खरच द तो वह पसट (२०५९) नही होगा । यदि पसट होगा तो माइकरोसकोप

स दखन पर उसम एक दो बलवल अथवा रभवरो जस रखा चिनह दिखाई

दग । यदि उसम कोई मणिसदश नोकीला भाग शक नही ह तो वह पखराज

नही हो सकता । हलकी लाल या नारगी चमक पखराज को बताती ह ।

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हीरा (7५५0 पा))

विविध नाम - ससकत-वज,पवि, विदयत, हीरक, अरका भिदर, अभदय, कलिश आदि : हिनदी-पजावी-हीराः उरद.फारसी-अलमास, अगरजी 2१५११५१५ |

भौतिक गण कठोरता-- 10 - आग 315 स 3.53 तक, वरतनाक- 2.417 स 2.46 तक (लाल परकाश म 2402, पील म 21175, हर म 2.427 तथा वजनी म 2.65), बनावट म यह शदध रवदार कोयला ह-इसस कठोर ओर कोई पदारथ नही होता, परण जवलन क पशचात‌ कारबन डाइओकसाइड गस बन जाती ह।

अजय ओर अनपम -- अपन अनपम गणो क कारण हीरा न कवल खनिजो, बलकि रतन पदाथा म भी अपना सानी नही रखता । दवताओ क राजा इनदर की एक मातर अजय शकति वदा म वरणित “वर" ही ह । यह अनपम ओर अकाटय ह । "वज" की सनापति क अजय शसतरासतर का समह ह, कही वह सरय की परखर किरण ह ओर कही वह अजञान क घन

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हीरा 83

अनधर को भी काटन वाली जञान क परकाश की जाजवलयमान जवालाय ह ।

खनिज रप म पाय गय हीर म इनद गणो को दखकर ही शबदशासतर क

पणडितो न भाषाओ की जननी दव भाषा ससकत म हीर का नाम “वज

रखा । फिर ॐजी शबद 'डायमड' भी लटिन शबद `एडमास" स बना ह

ओर *एडमासः' का अरथ भी अजय ह ।

रतनो का राजा -- खनिज पदारथो म `रतन" व कहलात ह जिनम

तीन विशष गण ह-सौनदरय, टिकाऊपन ओर दरलमता । सौनदरय : नतर क

लिए आकरषक होना किसी भी रतन का पहला गण ह। परनत जो

पदारथ शीघर धिस-धिसाकर, टट- फट कर बिखर जाय, वह कितना ही सनदर

कयो न हो सगरह करन योगय नही होता । फिर सनदर भी हो, टिकाऊ भी

; पर वह एर-गर सबको आसानी स मिल जाय तो भी उसको सगरह करन

की लालसा मन म नही होती ।

दसररो का रतवा बढान वाला -- हीरा रतन सवय तो महान‌ ह

, ही, यह जिस किसी कोष दता ह उसको भी अधिक रोचक ओर अधिक

सनदर बना दता ह । पानी म बहकर आयी किसी लकडी क दकडी पर

पनना अथवा पखराज रखिय तो पनना सवय दहक उठगा ओर पखराज सवय

सरय क समान भासवर हो उठगा : परनत हीर को उस काषठ खणड पर

रखिय . तो वह काषठ अधिक शवत, अधिक सहावना रवदार ओर अधिक

विशदध दिखाई दगा । किसी वद क निसतज हाथा म गया हीरा उसको

साहस परदान करता ह । छोट-छोट जडाऊ दीरो को अपन साथ जड हए

दसर परतयक रतन का रतबा बढान म मानो मजा आता ह।

परम हठी, अभिमानी ओर कठोर -- हसमख हीरा जहो दसर

रतनो क परति उदार ह वहौ सवय बडा हदी ओर अभिमानी भी ह । खान

स निकलन वाली हीर की अषटकोण अथवा षटकोण खरड अपन ही सजातीय

पदारथ की एक अिलली म लिपटी होती ह । हीर की जाति को पहचानन

क लिए पहल इस चिलली को हटाना पडता ह ओर फिर उस पर पालिश

करक चमकाया जाता ह।

यह शरय भारत ही को परापत ह कि सबस पहल भारत न ही यह

परमाणित किया कि हीर जस कठोर ओर अभिमानी का मिजाज उसी क

कणो दवारा पालिश करक ठीक किया जा सकता ह । सबस पहल तरहवी

शताबदी म भारतीय रतन निरमाताओ न ही हीर क दकडो स हीर को धिस

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६4 रतन-परदीप

कर अचछी बनावट क नग बनान की पदधति का आविषकार किया । परसिदध फरासीसी जौहरी बरन टवनियर क अनसार "भारत म निरदोष हीरो को नही काटा जाता था-सदोष हीरो को काटकर उनक अनीक बनाय जात थ“ भारत को इस बात का गरव होना चाहिय कि जब पाशचातय दशो म आधनिक समयता का उदय भी नही हआ था, उसस काफी समय परव ही भारत म हीरो का उदयोग विदयमान था ओर इस परकार क परिषकत हीरो का यहो स नियति किया जाता था । मधय काल म यह उदयोग भारत म चरमोतकरष पर था, कयोकि मगल बादशाह का हीरो क परति आकरषण बहत अधिक था.।

कौटिलय क अरथशासतर म उललख -- चाणकय न परसिदध गरनथ अरथशासतर" म हीरो का विसतार स वरणन किया ह । उतपतति सथान क अनसार व उनक रग क अनसार हीरो क भिनन-मिनन नामो का रोचक वरणन अरथशासतर" म मिलता ह । कौटिलय न हीर आदि परमख रतनो को राजय क कोश अथवा दसर शबदो म राजय का मखय आधार दही बताया ह । वह लिखत हः

आकरपरभवः कोषः कोषाद‌ दणडः परजायत । परथिवी कोषदणडाभया परापयत कोषभषणा । |

राजा का कोष खनिजो स भरता ह. कोष होगा तो सना होगी ओर जब सना होगी तो उसी क दवारा राजय कौ परापति ओर उसकी रकषा होगी ।

बहतसहिता म बताया ह कि वज (हीरा), इनदरनील, मरकत, करकनत, लाल, रधिर, वदरय, पलक, विमलकः, राजमणि, सफटिक, चनदरकानत, सौगनधिक), गोमदक, शख, महानील, पषपराग, बरहममणि, जयोतीरस, शयसक, मोती, मगा इन सबको रतन कहत ह । वणा नदी क किनार पर ही शदध हीरा उतपनन होता ह। शिरीष फल क समान हीरा कौशल दश म उतसनन होता ह ।

नाम ह। कछ पील रग का हीरा कलिग दश म उतपनन होता ह । पौणड‌ दश म उतपनन हआ हीरा शयाम रग का होता ह। छः कोणो वाल हीर का

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हीरा 85

इनदर दवता द । शकल वरण हीर का यम दवता ह । सरपाकार मखवाल, काल, पील ओर नील रगवाल हीर क विषण दवता ह । सतरी क मग क समान

हीरा वारण होता द । यह करणिकार पषप क समान भी होता ह । सिघाड

क समान या वयाघर क समान हीर क अगनि दवता ह । अशोक क फल क

समान रगवाल या जौ क समान समसत हीरो का वायवय नाम ह। नदी

आदि क परवाह, खान ओर इधर-उधर भमि स परापत यह तीन सथान हीरा

की उतपतति क ह । लाल ओर पीलरग का हीरा शदर को शभ फल दता

ह।

जो हीरा किसी वसतसन टट, साधारण जल म भी किरणो क

समान तरता रह, सनिगध ; बिजली, अगनि या इनदरधनष क समान रग वाला

हो, वह हितकारी होता ह । जिन हीरो म काक पद, मकखी, कश, धातयकत

चिनह हो, अथवा जो ककर स विहीन हो, जिनक सब कोना म दो-दो सत

हो, जो दगध, मलिन, कानतिहीन ओर जरजर ह, व हीर शभदायी नही ह ।

जो हीर पानी क बबल क समान आग स फट हए, चपट, वासीफल क

समान लमब हो व हीर भी शभदायी नही ह ।

बनावट -- रासायनिक बनावट म हीरा शदध कारबन ह : इसम

किसी दसर तततव की मिलावट नही ह । इसको जलान पर सारा का सारा

कारबन डाइ आकसाङड गस बनकर उड जाता ह-कछ शष नही बचता ।

रगीन हीरो को जलान पर कछ शष रह जाता ह । हीर पर अमलो का

कोई असर नी होता ।

परकति स परापत हीर का रप -- खाना स हीरा घनाकार आठ या

बारह पहलो का मिलता ह । भारतीय हीरा आठ तिकोन पहलो का ओर

वरजीली समानानतर असम चतरभजीय (चौकोर) बारह पहलो वाला होता ह ।

तिकोन पहलो पर सकषमदरशक यनतर की सहायता स दी दीख पडन वाल

तिकोन निशान व गडढ दीख पडत ह ओर इनक किनार ओर शिखर उस

पहल क किनारो व शिखर स उलटी दिशा म होत ह जिस पर किय

सथित होत ह । चोकोर पलो क लमब करण क समानानतर पटियो या धारिय

होती ह । य पहल ऊपर को कछ उमर (उननतोदर) तथा इसक किनार

पन न होकर कषछ-कछ गोल होत द । यह विशषता इसकी पहचान म

बहत सहायक होती ह । । -

हीर परायः सभी बिजली क कचालक होत ह-रगडन पर सतह पर

धन विदयत का आवश उतपनन होता ह । परनत हीरा ताप को सगमता स

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86 रतन-परदीप

गजरन दता ह । इस कारण छन पर ठडा लगता ह- अगली का ताप आग खिसक जाता ह।

हीरा सब पदारथो स अधिक कठोर ह- इसको कोई पदारथ न खरच सकता ह, न धिस सकता ह । अलग-अलग सथानो क हीरो म कठोरता कम-अधिक होती ह। बोरनिया तथा असदररलिया क हीर अफरीकी हीरो स अधिक कठोर होत ह । अफरीका स कछ एस हीर भी परापत हए जो हवा लगन

पर कठोर हए । हीर की कठोरता की एक अजीब बात यह ह कि एक ही हीरा कही स अधिक कठोर ओर कही स कम कठोर होता ह।

सरलता स चिरन वाला -- हीरा सरवाधिक कठोर होत हए भी

अपन पहरलो क समानानतर तलो पर आसानी स चिर जाता ह, फिर कठोरता क कारण विशवास तो यह ह कि हीर को तोडा नही जा सकता, परनत हाथ स फरश पर गिर जान पर ही यह टट जाता ह। यह बहत अधिक

भगर ह । कहत ह कि इसी विशवास क आधार पर दकषिण अका स परापत एक नमना वयरथ हो गया । लोहार न उस हथौड की चोट दकर परीकषा की

ओर वह बिखर गया । ।

बकरी क दध स टट जाता ह -- एक पराचीन मानयता यह ह कि हीर को यदि बकरी क ताज गरम दघ म डबोकर रखा जाय तो इसको सहज ही तोडा जा सकता ह । तलसीदास जी न अयोधया काणड म लिखा ल

सब सिय-राम परीति किसि मरति । जन करना बह बष विसरति । । सीय मात कह बिधि बधि बकी । जोहि पय फन फोरि पवि टकी । ।

हीरा जल जाता ह -- ओकसीजन भर शीश क वरतन म हीर को रख कर यदि उस पर आतशी शीश दवारा सरय की किरण कनदरित की जाव तो वह जल उठता ह। सन‌ 1816 ई० म सर हमफरी डवी न इस विधि स परीकषण करक यह परमाणित किया था कि हीरा विशदध कारबन ह। `

रग -- परकति म हीर का मणिम बहधा सरवथा निरमल तथा पारदरशक मिलता ह । इसकी सतह पर जवलनत चमक होती ह जिसको हीरक- दयति कहत ह । बिलकल पारदरशक तथा निरदोष "पहली आब" का

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हीरा 87

कहलाता ह ओर उसम कछ पीलापन हो तो उसकी कीमत उतनी नही लगती । हा, थोडा-सा पीलापन लिए, रगहीन तथा पारदरशक हो तो उसका

मलय सबस अधिक ओका जाता ह । हर रग वाल भी हीर मिलत ह । भर बादामी रग क हीर दकषिण अफरीका स मिलत ह । माणिकय तथा नीलम सरीख

चटकील रग क हीर नही मिलत । पराचीन गरनथो म रगो की दषटि स हीर

आठ परकार क लिख र 1. अतयनत सफद, 2. कमलासन, 3. वानसपतिक

हर रग क, 4. गद क-स वासनती रग क, 5. नीलकठ क स नील रग क,

6. शयामल, 7. तलिया ओर 8. पीत हरा ¦

रग उतारना -- अधिक तापमान दकर हीरो का रग उतारन का

भी परयतन किया जाता ह ; परनत ठडा होन पर वह फिर लौट आता ह |

यदि हीर को सरय क तज परकाश म रख कर अधर म ल जाया जाय तो

उसम स साता रगो की किरण निकलन लगती ह । यह भी इसका एक

कौतकपरण गण ह । ।

हीरा बहत परकाशमान -- एक परीकषा-नली म हीरा रखकर

वाय-निससारक यतर दवारा उसकी वाय निकाल दीजिए ओर परीकषा-नली

म विदयत‌ धारापरवाहित कर दीजिय । अब उस हीर म स इतना अधिक

परकाश निकलगा कि उस परकाश म पसतक आसानी स पदी जा सकती

ह ।

हीर का आपकषिक गरतव -- उसक भिनन-भिनन भद क अनसार

3.15 स 353 तक होता ह । शदध ओर सवचछ मणिम का आपकषिक गरतव

3.52 होता ह ।

पारदरशक -- दर ही रतन शरणी म गिन जात ह । कट रतन म

जवलनत हीरक दयति पाई जाती ह । ओदयोगिक हीरो की चमक मदी होती

ह । हीर का वरतनाक बहत अधिक ह । कम वरतनाक वाल पदारथो म परविषट

हए परकाश की अधिक मातरा उसक पार हौ जाती ह : परनत हीर म परविषट

हए परकाश की परायः परी की परी मातरा वापस लौट आती ह । इसलिय

इसकी दमक बहत अधिक होती ह ।

परकाश की किरण का अपकिरणन भी होता ह । अरथात‌ परकाश की

शवत किरण पदारथ म स निकलत समय सात रगो की किरणो म बट जाती

ह-यह इनदर धनषी चमक या रग दीपति (५०९०१९९) कहलाती ह । हीर म

अपकिरणन बहत अधिक मातरा म होता ह ।

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88 रतन- परदीप

कष-किरणा म हीरा पारदरशक होता ह, नकली हीर नही होत । इस परकार कष-किरण स असली-नकली की पहचान हो जाती ह ।

हीरा जल म तरता ह -- शकर नीति, गरड पराण आदि पराचीन गरनथो म लिखा ह कि जो हीरा "वारितर' होता ह वह सरवशरषठ होता ह । इसको जल म डबो दिया जान पर भी इसकी दमक उतनी ही रहती ह जितनी कि वाय म रखन पर थी। जल या बरोमोफारम या मिथाइलीन आयोडाइड म डबान पर उतकषट हीरा दरव की तली स बहत अधिक ऊपर को उठा हआ दिखाई दता ह । सशलिषट नीलम ओर सशलिषट कटकिज आदि कम वरतन गणवाल खनिज दरव म डबोन पर न तो इतन उभर हए दिखाई दत ह, न उनकी इतनी चमक ही होती ह ।

वजञानिक विशवकोष' क अनसार जब हीरा मिली तलछट म पानी मिलाकर उसको बहाया जाता ह तो हीर क छोट-छोट कण पानी पर तरत दिखाई दत ह । कारण यह ह कि एक तो हीरा जल विरोधी या जल-दषी (11070]1001©) ह ओर फिर एषठ तनाव (७५।०९८-{लाऽ[0ा) हीर को तरान म सहायक होता ह । तल-सनही तलछट नीच वठ जाती ह।

मागलिक हीर -- जो हीरा बहत हलकी नीली ई लिय हए रग-हीन सवचछ हो , या नीली ओर लाल किरण छोडता हआ रगहीन दहो, काल बिनदओ स रहित हो, वह शभ एव उतकषट माना जाता ह । शख क समान सफद अथवा बिललौर क समान चमकता, चनदर क समान रोचक वह चिकना हीरा सरवोततम रग का माना जाता ह । चारो ओर लाल किरण फकता हआ सफद हो अथवा लाल-पीला सफद अथवा खरगोश की ओखो क रग जस रग वाला हो वह दसर दरज का कषतरिय) हीरा होता ह । जो पीलापन लिए शवत हो : साण पर तज करन पर तल या पानी स बञलाई हई तलवार की-सी चमक वाला तीसर दरज का (वशय) हीरा होता ह । काली ओ वाला सफद हीरा शदर वरग का समया जाता ह । वस य सभी असली हीर होत ह

हीर म दोष -- हीर क दोष इस परकार निमनलिखित ह ५ छीटा या बिद -- हीर पर जल क समान बिनद या षठीटा . होना उसका एब ह । यदि यह छीटा लाल हो तो सरवथा तयाजय ह | काल तथा सफद रग का छटा भौ हीर को एव दार बना दता ह ।

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हीरा 89

2. काक पद -- कौए क पर क समान काल बिनद हा तो वह काक पद दोष कहलाता ह । एस हीर को मतयकारी बताया ह ।

3. यव (जौ) दोष -- हीर पर जौ जसी आकति क चार रगो क विनद हो सकत ह-शवत.पीला, लाल ओर काला । इनम स शवत बिनद होना शभ ह । शष अमागलिक ह ।

4. मल दोष -- हीर की धार, कोना तथा बीच म- तीन सथाना

पर मल होना सममव ह । यह भी अशम ह।

5. रखा दोष-- हीर पर चार परकार की रखाय हो सकती हः (क)

बाय भाग स जान वाली, (ख) दकषिण भाग स जान वाली, (ग)रखा को

पार करन वाली ओर (घ) रखा को पार करक ऊपर जान वाली । इनम

स पहली उततम मानी जाती ह ।

इनक अतिरिकत-तलियापन, जरदी, भरापन, खडडा, चीर, चमक

का अभाव ओर अधिक कडापन भी दोष मान जात ह । जो हीरा सामानय

स अधिक कठोर हो उस पर अनीक बनान म अधिक कठिनाई आती ह ।

काट, बनावट ओर शरगार - जसा कि ऊपर कहा जा चका ह,

हीरा खान स जिस रप म परापत होता ह वह उतना आकरषक नही होता ।

कई वार मणिम का थोडा सा ही भाग पारदरशक, निरमल तथा अचछ रग

का होता ह । एस रतनो को ठीक परकार स काटकर अनीक बनान पर मलय !

कई गणा बद जाता द । भिनन-भिनन परकार की काटो का वरणन हम पहल

कर आए ह।

हीर को काटन क लिए आजकल जवलनत ("+") काट का

परयोग होता ह । इसस पहल पलट काट, गलाबी काट, खदान काट आदि

न काटा जाता रहा ह । सतरहवी सदी क अनत म जवलनत काट का परयोग

हआ । इस काट स हीर म अनोखी चमक ओर दमक आ जाती ह । जवलनत

काट वाल रतनो म पटल अनीक (ऊपर की ) तथा कलट अनीक (नीच

की) क अतिरिकत 56 अनीक होती ह । पटल अनीक का मखला क साथ

ॐ5 स 7 ओर कलट अनीक क साथ 42 का कोण होता ह।

कतरिम हीरा -- रतनो को कतरिम विधि स ठीक किया अथवा

बनाया जाता ह । कई बार तो अनतकषट, परनत वासतविक रतनो को कतरिम

रग, उपचार, ताप तथा दाब, रडियम दवारा रशमि विकिरण, विशिषट आरोपण

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%0 रतन-परदीप

आदि विधिरयो स साया जाता ह! कतरिम अथवा सशलिषट ओर इमीटशन सतन भी बनाए जातरह।

गरड पराण क 4 व अधयाय रम हीर का उललख करत हए बताया 1

अयसा पषपरागण तथा गमदकन च । वदरयसफटिकाभयाच कावशय पथगविधः । परतिरपाणि करवनति वजसय कशलाः जनाः ।

अरथात‌ चतर लोग लोहा, पखराज, गोमद, वदरय सफटिक तथा काच स नकली हीर वना लतरह।

य कतरिम हीर चार परकार क हो सकत ह- 1. सशलिषट, 2. पनरनिरभित, 3. अनकत (इमीटशन) ओर 4. दविक अथवा तरिक ।

(1) सशलिषट हीरा अमी तक एसा नही बन पाया कि वह वयापारिक

दषटि स लामदायक हो सक । पहल पहल फरवरी 1955 म गरफाइट क कणा पर अथवा खणड पर 1 लाख वायमणडल क दबाव स अधिक दबाव तथा 373 डिगरी शतश तापमान पहचाकर सशलिषट हीरा बनाया गया था । कहत कि रसी वजञानिको न नकली हीरा बनान का कोई यनतर बना डाला ह| परनत अमी तक सशलिषट अथवा रासायनिक विधि स कोई एसा हीरा तयार नही हो पाया ह जो असली हीर क मकाबल म ठहर सक । अतएव जौहरी कौ सशलिषट हीर स अमी तक कोई भय उतपनन नही हआ ।

(2) पनरनिरमित हीरा भी अमी तक नही बनाया जा सका ह । इसको बनान क लिए असली रतनो क छोट-छोट दकडो को गलाना पडता ह ।

(3) दविक हीर -- सशलिषट रटाइल तथा सशलिषट नीलमो स दविक हीर वनाए जात ह ।

4 अनकत हीर -- कच ओर बिललौर (सफटिक) स तयार किए जात ह ।

असली ओर नकली हीर की पहचान क लिए परीकषा विधियो का वरणन करन स पहल हम हीर क विविध उपयोगो क विषय म कछ लिख दना आवशयक समदमत रह । ध

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हीरा प]

असली हीर का उपयोग शोमा क लिए तो होता ही द, साथ ही उस असली हीर का उपयोग उदयोगो क लिए भी किया जाता ह जिनका

रप निखारा नही जा सकता या जिनका रग आकरषक नही होता, व हीर

जवाहरतो की शरणी म न आन स ओदयोगिक हीर कहलात ह । य कछ

पारदरशक ओर कछ अपारदरशक होत ह । इनका उपयोग आजकल परायः

सभी परकार क उदयोग कर रह ह । बडी-बडी इमारत आदि बनान, सडक

व पल बनान, पतथर की शिलाओ को तोडन, तल निकालन क लिए जमीन

दधिल करन आदि सभी कामो म ओदयोगिक हीरो का परयोग होता ह । जिस

काम को करन म पहल महीनो लग जात थ उस आज मशीना दवारा कषण

भर म कर डालत ह । हीर जडी मशीनो स सारा काम सगम हो गया द।

रतन कोटि क हीर चिरकाल क परयोग क बाद भी नही धिसत

ओर न खराब होत रह, परनत ओदयोगिक हीर धिस जात ह ओर उनह बदलना

पडता ह । य चार परकार क हो सकत ह 1. सकषम , 2. रकष हीर या बोरट

3 गोल हीर या वलास ओर 4 काला हीरा या कारवनडो ।

(५) सकषम ओदयोगिक हीर-- य ओजार बनान क काम आत ह ।

य हीर आकरषक नही होत ।

(2) रकष या बोरट हीर-- अनियमित रप स बन दोषपरण हीर होत

ह । अलकरण म इनका परयोग सरवथा नही किया जा सकता । जिन छोट

पर अचछ लगभग 20 रकष हीरो का तौल मिलकर एक करट हो जाय उनका

परयोग छद करन क फल बनान म किया जाता ह । काटन वाल कीर या

रकष हीर सबस अधम कोटि क होत ह । कहीर का उपयोग कोच को

काटन, इमारती पतथर को तोडन व अनय हीरक ओलजारो क बनान म किया

जाता ह।

(७) गोल हीरक या वलास-- य बहत ही कठोर तथा व होत

ह । हीर क बहत-स छोट-छोट रवो की बनी गोल आकतियो को गोल

हीरक या वलास कहा जाता द। य मणिभ गोल क अरदधवयास पर ओर

कनदर क निकट लग रहत ह । खदाई व अनय ओदयोगिक कामो क लिय

बहत उपयोगी होत ह ।

(4) काल हीर या कारबनडो-- रीर का यह विभद अपारदरशक,

काला या सलटी रग का खब मजबत तथा घना-सटा रप होता ह । इनका

आपकषिक गरतव रतन-हीर स कठ कम 3.15 स 329 तक होता ह । गहरी

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9 रतन-परदीप

खदाई क काम म तथा लथ यनतर क हीरकमय ओजारो म इनका उपयोग

होता ह।

'रतन चिकितसा विधि स तयार हीर की गोलियो का परयोग रकतातिसार, अधापन, सवरभग, मोतियाविनद, रगता हआ पकषाघात, कषटदायक ततधरम, भगनदर, हिसटीरिया, शवत परदर, फफड क रोग ओर फफफस परदाह म किया जा सकता ह।

दवी शकति-- भत परत आदि की बाधा क निवारण क लिय तथा विष की आशका को दर रखन क लिय हीर को धारण करना बताया जाता ह । काम करीडा म अशकत वयकति को हीरा पहनना चाहिए । पशचिम म नव विवाहिता को हीरा-जडी अगढी दन की परथा ह । इसक धारण स सदभावना बढती ह, एसी मानयता ह; परनत भारत म शकराचारय क कथनानसार हीरा सतरी क लिय अनपयकत माना गया ह । लिखा ह :

“न धारयत‌ पतरकामा नारी वजर कदाचन‌ ॥'

शकर गरह क परभाव म अरथात‌ जब सरय वष राशि म (15 मई स 1 जन तक) ओर तला म (14 अकतबर स 14 नवमबर तक) हो उस समय जनम वयकतियो का रतन हीरा ह ।

हीर का बदल गोमद (८०) ह । चादी म जडवाकर मोती भी हीर क सथान पर पहना जा सकता र ।

परापति सथान -- लनदन म हीरो की खरड‌ (२०५४ भाजा५ऽ) की कटाई करन वालो ओर वयापारियो को खरड का वितरण होता द ।

दकषिणी अपरीका म यदयपि बहत सी परानी खान बनद हो गयी ह परनत उनक सथान स नई खान मिल गयी ह ओर उनम काम हो रहा ह | खानो क मखय कनदर ह -वारकली वसट, किमबरली, बोशप, जगरस‌ फानटीन बरन सटड । इनक अतिरिकत ओर भी नय अनक कषतर ह जहा हीरक पतथर परापत होत ह । एसा विशवास ह कि आज कल का ससार का %5 परतिशत स अधिक हीरक पतथरो का उतपादन दकषिण अफरीका मदहोता ह।

अफरीका म दकषिणी अफरीका क अतिरिकतः दकषिणी पशचिमी अफरीका म भी हीरक पतथर परापत होत ह । य तो य पतथर सतह स कवल एक फट

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हीरा 93

की गहराई पर ही मिल जात ह । परनत यहा क रतनीय पतथर छोट ओर कछ पीला रग लिय होत ह ओर अधिक मलयवान‌ नही होत ।

रोडशिया म परानी नदियो की सखी तलहटियो म हीरक पतथर परापत होत ह । परापति सथान सोमाबल जगल का गवल नामक कषतर ह । यहो हीरक पतथर टोपाज, कराइसोबरिल, नीलम जस अनय खनिज क साथ परापत होत ह ।

पशचिमी अफरीका म गोलड कोसट, कागो ओर अगोला म भी हीरक पतथर पाय जात ह । यहो भी हीर सखी नदियो की तलहटियो म परापत होत ह । य रतनीय पतथर अधिकतर अचछ पानी क होत ह, यदयपि य आकार म छोट होत ह । कागो स परापत पतथरो म लगभग 66 परतिशत रतनीय नही होत ।

आसदरलिया म नय साउथ वलस म रहीरक पतथर होत थ, परनत वहा की खानो स निकासी घटती जा रही ह । बोरनिया म भी हीरक पतथर परापत होत रह ह । यहो क पतथर भी दस स लकर पनदरह करट तक क होत ह । सियरा लियोन (ऽग 1५०८) ओर टगानिका म भी उततम जाति क रतनीय पतथर परापत हए ह । आसदरलिया म दकषिणी कवीनसलणड ओर सयकत राषटर अमरिका म अराकानास, इणडियाना ओर कलीफोरनिया म भी हीरक पतथरो की खान ह, परनत उनकी सखया सीमित ह ।

भारत म हीरक पतथर का मखय परापति सथान मधय परदश म पनना नाम का नगर ह। मधय परदश म हीरा परापत होन क कषतर ह-पनना, चरवारी कोठी इतयादि । दकषिण भारत म गोलकणडा क आस-पास क कषतरो म सरवपरथम हीरा पाया गया था । गोलकणडा की खान ससार म सरवशरषठ थी, परनत अब यह बनद हो चकी ह, परनत कछ छोट-छोट हीर मदरास परानत म

अब भी पाय जात ह । दकषिण भारत म हीर परापत होन क कषतर ह-अननतपर,

बललारी, वलपलली, कोठपटा, कडापा, गरपर, गटर, मडगल, मलवरम,

पोलीलट, गोटपिलली, मालपिलली, पटियाल उसटपललि, करनल, बननर,

वसवपर, गरमफोट, दवनर, धोनि, गजटपिलली, गडियाद, मदवरम ओर पोलर ।

उडीसा म कालाहडी, पलाम‌ खिमा ओर बिहार म समबलपर क

निकट कछ हीर परापत होत ह । परनत ससार क अनय उतपादन कषतरो को

विशषकर दकषिण अफरीका को दखत हए भारत का उतपादन बहत कम ह ।

गोलकणडा ओर अफरीका क माल म बहत अनतर ह । गोलकणडा का हीरा

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94 रतन-परदीप

लोचवाला ओर अतयनत आकरषक होता ह । इसकी अपकषा अफरीका महीर की

` लोच कम होती ह तथा वह आकरषक भी उतना नही होता ।

हीर की जौच परख -- हीर का भरम डाल सकन वाल अथवा

उसक सथान पर नकली हीर क रप म चलाय जान वाल मखय खनिज अथवा

रतन निमनलिखित र 1. सशलिषट रटाइल : 2. सदरौशियम टिटनट : 3.

सशलिषट हीरा ; 4. कच अथवा सफटिक का बना इमिटशन (अनकति) हीरा,

5. दविक (दो जड हए) : 6. विलपित-तह चदा हआ : 7. गोमद ; 8. सशलिषट

शवत नीलम ओर सशलिषट शवत सपाइनलः 9 सीसा-रकोच का बना इमिटशन

(अथवा पसट); 10. पीला अथवा भरा सफीन : 11. हरा डमानरटाङड, तामडा ।

असली हीर की पहचान निमन परकार स की जा सकती ह:-

(1) नमना यदि असली हीरक खणड होगा तो उस "मनोहारी

आकति क हीरक-खणड की मखला क उस तल पर जिस पर पालिश

(परमारजन) नही हआ द, सतह का अदवितीय तनत विनयास अथवा रशो की बनावट होगी । कयोकि हीरक खणड को गोल करत समय खराद क परयोग स हीर की सतह सरत एसी बन जाती ह कि वसी दसर किसी परकार क रतन की नही होती । ।

2) काट-सवार हीरक खणड की मखला क ऊपर अथवा इसक समीप की मल तवचा पर पराकतिक" अश भी अवशय बच रह जात ह । इन पराकतिक अशो पर गडढ अथवा तिकोनी आकतियो दिखाई दती रह जो करमशः समानानतर असम चतरमज पहलो पर ओर तरिभजाकार पहलो पर पायी जाती ह । किसी भी परकार क नकली हीरक खणड क पहलो पर य निशान नही होग |

(3) अचछी काट क हीर की अपनी विशष दमक होती ह जिसको 'हीरक दयति कहत ह । एसी दमक ओर किसी रतन म नही होती । गोमद की दमक हीरक-दयति न होकर विरोजा जसी होती द । धयान स दखन पर पता लग जाता ह।

(4) हीरा सबस अधिक कठोर खनिज ह । यदि रतन-खणड को धीर स खरोच तो कतरिम नीलम या माणिकय खड पर हलकी सी खरोच

पड जाय तो परीकषय रतन-खड असली हीरा होगा । लकिन हीरा भगर होता ह।

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65) असली हीरक खड म परविषट हआ परकाश लगभग परा का परा भीतर स लौट आता ह, पार नही जाता । आप जिस रतन-खड की. जौच कर रह ह उसक पीछ अगली रखकर सामन स अपनी अगली दखन की कोशिश कीजिय । यदि परीकषय रतन-खड असली होगा तो अगली दिखाई नही दगी, असली हीरक खड म स अगली पर पडा परकाश खणड मस पार न होकर वापस लौट जायगा ओर आपको अगली दिखाई नी दगी ।

(6) हीर स परकाश की किरण का अपवरतन (सात इनदर धनषी रगो का विखराव) अतयधिक मातरा म होता ह । यदि यह असली हीरा होगा तो उसकी चोटी वाल फलक म स भीतर ओकन पर रगो की इनदरधनषी चमक दिखाई नही दगी । रगहीन रतनो म स गोमद म ही यह पायी जाती दह ।

परनत शवत गोमद म दहरावरतन होता ह : इसलिय उसक पषठ भाग क अनीक दहर दिखाई दत ह; ओर कठोरता क परीकषण स तो गोमद काभरमदही मिट जाता ह।

अब हीर क कछ विशष सथानापननो की जीच की विधियो का सकत करत ह :-

1. सटशियम टिटनट दखन म हीर जसा होता ह, इसक परकाशीय गण भी हीर स मिलत ह । रगरहित, घनाकार, इकहरा वरतन (वरतनाक 2.4) अपवरतन हीर स लगभग चार गणा, इनदर धनषी रगो का खल भी हीर स

अधिक होता ह । घनता 5.3 होती ह । परनत कठोरता 5 ह । बस, इस

कठोरता की कमी स ही इसकी हीर स अलग पहचान हो जाती ह । लोह की सर की पतली नोक स दिय हए नमन को बीध कर दखिय । यदि सटरौशियम टिटनट होगा तो उस पर हलका-सा निशान पड जायगा-नमन

को कोई नकसान नही पहचगा ।

फिर सदरौशियम पर अलदरावायलट अथवा कष-किरण डालन पर

परतिदीपति (१०,५५९९१०९) नही दिखाई दगी । कष-किरणो म यह अपारदरशक

रहता ह । असली हीर म दोनो इसक विपरीत होग ।

2. सशलिषट हीर -- अभी तक कवल ओदयोगिक ही बन, सक

` -रतन नही । अतः जौहरी क लिय इनकी कोई समसया नही ह ।

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3. कौच क इमीटशन (अनकति) हीर -- चमक म कोच क बनाय

गय इमीटशन हीर भी असली हीर लगत ह, परनत इनका वरतनाक निमनतर

होता ह । इसीलिय रिपरकटोमीटर दवारा वरतनाक जानकर परीकषा की जाती

ह । असली रतन की कठोरता अधिक होती ह । इसलिय नमन को रती स काटकर दखा करत थ: परनत नमना यदि असली हीरा हआ तो उसको भी रती स कषति पहच सकती ह ।

इसक अतिरिकत कच का अनकत नमना छन स असली रतन की अपकषा अधिक गरम लगगा- कयोकि कच हीर की अपकषा ताप का कम वाहक ह । जिहवा स छकर परीकषा अधिक विशवसनीय होगी, कयोकि जिदवा की तवचा अधिक पतली होती ह । धयान रखिय-नमन को साफ करक चिमटी स पकडिय, कही हाथ की गरमी न पहच जाय । यह एक अतयनत उपयोगी परीकषा ह ।

कचि की अनकति म एक या अधिक बलबल हो सकत ह । सीसा-कोच म स अधिक परायशः अणडाकार ओर अलग-अलग होत ह - एक जट नही होत ।

कचि की अनकति म परायः लीक होती ह कयोकि घटक का मिशरण अधरा रह जाता ह । शरबत को जब पानी स मिलाया जाता ह तब एसी ही लीक दिखाई दती ह ।

कोच की अनकति म अपवरतन कभी नही दिखाई दता ।

+. दिक‌ (दो जड हए) -- इनक तीन वरग होत ह । (क) वासतविक दविक‌- इस वरग क दविक क शीरष (५५१) ओर आधार (१४५८) दोनो एक ही पतथर क होत ह । इनम कवल दो टकड जोडन की योजना रहती ह । य कम मिलत ह । (ख) दसर वरग क दविक म शीरष ओर आधार एक दी पतथर क होत ह, परनत उनक बीच म काच की एक सतह खब कसकर भरी होती ह, उसम अभीषट रग आ जाता ह। इनको कभी-कभी तरिक (17९) भी कह दत ह । (ग) तीसर वरग क दविक‌ क सममख पहल तो वासतविक पतथर का होता ह। आधार विभिनन रग क कोच क होत ह। यह वरग. सबस अधिक परचलित ह।

परीकषा -- लस दवारा धयान स दखन पर ही जोडन वाली रखा दिखाई दती ह । यदि दकड गलाकर नही जोड गए ह- सीमट स जोड गए ह तो अलकोहल म डालन स अलग-अलग हो जारयग । रिफरकटोमीटर

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स जोड सगमता स पकडा जाता ह । यदि हीर का शीरष शिला-सफटिक क आधार स जडा हो तो चमकदार होत हए भी उसम जवाला नही दिखाई दगी । पतथर को तिरछा करक दखिय, सयोजक तल परछायी दिखाई दगी ।

मशीनो स जौच.परख -- हीर क गणो का सही मलयाकन करन क लिय कठोरपन, आ० ग०, वरतन, अपवरतन आदि मापन क लिय रिफरकटोमीटर आदि यनतरो ओर आवरधक लसो आदि उपकरणो का भी परयोग किया जाता ह ।

एतिहासिक हीर -- यो तो समय-समय पर एस हीर मिल ह जिनक नाम उनक परमाण अथवा अनय गणो क कारण व अमर हो गय । कोई-कोई हीरा अपनी दरबलता क कारण रलान वाला भी सिदध हआ ह । कई रकतपात क कारण हए ह । भारत स परापत इतिहास-परसिदध हीरो म स कछ निमनलिखित ह-कोहनर : रीजट : ओरलोफ : ससी : शाह : नासक

: पीगोट : यजनी : होप : दि ङसडन गरीन ओर फलोरनटाइन यलो ।

(1) कोहनर -- हीरा भारत का परसिदध दीरा ह-सन‌ 130 ई० म

यह जञात था । नादिर शाह क आकरमण तक यह मगल बादशाह की समपतति

रहा । नादिर शाह क बाद महाराजा रणजीत सिह की ओर उसक बाद

बरिटिश राजमकट की शोमा ह । असली तौल 186.5 करट, अब 1061 करट

ह।

(2) पिट या रीरजट हीरा -- सन‌ 1701 ई० म गोलकणडा स लगभग

150 मील दर परापत हआ । विलियम पिट न उस समय 20400 पौड म खरीदा ।

असली तौल 410 करट, कटकर 1369 करट । अब परिस म ल बर अपोलो

गलरी म परदरशित ।

(3) आरलोफ -- सन‌ 1650 ई० म कोलर खाना स परापत महान‌

मगल को काटकर बनाया गया, मसर क एक मनदिर म सथित बरहमाजी

की मरति की आखो स चराया गया , अब रस क शाही राजदणड क ऊपरी

सिर म लगा हआ द । तौल 1५8 करट ।

(4) ससी -- सन‌ 1477 ई० म एक लटर सिपाही न चास बहादर

क शव स छीना थाः ससी स परापत कर 1(वी शती क अनत म महारानी

एजिलाबथ को बचा; 19 म जमस दवितीय न चोहदव लई को बचाः 1791

म तौल 53.75 करटः परच राजमकट क रतनो क साथ चोरी चला गया- फिर

नही मिला ।

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98 रतन-परदीप

(5) शाह -- दीरघायित अषटानीक आकार का आबदर 88.7 करट क तौल का हीरा । 1843 म रस क जार निकोलिस की समपति बना ।

(6) नासक -- आरमभ म नासपाती क आकार का 89.75 करट तौल का, अब 786 करट क तौल का तिकोना हीरा, दकषिण भारत की एक लट म अगरजो को मिला था । अब शायद वसटमिसटर डयक क वशजा क अधिकार म।

7) पीगोट -- 475 करट तौल का, 1775 म लाई पिगोट इगलड ल गया । बाद म मिसर क शासक अलीपाशा क अधिकार म-उसकी मतय क बाद नषट कर दिया गया।

(७) यजनी-नतराकरषक हीरा -- रस की सापराजञी स चलकर, नपोलियन क पास होता हआ बाद म बडौदा क महाराज की समपति बना ।

9 होप -- रगीन हीरो म सबस बडा, तौल 445 करट ; रग हरापन लिए नीला : कोलार की खानो स परापत 1८42 म परसिदध फरासीसी जौहरी टबरनियर न भारत म परापत किया ; 1792 म फच मकट क रतनो क साथचोरी हो गया । 1830 म लनदन क वयापारी होप न खरीदा जो कछ कटा हआ था । फिर अमरीका, फरास ओर अव इणलड म ह । यह हीरा अपन सवामी क लिए अशभ सिदध हआ ह ।

(10) ईसडन -- हर सब क रग का निरमल, अचछा आबदार हीरा ह । तौल 40 करट, 1743 म आगसटस न खरीदा ।

इनक अतिरिकत कलीनन महान‌ पटल ; जकर, वरगास दकषिण अफरीका का तारा आदि कितन ही हीर विशव म परसिदध हए ह ।

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नीलम (5ऽ^एशणतरारः)

विविध नाम : ससकत- नील, शौरि रतन, इनदरनील, तणगराही, नीलमणि आदि । हिनदीः नीलम । उरद-फारसी-- नीलम, याकत, कबद । अगरजी 5870011५ |

भौतिक गण -- कठोरता 9, आपकषिक गरतव 4.03, वरतनाक 1.76-1.77: दहरावरतन 0.008 दविवरणिता अति सपषटः भगर : अपकिरणन हीर की अपकषा कम होता ह । इसीलिय दमक तथा जाजवलयता हीर स कम होती ह ओर इस आधार पर शवत नीलम तथा हीर म अनतर बताया जाता ह । नीलम अलयमीनियम ओर ओकसीजन का यौगिक ह । अलप मातरा म कोबालट मिला रहन स रग नीला होता ह।

करनदम समह-- जसा हम `माणिकय' क परकरण म लिख चक ह, माणिकय ओर नीलम दोनो ही करनदम समह क रतन ह । वासतव म लाल करनदम तो `माणिकय' बन जाता ह ओर अनय रगो क रतन नीलम

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100 रतन-परदीप

कहलात ह जस शवत, हरा, रवजनी, पीला आदि । हमारा अपना मत यह ह जसा कि नाम स सपषट ह, नीलम तो उसी रतन को कहना चाहिय जो नील, आसमानी, रवजनी आदि रग का हो-रग हलका हो या गहरा हो, उसस नाम म कोई अनतर नही मानना चाहिय । शवत नीलम को पसतको म हम चाह नीलम कह ल, वह वासतव म जौहरी बाजार म शवत पखराज क नाम स परापत होगा । इसी परकार जिसको हम पीला नीलम कहत ह वह बाजार म पील पखराज क नाम स ही बिकता ह ओर रोचक बात यह ह कि वासतविक पीला पखराज जिस (7922) कहत ह उतना अचछा नही माना जाता जसा करनदम समह का पीला पखराज । (आप चाह तो खशी स उस पीला नीलम कह सकत द) । हमन जौहरी बाजार म कभी हर करनदम क रतन को किसी क) हरा नीलम कहत नही सना ह । हमारा तो विशवास ह कि हर रग का करनदम रतन पनन क नाम स बिकता ह। पाशचातय लखको की पसतको म हर नीलम को पराचय पनना (छउपतलााव‌ लभत) का नाम दिया ह । यदि सब नीलम ही हतो फिर लाल रतन को माणिकय कयो कहा जाता ह? उस भी नीलम कहना चाहिय ।

सटार माणिकय (ऽ [२) क समान सटार नीलम भी होत ह जिनह 5०" ऽग" कहत ह । जब य रतन कबीकोन काट म काट जात ह तो इनक शिखर पर छः किरणो वाल तार का परकाश दिखाई दता ह | यह तारक परकाश एसा लगता ह जस नील आकाश म परकाश किरणो का फौववारा छट रहा हो, सटार रबी कम होत ह, सटार सफायर अधिक दखन म आत ह । नीलम माणिकय स बड आकार म पाय जात ह । सन‌ 1930 म एक 1000 करट का नीलम परापत हआ था, परनत माणिकय अधिक दरलभ होन क कारण नीलम स अधिक ओर मलयवान हो तो नीलम का मलय माणिकय स त कम होता ह । इन दोनो म एक अनतर ओर ह । यदयपि दोनो रतन भगर ह ओर उनक साथ हर समय सावधानी बरतन की आवशयकता ह माणिकय नीलम स कम कठोर होता ह ओर कठोरता विभिनन परापति सथानो स परापत नीलम रतनो म विभिन होती ह । शरीलका स परापत नीलम कशमीर स परापत नीलम स अधिक कठोर होत ह । करनदम समह क सभी रतनो का आपकषिक गरतव एक-सा होता ह ओर दविवरणिता इतनी सपषट होती ह कि बिना सकषदरशक शीश क उस दखा जा सकता ह । रग का छितराव कम होता ह । इसलिय उसम दमक (९) भी कम होती द ।

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नीलम 101

कवल इसी गण क दवारा शवत पखराज (५५४८ ऽ9गभ<) ओर हीर म अनतर जाना जा सकता ह।

नीलम जवलनत, मिशरित, सटप तथा कबीकोन काट म (कबीकोन काट म अधिकतर सटार सफायर ही काट जात ह) दिखाई दत ह । शरीलका क नीलम की काट एसी होती ह कि सारा निकलन वाला परकाश, रतन क तल म नील रग क धबब स गजर जाता ह।

परापति सथान-- एसा विशवास ह कि सबस सनदर माणिकय वरमा स, तथा शरीलका स नीलम सबस उततम ओर परचर मातरा म मिलत ह । परनत वासतविक बात यह हकिन तो बरमा स परापत सभी माणिकय उततम होत ह, नही शरीलका स परापत सभी नीलम । माना तो यह जाता ह कि भारत क काशमीर परदश स परापत नीलम सबस उततम होत ह । थाइलणड म गहर रग क नीलम मिलत ह । गहर नील तथा हर नील नीलम आसदरलिया म भी पाय गय ह । शरीलका म नीलम विभिनन परकार की शिलाओ म पाय जात ह । यहा य नाडस शिला म तामड (७०१५) क साथ मिलत ह । शरीलका म रतन परदश बलान गोडा, रकवाना तथा रतनपरा ह । य परदश शरीलका क दकषिणी मधय भाग म सथित ह । रतनपरा म रतनो का बडा बाजार ह। गहरी सकीरण घाटियो म पानी क नालो क बगल म जलोद निकषप म गडढ खोद जात ह । कीचड, मिट तथा रत तक विभिन गहराइया म पहचन क वाद रतनयकत ककड जिनह “इलाम" कहत ह, मिलत ह । इनकी मोटाई 5 स 0 फिट होती ह ओर य शिलाओ पर पड रहत ह । इलाम को खोदकर निकालन क पशचात‌ उस उथली छाबडियो म रखकर पास क नाल म धोया जाता ह । फिर साफ ककड को अलग करक उसम स रतन चन लिय जात ह । इस इलाक म नीलम क अतिरिकत विभिनन रगो क कछ अनय करनदम तथा कई परकार क बहमलय पतथर ओर सोना मिलता ह । रतनो तथा सोन को बहत पानी क नालो स लोह क चोखट म लग जाल दवारा निकाला जाता ह । घाटियो की बगल म ऊचाई पर सथित ककडा स भी कभी रतन परापत किय जात ह ।

काशमीर परदश म नीलम की खान 14५40 फट की ऊचाई पर

समजाम नामक गोव क निकट ह । इसका सहयोगी खनिज तरमली ह ।

काशमीर स सरवपरथम नीलम रतनो क समबनध म एक मनोरजक कहानी ह ।

कहा जाता ह कि नीलम की खान का जञान सयोग स कछ यातरियो दवारा

परापत हआ था, जो अफगानिसतान स दिलली आए थ । रासत म एक पहाड

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102 + रतन-परदीप

की वरषा स कछ चान गिर पडी थी । उनही बिखरी चटानो म बहत स आकरषक नील रग क पतथर पड दिखाई दिए । उनहोन उतन पतथरो क बदल आवशयकतानसार नमक ल लिया । य पतथर कितन हाथा म घम-फिर ओर काफी बाद म उनको नीलम क रप म पहचाना गया । फिर तो व काफी महग दामो म बिक । जब उस समय क काशमीर नरश को यह

समाचार मिला तो उनहोन जितन भी रतन परापत हो सक, हसतगत कर लिय | बाद म सनदर रप म वह महाराजा क खजान म पहच गय ।

नीलम कवीनसलड ओर नय साउथ वलस (आसदरलिया) ओर रोडशिया

म भी मिलत ह । भारत म काशमीर क अतिरिकत दकषिण भारत म सलम जिल म नीलम परापत होत ह । रस म ओर सयकत राषटर अमरीका मभी नीलम की खान ह |

काशमीर का नीलम सरवशरषठ होता ह, यह हम बता ही चक ह । इसको मयर नीलम कहत ह, कयोकि इसका रग मोर की गरदन करगका होता ह । इसम यदि एक विनद रग भी हो तो वह समपरण नग को रगीन रखता ह । परनत यदि वह डक, पोल तथा दरगपन स रदित मिल तभी उसका नग सनदर बनता ह । फिर इसम विजातीय पदारथ चिपका होता ह ।

काशमीर का नीलम बिजली क परकाश म अपना रग नही बदलता जबकि अनय सथाना स परापत नीलम बिजली क परकाश म नवी बल रग क दिखाई दत ह ।

बरमा क नीलम म हरापन कम तथा सनदर नीला रग होता ह । विजातीय पदारथ न चिपका होन क कारण नग बनान म सविधा रहती ह ।

शरीलका का नीलम ऊपर लिख दोनो नीलम स घटिया दरज का होता ह । इसम लाल रग की आभा होती ह शयाम आभा भी बहत होती ह ।

शयाम दश क नीलम म कषण वरण की आभा तथा हरापन अधिक होता ह। रग गहरा होन क कारण यह काला दिखाई दता ह । इसम कठोरता ओर चिकनाई सबस अधिक होती ह ।

सलम (दकषिण भारत) क नीलम म हरापन सयाम क नीलम स अधिक होता ह । पीला ओर नीला रग मिशरित होता ह|

आसदरलिया क नीलम गहर नील रग क होत ह ।

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नीलम 103

रोडशिया तथा रस क नीलम घटिया लल क होत ह ।

पखराज (णा)1८ अत ८।०५५ ऽव रिा८), नीलम (ऽवग0117९) ओर

माणिकय (२५०४) परायः एक ही कषतर म पाय जात ह । यही कारण ह कि इन पतथरो क रगो म परसपर मिशरण हो जाता ह। इसीलिय सवभावतः पखराज का सफद ओर पीला रग, माणिकय का लाल तथा नीलम क नील रग होत 'हए भी परसपर एक-दसर क रग का परमाव आ जान स पखराज

म नीली या गलाबी आभा, नीलम म रकत आभा (यह रकतमखी नीलम

कहलाता ह) तथा माणिकय म नीली आमा आ जाती ह। कभी-कभी तो

एक ही पतथर म तीनो रग पथक‌-पथक‌ दिखाई दत र, किनत समरण र

कि इतनी समानता होन पर भी इन तीनो पतथरो की कठोरता म विभिननता

होती ह । पखराज की अपकषा माणिकय, ओर माणिकय की अपकषा नीलम

अधिक कठोर होत ह ।

गहर नील रग क नीलम दरलभ होन क कारण अतयनत मलयवान

होत ह । नारगी रग क सफायर भी होत ह जो सरय क समान चमकील

लगत ह । उनम परण शोभा तब दही आती ह जब उनह हीरो क साथ जडा

जाय । हर, सनहल ओर वजनी रग क सफायर भरमवश पनना, पखराज ओर

एमीथिसट मान लिए जात ह, यदयपि व उनस बिलकल भिनन होत ह । वासतव

म हरा सफायर न तो पनना क समान होता ह, न हर रग क परीडीट या

टरमलीन स मिलता-जलता होता द । वह गहर रग का होता ह ओर अचछी

कठोरता होन क कारण उस पर ओखा को चौधिया दन वाली पालिश की

जा सकती ह । उसका एक अपना ही विशष शानदार वयकतितव होता ह

ओर वह जब आकरषक काट क रप म हो ओर हीरो क साथ जडा हो तो

उसकी छटा दखन योगय होती द । वजनी सफायर जब निरमल हो ओर

बदिया काट क रप म हो तो एमीथिसट उसक समकष ममना-सा लगता ह।

इसम सनदह नही कि सनहला सफायर (७०५०१ ऽबगर४"९) पखराज स

मिलता-जलता होता ह, परनत उसम अधिक कठोरता क कारण पालिश

बहत सनदर होती ह ओर एस पालिश रतन क समकष पीला पखराज (1079)

फीका-फीका-सा लगता ह ।

नीलम पारदरशक स लकर पारभासक ओर अपारदरशक तक होत

ह ।

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104 रतन-परदीप

जच ओर परख

नीलम क दोष-- हरित आभायकत, डोरा, दघक, चीर, दरगा, जाला, गडढा, पोल, गम, भलापन, डक (५१००५) |

शरषठ नीलम वह ह जिसम सात विशषताय हो-(1) दसर दरवय की परछायी न लकर अपनी चमक स उसको चमकान वाला हो अथवा एक दही रग का दिखाई द; 2) दडक वाला हो; 3) चिकना हो; (4) पारदरशक चमक का होः 6) जिसका शरीर गठा हआ होः (6) छन स मलायम लग ओर (7) जिसक भीतर स किरण फटती परतीत होती हो ।

परणिमा की रातरि म जव खिली हई चनदरमा की विमल जयोतसना फली हई हो, तब एक गौरवरण की सनदर सतरी क हाथ म सवचछ दध स भरा कटोरा द दिया जाय ओर उस पातर पर नीलम का परकाश डाला जाय । यदि नीलम अपन परकाश स दध, दध क पातर ओर सनदरी पर ततकाल नीली आमा छा द तो नीलम उततम जाति का समञयना चाहिय । उततम नीलम की एक अनय विशषता यह ह कि तिनका उसक समीप लान पर उसस चिपक जाता ह ।

नकली नीलम-- माणिकय क समान सशलिषट नीलम, नील रग की कटकिज मणि तथा कोच की अनकतिया बची जाती ह । माणिकय क परकरण म जो असली-नकली माणिकय की पहचान क तरीक दिय ह वही यहो भी परयकत करन चाहिय । कतरिम नीलममरगोकी मडी हई (वकर) पटिटकाय होती ह । असली नीलम म य धारियो सीधी होती ह । असली नकली की पहवान-- नीलम क सथान पर लोग सशलिषट नीलम, कोच का बना अनकत नीलम ओर नील रग की सशलिषट कटकिज मणि को चलान का यतन करत ह ।

जोच किय जान वाल नमन की भीतरी बनावट को दखकर नीलम क सशलिषट होन का रहसय खल जाता ह । मोनोवरोमो नफथलीन दरव म डबोकर उसक पीछ सफद कागज या कपडा रखकर खाली ओख स ही दखिए -(1) सशलिषट म रगा की वकर पदिटया दिखाई दगी । असली म य सीधी हागी या षडमजीय परिजम क 1.५5 क समानानतर । (2) असली परकति

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नीलम 105

स परापत नीलम म कछ खनिज पदारथ भीतर धिर रह जात ह जो सथान भद क अनसार भिनन-मिन वसत होती ह । लका क नीलम म पर सरीखी सकषम सफटिक अथवा दरव वसत होती ह ओर इन पर पडा परतिकषिपत परकाश एसा दिखाई दता ह कि मानो किसी अगठ का निशान हो । कभी-कभी भीतर घिरी यह वसत गस का बलबला, दरव तथा खनिजो क सफटिक इस परकार तरि-रप होती ह |

एतिहासिक नीलम-- समभवतः बड-बड जञात नीलम काशमीर की खानो स ही मिल र । रीवा राजय क खजान म जो नीलम सन‌ 1827 म था वह सबस बडा था ओर वजन म %1 करट था । जानि डस पलाटीन क सगरह म दो उततम नीलम ह-इनम स एक रासपली नाम का बहत ही सनदर ओर दोष रहित नीलम 122 करट का ह । दसरा नीलम 2 इच लमबा ओर 1.50 इच चौडा ह । डवनशायर क इयक क पास एक सनदर जवलनत

काट का नीलम 100 करट वजन का ह। बरिटिश मयजियम क खनिज

विभाग म सोन की पिन पर रखी भगवान बदध की मरति एक ही नीलम को

काटकर बनाई गई द । सवस बडा लगभग 132 करट तौल का भर रग

का नीलम परिस क खनिज सगरहालय म ह । यह लकडी बचन वाल किसी

वयकति को बगाल म मिला था। वह कभी सकोच की रानी मरी क पति

डारनल क अधिकार म रहा था । एक हदय क आकार का नीलम अब बरिटिश

शाही ताज म ह। यह सन‌ 157 ई० का बताया जाता ह। दो नीलम

ताबीज क रप म एक पादरी न नपोलियन को भट किय थ । य फिर लई

नपोलियन ततीय क अधिकार म चल गय थ।

जलनील ओर इनदरजाल (पराचीन मानयता)-- पराचीन भारतीय गरनथो

क अनसार नीलम दो परकार का होता ह-जलनीय ओर इनदरनील । भिस

नीलम क भीतर सफदी हो ओर चारो ओर नीलिमा हो, लघ हो, वह जलनील

कहलाता द । जिस नीलम क भीतर शयाम आमा हो, बाहर नीलिमा हो,

भारी हो, वह इनदरनीलकहलाता ह । वासतव म इसका रग नीला ओर लाल

मिला हआ अरथात‌ बजनी होता ह ।

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गोमद (71२0)

` 1 अनक मनोरजक रग : कया सब ही जिरकान | को गोमद कहना उचित ह : शरषठ गोमद : रासायनिक

|. निकटतमः रतन जिरकान‌ : जिरकान क तीन वरग परापति सथात : सबस

विविध नाम : ससकत -गोमद, गोमदक, पिग सफटिक, राहरतन : हिनदी-गोमद ; उरद-फारसी-जरकनिया या जागरगन : अरबी-जारकन (सिदरी) अगरजी +< ।

भौतिक गण-- कठोरता 75 तक । आपकषिक गरतव 4.65 स 471 तक । पारदरशक, पारभासक तथा अपारदरशक भी । हीरक दयति । वरतनाक 1.93 स 1.98, दहरावरतन 0.06. अपकिरणन 0.048 (काफी अधिक) । जिरकान-- एक एसा आकरषक ओर मनोरजक रतनीय पतथर र जो लगमग सभी मोहक रगो म परापत होता ह । हमारा एसा मत ह कि हर रग क जिरकान को गोमद कहना उचित न होगा । गोमद उसी जिरकान को कहना चाहिए जो मध, गोमतर अथवा अगार क समान रग का हो। अपन मत की पषटि क लिय शरी राजरप टक क रतन परकाश स साभार निमनलिखित शलोक दत ह-

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गोमद 107

ससवचछ गोजलचछाय सवचछ सनिगध सम गरः ।

निरमल मसण दीपत गोमद शभमषटधा । ।

विचछाय लघ रकषाग चिपिट पटलानवितम‌ ।

निषपरभ पीतकाचाभ गोमद न शभावहम‌ । ।

अरथात‌ -- जो दर स सवचछ गोमतर क रगवाला परतीत हो, पारदरशी हो, सनिगध वरण का हो, समगातर हो, अरथात ऊचा-नीचा ओर टढा-मदा न हो । वजनी दडकदार हो, जिसम परत न हो, जो सपरश म कोमल हो ओर चमकदार हो । इस परकार आठ गणो वाला गोमद उततम होता ह । दर स आ न दता हो दडकदार न हो, रखापन लिय हए हो, चिपट अग वाला दबा हआ परतीत हो, परदार हो, चमकविहीन अरथात‌ जो वरण को परकाशित

करन वाली चमक वाला न हो ओर पील कच क टकड जसा दिखाई द, वह गोमद उततम नही होता ।

आजकल जस हर रग क सफायर को नीलम कहन का परचलन

हो गया द, वस ही हर रग क जिरकान को गोमद कहत ह । जो गोमद

राहरतन माना जाता ह वही रतन ह जिसका वरणन ओर उसकी शरषठता ओर

दोष हमन ऊपर शलोक म दिए ह।

जसा पहल कह चक ह, जिरकान अनक सनदर रगो म पाया जाता

ह ओर धीर-धीर आमषणो म एक परतिषठित सथान परापत करता जा रहा

ह । रासायनिक दषटि स यह जिरकोनियम का सिलीकट ह ओर इसक मणिम

चतपरवी परिजम जस होत ह जिनका अनत चार पारशवी सतपो क रप म होता

ह । जब य पानी स धिस हए ककडा क रप म होत ह तो इनक पाशव मिट

जात ह । य रतनीय पतथर चतषकोणीय समह क अनतरगत आत द । य

सामानयतया सकषतरीय होत ह ओर इनम चार गणी समति होती ह । जिरकान

गोल या कोणीय ढलो तथा कण म भी मिलता ह । इसकी भाजन रखाए

जो सषतरीय या सतपीय होती ह, अपरण ह । इसम शखीय भग होता ह ।

जिरकान की कठोरता एक-एक रतन म अलग-अलग होती ह पर 7 स

अधिक नही होती ।

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108 रतन-परदीप

जिरकान पारदरशक.पारभासक तथा अपारदरशक सभी तरह क होत ह । इसम हीरक दयति पाई जाती ह । तज दहर वरतन क कारण जिरकान को विभिनन दिशाओ स दखन पर पषठ भाग क अनीक सपषटतया दहर दिखाई दत ह । जिरकान सामानयतया एकाकषीय तथा धनातमक परकाशीय

गणो का परदरशन करत ह ओर दवि-अकषीय होत ह । जिरकान क अनक रगो म मखय रग होत ह- हरा, पीला, नारगी, भरा । जो रतनीय पतथर लाल या लाल भर होत ह व हाईपिनथिस या जनसिथ कहलात ह जिनम पीलापन होता ह व जारगन कह जात ह । रग विहीन जिरकान कम होत ह ओर जो बाजार म दिखाई दत ह व वासतव म पील या भर रतनीय पतथर होत ह । जिनका ताप दकर रग उतार दिया जाता ह। इन शवत जिरकानो म बडी गजब की दमक (५) होती ह ओर चमक दमक म यदि कोई रतनीय पतथर हीर क निकट पहचता ह तो वह जिरकान ही ह | यदयपि कई परकार क जिरकान धधल ओर अपारदरशक होत ह तब भी उनम दमक अवशय दिखाई दती ह । अपन विभिन रगो क कारण जिरकान कई परकार क रतनीय पतथर स मिलता-जलता ह, परनत अपन आपकषिक घनतव दवारा व उनस परथक किए जा सकत ह । यह काफी अधिक होती ह 465 स 421 तक । जस जिरकान क विभिनन पतथरो का आपकषिक गरतव भिनन-मिनन होता ह वस ही जिरकान क विभिनन पतथरो का वरतनाक भी अलग-अलग होता ह । कछ म एकहरावरतन होता ह ओर कछ म दहरावरतन । दविवरणिता कवल नील रग क रतनीय पतथर म पाई जाती ह।

जिरकान क रीय पतथरो क गण एक-दसर स इतन भिनन होत ह कि इनको तीन वरगो म विमाजित करन की आवशयकता परतीत हई (1) उचच वरग, (2) मधय वरग, (3) निमन वरग । तीनो वरगो क जिरकान की कठोरता ¢ आ० ग०, परकाशीय विशषताए तथा ताप वयवहार आदि गण अलग-अलग

(५) उचच वरग -- यह जिरकान ही सामानयतया परसिदध गोमद ह । इसका रवा चतषकोण होता ह । ऊपर दिए हए भौतिक गण इसी वरग क रतन ह । इसकी दविवरणिता इतनी अधिक होती ह कि आख स दिखाई द जाती ह। इसम दो रग, नीला ओर शवत दिखाई दत ह । सरलता स चिरता नही ह । अपकिरणन भी इसका हीर स थोडा कम 0.38 ह । इसलिए इसम अपरव दमक होती ह ।

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गोमद 109

(2) मधयम वरग -- यह निमन ओर उचच वरगो क बीच काह ।

यह गहर लाल रग ओर भरापन लिए हए लाल रग का होता ह। गरम करन पर दहर वरतन, वरतनाक तथा दङक म कछ परिवरतन होकर यह उचच वरग का बन जाता ह।

(3) निमन वरग -- इस का रप रव का रप नी होता । यह हर रग की आइयो म मिलता ह । भर ओर नारगी रग म भी पाया जाता ह। इसका वरतनाक कम ह । दविवरणिता भी बहत कम ह ।

जिरकान का अनोखा गण -- इस रतन का अनोखा गण यह ह कि यह कभी-कभी सपकटरोसकोप यनतर म शोषण पटिटरय बतलाता ह ।

काट- जिरकान तरह-तरह की काट म काट जात ह, परनत जवलनत काट अधिक अपनाई जाती ह ।

परापति सथान-- सबस उततम जिरकान शरीलका म परापत होत ह जौ य अनय रतनीय पतथरो क साथ पाए जात ह । य सनदर नील या हर रग क होत ह । शरीलका म आरमभ म उनह हीरा समञचा गया था ओर वहा अब भी इनह मतरा हीर का नाम दिया जाता ह, कयोकि मतरा नामक सथान स परापत होत ह । य रतनीय पतथर विशषकर लाल रग का जिरकान

आसपरलिया म नय साउथ वलस क मडगी सथान स, फरास ओर रस स परापत

होत ह । भारत म भी जिरकान पाया जाता ह जो नीला ओर नीला हरा

डोता ह। भारत क जिरकान क परापति क सथान ह काशमीर, कलल.

शिमला, विहार परदश क हजारी बाग क निकट, तरावनकोर, कोयमबटर ।

थाइलणड स किसी समय नील ओर शवत जिरकान आया करत थ । व वह

की नीलम की खानो स परापत होत ह । एसा कहा जाता दह कि सन‌ 1921

क बाद य रतनीय पतथर नही निकलत । जो वहौ स निरयत किए जात ह,

व वासतव म कमबोडिया की खानो स परापत होत ह । मडागासकर म भी

जिरकान परापत होत ह । पील ओर भर जिरकान दकषिण अफरीका की किमबरली

खानो म हीर क साथ मिलत ह । रतन परकाश क अनसार बरमा म मगोक

नामक सथान म भी जिरकान पाया जाता ह । इसम पानी ओर लोच अधिक

होता ह ओर शयाम आमा नयन मातरा म होती ह । य का माल सरवोततम

माना जाता द, परनत मिलता बहत कम ह ।

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1:0 रतन-परदीप

जौच ओर परख

शवत गोमद रग रहित होता ह ओर दमक म हीर की बराबरी करता ह । इसलिए अनमवहीन जौहरी को भी इसक हीरा होन का भरम हो जाता ह। हीर की अगठी क रप म यह धोखा बहत चलता ह ।

इसकी सपषट पहचान यह ह कि इसम दहरावरतन होता ह ओर इस कारण पिछल अनीको क किनार सामन स दखन पर दहर दिखाई

दत ह । हीर म एसा नी होता ।

गोमद की बराबरी का दसरा रतन-पतथर सफीनी ह-परनत उसकी कठोरता बहत ही कम 5.5 हः कठोरता की तलना करन पर दोनो को अलग-अलग जाना जा सकता ह ।

कभी अनाकरषक रग क निकषट हीर क टकड क पिछल तल पर नील रग का यह बनावटी लोल बजीन, सपरिट अथवा कवल मातर गरम

पानी म पडत ही घल जाता ह। यो इसका आपकषिक गरतव हीर स बहत अधिक होता ही ह । आ० ग° की तलना स इसकी पहचान की जा सकती ह।

सबस बडा जिरकान -- अभी तक सबस अधिक भारी रतन जो

मिला ह, उसका वजन 25 पाउणड था ।

जिरकान क दोष --रखा छाला : अगरकी ; गडढा, चीरः धवा: दरगा ; लाल-काल-सफद छीट वालाः गम ; रशा ; जाला ।

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ता

वदरय-लहसनिया (@^1*5 ए)

विविध नाम : ससकत वदरय, विडालाकष, अभररोह, राषटक, मघखराकर, बालसरय, विदर रतन । हिनदी-लहसनिया । उरद-फारसी- लहसनिया । अगरजी-८५।४ ८ या (@ण०#०१८

भौतिक गण-कठोरता 8.50 आपकषिक गरतव 368 स 378 तक । वरतनाक 1.750 स 1.757 तकः दहरावरतन 0010; अपकिरणन 0015 । रचना घनातमक ह |

लहसनिया या वदरय का, जिस अगरजी म कराइसोबरील (१४०४५) ) कहत दह, एक विभद ह । हम वदरय पील रग का रतन ह। अधकार म

. लहसनिया क विभिन रग जगमगात ह । यह तनतमय पतथर का काटकर बनाया जाता ह । हम वदरय बरिलियम का एलयमीनट ह । हम वदरय का रग हलका पीला, भरा तथा हरा होता ह । इसक निरदोष रतनीय पतथर ऊपरी

वरमा की मागोक खानो तथा पशचिम अफरीका म घाना राजय म ह । इसका

हलका पीलापन लिए हरा रग फरस आकसाङड क कारण ह । इस परकार

क रतनौ को जौहरियो न कराइसोलाइट का नाम दिया ह। लहसनिया

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112 - रतन-परदीप

(विडालाकष) का रग अधिकतर भरापन लिय होता ह । विडालाकष को सदा एन कवीकन काट का रप दिया जाता ह । हम वदरय हीर ओर करनदम क बाद सबस अधिक कठोर रतन होता ह । उसकी काडरित दयति होती ह | विडालाकष म रशम जसी चमक पायी जाती ह। हम वदरय पारदरशक तथा पारभासक होता ह ।

विडालाकष म विभिनन रगो का परदरशन अधकार म बडा कौतक-परण

होता ह । रतन म जो चमक होती ह वह बिलली की आखो क समान होती ह । इसम रशम क समान दयति तथा हरा रग होता ह । कबाकन काट म काट जान पर परकाश एक रखा या पटटी म कदरित होता दिखाई दता ह ओर व रतन की सतह पर फलता ह । घमान पर परकाश की रखा, जो एक सतर क समान लगती ह, बदल जाती ह । इसी परकार रखा क चलन फिरन स बिलली की ओखा की याद आती ह । इस चलती फिरती सतर की रखा क कारण इस रतन का नाम सतरमणि भी पडा ह। यह परभाव रतन कौ तनतमय बनावट क कारण होता ह । बिडालाकष रतन अब बहत लोकपरिय हो गया ह । इसका कारण इसका आकरषक रग, कौतकता तथा टिकाऊपन ह ।

विडालाकष रतन अधिकतर पगमाङट, नाइस तथा अभरकमय परतवार शिलाओ म पाय जात ह । नालो की तलहटी म भी पाय जात ह । इसक मखय परापति सथान ह -शरीलका, बराजील तथा चीन । बरमा का मोगोक खान का विडालाकष रतन उततम माना जाता ह । तरिवनदरम‌ (दकषिण भारत) म भी यह रतन मिलता ह । बरिटिश मयजियम म कराइसोलाइट क साथ 355 मिलीमीटर लमबा तथा ॐ मिलीमीटर चौडा एक सनदर विडालाकष रखा ह । `

जोच ओर परख

जिस विडालाकष (लहसनिया) का रग पीली आमायकत हो ओर सफद सत (डोरा-सा) हो, वह उततम माना जाता ह | यह सत जितना चमकदार हो ओर लकीर क समान सीधा हो उतना ही रतन उततम होता ह । यदि सत लकीर क समान न होकर फला हआ हो तो वह चद‌दर कहलाता ह । जिस लहसनिया म‌ सत नही होता उस कटकतक (0750111९) कहत ह ।

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वदरय-लहसनिया 113

पराचीन मानयताओ क अनसार जो लहसनिया काली ओर सफद मिशरित आई लिय हो, समगातर हो, सवचछ हो, दडकदार हो, खिलरवौ हो ओर शरदकालीन मघ क समान सफद दपटट म गरभित हो, अरथात‌ जिसम

दो किनार सपषट दिखाई दन वाल गल म पड दपटट क समान सीधी, पर

गोलाई क रख सफद रग की डोरी दिखाई द, वह शभ उततम माना जाता

ह।

दोष- धवबा, गडढा, चीर, अभरीकी जाला, छीटा, सननपन ।

जाति भद-(1) कनक खत- सरवोततम खत ह । इसका रग ठीक

बिलली की. ओख क समान होता ह । 2 धपर खत-धरय क रग का सफद

सत वाला होता ह । 3) कषण खत-शयाम आभायकत सफद सत वाला होता

ह।

रग-- पीला आभायकत सफद, शयाम आभायकत, इसम नील ओर

हर रग की आभा भी अलप मातरा म पायी जाती ह।

दरियाई लहसनिया (118०५ ९,९)-- इसका रग पीत मिशरित शयाम

होता ह ओर इस ही रग म गहर रग की सत होती ह । वयाघर क नतर क

समान रप होता ह ।

सफटिक वरग का लहसनिया-- यह भी परकाशीय परभाव म हम

वदरय क विभद विडालाकष क समान होता ह, परनत यह बहत नरम पतथर

होता ह । यह अधिकतर एनकबोमोन काटा जाता ह । इसक बहत स रतनीय

पतथरो की कतरिम रगाई होती द, परनत व रग सथायी नही होत । इसका

परकत रग हरी आभा या हरी भरी आमा वाला होता ह । ससत आभषण

क अतिरिकत इनका उपयोग छतरी की मढ बनान म होता ह । इसक मखय

परापति सथान भारत ओर शरीलका ह।

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अलपमोली रतन (क) उपल (0)

उपल को अगरजी म ओपल (029) कहत ह । सफद उपल को दधिया पतथर भी कहत ह । इसक भौतिक गण निमनलिखित ह

कठोरता 6 ; आपकषिक गरतव 2.15 : वरतनाक 1.45 । उपल एक अतयनत सनदर रतन-- उपल एक अतयनत सनदर रतनीय

पतथर ह ओर अनय रतनीय पतथरो स हर परकार स भिनन ह । कतरिम या सशलिषट उपल बनाना कठिन माना जाता ह | इसक सदा परिवरतनशील रग इसको मलयवान रतनीय पतथरो की शरणी म ल आत ह, परनत यह समरण रखिय कि सभी उपल रतन मलयवान नही होत । मनोरम तथा नतररजक काल उपल, जो अतयनत दरलभ रतन ह, अपन सौनदरय म तथा मलय म किसी भी मलयवान रतन का मकाबला कर सकत ह । इसक विपरीत सफद उपल, जोकि बिलकल दरम नही ह, अलपमोली रतनौ की गणना म आत द । परनत सफद उपल जिनम रगो कौ परिवरतनशीलता ओर चमक-दमक होती ह, मलयवान बन जात ह ।

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अलपमोली रतन | 115

उपल की अनोखी बनावट-- उपल क रासायनिक सघटन म सिलीका तततव परधान ह । इसम % स 10% तक जल भी होता ह । उपल म मटलिक ओकसाइड वरतमान होन क कारण अशदधियो की भी भरमार होती ह, परनत उसम जो अपरव रगो का करिशमा होता ह वह उसकी बनावट क कारण ह । उपल सफटिकीय (८५७1०१५) रप म नही होता, परनत अपन मौलिक रप म सिलीका जली क समान लिबलिवा ढर होता ह जो ठडा हो जान क बाद कठोर बनता ह तो उसम दरार पड जाती ह । य बारीक दरार बाद म उपल पदारथ स ही भर जाती ह जिसम विभिनन मातरा म जल भी होता ह । इस परकार कई वरतनाक लिय हए कठोर या ठोस ढर तयार हो जात ह ओर उनक रगो का खल ओर उनकी चमक को अगरजी म 00००७०९१८९' कहत ह । जितनी अधिक बारीक ओर नियमित रप स बनी दरार होती ह । उतना ही अधिक सनदर रगीन परकाशीय इसका परभाव होता ह । कछ उपल रतनो की दरारो म हवा ही होती ह, कोई ठोस पदारथ नही होता । एस रतनो म रगो की चमक उस समय तक नही दिखाई दती जब तक व पानी म न डबाय जाय । इस परकार क उपल को हाइदधोफन

(11#01001816) कहत ह ।

उपल की किसम -- मलयवान‌ उपल दो परकार क होत ह-काल ओर सफद । दोनो तरह क रतनीय पतथरो म रगो का सनदर परदरशन होता ह, परनत जिनम लाल दीपति (अलक) की बहतायत होती ह उनकी अधिक कदर होती ह ओर व अधिक मलयवान‌ होत ह, कछ काल उपल बिलकल अपारदरशक होत ह ओर उनम बहत स सलटी ओर नील रग क धबब होत ह । जो शदध रतनीय पतथर होत ह व अधिकतर रगविहीन होत ह । जो पील दधिया किसम क पतथर होत ह उनको बिलकल सामानय समञञा जाता

ह ओर अनाकरषक होन क कारण उनकी माग भी बहत कम ह । वयावसायिक

दषटि स परथम शरणी म व उपल रख जात ह जिनम स नारगी रग की

दमक निकलती र । जो हर रग क उपल होत ह ओर जिनम विभिनन रगा

की लहर सी बनती हो, व मलय की दषटि स दसरी शरणी म आत ह ओर

नील रग क सबस अधिक ससत होत ह । सलटी ओर बिना चमक वाल

सफद तो किसी काम क नही मान जात ।

एक पारदरशक परकार का उपल भी होता ह जिसम चमक-दमक

नही होती | उसको फायर उपल (1९ 079) का नाम दिया गया ह | यह

पील स लकर पील-लाल रग का होता ह ओर जवलनत काट म काटकर

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116 रतन-परदीप

इसको आभषणो म अनय रतनो क मधय म रख जान पर यह अचछी शोभा ` दता ह ।

मकसिको क जलीय उपल (५० 079) अलकती हई रगीन पानी

की बदो क समान होत ह । व अतयनत सनदर होत ह ओर उनम एक ही रतन म अनको रगो का बडा मनमोहक परदरशन होता ह । परनत दामो म व मलयवान‌ काल ओर सफद रतनो की समानता नही कर पात ।

इगलणड क एक मानय रतन विशषजञ मब विलसन न अपनी पसतक "6७, म उपल का जिकर करत हय लिखा ह कि उपल लगभग सोलह परकार क होत ह, परनत उनम कवल एक ही मलयवान रतनो की शरणी म आत ह । शष कछ एस होत ह जिनह आकरषक कहा जा सकता ह । रतन कोटि क उपल म सबस अधिक मलयवान काल ओर सफद उपल (।०५६ ०१० ५५८ ०5) होत ह, परनत वासतव म व न तो बिलकल काल होत ह न बिलकल सफद । सफद उपल म लाल, नील, हर, वजनी, पील रगो का कौतक दिखाई दता ह । काल उपल म भी यही आकरषण होता ह, परनतः सफद स कम । काला उपल सरवपरथम 1%05 म परापत हआ था ओर वह एकमातर आसदरलिया म नय साउथ वलस ओर कवीनसलणड की सीमा पर सथित लाइटनिग बरिज की खानो म परापत होता ह । यह उपल परायः काला, सलटी, मयर रग का ओर नील रग का होता ह ओर इसम पनन जस हर रग क अश ओर लाल, पील, तथा वजनी रग की लक होती ह ।

नीला या मयरी उपल यातो बिलकल नीला होता ह या उसम नीला, पीला ओर हरा रग मिला हआ होता ह । हर उपल म हर रग की भवर डालती हह लहर-सी होती ह । एक उपल एसा होता ह जिस ११५०१००८ 009। कहत ह । उसको किसी एक रग का नही कहा जा सकता, कयोकि इसम लाल-काल पट पर अनय रगो की बहार दिखाई दती ह । इसको हाथ मल तो कभी एक रग चमकता ह कमी दसरा । एक जाद‌ का सा तमाशा करता ह यह रतन । एक उपल होता ह हाइदधोफन (१५,००००५) जो उदास लगता हआ, मरआय मख का-सा रतन होता ह । यदि उस पानी म डाल दिया जाय तो विवश होकर रगो का परदरशन करता ह । हाइयालाइट (1115) उपल रग विहीन ओर पारदरशक होता ह, परनत लगता ह काच क समान । यह उपल परिवार का सबस अधिक अनाकरषक सदसय ह ।

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अलपमोली रतन 117

उपल परिवार का फायर उपल ("० 001) इस योगय ह कि उस जवलनत काट का रप दिया जा सकता ह । यह मकसिको म परापत होता ह । यह लाल या नारगी सा.या पील रग का होता ह। किसी किसी रतन म तीनो रग एक साथ होत ह |

अलपमोली उपल रतनो म कछ आकरषक जातिया होती ह । फरज उपल (215८ 079) नाजक पतती क हर रग क समान रग का होता ह। कविनजाइट (0५१४८ 009) गलाबी स लाल रग तक होता ह । जिरारसोल उपल (७०७० 079) म नीली सफद चमक होती ह । दधिया उपल (१॥: 0एग) कई सफद रगो म परापत होत ह, जस सफद म नीली आमा, सफद म पीली आभा, सफद म हरी आमा आदि । व बिलकल दधिया रग क भी होत ह ।

पलिनी न कहा ह कि उपल एक एसा सनदर रतन ह जिसम माणिकय की जीवित दमक, एमीथिसट की वजनी आभा ओर पनन का समदर-सा हरा रग एक साथ मिलकर मायावी रप म चमकत हए दिखाई दत ह ।

परनत सावधान ! उपल एक कठोर रतनीय पतथर नही ह । उसको सरलता स कषति पहच सकती ह ओर उस पर खरोच भी लग सकती ह । इसक अतिरिकत उसक सथिदर (०५०४५) होन क कारण उसको किसी तरल पदारथ म नही डबोना चाहिय । ताप स उपल क रग पर बरा परभाव पडता ह । उपल क सौनदरय को परण निखार दन क लिए उस एन कबाकन काट का रप दिया जाता ह, परनत जसा हम ऊपर कह चक ह फायर उपल को जवलनत काट का रप दिया जाता ह ।

परापति सथान-- उपल की सबस परानी खान हगरी म ह ओर रोम निवासी हगरी पर आकरषित हए थ । परनत हगरी की खाना का उतपादन अब समापत-सा हो गया ह । इस क उतपादन कनदर आसदरलिया म नय साउथ वलस ओर विवनसलणड ह । आसटलिया म इस रतन की परापति सयोगवश हई थी । कहा जाता ह कि सन‌ 1889 म जब एक शिकारी एक कगार क

पीछ दौड रहा था तो उसको यह मनोरजक रलतनीय पतथर दिखाई दिया ।

बाद म इस रतन की कितनी ही खान मिल गयी । मखय खान (शापा

1२:०९ ओर ५१८ 018 म ह ओर इनदी स अधिकाश उपल परापत होत ह ।

हगरी की खानो स अब निकलत भी ह तो छोट रतनीय पतथर ही परापत

. होत ह । कवीनसलणड ओर नय‌ साउथ वलस म रतनीय पतथर रतील पतथरो

(७००५ 5७०८5) म चटटानो या लकडी की दरारो म मिलत ह । एस भी

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11 रतन-परदीप

रतनीय पतथर परापत होत ह जिनम एक ही पतथर म कई रग की उपल की

परत होती ह । इनको "उपल अगट' (00१ ^&०।९) कहत ह । कछ जसपर

रग क उपल भी मिलत ह जिनद जसपर उपल कहत ह । आसदरलिया क

उपल रतनीय पतथरो का सबस बडा खरीददार चीन ह।

हनदरास नामक दश म तथा सयकत राषटर अमरीका क नय जरसी

राजय म भी रतन कोटि क उपल परापत होत ह । फायर उपल कवल भकसिको म परापत होता ह । भकसिको क कछ राजयो म विशषकर कयरटारो (0४९०) तथा जिमापन म विभिनन रगो क उपल परापत होत ह । वहा क अनय परापति सथान रह-हिडागलो, जाकाटकास इरागोस ओर चिहआहमा । कछ सनदर काल उपल स० रा० अमरिका क नवादा राजय की हबोलद काउटी म होत

ह|

, कछ परसिदध उपल-- आधनिक काल का सबस अधिक सनदर ओर उचच कोटि का उपल सापराजञी जोसिफीन क पास था। उसम स निकलती अनको लाल रग की अलका क अपरव परदरशन क कारण उसका नाम बरनिग ओफ दाय (छणयणण६ ० 7५) रखा गया था । वियना क सगरह म सबस बडा परनत सदोष उपल ह जिसका वजन सतरह आउनस ह ओर आदमी कौ मटढी क बराबर ह। स० रा० अमरीका क नवादा राजय म सन‌ 1919 म एक बडा सा काला उपल मिला था जिसका वजन 18 आउनस था ओर उसका मलय पचचीस हजार पाउणड था । यह काटा नही गया ओर अपन मौलिक रप म स० रा० अमरीका क नशनल मयजियम म सगरहीत कर लिया गया ।

ए सकत कच -- यह भी सिलीका का एक रप ह जो उपल स इस क) म मिलता ह कि यह भी अमणिभीय (९०१.८५७०।१०) तथा परकाशीय गणा म समवरतिक ह । इसम उपल क समान जल बिलकल नही होता ।

सकत कच अधिकतर लीबिया क मरसथल स परापत होता ह । यह फीक हर-पील रग का होता ह । यह मघायित या निरमल भी होता र। सबस बडा सकत कच 16 पाउणड वजन का था। काट जान पर यह हलक रग क ओलीवीन जसा लगता ह । इसका वरतनाक कम होन क कारण (जो 14624 ह) इसम ओलीवीन जसी चमक नही होती ।

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अलपमोली रतन 119

गहर भर व काल सकत कच आसदरलिया, ईसट ङडीज, मलशिया,

इणडोनशिया म पाय गय ह । इनह टकटाइट कहत ह । लोगो का मत ह कि इनका उदगम सथान आकाश स गिरी उलकाय द ।

सपाइनल (कल)

अलपमोली परनत रग क कारण काफी दाम का भी: मन मोहक रग : विभद : सपाइनल ओर माणिकय म अनतर : परापति सथान : एतिहासिक ओर परसिदध सपाइनल : राजमकट की शोभा कतरिम सपाइनल ।

विविध नाम -- सपाइनल को को हिनदी म कटकिज कहत ह । सपाइनल रबी, लालडी ओर सरयमणि भी कहत ह । कछ जौहरी इस कवल नरम क नाम स पकारत ह ।

भौतिक गण -- कठोरता & आपकषिक घनतव 340, वरतनाक 1.72 । यह मगनीशियम ओर अलमनियम का दहरा आकसाङड ह । यह खनिज मणिभो क रप म पाया जाता ह जो घनसमह (८५७१८ ७5५) ) क अनतरगत आता ह । यह आठ पहल ठोस आकतियो (०५५५।५५।५) या यगम आठ पहल

ठोस आकतियो (1५१८५ ०५५।८५१५) म पाया जाता ह । र

विभिनन परकार क सपाइनल - सपाइनल क जो मणिभ आभषण म इसतमाल किय जात ह व अरदध मलयवान रपाइनल कहलात ह । व अनक रगो म पाय जात ह । कहा तो यह जाता ह कि शायद ही कोई रग हो

जो इस रतन म न मिल । जो गलाबी रग क सपाङगल होत ह व बलासरबी कहलात ह । इनकी बहत माग रहती ह ओर इसलिए य अधिक मलय क

होत ह । सपाइनल क अनय रग भी काफी आकरषक होत ह ओर उनको

निमनलिखित नाम दिय गय ह :-

(1) रबीसपाइनल (लाली) (७0०५ २) -- य माणिकय क समान

लाल रग क रतनीय पतथर होत ह । (2) एलमणडाइन सपाङनल (८११६।१५।१५

अण) य पील रग क होत ह । (3) पलियोनसटस ओर सीलोनाइट

(ि८नाव७।८७ कत (कनमापञत य गहर हर रग स काल रग तक होत ह ।

५) सफायर सपाइनल ( ऽव" ७9०८) य नीलम क रग क होत ह।

(5) रबी सल (५।५०५॥०)-य लाल रग स लकर नारगी क रग तक होत ह ।

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120 रतन-परदीप

सपाइनल अधिकतर पारदरशक होत ह, परनत उनम विदरण (आसानी

स चिर जान) का गण (५५०५५४०) न होन क बराबर होती ह । उनम कठोरता पखराज क समान होती द, इसलिए व टिकाऊ होत ह ओर अगढी आदि

म उनका इसतमाल हो सकता ह । यह रतन मलयवान‌ रतनो की शरणी म

नही आता । यदयपि अपनी कठोरता क कारण उस पद की योगयता रखता

ह, कयोकि यह घन समह का रतन ह, इसलिए इसम वरतन इकहरा ही होता ह, ओर इसी कारण इसम दविवरणिता नही नजर आती । इनद गणो दवारा

यह टरमलीन ओर माणिकय स पथक‌ किया जा सकता ह, यदयपि दखन म परायः उनही क समान लगता ह । वासतव म बहत-स रतन, जिनको माणिकय मान लिया गया ह, वासतव म सपाइनल ह । इस समबनध म एक रोचक बात यह ह कि महारलतनो म सममिलित होन का गौरव रखन वाल माणिकय अधिकतर सदोष होत ह, परनत इसक विपरीत सपाइनल अधिकतर निरमल ओर निरदोष होत ह । सपाइनल रतनो म यदयपि काचमय दयति होती ह, परनत उनम दमक (11५) कम होती ह । य अधिक जवलनत, सटप ओर मिशरित

काट क रपम होत ह । परनत इन रतनो को जडत समय परण सावधानी की आवशयकता ह, कयोकि य भगर होत ह ।

परकति म सपाइनल या कटकिज या सरयमणि सदव करनदम का सहयोगी रहा ह । यह उनही शिलाओ म पाया जाता ह जिनम करनदम मिलता ह ओर यह समान अवसथाओ म बनता दह, पर इसक लिए थोड मगनीशिया की आवशयकता होती ह जो एलयमीना स मिल सक ।

अगरजी रतन- विशषजञ मव विलसन क कथनानसार छः-सात करट स अधिक का सपाइनल दरलम रतन होता ह । कठोरता म यह माणिकय ओर नीलम स नीच ओर पनन स ऊपर होता ह । इस कारण बढिया पालिश स उसम जवलनत आमा आ जाती ह । यो तो सपाइनल अनको रग म परापत होत ह परनत लाल रग का सपाइनल ही विशष परतिषठा पा सका ह, कयोकि वह माणिकय क समान लगता ह । नील ओर वजनी सपाइनल इसलिए अधिक परचलन म नही ह कयोकि उन म नीलम ओर एमीधिसट-सा आकरषक रग नही होता । मव विलसन का विचार ह कि वजनी रग का सपाइनल एसा अनाकरषक नही होता कि उसकी बकदरौ की जाय । विशवास क विपरीत वह एक अतयनत आकरषक रतन होता द जिसम एलजणडवाङट (५५५८०१७) क समान दो आभाय दिखायी दती ह : कभी वजनी ओर कभी गहर नारग

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अलपमीली रतन | 121

रग की। एक एसा सपाइनल भी होता ह जो दिन क परकाश म नीला दिखाई दता ह ओर बिजली क परकाश म वजनी ।

परापति सथान-- सपाइनल शरी लका, आसदरलिया, थाईलणड तथा वरमा म मिलता ह । इसक अतिरिकत वह मडागासकर, भारत, अफगानिसतान, सयकत राषटर अमरीका म भी परापत होता ह। वलास रबी तथा वासतविकः लाल वरमा तथा थाइलड म चन क पतथरो म पाया जाता ह । यह एक अजीव बात ह कि नदी क ककडा म सपाइनल अपनी अपकषाकत कम कठोरता क होत हए भी परण मणियो क रप म मिलता ह ओर माणिकय धिसी हई दशा म । सनदर वजनी, हर तथा नील रग क सपाइनल शरीलका म पाय जात ह ।

परसिदध सपाइनल-- दो बड परिमारजित लाल रग क सपाइनल वरिटिश मयजियम म रख हए ह । इनक निकट ही एक सनदर अनीकयकत नीला सपाइनल भी रखा हआ ह । एक बहत बडा लाल रग का सपाइनल रतन जो अणडाकार ह, इगलणड क राजमकट म जडा हआ ह । पहल यह

माणिकय समञञा जाता था । इस काल राजकमार का माणिकय कहा जाता ह । इस रतन क बीच म छद था, पर अव वह उस रग क छोट रतन दवारा मिटा दिया गया ह।

, बरिटिश राजवश क रतनो म एक परसिदध सपाइनल रतन ह जिस

तमर का माणिकय या खिराज आलम कहा जाता ह । इसका वजन 3ॐ52 करट स कछ अधिक ह । यह जञात सपाइनल रतनो म सबस बडा ह । यह काटा नही गया ह, परनत चमकाया अवशय गया ह । सन‌ 13% म दिलली

म तमर लग को लट म मिला था । तातार राजय क कषय क साथ यह रतन

ईरान क शाह की समपतति बन गया । बाद म इस अबबास परथम न मगल

बादशाह जहोगीर को भट कर दिया । यह दिलली म 1739 म नादिरशाह

क आकरमण तक बना रहा । उस समय यह लट म नादिरशाह को कोहनर

क साथ परापत हआ । फिर यह महाराजा रणजीतसिह क अधिकार म रहा

ओर बाद म ईसट इणडिया कमपनी को मिला । कमपनी न इस महारानी

विकटोरिया को भट कर दिया।

कतरिम सपाइनल -- रगहीन या मनमोहक रगो म सपाइनल कतरिम

तोर पर काफी मातरा म बनाय जात ह । परनत असली ओर नकली सपाइनल

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122 रतन-परदीप

को पहचानना सरल ह । यदयपि कतरिम सपाङनल काफी आकरषक रग क

बन जात ह, परनत उनम सचच सपाइनल वाल रग नही आ पात ।

(ग) गारनट (@9116{) तामडा

नरम होत हए भी अतयनत आकरषक रतन : रतनीय गारनट क चार

विभद : हसोनाइट (पर८ऽ०11८). आलमानडाइन (^171181५11८) ओर उरमटायड

(19619१1७{५)- पाईरोप (7#7०<) गारनट एक अतयनत लोकपरिय अलपमोली

रतन : 468 करट का पाइरोप गारनट : कारवकल (लोहिति पाषाण)

एलमानडाइन गारनट : डमानटायड (120011५५) : गारनट क आकरषण

चमकत हर रग क कारण उसका परीडाट (घतमणि) होन का भरम : यराल का पनना नरम परनत हीर स अधिक परकाशीय फलाव क गण वाला।

गारनट को हमार दश म तामडा कहत ह । इसको रकतमणि भी कहा जाता ह । परायः मानयता यह द कि गारनट या तामडा एक गहर लाल

रग का पारदरशक रतनीय पतथर ह, परनत वासतविक बात यह ह कि गारनट एक खनिज क समह का नाम ह जिसक अनतरगत बहत-स खनिज आत ह ओर सब खनिज रतनीय पतथर नही होत । इन सब म एक-सा रासायनिक सगठन ओर मणिभीय गण होता ह, परनत इनक भौतिक गण अलग-अलग होत ह ।

सभी गारनट दहर सिलीकट होत ह जिनम एक धात कलशियम लोहा, भगनीशियम या भगनीज हो सकती ह ओर दसरी हो सकती द एलयमीनियम लोहा या करोमियम । मणिम घनसमह क अनतरगत पाय जात ह तो उनका आकार पानी स धिस ककड क समान गोल होता ह ।

गारनट क बहत-स विमद आमषणो क योगय नही होत; कयोकि व चमकहीन होत ह ओर आकरषक नही होत । जस । उवारोवाइट (५५।०५।८) 2. सपसारटाइट (१८५९०११५) ओर 3. रोडोलाङट ( 1२०५०।॥५). आभषण क योगय (रतन कोटि क) विभद ह- ॥. हसोनाइट (11५550111९). = 2, पाइरोप (11०7५) 3. आलमानडाइन (\1)1410८) ओर 4. डमनटायड (८7121100) । इन विभदा क रतन परायः एक स दिखाई दत ह

जिसस अनतर जानना कठिन हो जाता ह ।

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अलपमोली रतन 123

(1) हसोनाइट गारनट (ालडऽ०ा11८ (0977८)

भौतिक गण -- कठोरता 75, आ० ग० 361-366, वरतनाक 1.75.

विशषता तथा रग -- यह रतनीय पतथर सनहल पील स लकर दाल-चीनी भर रग का होता ह। कतरिम परकाश म इसका रग अधिक

सनदर लगता ह ॥ हलक रग क पतथर सिनामोन ((1711311101) कहलात ह

ओर गहर रगवाल हसोनाइट । कभी-कभी इनह एसोनाइट भी कहा जाता ह । कभी-कभी उनको गलती स जसिनथ भी कहा जाता ह । (असली जसिनथ जिरकान होता ह) । यह गारनट कलशियम-एलयमीनियम क यौगिक होत ह ओर अपनी परथक‌ बनावट क कारण सरलता स पहचान जा सकत ह । व दानदार बिनदओ स बन हए परतीत होत ह जिनको बिना किसी सकषमदरशक यतर क दखा जा सकता ह । कभी इन लाल रग क रतनीय पतथरो को लाल जिरकान समञच लिया जाता ह, लकिन जिरकान तो अधिक

दडकदार होत ह ओर उनम दहरावरतन होता ह ।

परापति सथान -- इस विभद क अधिकतर रतनीय पतथर-शरीलका

स आत ह जहा उनको जिरकान या कोई ओर रतन बतलाकर भी बच दिया जाता ह । कछ रतनीय पतथर जो काल धबबा स परण हलक हर रग क होत ह ओर जडाङट स लगत ह, दकषिण अफरीका म परीटोरिया क निकट

परापत होत र । उनको दकषिण अफरीका का जड (हरितमणि) या दरानसवाल

जड क नाम स बचा जाता द, यदयपि जड ओर हसोनाइट म कोई समबनध

नही ह । बराजील म हसोनाइट क अतिरिकत सब परकार क गारनट परापत

होत ह ।

(2) पाडरोप गारनट (1700५ 6 गणला)

भौतिक गण -- कठोरता 7 : आपकषिक गरतव 37-38 वरतनाक

1.75 ॥

परापति सथान तथा रग आदि -- य गारनट सबस अधिक लोकपरिय

ह । रासायनिक दषटि स व भगनीशियम-अलयमीनियम गारनट ह ओर उनक

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124 रतन-परदीप

सरग गहर लाल स माणिकय क समान लाल होत ह । कभी कछ रतनीय

पतथरो म एक पीली आभा उनक लाल रग को बिगाड दती ह । इस कोटि

क रतनीय पतथरो क कछ नाम ह कप रबी (८०८ 1२५७). आरीजोना रबी

0 रण) ओर बोहीमीयन गारनट (जगाला 0691161) | य गारनट

अधिकतर बोहीमिया स परापत होत ह । य गारनट परायः छोट होत ह, परनत बड आकार क रतन भी परापत हय ह । सकसोनी क समराट क पास एक

ङस परकार का गारनट 468 करट का था । वोहीमिया म य रतन सरपनटाइन

(जहरमोहरा) क साथ ककड म परापत होत ह । य गारनट दकषिण अफरीका म दरानसवाल म भी हीर क साथ परापत होत ह । रोडशिया ओर सयकत अमरीका म भी कछ सथानो म इस परकार क गारनट मिलत ह ।

माणिकय म दोष होत ह, परनत इस शरणी क गारनट म दोष नही होत ओर अपन आकरषक रग क कारण इसको लोकपरियता परापत ह । कयोकि परचर मातरा म होता ह, इसीलिए इसकी गणना अलपमोली म होती ह ।

(3) एलमानडाइन गारनट (1000411८ (६01)

भौतिक गण-- कठोरता 7 : अयपकषिक गरतव 3.9-4.2; वरतनाक

1.79 |

इसको कभी-कभी सीरियन गारनट (5५ (३०१०) या एडीलड रबी^,५५।०५५ 1२५७४) कहा जाता ह, यदयपि न तो यह रबी ह ओर न सीरिया म परापत ही होती ह । यह पीली जलक लिए हए गहर लाल रग की होती ह । यह आइरन-अलयमीनिया गारनट ह । जिन गहर लाल रग क रतनीय पतथरो को एक कवाकोन काट का रप दिया जाता ह उनको कारवकल (८५१०५१८९) कहा जाता ह । उततर भारत क जौहरी इस परकार क रतन को लोहित पाषाण कहत ह । इस रतन म एक विशष मनोरजक बात यह ह कि. सपकदरोसकोप (किरणो को दखन का यतर) स दखन स इसम रगीन किरणो का एक मायावी दशय दिखाई दता ह । कछ रतनो म शिखर पर चार किरणो का तारा-सा दिखाई दता ह ।

स परापति सथान-- इस शरणी क गारनट परायः अभरक की खानो की परता म परापत होत ह । मणिम परायः बड आकार क होत ह विशषकर जो

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अलपमोली रतन 125

बराजील स आत ह । वहा व अधिकतर पखराज क साथ परापत होत ह । इसक अनय परापति सथान ह-शरीलका, भारत, आसदरलिया, परवी अफरीका ओर सयकत राषटर अमरीका ।

अलपमोली रतन -- यह एक अलपमोली रतन ह, यदयपि सौदरय क कारण इसका काफी आदर ह।

(4) डमानटायड गारनट (लााग(तत उवाल()

भौतिक गण-- कठोरता 6 : अयपकषिक गरतव 3.84 ; वरतनाक

1.88 |

इस विभद क रतनो को गलती स ओलीवीन (०५१८) कहा जाता ह जो भरमातमक ह । असली ओलीवीन तो परीडाट (जबरजदद-घतमणि)

को कहत ह । इन गारनटो का रासायनिक सघटन कटशियम-आइरन ह । य चमकत हए रग क होत ह । कछ पतथर भर-पील ओर हर-मर भी होत ह । इनकी लोकपरियता सन‌ 1880 स चली आ रही ह जब य रस क यराल परवत परदश म परचर मातरा म परापत हए थ । अभी तक उनको `यरालियन एमरलड' (यराल का पनना) कहा जाता ह । इनका सबस अधिक परशसनीय ओर आकरषक गण ह-परकाश का छितराव या फलाव । कहत ह कि इसका यह गण हीर स भी अधिक ह। कतरिम परकाश म यह रतन बडा सनदर लगता ह, परनत अतयनत नरम होन क कारण इसम टिकाऊपन कम ह ।

परापति सथान -- इस विभद क गारनट अब भी यराल परवत परदश

म बहतायत स मिलत ह ओर अधिकतर नदियो की तलहटियो म ककड

क साथ परापत होत ह।

अवगण -- एक तो य पतथर नरम होत ह, दसर य परचर मातरा

म परापत होत ह । इसलिए य बिलकल अलपमोली रतन मान जात ह । अनय

गारनट रतनीय पतथरो क समान य घनसमह क अनतरगत आत ह । इनम

एकहरावरतन होता ह ओर इनम दविवरणिता नही होती । हौ, किसी-किसी

रतन म दहरावरतन भी दिखाई द जाता द । इन रतनीय पतथरो को जवलनत,

मिशरित ओर कबीकोन काट क रप दिय जात ह ।

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126 रतन-परदीप

एक गरनथ क अनसार -- उततम तामडा शयाम क माणिकय क

समान ओर सपाइनल क समान परतीत होता द, परनत तामड का अग चीग

होता ह । सपाइनल का अग कोमल होता ह, ओर माणिकय का सखत होता

ह । इनका आपकषित गरतव ओर कठोरता भी भिनन-भिनन ह । तामड

सपाइनल की अपकषा भारी होत ह ।

भारत का तामडा (170५) (शाला)

भारत म य रतन अनक सथानो म परापत होत ह जो आग दिय जात

हः

राजसथान -- यहा का तामडा उततम शरणी का होता ह । अरावली

परवत अचल क परसतर दलो (७५५५) एव उस सथान स निकली नदियो की

तलहटियो म परयापत मातरा म परापत होता ह । अजमर, किशनगद तथा जयपर

तामडा क लिए परसिदध सथान ह । जयपर म तामड क तराशन का अचछा

उदयोग र । खरड जयपर स दिलली भी आती ह । य भी इसक तराशन का काम होता ह। यहा स माल लनदन को निरयात किया जाता ह।

आचछ परदश -- हदराबाद क समीप वारगल म तामडा परापत होता

ह । यहो का माल मदरास क बाजार म जाता ह, जह उसको तराशन ओर

पालिश करन का काम होता ह । यहो का माल यरोप भजा जाता द।

तमिलनाड -- इस परदश म तामडा विशाखापटनम, गोदावरी,

तरिचरापरी तथा तिननपलली म परापत होता ह ।

विहार -- हजारीबाग क निकट । उडीसा - कटक क निकट । मधय परदश ~ भगनीज की खानो म सवचछ नारगी क रग का तामा परापत होता द।

टरमलीन (10णपाधा7८)

4 रासायनिक सघठन : विभिनन रगो की भरमार : तीन विभद : रगो क अनसार पथक‌ विभद : मनोरजक नाम-~तराजील का पनना, बराजील का नीलम : एक ही रतन म दो तथा अधिक रग : परापति सथान ।

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अलपमोली रतन 127

विविध नाम -- टरमलीन को ससकत म वकरानत ; हिनदसतानी म तरमली या शोभामणि कहत ह ।

भौतिक गण-- कठोरता 7+ ; आपकषिक गरतव 3.0 ; वरतनाक 1.62-1.65 ॥

यह रतनीय पतथर अनका रगो म परापत होता ह । यदयपि इसकी कठोरता अधिक नही ह, यह आमषणो म उपयोग होन योगय ह । इसका रासायनिक सघठन कष जटिल-सा ह ओर विभिन पतथरो क सघटन स इसक सघटन म कछ अनतर भी होता ह जिसक कारण इसम कई रग वन जात ह । सामानयतः यह अलयमीना, भगनीशिया ओर लोह का सिलीकट ओर बोरट ह ओर इसक मणिम षडमजीय समह (लगगा ऊऽन) क अनतरगत आत ह । मणिम परायः करकच आयत क आकार (1५90९) की तीन या छः परशवो की होती ह ओर सपषट खडी डोरिया-सी दिखाई दती ह ।

टरमलीन .क तीन विभद होत :

(1) अलकाली टरमलीन (८।६॥ (10४) ध।71८)--- इसम सोडियम

लिथियम ओर पोटशियम होता ह । यह सामानयतः रग- विहीन, लाल या हर रग का होता हि| (2) आइरन टरमलीन (1101) '{७ण।)६॥11८}) -- यह‌ अधिकतर

कालरगकादहोताह। (3) भगनीशियम टरमलीन (ववदाधञणा) (एणपोधपत)

यह रगविहीन, पीला-भरा या भरा-काला होता ह । विभिनन विभद रग क अनसार नाम पात ह । लाल ओर गलाबी रग क रतनीय पतथर रबीलाइट कहलात ह । काल रग क पतथर को शोरल (५०१) कहत ह । हर रग का पतथर बराजील का पनना (1०५1140 15१५५) कहलाता ह । नील रग वाल

टरमलीन को इणडिकोलाइट या बराजील का नीलम (10५।९७॥५८५ ७\ 112 9०01८) कहत ह । वजनी-लाल रग वाला साइबराइट (5०५८) कहा जाता ह । हरा या हरा-पीला पतथर शरीलका की घतमणि या सीलोनकराइसोलाइट (८1७) एला जा (दकाल (दौफरडणााल) क नाम स जाना जाता ह।

रग ओर दयति तथा विशष गण-- रगविहीन पतथर एकोराइट (८५५५८) कहलात ह । ओर भी वीच क रग इन पतथरो म होत ह । वासतव

म टरमलीन जाति क रतनीय पतथररो म रगो का खजाना भरा हआ ह । कछ पतथर अघरग होत ह, कष एस होत ह जो ऊपर स हर ओर अनदर स लाल होत ह- कछ ऊपर स लाल ओर अनदर स हर । कछ एस होत ह जिनम एक ओर लाल रग होता ह तो दसरी ओर काला या हरा। य

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128 रतन-परदीप

रतनीय पतथर पारदरशक, अरदध पारदरशक या पारमासक होत ह । शारल विभद का पतथर बिलकल अपारदरशक होता ह ओर रतनकोटि म नही आता ।

सब टरमलीन जाति क रतनीय पतथरो म कचीय दयति होती ह ओर व पाडरो इलकटरिक (० 8।०यप९) होत ह । अरथात‌ जब उनको रगडा जातादया गरमाया जाता ह तो उनम बिजली आ जाती ह ओर व कागज

क दकडो को अपनी ओर खीच लत ह । इस रतनीय पतथर म सबस अधिक ओर विशष गण ह उसकी दिवरणिता । यह इतनी सपषट होती ह कि काटत समय इसका धयान रखना पडता ह । इनको जवलनत, सटप या मिशरित काट

का रप दिया जाता ह । जवलनत काट क रप म विशष आकरषण होता ह । अपन विभिनन आभापरण रग क कारण यह रतन आभषण की शोभा बन जाता ह । आभषण म अनय रतनो क मधय म जड जान पर व उसकी सनदरता को दविगणित कर दत ह ।

सबस चमकदार पतथर व होत ह जिनम लोह की जरा-सी भी मातरा नही होती ओर सबस दडकदार व होत ह जो काला रग-सा लिय होत ह । बहत-स पतथरो म उनकी दविवरणिता यो ही दखी जा सकती ह ।

परापति सथान-- टरमलीन गरनाइट की चटटाना म पाया जाता ह । रबी लाइट टरमलीन अधिकतर कलीफोरनिया स परापत होत ह ओर बराजील ओर यराल परदश म लाल ओर हर रग क रतनीय पतथर मिलत ह । पील ओर भर पतथर शरीलका म ओर गहर भर रग क सकसोन म होत ह । सयकत राषटर अमरीका स मन (८००८) नामक सथान क लाल, हर ओर नील रग क दरमलीन आत ह । एलवा ओर मडागासकर म भी इनदी रगो क पतथर परापत होत ह । मोगोक क निकट बरमा म परापत रतनीय पतथर लाल ओर काल रग क होत ह । यहौ य अधिकतर नदियो की तलहयियो म परापत होत ह । बरमा स अधिकतर चीन भज जात ह जहो काटकर बटनो क रप म उपयोग होता ह । दकषिण पशचिमी अफरीका म भी टरमलीन पाय जात ह, परनत यहा क पतथर गहर नील हर रग क होत ह ।

भारत म भी टरमलीन परापत होत ह । यह कशमीर म तो पराचीन काल स नीलम क साथ परापत होता रहा ह । बिहार क हजारीबाग जिल म अभरक की खाना म अभरक क साथ परापत होता ह । बिहार का टरमलीन हर रग का ओर नीली आमायकत होता द । कावरी नदी की सत मभी कभी-कभी उतकषट परकार क रतन पाय जात ह । नपाल म अरण आभायवत टरमलीन परापत होत ह ।

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अलपमोली रतन र

मव विलसन क कथनानसार टरमलीन म यह गण ह कि जब उस को गरम किया जाता ह तो उसक एक सिर पर पाजीटिव ओर दसर सिर पर निगटिव विदयत आवश आ जाता ह । पतथर जब ठणडा हो जाताहतो दोनो सिर क विदयत आवशो म अदल-बदल हो जाता ह । कभी एसा भी होता ह कि किसी आमषण म जडा हआ रतन शरीर को सपरश करता ह तो शरीर की गरमी स भी उसम विदयत आवश आ जाता ह ओर छोटी-छोटी हलकी वसतरय उसम चिपकन लगती ह ।

मब विलसन क अनसार टरमलीन म रगो की अजब बहार होती ह । परायः पतथर क एक सिर पर एक रग होता ह ओर दसर सिर पर दसरा । कछ बराजील क टरमलीन जो ५/०(८7610 7०४पागा7८ कहलात ह, अदर स लाल ओर बाहर स हर रग क होत ह । कलीफोरनिया क कछ रतनो म अनदर हरा ओर बाहर लाल रग होता ह । टरमलीन का रप निखार सटप काट स निकलता ह । टबिल काट ओर कबीकोन काट स इस रतन की शोमा बिगड जाती ह । चमकील लाल रग की दरमलीन यदि हीरो क साथ जडी जाए तो उसम ओर हीरो म चार चौद लग जात ह । अफरीका का नीला दरमलीन चमकदार मयरी रग का होता ह। अचछा कटा ओर पालिश किया हो तो वह किसी भी अनय सनदर रतन का मकाबला कर सकता ह । इस रग क रतन म एक मनोरजक बात यह होती ह कि इस ताप दिया जाय तो इसका मयरी रग पनन क हर रग म परिवरतित हौ जाता ह।

परायः अनय रगीन पतथरो को टरमलीन समञच लिया जाता द, परनत अपन कम आपकषिक गरतव ओर तज दविवरणिता क दवारा इसकी पहचान करना कठिन नही ह । जब हर रग क टरमलीन परथम बार सतरहवी शताबदी म यरोप क जौहरी बाजारो म पहच तो उनको पनना समञा गया, यदयपि इनका रग पनन क मखमली हर रग स मिन ह।

कनज (९५१८) क कथनानसार कलीफोरनिया क मीसागराडि नामक सथान म जहो परापत टरमलीन परणतः पारदरशक होत ह, रबलाइट क दो बड सनदर मणिम परापत हए थ । इनम एक 45 मिलीमीटर लमबाई ओर 42 मिलीमीटर वयास का ओर दसरा 56 मिलीमीटर लमबा तथा 24 मिलीमीटर वयास का था । मडागासकर स रग-बिरगी टरमलीन परापत होती ह ।

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130 रतन-परदीप

एकवामरीन (^वणताकता7९)

एकवामरीन पनन क परिवार का सदसय : पनना सदोष होन पर

भी बहमलय, परनत यह निरदोष होत हए भी अलपमोली : ओखो को भान वाला आकरषक रग : गलाबी रग का विभद : कतरिम परकाश म असली रग बना रहता ह । सबस बडा एकवामरीन ४३ पादणड का था : नील टोपाज,

नील जिरकान ओर एकवामरीन म अनतर ओर उनकी पहचान ।

विविध नाम-- इसका अगरजी नाम एकवामरीन ह । हिनदसतानी म इस वरज या हरित नीलमणि कहत ह ।

भौतिक गण-- कठोरता 0 ; आपकषिक गरतव 2.70; वरतनाक

1.57-1.58 ।

एकवामरीन या हरित नीलमणि पनन क समान बरज (८) वरग

का रतन ह । इसका सौनदरय अनपम ह । यह लोगो को बरवस मोह लता ह । इसक समबनध म पलिनी का कथन ह कि ओखो को भान वाला इसस उततम दसरा कोई रग नही ह । यह बात उस समय की ह जब उसन मिसर तथा यराल क निमन कोटि क हरित नील मणियो को ही दखा था ।

एकवामरीन वरज परिवार का होन क कारण उसक भौतिक गण लगभग पनन क समान ह । पनना बहमलय-सदोष होत हए भी बहमलय रतनो की शरणी म आता ह, परनत एकवामरीन यदयपि अधिकतर निरदोष होता ह ओर उस चाह कछ हद तक अधिक दामो का रतन कह ल, पर वह कहलाता अलपोली (ऽन 1१८८०४७) रतन ही ह | इसका रासायनिक सघठन अलयमीनियम ओर बरीलियम सिलीकट ह । यह वही ह जोकि पन.का ह ।

एकवामरीन पारदरशक रतन ह । इसका रग पीत आभा लिय नील) . व समदर जसा हरा होता ह । ताप उपचार स इसका रग गहरा बनाया जा सकता ह । पीत आभा वाल रतन बहत ससत होत ह परनत निरमल नील रगक या समदर क समान नील रग क रतन कछ मलयवान‌ होत ह । य उततम जाति वाल मडागासकर स आत ह ओर उनम परण दिवरणिता होती ह । पीत रग वाल रतन गोलडन बरी (सनहर वरज ) कहलात ह ओर गलाबी रग

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अलपमोली रतन 131

वाल रतनीय पतथरो को मारगनाइट कहा जाता ह । जो अपारदरशक पतथर होत ह व रतनीय कोटि म नही आत ।

इन रतनीय पतथरो को सटप, जवलनत या मिभरित काट कारपदिया ` जाता ह ओर य परायः बड-बड आमषणो म दख जात ह । कतरिम परकाश म एकवामरीन का रग नही बदलता ।

एकवामरीन का उदगम आगनय शिलाओ स ह । इसक छोट मणिम गरनाइट शिलाओ म भी पाय जात ह । इसक परापति सथान ह ; साइबरिया, यराल परवत परदश (रस), बराजील ओर मडागासकर । मणिम आकार म कभी-कभी इतन बड होत ह कि किसी जमान म लोग इसस षटरो की मठ बनात थ । परान नककाशी किय हए एकवामरीन पाय गय ह जिसस परकट होता ह कि कोमल रग क कारण इसम नककाशी सरलता स हो सकती ह । कोलरडो ओर कलीफोरनिया (स० रा० अमरीका) म एकवामरीन परापत होत ह । इसम नील, सफद, गलाबी ओर पील रग क पतथरो की अधिकता होती ह । मडागासकर म साहाटोनी नदी की तलहटी म सबस अधिक सनदर मारगनाइट (गलावी रग क पतथर) पाय गय ह । य गलाबी रग क पारदरशक पतथरो म सबस बड होत ह । एस रग क पतथर शरीलका ओर सयकत राषटर अमरीका म भी परापत होत ह । य पर एक मनोरजक बात यह ह कि मारगनाइट कष-किररणो का परभाव पडन पर पक हए चरीफल क समान रग का दिखाई दता ह ओर उसकी दयति बदी हई दिखाई दती ह ।

परसिदध रतन -- सबस बडा एकवामरीन बराजील क मीनाजीरस नामक सथान म कवल पनदरह फीट की गहराई म सन‌ 1910 म परापत हआ था । उसकी नाप 18 इच + 16 इच थी ओर वजन म वह 43 पाउणड था । वह इतना पारदरशक था कि आर-पार सपषट रप स सब कछ दखा जा सकता था । यह रतन एक हजार पाउणड म बिका था । एकवामरीन का एक अतयनत सनदर नमना बरिटिश मयजियम म सगरहीत ह । उसका वजन 8.15 करट ह ।

परायः नील जिरकान या नील टोपाज क एकवामरीन होन का भरम हो जाता ह, परनत यह समरण रखना चाहिए कि टोपाज अधिक कठर

होता ह ओर उसका नीला रग सलटीपन लिय होता ह । नीला जिरकान

कम कठोर होता ह ओर उसकी पालिश एकवामरीन की पालिश का मकाबला

नही कर सकती । तीनो पतथरो क आपकषिक गरतव ओर वरतनाको म भी

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132 =

काफी अनतर ह ओर यदि वजञानिक रप स उनका परीकषण किया जाय तो

भरम की कोई गजायश नही रहती ।

एकवामरीन रतना म उस रतन की सबस अधिक कदर होती ह जो

हरा नही, बलकि समदर क जल क समान नीला-हरा होता ह । यदि एसा

रतन सनदर रप स कटा हो तो एसा परतीत होता ह जस उसम समदर कौ लहर

उठ रही हो । एक उततम एकवामरीन जो पानीदार ओर चमकदार हो यदि

हीरो क साथ जडा हो तो आमषणो की शोमा दविगणित हो जाती ह।

एकवामरीन का रप कबीकोन काट म नही निखरता । उसको अपन रप का

परण परदरशन करन क लिए पनना काट, सकवायर काट सबस अधिक उपयकत

होती ह ओर य छोट नगीन जब किसी नकलस या बरसलट जस आमषण

म चमकदार हीरो क बीच म जड जात हो तो आमषण जगमगा उठत ह ।

परीडाट (?24०1)

कम टिकाऊ, नरम परनत अतयनत आकरषक रग : इस कारण इसका आभषरणो पर अधिकार : विभिनन काट : परापति सथान ।

विविध नाम -- इसको जौहरी लोग अधिकतर जबरजद‌द नाम

स समबोधित करत ह । इसको अगरजी म ओलीवीन भी कहा जाता ह।

इसक अनय नाम ह : घतमणि, हरितोपलमणि, कराइसोलाइट या साधयकालीन

पनना ।

भौतिक गण -- कठोरता ¢+ ; अपकषिक गरतव 3.40 : वरतनाक

1.65-1.69 ।

ओलीवीन बहत-स सथानो म पाया जान वाला महततवपरण शिला निरमाण खनिज द । यह परोडोटाइट शिला का मखय अग दह । परीरडोट कई खनिज समह का पतथर ह जिसम सब ही रतन कोटि क नही होत । रासायनिक दषटि स य खनिज मगनीशियम ओर आयरन का सिलीकट र । ओर य कराकच (८०९) मणिमो क रप म होत ह ओर समचतरमजीय समह (य०ाछ८ ऽनलण) क अतरगत आत ह । मणिम अधिकतर अचछ आकार या रप क नही होत । जो रतनीय पतथर आभषणो म इसतमाल होत ह, व हर रग क होत ह ओर अपन मनोहर रग क कारण व आभषणो म परयापत

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अलपमोली रतन ध 133 मातरा म उपयोग म आत ह । जो गहर हर रग क रतनीय पतथर होत ह व ओलीवीन कहलात ह ओर जो पीत आमा लिए हए हर या हलक हर (७०५५० ७९८१) होत ह उनको कराइसोलाइट कहत ह । कभी-कभी हर रग क डमानटायड गारनट को गलती स ओलीवीन समञच लिया जाता ह । इसी तरह हर रग क करनदम ओर टरमलीन को ऋइसोलाइट कहा जाता ह । इनक आपकषिक गरतव का जो अनतर ह उसस उनको सरलता स अलग किया जा सकता ह।

वासतव म परीडोट एक नरम खनिज ह ओर अपनी कम कठोरता क कारण यह दिकाऊ नही ह ओर अगठी म जडन क लिए उपयकत नही ह, परनत अपन आकरषक रग क कारण यह अगठी तथा अनय आभषण म जडा जाता ह । इन रतनीय पतथरो म तलीय रप होता ह, परनत आभा काचकीय होती ह । परकाशीय फलाव भी इन रतनीय पतथरो म कम होता ह । विभिन रतनीय पतथरो क आपकषिक गरतव म भी अनतर होता ह । जिनम लोह की अधिकता होती ह उनम दडक भी जयादा होती ह ओर रग भी गहरा होता ह । यह पारदरशक या पारभासक रतन ह ।

इन रतनीय पतथरो म वरतनाक तज होता ह, परनत दविवरणिता कवल गहर रग क. रतनीय पतथरो म सपषट होती ह । इन रतनीय पतथरो को जवलनत, सटप या मिशरित काट का रप दिया जाता ह । परीडट क लिए सटप काट अधिक उपयकत होती ह ।

परातति सथान-य पतथर विभिनन परकार की चटटान म फल रहत ह, परनत मणिम इतन छोट होत ह कि उनको काटकर रतन का रप नही दिया जा सकता । लाल सागर क पशचिमी तट पर सनट जोन दवीप एकमातर कषतर ह जहा मणिम इतन बड आकार क परापत होत ह कि उनको रतन बनाया जा सक । य य परिशदध मणिभो क रप म आगनय चटटाना स मिलत ह जिनको इनाङट (०५१८) कहत ह, परनत बड आकार क मणिभ कम मिलत ह । पहल जमान म परीडोट क उतपादन क कारण सनट जोन क दवीप पर कडा पहरा रहता था कयोकि यह दवीप मिस क खलीफा की

अपनी समपतति था । इसक अनय परापति सथान बरमा, शरीलका, बराजील, ववीनसरलड तथा स० रा० अमरीका क एरिजोना या नय मकसिको राजय ह । इन सथाना म यह रत मणि म मिलता ह । एसा माना जाता ह कि आजकल बहत-स इस जाति क रतन परान जवाहरातो को फिर स काटकर बनाय गय ह ।

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134 रतन-परदीप

सनट जोन दवीप क ओलीवीन (0५१९) रतन काफी शानादार होत

ह ओर उनका रग सनदर हरा होता द । इनका वजन 20-30 करट ओर

कभी-कभी 80 करट तक, काट जान क बाद, होता ह । सथर रतन का

वजन 190 करट तक हआ ह । कवीनसलणड क रतन हलक रग क होत ह।

उततरी अमरीका क ओलीवीन रतन कछ कम आकरषक पीलापन लिय गहर

रग क होत ह । बरमा क रतन भी वस दही होत ह।

राइसोबरील (लए ऽण४८)+1)

अलपमोली रतनो म एक सबस अधिक टिकाऊ रतन : ऋइसोवरील

बरील का एक. विभद : एलकजानडाइट एक अतयनत आकरषक रतन : ताप

या एसिड का कोई कपरभाव नही ।

विविघ नाम-- रखन को तो इसका नाम हम वदरय रख लिया,

परनत अधिकतर यह ऋराइसोवरील क नाम स जाना जाता ह।

भौतिक गण-- कठोरता 8 : आपकषिक गरतव 3.75 : वरतनाक

1.74-17.5 ।

अलपमोली रतनो (७५) 1१८९०४६ ७10८5) म कराइसोवरील काफी मलय

का रतनीय पतथर द । कयोकि इसका खरड कठिनता स परापत होता द

इसलिए यह आमभषणो म कम दखा जाता ह । इसका एक विभद

एलकजानदवाइट (८०५७१०५९) ह जो मिल भी जाता ह, परनत इसक सनदर रतनीय पतथर दरलम होन क कारण अचछ मलय म विकत द । पोच करट स अधिक वजन का रतन तो शायद ही कही मिल ।

रासायनिक दषटि स ऋाइसोबरील बरीलियम का अलयमीनट ह ओर सम चतरमजीय समह क अतरगत आता ह । इसक मणिभ चपट होत ह ओर कभी यगमता लिय होत ह। गहर हर रग क रतनीय पतथर एलकजानडाइट (८५५०१५५९) कहलात ह । पील ओर पील हर ऋइसोलाइट

(८ >७०॥५८) कह जात ह । वासतव म ऋराइसोलाङट परीडोट को ही कहत ह, परनत राइसोबरील क उपरोकत रतनो का कराइसोलाङट नाम परचलित हो

गया ह जो भरमातमक ह । ऋराइसोबरील रतनीय पतथरो म कछ धयदार पील या भर-हर रग क पतथर भी होत ह जिनम घमान-फिरान स रग बदलता

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अलपमोली रतन 135

या चलता-फिरता दिखई दता ह । एस रतनीय पतथर को साइमोफोन या पराचय लहसनिया कहत ह । इसका विवरण हम एक अलग परकरण म द चक ह। ।

टिकाऊपन-- ऋाइसोवरील काफी कठोर ओर टिकाऊ पतथर ह । अतः सब आमषणो म जडन योगय ह । इसम माजकता (९५०५२६९) सपषट ह. परनत एलकजानदाइट को छोडकर अनय रतना म दविवरणिता अतयनत कषीण ह । एलकजानडाइट म दविवरणिता बहत तज होती ह ।

विशष गण-- इनम पीली हरी आभा शायद फरस ओकसाङड होन क कारण. होती ह, परनत इसम विशष गण यह ह कि इन रतनीय पतथर क रग पर ताप या एसिडो का कोई असर नही होता ह ।

कछ पाशचातय दशो म ऋराइसोबरील क पील रतन अगठियो म हीर क साथ जड जात ह कयोकि इसम काचकीय दयति होती ह । यह रतनीय पतथर अधिकतर जवलनत काट म काट जात ह|

रग का कौतक--~ एलकजानडवाइट (८^।५५०१०।९) का रगीन कौतक दखन योगय ह । पतती क हर रग का रतन कतरिम परकाश म रसभरी क समान लाल रग का दिखाई दता ह।

परापति सथान-- एलकजानवाइट विभद क रतनीय पतथर रस क यराल परवतीय परदश म पननो क साथ परापत होत ह । य शरीलका म परचर मातरा म मिलत ह । इनकी पहल रस म कदर हई थी, कयोकि व जार एलकजनडर दवितीय क जनमदिन पर परथम बार परापत हए थ ओर उनही क नाम पर इनका नाम एलकजानडाङट रखा गया । दसरा कारण यह था कि उनम रस क उस समय क णड क रग थ । अब रस म यह रतनीय पतथर परचर मातरा म परापत नही होत: परनत जो भी मिलत ह व उततम जाति ओर सनदर रग क होत ह । रस क रतनो की दरलभता क कारण उनका मलय शरीलका क रतनो. स अधिक होता ह । कराइसोलाइट विभद क कराइसोबरील बराजील शरीलका, रोडशिया ओर सयकत राषटर अमरीका स परापत होत ह । सबस परसिदध रतन जो सरवगण समपनन ह 438 करट का ह ओर बरिटिश मयजियम म सगरहीत ह । पहल , वह होप सगरह म था ।

सशलिषट रतन-- वासतव म ऋाडसोवरील क सशलिषट रतन नही ` बनत ह । जौहरी बाजार म जो सशलिषट एलकजानदवाइट दख जात ह व

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136 रतन-परदीप

या तो सशलिषट सफायर होत ह या सशलिषट सपाइनल । य सशलिषट रतन पराकतिक परकाश म हर-लाल स लगत ह ओर कतरिम परकाश म उनका रग पीला-लाल या वजनी दिखाई दता ह । एलकजानाङट कहलान वाल सशलिषट रतनो का आपकषिक गरतव ओर वरतनाक अधिक होता ह, परनत सशलिषट सपाइनल का आपकषिक गरतव परकत रतन स कम होता ह।

(ख) सफटिकीय वरग क रतन (0४४)

इस वरग म अचछ रगो क अनक टिकाऊ रतन : मणिभीय ओर गपत मणिभीय सफटिक : पारदरशक तथा कौतकपरण रग वाल रतन : एक शाह पसद बिललौर जो हीरा होन का धोखा दता ह : पील पखराज जसा धनला-सनला : नीलम स होड लता वजनी रग का एमीथिसट (कटला) : लहसनिया ओर वयाघराकष हकीक म परकतति की अदभत लीला : भगवान कषण, महावीर व नता लोग ।

भौतिक गण-- कठोरता 7 ; आपकषिक गरतव 2.65-2.66 ; वरतनाक 1.54-1.55 : दहरावरतन 0.009 ; अपकिरणन 0.13 ।

सफटिकीय वरग क अनतरगत बहत स अलपमोली रतन (ऽल ?५८८०५७) आत ह जिनक भिनन-भिनन नाम ह । बहत स जान-पहचान ओर ससत आभषणो म दिखाई दत द । इस वरग क रतन ससत होत हए भी आकरषक ओर टिकाऊ होत ह । उनम रगो का ओर बनावट का आकरषण भी होता ह । उनम स कछ तो जस हम सफटिक (बिललौर) या रगविहीन सफटिक पतथर ओर एमीथिसट (नीलम मणि) तो पराचीन काल स ही परचलन म ह। थियोफसटस न लिखा था, "एमीथिसट नककाशी क काम म इसतमाल होता था, पारदरशक था ओर उसका रग गहरी लाल शराब क समान था ॥“

9 यदयपि सफटिक कितन ही परकार ओर रगो का होता ह, उसका रासायनिक सघटन बहत सादा ह । वह ह सिलीकान का ओकसाङड अरथात‌ सिलिका ओर यही सघटन सव परकार क रतनीय पतथरो म पाया जाता ह । कठोरता, आपकषिक गभतव, दहरावरतन यदयपि कछ भिननता रखता द, परनत एसा अनतर भी बहत कम ह । सफटिक वरग क अनतरगत आन वात रतनीय पतथरो को दो बडी शरणियो म विभाजित किया जा सकता ह-

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अलपमोली रतन 137

(1) मणिभीय शरणी (८फ७०।॥१८ 17९) इसम सफटिक क काचरित,

मणिभीय ओर अधिक या कम पारदरशक विभद रख गय ह ।

(2) गपत मणिभीय शरणी ((/10#5131717८ (10९) ङस शरणी म

सफटिक सघन तथा सभाग होत ह । इनका भी मणिभीय रप होता ह । पर

यह सषमदरशक यतर स दखा जा सकता ह। इस शरणी को कलसडोनी

(91८८वगाफ४) भी कहत ह ।

(1) मणिभीय सफटिक-- य मणिम षडकोणीय सकषतर (पऽण) तथा

षडकोणीय दविसतप बनात ह । कभी य एक ओर मड हए होत ह ओर कभी

दोनो ओर मड होत द । बहधा यमज मणिम भी दख गय ह । य मणिम

षडमजीय समह क अतरगत आत ह । इस शरणी क निमनलिखित रतन ह

पारदरशक रतन-- हम सफटिक या बिललौर (० 0५६०), धनला

सफटिक, सनला (०) ओर कटला या एमीथिसट (^१०५।५७) । (ख) व

रतन जिनम परकाश फिरता दिखाई दता ह, जस सफटिक वरग का लहसनिया,

| वयाघाकष (7४५ ५८) । (ग) जो रतन बड आकारो म पाय जात ह, जस

. गलाबी सफटिक ओर एवनचयरीन ।

(2) कलसडोनी (@ग८ववन+) ङस शरणी म आत ह कारनीलियन

रतन , कराइसो परज, साई, जसपर (रतवा), पलाजमा, वरसटोन (पितौनिया)

ओर अगट (हकीक) ।

हम सफटिक या विललोर (1२०५६ (४४४)

यह एक एसा रगविहीन अलपमोली (ऽलण ९५०४७) रतनीय पतथर

ह जो परचर मातरा म परापत होता द। काट ओर पालिश क बाद यह एक

सनिगध, सनदर तथा अतयनत आकरषक रतन लगता ह, परनत इसम दमक

(नन) की कमी होती ह । दमक की कमी होन पर भी जब इसक अनीक

बनाय जात ह तो कानो क जयमको या गल क नकलसो म य बड आकरषक

लगत ह कयोकि बिललौर परचर मातरा म परापत होता ह, अतः रतन वही

काटकर बनत ह जो निरदोष हो । आमषणो क अतिरिकत इनका उपयोग

चशम क शीश ओर चशम समबनधी यनतर म होता द । विललोर स बन चशम

क शीशो म पालिश काफी समय तक नही बिगडती, जबकि साधारण काच

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138 रतन-परदीप

म थोड ही समय म खरोच पड जाती ह । विललौर क दाम उसकी माग क अनसार कम अधिक होत रहत ह, परनत यह एक काफी ससता रतनीय पतथर ह । कोच ओर विललौर की पहचान यह ह कि बिललौर सपरश म ठडा लगता ह, कठोर अधिक होता ह ओर उसक किनार (अनीक) तज ओर

सफाई स कट होत ह । यह कभी बिलकल भरा हआ नही दिखाई दता जसा कि कच होता ह।

बिललौर क बड सनदर आभषण, पयाल आदि अनको सगरहालयो म दख गय ह । पराचीन काल म मोहर बनान क काम म यह आता रहा ह । जब स कच का आगमन हआ, बिललौर पर नककाशी का काम बहत कम हो गया । एक जमान म तो रईस लोग बिललौर क गिलासो ओर पयालो म पानी, शरबत या शराव पिया करत थ । बिललौर क गोल अव भी बराजील ओर जापान स परापत पतथरो क काटकर बनाय जात ह|

बिललौर का सबस अधिक विशष गण ह उसम परकाश का चम-चम होना । यह उसकी बनावट क कारण ह । चशमो म तो बिललौर इसतमाल होता ही ह, उसक तापसफट विदयत क कारण रडियो तथा अनय विदयत‌ दरशक यनतरो क लिए परदोलित सफटिक पटिटरयो भी बनाई जाती ह । नील लोहिताकार परकाश म अपनी पारदरशकता क कारण उसका उपयोग फोटोगराफी क तल (0.0९) म भी किया जाता ह ।

परापति सथान -- विललौर क खरड कभी-कभी बड-बड आकार म परापत होत ह । कभी--कमी व परण रप स समाकार होत ह । व आगनय शिलाओ, लाइम सटोन तथा गरनाइट शिलाओ की दारारो म बराजील, भडागासकर, जापान, सयकत राजय अमरीका, सविटजरलणड क आलपस परवत परवश, फर ओर हगरी म भखय रप स परापत होता ह । आलपस परवत परदश स भमय-समय पर बिललौर सातवी शताबदी स परापत हो रहा ह ओर वहो एस रीय पतथर निकल द भिनकी लमबाई 2 फीट तक थी । कछ का वजन पचास स लकर सौ पाउणड तक था । कछ बिललौर इगलणड म सोमरसट, पलस कावाल उवाय ओर वट ही क ज म परापत हआ ह । वह परपत विललौर को हीर क नाम दिय गय । य नाम ह-वरिसटल हीरा, कारनिश हीरा, वकसटन हीरा । सफटिक (विललौ) भारत क उततरी परदशो सस-कारमीर, कलल‌, शिमला, सपीति, मधय परदश म सतपडा तथा विनधयाचल शरणी क अचला म मी परापत होता ह।

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अलपमोली रतन 139

कछ अशदधियो मिशरित हो जान क कारण कछ बिललौर पतथरो म अजीब रगो का कौतक दिखाई दता ह । कछ म एकाध ओर की तरफ सतरगी धनष दिखाई दता ह । एस बिललौरो को आयरिश कवारटज (ग 0५००४) या रनबो कवारटज (1२1१९०५ 02०4४) का नाम दिया गया ह ।

धनला (5०५ व यह धनल-मर रग का बिललौर ही ह.

ओर इस परकार क विललौर क रग भर स लकर काल तक होत ह। जो

गहर रग क या काल होत ह, उनह मोरियोन कहत ह । जो मर-पील ओर

लाल-भर होत ह, व करनगारम (णम) या सकाच टोपाज कहलात ह । हलक नील रग वाल पतथर कवारदज टोपाज, फालस टोपाज (नकली टोपाज)

या सपनिक टोपाज कह जात ह । इनम आपस म गणो म कोई अनतर नही द । अधिकाश पतथर सौनदरय स वचित होत ह, परनत तब भी जौहरी बाजार

म दिखाई अवशय दत ह । इस परकार क बिललौर म रग शायद उसम

वरतमान सोडियम क कारण होताह। तापसरगया तो हलका हो जाता

ह या बिलकल उड जाता द । कछ पतथर हलक ताप स लाल या पील-भर

हो जात ह । यह बदला हआ रग सथायी होता ह । इन पतथरो म दविवरणिता

होती ह जो गहर रग क पतथरो म विशष रप स दखी जा सकती ह ।

करनगारम सकाटलणड म परापत होता ह ओर अनय परकार क धनल

रतनीय पतथर सपन क कारडोवा नाम क सथान स आत ह । कछ बड रतनीय

पतथर सन‌ 1४68 म सविटजरलणड म परपत हय थ ओर बरन क सगरहालय म

रख हय ह ।

सनला (6०) एक विलकषण अतरीय बनावट का यह एक

पीला सफटिक द । इसम पीला रग कदाचित‌ कछ मातरा म फरिक आकसाइड

होन क कारण ह । पराकतिक सनला रतनीय पतथर बहत कम मातरा म परापत

होता ह ओर बाजार म जो सनला दिखाई दता द वह अधिकतर धनल को

ताप दकर बनाया हआ होता ह । बहत-स लोग इसक रग को दखकर

पीला पखराज कहत द, परनत यह भरनातमक ह । सनला एक बहत साधारण

अलपमोली रतनीय पतथर द । इसक अतिरिकत यह पखराज की अपकषा बहत

नरम पतथर द । इसका अपकषिक गरतव भी बहत कम ह । यह अवशय ह

कि सनला यदि सफाई स कटा हो तो दखन म टोपाज या पखराज स

कमजोर नही लगता, परनत दना को सामन रखन स अनतर सपषट दिखाई

द जाता द । पखराज इतना परिशदध ओर निदाषि नही होता जितना सनला

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140 रतन-परदीप

होता ह । इसका एक कारण यह ह कि सनल क वही टकड काटकर रतन का रप पात ह जो बिलकल निरमल होत ह । य निरमल टकड पालिश हो जान क बाद निरदोष ओर बिलकल पारदरशक दिखाई दत ह । सनला बराजील, यरागव, यराल परवत परदश, फरस ओर मडागासकर स परापत होता ह ।

कटला (ला) - यह सफटिक रतनो म सबस अधिक सनदर बजनी रग का रतनीय पतथर ह ओर कदाचित‌ अनय सफटिक रतनो स मलयवान भी ह । इसक रग गहर लाल स वजनी तक होत ह, परनत परायः इन पतथरो म रग एक-सा नही होता । अरथात‌ एक ही पतथर म कही पर हलका ओर कही पर गहरा होता ह । पतथर सदोष भी होत ह या उनम पर होत ह ओर तज सरय क परकाश म इनका रग भी कम हो आता ह । कछ लोगो का खयाल ह कि इन पतथरो म कतरिम रगाई होती ह । इसीलिय उनका रग उड जाता ह । वासतविक बात यह ह कि चाह रग कतरिम हो या परकत, वह सरय क तज परकाश म हलका अवशय पड जाता ह।

यदि इन पतथरो को ताप दिया जाय तो य रग-विहीन हो जात ह । कछ भर पील भी पड जात ह । बहत- स सनल ताप किय हय कटल होत ह ओर इनम दविवरणिता नही होती | परकत सनल म सपषट दविवरणिता होती ह ।

फीक रग क ओर सदोष कटत बहत ससत बिकत ह । हमन दिलली क जौहरी बाजार म इनको 2 र. स3 र. परति करट विकत दखा ह, परनत जो गहर रग क ओर दोषरहित होत ह उनक अचछ दाम मिल जात ह । यह अचछ का मतलब ऽ र० स 10 ० करट तक ह | गहर रग क पतथरो म दविवरणिता होती ह ओर उनम गहरा रग कदाचित‌ उनम मगनीज आकसाइड होन क कारण होता ह । इस रतनीय पतथर म ओर करनदम . जाति क नीलम म बहत अनतर होता ह । नीलम कही अधिक कोर, दडकदार होता ह ओर कतरिम परकाश म सलटी रग का नही दिखाई दता ।

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अलपमोली रतन 141

दवातो जसी वसत बनान म काम आत ह । पहल जमान म इस रतनीय पतथर पर नककाशी का काम होता था, परनत अब इसका चलन नही ह । कटल क दाम कमहोन का एक कारण यह भी ह कि पिछली शताबदी म दकषिणी अमरीका म यह परचर मातरा म परापत हआ ह । उसस पहल एमीथिसट कछ मलयवान‌ समञच जात थ । उननीसवी सदी क आरमभ म इगलणड की महारानी शारलाट (०५९१ (०५९) क एक एमीथिसट क नकलस का मलय दो हजार पाउणड लगा था । आज उसका दाम 50 पाउणड स लकर 100 पाउणड तक हो सकता ह |

इसक मखय परापति सथान बराजील, यरगव, साइबरिया, भारत, शरीलका, मडागासकर, ईरान, मकसिको, सयकत राजय अमरीका क मनानय हमपशायर, पनसिलवनिरया, उततरी करोलिना तथा सपीरियर ील परदश ह । सबस सनदर एमीथिसट बराजील म परापत होत ह । अचछ रतन यराल परवत म भी मिलत ह । भारत तथा शरीलका क एमीथिसट भी उततम जाति क होत ह । बाजील का एक अतयनत उततम एमीथिसट जिसका वजन 334 करट ह, दो रसी रतन जो वजन म 88 तथा 73 करट र, बरिटिश मयजियम म सगरहीत ह ।

कहत ह कि एमीथिसट का सबस बडा मणिभ 1928 म बाहिया म परापत हआ था । उसका वजन 206 पाउणड था ओर ऊचाई 25 इच थी । उसको काटकर अनको छोट-छोट रतन बना लिय गय थ |

लहसनिया ( ०५००५ (०८५ 9०) यह सफटिक जाति का लहसनिया

ह जो कराइसोबरिल जाति की लहसनिया की अपकषा नरम ओर ससती ह, परनत इसको जब एन कबीकोन काट का रप दिया जाता ह तो इसम असली

लहसनिया जसा परभाव आ जाता ह। इसम बहत-स पतथरो म कतरिम रगाई की जाती ह, परनत य रग सथायी नही होत । इसका परकत रग हरा-सा या भरा-सा होता ह। इसक परापति सथान भारत, शरीलका ओर बवरिया ह । शरीलका स परापत रतनो की अचछी कदर होती ह।

वयाघराकष (11४ 8,५)-- यह एक तनतमय सफटिक ह जिसका रग सनहल पील स लकर नील रग तक होता ह । इसम भी अचछी कटाई ओर पालिश क बाद लहसनिया क समान रात म परकाशीय चमक दिखाई

दती ह । यह करोकिडोलाइट (नील एसबसटास) का मिथया रप ह । वासतव म उस खनिज क विघटन स बनता ह जिसम एसवसटस का सथान सफटिक

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ल लता ह । अपन मल खनिज की तनतमय रचना इसम बनी रहती ह वयाघराकष दकषिण अफरीका म गरीकवारलड स पशचिम क एवरसटस परवता म मिलता ह । इसका उपयोग छतरी की मढ, पपर वट आदि बनान म किया जाता ह । इसका एक अनय सहयोगी सफटिक नील रग का होता ह जिस शयनाकष कहत ह । यह भी दकषिणी अफरीका म उसी सथान म पाया जाता ह।

गलाबी सफटिक (२० ०५०४) यह निशचित रप स दीरघकाय एव पारमासक स पारदरशक होता ह । इसका रग गलाब क रग जसा हलका लाल होता ह । कभी-कभी गहरा लाल भी होता ह । यह रग इसम मगनीज क कारण ह । पारदरशक रप म यह कम पाया जाता ह ।

इसकी दयति तलीय होती ह ओर यह दधिया-सा दिखाई पडता ह । गहर रग वाल सफटिक म कछ-कछ दविवरणिता पाई जाती ह । परनत इसका रग परकाश या ताप दन स फीका पड जाता ह। गलाबी सफटिक एन कवीकोन या अनीक रहित मनको क रप म काटा जाता ह ।

गलाबी सफटिक क बड भारी पिणड (आरपार 8 फट लमबाई तक क) बवरिया की पगमटाइट शिलाओ म मिल ह । इसक अनय परापति सथान ह~ बराजील, सयकत राजय अमरीका, फरस, यराल परवत, दकषिण पशचिम अमरीका, मनीटोवा, मडागासकर । बोसटन क पराकतिक इतिहास क सगरहालय म एक बहत ही सनदर पदारथ रखा हआ ह जिसम धनला क बड तरिपारशव क चारो ओर पहनाई हई माला म गलाबी सफटिक क छोट ओर सवचछ मणिभो क मनक पिरोय हए ह ।

एवनचयरीन (८५०१५1१९) इस रतनीय पतथर को कभी-कभी लोग जड (12००) समञञ लत ह, यदयपि इसका रग ओर रासायनिक सगठन जड स भिनन होता ह । यह सामानयतः गहर हर रग का होता ह ओर इस

क कारण होत ह । इन धवबा म एक परकार की चमक होती ह जो सकष-दरशक यनतर स दखन पर धातपी दयति लगती र । इसका रग हरा-पीला ओर लाल-भरा होता ह, परनत उततम जापति क वड टकड नही परापत होत । इसका मलय जड स कम होता ह। एवनचयरीन को भारतीय जड भी कहत ह, कयोकि इसक कट हए पतथर अधिकतर भारत म होत ह । इसका कषठ खरड चीन को बच दिया जाता ह जहा इसकी बहत कदर ह ओर वहौ उसकी मरतयो आदि बनाई जाती ह | § क

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एवनचयरीन रस, भारत ओर चीन म परापत होता ह । एवनचयरीन की एक नकल का पतथर ह जिसको गोलड सटोन (७०५ 5101९) कहत ह । इस हिनदसतानी म सग सितारा का नाम दिया गया ह । यह कतरिम पतथर लाल-मर रग का होता ह जो पिघल हए शीश ओर ताव क मिशरण स बनाया जाता ह । इसम तारो क समान विनद चमकत ह परनत यह इतना नरम होता ह कि हलकी-सी रती फरन स ही धिस जाता दह या टट जाता ह ।

कलसडोनी समह (1८ (१०।८०५०१५ 0०५6) यह गपत मणिभ शरणी क सफटिक पतथर होत ह ओर पारमसक या पारदरशक होत ह । यह पदारथ छोट मणिम कणो क सघटित होन स बनता ह ओर इसकी बनावट तनतमय होती ह । इसको सकषमदरशक यतर स दखा जा सकता ह । इसम भिनन-मिनन परकार क रग होत ह ओर अधिकतर फीक होत ह । परनत कयोकि कलसडोनी छिदर परण (००५९) पतथर द, अतः इसकी कतरिम रगाई बडी सरलता स हो सकती ह । इसकी कठोरता 7 ह ओर आपकषिक गरतव 2.62 स 264 तक ही ह । इस समह क मखय रतनीय पतथरो का सकषिपत विवरण नीच दिया जा रहा ह :

कारनीलियन (रात रतवा) (८६१५२) अपन खशनमा लाल रग क कारण यह रतनीय पतथर अतयनत लोकपरिय ह । दधिया सफद ओर हलक पील पतथर भी परापत होत ह, परनत यदि यह उततम जाति क न हए तो अनाकरषक होत ह । लाल रग क पतथरो म हलकी डोरियौ या पटिटयो दिखाई दती ह । कछ-कष पतथरो म धबब मी होत ह । इसकी खरड‌ (२०८६ बल‌) अधिकतर बराजील ओर यरगव स आती ह । भारत, कवीनसलणड, ओर जापान म कारनीलियन अगट (^&०५८-हकीक) क साथ परयापत मातरा म परापत होता हि।

दकषिणी अमरीका की खरड की सफाई, कटाई, पालिश आदि अधिकतर जरमनी म होती ह । बहत-स पतथरो क रगो म सधार किया जाता ह, कयोकि छिदरपरण होन क कारण उसम कतरिम तरीक स रग सरलता स भर या गहर किय जा सकत ह । यदि कारनीलियन को अधिक ताप पहच जाय तो वह सफद राख बन जाता ह । रग परिवरतन परतयक पतथर म वरतमान आयरन आकसाइड क अनपात पर निरभर ह । भारतीय कारनीलियन अधिकतर अपन परकत रगो म मिलत ह । उनकी कटाई ओर पालिश भी ¦ भारत म होती ह । जयपर क परसिदध जौहरी क पास एक रतन ह जिसम

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एक कबतर का जोडा बना हआ ह । हमन भी एक बार दिलली क चोदनी चौक की सडक पर अगठी बचन वाल क पास एसा ही पतथर दखा था | उसका सवामी उसको बचन को तयार नही था |

ऋाइसोपरज (0१४७००७०) इसका हिनदसतानी नाम हरित मणि ह । शायद यह नाम दन का कारण यह ह कि यह रतनीय पतथर सव क समान हर रग का होता ह। इसम परायः दरार ओर भर धबव होत ह । रग भी गहरा हरा नही होता । वह एवनचयरीन क हर रग को भी नही पाता | जड (यशव सगसम) की अपकषा इसम चमक बहत कम होती ह । इसम अमजसाइट वाली दयति भी नही होती । इसम हरा रग कठ मातरा म निकल आकसाडड क वरतमान होन स होता ह।

कयोकि इस जाति क अचछ रतनीय पतथर दरलम ह, इसलिय सफटिक वरग म यह सबस मलयवान बन गया ह । इसम कछ दोष होन क कारण यह जौहरी बाजार म अधिक लोकपरिय नही ह । सरय क परकाश म इसका रग हलका हो जाता ह ओर तापस बिलकल समापत हो जाता ह । इसक अतिरिकत यह पतथर बहत जलदी चटख जात ह । इनक परापति सथान ह; साईलसिया, यराल परवत परदश, सयकत राषटर अमरीका म कलिफोरनिया ओरगान तथा एटिजोना ।

साई (ऽय)-- वासतव म यह गहर मर रग का कारनीलियन ही ह ओर कारनीलियन ओर इसम कोई अनतर नही ह । इसका रग कभी-कभी शयामपन ल लता ह ओर कभी-कमी पतथर क अनदर धवब दिखाई दत

नही होता । जसपर बहत सथानो म परापत होता ह। ह-उततरी अमरीका, जरमनी, सिसली ओर रस ।

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बलड सटोन (पितौनिया) (8।००५ 9\०१८)-- यह रतनीय पतथर कोर विशष आकरषक नही सममा जाता । इस पर नककाशी होती ह । अधिकतर इसको अगठी म जडत ह या इसकी मालाय बनाई जाती ह । यह एक अपारदरशक पतथर ह जिसका रग हरा होता ह ओर उस पर लाल रग क छीट होत ह । बड टकडो स डिबविया या घडिया क फरम बनाय जात ह । इसका अधिकतर इसतमाल इसक ऊपर दविक आसथा क कारण ह | यह मारच म जनम पाय हए लोगो क लिए जनम रतन या सौमागय का रतन माना जाता ह । यह बहत ससता होता ह, परनत धोखाधडी म लोग इसक दाम वसल कर लत ह ।

पलासमा (वव) यह भी एक गम अपारदरशक हर रग का पतथर होता ह जिस पर लमब धबव होत ह । कमी कमी य धवब पील रग क भी होत ह । यह परवी भारत ओर जरमनी म मिलता ह । अगट (५६०५९, हकीक)-- कलसडोनी समह का यह सबस अधिक महतवपरण रतनीय पतथर ह । इसम अधिकतर पदिटयौ या डोरिया पडी होती ह जो कमी असपषट होती ह । सकषमदरशक यनतर स व अवशय दिखाई द जाती ह । सर डविड बरियसटर न एक पतथर की सकषम परीकषा की, तो एक इच म उनहोन 1700 पदिटय दखी थी । इसम दधिया, सफद, पीला, भरा, लाल आदि अनको रग पाय जात ह । नील ओर हर रग भी होत ह, परनत कम दिखाई दत ह । रग इन पतथरो म एक~सा नही फला होता ह । इन पतथरो म पटिटयो सीधी भी होती ह टढी-मदी ओर समानानतर दोनो तरह की होती ह । जिन अगट पतथरो म बारी-बारी स काली सफद पटिटयो होती ह उनह ओनिकस (0*%"“सलमानी) जजमानी कहत ह । जिसम भरी ओर सफद होती ह उस सारडोनिकस (७५०४४) कहत ह । जिनम लाल ओर सफद पटिटयौ होती ह उनको लाल अगट या कारनीलियन अगट कहत ह । इसी परकार पटिटयो क रगा क अनसार ओर नाम भी दिय गय ह । अगट पतथर अधिकतर जवालामखी परवतो स निकली परानी लावा (सखत राख) या उसस बनी शिलाओ की दरार म पाय जात ह, कयोकि य सिलीका क जमाव स बनत ह, इनकी परतो म कभी-कभी बड सनदर डिजाइन बन जात ह । परतो म छिदरपरणता भिन-भिनन होती ह, इसलिए

कतरिम रप स रग हए पतथरो म कई रग आ जात ह । गहरा हरा ओर नीला रग उपयकत पतथरो म रसायनो दवारा भरा जाता ह । रग चमकील होत ह ओर परायः सथायी भी होत ह ।

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अगट पतथरो क रगन का काम जरमनी म बहत वरषो स होता आया ह । यह काम ओबरसटीन नामक सथान म होता ह जो रतनीय पतथरो की कटाई ओर पालिश का कनदरसथल ह |

अचछ अगट रतनीय पतथरो क मखय परापि सथान बराजील, यरगव भारत (दकषिण), सयकत राजय अमरीका ओर सकसोनी ह ।

अगट या हकीक क मौलिक रप बनत समय वकष, पकषी आदि क चिनह उनकी छाया पडन क कारण आ जात ह ।

भारत म यह पतथर होशगाबाद जिल म टिरनी गव म नरमदा की सहायक नदिया म पाया जाता ह । इसम बड पतथर 8 इच तक क मिलत ह । कहत ह कि इस जाति क पतथर म भगवान शरी कषण, भगवान महावीर, लोकमानय तिलक व डाकटर राजनदरपरसाद आदि स मिलत-जलत परतिबिमब भी परापत हए ह । ओर भी कई परकार क पशओ -जस चिडिया, बनदर, सोप, सअर आदि क परतिबिमब भी इन पतथरो म पाय जात ह । परकति की एक अदभत लीला इन पतथरो म दषटिगोचर होती ह ।

भारत म अगट निमनलिखित सथाना म भी परचर मातरा म परापत होत ह :-

() दकषिण भारत म राजमहल क परवतीय सथान स निकली हई नदियो की तलहटियो म तथा कषणा, गोदावरी ओर भामा नदी क परसतरो म|

(2) काशमीर क रडोक नामक सथान क पारशववरती कषतर म । यहा हकीक गोमद ओर कारनीलियन क साथ परापत होत ह । (3) बिहार क सथाल परगन म । 4) तमिलनाड‌ म राजममनदरी क निकट तथा गणटर जिल म । ७) मधय परदश म नरमदा नदी क तट पर मडा घाट नामक सथान तथा जबलपर क पास ।

6) गजरात क कछ सथानो म भी हकीक परापत होती ह। परज (९२5९)-- यह पारमासक, पील-हर रग का सफटिक द | इसम तलीय दयति होती ह । नील रग का सफटिक कम पाया जाता ह। यह राजसथान म सीकर जिल म मिलता ह । लाल सफटिक म हीमटाइट

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मिला होता ह। लाल सफटिक की अनकति गरम किय गय सफटिक को लाल सयाही म गिराकर बनाई जाती ह । इस सफटिक का उपयोग पराचीन काल म लख या आकति क खोदन क कामो म करत थ । यह सकसोनी म भी मिलता ह।

हीलियोदरोप (१।००००)-- यह गहर रग का सफटिक होता ह । इसम जसपर क छितर हए धब पड होत ह । इस पर पहल लोग धारमिक लखो की खदाई करत थ जिनम लाल धबव रकत क छीट समञ जात थ । यह सट सटीफन का पतथर भी कहलाता ह । यह अगठियो म भी परयकत होता ह । यह मारत तथा साइवरिया म परापत होता ह । चकमक पतथर-- इस अगरजी म पिलिणट (ग) कहत ह | यह पारभासक या अपारदरशक होता ह । इसका रग सलटी, धमायित, मरा या काला होता ह । यह साधारणतः चन क पतथरो या चाक क निकषपो म गा क रप म मिलता ह ओर अधिकतर इसकी बाहरी सतह पर सफद आवरण चदा होता ह । इसम शखीय भग होता ह । इस पतथर का उपयोग पराचीन काल म आग उतपनन करन क लिए किया जाता था। आदिवासी इसक असतर भी बनत थ । यह इगलिश खाडी क किनार पर चाक की चटटानो म काफी मातरा म मिलता ह।

बसनाइट (४०७९१९९) यह सफटिक मखमल क समान काल रग का विभद ह । इस कसौटी भी कहत ह जो बहमलय धातओ क परीकषण म काम आती ह।

फीरोजा (1५११५०७९)

अलपमोली भी कभी-कभी दरलभ : कतरिम परकाश म फीरोज का रग नही बदलता : इसक रग की नाजक मिजाजी : मसलमानी दशो म अधिक परचलन : बरकत दन वाला : कतरिम फीरोजा : असथि फीरोजा । भौतिक गण -- कठोरता 6, आपकषिक गरतव 2.60-282, वरतनाक 1.61- 1.65 ॥

फीरोजा को ससकत म परोज तथा हरिताशम कहत ह ओर अगरजी म 1५१५७९८ कहत ह |

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फीरोजा उन गिन-चन अपारदरशक रतनीय पतथरो म ह जिनकी

जवाहरातो की शरणी म गणना की जाती ह ओर इसका दरलभ वासतविक

आसमानी रग जो कम दिखाई दता ह इस अलपमोली रतन को मलयवान भी बना दता ह । इसक रतनीय पतथर नील-हर स लकर सब क समान हर रग क होत ह । कतरिम परकाश म इसका रग नही बदलता । कतरिम फीरोजा ओर सचच फीरोजा म सबस बडा अनतर यही ह ।

.फीरोजा का रासायनिक सघटन अतयनत जटिल ह । वह अलयमीना का हाइडस फासफट ( फपा०णड एौतञौका ग णणो72) ह ओर तवि क मिशरण स रगा हआ ह। लोहा भी अलप मातरा म परायः इसम मिला होता ह ओर इसक अनदर जल का कछ अनपात होन क कारण इसको इसतमाल करन ओर काम करन क समय अतयनत सावधानी की आवशयकता ह । सभी रतनीय पतथर कछ समय पशचात‌ अपना मल रग खो वठत ह.ओर गरमी या ताप इस रतन क लिए अतयनत हानिकर ह । बहत स रतनीय पतथर तो खान स निकलत ही पील पड जात ह । उनकी बाजार म पहचन की नौबत नही आती । असथायी रप स मिटटी म दवान स फिर रग वापस आ जाता ह । फीरोजा क रग को सरकषित रखन क लिए उस पानी या किसी तरल पदारथ म नही डवाना चाहिय । पसीन तक स फिरोज क रग पर परभाव पडता ह ओर. नील रतन हर रग क हो जात ह । इसका मनोहर रग तो जरर अपनी ओर आकरषित करता ह, परनत इसक रग की नाजक मिजाजी को दख कर यह कहना पडता ह कि यह रतन आमषणाो म जडन क लिय उपयकत नही ह । यह पोरस भी ह ओर नरम भी ह । एक सफटिक पतथर बडी सरलता | स फीरोजा पर खरोच डाल सकता ह ।

इसकी परकत बनावट मणिभीय नही ह । अतः इसको अमणिभीय या गपतमणिभीय ((07"०-09०॥ १९) कह सकत ह । सकषमदरशक यनतर स दखन स इसम दहर वरतन क तनत या कण दिखाई दत ह | इस गण म यह कालसडोनी स मिलता-जलता ह । इसकी दयति मोमिया ह ओर इस

की समभावना हो जाती ह।

सबस उततम नील रग क रतनीय पतथर ईरान स परापत होत ह जहौ व आगनय शिलाओ की दरारो या दा म पाय जात ह । निशापर खानो का मखय कनदर ह । य खान बहत परानी ह । शिनाई परायदरीप की

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खान भी कई शताबदिया स चली आ रही ह । एसा विशवास ह कि ईसा स 4000 वरष पहल स मिसर निवासी फीरोज स परिचित थ । एक भगरभ वतता मजर मोडानलड को अपनी खोज म कछ परानी खान मिली ओर उनम स व उततम जाति क फीरोज क कछ नमन अपन साथ ल गय जिनका सन‌ 1857 म परदरशन हआ । मिस म परापत रतनीय पतथर परायः हर रग क होत ह ओर कचि क समान लगत ह । मकसिको क रतनीय पतथर पीत आमा लिय हए नील या हर होत ह । मजापिल क निकट सियराद साणट रोजा म परापत होत ह । नय मकसिको, कलीफोरनिया तथा सयकत राजय अमरीका क कछ अनय राजयो म भी फीरोजा पाया जाता ह । इसक अनय परापति सथान ह तकिसतान, आसदरलिया (नय साउथ वलस, कवीनसलणड, विकटोरिया) ओर अफगानिसतान ।

फीरोज क रतनीय पतथरो को अधिकतर एन कबीकोन काट का रप दिया जाता ह । फिरोज का मिस, अरब दशो, तरकी ओर ईरान म बहत परचलन ह । वहा इसको बरकत दन वाला मानत ह । यह अगठियो म पहना जाता ह । रियो या तलवारो की मढ पर भी इसको जडा जाता ह। कहत ह कि सवस उततम फीरोजा ईरान क शाह क अधिकार म ह। वह निरदोष ह ओर लगभग साढ तीन इच लमबा ह ।

कतरिम फीरोजा -- कतरिम फीरोज भी परायः दिखाई दत ह । फीरोज को मिटटी स बनाया जाता ह । चीनी मिटटी ओर कच क बन फीरोज तो. सरलता स पहचान जात ह । असथि फीरोजा या इसको ओडो टोलाइट भी कहत ह । यह फीरोजा हाथी दात परसतर बनी हडडियो या दसर दता का बना होता ह। य असथियो या दत पराकतिक रीति या कतरिम परकरिया दवारा रगी हई होती ह । असथि फीरोज ओर सचच फीरोज म यह अनतर ह कि असथि फीरोज की जविक बनावट होती ह जो सकषम दरशक यनतर स दख जान पर साफ तौर पर मालम‌ जाती ह, पर सचच फीरोज म एसा नही होता । इसक अतिरिकत असथि फीरोज म निशचित रप स कलशियम कारबोनिट होता ह । इसलिय इस पर नमक क अमल की कछ बद डालन पर बलबल उठन लगत ह । फीरोजा नमक क अमल म घल जाता ह, परनत उसम बरलबल नही उठत । असथि फीरोज का आपकषिक गरतव 30 स 3.5 तक होता ह । यह फीरोज स मद ह । इसकी कठोरता 5 ह । इसलिय इसम टिकाऊपन का अभाव ह ।

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बरिसकाइट -- यह अलयमीनियम का जल सयोजित फासफट ह ।

यह भी फीरोज क समान लगन वाल हर रग क पतथरो म मिलता. ह । यह

बहत ही नरम पतथर ह । इसकी कठोरता 4 ह ओर आपकषिक गरतव 2.51

ह । (ग)

फलसपार वरग क रतन ( 80997)

फलसपार क मखय रतन : चनदरकानत, सरयकानत अमजनाइट ओर लगरडोरा$ट : चनदरकानत का चनदरमा की चोदनी म पसीजना : उसम परकाश की धारी : कौतकपरण खिलवाड की अचरजता : अमजनाइट हर रग का अपारदरशक परनत आकरषक रतनीय पतथर ।

भौतिक गण-- कठोरता 6 : आपकषिक गरतव 25 ; वरतनाक 1.51 - 1.52 ॥

फलसपार ( एश) महततवपरण खनिजो का समह ह जिसक गिन-चन खनिज रतनीय शरणी म आत ह । लकिन मलयवान‌ बिलकल नही ह । इस बहत नामो स जाना जाता ह । इसक मखय नाम ह- मनसटोन (चनदर कानत), सनसटोन (सरयकानत) लतरडोराइट ओर अमजनाइट । यह अलयमीनियम ओर एक अनय धात पोटशियम, सोडियम या कलशियम क सिलीकट ह । पोटशियम वाल फलसपार को आरथोकलाज (०५०५०७९) ओर दसरो को पलगियोकलाज (1186100986) कहत ह । परथम शरणी क मणिभ एकपदी समह (11000ता१८

१ ओर दसरी शरणी क तरिपदी समह (पता ऊन) क अनतरगत आ |

चनदरकात(गोदनता) (110० 510९) -- यह एक पारभासक रग विहीन, आरथोकलाज शरणी का रतनीय पतथर ह जो एकपदी समह क अचछ मणिभो क रप म परापत होता ह । इन रतनीय पतथरो पर दधिया दयति होती ह ५ जब इनह एक पहल‌ स दखा जाता ह तो इनकी सतह पर नीली आई यकत दधिया रग क परकाश का परावरतन होता ह । अरथात‌ उपलमासा क दरशन होत ह । जितनी ही अधिक नीली आभा रतन म हो उतना दी अधिक मलय का होता ह । पीत आभावाल पतथर बहत ससत होत ह ओर जो बिलकल सफद होत ह व किसी मलय क नही होत । अरथात‌ किसी काम

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क नही समञम जात । इन रतनीय पतथरो को सदा एन कबीकोन काट का

रप दिया जाता ह ओर इसम अनीक कभी नही बनाय जात ।

इनकौ कठोरता कम होती ह ओर दयति कोचीय ओर मोती क समान होती ह । भाजकता अचछी होती ह, इसलिए काटन म कोई कठिनाई नही होती । इस उपलभासा क कारण इसकी चनदरमा की जयोतसना स तलना की जाती ह । कष एसा विशवास ह कि असली चनदरकानत चनदरमा की रोशनी स पसीज जाता ह । हमन अनमव म एसा नही दखा । यह भी समभव ह कि जिस रतन स हमन परीकषा की हो वह सचचा चनदरकानत न हो । चनदरकानत (जिस चनदर कानत मणि भी कहत ह) का परापति सथान शरीलका ह । सविटजरलणड क सट गोथाड नामक सथान, एलवा तथा वरमा म भी चनदरकानत परापत होता

ह । यह भारत म भी परापत होता ह । वरमा का गोदनता (चनदरकानत) सबस उततम होता ह । शरीलका का माल बरमा की अपकषा घटिया होता ह । भारत का माल इन दोनो स घटिया ह । इसम बहत-स रग होत ह, किनत वरमा तथा शरीलका की अपकषा लोच, चिकनाहट व चमक म कमी होती ह।

सरयकानत या सरयकानतमणि -- इसको एवनचयरीन फलसपार (^\५९१।५११८ [५७07) भी कहत ह । यह लाल रग का रतन ह जिसम लोह क आकसाङड क अनतराविषट मणिभो स परकाश क परावरतन क कारण चमकील पील या लाल रग की आ क दरशन होत ह । इसक मणिम तरिपदी समह क अनतरगत आत ह । यह सोडियम,.कलसियम पलगियाकलोज ह । यगम मणिभ भी परायः परापत होत ह। इसका मखय परापति सथान नाव ह । बोहीमिया ओर फिनलणड म भी यह रतन पाया जाता ह।

लबरडोराइट (1.401800111९)- इसको लबरडोर सटोन भी कहत ह । यह

तरिपदी समह क अनतरगत आता ह ओर पलगियोकलाज शरणी का रतन ह । यह बड-बड पिणडो क रप म पाया जाता ह। इसका रग सलटी-नीला

होता ह ओर इसक बीच-बीच म चमकील धबब दिखाई दत ह । य चमकील धवव बड कौतकपरण होत ह ओर पतथरो को हिलान स एक ही पतथर म

कभी हर, कभी लाल ओर कभी पील परकाश की चमक दिखाई दती ह ।

जब यह पतथर चपटी सतह क रप म काटा ओर पालिश किया

जाता ह तो बहत आकरषक लगता ह । कोई कोई तो काल उपल क समान दिखाई दता ह । दभगय स यह अपारदरशक ह ओर साधारणतया इस जाति क रतनीय पतथर खशनमा नही लगत । सबस पहल यह पतथर बड-बड

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152 रतन-परदीप

दकडो या चटटाना क रप म लबराडोर क समदर तट पर परापत हआ था । बाद म परचर मातरा म यह उततरी रस म भी परापत होन लगा ।

अमजोनाइट या अमजन सटोन (^\2“० ) -- यह पौटशियम

फलसपार ह ओर इसक मणिभ तरिपदी समह क अनतरगत आत ह । काट जान ओर पालिश क बाद य हर रग क अलपमोली ओर अपारदरशक पतथर काफी आकरषक लगत ह, परनत बहत स अचछ पतथरो म सफद धवव ओर दरारो क होन क कारण उनकी शोभा विगड जाती ह । इन पतथरो मभी घमती हई परकाश की धारी होती ह । इन पतथरो को परायः एन कवीकोन काटकारपदिया जाता ह ओर इसम अनीक नही बनाए जात । बड टकडा स सजावट क वरतन, फलदान आदि बनाय जात ह । इन पतथरा पर नककाशी भी हो जाती ह। य रस म यराल परवत परदश तथा सयकत राजय अमरीका म कोलरडो राजय क पाइरिकस शिखर पर ओर पनसिलवनिया तथा वरजीनिया राजयो म परापत होत ह ।

जड (1०५५)

एक पराचीन रतन : दो विभद : जडाङट ओर नफराइट : पनना ओर मोरपख क समान सनदर रग : चीन का बहमलय रतन : चीन की पराचीन मानयतारय : चरा खान वाल का शव नही सडता : सब रोगो की रामबाण दवा |

विविघ नाम-- ससकत म इस भीषम पाषाण भी कहत ह । 2 दिनदसतानी या उरद म इस यशव या सगसम कहत ह । कछ लखको न इसका नाम हरितमणि भी रखा था । अगरजी म इस (1४०९) कहत ह|

जड क विभद-जड क दो विभद ह (9) जडाइट ५५५] यह पायारोकसीन वरग क अनतरगत आता ह ।. (२)नफराइट ५१५८९) यह एमफीवोल वरग क अनतरगत आता ह | दोना एकपदी समह (००९१८ 9,७।८0) क अनतरगत आत ह य सथर विशाल पिणडो म परापत होत ह। जिसको साधारणःचीनी जड कहा

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अलपमोली रतन 153

जाता ह, वह वासतव म जडाइट द । जो नयजीलणड जड या गरीन सटोन

क नाम स जाना जाता ह वह नफाइट ह ।

(1) जडाइट -- जडाइट की तनतमय मणिभीय बनावट दह, ओर

रासायनिक दषटि स यह सोडियम ओर अलयमीनियम का सिलीकट ह,

जिसक कारण यह काफी मजबत बन जाता ह, यदयपि इसकी कठोरता

कवल 1 स 7 तक द । इसका रग हर सब क रग स लकर पनन क रग

जसा होता ह ओर हर-सफद स लकर सफद तक ह । चमकील गलाबी,

वजनी ओर पील-नील रग का जडाइट भी मिलता ह । ससत परकार क

नारगी, लाल ओर पील जडाइट होत ह । साधारणतया यह पतथर अपारदरशक

होता ह । इसका आपकषिक गरतव 3.44 ह ओर इसम दहरावरतन होता ह जो

1 66.168 तक ह । जो सबस अधिक मलयवान‌ रतनीय जडाइट होता ह वह

पारभासक तथा निरदोष होता ह । उसका रग पनन क समान हरा होता ह ।

चीनी लोग उस रग का मकाबला मोर पख क हर रग स करत ह।

बहत स उततम जाति क जडाइट पतथर सफद धरवबो यारग क

एक समान न होन क कारण अपन उचच सथान स गिर जात ह । जडाइट

म अचछ बर सब ही परकार क रतनीय पतथर मिलत ह । कछ हलक हर रग

क होत ह जिन पर गहर हर रग क धबब होत ह । कछ मटर की पतती क

सामन हर होत ह ओर कछ पारभासक हर होत ह । इनका मलय साधारण

होता ह । सफद रग क पतथर काफी ससत दाम क होत ह । परनत एक

समान रग क रतनो क नकलस तीन हजार पाउणड तक क विक ह।

गलाबी ओर वजनी रग क जडाइट का मलय कछ अधिक होता ह, परनत

जयादा नही; कयोकि उस रग क पतथरो को लोग जड नदी मानत ।

जडाइट म जो पराकतिक हरा रग होता ह वह कदाचित‌ उसम

ऋोमियम होन क कारण होता ह । कछ म लोहा ओर भगनीज मिशरित होत

ह । उनकी दयति तलीय होती द, परनत पालिश खब अचछी हो सकती ह ।

जडाइट क उततम जाति क रलतनीय पतथर दरलभ ह । वासतव म

सारा अचछा माल चीन चला जाता ह जहौ इसको एक मलयवान रतन माना

जाता ह । वद इस रतनीय पतथर क समबनध म बहत-सी पराचीन मानयताय

ओर आसथाय र । व विभिन रगो क जड क भिनन-भिनन नाम ओर

मलय ह ।

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154 रतन-परदीप

उनकी विलकषण तनतमय बनावट क कारण जडाइट पर कछ काम

बनाना जरा कठिन ह परनत चीन क कारीगर तो पराचीन काल स उन पर सनदर नककाशी का काम करत आय ह । एस नककाशी क आमषण विदशो

म बड अचछ मलय पर बिक जात ह ।

जड क समबनध म चीन की मानयतारय -- चीन ओर जापान म जड (जडाइट) का बडा आदर ह । जापानी शबद गियक या तम ओर चीनी शबद य जड तथा समी बहमलय रतनो क लिए उपयोग होत ह । चीनी लोगो क अनसार जड सार रतनो का मल रप ह ओर इसम पाच मखय गणो का समावश होता ह । जस जिन - दानशीलता, विनमरता, य - साहस, कतस‌ - नयाय ओर ची - बदधि । उनकी एसी मानयता ह कि इस चर करक पानी म मिलान पर यह सार भीतरी रोगो की रामबाण दवा का काम करता ह तथा शरीर क दवि को मजबत बनाता ह, थकावट को दर करता ह तथा आय म वदधि करता ह । यदि इस काफी मातरा म मतय स पहल ल लिया जाय तो बाद म शरीर सडता नी ।

जडाइट क परापति सथान ह-- वरमा, दकषिण चीन का यनान परदश, तिबबत, भकसिको तथा दकषिण अमरीका ।

नफाइट (६०८) यह रासायनिक दषटि स एकटीनोलाइट का एक विभद ह ओर मगनीशियम, कलशियम ओर लोह का सिलीकट द । लोह क कारण इसम गहरा रग होता ह । या नफराइट का रग गहर हर स लकर सफद तक होता ह । जडाइट की तरह यह भी तनतमय पिणडो म परापत होता ह । इसकी दयति चमकीली होती ह ओर इसकी कठोरता जडाइट स कम होती ह । (कठोरता ¢, आपकषिक गरतव 3 ओर इसक दहरावरतन ह-वरतनाक 1.60-1.63) अपन मौतिक गणो दवारा यह जडाइट स पथक‌ किया जा सकता ह । नफराइट जडाइट स अधिक मातरा म परापत होता ह । नयजीलड म जहा इसको माओरी सटोन (०७) 50९) कहा जाता ह, नदियो म ककडो की तरह ओर शिलाओ म परापत होता ह । परान जमान म नयजीलणड क माओरी लोग नफाइट स असतर तज करत थ । अनय परापति सथान ह-परवी तरकी, साइवरिया, मकसिको, कासटारीका, वजयला, नय गायना । नफाइट का एक बडा पिणड मि० एच० आर० विशप क जड सगरह म था जो नययाक क मयणियम को भट द दिया गयाः था । बरिटिश कोलमबिया क लिटन कषतर म तथा जरमनी क साइलसिया कषतर म भी नफराइट परापत हआ ह ।

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अलपमोली रतन 155

जड स मिलत हए अनय खनिज

कछ खनिज एस भी ह जिनक कछ रगीन विभद जड स

मिलत-जलत ह । उनम मखय निमन ह -

(1) हरा गरोसलराइट (0१०४४५०९) यह बफलसफोटीन,

दरासवाल म मिलता ह । इस "दकषिण अफरीका का जड' या दरासवाल जड

कहत ह । (2) कतिफोनाइट-यह विसवियनाइट का हरा विभद ह। (©)

बोवानाइट (०५५१८) यह सरपनटाइन जड कहलाता ह । यह हर रग का

सरपनटाइन दोता र ओर नयजीलणड, अफगानिसतान तथा अमरीका म रोड

दवीप म मिलता द! (4) भकसिकन जड (०६५५१ 1५५९) - यह कनसाइट

ओनिकस खनिज को रगकर बनाया जाता ह। (5) हरित एवनचयरीन

(५.८१।५८)-यह हर रग का एवनचयरीन खनिज द । (८) सोसयराइट

(७०६५,।।८)-यह रतन जोईसाइट का एक विभद ह । इसका रग हरा-सलटी-

सा होता ह। सफद भी होता द। यह काफी चिकना पतथर ह । इसका

आपकषिक गरतव 3.2 तथा कठोरता ८ स 7 तक ह । यह जनिव डील

क पास मिलता द । (†) बरडाइट (४९५१५) यह सनदर हर रग का पतथर

ह, जो बड ढलो क रप म दकषिण अपरीका की उततरी काप नदी म पाया जाता

ह । यह हर अभरक, जिस फकसाइट कहत ह, ओर कछ चिकनी मिटटी

वाल पदारथ स मिलकर बना ह । (४) कतरिम जड जड की कचि की

अनकतियो भी बनाई जाती ह । इनको सरलता स पहचाना जा सकता ह ।

लाजवरत (1 415 1 ८५11)

सनदर मयर की गरदन-जसा नील रग का अलपमोली रतन :

पराचीन काल की नीलम : सोना मकखी क आकरषक धबव :

कम टिकाऊ परनत काम का रतन : परापति सथान ।

विविध नाम-ससकत म इस राजावरत कहत हः हिनदसतानी म

लाजवरत ओर अगरजी म (1. 14८01) ह । बाजार म यह लाजवरत या

लपिस क नाम स विकता ह।

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1 । रतन-परदीप

भौतिक गण-- कठोरता 55 : आपकषिक गरतव 2.70-2.90;

वरतनाक 1.50 ।

लाजवरत या लपिस मयर की गरदन क समान सनदर गहर नील रग का अपारदरशक रतनीय पतथर ह । परायः इसम सोना मकखी क समान पील धातयी रग क धबब होत ह । यह पतथर मखयतः कलसाइट का बना द, जिसम विभिनन अनपात म तीन नील खनिजो स रग परापत होता ह। यह अधिकतर बड पिणडो क रप म परापत होता ह । कभी-कभी यह मणिभाो

क रपम परापत होता ह। एस मणिम छोट ओर घन आकार क होत ह| यह रतनीय पतथर घन समह (८५१।८ ॐ%5५१) क अनतरगत आता ह । यह एक ससता ओर आकरषक अलपमोली रतनीय पतथर ह ।

जो उततम जाति क पतथर होत ह, व अतयनत गहर नील रग क होत ह ओर उन पर किसी परकार क धवव नही होत । ससत पतथर हलक रग क होत ह ओर कही-कही पर सफद या सलटी रग क अश होत ह रग की समानता नही होती । अचछ रग क बड पतथर दो रपय परति करट क हिसाब स मिलत ह ।

अपन मिशरित सगठन ओर कम कठोरता क कारण लपिर पर काम करन या उसम छद बनान म कठिनता होती ह ओर एसा करत समय बहत सावधान रहन की आवशयकता होती ह । इसका आपकषिक गरतव भी अधिक नही होता । इसक अतिरिकत इसम भाजकता नही होती । ताप क पहचन पर बहत स पतथर अपना रग खो वठत ह, परनत दणड होन पर पनः अपन रग को पा लत ह । कछ रतनीय पतथर ताप स फीक रग क हो जात ह जो सथायी हो जाता ह।

पराचीन काल म इस रतनीय पतथर स सजावट क वरतन, फलदान, पयाल आदि बनाए जात य । इनका आभषण म भी उपयोग ` होता था | इसक नकलस ओर चाकओ क डिल भी बनाय जात थ । लनिन गराड क गिरजाघरो म लपिस क मोजयक क काम अब भी दिखाई दत ह । पराचीन काल म लपिस ही को नीलम रतन माना जाता था ओर उस समय इसको बडा सममान परापत था। आभषणो क अतिरिकत चितरकार इसको पीसकर इसस अपन काम क योगय नीला रग वनात थ ।

लपिस की सबस परानी खान अफगानिसतान म बदखशा क निकट ह जहा यह एक तग घाटी म चटटानो म जड चना पतथर म पाया जाता

¬. 1 चल ~

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अलपमोली रतन 157

ह । इन खानो का जिकर मारको पोलो न सन‌ 127 म किया था। यहा अब

भी परान तरीको स पतथर निकाला जाता ह। जाड क दिनो म.

चटटानो क निकट आग जला दी जाती ह ओर फिर गरम पतथरो पर पानी

डाल दिया जाता ह । इसस पतथर ढील पड जात ह ओर उनको सरलता

स चोटो स तोड लिया जाता ह। यह का अधिकाश उतपादन भारत या

रस को भजा जाता ह । जरमनी ओर चीन भी इस पतथर को खरीदन म

दिलचसपी रखत ह । अनय परापति सथान ह साइबरिया ( बकाल की बील

क निकट) ओर चिली म एनडीज परवत परदश ।

अमबर (८८)

खनिज नी, वानसपतिक रतन : आदिम जातिरयो की सजावट का

सरवपरथम रतन : अमबर क तावीज : उतपतति का मनोरजक इतिहास ।

अलपमोली, नरम तथा भगर फिर भी परतिषठित : विभद ओर परापति-सथान :

सबस बडा अमबर : इसम परकति का कौतक : इसम कीडो ओर पततिरयो

आदि का चितरण : कतरिम अमबर ।

विविध नाम-- अमबर को ससकत म तणमणि ओर हिनदसतानी म

अमबर ओर अगरजी म भी अमबर (^) कहत ह ।

अमबर खनिज पदारथ नही ह, परनत एसा विशवास ह कि आदिम

जातियो न अपन शरीर की सजावट क लिए सरवपरथम अमबर को उपयोग

म लिया था । पाषाण काल ओर उसक बाद अधिकतर अमबर बारटिक समदर

, तट पर परापत होता था ओर कहत ह कि वहो स उततरी सागर क रासत स

नावो पर इगलणड लाया जाता था । कहत द कि ईसा स 1200 वरष परव

भी अमबर का परचलन था । उस समय अमबर अमीर- गरीब सब ही आमषणो

या तावीजो क रप म धारण करत थ, कयोकि इसका रग बहत आकरषक

था । परानी करो म अनक अमबर क दाना की मालाय परापत होन स परतीत

होता ह कि अमबर का ताबीज क रप म उपयोग बहत अधिक होता था ।

यरोप क अनक पराचीन काल क कबिसतानो स विशषकर एशियाटिक समदर

तट पर हजारो की सखया म अमबर क दान परापत हए ह । एक अतयनत

सनदर अमबर की माला ठटरी क साथ इगलणड क विलटशायर नामक सथान

स परापत हई थी । वह माला बरिटिश मयजियम म सगरहीत ह।

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158 रतन-परदीप

अमबर क परति आकरषण का जञान ईसा स 600 वरष परव थलस क माइलटस स परापत हआ था । पलटो, एरिसटाटिल ओर थियोपफासटस को भी अमबर स मिजञता थी । आइसोडोरस, सिकलस सदरबो आदि पराचीन विदवानो न अपन लखो म अमबर का उललख किया ह । पलिनी क अनसार "कला की वसतओ क लिए अमबर का उपयोग साधारण तौर पर किया जाता था“ होमर न अपनी परसिदध रचना `ओडिसी" म अमबर का उललख किया ह । नीरो क समय रोम म इसको एक परतिषठित सथान परापत था ।

कवल पाशचातय दशो म ही नही, परवी दशो म भी अमबर को मानयता परापत थी । तरक, अरबी ओर फारसी लोग अमबर क कदरदानो मस थ ओर अमबर की मालाय ओर नकलस य क लोग इसतमाल करत थ । अमबर म चमबकीय गण इनक लिए बहत आकरषण का कारण था । व इस दविक शकति मानत थ ।

एसी धारण ह कि अमबर की उतपतति उस काल म हई थी जव मनषय जाति पदा भी नही हई थी । असखय वरषो परव बालटिक समदर तट पर एक एसा कषतर था जहो एस पौध ओर वकष थ जो अब नही होत । वहा कौ जलवाय गरम थी ओर व क जगलो म लमब-लमब वकष उग । इन पडो स अतयधिक गरमी क कारण राल (रण) पदारथ निकला । बाद म व पड तन स गिरकर टकड-दकड हो गय ओर भ गरभ म समा गय। जब जमाना बदला , जमीन धसी ओर परान जगलो क ऊपर समदर क पानी क परमाव स उसका रप बदलन लगा तब उस पर एक मिडी की तह जम गई ओर इसी नीली मिदटी म अमबर परापत होता ह । हिम यग (०८ ^\&९) म पथवी तल पर अनय परिवरतन हए । बालटिक सागर क समदर तट पर समदर क नीच रतीली तह पर इस परकार अमबर परापत होन लगा ।

इस पराचीन इतिहास क अनसार अमबर एक खनिज नही, वरन‌ वानसपतिक उतपतति ह जो एस वकषो स उतपनन हआ था जो अब नही । अमबर क रग सफद स लकर गहर भर तक होत ह । लाल, नीली, मरी ओर हरी आमा क अमबर मी होत र परतत साधारणतया परापत रग शहद क रग का-सा गहरा भरापन लिय हए होता ह । अमबर पारदरशक, अपारदरशक या अरदधपारदरशक होता ह । पारदरशक जाति क रतना क सनदर अनीक बनाय जात ह । समी अमबर रतनो का रासायनिक सघटन एक-सा नी द, परनत अधिकाश म 2 परतिशत कारबन, 105 परतिशत हाइदधोजन ओर 105 परतिशत आकसीजन होती ह । इसम गनधक की कछ मातरा भी दखी गयी

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अलपमोली रतन 159

ह जो निरमल अमबर म 3 स 4 परतिशत तक होती ह ओर मधीय अमबर म + परतिशत होती ह । अमबर का आपकषिक गरतव 1.10 ह । अतः वह पानी

स कछ भारी होता ह । इसकी कठोरता कवल 2 ह ओर वरतनाक 1.54

(एकहरावरतन) ह । इन भौतिक गण स सपषट ह कि अमबर न तो टिकाऊ रतन ह ओर न आभषण म जडन योगय ह । यह भगर ह ओर हलकी सी

चोट स टट जाता ह। इस पर काम करत समय अतयनत सावधानी की

आवशयकता ह ।

कयोकि अमबर ताप का कचालक द, अतः यह सपरश स गरम लगता

ह ओर उसको काच या रतनीय पतथर नही माना जा सकता । अनतराल

पदारथो क समान अमबर रगड स चिपचिपा नी हो जाता । इसम रगड स

जो विदयत आवश उतपनन होता ह वह निगटिव होता. ह, परनत रगडन पर उसस चमबकीय शकति उतपनन हो जाती ह जो हलक कागज क दकड को अपनी ओर खीच लती ह ।

अमबर को यदि अधिक ताप दिया जाता ह तो अमबर का तल

निकल जाता ह। 100 सनटीगरड क ताप पर वह मलायम होन लगता ह

ओर इसम एक विशष तरह की सगनध निकलती द । 350" स 375" क ताप

पर यह पिघल जाता ह । पिघलन पर इसम स ाग निकलती ह ओर एक

सगनध-सी भी । अनय राल पदारथो की अपकषा अमबर अधिक ताप म पिघलता

ह, अधिक कठोर ह ओर ईथर या एलकोहल म कठिनता स गलता ह ।

परथम शरणी का अमबर बिलकल निरमल होता ह । उसम दोष, दरार

या किसी परकार क धवव नही होत ओर उसका रग नीब की तरह सनदर

पीला या गहरा पीला होता ह। इस रग की ही अधिक माग द, कयोकि

इस शरणी क बड ओर निरदोष नगीन दरलभ ह । इनका अचछा मलय मिल

जाता द । छोट दकड बहत ससत होत ह ओर सच बात यह ह कि रतना

म आजकल अमबर की काफी ससत रतनो म गणना होती द । अमबर जयो -जयो

पराना होता जाता दह उसका रग गहरा होता जाता ह । परान चावल की

तरह परान अमबर की भी जयादा कदर ह ।

इसक निमनलिखित भद ह :- (1) निरमल-यह परणतः पारभासक

होता ह । इसका रग जल स शवत या पीला या मरा-लाल होता ह। (२)

सनही तणमणि-निरमल तणमणि ओर सनही तणमणि म यह अनतर ह कि

सनही विभद म हवा क बलबल की उपसथिति क कारण इसम कछ गदलापन

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160 रतन-परदीप

आ जाता ह। आकति तथा रग म यह हस या बततख की वसा स मिलती ह | जरमन लोग इस विभद को पलोहमिग कहत ह । (3) वरणसकर-अमबर क इस विभद म हवा क बहत-स छोट बलबल पाय जात ह । यह मघायित होता ह । (4) असथिमय-इस विभद का अमबर दात या सखी हडडी क समान मालम होता ह । इसम चमक अचषठी होती ह । इसम हवा क बलबल काफी सखया म होत ह । ऽ) आगदार-यह विभद चाक क समान सफद

रग का होता ह। इस पर चमक नही पडती । यह अपारदरशक होता ह |

अमबर क कछ मघायित विभद का तल सावधानी स गरम करक निरमल बनाया जा सकता ह । इस परकिया म तल अनदर रम जाता ह ओर सकषम वाय सथानो को भी भर दता ह।

मखय परापति सथान -- बालटिक सागर क दकषिणी तट क सहार सथित परवी एशिया का सललणड तथा कोयनिगस वरग क उतरी एव पशचिमी विभाग । शताबदियो स अमबर इन परदशो स परापत किया जाता रहा ह। यरहो पर अमबर हर रग की गलोकोनाइट रत म छितरा हआ मिलता ह । इस रत को नीली मिटटी कहत ह । अमबर क खनन का कनदर पामिनिकन ह । अमबर की विभिनन वसतओ क निरमाण क कनदर कोयनिगस वरगमह।

इस परदश म अमबर यकत सतर बालटिक सागर क तट पर अनावत पाया जाता ह । तफान क पशचात‌ लहर दवारा धोय हए अमबर क टकडा को समदरी अमबर कहत ह । पामिनिकन म अमबर का खनन खल गडढ की खान म किया जाता ह । पहल ऊपर का पदारथ हटाया जाता ह । इसक बाद अमबर वाली मिटटी को गाडियो म भरकर किनार क पास धोन वाल कारखाना म ल जाया जाता ह । यहा पर अमबर को नीली मिटटी स अलग किया जाता ह । इस तरह 25-3 परतिशत तो रतनकोटि का अमबर परापत होता ह । शष अमबर अलग ओदयोगिक काम का होता ह । यह रतनकोटि पदारथ कोयनिगस बरग भज दिया जाता ह ओर शष पामिनिकन म सथित कारखाना म बड रिरटाट बरतनो म डालकर गरम किया जाता ह ओर इसस बाद म अचछ परकार क वारनिश तथा लकर बनाय जात ह |

ट कोयनिगस वरगम पहच अमबर का फिर चनाव किया जाता ह ओर वरहासयातो उस दसर सथानो को मज दिया जाता ह या उसस विभिनन परकार की वसत बनाई जाती हः जस मालाओ क दान, सिगरट होलडर

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अलपमोली रतन 161

रतन पटिकाय आदि । इस तरह क अनय कारखान डनजिग, वियना तथा वरलिन म ह ।

अमबर बालटिक सागर क तट पर लिथआनिया म भी पाया जाता ह ।

रमानिया का अमबर -- इस रमनाइट भी कहत ह । यह साधारणतः भर पील रग का होता ह। कभी-कभी पील रग का भी परापत होता ह। यह पारदरशक या पारभासक होता ह । सचच अमबर की तरह यह भी रगडन स विदयनमय हो जाता ह । इसका मखय परापति सथान रमानिया का उपजाऊ परदश द ।

सिसिली का अमबर -- रकतपीतवरण या हलक लाल स गहर लाल रग का अमबर यरहौ परापत होता ह। कभी भर या पील रग भी दिखाई दत ह । इसका मखय परापति सथान सिमटी नदी म महान क निकट का परदश ह ।

वरमा का अमबर -- यहा का अमबर एक-स रग का होता ह। साधारण या पील रग तथा लाल या गहर रग का अमबर या परापत होता

ह । हलक पील रग का अमबर पारदरशक होता द। यहौ क अमबर को वरमाइट कहत ह । यह बालटिक सागर स परापत अमबर स कछ अधिक कठोर होता ह। परापति सथान ह छिदवीन नदी क ऊपरी सहायक नदियो म हयाकाग की घाटी ।

सबस बडा अमबर सन‌ 1860 म ईसट एशिया (यह परदश अब जरमनी म सममिलित ह) म परापत हआ । इसका रग बहत मनोरम ह- वजन 2। पाउणड ह ओर इसका मलय उस समय 1500 पाउणड आका गया था | यह वरलिन क पराकतिक इतिहास क सगरहालय (६५।५।४॥ 11150 ७६५५0 ७ 1८11)0) म रखा ह ।

कतरिम अमबर -- अमबर की बहत सी अनकतियो ( १५५५ ) ह जिसस अमबर को पहचानना कठिन हो जाता ह । य अनकतय महततवपरण ह ओर इनद असली अमबर स पहचानना काफी कठिन काम होता ह। सलयलाइट तथा कचि क बन नकली अमबर को दखन मातर स उसक नकली होन का जञान हो जाता ह।

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6 रतन-परदीप

एक मनोरजक सयोग -- बालटिक सागर स परापत अमबर म एक

विशषता यह द कि उसम कभी-कभी कीडो क दकडो ओर पततियो क

आकार बन होत द । निरमल अमबर म यह चितरण सपषट दिखाई दत ह ।

परकति क इस कौतक को दखकर एक अगरज कवि न लिखा हः

एला? भराएला, 0 0056६५८ (८ (0

7 1005 ज 518५5 छा का ज हाणाऽ छा पषठी.

11८ (1१९5. ५८ १०५५, धात [लाला ली 70 पपा.

पा जजातलाः 10५ १५ ५८५ (16) ४९1 11116.

एक ओर अगरजी कविता इस समबनध म ह

4 वण) ज भला, [णा 8 एणणणा कि.

गला पालतत८९, भात लाफमित मो भा

ग0८ [1८ 175८त‌. ४/८ 59 पणतौ पणातलात.

15. ला) ४ 01111८55 वा. [पततो च शली).

(घ) अनय विविध अलपमोली रतन

+ (1) भलाकाइट (५००९५) मलाकाइट को हिनदसतानी म दान

फिरग कहत ह । इसका अगरजी नाम किडनी सटोन (१६५१५ 5०१५) भी ह ।

भौतिक गण -- कठोरता 3‡-4: आपकषिक गरतव 3१-4;

दहरावरतन-वरतनाक लगभग 1.8 ।

रग -- अपन मनोहर हर रग क कारण मलाकाडट आभषण

तथा सजावट की वसतय बनान म काफी समय स उपयोग होता आया ह ।

परनत यह बहत नरम पतथर सरलता स कषतिगरसत हो सकता ह । फिर भी

अपारदरशक होन क कारण इस पर पालिश सरलता स ओर अचछी हो जाती

ह । परान धिस हए पतथरो म भी यदि आवशयकता हो तो पालिश की जा

सकती ह ।

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अलपमोली रतन 163

रासायनिक दषटि स -- यह कयपिक काबोनिट ह ओर इसक मणिम एकपदी समह क अनतरगत आत ह । इसम कई परकार का चमकता हरा रग होता ह ओर इसक मणिम बड सनदर आकार क होत ह । भाजकता इनम परण रप स होती ह । इस कारण इस पर लथ (100०) दवारा काम किया जा सकता ह जिसस इसम चमकीली पालिश हो जाती ह । इसम लगभग & परतिशत जल होता ह जो ताप दन पर सख जाता ह, परनत इस परकरिया स रग आकरषणहीन हो जाता ह ।

मलाकाइट बहत सथाना म परापत होता ह, परनत उन खनिजो क साथ म जिनम तोव का मिशरण होता ह, अधिक पाया जाता ह। इसकी खरड‌, रस, वयबा, चिली ओर आसदरलिया म परापत होती ह । परनत मखय परापति सथान रस का यराल परवत परदश ह । रस म इस रतनीय पतथर दवारा काफी कारीगरी का काम होता था। लनिनगराड क गिरजाघरो क खमभो म अब भी मलाकाइट क सनदर नमनो को दखा जा सकता ह ।

भलाकाइट या दान फिरग का कछ फीरोजी, भलापन लिए हए गहरा हरा रग होता ह । इस पतथर म गरद क समान शयाम चकर होता ह । (पाशचातय लखको न इसका जिकर नदी किया ह) । पतथर चिकना होता ह | इसकी परीकषण विधि यह ह कि चाक. या लोह की पतती पर नीब का रस लगाकर इस पतथर को धिसना चाहिए । धिसन पर पतथर यदि तापरवरण हो जायतो तव क कस का, यदि शवत वरण हो जाए तो चौदी क कस का ओर यदि पीला रग हो जाय तो सोन क कस का होता ह। इस परकार परीकषा-अनसार इस पतथर क तीन विभद किए जा सकत ह । इनम सोन क कस का दरलभ होता हि।

(2) सपोडयमीन (७[७५५॥1८1५)

भौतिक गण : कठोरता ¢{-7; आपकषिक गरतव 3.20; वरतनाक 1.60 - 1.68 ।

एसा अचछा कटा हआ उततम जाति का रतनीय पतथर दरलम माना जाता ह । कछ समय पहल यह रतन खनिजवतताओ क अतिरिकत ओर लोग क लिए अपरिचित था। कलीफोरनिया की सनडियागो काउनटी म पाला नामक सथान म, इसक मनोरम रकत-नील रग क पतथर की खोज क साथ सन‌ 1%03 म इसन सहसा परसिदधि परापत की ।

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16 रतन-परदीप

सपोडयमीन साधारणतया सफद, अपारदरशक तथा अनाकरषक खनिज

होता ह पर इसक दो विभदो की बहमलय रतन कोटि म गणना होती ह ।

पनन क समान हर रग क विभद को हिडोनाइट कहत ह । इसका यह नाम

डनलय०ई०हिडन क सममान म रखा गया ह । उनहोन इसका सरवपरथम उततर

करोलीना की एलकजनडर काउनटी म पता लगाया । इसकी परापति सीमित

ह, इसलिए यह लोकपरिय नही बन सका । दसरा विभद हिडनाइट दिवरणिक

ह । अतः इसका रग परयवकषण दिशा क अनसार बदलता ह । इसका एक

विभद कजाइटः कहलाता द । इसका यह नाम रतन विशषजञ डाकटर

जीरएफ०कज क सममान म रखा गया ह । हिडनाइट ओर कजाइट पारदरशक

होत र, परनत इनका रग परकाश म रख जान पर फीका पड जाता ह ।

कजाइट कलिफोरनिया क अतिरिकत मडागासकर म भी मिलता ह।

नील ओर पील मणिम बराजील म मिलत ह ।

दो अनीक यकत रतन, जिनम एक सनदर कजाइट ओर दसरा आकरषक हिडनाइट द ओर जिनका वजन करमशः ८0 तथा 2.5 करट ह बरिटिश

मयजियम म सगरहीत ह ।

कभी-कभी हिडनाइट को 10 लागत, ओर कजाइट को ९.2

८९५1 ५* कहत ह '

(3) ओनसीडियन (००४५।५१)- भौतिक गण :- कठोरता 5; आपकषिक गरतव 2.3-2.6: वरतनाक ॥.5 |

ओनसीडियन वासतव म खनिज नही, चटटान ह । यह जवालामखी का लावा ह जो इतनी शीघरता स ठणडा हो गया ह कि उसक मणिभ नही बन सक । अतः इसको जवालामखी का कोच कहना अधिक उपयकत होगा । इसका रासायनिक सगठन जटिल ह, परनत इसम अधिकतर सिलिका ओर अलयमीना होत ह । कष मातरा म पोटाश, आयरन आकसाइड इसम सममिलित होत ह ।

वासतव म ओबसीडियन बन हए कच क समान लगता ह । वह कोचि क समान सरलता स टट जाता ह ओर इसकी दयति भी कोचीय होती ह । इसम मणिभीय बनावट नही होती ह । इसकी कठोरता ओर इसका आपकषिक गरतव भी कम होता ह । इसका रग सदा गहरा होता ह -- चाह वह काला-भरा सलटी या लाल हो । उततरी अमरीका म पाय कछ रतन म धारिय पाई गई ह । कछ म एस पदारथ मिल ह जिनम स आनतरिक

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अलपमोली रतन 165

चमक दिखाई दती ह । परनत इस परकार क रतन बहत कम दिखाई दत ह । रतन विजञान क अनसार ओनसीडियन की धबबदार या धारीदार रचना होती ह । सकषमदरशक यनतर म इसक सकषम मणिम दिखाई दत ह जो विकास चरण क कारण ह । इनस अधर म रग की चमक पदा होती ह । ओनसीडियन पारदरशक या पारभासक होता द ।

पराचीन काल म आदिम जातियो क लोग इसका उपयोग आमभषणो म तथा भाल या तीर तथा अनय परकार क ओजार बनान म करत थ ।

इसक परापति सथान ह- मकसिको, यनान, आइसलणड, सयकत राषटर अमरीका क बायोमिग, ओरगन तथा कलीफोरनिया राजय ।

4) सफीन (७१८०९) -- भौतिक गण : कठोरता 5); आपकषिक गरतव 3.4 -3.6: वरतनाक 1.%5-2.05 । रासायनिक दषटि स यह कलसियम का सिलीकट ओर टाइटिनट ह । इसी कारण स परायः इसका नाम टाइटनाइट (149५८) कहा जाता ह । इसक मणिम एकपदी समह (।०१०५।१।८ ॐ“) क अनतरगत आत ह । यह पारदरशक होता ह । ओर इसकी आकति लिफाफ या पननी (०५४०) क समान होती ह । इसक मणिम अधिकतर हर रग क होत ह । पील ओर भर रग क भी मणिम होत ह ओर कटाई क बाद अतयनत सनदर लगत ह, कयोकि इसम परकाशीय फलाव परयापत होता ह ओर इसका वरतनाक भी ऊचा होता ह, परनत दभगयि वश कम कठोरता अरथात‌ काफी नरम होन क कारण इनम टिकाऊपन नही होत । अतः यह रतन आभषण म परतिषठित सथान परापत करन म असमरथ रहा ह, यदयपि अनय ऊपर दिय गए गणो क अतिरिकत इसम दविवरणिता होती ह ओर भाजकता भी अचछी होती ह ।

सफीन शिसट तथा चन क पतथरो म पाया जाता ह । इसक परापति सथान सटिजरलणड मडागासकर, सयकत राषटर अमरीका क मन, नययारक तथा पनसिलवनिया राजय ह ।

(5) सोप सटोन ( ७० ऽ\७१८)-- इसको सटीएटाइट ओर टालक भी कहत ह । रतन परकाश क अनसार इसका हिनदसतानी नाम घीया पतथर

या सग जराहत ह । 1

भौतिक गणः कठोरता । - 14: अपकषिक गरतव 27-26 । यह मणिभा क रप म परापत होता ह ओर चतरभजीय या एकपदी समह क अनतरगत आता

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166 रतन-परदीप

ह । कभी-कभी सोप सटोन बड-बड पिणडो क रप म परापत होता ह।

रासायनिक दषटि स मगनीशियम का सिलीकट द । यह बहत नरम होता

ह ओर छन पर अतयनत तलीय लगता ह । इसस कटी ओर बनी हई मरतिया

भारत ओर चीन स परापत हई ह । इसका खरड सयकत राषटर अमरीका ओर

कनडा स आता ह।

इसी तरह का एक पतथर, जिस एगल म टोलाइट भी कहत ह,

चीन म मिला द । व इसकी मरतिया ओर आमषण बनत ह ।

सरपणटाइन (5०१०१५१०) सरपणटाइन को हिनदसतानी म जहर मोहरा

कहत ह ।

भौतिक गणः कठोरता 2.5-4: आपकषिक गरतव 2 वरतनाक लगभग

1.57 । यह पतथर वासतव म चटटान ओर बड-बड पिणडो क रप म परापत

होता ह । रासायनिक दषटि स मगनीसियम का सिलीकट ह ।

इसका रग तलीय हरा होता ह । इसक कमियो, फलदान, घडी क फम आद बनाय जात ह । कारनवाल म जहा यह परापत होता ह इसक तरह-तरह क आमभषण बनाय जात ह । यह साइपरस म भी परापत होता ह

वरडाइट (५५.५८) पतथर जिसस ससत दाम की मालाय बनती ह

सरपणटाइन की चटटान स निकलता ह । परायः भर ओर पील रग क पतथर परापत होत ह । वरडाइट दरानसवाल क बारवरटन जिल म परापत होता ह।

सरपणटाइन का एक ओर विभद जो भारत ओर अफगानिसतान म परापत होता ह, बोवनाइट कहलाता ह । रग स वह सब क समान हर स लकर पीला सफद तक होता ह ओर जडाइट क समान लगता ह । भारत म इसक आभषण,वसतओ क डिल ओर इसी परकार की अनय वसत बनाई जाती ह । यह सयकत राषटर अमरीका ओर नयजीलणड म भी मिलता द ।

सरपणटाइन क कछ विभद एस होत ह जिनका उपयोग रतनो क समान आभषणो म होता ह । एक विभद र विलयमसाङइट (हर रग का ) जो सयकत राषटर अमरीका म परापत होता हः कोनमरा मारबल (हर रग क पिणडो म परापत होन वाला) ओर एणटीगोराइट (गहर रग का) जो इटली

म परापत होत ह । सरपणटाइन बहत ही नरम होता ह । इसलिए जड स

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अलपमोली रतन 167

सरलता स परथक‌ किया जा सकता ह-- दसर होन का धोखा नही हो सकता ।

सरपणटाइन या जहर मोहरा एक गम, हलका नरम पतथर होता ह । रग पील म हरा मिशरित धानी रग का होता ह । ईरान म खातन एक सथान ह वह का जहर मोहरा बदिया माना जाता ह, अतः उस जहर मोहरा खताई

कहत ह । इसक खरल, पयाल आदि बनाए जात ह । इसकी पहचान यह ह कि इस पतथर की खरल म हलदी पीसी जाय तो लाल रग हो जाता

ह ओर इस पतथर म धागा बोधकर जलाया जाय तो नही जलता ।

7] फलोर सपार [१०५ 5५] - भौतिक गण - कठोरता 4 : आपकषिक गरतव 3.18 ; वरतनाक 1.43 ।

रासायनिक दषटि स फलोरसपार कलसियम फलोराङड ह । यह मणिमा क रप म पाया जाता ह ओर घन समह [८५७१८ 5५१) क अनतरगत आता द । इसक मणिभ बड ओर समान आकार क होत ह । कोरईड-कोई तो 1४ ङच लमब होत ह ।

फलोर सपार लगभग सभी रग म पाय जात ह. परनत रग फीक होत ह । इसका कवल एक विभद आभषण म इसतमाल होन योगय हता ह । उस वल जान [।५८ 19१] कहत ह । वह सपषट नील रग का होता ह । पहल यह इङगलड म डरबीशायर म परचर मातरा म पाया जाता था । इसक फलदान आदि भी बनत ह । रगविहीन पतथरो क लनस बनाय जात ह ।

भाजकता परण ह ओर कठोरता इतनी कम ह कि इन पतथरो पर सरलता स काम किया जा सकता ह । यदयपि इनम इकहरावरतन ह, परनत परायः हर रग क पतथरो म नील रग की आभा दिखाई दती ह ।

इसक परापति सथान ह इगलणड म सकसोनी, कारनवाल, उरबीशायर

ओर कमबरलणड । जरमनी ओर नारव म यह चोदी की खाना म पाया जाता

ह । सयकत राषटर अमरीका क कलीफोरनिया राजय म भी यह मिलता ह ।

(8) हीमटाइट (110४०॥11५)-- इसका हिनदी नाम लौह पाषाण भी

ह |

भौतिक गण : कठोरता 56 : आपकषिक गरतव 4.9.5.3; वरतनाक

2.04-3.22 ।

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168 "न

रासायनिक दषटि स फरिक लोह का आकसाइड ह । यह अपारदरशक

होता ह तथा इसम धातविक परभावान स निषपरम दयति पाई जाती ह । यह लोह का महततवपरण अयसक ह । इसक सघन विभद को जित किडनी आयरन

कहत ह, काटकर इस परकार क मनक बनाय जात ह जो काल मोती स लगत ह ।

पहल जमान म यह काल रग का चमकीला पतथर आभषण क लिए इसतमाल होता था । परनत टिकाऊपन न होन क कारण इसको रतन परिवार म कोई सममानित सथान नही परापत ह ।

इसक परापति सथान ह-आलपस परवत, नारव, सपन, इगलणड, फरानस, सयकत राषटर अमरीका, भारत, एलवा । कई नककाशी किय हए पतथर मिस की परानी कतरो स परापत हए ह ।

मीरशम (८८७९0201) -- भौतिक गणः कठोरता २-२ : आपकषिक

गरतव 2 |

यह नरम पतथर ह ओर इस पर खदाई सरलता स की जा सकती ह । इस चमकाया भी जा सकता ह । इसका उपयोग सिगरट या सिगार होलडर तथा चिलम की कटोरी बनान म किया जाता था।

मीरशम मगनीशियम का जल सयोजित सिलीकट ह । इसक मणिभ एकपदी समह (५००न१९ $ऽन) क अनतरगत आत ह । यह सघन गौठदार पज क रप म पाया जाता ह ।

इसक परापति सथान द एशिया माइनर, सवन यनान, मोरविया, मोरकको, सयकत राषटर अमरीका म कलीफरनिया, दकषिण करोलीना, यटा, नय. मकसिको तथा पनसिलवनिया राजय ह । (10) मारबल (५९) भौतिक गण : आपकषिक गरतव 3 : वरतनाक

1.-18-1.65

यह चना पतथर का परिवरतित रप ह ओर जब विशदध होता ह तो इसम सफद धारिया होती द । परायः अशदधियो क कारण इसम धारिया होती ह।

बराजील का ओनिकस, भकसिको का ओनिकस या कलीफोरनिया का ओनिकस य सब मारबल क विभद ह| आरजनटाइना म अपारदरशक हर

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अलपमोली रतन 169

ओर पील पतथर, जिनम भरी या लाल धारयो होती ह, परापत होत ह ।

अलजीरिया, मकसिको चिली तथा मिस म भी इस परकार क पतथर पाय जात

ह । भारत म अनक परकार का मारबल (सगमरमर) बहतायत स परापत होता

ह।

(11) अलिबासटर (५४०७०) भौतिक गण : कठोरता 15-2 :

आपकषिक गरतव 2.3 ।

ओलवबासटर जल सयोजित कलशियम सलफाइट ह ओर सलखडी |

(जिपसम) क समान होता ह । बनावट म सपषट मणिम-सा नरी लगता ।

परायः इसका रग सफद होता ह, परनत कभी-कभी लाल रग क धनव या

छीट होत ह । यह इतना मलायम होता ह कि इसम नाखन स खरोच डाली

जा सकती ह । यह पानी म भी घल जाता ह।

इसक परापति सथान ह-सविटजरलणड तथा सयकत राजय अमरीका ।

इसका उपयोग सजावट म सगमरमर की तरह होता ह । अलजीरिया म भी

इसकी परानी खान ह । इस पतथर का उललख बाइविल म भी दह, जिसस

परतीत होता ह कि पराचीन काल म इसकी काफी कदर थी । पफलोरस इस पतथर

का वयापार कषतर ह।

(12) सवरणमकषिका (1.५ 1०७) भौतिक गण : कठोरता ७,

आपकषिक गरतव लगभग 5 ।

यह खनिज आयरन का डीसलफाइड ह । इसका आमषणो म

अपयोग तो होता द, परनत अधिक नही । यह पील रग का होता ह ओर

इसम सथायी धातयी चमक होती ह जौ काफी समय तक खराब नही होती ।

इसक मणिम घन समह क अनतरगत आत द । इस रतनीय पतथर का इसतमाल

अधिकतर बकसआ ओर बरच आदि म होता ह । यह पतथर काफी कठोर

होन पर भी भगर ह । यह लगभग सभी दशो म परापत होता ह । कहत ह

कि दकषिणी अमरीका म अचछी पालिश क बड रतनीय पतथर दरपणो क रप

म परानी कतरा म पाय गय थ ।

(13) सगमसा (1५)-- भौतिक गणः कठोरता 4 : आपकषिक गरतव

1.35 ।

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170 रतन- परदीप

जट या सगमसा कोयल क समान परसतरीमभत लकडी ह । यह एक

गहरा, सघन तथा काल रग का लिगनाइट या भर कोयल का विभद ह। इसम अचछी चमक आती ह ओर इसका उपयोग आभषण तथा रतनो क

तौर पर मनको क रप म किया जाता ह । सगमसा म शखीय रग होता ह | यह चिमडा ह, अतः खराद पर इस चदाया जा सकता ह । सगमसा का रतन रप म उपयोग पाशचातय दशो म शोक परदरशन क लिए किया जाता था, लकिन अब इसकी जनपरियता कम हो चली ह।

सगमसा ताप का कचालक ह । इसलिए सपरश करन पर गरम लगता ह । इसक रगडन स बिजली उतपनन होती ह । तपान स यह जल जाता

ह ओर इसम स तज गनध निकलती ह । किसी जमान म इसक बफार का ओषधीय परयोग होता था।

इसक मखय परापति सथान ह-- इगलणड म योरकशायर का समदर तट ओर सपन । फास म यह कछ मातरा म परापत होता ह ओर वहा इसको आभषण म जडन का चलन ह । यदयपि यह कोई विशष महगा पतथर नही ह, तब भी इसक कतरिम रतन भी बनाए जात ह । जो कच क कतरिम सगमसा होत ह, उनम पालिश चमकदार होती ह, परनत व सपरश स ठड लगत ह ।

(4) तिलियर-- यह गम पतथर होता ह । इसका रग काला ओर सफद तिल जस छीट होत ह । दारचना-यह कतथ रग का पतथर होता ह । इस पर पील ओर धमिल छीट होत ह । इसकी खरल बनती ह । यह अपारदरशक होता ह । दर नजफ-यह धानी रग का अपारदरशक पतथर ह । फरश बनान म काम आता ह । दौतला-यह सफद पानीदार चिकना पारदरशक होता ह । पनघन-यह हकीक जाति का अनक रग का पतथर होता ह, परनत इसक बीच म पोल होती द, जिसम शवत दरव होता ह । पतथर को हिलान स अनदर का पानी हिलता हआ दिखाई दता ह । इसक खिलौन ओर मरतिया बनाई जाती ह । पारस-यह काल रग का पतथर होता ह। इस पतथर क साथ लोह का सपरश होन स लोहा सवरण बन जाता ह । यह दरलभ पतथर ह । फात जहर-इसका रग सफद बोस क समान होता ह। विष क घाव पर लगान स लाम होता ह। यह दो परकार का होता ह। एक जो खान स निकलता ह, वह फात जहर मादरी कहलाता ह । एक विशष परकार की मछली क शरीर क माग स निकला फात जहर हवानी क नाम स पकारा जाता ह । यह दरलम ह । बसरी-रग का मटियाला होता

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अलपमोली रतन 171

ह । इसका परायः ओषधीय उपयोग होता ह । इस खरपर भी कहत ह ।

बौसी-यह काई क समान रगीन ह ओर नरम पतथर होता ह । इस पर

पालिश अचछी आती ह । पानी बहत मोटा होता ह । मकडी-इसका रग

हलका काला होता ह ओर मकडी क जाल क समान सफद जाल-सा इस

पर छाया रहता ह । मसा - काजल क समान अतयनत काल रग का

अपारदरशक पतथर होता द । यह सगमरमर की तरह इसतमाल होता द ।

राजसथान म मकराना नामक सथान म परचर मातरा म परापत होता ह । यह

मकरान क नाम स परसिदध द । मव नजफ-यह काली पटटी लिए हए सफद

पतथर. होता ह । यह नरम अग का होता ह। फरश बनान म इसतमाल होता

ह । लधिया-मजीठ क समान हर रग का अपारदरशक पतथर होता द ।

खरल बनान क काम आता ह। लास-मकरान जाति का पतथर ह।

सग सितारा (७०५ ऽ'०१८)-- गरवा क समान भर रग का पतथर

ह । इसम सनहरी छीट चमकत रहत ह । यह अतयनत नरम होता ह ।

आजकल यह असली नही मिलता ह, कतरिम माल दही मिलता द । असली

सग सितारा म सकषम रप म पानी ओर हरित आभा होती ह जोकि नकली

म नही होती । ऽ{97 510८ ओर ^७०\४5 य दोनो नाम सग सितारा ही क

ह । सग सिमाक--यह पतथर लाल होता द ओर इस पर सफद छीट होत

ह । यह बहत कठोर ओर गम पतथर होता ह । इसकी खरल बहत मजबत

ओर सनदर बनती ह । कठोरता क कारण नीलम, माणिकय आदि को पीसन

म यह काम आता द । सिदरिया- यह गलाबी रग का पानीदार पतथर होता

ह । यदयपि इसका अग नरम होता द, परनत इसम चमक अचछी होती ह ।

सीवार-यह हर रग का पतथर होता ह ओर इस पर मर रग की रखा होती

ह । यह अपारदरशक होता द । सगीया - सलखडी स मिलता-यलता नरम

पतथर होता द, किनत सलखडी स कछ कठोर होता ह । सिफरी-यह हरा

रग लिए आसमानी पतथर होता ह । यह अपारदरशक होता ह । लपिस लजली

(लाजवरत) स मिलता-जलता होता ह । सीया-यह 1५५; ५६५ कहलाता

ह । फरश बनान म इसतमाल किया जाता ह । सरमा -यह काल रग का

पतथर होता र । इसस सरमा बनाया जाता ह । इसक टकडो को नीम क

वकष म खडडा करक दो-तीन वरष तक रखन क पशचात‌ यदि सरमा बनाया

जाय तो अतयनत उततम सरमा बनता ह । सीगली 0५५०५ ५५}-इसको भसरी

माणिकय भी कहत र । यह कालापन ओर लाल रग लिए हए अपारदरशक

पतथर होता ह । मसर राजय म परापत होता ह । सफद रखा चमकन स

सितारा (७) सा बन जाता ह । छः कलियो वाला सटोन शरषठ माना जाता

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170 रतन-परदीप

ह । अमरीका म इसकी बहत कदर ह । हदीद-यह भरापन लिए काल रग

का भारी वजन का पतथर होता ह । इसक ऊपर ओख की पतली क समान

चकर होत ह । इसका विशषकर ओषधियो म परयोग होता ह । हजरत बर-

यह वर क समान मटिया रग का खारदार पतथर होता ह । इस हजरत

ऊद भी कहत ह । हकीकल बहार - यह हर ओर पील मिशरित रग का

पतथर होता र । यह हकीक की एक किसम ह । हवास-यह पील या हर

रग का हकीकल बहार क समान पतथर होता द । हालन लरजा (5०१५

अगल-यह मलिनता लिए हए गलाबी रग का खरदरा पतथर होता ह।

इसम लचक होती द ।

(16) परहनाइट (?*१८)-- इसकी खोज करनल परह नामक सजजन

न की थी | उनक ही नाम स इसका नाम परहनाइट पडा । यह गोठ जस

दक म परापत होता दह । इसका रग पीला या तल जसा हरा होता ह।

हर रग क पतथर को काटकर रतन बनाय जात ह । यह नरम पतथर होता

ह ओर इसम टिकाऊपन कम होता ह । यह पारदरशक या पारभासक होता

ह । इसक परापति सथान ह-फरास तथा सयकत राजय अमरीका ।

(17) रोडोनाइट (२१०५०५९)-- यह गलाबी लाल रग का खनिज

ह । इसको रस म आमषणो म इसतमाल किया जाता ह । इस परायः कबीकोन काट का रप दिया जाता ह । इसकी कठोरता 5.5-6.5 द ओर इसका आपकषिक

गरतव ह 3.4-3.7 । लाल या गलाबी रग क अतिरिकत यह पील, हर या भर रग काभी होता ह। इसकी दयति कोचीय या मोती क समान होती ह। इस जाति क रतनीय पतथर पारदरशक ओर अपारदरशक दोनो तरह क होत ह । इसक परापति सथान ह रस म यराल परवत परदश, सयकत राजय अमरीका म नयजरसी राजय ओर सवीडन ।

(18) रटाइल (1२५५५) -- यह बहत गहर रग का पतथर होता ह । इसकी कठोरता (-6.5 तथा आपकषिक गरतव 4.2.43 होता ह । इसका वरतनाक 2.610-2.903 होता ह । इसम दहरावरतन तीवर होता ह । यह अपारदरशक या पारदरशक होता ह, कयोकि इसक वरतनाक हीर स भी अधिक ह, काट जान पर इसक अतयनत सनदर जवलनत रतन बनत ह । इसक परापति सथान ह नारव, सवीडन, सराल परवत परदश, सविटजरलणड फनस, सयकत राजय अमरीका । रटाइल यकत सफटिक मडागासकर, सविटजरलणड ओर बराजील स भी परापत होता ह।

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अलपमोली रतन 113

(19) सोडलाइट (५०५५।५८)-- यह गहर नील रग का होता ह।

ङस चमकदार आभषण स जडा जाता ह । इसकी कठोरता 5.6. अपकषिक

गरतव 22-24 ओर वरतनाक }583 ह । परापति सथान ह-यराल परवत परदश,

नारव, कनडा तथा सयकत राजय अमरीका ।

(20) सफलराइट (5०1०९) - ~ इसकी कठोरता 3.44 ओर अपकषिक

गरतव 3.94 ह । यह नरम रगविहीन या पील, लाल हर तथा काल रग का

पतथर ह । यह पारदरशक या पारभासक होता ह । इसकी दयति फिरोजा क

समान या हीर जसी होती ह । इसका अपकिरणन साधारणतः तीवर होता

ह । इसम इतना अधिक अपकिरणन होन पर नरम होन क कारण टिकाऊपन

अधिक नही होता । यह सहज म भगन होन वाला खनिज द । पजीमत

खनिज क रप म यह राजसथान क उदयपर जिल म परापत होता ह।

(21) सटौरोलाइट (७०५१०) - यह बराहमक परसतर या अपरा का

पतथर भी कहलाता ह । इसक य नाम बराहमक या करास क आकार क

यगम मणिभो क कारण रख गय ह । कौतहल क अतिरिकत इन पतथरो का

कोई मलय नही द । इसकी बनी लटकना को पादरी लोग पहनत ह । इस

ईशवरीय दन माना जाता ह । इसक परापति सथान ह-सविटजरलणड, बराजील

तथा सयकत राजय अमरीका । भारत म राजसथान क डगरपर जिल म भी

पाया जाता द।

(22) विलमाइट (\५१।८१८)--- यह जसत का सिलीकट ह । यदयपि

जसत क खनिज क रप म यह कई सथाना म पाया जाता ह पर हलक पील

रग क रतन कोटि क मणिभ अमरीका म नयजरसी राजय मही परापत होत

ह । यह पारदरशक या अपारदरशक होता &॥

(23) जोसाइट (१००५८) इसकी कठोरता ७ -05 ह ओर इसका

वरतनाक 1.70 तथा आपकषिक गरतव 3.12 द । इसम तीवर दिवरणिता होती ह ।

यह सलटी, हरा या लाल होता द । इसक गलाबी रग क विमद को यलाइट

कहत ह । इसस सनदर सजावट की वसतय बनाई जाती ह । कबीकोन काट

का रप दकर इसका रतन रप म भी इसतमाल मिया जाता ह । इसक परापति

सथान- नारव ओर इटली ह ।

सकपोलाइट (७९५००) -- इसकी कठोरता 65 द, पर अपन सहज

विघटन क कारण इसकी कठोरता 5 दी रह जाती द । इसका आपकषिक

गरतव 2.77 ओर वरतनाक 1549 -1.570 ह । इसक दहर वरतनाक 0021 ह ।

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174 रतन-परदीप

यह ऊपरी वरमा म मोगोक की माणिकय की खाना म गलाबी पतथर क

रप म मिलता ह, कयोकि यह दधिया रग का गलाबी पतथर ह, इस गलाबी

चनदरकानतभणिभी कहत ह । पील रग का सकपोलाइट मडागासकर म परापत

होता ह।

(24) फाडइबरोलाइट (०१०५) इसकी कठोरता 7.5; आपकषिक

गरतव 3.255 ओर वरतनाक 1.658 - 1.69 ह । इसम दहरावरतन होता ह, जिसका

मान 0021 ह । इसम दिवरणिता काफी मातरा म होती ह । यह रगीन, बहत

हलका, पीला तथा नीलम जसा नीला होता ह । रतन कोटि क रतनीय पतथर

बरमा म मोगोक की माणिकय की खानो म लाल क साथ परापत होता ह।

शरीलका म परापत फारबरोलाइट सलटीपन लिए हर रग का होता ह ओर

साइमोफोन की तरह इसम अधर म रगो का परकाशन होता ह ।

(25) रोडिजाइट (१२०८०४०)-- इसकी कठोरता आठ ह ओर यह

अचछा टिकाऊ रतन ह। यह हलक हर तथा पील रग का होता ह।

मडागासकर म मिलता द ।

(26) हवरगाइट (11५0०1&1<)-- यह रगहीन रतन मडागासकर म

परापत होता ह।

(27) कोरनरपाइम-- यह जतन जसा हरा होता ह । रतन कोटि का पतथर ह ओर यह मडागासकर म परापत होता ह।

(28) एपोफाइलाइट (^70]01०)-- यह एक नरम पतथर ह इसकी कठोरता 45; वरतनाक 1535 तथा आपकषिक गरतव 25 ह । यह फीक गलाबी रग का होता ह । यह भारत म महाराषटर क परवत परदश म परापत होता ह।

(29) करोमाइट (0"०१९)-- इसकी कठोरता 5, आपकषिक गरतव 4.3 -4.6 ह । यह अपारदरशक ओर लोह जस काल रग का होता ह ओर सगमसा (०) स मिलता-जलता होता ह । परापति सथान ह-नयजीलणड, रोडशिया, तरकी, कयबा, भारत ओर अमरीका ।

(30) कोबलटाइट (०००।९)-- इसकी कठोरता 5 -5.5 तथा इसका अपकषिक गरतव 6.0-64 ह । इसका रग चादी जसा सफद होता ह ओर इसम परायः हलकी लाल अड होती ह । यह अपारदरशक ह । इसक परापति सथान ह- सवीडन, नारव, इगलणड तथा कनाडा ।

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अलपमोली रतन 175

(31) टामसोनाइट (100501५) - इसकी कठोरता 5-5.5 तथा

इसका आपिकषिक गरतव 2.3- 2.4 ह । यह सफद, सलटी, नील, भर तथा

लाल रग का होता ह । यह पारदरशक या अपारदरशक होता ह । इनम कछ

रतन एस होत ह जिनम आखो क समान विभिनन रग की धारिया होती ह ।

यह रतन सयकत राषटर अमरीका म सपीरियर ल परदश म परापत होता ह।

(32) वरिसकाइट (४०५०) इसकी कठोरता 4.5: आपकषिक गरतव

25 तथा वरतनाक 1.50-1.534 द । यह फीरोजा क समान लगता ह ओर

इसका उपयोग उसक सथान म किया जाता द । यह खनिज पारभासक या

अपारदरशक होता ह । यह सयकत राषटर अमरीका म यराल राजय म परापत

होता ह।

(33) आइडोकरज (1००११०७९) -- यह कलीफोरनिया म परापत होता द

ओर इस कारण इस कलीफोरनाइिज कहत र । यह कभी-कभी पारदरशक

हर तथा पील रग क पतथरो क रप म परापत होता द । इसकी कठोरता 6.5

आपकषिक गरतव 3.3-35 ओर वरतनाक, 1.713 -1.805 ह । इसक पारदरशक

खनिज नील, हर या भर लाल या कालरगकभी होत ह । चमकील हर

रग क खजिन साइवरिया म परापत होत ह । इस खनिज क अनय परापति

सथान-कलीफोरनिया, जरमनी तथा नारव ह ।

(३4) समिथसोनाइट (७१११०११८) इसका खनिज साधारणतः

आकरषक नही होता, फिर भी इसक कछ पील, हर नील रग क पतथरो को

कवीकोन काट का रप दकर आमषणो म उपयोग किया जाता ह । यह

पारभासक या अपारदरशक होता ह। ङसक परापति-सथान ह-गरीस,

सारडीनिया, दकषिण-पशचिम अफरीका सयकत राषटर अमरीका म अरकसास

राजय ओर भकसिको ।

(35) एनडलयसाइट (८१५०।०५।८९) - इसकी कठोरता 7.5 आपकषिक

गरतव 3.18 ओर वरतनाक 1.038 - 1643 ह । इसम दविवरणिता काफी होती ह ।

इस जाति क रतनीय पतथर सलटी, पील-दहर, भर, गलाबी, लाल या वजनी

रग क होत ह । परायः एक ही पतथर म कई रग मिल होत ह । इनम कचिीय

चमक होती र । यह पारदरशक, पारभासक या अपारदरशक होता द । यह

शरीलका ओर बराजील स परापत होता ह ।

(36) एपटाइट (८५५1५) इसकी कठोरता 5: आपकषिक गरतव

31 -3.2 ओर वरतनाक 1.644-1.649 ह | यह एक आकरषक रतनीय पतथर द

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176 रतन-परदीप

जो रगविहीन, पीला, हरा, नीला, गलाबी या बजनी रग का होता ह । रतन

कोटि का एपटाङट पारदरशक होता ह । इसम कचीय या तलीय चमक

होती ह । बरमा की माणिकय खानो म परापत नील रग क पतथरो म अचछी

दविवरणिता होती ह । कभी-कभी इस रतन को भरमवश टरमलीन समञच लिया

जाता ह । इसक परापति सथान ह- सकसनी, बोहीमिया, सयकत राषटर अमरीका,

शरीलका । भारत म भी काफी मातरा म एपटाइट परापत होता ह ।

(37) रकसिनाइट-- इसक निरमल लौग जस भर, शहद क रग क

पील तथा वजनी रग क मणिभो को काटकर रतन बनाय जात ह । यह रतन बहत ससत होत ह । इसम तीवर दविवरणिता होती ह । इसम कोचीय चमक होती ह ओर यह पारभाषक या पारदरशक होता ह। इसक मखय परापति सथान ह-फानस, कलीफोरनिया तथा तसमानिया ।

(38) बनिटोडट (५1०1९)-- इसकी कठोरता 6.5. आपकषिक गरतव

3.65 ओर वरतनाक 1.754-1.805 ह । यह गहर नील रग का होता ह ओर नीलम स मिलता-जलता ह, परनत नीलम की अपकषा यह बहत नरम होता ह ओर परकाशीय गणो म भी उसका मकाबला नही कर पाता । इसम कौचीय चमक होती ह ओर पारदरशक होता ह 1 इसक परापति सथान गरीनलणड ओर कलीफोरनिया ह ।

(39) बरिलोनाङट (1५91०)"८)-- इसकी कठोरता 5.5-6; आपकषिक गरतव 285 द । यह रगहीन या हलक पील रग का होता ह । इसम कचीय चमक होती ह ओर पारदरशक होता ह । यह कोई विशष आकरषक खनिज नही ह ओर रतन क रप म इसका उपयोग बहत कम होता ह । नरम भी ह । यह सयकत राषटर अमरीका क मन राजय म परापत होता ह ।

(40) कलसाइट (८१५।८)-- यह एक सामानय खनिज ह जो सरवतर पाया जाता ह । यह बहत ही नरम होता ह । इसकी कठोरता 3 ह ओर आपकषिक गरतव 2.71 ह । इसका वरतनाक 1.487- 165५ द । यह परायः परिशदध रप म मिलता ह ।

(41) सटिन सपार (५१ ऽ)५)-- इस साटन पतथर कहत ह । इसम निशचित दीपति या अधर म रगो की जगमगाहट पाई जाती ह । यह पारदरशक या पारमासक होता ह । यह सफद, कछ लाल, नीला या हर रग काहोता ह । नभक क अमल की एक बद डालन पर इसम बलबल उठन लगत ह|

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अलपमोली रतन 177

(42) एपिडोट (^१५०८)-- इसकी कठोरता ¢-7: आपकषिक गरतव

33--3.5 ओर वरतनाक 1.735 -1.766 होता द । इसका रग पीला, काला- हरा,

` पिशत क समान हरा तथा भरा होता ह । पारदरशक, पारभासक या अपारदरशक

खनिज र । पारदरशक रतन म दविवरणिता पाई जाती ह । इसकी चमक फीरोजा

क समान होती ह । इसक परापति सथान ह आसदरिया, इटली, एलवा फरास ओर

अलासका ।

(43) यकलज (४५५०९)-- यह एक दरलम रतन ह । इसकी कठोरता

75. आपकषिक गरतव 307 ओर वरतनाक ।.८63-1.673 ह । इसका रग समदर क

समान हरा होता ह, पर यह कभी-कभी नीला या पनन क समान हर रग

काभी होता ह । काट जान पर इसक रतन एकवामरीन स मिलत ह । यह

पारदरशक होता ह ओर इसम कचीय चमक होती ह । इसक सहयोगी

खनिज वरज, एकवामरीन ओर पखराज ह । इसक मखय परापति सथान ह

यराल परवत परदश तथा बराजील । इस दरलभ खनिज का एक बडा मणिभ

टगनिका की अभरक की खाना म कष समय पहल मिला था ।

(44) फलोराइट(॥०५५)-- इसकी कठोरता +. आपकषिक गरतव 3.18

ओर वरतनाक 1.431 ह । यह एक बहत सनदर खनिज ह । इसम सफटिक

क समान लगभग सभी रग होत दः जस-पीला, नारगी क समान, हर,

नीला, लाल, वजनी, गलाबी, सफद ओर भरा । कभी-कभी यह खनिज

छौटदार वहरगी मिलता ह । यह पारदरशक या अपारदरशक होता ह । यह

अतयनत नरम हन क कारण रतन क रप म नही इसतमाल होता द, परनत

इसक आकरषक रगो क कारण इसस सजावट की वसत बनाई जाती ह ।

इसक परापति सथान ह-आसदरलिया, पशचिम अपरीका, कारनवाल, सयकत राषट

अमरीका क नययारक तथा इलनोय राजय । यह भारत म राजसथान क डगरपर

जिल क निकट मौडव की पाल नामक रथान ग पर मातरा म पाया जाता

ह ।

46) जिषसम (५५५0१) -- इस सलखडी भी कहत ह ! यह सजावट

क लिय उपयकत पतथर द । यह खनिज बहत नरम होता ह । कठोरता कवल

2 ह ओर अपकषिक गरतव 22 24 ह । यषट रग विहीन या सफद होता द ।

यह पारदरशक, पारभासक या अपारदरशक‌ छौता ह इसम चमक विशष नही

होती । यह बराजील, यराल परघत पदशः, सयकत राषटर अणरीका म मिलता

ह । भारत भ राजसथान, तमि<:::ब. गजरात, उततर परदश, जमम-कशमीर,

रिपःचल परदश तथा आनध-परदश म याया जाता इ।

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178 । रतन-परदीप

(47) आयोलाइट (1०1"५)- - इस जल नीलम भी कहत ह । इसकी

कठोरता 771; आपकषिक गरतव 265 ओर वरतनाक ।545-1550 द । दहर.

वरतन का मान 0008 द । इसम दविवरणिता बडी आकरषक होती ह । इसका

मखय रग धमला, नीला ओर पीलापन लिय सफद होता ह । इन दोना रगो

को सपषटतः दखा जा सकता ह । इसक वही खनिज रतनो क रप म इसतमाल

होत हजो परणरपस नील रग क हो । यह पारदरशक या पारभासक होता

ह । इसम कचीय चमक होती द । इसका मखय परापति सथान शरीलका ह।

(45) लजयलाइट (1५/1५) इसकी कठोरता 5-6: आपकषिक गरतव

3। ओर वरतनाक 16421613 ह । इसको कमी-कभी भरमवश लाजवरत समञच

लिया जाता र । यह पारभासक या अपारदरशक होता ह । इसम कचीय

चमक होती द । परापति रथान ह आसदरलिया ओर सयकत राषटर अमरीका क

जारजिया ओर उततरी करोलीना राजय ।

(49) डायोपसाइड (1५१५५) - इसकी कठोरता कवल ५ होती ह ।

यह रतनीय पतथर हलक हर-स गहर हर मणिभो क रप म परापत होता ह ।

इटली स परापत कछ रतनीय पतथर नील रग क भी होत ह । इसकी चमक

कचीय होती ह । यह भारत म भी परापत होता द।

(50) डायोषटज (121५५९८) -- यह एक बहत सनदर चमक का

रतनीय पतथर ह ओर अपन रप ओर यौवन म इठलाता हआ पनन स मकाबला करन का साहस करता ह, परनत दमगय स इसकी कठोरता जो कवल 5 ह इसकी मनोकाकषा को परण नही होन दती ।

(51) फनकाडइट (।१५१५५।८)-- यनानी भाषा म इस शबद का अरथ हि चार सौ वीस, । वयोकि यह रतनीय पतथर सफटिक होन का दावा करता

ह । इसकी कठोरता जो 7‡-8 ह, इसक साहस को बदाती ह । यह पील

ओर हतक गलाबी रग का होता ह। इसम सफटिक ओर पनन क समान कचीय दयति होती ह।

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रतनो म दवी-शकति ओर बरकत

13, पराचीन काल म परचलित रतन : ईसाई धरम की पराचीन

पसतको म रनो का उललख :. विभिनन रतना क गण

मग स बालारिरषटो का नाश : विष को दर करन वाला

माणिकय : माणिकय .. मग ओर फीरोज दवारा रग बदलकर |

चतावनी दना : चीन म जड की मानयता : पाशचातय

दशो म विभिनन रतनो क समबनध म मानयतारय : वारो

क अनसार रतन धारण करन का चलन‌ ।

पाशचातय मानयताय-- लोगो का मत ह कि रतनो म दवी-शकति

निहित ह । इनका परयोग आमषणा म ही नही, बलकि तावीजो म भी किया

जाता रा ह । कहा जाता ह कि रतनो को धारण करन स आपततियो ओर

रोगादि स भी मकति परापत होती ह ।

सरवपरथम जिन रतनो का जञान मनषय को परापत हआ था व थ-अमबर,

मगा, मोती, माणिकय, सफटिक, ओनिकस, एमीथिसट ओर हकीक । उस समय

रतनो को नर ओर मादा की शरणी म भी रखा गया था । एसा भी विशवास

था कि रतन ओस की वद थी जो सरय क परमाव स कठोर होकर रतनीय

पतथरो क रप म परिवरतित हो गयी शी । सफटिक को लोग सममत थ कि

वह जल क जम जान स बना था । रतनो क रग क समबनध म यह आसथा

शी कि चिमिनन रगो का अलग-अलग परभाव पडता ह इसी परकार का

परभाव विभिनन रग क रतनीय पतथरो का माना गया ।

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180 रतन-परदीप

कछ लोग कहत थ कि परवीय दशो म जहा गरमी अधिक पडती ह

सरय की ऊषणता पाकर रतनीय पतथर बनत ह । यह एसी मानयता हई कि जितन सनदर रतनीय पतथर थ व सब पराचय दशो म परापत हए थ । यही कारण ह कि उततम शरणी क रतनो को पराचय (0९019) कहा जान लगा ;

` जस पराचय लहसनिया (07८॥३ 15 ८), पराचय पखराज (छाला1॥ (णब)

पराचय पनना (01619 [उ८18।५), पराचय एमीथिसट (0िला1३। भााला8।) आदि |

पराचीन काल म कछ एस रतनीय पतथर भी परचलित थ तो अब दसर नामो स जान जात ह । जस पहल जो नीलम माना जाता था वह आजकल का लाजवरत (1.7 1.५५) ह ओर जिसको टोपाज या पखराज माना जाता था वह आजकल का परीडोट ह। इसी कारण बाईविल म जिन रतनो क नाम दिय ह समभव ह व यही रतनीय पतथर न ह जो आज उन नामो स परचलित ह । यह कहना उचित नही ह कि पाशचातय दशो म पराचीन काल म लोग हीर स परियित थ, कयोकि इसका जञान तो उनह तभी परापत हआ जव वह भारत स पाशचातय दशो म पहचा, ईसाइयो की पराचीन धारमिक पसतको बक ओफ जनिसिस (0७ क (लालऽऽ) ओर बक ओफ रिवीलशन (००५ ० 1२८५५य००१) म अनको रतनीय पतथरो का उललख ह । ानिकस का परथम उललख बक ओफ जनिसिस म ह, परनत अनय धारमिक पतक मस बक ओफ जोव, एजिकील, 'डनियल' तथा "जर मियाहः (19५० ५॥ 11 ॥.५॥।८] ॥६।११५॥ ५ ।८८१८५॥) म दिय रतनो क उललख य सपषट ह कि उस समय म भी नीलम, पन, ओनिकस मगा, मोती ओर अनय रतनो क| काफी लोकपरियता तथा परतिषठा परापत थी । परनत लसा हम ऊपर कट रक हकि जो रतन उस समय का माणिकय ह वह आजकल का कारवकल

ईसाइयो क हाई परीसट (11, 1५4) की छाती पर पहनन 4 पलट‌ परर ईसा स 1400 वरप परव वारह रतनीय पतथर जड हए थ । 'लणड क परसिदध रतन विशषजञ ओर लखक माइकल विनसटीन क मतानसार

व वारह रतन यथ:

(1) जसपर हीरा (शायद सफटिक) (2) माणिकय (५) एमीथिसट (3) टोपाज (पखराण) (५) ओनिकस (4) कारषकल

{८ £॥11)\11*५1<} [द

(7

(1५) जिरकान 5) 'णनन नीः (५. नीटम (शायद लाजवरत) 111}

1 अग वी म) 9 परी ट (0) अग< (इकाक, रायद परीरट) . २ (12) दस‌

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रतनो म दवी-शकिति ओर बरकत 1६1

एक अनय लखक मब विलसन न ` जमस' (6८75) म इस पलट का एक चितर दिया ह जिसम रतन निमन परकार जड हय ह :

७ 4 ~| | |

5111318205 111८ (310 ५९४। 1५48 58[0111105 23010 |

2 9 0

[0] ०८1०७ ^11८11191105 ऽता 12[05 [धिदा

र | ॥ 10 7

५1101५5 [२२८॥ (दी फणिापड दविलकपीभात) 111८011४

^~ ¬

| 12 ी 8 13८॥\ ॥ ५५; [61411111 (01॥\ 61171५5 101८[)॥ ५४८1५1८5 (४५

| 1

(=-= =-= । ------- म

उस रामय क वयापारी रतनीय पतथर सीरिया (५५५) स मगात थ

समराटो क लवाद चमकत हए रतनो स परण होत थ ओर इन रतनीय पतथरो

क उतपतति सथान थ : दकषिणी अरब, भारत ओर शरीलका । ओनिकस जो

आजकल एक साधारण अलपमोली पतथर माना जाता ह, उसकी उस समय

मलयवान रतनो म गणना शी । वाइविल क अनसार अमबर ओर सफटिक

बहत ही सनदर रतन थ । ईसाइयो की पराचीन धारमिक पसतक म एक कहावत

ह, ४116 (0 11 ६ स7ापरतऽ एजतो ॥८ा [0116८ 19 ॥६॥ 0५५ ॥पाा८३

(सचचरितर सतरी कह मिल सकती ह * उसका मलय तो माणिकय स भी

अधिक ह) । एक ओर पराचीन पसतक म एक परभी अधः) विकरा को अप

परम की दढता की पषटि करत द कती च. "म‌ वग‌ ।नए पस‌ महल‌

का निरमाण कराऊगा सिसाम सालो कौ नीव हा, सिसप‌ दकीक की

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182 रतन-परदीप

खडकिया हो ओर जिसकी चार-दीवार सनदर रतनीय पतथरो की बनी हो

/"

अमबर पहला रतन था जो आदमी क परवजो न आभषण क रप म

इसतमाल किया था । उसक समबनध म अनको विशवास जड हए थ । अमबर

की उतपतति क समबनध म कितनी ही कहानिरयो थी । पलिनी क कथनानसार

एक मानयता यह थी कि 1०५०१ (फटन) एक यनानी महापरष या दवता

की जब बिजली गिरन स मतय हो गयी तो उसकी बहन वकषो क रप म

परिणित हो गयी जो ६५५०१५७ नदी क तट पर हर वरष अपन ओस‌ बहाती

थी । यही ओस‌ बाद म अमबर बन गय । आज भी पाशचातय दशो म यह

विशवास परचलित ह कि अमबर क दान की माला बचचो को इसलिए पहनाई

जाती ह कि उसस उनक दौत विना कषट दिय निकल आत ह । तरक लोगो

म यह मानयता ह कि इसको हकक की नली म लगान स, कोई बीमारी

नही फलती ।

यनानी लोग म एमीथिसट क समबनध म यह मानयता थी कि एमीथिसट स बन शराब क पयालो म शराब पीन स नशा नी चदता। यददी लोग कहत थ कि एमीथिसट धारण करन स बर या भयानक सवपन नही दिखाई दत । रोम की सतरयो इस रतन को इसलिए धारण करती थी कि उनक परति उनक पतियो का परम सथायी बना रह । जरमनी म भी यह

मानयता ह कि एमीथिसट धारण करन स चोरो का भथ नही रहता ।

पलिनी कामत ह कि पराचीन रोम निवासी मग क दान वचच क पालन म लटका दत थ, जिसस समसत बालारिषटो स उनकी रकषा हो ।

* एसी भी मानयता थी कि मगा धारण करन स बिजली गिरन, तफान, अगनि तथा जहाज क डबन स रकषा होती थी । पारकलअस (१५५५५५९) नामक एक पराचीन काल क यनानी लखक क कथनानसार मग की माल) गल म इसलिय धारण कौ जाती थी, जिसस सव परकार क फिट (दौर). नाद‌-टोन ओर विष स रकषा हो । रोम निवासी उस ताबीज की तरह धारण करत थ ! ओषधीय रप म भी उसका इसतमाल करत थ, । मग को पाचडर रप म करक पानी क साथ पिलान स पट तथा मतराशय क रोगियो की वीमारी दर हो जाती थी । सरहयग पलाट न लिखा ह कि मग म एसा गण ह कि बीमारी

आन वाली होतो म कारग फीका पड जाता ह ओर बीमारी ठीक होन पर वह अपना असली रग पनः परापत कर लता ह । बरी नजर स बचान क लिए मग का ताबीज वड महतव का माना जाता था।

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रतनो म दवी-शकविति ओर बरकत 183

मोती की भी पराचीन काल म पाशचातय दशो म बडी मानयता थी

। कहा जाता ह कि जब एक वार महारानी एलिजाबथ सर टामस गरशम

की अतिथि थी तो उनक सवासथय की कामना करत हए सर टामस न शराब

क साथ मोती भी भट किय ।

उपल को पराचीन काल स एक दभगयपरण रतन माना गया ह।

जसा कि 1४74 म सपन क समराट एलफोनजो 31 क लिए बहत दमगयपरण

परमाणित हआ । सना ह कि अपन विवाह क दिन उनहोन अपनी पतनी को

उपल की अगटी भट की । उसक तरनत वाद पतनी की मतय हो गई ।

फिर वह अगटी उनहोन पतनी की बहन को द दी ! उसकी भी दो चार

दिन वाद मतय हो गयी । फिर उनहोन वह अगढी सवय पहन ली । बाद म

उनकी भी मतय हो गयी । जौ सपन क समराट क लिए उपल दभगयिशाली

रतन परमाणित हआ, इगलणड की महारानी विकटोरिया क लिए उपल

सौभागयशाली रतन बन रह । कहा जाता ह कि उपल उनका बहत परिय

रतन था ओर एक अचछा सगरह इन रतनो का उनक पास था । वह तो जसी

कहावत द, "दधो नहाती ओर पत फलती रही ॥ आजकल पाशचातय मानयता

क अनसार उपल अकटबर मास म जनम लोगो क लिए भागयवान रतन माना

जाता ह।

पाशचातय दश म पराचीन काल म माणिकय बहत उपयोगी रतन

माना जाता था। एसा विशवास था कि माणिकय विष को दर कर दता ह,

पलग की वीमारी स रकषा करता दः दख स मकति परदान करता द ओर मन

म बर विचारो को आन स रोकता ह । यो भी शोभा क लिए उसको बड

शोक स धारण किया जाता था। वरमा क निवासियो का कहना ह कि

माणिकय पथवी म परिपकव होता ह । शशवासथा म वह रगीन होता द ओर

जयो जय अवसथा परापत करता जाता ह रग पकडता द ओर जब पर यौवन

पर आता दतो लालरग का हो जाता द । परसिदध यातरी मारको पोलो क

कथनानसार उस समय क शरीलका क समपराट क पास ससार का सबस

सनदर माणिकय था । वह काफी बडा था ओर बिलकल निरमल था । उसक

शबदो म +! ¡5 9 अधा 107, ४७ पातः ४७ १ पाथा 5 छो वात समाठण च 1०५.

कबलयी खा एक शहर का मलय उसक लिए दन का राजी था, परनत

शरीलका का समराट उसको बचन को राजी नही था ।

माणिकय क समबनध म यह मानयता ह कि धारण करन वाल पर

विपतति आन वाली हो तो उसका रग बदल जाता ह | कहा जाता ह कि

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184 रतन-परदीप

सामराजञी कथरीन को जव तलाक दन की बात चली तो उनक आभषण म

जड माणिकय न अपना रग बदल दिया था।

नीलम क समबनध म यनान (७१५५८८५) क निवासियो को एसा विशवास

था कि इस धारण करन स उनक परति कही हई भविषयवाणी शभ रप स फलीभत होती थी । यह भी कहा जाता ह कि नीलम धारण करन स सतरियो

म अनतिकता नही आती ओर भत-पिशाचो का भय भी नदी रहता । पोप इनोसनट 11 का आदश था कि अपनी नतिकता को सदढ रखन क लिए सब पादरी नीलम अगढी म धारण कर । सनट जरोम एक अतयनत साध वयकति का कथन था कि नीलम धारण करन स यदध म सनिक कदी नही हो सकता ओर यदध म सलह हो जान की समभावना हो जाती ह।

फीरोजा क समबनध म कहा गया ह कि वह अपन रग को पीला करक किसी आन वाली विपतति की सचना द दता था । एसा भी माना जाता था कि भट म फीरोजा परापत करन वाल को सख ओर सौभागय मिलता था । कछ लोगो का यह भी कथन था कि परष या सतरी यदि परसतरी या परपरष स समबनध कर तो रग बदलकर यह उसका भद खोल दता था ।

जड क समबनध म पाशचातय दशो म तो नही, चीन म बहत मानयताय ह । व इसको एसा मलयवान रतनीय पतथर मानत ह जिसका पाउडर यदि पानी म मिलाकर पीया जाय तो शरीर क सब आनतरिक रोगो को दर कर दता ह । यह थकावट दर करता ह, आय बढाता ह ओर मतय क बाद शरीर को शीघर सडन स रोकता ह । गद की बीमारिया क लिए यह रामबाण माना जाता ह ।

हीर क समबनध म एक मानयता यह ट कि कठोरता क कारण उसका तोडना कठिन होता दह; किनत गरम बकरी क दध म डबोकर तोडा जाय तो सरलता स टट जाता ह। एक मानयता यह भी ह कि उसको बकरी क खन म कछ दिन डबोकर रखा जाय तो उसक टकड करन म कठिनता नही होती । हीर को धारण करन स यदध म रकषा होती ह । एसा भी विशवास ह कि हीरा जवर क ताप को दर कर दता ह । कछ हीर उनक सवामिया को अतयनत दरमगयपरण परमाणित हए । एक डायमणड न जो फरानस की सापराजञी ४५५८ ७०८८ क नकलस म था, जिसको धारण करन क वाद उनका गला काट दिया था। एस हीरा की अनको लमबी-लमबी कहानिरथो ह जो हम य दन म असमरथ ह ।

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रतनो म दवी-शकति ओर बरकत 185

पनन क समबनध म भी अनको मानयताय ह । एक पाशचातय लखक क अनसार परवी दशो म यह विशवास ह कि यदि सरप की नजर पनन पर पड जाय तो वह अनधा हो जाता ह। एक अगरज कवि न आवश म आय हए अपन पातर की मानसिक सथिति का वरणन करत हए लिखा ह :-

1117त९त‌ 114८ ऽलाल<ा115 शाला 11९१ २५९

एणा (८ लालातात'ऽ भगहा १19८.

पनना ओखा को शीतलता पहचाता ह । समराट‌ नीरो पनन क बन चशम पहनकर रोम क खल तमाश दखा करता था । ७५५५ नामक एक यनानी विदवान न नवी शताबदी म लिखा था कि पनन का पाउडर (शायद उसका भसम स अरथ होगा) पानी म मिलाकर सवन करन स कोद जस रोग ठीक हो जात ह । पलिनी का कथन ह कि साडपरस दवीप म समराट हरमिया (९५१६ ॥५१४) की एक मरति थी जिसक पास सगमरमर का शर बना हआ था। शर की ओखा म पनन जड थ जो गरमी म इतन चमकत ध कि निकट समदर की मछलिरयो उस चमक को दखकर दर भाग जाती थी । मछलीमारो न जब यह दखा तो उनहोन पनन को उखाडकर फक दिया । पलिनी न यह भी लिखा ह कि थकी ओखो को पनना दखन स बहत शानति परापत होती ह ।

अनय रतनीय पतथरो क समबनध म भी मानयताय नीच दी हई ह-

अगट (^५६८) हकीक -- यह किसानो ओर मालियो क लिए भागयवान‌ पतथर ह । इसको धारण करन वाला दसरो स सनह परापत करता ह । इसस सवासथय म सधार होता ह ओर आय बदती ह ।

अमबर (५) -- इसस फलन वाली बीमारियो स मकति मिलती ह । इसको माला क रप म धारण करना चाहिय । यह भागयशाली बनाता हि |

एमीथिसट (^\१५।19७) -- इसक पहनन दालो का नतिक पतन नही होता । यह दमपतति-सख भी परदान करता ह ।

एकवामरीन (८५५५५०१९) यदि वर इस वध को भट कर तो जीवन म हरषोललास लाता ह । यह समदर यातरियो क लिए रकषा-ताबीज का काम

५ करता ह ।

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186 रतनजपरतीय

बलड सटोन-पितौनिया (13100५ 5101८) इसको पराचीन काल म योदधा

पहना करत थ जिसस उनका साहस ब । यह भी माना जाता था कि

इसक परभाव स जखम स बहता हआ खन रक जाता ह । इसको धारण

करना सतरिय क लिए वरजित ह ।

ऋराइसोलाइट (११५०५) यह उदासीनता ओर अभदर विचारो को

दर करता ह।

करनीलियन (णालाणा) सख सौभागय को दन वाला होता ह

ओर आय म वदधि करता ह ।

मगा ((७०)-- यह उन बधओ क लिए विशषकर शभ लाभदायक

ह जिनका जनम 21 अपरल ओर 2 मई तथा 21 अकतबर ओर 20 नवमबर

क बीच म हआ हो । यह दामपतय जीवन को सखी बनाता द ।

हीरा (१५११०१५) -- इसको सरय का रप माना जाता ह । (हमारी

मानयता क अनसार हीरा शकर का रतन ह जो सरय का शतर ह) । हीरा धारण

करन वालो को बदधि-वल, सख, परसननता ओर साहस परापत होता द।

पनना (1८०0) परमी यदि परमिका को भट मद तो बहत शभ

फलदायक माना जाता द । यह धारण करन वाल को सनही, सहानभतिपरण

ओर उदार बनाता ह।

तामडा-पलक (५५१५)-- यह धारण करन वाल को दढता ओर

पवितर आचरण दता ह ।

जसिनथ (14010) - यदि इसको सोन म जडकर पहना जाए तो यह रकषा कवच का कारय करता ह।

जड (५५८)-- चीन निवासी इस सवासथयवरधक तथा आयवरधक मानत ह ।

जसपर (1५५५1)-- यह दढता ओर सहनशीलता परदान करता ह ।

चनदरकानत(100॥ 510८) -- समदर यातरियो क लिए यह रकषा-कवच का काम करता द।

ओनिकस ध इसस दामपतय सख मिलता ह ओर पति-पतनी क चरितर-गठन म सहायता परदान करता ह ।

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रतनो म दवी-शकति ओर बरकत 187

उपल (08ग)-- परमियो क बीच म यह बाधा उपसथित करता

३ । यह भागयवान‌ पतथर नही माना जाता । परनत अकतबर मास म जनम लन वालो क लिए जनम पतथर (1/4 5०१८) माना जाता ह ।

मोती (<71)-- कलयोपटरा ओर एनथोन क जमान स यह परमियो

का सहायक रतन माना गया ह । यह जवर की गरमी ओर मिजाज की गरमी दोनो को दर करता ह। विवाह क समय मोतियो की भट बडी शभ फलदायक मानी जाती ह।

माणिकय (२५४,)-- माणिकय भत-परत क भय को दर करता द । सख-समपतति दता ह ओर उचचामिलाषी बनाता ह ।

नीलम (5)),८)-- परमियो क लिए भागयवान‌ रतन माना जाता ह । यह परसननता-वरदधक ह; परनत पापी वयकति को विपरीत फल दता ह ।

पखराज (107५४)-- यह मितरता क बनधन को सदढ बनाता द. ओर पति-पतनियो क बीच म बाधा नही आन दता । उनक चरितर म पतन

को रोकता ह।

फीरोजा (५५०५८) सकटयपरण तथा भयानक सथानो म यातरा

करन वालो क लिए यह रकषा-कवच का काम करता ह। घडसवारो क लिए भागयवान‌ रतन ह । परमियो क लिए भी यह शभ फलदायक ह ।

जनम रतन (19110 5०१८) बरथ सटोन कया ह ?

कौन-कौन-सी जनम तारीख क लिए कौन-सा भागयवान‌ रतन ह, इस समबनध म बहत दिनो स मतभद था । सन‌ ।५।2 म सयकत राषटर अमरीका म बड-बड दश-विदश क जौहरियो की एक सभा हई, उनान जनम-रतनो

क समबनध म जो निरणय किया वह अव सरवतर माना जाता ह । उस निरणय

क अनसार जो जनम रतन द व नीच दिय जात ह:

जनम मास | जनमः गन =

चली । गारनट ]

फरवरी । एमीथिसट

मारच वलड सटोन या एकवामरीन

अगल हीरा

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188 रतन-परदीप

मई ॥ पनना

| जन मोती, बदल चनदरकानत

। जलाई माणिकय |

। अगसत | सारडोनिकस या परीरोट |

। सितमबर | नीलम

अकतबर उपल, बदल टटरमलीन ।

| नवमबर पीला पखराज, बदल सनला |

| दिसमबर फीरोजा, बदल लाजवरत । = ---------------~ ~~

सपताह क दिरनो क अनसार रतन

पाशचातय दशो म वार क अनसार भी रतन पहनन का चलन ह, जिसक अनसार एक मानय सची हम नीच द रह ह :

रविवार-माणिकय, बदल कराइसोलाइट

सोमवार- मोती, उपल

मगलवार- बलड सटोन, एमीथिसट

बधवार- ओलीवीन, जड, हकीक

गरवार-पनना.नीलम

शकरवार-लाजवरत.फीरोजा

शनिवार-ओनिकस

भारतीय मानयताए-पराचीन काल म भारत रतनो का भणडार रहा ह ओर रतनो को आभषण क रप म तो सममान परापत रहा ही ह, अपनी दवी शकति क कारण भी विभिनन रप अतयनत परतिषठित रह ह । इस विषय म निमनलिखित सचनारण उपलबध ह :

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रतनो म दवी-शकति ओर बरकत

रही ह

169

इःलणड क रतन विशषजञ मब विलसन न अपनी पसतक “6०७ म जनम तारीखा स जनम रतना की एक सरवमानय सची दी ह जो नीच दी जा

तारीख सायन सरय की राशि, मारच 21-अपरल 2

अपरल 21-मई 21

मई 22-जन 21

जन 22-जलाई 22

जलाई 25-अगसत 23

अगसत 21- सितमबर 25 सितमबर 24+-अकतबर >;

अकतबर 24- नवमबर ‡2

नवमबर‌ 23-

दिसमबर 22-जनवरी 20

जनवरी 21-फरवरी ।9

फरवरी 20- मारच 20

कछ परचलित मानयताए

कि वह नर,

हीरा ( [21111104

दिसमबर 21

मष

वषम

मिथन

धन

मकर क मभ

मीन

रतन

हीरा

पनन]

मोती,चनदरकानत,

एलकजानदवाइट

माणिकय

परीडोट सारडोनिकस

नीलम

उपल, टरमलीन

पीला पखराज

सनल

फीरोजा, जिरकान

(गोमद)

गारनट

एमीथिसट (कटला)

एकवामरीन, बलड

सटोन

हीर क समबनध म एक मानयता तो यह रही ह नारी ओर नपसक तीन परकार का होता ह । रस, वीरय ओर

विपाक गण धमनसार नर हीरा उततम होतः ‡। नारी हीरा मधयम तथा

नपसक हीरा अधम शरणौ का दोता ह! दस ¦ ^ क अनसार हीरा वार परकार का होता ह-

1 यह ह फि रप रग

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190 #

बराहमण, कषतरिय, वशय ओर शदर । जो हीरा आठ कोण अथवा छः

कोण वाला हो ओर जिस परकार इनदरधनष की परछाई जल म पडन स सात

रगो की परतिचछाया दिखाई दती. ह, उसी परकार हीर को सवचछ जल क

ऊपर हाथ की अगलियो स पकड कर दिखान स जल क भीतर हीर की

परतिचछाया म सात रग दिखाई द, परकाशमय किरण परकाशित होती हो

वजन हलका हो, परनत बडा दिखाई दता हो, गोल हो, परनत आ फलक

अलग-अलग सपषट दिखाई दत हो, रखा ओर विनदओ स रहित हो, वह

नर हीरा कहलाता ह । जो हीरा चपटा, गोल ओर कछ लमबा हो, रखा

ओर विनदओ स यकत हो तथा इन लकषणो क साथ उसम नर हीरा क

समसत लकषण मिलत हो तो वह नारी हीरा होता ह । जो हीरा तीन कोण

वाला हो ओर जिसक कोण मड हए ओर गोल हो, बडा हो ओर वजन न

मारी हो उस नपसक हीरा कहत द ।

बराहमण हीरा -- विलकल शवत ओर किसी परकार की आई स

रहित होता द । कषतरिय हीरा- शवत होता द, परनत उसम लाल रग की

किचित‌ आभा होती ह । वशय हीरा- वह होता ह जिसम पीत आभा होती

ह । शदररीरा- वह र जिसम काली आमा होती ह।

षटकोण हीर का दवता इनदर ह । शकल रग क सवचछ पानी सरीख

हीर का दवता वरण ह सरपाकार एव काली-पीली तथा नीली आभा वाल

हीर का दवता विषण ह । योनयाकार कननर पषप क समान आभावाल हीर का दवता वरण ह । सिह एव बाघ क नतर क समान आभा वाल हीर का दवता अगनि ह, परनत हीर का मखय दवता शकर ह ।

लाल एव पीली आमा वाल हीर का धारण करना राजाओ, राजनतिक नताओ तथा उचच परशासक क लिय उततम ह । शभर रग का हीरा करमनिषठ बराहमणो क लिय उततम ह । शिरीष पषप क समान आभा वाल हीर वशया तथा वयापारियो क लिए शरषठ ह । नील एव कषण आभा वाल शदर तथा निकषट शरणी वाल करमचारियो क लिय शरषठ ह ।

पतर की कामना करन वाली सतरियो को सफद, निरमल, शकल आभा यकत हीरा शभ फलदायी होता ह । एक मत यह भी ह कि सनतान की कामना करन वाली सतरियो को हीरा धारण नही करना चाहिय ।

हीरा भय को दर करन वाला, धरय को बढान वाला तथा भदरता, अनतरदषटि ओर पवितरता दन वाला होता ह ।

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रतनो म दवी-शकति ओर बरकत 1५1

बराहमण हीरा धारण करन वाला वराहमण सात जनम तक बराहमण जाति

म जनम लता ह । वद पराण का जञाता होकर वह महान‌ परतिषठा परापत करता

ह ।

कषतरिय वरण हीरा धारण करन वाला कषतरिय शरवीर होकर तथा

कट नीतिजञ, राजनतिक नता होकर सदा विजय ही परापत करता ह ।

वशय वरण हीरा धारण करन वाला वशय (जो वयापार करता हो),

धन, जन, सतरी सखो स यकत होकर जनता म सममान परापत करता ह ।

शदर वरण हीरा धारण करन वाला शर ( आजकल इसका अरथ

करमचारियो स लना चाहिए) साध महातमाओ का सतसगी, बदधिमान, परोपकार

म आसथा रखन वाला होता ह । वह धन-वभव स यकत होकर अपनी

परतिषठा को बढाता ह।

जो वयकति हीरा धारण करता ह उस भत, पिशाच, सरपादि स भय

नही रहता । अगनि, बिजली, चोर, डाक‌ तथा शतर स उसकी रकषा होती ह ।

जाद‌-टोन, ततर-मतरादि का भी उस पर कोई कपरभाव नही पडता ।

दोषी हीरा-- दोषी हीरा धारणकरता को अनको परकार की कषति

पहचाता ह । यदि हीरा सफद यवयकत हो तो उसक धारण करन सो

सख-समपतति का नाश होता ह । लाल यव वाल हीर स हाथी-घोड आदि

पश-धन का नाश होता ह । पील यव वाल हीर स वश का नाश होती

ह । काल यव वाल स धन का नाश होता ह। तार दोष स यकत हीर स

मानसिक दःख उठाना पडता ह । दोषयकत हीर स शारीरिक शविति का

हास होता ह । खरदरा दोषयकत हीरा अनक आपततियो उतपनन करता ह ।

जिस हीर म गडढ पड हए हो वह रोगो की उतपतति करता ह । हीराशकर

का रतन माना जाता ह।

माणिकय (1६५)-- माणिकय क भी वरण विभद होत ह । बराहमण

वरण - गलाब क पषप क जस रग का होता ह 1 कषतननिय वरण-रकत वरण

अरथात‌ लाल कमल क रग क समान होता. ह । वशय वरण -वह माणिकय

होता ह जिसम लाली नीलापन ओर मलिनता लिय हए होती ह ।

चिकन, साफ, अचछ रग ओर अचछ धार क पानीदार ओर चमकील

माणिकय को धारण करन स वश-वदधि, सख-समपतति की परापति, अनन, धन,

रतनादि का सगरह होता द 1 यह भय, वणधि ओर दःखादि को दर करता

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1५2 रतन-परदीप

ह । इसक धारण करन स धारणकरता आतमबली, भागयवान, परतिषठित, धरयवान,

वीरयवान‌ ओर निरभय बनता ह । उसम सरय क समान तजसविता आती ह ओर उसक शरीर म कानति की वदधि होती ह ।

दोषी माणिकय धारण करन स अनको परकार क कषट भोगन पडत ह । सनन माणिकय धारण करन स भाई को दःख होता ह । दघक रतन पश-नाश करता ह । दरगा रतन पिता को तथा सवय को दःख दता ह। लाल चिहन वाला रतन कलह कराता र । धमर वरण माणिकय स अचानक विदयत ताप का भय रहता ह । चार चिनह वाला रतन हो तो शसतर स आघात का भय होता ह। मटला हो तो उदर-विकार दता ह ओर पतरतपतति म बाधा डालता ह । यदि रतन म सफद, काल या मधक ट हो तो अपयश मिलता ह ओर आय. धन तथा सख म अलपता आती ह । रतन यदि गडढ वाला हो तो शरीर को दरबल करता ह। बहत दोष वाला ओर दरगणी माणिकय मतय कारक वन जाता ह।

एसी भी मानयता ह कि जव माणिकय धारण करन वाल पर कोई

विपतति आन वाली होती ह तो उसका रग हलका पड जाता ह, ओर कषट दर हो जान परर पन. अपन मौलिक रग पर आ जाता ह। विष क निकट लान पर माणिकय का रग फीका पड जाता ह। सोप क विष का परभाव धारणकरता एर ~: होता ।

माणिकय सरय का रतन माना जाता ह

मोती (1५५१) ¬ गोतौ धारण करन रो अविषटो का नाश होता ह ओर सख-सौभागय परापत हता ह । हिनदओ म लगभग सभी जातियो म यह विशवास ह कि मोतियो की नथ सतरियो को पहनन स उनका सौभागय वना रहता ह । आजकल जव फशन म नथ पहनना अचछा नही माना जाता, परनत शायद हौ कौड बडी या छोटी जाति का हिनद घर हो, जिसम कनया विवाह क सगय मोती की नथ न पहन ।

अथरववद म मकता शबद मिलता द । इस महारतन भ माना गया ह । मकता का अरथ होता ह शरीर की वयाधियो स मविति दिलान वाली वसत विशष अरथात‌ ससार स मोकष परापत करान वाली विशिषट वसत । हमार दश म सामानय धारणा ह कि मोती को आभषणो क रप म अथवा रोग निवारणारथ

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रतनो म दवी-शकति ओर बरकत । 193

उसकी भसम सवन करन स अरथ, करम, काम इन परषारथ, तरय की परापि होकर अनत म मोकष परापत होती ह।

जो वयकति आठ गणो स यकत अरथात‌ सतार (दीपतिमान).सवतत (गोल), सवचछ, निरमल, धन (दडकदार), सनिगध, सचछाय ओर असफटित (वरण तथा रखाओ स रहित), मोती धारण करता ह तो उस पर लकषमी की असीम कपा होती ह ओर आय म वदधि होती ह । उसक समसत पापो का नाश होता ह । बल परापत होता ह । बदधि म कशागरता आती ह ओर धारणकरता उचच सथान ओर परतिषठा परापत करता ह।

पीत छायायकत मोती धारण करन स लकषमी की कपा होती ह । अरण छायायकत मोती स बदधि बढती ह । शवत छायायकत मोती यश परदान करता ह । नीली छायायकत मोती भागयवान‌ बनाता ह ।

दोषी मोती स हानि -- जिस मोती म शकति लगन दोष हो अरथात‌ जिसम किसी एक सथान पर शकति क समान अपकषाकत समसत मोती की आभा स बहत कम आमा वाला सपषट चिहन हो, तो उसको किसी भी रप म धारण करन स कषठ रोग उतपनन होता ह । जिस मोती म मतसयाकष दोष हो अरथात‌ जिसम किसी सथान पर मछली की ओख क समान चिदन हो, तो

सनतान का नाश होता ह । जिस मोती म जरठ दोष हो अरथात‌ जो बिलकल

आभादीन हो तो उसक धारण करन स आय घट जाती ह । जिस मोती म

अतिरिकत दोष हो अरथात‌ जिसम मगो क समान छाया हो, उसक धारण

करन स दरिदरता आती द । जिसम तरिवतत दोष हो अरथात‌ मोती क ऊपरी

सतर पर तीन गोल रखाय ह तो एस रतन को धारण करन स सौभागय

नषट होता ह । जिस मोती म अवततदोष हो अरथात‌ वह चपटा हो तो उसक

धारण करन स अपयश परापत होता ह । जिसम तरास दोष हो अरथात‌ उसम

तीन कोन निकल हो तो उसक धारण करन स सौभागय नषट होता ह ।

जिस मोती म कश दोष हो अरथात‌ तो गोल न होकर लमबा हो, तो वह

बदधि नषट करता ह । जिसम कशपारव दोष (कोई किनारा टट गया) हो

तो उसक धारण करन स आजीविका जाती रहती ह । जिस मोती म गोलाई

न होकर किसी सथान पर पिडिका-सी बनी हो, तो वह धन समपतति का

नाश करता ह।

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194 रतन-परदीप

मोती चनदरमा का रतन ह

मगा (€००)- मरा या परवाल चार परकार का होता ह।

बराहमण परवाल- यह खरगोश क रकत क रग क समान लाल,

कोमल, सनिगध होता ट ओर उसम सरलता स छद किया जा सकता ह।

कषतरिय परवाल- गडहल क फल क समान या सिनदर क रग क समान

होता ह। यह सनिगध तो होता ही दह, परनत कठोर भी होता ह। वशय

परवाल-यह पलाश क फल क समान पीला-लाल या गलाब क फल क

समान गहर रग का हीता ह ओर सनिगध होता ह। उसकी कानति कषीण

होती ह । शर परवाल- वह होता ह जो लाल-कमल क दल क रग का,

कठोर ओर सथायी रप म कानति रहित होता ह । उसम सरलता स छिदर नही

किया जा सकता ।

मगा धारण करन वाल का साहस बढता ह ओर उसक शतरओ

का नाश होता ह। सतरियो को मगा सौमागय परदान करता ह।

एसा विशवास ह कि असली मगा अपन रग को बदलकर सवासथय क बिगडन की चतावनी दता ह । इसको धारण करन स यदि भयानक

सवपन आत हो तो बनद हो जात ह । भत-परत बाधा स मकति परापत होती ह।

मगा मगल का रतन ह।

4 पनना (छषटग०)-राहमणवरण का पनना शिरीष क फल क समान रग वाला होता ह । कषतरिय वरण का पनना गहर रग का होता द । वशय वरण का पनना पीत आभायकत हर रग का होता ह । शदरवरण का पनना शयाम आभा लिय हर रग का होता ह।

चिकना साफ अचछ घाट की अचछी चमक ओर हर रग का पनना गणवान‌ माना गया ह । सरय क परकाश म सफद वसतर पर रखन स यदि वसतर हर रग का दिखाई द तो पनना उततम होता ह । पनना बदधि-बल दता ह तथा इसक धारण करन स शरीर पषट होता ह । धन, धानय तथा समपतति

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रतनो म दवी-शकति ओर बरकत 195

ओर वश की वदधि होती ह। सरप भतादि का भय दर करता ह। जाद‌, टोन, नजर आदि स रकषा करता ह । यह मिरगी ओर पागलपन स बचाता ह । नतर म तरावट लाता ह। सवपनदोष दर करता ह । सतरी क परसव क समय पनना बधन स शीघर परसव हो जाता र ।

दोषी पनना शसतर-घातकारी, पित-सख हरन वाला, माता-पिता को कषट दन वाला ओर सख-समपतति को हरन वाला होता ह ।

पनना-बध का रतन ह

पखराज (1922)-- बराहमणवरण का पखराज सफद, कषतरिय वरण का गलाबी, वशय वरण का पीला, ओर शदर वरणका शयाम आभायकत होता ह ।

चिकना, चमकदार, पानीदार ओर अचछ रग का पखराज शभ होता ह । यह धन-धानय, बदधि-वल, जञान, समपतति आय ओर यश परदान करता ह । वश की वदधि करता ह । यह भत-परत की बाधा स रकषा करता ह। एसा विशवास ह कि कनया म विवाह बाधा पड रही हो, तो पखराज धारण करन स उस शीघर उपयकत वर परापत हो जाता ह।

दोषी रतन अनक परकार क कषट दता ह । चीर वाल रतन स चोर का भय रहता ह । सनन रतन स बनध जन स वर होता ह। दघक शरीर को चोट पहचान वाला होता ह । अभरकी रोग-कारक होता ह । जालदार पट म वयाधिरयो उतसनन करता ह । शयाम ओर सफद बिनद वाला पशओ क लिय हानिपरद होता ह। लाल बिनद वाला धननएरशक होता र । गडढ वाला ओर छटीट वाला पखराज चिनता ओर शोक दता ह ।

पखराज बरहसपति का रतन ह ।

नीलम (ऽ०??)"८)-तराहमण वरण का नीलम सफद म नीली आभा

वाला या उजजवल नील रग का होता ह। कषतरिय वरण नील रग म रकत आभा वाला होता ह । वशय वरण वाला नीलम सफद म गहरा नीला होता

ह । शदरवरण क नीलम म शयाम आमायकत नीला रग होता ह ।

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196 रतन-परदीप

चिकना, चमकदार, साफ, मोर पख क समान रग वाला नीलम

उततम ओर गणवान‌ होता ह । यह रतन परीकषा करन क पशचात‌ धारण किया

जाता ह । यदि यह किसी को शम फलदायक सिदध हो तो रोग, दोष

दःखदारिदर नषट करक धनधानय , सख- समपतति, बदधि--बल, यश, आय

ओर कल सनतति की वदधि करता ह । खोई हई समपतति वापस मिल जाती

ह | मख की कानति ओर नतरो की जयोति बदती ह ।

दोषी नीलम कणषटपरद होता ह । सफद डोरियो वाला रतन नतरो म

कषट ओर शरीर को पीडा दता ह । दघक रतन स दरिदरता आती ह । चीर

वाला रतन दरघटनाकारक होता ह । दरगा रतन शतर उतपनन करता ह ।

जाल वाला रोग बढाता ह। गडढ वाल स फोडा-फनसी निकलती ह ।

सनन रतन परिय बनधओ को नषट करता ह । सफद, लाल, काला या मध

विनद दरबलता ओर सनतति दख दता द ।

यह कहा जाता ह कि नीलम को पानी म डबोकर उस पानी स

बिचछ‌ का काटा सथान धोया जाय तो विष का परभाव नषट हो जाता ह।

यदि नीलम ताबीज क रप म पहना जाय तो जाद‌-टोन क परभाव को दर

करता ह । यह भी कहत र कि यह शतर क षडयनतर की चतावनी अपना

रग फीका करक द दता ह।

नीलम शनि का रतन ह।

गीमद (@"०0)-शवत आभामय गोमद बराहमण वरण करा होता ह । अरण आभामय कषतरिय वरण का होता ह । पीत आभायकत वशय वरण का

, ओर कषण आमामय शदर वरण का होता ह |

4 सनदर आमामय गोमद धारण करन स परबल शतर भी सामन आन म सकोच करता ह । यह सख-समपतति, धन-धानय ओर वभव परदान करता ह । सवसथय ठीक रहता ह ओर भत-परत का भय नही रहता । शिकार क समय वह रकषा कवच का काम करता ह।

एसा भी विशवास ह कि यदध क मदान म किसी जखम स रकत ४ हो तो मख स गोमद रख लिया जाय तो रकत बहना बनद हो जाता

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रतनो म दवी-शकति ओर बरकत 197

दोषी गोमद कषट दता ह । लाल रग वाला शरीर को कषट दता ह । अभरक धन-नाश करता ह तथा मत-परत का भय उतपनन करता ह ।

गोमद राह का रतन ह।

वदरय लहसनिया (००४ ८/९) -शवत वरण परधान नील आमायकत वदरय बराहमण, शवत वरण परधान अरण आमायकत कषतरिय, पीत वरण परधान नील आमायकत वशय ओर नील वरण परधान शदरवरणका होता ह।

वदरय क धारण स सनतान सख ओर समपतति परापत होती ह । घर म आननद रहता ह । नषट लकषमी वापस आती ह । दरिदरता, दःख वयाधि दर होत ह । भत-परत बाधा ओर रोग नषट होत ह । यह शरवीर बनाता ह । शतर ओर असतर-शसतर क आघात तथा दरघटना स रकषा करता ह ।

दोषी रतन धारण करना विपततिकारक ह । यदि घबब वाला हो तो शतर का भय होता ह। गडढ वाला हो तो उदर रोग उतपनन करता ह। भीतर डोरा हो तो नतर विकार उतसनन करता ह । सनन रतन स शरीर की वयाधिरयो सताती ह । चीर वाला शसतर स आघात दिलाता ह। अभरकी सनतान-नाश करता ह। जाल वाला कारावास कराता ह। रकत दोषी गह-कलह कराता ह । रकत बिनद वाला पस को कषट दता ह । मध विनद वाला सतरी क लिए हानिपरद होता ह ओर काल बिनद वाला पराणघातक होता ह । शवत बिनद वाला भाङयो क लिय कषटपरद होता ह ।

वदरय कत का रतन ह ।

फीरोजा (1\११००९)-- इसक बार म यह मानयता द कि पहनन

वाल को अपना रग बदलकर खतर की सचना कर दता ह । यह भी

विशवास ह कि यदि ओखो को सपरश कराया जाय तो नतर विकार दर कर

दता ह । धारणकरता पर नजर का कपरमाव नदी पडता । इसकी अलक फीकी

पड जाय तो इसको तरनत उतार दना चाहिए ।

एकवामरीन (ववा 11८) यह समदरी यातरियो क लिए कवच का

काम करता ह।

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198 रतन-परदीप

^ बिललौर (९००६ ©»5191)- इसको धारण करन स रातरि को गहरी

नीद आती ह । जाद‌-टोन का कपरमाव नही पडता ह । इसक बन पयाल

म यदि विष डाला जाय तो पयाला धघला पड जाता ह । इसकी माला पर

जप करन स मन म एकागरता आती द ।

लाजवरत 0.95 19201) -- इसक दान सोन या चोदी की तार म

पिरोकर बचचो को पहनाय जाय तो उनका सवासथय ठीक रहता ह ओर

नजर नी लगती ।

उपल (07०)-- इसको धारण करन स ईशवर क परति भकति की

भावना उतपनन होती ह ओर आतमोननति होती ह । कहत ह कि यह रतन

योगी को योग, भकतो को भकति ओर गहसथ को वरागय परापति कराता ह।

चनदरकानत-गौदनता (५०० 5०१९) यह आशा का परतीक ह।

यह समदरौ यातरियो क लिय रकषा-कवच का काम करता ह । इसकी शकति

शकल पकष म बढ जाती द ओर कषण पकष म कम हो जाती ह ।

तामडा (027१) यह रतन रग बदलकर आन वाल सकट की

चतावनी दता ह । यह पहल पलग की बीमारी स बचान क लिए धारण

किया जाता था । किसी मितर को उपहार म दन स मितरता दढ हो जाती

ह ।

पितौनिया (8।००५ ऽ1०१)-- इसको पहनन स डबन का भय नही रहता । यह वयवसाय म वदधि ओर यदध म विजय दिलवाता ह ।

हकीक-अकीक (^.\५)-- इसको धारण करन स वकतता की शकति बढती ह । धन की परापति होती ह ओर आय म वदधि होती ह।

कटला (८५७) धारणकरता बीमार पड जाय तो इसका रग श 4५ ह । विष मिली वसत निकट ल जान स इसकी चमक मद पड जा ।

सनला (6/""८)-- इसको धारण करन स रात को भय नदी लगता ।

दोपोशता (५०००५ यह विवाहित जीवन को आननदमय बनाता नदमय बनाता ह । यह पलग ओर विषल कीड क काटन स बचाता ह । परसती की पीडा को घटाता ह। ¦

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रतनो म दवी-शकति ओर बरकत 199

जहरमोहरा-- कहा जाता ह कि इसक पयाल म विष अपना

कपरभाव खो दता ह।

जवरजद‌द (701100)-- इसक धारण करन स धन म वदधि होती

ह तथा सनतान ओर दामपतय सख परापत होता ह । गरड पख क रग वाल

रतन की माला बनवाकर पहनन स मिरगी ठीक हो जाती ह। इस रतन को

धारण करन स सतरी क सतन दढ रहत द ओर विषल डक का परभाव नही

पडता । इसक पयाल म मदयपान किया जाय तो बढापा दर स आताह।

सगमसा (५)-- इसक पहनन स भयानक विचार मन स निकल

जात ह तथा डरावन सवपन नदी दिखाई दत ।

मौस रतन (०१००१) - इसस सतोष की परापति होती ह । भय

नही लगता । आतमविशवास दद होता ह । नजर दर हो जाती ह ।

जसिनथ (1४८1010) इसक धारण करन स मानसिक शकति बढती

ह । रात को नीद अचछी आती ह । परसननता होती ह।

तरमली (वछणपा॥11८)- इसक धारण करन स बदधि तीवर होती ह

ओर जञान म वदधि होती ह।

लोहित पाषाण (५४५१५९)-- इसक धारण करन वाल क पास

कोई छत की बीमारी का रोगी आ जाए तो इसकी चमक मद हो जाती

ह । हर परकार की यातरा म यह रकषा-कवच का काम‌ करता ह ।

सवणपमि ((५४०॥८)-- परानी पसतको म इस सनरी पतथर का

नाम दिया गया ह। एसा विशवास ह कि इस धारण करन स रात म

भत-परत का भय नही रहता । भयानक सवपन नही दिखाई दत । दिल की

उदासी दर होती ह । कविता या लख लिखन की तरग उठती ह |

जहरमोहरा (७५१५१५०) यह विषल कीड ओर रगकर चलन

वाल कीडो क विष को दर करता ह । कहत ह कि इसक पयाल म विष

अपना कपरभाव खो दता ह ।

सोना मकखी-- इसको धारण करन स जखम पर मकखी नरी

वठती ।

सिफरी-- यह हरापन लिय आसमानी रग का पतथर होता ह।

इसको धारण करन स आतम-शानति परापत होती रह ।

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{ रतन : जयोतिष क आइन म

रतनो म अपरव दवी शकति निदित ह ओर इस शषबनध म जो मानयताय ह उनका विवरण हम विसतारपरवक पिल परकरण म द चक ह । रतनो का जो हम पर परभाव पडता ह वह गरहो क रगो ओर उनक परकाश की किरणो की कपन कषमता (५०१५५०१) क कारण ह । हमार महरषियो न अपन अनभव, परयोग ओर दिवय दषटि दवारा यह जानकारी परापत कर ली थी कि कौन-सा गरह किस रग की किरण परसफटित करता ह ओर उसी क अनसार उनहोन गरह क लिय रतन निरधारित किय । किसी गरह क निरधारित रतन दवारा उसक रग की किरण मानव शरीर म परवश करक अपन कपन (1019110) स अपना परमाव सदढ बनाती ह। रतन इस परकार एक छानन क यतर (पल) क समान कारय करता ह ओर .मानव शरीर म उन फिरणो की आवशयकतानसार हानि या लाभ परहचाता ह । एसी किरण आती हो जिनका कपन (ाणभा०ण) किसी वयकति विशष क शरीर क लिए उपयकत नही ह तो निरधारित रतन

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रतन : जयोतिष क आइन म | 201

उस हानिपरद परभाव को समट लता ह ओर जातक को कषति पहचान स

रकषा करता ह । इनही बातो को धयान म रखकर जयोतिषियो को जनम

कणडली का सकषम अधययन करक जातक क लिय उपयकत रतन धारण करन

क लिय निरधारित करना चाहिय ।

कौन सा रतन कब उपयकत होता ह ओर कब हानिपरद होगा ?

डस सबनध म जयोतिष क विदवाना म मतभद द । कछ विदवानो का मत ह

कि जो गरह कणडली म पीडाकारक हौ उस गरह का रतन गरह शानति क

लिय धारण करना चाहिय । अशभ फलदाता गरह क रतन को धारण करना

उचित न होगा । इस मत क समरथको का यह कथन ह कि अशभ फलदाता

गरह का रतन धारण करन स उसकी दी हई पीडा शानत नही होती, वरन‌

उसका रतन धारण करन स वह बलवान‌ होकर ओर अधिक अशभ फलदाता

बन जाता ह। एक मत ओर द, उसक अनसार गरहो क दो समदाय ह ।

एक का नता सरय ओर उसक सहयोगी ह चनदर, बहसपति ओर मगल । दसर

समदाय का नता ह सरयपतर शनि ओर उसक सहयोगी ह बध, शकर राह

ओर कत । इस मत क अनसार जिस समदाय का गरह लगन का सवामी हो

उसक सहयोगी गरह क रतन आवशयकतानसार धारण करन चाहिए । विपकषी

दल क रतन उस कणडली क लिय हानिपरद. होग ।

एक अनय मत क अनसार जो गरह किसी महादशा का सवामी हो

तो उसकी महादशा म उस गरह का रतन धारण करना चाहिए, चाह महादशा

का सवामी उस कणडली क लिए अशभ गरह ही कयोन हो ।

अब हम इस निषकरष पर पहच द कि हम जनम कणडली का परीकषण

करक यह दख लना चाहिय कि उस कणडली क लिय अशभ गरह कौन ह

? उन अशम गरहो क रतन जातक को धारण करन की सलाह कभी नही

दनी चाहिय-उनकी महादशा आन पर भी नही । अशभ गरहो स हमारा

मतलब नसरगिक पाप गरहो स नही ह, वरन‌ ततीय, षषठ, अषटम ओर दवादश

भाव क सवामियो स द । इनका रतन धारण करन स व बलवान‌ होकर ओर

अधिक अनिषटकारक बन जायग । इसी सिदधानत को लकर हम नीच बतायग

कि नवरतनो म कौन-स रतन किसको ओर कब धारण करन चाहिए ?

माणिकय किसको धारण करना चाहिए ‡ -- माणिकय सरय का

रतन ह । इसलिय सरय जिस कणडली म किसी शभ भाव का सवामी हो तो

उसक जातक क लिय माणिकय शभ फलदायक होगा । ॥

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202 रतन-परदीप

राशि क अनसार उपयकतता -- मष लगन म सरय पचम तरिकोण का सवामी ह ओर लगनश मगल का मितर ह । अतः मष लगन क जातक बदधि वल परापत करन, आतमोनति क लिय तथा सनतान सख, परसिदधि, बल

परापत करन, ओर राजय कपा परापति क लिय सदा माणिकय धारण कर सकत ह । सरय की महादशा म उसको धारण करन स शभ फल परापत होगा । वष लगन की कणडली म सरय चतरथ कनदर का सवामी ह, परनत सरय लगनश शकर का शतर ह । इसलिय इस लगन क जातको को माणिकय कवल सरय की महादशा म धारण करन स शम फल परापत होगा । उनको इसका धारण करन स मानसिक शानति, सख, विदयाधययन म सफलता, गह-भमि लाभ, मात-सख तथा वाहन-सख परापत होगा । मिथन लगन की कणडली म सरय ततीय भाव का सवामी होगा । अतः इस कणडली क जातक को यह रतन कभी भी धारण करना लाभपरद न होगा । करक लगन क लिय सरय धन भाव का सवामी होगा । अतः इस कणडली क जातक धन-भाव या आखो म कषट होन क समय माणिकय धारण कर सकत ह । धनभाव मारक भाव भी ह । अतः माणिकय यदि मोती क साथ धारण किया जाय तो शरयसकर होगा । सरय की महादशा म माणिकय विशषकर शम फलदायक होगा । सिह लगन म सरय लगनश ह । अतः इस लगन क लिय माणिकय अतयनत शभ फलदायक रतन ह ओर इस लगन क जातको को आजीवन माणिकय धारण करना चाहिय । इसक धारण करन स जातक शतरओ क मधय म निरभय होकर रह सकग ओर शतर पकष स उनक विरदध जो भी कारयवाही होगी उसस उनकी बराबर रकषा होती रहगी । यह शारीरिक ओर मानसिक सवासथय की रकषा करगा ओर आय म बदधि होगी । इस लगन क जातक अतयनत भावक होत ह । अतः अपन मानसिक सनतलन को बनाय रखन तथा आतम बल कौ उननति क लिय सदा माणिकय धारण करना चाहिय । कनया लगन म सरय दवादश का सवामी होता ह। इस लगन क जातक को माणिकय कभी नरी धारण करना चाहिय । तला लगन की कणडली म सरय जो लगनश शकर का शचर ह, एकादश (लाभ) भाव का सवामी होता ह। इस लगन क जातक को माणिकय कवल सरय की महादशा म धारण करना अरथिक लाम क लिय शभ फलदायक होगा । वशचिक, लगन म सरय दशम भाव का सवामी होता ह । यहो सरय लगनश का मितर होता ह । अतः राजय कपा, परतिषठा, मान, वयवसाय या नौकरी म उननति परापत करन क लिय माणिकय धारण करना शम फलपरद होगा । की महादशा म इसका धारण करना विशष रप स शम हयोगा । धन लगन म सरय नवम‌ (मागय) भाव का सवामी होता ह । यह

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रतन : जयोतिष क आइन म 203

भी वह लगनश का मितर ह । अतः धन लगन क जातक माणिकय मागयोननति,

आतमोननति तथा पित-सख क लिय आवशयकतानसार धारण कर सकत

ह । सरय की महादशा म माणिकय विशष रप स शम होगा । मकर लगन क

लिय सरय अषटम माव का सवामी होता ह । इस लगनश शनि ओर सरय म

परसपर शतरता ह । अतः इस लगन क जातक को माणिकय कमी नही धारण

करना चाहिय । कमभ लगन म सरय सपतम माव का सवामी होता ह जो भाव

विशष रप स मारक सथान ह ओर कयोकि सरय मारकश होकर लगनश का

शतर ह । अतः हम कमम लगन क जातको को भी माणिकय स दर दी रहन

को राय दग । मीन लगन क जातको को भी माणिकय धारण करना उचित

न होगा । कयोकि इस लगन म सरय पषठ भाव का सवामी होता ह । इस

लगन म एक अपवाद हो सकता द, कयोकि सरय लगनश बहसपति का मितर

ह । अतः यदि वह षषठ का सवामी होकर षषठ भाव ही म सथित हो तो

सरय की महादशा म माणिकय धारण किया जा सकता ह।

धारण विधि-- जो माणिकय धारण किया जाय वह कम-स-कम

ढाई रतती का हो ओर यथासमभव शदध हो । उसको रविवार, सोमवार तथा

बहसपतिवार को खरीदकर सोन की अगढी म जडवाना चाहिए । रतन अगढी

म इस परकार जडा जाय कि वह तवचा को सपरश कर । एसी अगढी को

(णत‌ पष कहत ह । अगढी शकल पकष क किसी रविवार क दिन सरयोदय

क समय धारण करनी चाहिए । धारण करन स परव अगठी को कचच दघ

या गगाजल म डबोकर रखना चादिय । फिर उसको शदध जल स सनान

कराकर पषप, चनदन ओर धपवतती स उसकी उपासना करनी चादिए ओर

7000 बार निमनलिखित मनतर का जाप करना चाहिए :

मतर -ॐ घ घणिः सयय नमः

यह अगढी दाहिन हाथ की तरजनी अगली म पहननी चादिए ।

माणिकय एक महगा रतन ह ओर समभव ह, बहत लोग उसको

खरीदन म असमरथ रह । व माणिकय की बदल क रप म लाली (7१५)

लाल तामा (७०११८, सरयकानत मणि (७५ ७७८) या माणिकय क रग का

हकीक पतथर मिल जाय तो वह भी बदल म धारण किया जा सकता ह ।

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204 रतन-परदीप

परनत माणिकय ओर उसक बदल क रतनो क साथ हीरा, नीलम, गोमद ओर लहसनिया कभी नही धारण करना चाहिए ।

नोट - ऊपर जो हमन अगढी बनवान तथा उसक धारण करन स परव कचच दध या गगाजल म डालकर शदध करन तथा उसकी उपासना करन की विधि बताई ह, वह सभी रतनो को धारण करन म लाग होगी । उसको हम बार-बार नही लिखग । एक बात ओर ह- रतनो को सदा विशवास ओर शरदधा क साथ धारण करना चाहिए । य पर हम पाठको को एक रोचक सतय कथा सनात ह । एक बार एक जौहरी की दकान पर एक गराहक आया जो बहत परशान ओर बचन लग रहा था । उसन आत ही दकान क सवामी स पछा कि उसकी नीलम की अगठी ठीक हो गयी या नही । अगढी कारखान स तयार होकर नही आयी थी । वह वयकति ओर भी अधिक परशान हो गया ओर बोला कि जब स उसन अगठी उतारी ह उसका दिन रात का चन उठ गया ह । उसन कहा कि वह अगठी लकर दी जायगा चाह रात क बारह कयो न बज जाय । दकानदार को विवश होकर सकटर दवारा एक आदमी भजकर अगढी मगानी पडी । जब उस वयकति न अगढी धारण कर ली तो उसकी सारी बचनी दर हो गयी । बाद म जौहरी न बताया कि जिस रतन को वह वयकति नीलम समञच वठा ह वह एक अलपमोली पील रग का पतथर था, परनत उस यही विशवास ह कि वह नीलम ह । इस उदाहरण को हमन यह परमाणित करन क लिए दिया ह कि विशवास बहत बडा समबल ह । विशवास दवारा पतथर म भी भगवान‌ क दरशन परापत हो सकत ह ।

मोती किसको धारण करना चाहिए ?-- मोती चनदर का रतन ह। जिस कणडली म चनदर शम भाव का सवामी हो उसक जातक को मोती धारण करन स लाभ होगा ।

राशि क अनसार उपयकतता-- मष लगन की कणडली म चनदर चतरथ भाव का सवामी ह । चतरथश चनदर लगनश मगल का मितर ह | अतः मोती धारण करन स मष लगन क जातक मानसिक शानति, मात-सख, विदया-लाभ, गह-ममि लाभादि परापत कर सकत ह । मोती चनदर की महादशा म विशष रप स शभ फलपरद होगा । मोती लगनश मगल क रतन मग क साथ पहनन पर अधिक लामकर होगा । वष लगन की कणडली म चनदर ततीय भाव का सवामी ह । इस लगन क जातक को मोती कमी नही धारण करना

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रतन : जयोतिष क आइन म 205

चाहिय । मिथन लगन म चनदर घन भाव का सवामी ह । चनदर की महादशा म

इस लगन का जातक मोती पहन सकता द, परनत यदि इसक बिना काम

चला सक तो अचछा होगा, कयोकि चनदर मारकश भी ह । परनत कणडली म

यदि चनदर दवितीय का सवामी होकर एकादश, दशम या नवम भाव म सथित

होया दवितीय दी म सवराशि महो तो चनदर की महादशा म मोती धारण

करन स धन लाम होगा । करक लगन म चनदर लगनश ह। अतः इस लगन

क जातको को आजीवन मोती धारण करना शम फलपरद होगा । मोती

उनक सवासथय की रकषा करगा तथा आय म बदधि होगी । आरथिक सकट म

भी रकषा-कवच बना रहगा । मोती पवितरता, ठीक शदधता ओर विनमरता का

सचक ह । सिह लगन म चनदर दवादश का सवामी ह । अतः इतत लगन क

जातक को मोती नही धारण करना चाहिए । हौ. यदि चनदर दवादश म

सवराशि म सथित हो तो चनदर की महादशा म मोती धारण किया जा सकता

ह । कनया लगन म चनदर एकादश (लाभ) भाव का सवामी होता द । चनदर की

महादशा म मोती धारण करन स आरथिक लाम, यश तथा सनतान सख

परापत हो सकता द । तला लगन म चनदर दशम भाव का सवामी ह । यदयपि

चनदर ओर लगनश मितर नही ह, परनत तला लगन वालो को मोती धारण करन

स राजय कपा, यश, मान, परतिषठा परापत होती ह । नौकरी या वयवसाय म

उननति होती ह । चनदर की महादशा म मोती का धारण करना विशष रप स

लाभदायक ह । बशचिक लगन म चनदर नवम (भागय) माव का सवामी ह । अतः

मोती धारण करन स धरम, करम ओर भागय म उननति होती ह । पित-सख

परापत होता ह । यश, मान बढता ह । चनदर की महादशा म मोती धारण करना

विशष रप स लाभपरद होगा । धन लगन म चनदर अषटम का सवामी होता ह ।

अतः इस लगन क जातक को मोती धारण करना अनचित ह । मकर लगन

म चनदर सपतम का सवामी होन क कारण मारकश होता द । वह लगनश शनि

काशतर भी द । अतः इस लगन म जातक क लिए मोती हानिकारक परमाणित

होगा । कमभ लगन म चनदर षषठ भाव का सवामी होता द । चनदर लगनश शनि

काशतर भी ह। अतः इस लगन क जातक को मोती धारण करना निषध

ह । मीन लगन म चनदर पचम तरिकोण (सत माव) का सवामी होता ह । मोती

धारण करन स जातक को सनतान- सख, विदया-लाभ तथा यश, मान परापत

होता ह । पचम स नवम होन क कारण भागय भाव भी माना जाता हि ।

अतः मोती धारण करना विशष रप स लाभपरद होता ह ।

धारण विधि 2, 4. 6 अथवा 11 रतती का मोती चोदी की अगठी म

सोमवार या बहसपतिवार को खरीदकर या जडवाकर किसी शकल पकष क

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206 रतन-परदीप

सोमवार को, जो उपासनादि की विधि हम पहल बता चक ह, करक तथा

11000 बार निमन लिखित मनतर का जाप करन क पशचात‌ सधया क समय

धारण कर । यदि चनदर क दरशन. करक धारण कर तो ओर भी अचछा होगा |

मतर-ॐ सो सोमाय नमः

यो तो मोती कोई बहत महगा रतन नही ह, फिर भी जो लोग

उस न खरीद सक व उसकी बदल म चनदरकानत मणि (4०० 51०१८) धारण

कर सकत र । यो तो बदल म सफद पखराज भी पहना जा सकता ह |

परनत वह मोती स ससता नही होता ।

परनत सावधान ¦ मोती या उसकी बदल क रतन क साथ हीरा, पनना, नीलम, गोमद ओर वदरय कभी नही पहनना चाहिए ।

मगा किस धारण करना चाहिए ? -- मगा मगल का रतन ह। जिस कणडली म मगल शम माव का सवामी हो उसक जातक को मगा धारण करना लामपरद होगा । यदि मगल अशम भावो का सवामी हो तो उसक जातक को मगा धारण नी करना चाहिए ।

राशि क अनसार उपयकतता-- मष लगन म मगल लगन का सवामी होता ह । अतः मष लगन क जातक को मगा आजीवन धारण करना चाहिए । उसक धारण करन स आय म वदधि, सवासथय म उननति, यश, मान परापत होगा तथा जातक हर परकार स सखी रहगा । वषभ लगन म मगल दवादश ओर सपतम का सवामी होता ह । अतः इस लगन क जातक को मगा धारण नही करना चाहिए । मिथन लगन म मगल षषठ ओर एकादश का सवामी ह। यदि मगल एकादश या षषठम ही सथित हो तो मगल की महादशा म मरा धारण किया जा सकता ह । हम तो यह सलाह दग कि मिथन क जातक यदि मग स दर ही रह तो अचछा ही ह, कयोकि लगनश बध ओर मगल परसपर मितर नही ह । करक लगन क लिए धि पचम ओर दशम भाव का सवामी होन क कारण एक योग कारक गरह ह। मगा सदा धारण करन स सनतान-सख, बदधि बल, भागयोननति, यश, मान परतिषठा राजय-कपा तथा वयवसाय म सफलता परापत होती ह । यदि लगनश क रतन

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रतन : जयोतिष क आइन म 207

मोती क साथ मगा धारण किया जाय तो बहत ही शम फलदायक होता

ह- विशषकर सतरियो क लिए । मगल की महादशा म इसका धारण करना

परण रप स लाभपरद ह । सिह लगन म भी चतरथ ओर नवम भावो का सवामी

होन क कारण मगल योगकारक गरह माना जाता ह । यह मानसिक शानति,

गह तथा भमि-लाम .धन-लाभ, मात-सख, यश, मान, परतिषठा ओर

भागयोननति दता ह । यदि यह माणिकय क साथ धारण किया जाए तो ओर

अधिक लाम पहचाता ह । मगल की महादशा म इसका धारण करना विशष

रप स शभ फलपरद ह । कनया लगन म मगल ततीय ओर अषटम दो अशभ

भावो का सवामी होता द। कनया लगन क जातक को मगा नही धारण

करना चाहिए । तला लगन म मगल दवितीय तथा सपतम, दो मारक सथानो

का सवामी होता ह । अतः हमारी तो यही सलाह ह कि इस लगन वाल यदि

मग की ओर न आकरषित हो तो अचछा ही ह । हो, यदि मगल दवितीय भाव

म सवराशि महो तो मगल की महादशा म यदि उनकी मतय का समय

निकट न आ गया दहो तो मगा धारण करक धन परापत कर सकत ह ।

सिदधानतः हम एक मारकश गरह का, जो लगनश का मितर न हो, रतन धारण

करन क पकष म नही ह । वशचिक लगन म मगल लगनश ह । अतः इस

लगन क जातक क लिए मगा धारण करना उसी परकार शभपरद होगा जस

हमन मष लगन क समबनध म लिखा ह । धन लगन म मगल परथम तरिकोण

तथा दवादश का सवामी ह । एक तरिकोण का सवामी होन क कारण मगल

इस लगन क लिए शम गरह माना गया ह । इसक धारण करन स सनतान-सख,

बदधि, बल, यश, मान तथा मागयोननति परापत होती ह । मगल की महादशा

म इस धारण करना विशष लाभकर ह । मकर लगन म मगल चतरथ ओर

एकादश भावो का सवामी ह । मगल की महादशा म मगा धारण करन स

मात-सख, भमि, गरह, वाहन सख की परापति तथा आरथिक लाम होता ह।

कमभ लगन क लिए मगल ततीय तथा दशम भावो का सवामी ह। यदि

मगल दशम म सवराशि महो तो मगल की महादशा म इसक धारण करन

स राजय-कपा, वयवसाय म उननति, यश तथा मान परापत होता ह । कयोकि

इस लगन क लिए मगल शभ नी ह, अतः इस लगन क जातक को मगा

धारण नही करना चाहिए । मीन लगन क लिए मगल दवितीय भाव ओर

नवम तरिकोण का सवामी होन क कारण अतयनत शम बरह माना गया र।

इसलिए इस लगन क जातक को मगा धारण करना शभ फलदायक होगा ।

मगल की महादशा म इसको धारण करना विशष रप स लामपरद होगा ।

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208 रतन-परदीप

यदि इस लगन क जातक मग मोती या पील पखराज क साथ धारण कर

तो उनह सब परकार का सख परापत होगा ।

धारण विधि -- मगा सोन की अगढी म जडा जाना चाहिए ।

मग का वजन ¢ रतती स कम नही होना चाहिए । मगा यदि मगलवार क

दिन खरीदा जाय ओर अगढी म जडवाया जाय तो अचछा होगा । मग की

अगढी को विधिपरवक उपासनादि तथा 10000 बार निमनलिखित मनतर का

जाप करन क पशचात‌ किसी शकल पकष क मगल वार को सरयोदय स एक

घणट पशचात‌ धारण करना चाहिए । अगठी दाहिन या बाय हाथ की अनामिका

अगली (१६ (४०) म धारण करनी चाहिए ।

मतर- ॐ अ अगाकारय नमः ।

मगा एक अलपमोली रतन ह ओर हमारी राय तो यदी ह कि जिनक लिए शभ हो उनह मगा दी धारण करना उचित होगा । परनत यदि कोई उसक बदल का रतन धारण करना चाह तो व ह सगमगी, तामडा (लाल),

लाल जसपर ओर अमबर (करवा) ।

परनत सावधान ¦! मग क साथ पनना, हीरा, नीलम, गोमद ओर वदरय कभी नही धारण करना चाहिए ।

पनना किस धारण करना चाहिय ?-- पनना बध का रतन ह । जिस कणडली म बध शभ भावो का सवामी हो उसक जातक को पनना धारण करना शभ फलदायक होगा ।

राशि क अनसार पनन की उपयकतता-- मष लगन क लिए बध दो अनिषट भावो -ततीय ओर षषठ का सवामी ह । अतः इस लगन क जातको क लिए पनना अतयनत हानिकारक रतन ह । वषभ लगन क लिए बध दवितीय ओर पचम तरिकोण का सवामी होकर एक योग कारक गरह बन जाता ह। इसक धारण करन स जातक को पारिवारिक शानति, धन लाम, बदधि बल, सनतान सख, यश, मान तथा मागयोननति परापत होती ह । बध की महादशा म पनना धारण करना विशष रप स शम फलदायक होता ह । यदि इस लगन क जातक पनन को हीर क साथ पहन तो यह जोडा उनक जीवन म समदधि दगा । मिथन लगन क लिए बघ लगन ओर चतरथ का सवामी ह । इस लगन क जातक को पनना सदा रकषा कवच क रप म धारण करना चाहिए । इसक

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रतन : जयोतिष क आइन म 209

धारण करन स उसको शरीर सख, धन लाम, आय वदधि, मात सख, विदया म उननति, मानसिक शानति तथा गह, ममि ओर वाहन सख परापत होत ह । बध की महादशा म विशष रप स शभ फलदायक ह । करक लगन क लिए बध दो अशम भावा-ततीय ओर दवादश का सवामी होता ह। इस लगन क जातक को पनना धारण करना वरजित समञमना चाहिए । सिह लगन क लिए बध दवितीय ओर एकादश का सवामी होता ह। इस लगन क जातक को बध की महादशा म पनना धारण करन स सनतान सख, पारिवारिक सख, अतल धन लाभ, यश ओर मान परापत होत ह । कनया लगन क लिए बध

लगन तथा दशम भाव का सवामी होता ह। इस लगन क जातक को पनना

सदा धारण करन स लाभ दही लाम ह । वह शरीर ओर सवासथय की रकषा

करता ह, आय म वदधि दता ह तथा वयवसाय म उननति, राजय-कपा, मान,

परतिषठा परापत कराता ह । बध की दशा म पनना विशष रप स फलदायक

होता द । तलः लगन क लिए पनना नवम ओर दवादश भावो का सवामी होता

ह । दवादश म इसकी मल तरिकोण राशि पडती ह । परनत तब भी नवम

तरिकोण का सवामी होन क कारण बध इस लगन क लिए शभ गरह माना

गया ह । हमारी राय म तला लगन वाल यदि पनना सदा धारण कर तो

हीर क साथ धारण करना उततम होगा । बध की महादशा म तो पना

धारण करन स लाभ ही लाभ होना चाहिए । इसका एक कारण ओर होना

चाहिए । बध लगनश शकर का परिय मितर ह। वशचिक लगन क लिए बध

अषटम ओर एकादश का सवामी ह। लगनश मगल ओर बध म परसपर

मितरता नही ह । अतः बध इस लगन क लिए शम गरह नही माना जाता

ह | तब भी यदि एकादश का सवामी होन क कारण यदि बध लगन, दवितीय,

चतरथ पचम या नवम या एकादश म सथित हो तो बध की महादशा म पनना

धारण करन स आरथिक लाभ होगा ओर समपननता म वदधि होगी । धन लगन

क लिय बध सपतम ओर दशम भाव का सवामी होता ह । वह कनदराधिपति

दोष स दषित होता ह । तब भी बध की महादशा म आरथिक लाभ, वयवसाय

म उननति ओर समदधि म वदधि होगी । यदि बध किसी निकषट भाव म

सथित हो तो बध लगन, दवितीय, पचम, नवम या दशम या एकदश भाव म

सथित हो तो बध की महादशा म अरथिक लाम, वयवसाय म उननति ओर

समदधि म वदधि होगी । यदि बध किसी निकषट भाव म सथित हो तो पनना

, न पहनना ही शरयसकर होगा । मकर लगन क लिए बध षषठ ओर नवम

भाव का सवामी होगा । नवम तरिकोण म उसकी मल तरिकोण राशि भी

पडती द । इस कारण स बध इस लगन क लिए शभ गरह माना गया ह।

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210 । रतन-परदीप

बध लगनश शनि का मितर भी द । इसलिए यदि पनना सदा नीलम क साथ

धारण किया जाय तो बहत फलदायक होगा । बध की महादशा म पनना

धारण करना विशष रप स शरषठ होगा । कमभ लगन क लिए बध पचम

तरिकोण ओर अषटम भाव का सवामी | तरिकोण का सवामी होन क कारण

वह इसक लिए शभ गरह माना गया ह । बध की महादशा म पनना विशष

रप स फलदायक द । यदि पनन को हीर क साथ धारण किया जाय तो वह

अतयनत शम फलदायक बन जायगा, कयोकि शकर इस लगन क लिए

चतरथ ओर नवम का सवामी होन क कारण योग कारक गरह ह । पनना

लगनश शनि क रतन नीलम क साथ धारण करन स शभ फल दगा । मीन

लगन क लिए चतरथ ओर सपतम का सवामी होन क कारण कनदराधिपति दोष

स दषित ह । तब भी यदि बध लगन, दवितीय, पचम, नवम, दशम या एकादश

म सथित हो या सवराशि म सपतममभीहो तो आरथिक दषटिस बध की

महादशा म फलदायक होगा । इतना अवशय धयान रखना चाहिए कि बध

इस लगन क लिए पररल मारकश ह । इसलिए जिनकी आय का अनत निकट

हो उनह पनना नही धारण करना चाहिए । बध आरथिक लाभ दकर भी मारक

गरह बन सकता ह ।

धारण विधि -- पनना जहौ तक हो सक चौदी की अगढी म

बधवार को जडवाना चाहिए । फिर विधिपरवक उसकी उपासना करक ओर निमनलिखित मनतर का 9000 वार जप करक किसी शकल पकष क बधवार को सरयोदय स दो घणट पशचात‌ धारण करना चाहिए । पनना सोन की अगढी म पहनन का चलन ह, परनत चोदी की अगठी शरषठ रहगी । वजन तीन रतती स कम नही होना चाहिए । जहौ तक हो सक, दाहिन हाथ की कनिषठा अगली म धारण करना चाहिए ।

मनतर- ॐ ब बधाय नमः ।

ह पनना एक मलयवान‌ रतन ह । जो पनना खरीदन म असमरथ ह व बदल म एकवामरीन, हर रग का जिरकान, फरोजा या परीडोट धारण कर सकत ह । यदि सनदर हर रग का हकीक पतथर मिल जाय तो उसस भी काम चलाया जा सकता ह । परनत पनन क साथ मोती ओर मगा नदी धारण करना चाहिए ।

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रतन : जयोतिष क आइन म 211

पखराज किस धारण करना चाहिए ?-- पखराज बहसपति का रतन ह, परनत इस समबनध म कछ मतभद ह कि बहसपति का रतन सफद पखराज ह या पीला पखराज । अपना मत निशचित करन क लिय हमन बहजजातक की शरण ली जिसक अधयाय 2 म पचम शलोक इस परकार हः-

वणसतिगरसिताति रकत हरितवयापीत चितरा सिता ।

बहवयमबवगनिज कशवनदर शचिकाः सरयादिनाथाः मात‌ ।

अरथात‌ लाल, शवत, रकत वरण, हरा, पीलापन लिय हए तरह-तरह क रग ओर काला य सरय स ऋमानसार शनि तक क रग ह । आचारय वराहमिहिर क इस शलोक स सपषट ह कि वहसपति का रग पीला ह, अतः इसका रतन पीला पखराज ह, शवत नही ।

जिस कणडली म बहसपति शभ भावो का सवामी हो उसक जातक को समयानसार या आवशयकतानसार पीला पखराज धारण करना शभ फलदायक होगा । जिसकी कडली म बहसपति अशभ भावो का सवामी हो उसको पील पखराज को धारण करन स हानि होगी ।

राशि क अनसार उपयकतता-- मष लगन क लिय बहसपति नवम तरिकोण ओर दवादश भावो का सवामी ह । नवम तरिकोण का सवामी होन क कारण बहसपति इस लगन क लिय शम गरह माना गया ह । अतः पखराज धारण करन स जातक को बदधि, बल, जञान, विदया म उननति, धन, मान, परतिषठा तथा भागय म उननति परापत होती ह । बरहसपति की महादशा म यह रतन धारण करना विशष रप स फलदायक ह । यदि पखराज लगनश मगल क रतन मग क साथ पहना जाय तो बहत ही लाभपरद बन जाता ह । वषभ लगन क लिए बहसपति अषटम ओर एकादश भाव का सवामी होता ह। जयोतिष क मानय सिदधानत क अनसार बरहसपति वषभ लगन क लिय शभ गरह नही माना गया ह । इसक अतिरिकत लगनश शकर ओर बहसपति म परसपर मितरता नही ह । तब भी यदि एकादश का सवामी होकर बरहसपति दवितीय, चतरथ, पचम, नवम या लगन म सथित हो तो बहसपति कौ महादशा म पील पखराज को धारण स धन लाम म वदधि होगी । मिथन लगन क लिय बहसपति सपतम ओर दशम भावो का सवामी होन क कारण कनदराधिपति दोष.

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212 रतन-परदीप

स दषित द । तब भी यदि बहसपति लगन, दवितीय, एकादश या किसी कनदर

तरिकोण म सथित हो तो बहसपति की महादशा म पीला पखराज धारण

करन स सनतान सख, समदधि म वदधि तथा धन की परापति होती ह । परनत

यह न विसमरण करना चाहिय कि मिथन लगन क लिय बहसपति एक परबल

मारकश ह । आरथिक लाभ या सासारिक सख दकर वह मारक भी बन

सकता ह । करक लगन क लिए वहसपति षषठ ओर नवम का सवामी होता

ह | नवम तरिकोण का सवामी होन क कारण वह इस लगन क लिय एक

शभ गरह माना गया ह । अतः इस लगन क जातक को पखराज धारण करन

स सनतान सख, जञान म वदधि भागयोननति, पित सख, ईशवर भकति की

भावना तथा धन की परापति होती ह । उसको मान ओर परतिषठा भी मिलती

, ह । बहसपति की माहदशा म इसको धारण करन स विशष रप स लाम

होता ह । यदि पीला पखराज इस लगन का जातक मोती या मग क साथ

धारण कर तो वह बहत लाभपरद सिदध होगा । सिह लगन क लिए बहसपति

पचम तरिकोण ओर अषटम भाव का सवामी होता ह । पचम तरिकोण का

सवामी होन क कारण वह इस लगन क लिय शम गरह माना गया ह । अतः

सिह लगन क जातको क लिय पीला पखराज धारण करना अतयनत शभ

फलदायक होगा । बहसपति की महादशा म इस रतन का धारण करना

विशष रप स लाभपरद होगा । यदि यह माणिकय क साथ पहना जाय तो

ओर भी उततम होगा । कनया लगन क लिय बहसपति चतरथ ओर सपतम का

, सवामी होता ह । अतः वह कनदराधिपति दोष स दषित होता हआ परबल मारकश

होता ह । तब भी यदि बहसपति का लगन दवितीय, चतरथ, पचम, सपतम,

नवम, दशम या एकादश म सथित हो तो बहसपति की महादशा म इसस सनतान सख, जञान, विदया, धन, मान, परतिषठा परापत होगी । परनत सासारिक

सख दत हए वह मारक परभाव द सकता द । तला लगन क लिय बहसपति ततीय ओर षषठ का सवामी होन क कारण अतयनत अशभ गरह माना गया ह । इसक अतिरिकत लगनश शकर वहसपति का शतर ह । अतः इस लगन क जातक को पीला पखराज कभी नही धारण करना चाहिय । वशचिक लगन क लिय बहसपति दवितीय ओर पचम तरिकोण का सवामी होन क कारण शभ गरह माना गया ह । इसक अतिरिकत लगनश मगल ओर बहसपति परसपर मितर ह । अतः वशचिक लगन क जातको को पीला पखराज अतयनत शभ फलदायक ह-विशषकर बहसपति की महादशा म । पखराज यदि मग क साथ धारण किया जाय तो ओर भी अधिक लाभदायक होगा । धन लगन

क लिय बहसपति लगन ओर चतरथ का सवामी होन क कारण अतयनत शभ

--{

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रतन : जयोतिष क आइन म 213

गरह ह । इस लगन क जातक पीला पखराज सदा रकषा कवच क समान धारण कर सकत ह । बहसपति की महादशा म इस रतन का धारण करना विशष रप स शम फलदायक होगा । पखराज यदि नवम (भागय) क सवामी सरय क रतन माणिकय क साथ धारण किया जाय तो उसक शभ फल म

वदधि होगी । मकर लगन क लिय बहसपति ततीय ओर दवादश का सवामी होन क कारण अतयनत अशम गरह ह । अतः इस लगन क जातक को पखराज कमी धारण नही करना चाहिय । कमभ लगन क लिय बहसपति दवितीय (धन भाव) ओर एकादश (लाम) भावो का सवामी होता ह । लगनश शनि बहसपति काशतरह। तब भी वहसपति की दशा म पखराज धारण करन स धन

की परापति, समदधि म वदधि, सनतान सख, विदया म उननति, नया बदधि बल परापत होता ह, परनत कयोकि बहसपति दवितीय का सवामी होन क कारण

मारकश भी ह, इसलिय मारक परमाव भी द सकता ह । मीन लगन क लिय

वहसपति लगन तथा दशम का सवामी होन स शभ गरह ह। इस लगन क

जातक पखराज धारण करक अपनी मनोकामनाय परण कर सकत ह ।

वहसपति की महादशा म इसका धारण विशष रप स हितकारी होगा । यदि

पखराज नवम क सवामी मगल क रतन मग क साथ धारण किया जाय तौ

ओर भी उततम फल परापत होगा ।

धारण विधि-- पखराज सोन की अगढी म जडवाना चाहिय ।

शरयसकर यही होगा कि यह कारय बहसपतिवार को समपनन किया जाय ।

तीन रतती स कम क पखराज स कोई लाभ नही होता । अचछा यह होगा

कि रतन सात या बारह रतती का हो । कछ कामत ह कि 6, 11 ओर 15

रतती का नही होना चाहिय । हमारी बताई हई विधि क अनसार उपासनादि

करक तथा 19000 निमनलिखित मनतर का जप करक किसी शकल पकष क

बहसपतिवार को सरयासत स एक घट परव शरदधापरवक पखराज की अगढी को

तरजनी अगली म धारण करना चाहिय ।

मतर-ॐ ब बहसपतय नमः ।

जो वयकति पखराज खरीदन म असमरथ ह व बदल म पीला मोती,

पीला जिरकान या सनला धारण कर सकत ह, परनत पील पखरज क साथ

हीरा, नीलम, गोमद ओर वदरय कभी नही धारण करना चाहिए ।

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214 रतन-परदीप

हीरा किस धारण करना चाहिय -- रीरा शकर का रतन ह । शकर

जिस कणडली म शम गरहो का सवामी हो, उसक जातक को हीरा धारण

करना शभ फलदायक हीगा ।

राशि क अनसार उपयकतता-- मष लगन क लिय शकर दवितीय ओर सपतम का सवामी होन क कारण परबल मारकश ह । इसक अतिरिकत लगनश मगल ओर शकर म परसपर मितरता नही ह । तब भी कणडली म यदि शकर सवगही हो या अपनी उचच राशि महो या शम सथितिमहो तो शकर की महादशा म हीरा धारण करन स धन परापति, दामपतय सख, विवाह सख, वाहन सख हो सकता ह । परनत साथ ही साथ मारक परभाव भी हो सकता ह । हम तो यही राय दग कि मष लगन वाल यदि हीर स दर रहतो अचछा होगा । वषभ लगन क लिय शकर लगनश ह । अतः इस लगन क जातक सवासथय लाम, आय, बदधि तथा जीवन म उननति परापति क लिए सदा हीरा धारण कर सकत ह । शकर की महादशा म यह विशष रप स शभ फलदायकः ह । मिथन लगन क लिय शकर दवादश ओर पचम का सवामी होता ह | पचम तरिकोण म उसकी मल तरिकोण राशि पडती ह । अतः इस लगन क लिय शकर शभ माना गया ह । इसक अतिरिकत शकर ओर लगनश बध म परसपर मितरता ह । इस कारण शकर की महादशा म हीरा धारण करन स सनतान सख, बदधि, बल, यश, मान तथा भागयोननति परापत होती ह । यदि हीरा पनन क साथ धारण किया जाय तो ओर शम फलदायक बन जायगा । करक लगन क लिय शकर चतरथ ओर एकादश का सवामी ह । जयोतिष क सिदधानता क अनसार शकर की महादशा म हीरा धारण किया जाय तो वह अतयनत शभ फलदायक होगा । सिह लगन क लिय शकर ततीय ओर एकादश का सवामी होन स शम गरह नही माना जाता । परनत यदि एकादश का सवामी होकर कणडली म लगन, दवितीय, चतरथ, पचम, नवम, दशम या एकादश म सथित हो तो शकर की महादशा म हीरा धारण करन स धन परापति तथा मान परतिषठा म वदधि होगी । कनया लगन क लिय शकर दवितीय ओर नवम का सवामी होन स अतयनत शभ ओर योग कारक गरह माना जाता ह । अतः हीरा धारण करन स इस लगन क जातक को हर परकार की उननति परापत होगी । शकर की महादशा म हीरा धारण करना विशष रप स शभ फलदायक होगा । हीरा यदि पनन क साथ धारण किया जाय तो ओर उततम फल परापत होगा । तला लगन क लिय शकर लगन का सवामी ह । अतः इस लगन क जातक इसको निःसकोच सदा रकषा-कवच की तरह धारण कर सकत ह । इसक धारण करन स सवासथय लाम, आय म वदधि, यश, मान, परतिषठा तथा धन

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रतन : जयोतिष क आइन म 215

की परापति होती ह। शकर की महादशा म तो हीरा अवशय धारण करना

चाहिय । वशचिक लगन क लिय वयय भाव तथा सपतम भाव (मारक सथान)

का सवामी होता ह। इसक अतिरिकत लगनश मगल ओर शकर म परसपर

मितरता नही ह । अतः इस लगन क जातक को हीरा धारण नही करना

चाहिय । धन लगन क लिय शकर षषठ ओर एकादश का सवामी होकर कणडली

म शकर दवितीय, चतरथ, पचम, नवम, एकादश या लगन म सथित हो तो शकर की

महादशा म हीरा धारण करन स अरथिक लाभ ओर भागयोननति होगी ।

मकर लगन तथा कमभ लगन क लिय करमशः पचम तथा दशम ओर

चतरथ ओर नवम का सवामी होन क कारण शकर अतयनत शभ ओर योगकारक

गरह माना गया ह । इन लगनो क जातक को हीरा धारण करन स हर

परकार स उननति परापत होगी । शकर की महादशा म तो इनको हीरा अवशय

धारण करना चाहिय । हीरा यदि नीलम क साथ धारण किया जाय तो

ओर भी उततम फलदायक द । मीन लगन क लिय शकर ततीय ओर अषटम का

सवामी होन क कारण अतयनत अशभ गरह माना गया ह । इस लगन क

जातक को हीरा कभी धारण नही करना चाहिय ।

धारण विधि-- हीरा पलटीनम या चौदी की अगढी म धारण करना

चाहिय । जहौ तक हो सक शकरवार क दिन ही यह अगठी बनवाई जाय ।

हीरा बहत महगा रतन ह । साधारण स साधारण हीरा लगभग 1200 र9

परति करट मिलता ह । इसलिय हीर का वजन निरणित करना उचित न

होगा । तब भी हम यह राय दग कि हीरा 2.5 सनट स लकर ।‡ सती का

धारण कर तो काम चल जायगा । जो अधिक वजन का धारण करना चाह

तो अचछा ही होगा । हमारी बताई विधि क अनसार हीर की अगढी की

उपासना करन क बाद ओर निमनलिखित मनतर का 100 बार जप कर क

किसी शकल पकष क शकरवार को परातःकाल शरदधा क साथ कनिषठिका अगली

म धारण कर | मतर-ॐशगकरायनमः।

जो लोग हीरा खरीदन म असमरथ ह व बदल म 3 रतती स अधिक

वजन का सफद पखराज, सफद जिरकान या सफद तरमली धारण कर

सकत ह । जो यह रतन भी खरीदन म असमरथ हो व सफद सफटिक

(बिललौर) कम स कम रतती वजन की चौदी की अगढी म धारण कर।

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216 रतन-परदीप

परनत हीर क साथ माणिकय, मोती, मगा या पीला पखराज नही धारण करना चाहिय ।

नीलम किसको धारण करना चाहिय?-- नीलम शनि का रतन ह । जिस कणडली म शनि शम भाव या भावो का सवामी होगा उसको नीलम धारण करना शम फलदायक होगा । नीलम की परव परीकषा-मानयता यह ह कि नीलम जहौ एक अतयनत शभ फलदायक रतन ह, वहो हानिपरद परमाणित हो तो जातक का एकदम सतयानाश कर दता ह। कभी-कभी एसा दखा गया ह कि किसी कणडली क लिय उपयकत होन पर भी नीलम धारण करन स हानि हई ह । यह भी मानयता ह कि नीलम अपना लाभ या हानि दो-तीन दिन मद दता ह ओर कभी-कभी कछ घटोमदही अपना शभ या अशभ फल दिखा दता ह । अततः नीलम को अगढी म जडवान स परव उसकी परीकषा कर लना अतयनत आवशयक ह । इसक लिय नीलम को किसी शनिवार को खरीदकर गगाजल या कचच दध ओर फिर पानी स धोकर, रतन की विधिपरवक उपासना कर । फिर शनि क मतर का जाप करक रतन को एक नील कपड म एस बध कि वह शरीर का सपरश न कर । यदि रतन क धारण करन स मयानक सवपन या मन म अशानति नहो या किसी परकार की दरघटना का सामना न करना पड या कोई रोग न उतपनन हौ तो यह समञच लना चाहिय कि रतन अनकल ह, परनत यह परीकषा एक सपताह तक जारी रखनी चाहिए । यदि किसी भी हानिपरद बात का अनभव हो तो तरनत रतन को उतारकर रतन विकरता को वापिस कर दना चाहिए ।

राशि क अनसार उपयकतता-- मष लगन क लिए शनि दशम ओर एकादश का सवामी ह । दोनो शभ भाव ह । तब भी एकादश भाव क सवामितव क कारण शनि को इस लगन क लिए शभ गरह नही माना ह। परनत हम परण विशवास क साथ कह सकत ह कि यदि शनि दवितीय, चतरथ, पचम, दशम, एकादश या लगन म सथित हौ तो शनि की महादशा म नीलम धारण करन स हर दशा म आशातीत लाम होगा । वषभ लगन क लिए शनि नवम ओर दशम भावो का सवामी होन क कारण अतयनत शभ ओर योगकारक गरह माना गया ह । इसको नीलम धारण करन म सदा सख, समपदा, समदधि, मान परतिषठा, राजय कपा तथा धन की परापति होगी । शनि की महादशा म यदि नीलम लगनश क रतन हीर क साथ धारण किया जाए तो ओर भी उततम फलदायक सिदध होगा । मिथन लगन क लिए शनि अषटम

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रतन : जयोतिष क आइन म 217

ओर नवम मावा का सवामी होता ह । नवम तरिकोण का सवामी होन स यह

रतन धारण किया जाए तो लाभदायक होगा । यदि नीलम को लगनश क

रतन पनन क साथ धारण किया जाए तो ओर भी उततम फलदायक होगा ।

करक लगन क लिए शनि सपतम (मारक सथान) ओर अषटम (दःसथान) भावो

का सवामी होन क कारण अशम गरह माना गया ह । शनि लगनश का मितर

भी ह। अतः इस लगन क जातक हो नीलम कमी नही धारण करना

चाहिए । सिह लगन क लिए शनि षषठ (दःसथान) ओर सपतम (मारक सथान)

भावो का सवामी होन क कारण अशम गरह माना गया ह । शनि लगनश

का शतर भी ह। अतः इस लगन क जातक को नीलम नही धारण करना

चाहिए । कनया लगन क लिए शनि पचम ओर षषठ भावो का सवामी ह।

पचम तरिकोण का सवामी होन क कारण शनि को इस लगन क लिए अशभ

गरह नही माना गया ह । अतः शनि की महादशा म इस लगन का जातक

नीलम धारण करक लाम उठा सकता ह । तला लगन क लिए शनि चतरथ

ओर पचम का सवामी होन क कारण अतयनत शभ योगकारक गरह माना

गया ह । यह लगनश शकर का अभिनन मितर भी ह । अतः इस लगन का जातक

इस रतन को धारण करक सब परकार का सख परापत कर सकता ह । शनि

की महादशा म यह विशष रप स फलदायक ह । लगनश शकर क रतन हीर

याः नवम भाव क सवामी बध क रतन पनन क साथ नीलम धारण किया

जाए तो ओर भी अधिक अचछा फल दता ह । वशचिक लगन क लिए शनि

ततीय ओर चतरथ भावो का सवामी ह । जयोतिष क सिदधानत क अनसार

शनि इस लगन क लिए शभ गरह नही माना गया ह । फिर भी यदि चतरथ

का सवामी होकर पचम, नवम, दशम ओर एकादश म हो तो शनि की

महादशा म यह रतन धारण किया जा सकता द । कयोकि शनि ओर लगनश

मगल परसपर मितर नी ह-एक अगनि ह तो दसरा बरफ, अतः हम‌ यही

राय दग कि इस. लगन क जातक नीलम स दर रह तो शरयसकर होगा ।

धन लगन क लिए शनि दवितीय (मारक सथान) ओर ततीय भावो का सवामी

होन क कारण इस लगन क लिए अशभ गरह माना गया ह । इसक अतिरिकत

शनि लगनश वहसपति का शचर ह । अतः इस लगन क जातक क लिए

नीलम धारण करना ठीक न होगा । मकर लगन क लिए शनि लगन ओर

धन भाव का सवामी द । इस लगन क जातक नीलम का सदा सख ओर

समपननता परापत करन क लिए धारण कर सकत ह । वासतव म उनको

नीलम धारण करना चादिए । इसी परकार कमभ लगन क लिए शनि दवादश

का सवामी होत हए भी लगनश ह । उसकी मल तरिकोण राशि लगन म

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218 रतन-परदीप

पडती ह । अतः मकर लगन क जातको क समान इस लगन क जातको क

लिए भी नीलम एक शम फलदायक रतन ह । मीन लगन म शनि एकादश

ओर दवादश का सवामी होन क कारण इस लगन क लिए अशभ गरह माना

गया ह । इसक अतिरिकत शनि दवितीय, चतरथ, पचम, नवम, या लगन म

सथित हो तो शनि की महादशा म नीलम धारण करन स आरथिक लाभ हो

सकता ह । परनत हमारी राय यही ह कि इस लगन क जातक यदि नीलम

न धारण कर तो अचछा ह।

धारण विधि-- नीलम को शनिवार क दिन पचधात या सटील

की अगठी म जडवाकर, विधि क अनसार उसकी उपासनादि करक सयसति

स दो घट परव मधयमा अगली म धारण करना चाहिए । रतन का वजन चार

रतती स कम न होना चाहिए । शनि क निमनलिखित मतर कौ जप सखया

23.000 ह ।

मतर -ॐ श शनशचराय नमः ।

जो वयकति नीलम खरीदन म असमरथ हो व बदल म नीला जिरकान, कटला (८^लाण७) या लाजवरत (1.9 1.५.५1) धारण कर सकत ह । नीला

तामडा (6७०१९) , नीला सपाइनल या परण रप स पारदरशक ओर नील रग |

की तरमली को बदल म धारण कर सकत ह ।

परनत सावधान ! नीलम क साथ माणिकय, मोती, पीला पखराज या मगा कभी धारण नही करना चाहिए ।

गोमद किस धारण करना चाहिय ?-- गोमद राह का रतन ह । राह एक छाया गरह ह । उसकी अपनी सवराशि कोई नही ह । हमारी राय द कि जब राह कणडली म लगन, कनदर, तरिकोण तथा ततीय षषठ ओर एकादश भावो म सथित हो तो राह की महादशा म गोमद धारण करना लामपरद होता ह। यदि राह दवितीय, सपतम, अषटम तथा दवादश भाव म

सथित हो तो गोमद धारण नही करना चाहिए ।

धारण विधि--- शनिवार क दिन अषट धात की (यह समभव न हो तो वदी की) अगढी म गोमद जडवाकर सायकाल क दो घट बाद विधि क अनसार रतन की उपासना-जपादि करक मधयमा अगली म धारण

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रतन : जयोतिष क आइन म 219

करना चाहिए । गोमद का वजन 6 रतती स कम न होना चाहिए । राह क

मतर की जप सखया 18000 ह । मतर इस परकार ह-

मतर -ॐ रा राहव नमः ।

गोमद एक अलपमोली रतन ह । अतः हमारी राय ह कि इसक

बदल म कोई दसरा रतन न धारण कर तो अचछा होगा । यदि करना दो

तो गोमद क रग का हकीक पतथर इसतमाल कर सकत ह|

परनत सावधान ¦ गोमद क साथ माणिकय, मगा ओर मोती कभी

नही धारण करना चाहिए । हो सक तो पीला पखराज भी इसक साथ

धारण न कर ।

वदरय या लहसनिया किस धारण करना चाहिए › -- वदरय कत

कारतन ह। कत भी एक छाया गरह ह ओर उसकी अपनी कोई राशि नही

ह । अतः कत जब लगन, कनदर तरिकोण या ततीय, षषठ तथा एकादश भाव

म सथित दहो तो कत की महादशा म वदरय धारण करन स लाम होता ह।

यदि कत दवितीय सपतम, अषटम ओर दवादश भाव महो तो यह रतन नही

धारण करना चाहिए ।

धारण विधि-- चोदी की अगढी म शनिवार को तयार कराकर

विधिपरवक उसकी उपासना जपादि कर ओर फिर शरदधा सहित उसको

अरधरातर क समय मधयमा या कनिषठिका अगली म धारण कर । निमनलिखित

कत क मतर की जप सखया 17000 ह । रतन का वजन तीन रतती स कम न

होना चाहिए ।

मतर -ॐ क कतव नमः ।

वदरय क बदल म सफटिक वरग का लहसनिया (€ ॐ) या

दरियाई लहसनिया (०५ ००) पहना जा सकता र । कछ विदवानो का

मत ह कि चनदरकानत (1100 5101५) वदरय क बदल म धारण किया जा सकता

ह । परनत हम इस मत स सहमत नही ह । जब चनदरकानत चनदर का रतन ह

तो उसक शतर कत का रतन वह कस बनाया जा सकता ह?

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220 रतन-परदीप

परनत सावधान ! कत क रतन क साथ माणिकय, मगा, मोती ओर

पीला पखराज धारण नही करना चाहिए ।

जनम की तारीख क अनसार रतन का चनाव

, पाशचातय दशो क समान भारत म भी अब जनम तारीख क अनसार रतन धारण करन का परचलन हो गया ह । एस रतन को वरथ सटोन कहा जाता ह । नीच सारणी म जनम की तारीख ओर उसक लिए उपयकत रतन दिय ह । इसका लाम व लोग उठा सकत ह जिनक पास उनकी जनम कणडली नही या जिनको अपनी तारीख जञात ह, परनत जनम समय नही मालम ह ।

| जनम तारीख निरयन सरय की राशि उपयकत रतन | 15 अपरल स 14 मई तक मष = मगा

15 मई स 14 जन तक वषभ हीरा 15 जन स 14 जलाई तक मिथन पनना 15 जलाई स 14 अगसत तक करक मोती 15 अगसत स 14 सितमबर तक सिह माणिकय 15 सितमबर स 14 अकतबर तक कनया पनना 15 अकतबर स 14 नवमबर तक तला हीरा 15 नवमबर स 14 दिसमबर तक वशचिक मगा

| 1 दिसमबर स 4 जनवरी तक धन पीला र 15 जनवरी स 14 फरवरी तक मकर नीलम 15 फरवरी स 14 मारच तक कमभ गोमद 15 मारच स 14 अपरल तक मीन लहसनिया | ~

(यह सारणी परसिदध विदवान ओर अकशासतरी शरी पी० एन० शरमन (ि.प. ऽताला)६।) की पसतक -6नाऽ 204 गला 0८८५1 7०५“८ा5' म दिए हए

मत क अनसार तयार की गयी ह । हमारा अपना मत यह ह कि जव सरय

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रतन : जयोतिष क आइन म 221

मीन राशि म हो तो लहसनिया नही, पीला पखराज ओर जब सरय कमभ राशिमदहो तो गोमद नही. नीलम धारण चाहिए) ।

जनमाक क अनसार भागयवरदधक (1.५0 5०१९) का चनाव

जनम की तारीख जरनमाक अक का सवामी गरह उपयकत रतन

1. 10, 19. 28 1 सा ण

2, 11, 20. 29 2 चनदरमा मोती

3. 12. 21, 30 3 बहसपति पीला

पखराज

4, 13. 22. 31 4 यरनस गोमद

5, 14. 23 5 बध पनना

6, 15. 24 6 शकर हीरा

7, 16. 25 7 नषचन लहसनिय'

8. 17. 26 8 शनि नीलम

9, 18, 27 9 मगल मगा

नवरतन अगढठी-- नवरतन कौ अगठी म नवा गरहो क रतन जड

जात ह । नवरतन की अगढी म बदल क रतनो का उपयोग नही करना

चाहिय । जब किसी कणडली म गरहो की सथिति एसी हो कि उपयकत रतन

-का निरणय करना कठिन हो तो नवरतन की अगठी धारण कौ जाती द।

यदि किसी कणडली म कई शभ गरह उचच, सवराशि या शभ भावो म सथित

हो तो नवरतन की अगढी स व ओर भी अधिक शभ फलदायक बन जात

ह । यो भी नवरतन की अगढी किसी भी लगन का जातक धारण कर सकता

ह | नवरतन की अगठी क धारण करन स सख समपदा, सौभागय, धन,

यश, मान, परतिषठा, सनतान सख, पारिवारिक सख. मानसिक सख सब

कछ भरपर मातरा म परापत होता ह । अरिषटो का नाश होता ह, रोगो स

मकति परापत होती ह ओर आय म वदधि होती ह । नवरतन की अगी क

रतनो का वजन निरणीत नही किया जा सकता द, कयोकि अतयनत छोट रतन

भी अगठी म जड जा सकत र, परनत यह आवशयक ह कि जिन रतनो का

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222 रतन-परदीप

इस अगढी क लिए चयन किया जाय व बिलकल निरदोष हो ओर परण रप

स चमकदार हो ।

धारण विधि-- कयोकि नवरतन की अगठी की बहत महिमा ह,

अतः उसक धारण करन क लिए किसी योगय पणडित स शभ महरत निकलवाना

चाहिए । फिर नवगरह की शानति क लिए विधिपरवक पजन ओर हवन करवाना

चाहिए ओर आवशयक दानादि क बाद इस अगठी को धारण करना चाहिए ।

अगढी म नवरतन ठीक जड जान चाहिए । इसम जरा-सी गलती

स नवरतन की अगठी का महतव कम हो जाता ह । नवरतन माला करपम

भी धारण किए जा सकत ह।

जडी-बटिरयो स अनिषट गरो की शानति

हमार परम सरवजञान समपनन महरषियो न गरह दोषो की शानति क

लिए जडी-बटी धारण करना भी बतलाया ह ।

यदि सरय पीडाकारक हो तो बल पतर की जड गलाबी डोर म

रविवार को धारण कर |

चनदर पीडाकारक हो तो खिरनी की जड सफद डोर म सोमवार

को धारण कर ।

मगल पीडाकारक हो तो अननत मल की जड लाल डोर म मगलवार

को धारण कर ।

बघ पीडाकारक हो तो विधारा की जड हर डोर म बधवार को

धारण कर |

गर (बरहसपति) पीडाकारक हो तो भारगी व कल की जड पील

डोर म बहसपतिवार को धारण कर ।

शकर पीडाकारक हो तो सरपोखा की जड सफद डोर म शकरवार को धारण कर ।

शनि पीडाकारक हो तो विचछ‌ की जड काल डोर म शनिवार को

धारण कर ।

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रतन : जयोतिष क आइन म 223

राह पीडाकारक हो तो सफद चनदन नील डोर म बधवार को

धारण कर ।

कत पीडाकारक हो तो असगनध की जड आसमानी डोर म गरवार

को धारण कर।

नोट-य जडी वटिरयौ अततार (हकीमो, दवा बचन वालो) क यहा

स परापत की जा सकती ।

विशष सचना

य जडी-वटिया जिस गरह क निमितत धारण करनी ह, उसी क

वार को सवय वकष स उखाड‌ लाए ओर पजन करक धारण कर तो विशष

उततम ह । लान स परव सायकाल वकष को जाकर विधिवत‌ अभिमनतरित करना

चाहिए । राह क लिए शनिवार ओर कत क लिए मगलवार उपयकत ह ।

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आयरवद क अनसार भी रतनो का ओषधीय उपयोग अतयनत महततव काह । हमार वदिक गरनथो म ओषधि क रप म रतनो क उपयोग की विधिया दी हई ह । रतनो की कवल भसम ही नही बनाई जाती, वरन‌ उनकी पिषटी (पिसा हआ पाउडर) मी ओषधि क रप म इसतमाल होती ह । इन रतन-भसमा का साधारण तथा कठिन रोगो स निवतति पान क लिए सवन किया जाता ह । हजारो वरषो स वदय मलयवान रतना को जलाकर भसम बनात आ रह ह | समी अचछ रतन इस काम म लाए जात ह । मसम म हीरा, पनना, मोती, माणिकय, मरा, पखराज, नीलम आदि ह । जटिल ओर परिशरम साधय परकरियाओ हारा भसम तयार की जाती ह । इसका मखय कारण यह ह कि रतनो म रोग दर करन की असीम शकति निहित ह । इस पसतक म, जो मखयतः विभिनन रतनो का परिचय दन क उददशय स लिखी गई ह, इस विषय पर विसतत रप स लिखन म असमरथ ह । परनत पाठको की जानकारी क लिए इस समबनध म कछ सकषिपत विवरण द रह ह ~

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रतनो का ओषधीय उपयोग 225

माणिकय-- माणिकय की पिषटी ओर मसम दोनो ओषधि क रप म

उपयोग म आती ह । माणिकय रकतवरघक, वायनाशक ओर उदर रोगो म

लाभकारी ह । माणिकय की भसम क सवन स आय म वदधि होती ह । इसम

वात, पितत, कफ को शानत करन की शकति ह ओर कषय रोग, दरद, उदरशल,

चकष रोग, कोषठबदधता आदि दर करती ह । यह भसम शरीर म उतपनन

ऊषणता ओर जलन को भी दर करती ह ।

भाव परकाश तथा रस रतन समचचय क अनसार माणिकय कषाय

ओर मधर रस परधान दरवय ह । यह शीतलतादयक ह ओर नतर जयोति को

बढान वाला ह । अगनि दीपक, वीरयवरधक, कफ, वाय तथा पितत का शमन

करता ह, नपसकता को नषट करता ह ।

मोती-- मोती ओषधि क रप म खाया जाता ह । कलशियम की

कमी क कारण उतपनन रोगो म यह बहत लाभकारी होता ह । खान की

विधि इस परकार ह-वदधिया बका (अबवीध मोती) कपडछन करक 11 दिन

तक कवड या गलाब जल म घोटना चाहिए । जब काजल क समान बारीक

हो जाय, रवा बिलकल न रह तब छाया म सखाकर काम म लना चाहिए ।

मोती की भसम ठणडी, मीठी, ओखो क लिए लाभकर, शकतिदायक

ओर आयवरदधक होती ह । मकता भसम स कषय रोग, कशता, पराना जवर,

खासी, शवास कषट, दिल घढदकना, रकतचाप, हदय रोग, जीरणता आदि म

लाम होता ह।

मगा-- मग की शाखा को कवडा या गलाब जल म धिसकर

गरभवती क पट पर लप लगान स गिरता हआ गरभ रक जाता ह ।

मग को गलाब जल म बारीक पीसकर छाया म सखाकर शहद

क साथ सवन करन स शरीर पषट हो जाता ह । पान क साथ खान स

कफ ओर खासी म लाम होता ह।

मगो की भसम कफ ओर पितत जनित रोगो को दर करती ह । कषठ,

खोसी, अगनि मानदय, जवर ओर पाड रोग की यह उतकषट ओषधि ह ।

पनना-- पनना गलाब जल अथवा कवडा जल क साथ घोटकर

उपयोग म आता ह । यह रकत वयाधि, मतर रोग तथा हदय रोग म विशष

रप स लामपरद ह ।

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226 रतन-परदीप

पनन की भसम ठडी मदवरधक द। इसस कषधा बदती ह । अमल

पितत म आराम मिलता ह ओर जलन दर होती ह । मिचली, वमन, दमा,

अजीरण, बवासीर, पाड रोग म यह लाभपरद द।

शवत पखराज-- पखराज को गलाव जल या कवड म 25 दिन

तक घोटा जाए ओर जब यह काजल की तरह पिस जाए तो इस छाया

म सखा लना चाहिए । यह पीलिया, आमवात, खौसी, शवास कषट बवासीर

आदि रोगो म लाभकारी होता ह ।

शवत पखराज की भसम विष ओर विषाकत कीटाणओ की करिया को

नषट करती "ह । इसस मिचली ओर वमन म आराम मिलता ह । वाय ओर

कफ जनित कषट दर होत द । यह अगनि मानदय. अजीरण, कषठ ओर बवासीर

म भी लाभपरद ह।

हीरा-हीर की पिषटी कभी नही खानी चाहिए -- शदध रीति स

बनाई इसकी भसम ही सवन करनी चाहिए । हीर की भसम स कषय रोग,

भरानति, जलोदर, मधमह, भगनदर, रकतालपता, सजन आदि रोग दर होत

ह । यह आय की वदधि करती ह ओर मख क सौनदरय को बदढाती दह । यदि

अकसमात‌ हीर का कण पट म जला जाए तो दघ म घत मिलाकर पिलाना

चाहिए जिसस वमन होकर कण निकल जाए अनयथा अतडियो म जखम हो

जात ह जिसस पराणानत भी हो सकता ह ।

रस रतन समचचय-- क अनसार हीर म एक विशष गण यह ह

कि रोगी यदि जीवन की अनतिम सस ल रहा हो, एसी अवसथा म हीर

की भसम या उसक अनयानय योगो की एक ही खराक दन स शीघ चतनयता

आ जाती ह ओर पराणो की रकषा हो जाती ह। हीर म वीरय बढान की

शवित द । यह तरिदोष का शमन करत हए समसत रोगो को नषट करता

ह । हीरा भसम ५ रसा स यकत हदय, योगवाही ओर सरवोतकषट रसायन द ।

राजयकषमा, परमह ओर मद रोग को नषट करती ह । पाणड, शोथ जलोदरादि

तथा नपसकता को जड स दर करती ह ।

नीलम-- कपड-छान किए हए नीलम क चर को कवडा जल,

गलाब जल अथवा वद मशक क जल म घोटना चाहिए । जब काजल क

समान घट जाय तब खान क उपयोग म लाना चाहिय । इसक अनपान

शद, मलाई, अदरक का रस, पान का रस आदि रह । यह विषम जवर,

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रतनो का ओषधीय उपयोग 227

मिरमी, मसतिषक की कमजोरी, उनमाद, हिचकी आदि रोगो म विशष लाम

करता र।

नीलम की मसम शनि क कोप स उतपनन रोगो म परयोग की जाती

ह । इसस गठिया, सधिवात, उदर शल, सनायविक दरद, भरानति, मिरगी, गलम

वाय बहोशी आदि रोग दर होत ह ।

गोमद-- गोमद गलाब जल, कवडा जल या वद मशक क जल

म घोटकर काम म लिया जाता ह । इसस वाय शल, चरम रोग, कमि रोग,

बवासीर आदि म लाम होता ह।

वदरय लहसनिया-- कवडा जल म घोटकर पिषट क रप म यह

खान क काम आता ह । इसस कफ, खासी, बवासीर आदि रोगो म लाम

होता ह।

वदरय भसम मधर रस परधान ह ओर इसम शीतवीरय गण अधिक

होता ह । दीपन कारय करत हए बदधि, आय बलवरधक द । विरचक रकत

पितत नाशक, चकष रोग हारक तथा वीरयवरधक ह । विशषतः वदरय मसम पितत

रोगो को नषट करन म परसिदध ह ।

लाजवरत या (राजावरत)-- रस रतन समचचय क अनसार इसकी

भसम 20 परकार क परमह, कषय, अरश, पाणड ओर कफ तथा वाय क विकार

को नषट करती द । यह दीपन-पाचन-वीरयवरधक होती ह ।

तरमली या दरमलीन (वकरानत) - यह हीर क समान रोगनाशक ह ।

वकरानत षडरस समनवित तरिदोष नाशक, वीरय को परगाढ करन वाला, पाणड,

उदर रोग, जवर, शवास, कास, कषय ओर परमह को नषट करता ह । समसत

महारोगो का नाश करता ह । बदधिवरधक ह ।

तामडा (गारनट)-- तामडा या पलक क गण धरम माणिकय की

तरह मान गय ह । इसकी शोधन, भसमीकरण आदि समसत परकरिया माणिकय

क समान करनी चाहिए । तामडा भसम माणिकय भसम क समान महततवपरण

ह । किसी सथान स रकतसराव होता हो तो 'तामडा भसम क सवन स रक

जाता ह । पथरी रोग म इस खास दवा माना गया ह ॥

अकीक या हकीक-- उततम जाल रहित अकीक को कवडा जल

या वद मशक जल म तब तक बजञात रह जब तक कि अकीम क

बारीक--बारीक दकड न हो जाय । एक लोह की बडी करल म रखकर

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228 रतन-परदीप

अचछी परकार स तपाकर कवड क अरक म कम स कम 15-20 बार बञचाय |

इसस दिल को ताकत मिलती ह । बहोशी दर होती ह । यकत, पलीहा,

रकतसखाव ओर पथरी जस रोग दर होत र । यह नतर रोग ओर शिर रोग

म लाभपरद ह । वीरय को परगाढ करत हए कामोततजक बनाता ह।

उपल (दगध पाषाण)-- दगध पाषाण ““रचयईषदषणो जवरापहः”

अरथात‌ दगध पाषाण सवाद को बढान वाला, कछ गरम ओर जवर को नषट

करन वाला होता द।

अमबर-- रसरतन समचचय क अनसार तरिदोषनाशक ह तथा वाय रोगो को नषट करता ह । यह रसवीरय को बढान वाला ह। एक अनय

मतानसार अमबर कट रसयकत, ऊषणवीरय, लघपाकी तथा कफ, वाय सननिपात

एव शल रोगनाशक र ।

दान फिरग (किडनी सटोन)-- इसको धारण करन स गरद क दरद म लाभ होता ह । इस धिसकर गरद पर लप करन अथवा गलाब जल म धिसकर पिलान स भी तरनत लाभ होता ह।

पितौनिया (बलड सटोन)-- दवा क रप म इसकी पिषटी काम आती

ह | यह पितत को दीक करता ह । शरीर पर पितती निकलन पर इसको रगडन स पितती शानत हो जाती ह।

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हदय रोगो म रतनो का उपयोग 229

16 || 6

हदय रोगो म रतनो का उपयोग |

मः रतन + (

हदय पर रतनो क परभाव क विषय म पथक‌ विवरण दना इस कारण उचित समजञा गया ह कि मानव क शरीर रपी जटिल मशीनरी क विविध पजो म हदय सबस अधिक महतवपरण परजा ह । किसी भी दसर परज दवारा अपना काम न करन पर भी मनषय जीवित बना रहता ह, यहो तक कि मसतिषक भी यदि सोचना-समञजना छोड द तो मनषय क शरीर की मशीनरी चलती रहती ह । ह, मनषय को होश नही रहता । परनत हदय का काम बनद होत ही शरीर, शरीर नही रहता : वह मिटटी रह जाता ह ओर जला दिया जाता ह । अथवा भमि म दबा दिया जाता ह।

इसका कारण कया ह? यह ह कि हदय शरीर क सकषमतम ततव-रकत को शरीर क परतयक अग म पहचान क लिए एक पमप का काम करता ह। हदय का यह काम कषणभर भी रक जाय तो मनषय की जीवन-लीला समापत हो जाती द । इस कारण शरीर की मशीनरी म हदय का सरवोचच महततव ह ।

निपण चिकितसक रसटथसकोप" नामक उपकरण की सहायता स रकत सचार की गति की परीकषा कर लता ह ओर जान लता ह कि रकावट न किस सीमा तक रकत सचरण की सवामाविक परगति म बाधा डाली ह

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230 रतन-परदीप

„ ओर उस बाधा क कारण रोगी का हदय किस हालत म पहच चका ह ।

^, कारडियोगराम बिजली स चलन वाला एक यनतर ह जिसक दवारा कागज पर

हदय की गति का नकशा उतारा जाता द। इन सभी विधियो का मखय

४ भ 1. & 4

द ॐ सय दशय हदय की गति की सामानय सथिति, विशष सथिति आदि का अधययन

¢ अ रर हदय की सवसथता असवसथता आदि का अनमान लगाना ह । ~~) = (र

कर ह विविध परकार क हदय रोग-- कई बार तो जनमसदही हदय सदोष

„ दोक द । अरथात‌ बालक सदोष हदय ५५०० लिय ही जनम लता ह । या

न म छत क रोगो गठिया, जवर ओर डिषथीरिया क परभाव स ५१५८ क क धकर सज जात ह । इस रोग म हदय-परदश पर मरमर धवनि सनाई दती

इ त - सचरण की सवाभाविक गति म बाधा पडकर वह वापस लौटन

सता ह । हदय की गति सामानय नही रहती : रोगी होफन लगता ह ओर

~ द पर चोट पहचती ह । हदय रोग का एक परकार वह ह जिसम रकत

दिः की दीवारो म वसामय पीला-सा पदारथ मर जाता ह । जस पानी

क) दो म वसामय पीला पदारथ, कलसियस सालटस आदि क जम जान

शर छह क बहाव की गति म बाधा पडती ह, वस ही रकतवाहिनियो म इस

हलवा सरीख पील पदारथ क भर जान स रकतवाहिनिरयो कठोर ओर सकरी

हो जाती र । य अशदधिया रकतवाहिनियो की दीवारो पर कवल जमती ही

नही, अपित इन कोमल दीवारो क भीतर धस जाती ह । यो तो यह परकरिया

सवाभाविक ह ओर एक न एक दिन सभी क शरीरो म आती ह, परनत जब

यह समय स परव ओर दरत वग स आती ह तब यह अधिक भयावह हो जाती

ह । शिराओ की कठोरता स रकत को यथा सथान पहचान क लिए हदय को

अधिक परिशरम करना पडता द ओर इसक परिणामसवरप रकतदबाव म वदधि

हो जाती द । रकत सचरण म बाधा स मसतिषक, छाती (वकष), उदर, फफड

आदि विभिनन परदश परमावित होत ह ओर उनक अनसार हदय रोग क अनक

नाम रख गय ह । यगो की शिराओ म रकत सचरण म बाधा पडन पर

टगो म सजन आ जाती ह । वकषसथल म यह बाधा पडन पर दम घटन

लगता ह ओर छाती म सखत पीडा होन लगती ह । इन समी परकार क

विकार म हदय क सवाभाविक कारय म बाधा पडती ह । इसलिए इनका एक

साञजला नाम हदय रोग ह ।

जयोतिष दवारा हदय रोग का परवाभास-- रतनो दवारा हदय रोगा क

उपचार क समबनध म कछ लिखन स परव यह बता दना उचित होगा कि

वयकति की जनम कणडली दखकर यह पता लगाया जा सकता ह कि उस

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हदय रोगो म रतनो का उपयोग 231

पर हदय रोग का आकरमण समभव ह या नही । हदय रोग होन की दशा म

परथम तो सरय का पाप परमाव स पीडित होना आवशयक द । सरय हदय का

कारक अथवा परतिनिधि ह । फिर साथ ही सरय पर राह अथवा कत का

पाप-परमाव होना भी आवशयक द । इसका कारण यह द कि राह ओर कत

ही एस गरह ह जिनम आकसमिकता (§५५५०१०७5) बहत अधिक मातरा म पाई

जाती ह ओर हदय रोगो का आघात अचानक, विना किसी चतावनी क आता

ह ।

रोग ओर रतन-- समपरण दशय जगत‌ को महरषि पतजलि न

परकाश करिया-सथितिशीलमघताया ह । यहौ परकाश का अभिपराय ह सरयकी `

सातो रशमियो स निरमित रग-- शवत रग सातविकता का, परोपकार,

आतमोतसरग आदि यजञीय भावनाओ का परतीक ह । करियशबद लाल रग का

परयायवाची र ओर सथिति का अरथ ह एकमातर आलसय की सथिति म बना

रहना अथवा यो किय कि यह शबद आलसय, अनधकार मरखता, सवारथ आदि

का दयोतक ह।

निषकरष यह ह कि समपरण दशय पदारथ का अपना-अपना रग

अपना एक विशष गण तथा परभाव रखता ह ।

रतनो क रगो का अधिक परभाव-- रतनो का परभाव अधिक इस

कारण होता ह कि उनम स निकलन वाला रग घनीभत (०१८८३९0)

अवसथा म होता ह । इसलिय रतनो अथवा मणियो का सवासथय पर गहरा

परभाव पडता ह । रग-चिकितसा का आधार भी यही सिदधानत द ।

हदय ओर रतन-- जयोतिष शासतर क अनसार सरय हदय का परतिनिधि

ह ओर वह रतनो म माणिकय का परतिनिधि ह । इसलिए किसी वयकति की

कणडली म सथित सरय को बल दन क लिए माणिकय को धारण करना

बताया ह । बस, हदय क सभी परकार क कषटो अथवा रोगो म सोन की

अगठी म “माणिकय” पहनना लाभदायक माना गया ह ।

हदय ओर मसतिषक का समबनध बहत गहरा ह । किसी आकसमिक

भय, विपतति अथवा अनाशसित अतिहरष का समाचार सनकर वयकति को

मानसिक आघात तो पहचता ही द, साथ दी हदय की धडकन भी बढ जाती

ह । भय, उदविगनता म रकतचाप की वदधि भी इसी कारण होती ह कि इस

सथिति म हदय को बहत अधिक काम करना पडता ह । एस रोग म जहा

सरपगनधा, जटामासी, तरिफला चरण आदि, वनौषधियो का सवन लाभकारी ह,

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252 रतन-परदीप

वहा शदध माणकयि तथा असली रदराकष की माला धारण करना अति उपयोगी

ह ।

बदधि विकषप ओर हदय रोग-- इसी सनदरभ म यह बात भी धयान

दन योगय ह कि चिनता, मय, उदवग, आशका, करोध गलानि, ईरषया, मद, मातसरय

आदि स विचार शकति अथवा मन क दषित हो जान पर मन म असथिरता,

चचलता उतपनन हो जाती ह; मन तो होता ही सकलप-विकलपातमक ह;

जब तक मन किसी निशचय पर नी पहचता तब तक वह मन अथवा

मननातमक बना रहता द । निरणय पर पहच जान पर बदधि हो जाता ह ।

इस परकार बदधिमान‌ वयकति ही शानत ओर धीर बनता ह । सामानयतः बदधि

विकषप स उतपनन हदय घात म हरियाली क बीच रहना हर भर बाग म

घमना, हर रग की बोतल म रखा जल पीना आदि को परयोग म लाना,

हर रग की रोशनी म सोना लाभदायक ह । एसी अवसथा म पनना धारण

करन स हदय शानत होता ह ।

हदय की इस अशानति अथवा असनतलन क विशष कारण भी होत

ह । उनका पता लगाकर विभिन कारणो का उपचार विभिनन रतनो को

दवारा समभव ह । यदि अतपत काम वासना स मन म अशानति ओर फलसवरप

हदय वयथित हआ तो हीरा धारण करना चाहिए । इस अशानति का कारण

करोध दहो तो मगा धारण करना उपयकत रहगा ।

सनायमणडल की दरबलता का हदय स सीधा समबनध ह । यदि सपि किसी वयकति की किसी नस (सनाय) पर विषला दात गडा द तो विष

सीधा रकत म मिलकर उसक हदय म पहच जाता ह ओर वहा कषण-भर म रकत परिवहन मारगो स सार शरीर म वयापत हो जाता दह । इस परकार उस वयकति की मतय ततकाल हो जाती ह । सनाय मणडल की दरबलता स उतपनन हदय रोगो म पनना धारण करना चाहिय ।

उदर रोग जनित हदय रोग-- उदर रोगो क कारण भी हदय म विकार उतपनन हो जाता ह । उदर का एक अग ह आमाशय । यहा भोजन पचता ह; पाचन करिया ठीक न होन क कारण पट म वाय बनती ह ओर वह

ऊपर उठकर हदय की मासपशियो पर दबाव डालती ह । साथ दही भोजन स उचित मातरा म रस. उतपनन न होन क कारण रकत भी परयापत मातरा म

उतपनन नी होता । रकत की कमी स सारा शरीर तो निरबल रहगा दी ; यह हदय को विशष रप स दरबल रखगा । अतडियो की कमजोरी या मनदागनि क कारण या यकत क दवारा ठीक काम न करन क कारण अथवा मिथया

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हदय रोगो म रतनौ का उपयोग 233

आहार विहार क कारण पाचन-करिया दीक नदी होती ओर रकत का निरमाण

परयापत मातरा म नही होता । कोषठबदधता स भी मलाशय कि वा अतडियो

म मल सख जाता ह ओर उसम दषित वाय (गस) उतपनन हो जाती ह ।

यह गस हदय की ओर जाती ह ओर उस पर चोट पहचाती ह ।

एसी अवसथा म परथम उदर रोग की ही समचित चिकितसा करनी

चाहिय । उदर रोग क कारण हदय म विकार आता परतीत हो तो परवाल

धारण करना चाहिय । सरय पचम म हो तो परायः उदर म विकार उतपनन

करता ह-इसक लिए माणिकय धारण करना चाहिय । यदि शनि पचम म

हो तो नीलम, राह हो तो गोमद ओर कत हो तो वदरय धारण करना

चाहिए ।

फफडो म आकसीजन की परयापत मातरा क न पहचन क कारण

भी हदय की करिया म विघन उपसथित हो जाता ह । एसी अवसथा म रकत की

शदधि भली-भाति नही होती । शासतरो म इसका उपाय पराणायाम का

निरनतर अभयास बताया ह । इसी अभयास क कारण पराचीन ऋषि-मनि सकड

वरष सवसथ रहत थ ।

वयकति साधारणतः एक मिनट म 18 बार शवास लता द ओर परतयक

शवास म लगभग 500 घन स मी० वाय भीतर लता ह । यदि लमबा पराणायाम

कर तो लगभग 1500 घन स० मी० वाय भीतर जाती ह । साधारणतः जितनी

वाय भीतर जाती ह उसम 20.96 परतिशत आकसीजन होती ह ओर इसम स

16.50 परतिशत बाहर आ जाती ह । इस परकार लगभग 4.46 परतिशत आकसीजन

रकत की शदधि म खप जाती ह । डाकटर लोग इसीलिए खली हवा म घमन

कौ सलाह दत ह कि व की वाय म आकसीजन की मातरा अधिक होती

ह तथा गनदगी अथवा कल-कारखानो वाल सथाना म वह उतनी नही होती ।

जनम कणडली म ततीय सथान फफडी का भी परतिनिधि ह । जिनकी

कणडली म ततीय सथान पीडित पाया जाय उनको आकसीजन की कमी स

हदय रोग होन की आशका रहती ह । इस सथान पर जो गरह पीडा कारक

हो उसक अनसार रतन घारण करना चाहिय ।

आयरवद क अनसार रनो का परयोग-- जसा कि हम परव लिख

चक द, आयरवद क अनसार विविध रतनो की पिषटिया ओर भसम विविध

रोगो म परयकत की जाती ह । मोती हदय को बल दता ह । मियादी बखार

म मोती काजल रोगी क हदय की शकति बनाय रखता ह । मकता पचामत,

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234 रतन-परदीप

मकतादि चरण तथा वसनत कसमाकर मोती स निरमित परसिदध आयरवदिक

ओषधिय ह । हीरक भसम का परयोग हदय रोगा म किया जाता ह । इसका

विशष योग कनदरप कोकिल ओर हीरक रसायन ह । हीर की पिषटी का

परयोग सरवथा निषिदध ह । माणिकय उरकषत नामक हदय रोग म परयकत होता

ह । मातरा + स ‡ रती तक । नीलम का परयोग मसतिषक की दरबलताजनय

हदय रोग म किया जाता ह । वदरय लहसनिया अथवा विडालाकष पितत परधान रोगो का नाशक ह । मसतिषक की दरबलताजनय हदय को शानत करता ह ।

मातरा $ स 1 रतती तक । गोमद-कफ-पितत को शमन करता ह; अगनि

दीपन म. सहायक । अतएव पाचन ओर बल कारक ह । पाचन शकति की दरबलता ओर मानसिक दरबलता स उतपनन हदय रोग म इसका परयोग किया जा सकता ह । चनदरकानत‌॥००) 50१८) एक उपरतन ह जो चनदरमा की किरणा

स जलारदर हो जाता ह । यह सनिगध, शीत, पितत शामक एव हदय ह । अतएव

हदय रोग म परयकत होता ह । मातरा + रतती स । रतती तक । परोजक-फिरोजा

अथवा (1५११५०४८) भी एक उपरतन ह । यह हदय ओर विषघन ह । उदर शल

ओर हदय रोग म परयकत होता ह । मातरा ‡ स 1 रतती तक । राजावरत या

लाजवरत (1.95 1.०2५1) भी एक उपरतन ह । यह पितत शामक, दीपक, पाचक,

हदय ओर रकत शोधक रह । इसलिए फिरग आदि रकत विकारो म इसका विशष परयोग होता ह । सगयशब, (हौलदिल ४५५९) ओर कहरवा अथवा सति जो एक अशमीभत राल ह-इनका भी हदय रोगो म परयोग

ता ह।

मोती (एवम) का परयोग तो हदय को शकति दता ह । आयरवद क अनसार यह वात, पितत ओर कफ तीनो दोषो को नषट करता ह । नाडी ससथान पर इसका विशष परमाव होता ह । रकतपरवाह ससथान क लिए रकत पितत म रकत शदधि क लिए परयकत होता ह । इसकी पिषटी या भसम की मातरा । स 3 रतती तक ह । परवाल पचामत रसामत आदि इसक विशिषट ` परयोग ह ।

मरा (परगाल) का परयोग-- आयरवद शासतर क अनसार गण म यह लघ एव रकष ह : रस की दषटि स मघर तथा कक अमल होता ह । इसका विपाक मधर तथा वीरय शीत ह । इसका परयोग वात, पितत ओर कफ तीनो क विशषकर कफ ओर वाय क विकारो म होता ह । जौ तक

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हदय रोगो म रतनो का उपयोग 235

रकत ससथान का समबनध ह इसका परयोग हदय की दरबलता, रकत-विकार

ओर रकत-पितत म किया जाता ह। मलाई क साथ खान स यह हदय की

धडकन को शानत करता द ।

वरण चिकितसा म रतन परयोग-- वरण चिकितसा की पदधति स धोय

हए आधी रतती-भर रतन को 1 डाम सरासार म सात दिन रखकर रस

निकालत ह । फिर उसम 2 नमबर की एक ओसि गोलिया डालकर तब

तक रख जाता र जब तक व गोलिरयौ सरासार को परणतया विलोपन न

कर ल । अब य रतन की गोलियो कहलाती ह । हदय रोग म रकतपरवाह की

अपरणता म एसी वनाई माणिकय की गोलियो का ओर मसतिषक जवर ओर

मानसिक दरबलता म मोती गोलियो का परयोग करना चादिए । अजीरण,

कोषठवदधता, चरम रोग तथा सनायविक अवसाद म पीली किरण लाभदायक

ह-अतएव इन कारणो स हए हदयाघात म इसकी उपयोगिता सपषट ह 1

पनन की गोलियो का परयोग हदय को सशकत बनाता द । वरण चिकितसा क

अनसार शवत पखराज की गोलियो इस परकार क हदय रोगो का शमन करती /

ह । हीर की गोलियो का परयोग सवर भग, फफड क रोग फपफस, परदाह म

किया जाता हः इसलिए इनस उतपनन हदय रोगो म हीर की गोलिया

लाभदायक ह ।

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त रतन-परदीप

अलपमोली रतनो का परभाव विचितर किनत सतय ! सवय परखिय

गारनट (०००१५) - इसको हिनदी म याकत ओर रकतमणि क नाम स जाना जाता ह। इस रतन की दढता 7 ह ओर इसका अधिपति सरय ह ।

पराचीन काल स लकर आज तक एसा माना गया ह कि जिस वयकति का जनम वशचिक, कमभ व मीन राशि क लगन म हआ हो या उसका सरय या चनदरमा इन तीना म स किसी राशिमदहो वह इस रतन को धारण कर सकता ह । जिनका जनम लगन सरय ओर चनदरमा वशचिक, कमभ ओर मीन राशियो म ही हो उनक लिए यह रतन बहत लामदायक ह ।

गारनट नाम लत ही तीन विचार पदा होत ह यह शराब क स लालरग का होता ह । इसक असली ओर नकली म भद करना कठिन द ओर यह एक ससता रतन द । गारनट अधिकतर कई रगो म मिलत ह । हालाकि गोमदक आसानी स मिल जाता ह ओर ससता भी दह, फिर भी रतनो म इसका अपना अलग महतव र ।

यह रतन कोड अकला खनिज पदारथ नही ह, परनत कई खनिज पदारथो स मिलकर बनता ह । इन खनिज पदारथो क आपसी अनपात म अनतर होन स इस रतन म रगो म विविधता आ जाती ह। इसी कारण गोमदक कई रगो म मिलता ह । इस मिन-मिनन नामो स पकारा जाता ह ओर विविध परकार क गोमदक एक ही सथान पर नही मिलत । भारत म यह रतन अधिकतर बादामी रग म पाया जाता ह । सविटजरलड की घडयो

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विचितर किनत सतय ! सवय परखिए 237 म जो रतन इसतमाल होत हः व अधिकतर गारनट ही होत ह । परनत बहमलय घडियो म माणिकय ओर नीलम परयोग म आत ह ।

गारनट का परयोग पराचीन काल स ह। उस काल क सिपाहिया का विशवास था कि गारनट क धारण करन स उनकी विजय निशचित होगी । धरमयदध म भाग लन वाल योदधा अपन शरीर की रकषा क लिए इस रतन को धारण करत थ । भारत व एशिया क सिपाहिया का यह विशवास था कि अगर गोमदक को गोली क रप म इसतमाल किया जाय तो शतर को अधिक हानि होगी । हतिहास इस बात का गवाह ह कि 1892 म जब भारत म हजा जाति क लोगो न अगरज क खिलाफ यदध किया तो उनहोन गोमदक को गोली क रप म इसतमाल किया था।

गारनट को धारण करन स सौमागय म बदढोतरी, सवासथय म आननद, मान, सममान, यातरा म सफलता मिलती ह ओर अनचित लिपत वकपति स मकति मिलती ह।

मधय यग क लोगो का विशवास था कि गारनट हर परकार क जहर . स रकषा करता हः मानसिक चिनता दर करता ह । उरावन व भयानक सवपन रोकता ह । लाल रग का गारनट बखार म बहत ही लामदायक ह ओर पील रग का गारनट पीलिया जस रोगो स रकषा क लिए बहत ही उचित रतन ह ।

वरतमान यग म मानयता ह कि गारनट को धारण करन स मान

हानि नही होतीः वयापार म लाम तथा मानसिक चिनता स मकति मिलती

ह । भारत ओर परशिया म गोमदक को जहर ओर पलग स रकषा करन

वाला रतन माना गया ह।

परनत पराचीन काल स लकर आज तक गारनट को दढता का

दयोतक माना गया ह ओर एक बात परण रप स निशचित ह कि इसक धारण

करन वालो को तफान या बिजली क गिरन स जीवन म हानि नही पहच

सकती ओर यातरा म किसी परकार की हानि या कषट नही आ सकता ।

माणिकय की तरह यह रतन भी खतरा आन स पहल अपना रग बदल दता

ह । इस परकार अपन धारण करन वाल को पहल स ही आन वाल भय स

सावधान कर दता ह।

पितौनिया (१।००५ 5'०१०)-- हर रग का सरयकानत मणि जिसम

लाल रग की छोटी चिततिया होती ह । यह एक अपारदरशक अलपमोली रतन

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238 रतन-परदीप

ह । य लाल चिततिरयौ आइरन आककसाङड (10१ ०५५९) सिकत करन क कारण

बन जाती ह । यह रतन परयापत मातरा म करीब-करीब परतयक दश म पाया

जाता ह, इसलिए यह एक बहत ससता रतन ह । सबस अचछा व सनदर

ओर बड-स-बड वजन क यह रतन भारत मही पाया जाता ह। भारत

म यह रतन 2 किलोगराम वजन तक का पाया जाता ह ।

परानी मानयता क अनसार य लाल घनब महातमा ईसा क खन

की बद हर रग क उस सरयकानत मणि पर गिरन स बन गय थ जिस पर

रास (पराचीन रोम म पराणदड दन की सली) खडा किया गया था ओर

जब एक रोमन सिपाही न अपनी तलवार स उनक शरीर पर आकरमण किया

था । उस समय स इस रतन को दविक ओर विलकषण शकति स विभषित

किया गया दह।

अगर इस रतन को पानी म डालकर धप म रख दिया जाए तो

खन जस लाल रग का नजर आयगा । पानी क बाहर भी इस रतन म सरय

का परतिबिमब नजर आयगा । इस रतन पर सरय गरहण का परतिबिमब साफ

तौर पर दखा जा सकता ह ।

पराचीन काल म रोमनो व यनानियो का एसा विशवास था कि इस

रतन को धारण करन स मान, सममान, मरयादा ओर दढता परापत होती ह ।

विचछ‌ ओर दसर जहरील जानवरो क काट क विष स रकषा करता ह।

उस समय क खिलाडी अपनी सफलता क लिए खल क भदान म इस रतन

का परयोग करत थ । मधय यग म खती-बाडी व पश पालन वालो क लिए

यह रतन शम माना जाता था । आजकल इस रतन क बार म यह विशवास

ह कि यह धारण करन वालो को हिममत व बदधि परदान करता द । शतरओ

क षडयनतरो स रकषा करता द । ।

विशषताण--

(1) इस रतन का पाउडर शहद ओर अड की सफदी म मिलाकर

सवन करन स गिलटी, अरबद ओर रकत-सखाव (लद बहना) जस रोगो की

चिकितसा करता ह । इसको ओषधि क रप म परयोग करन स साप क काट विष स रकषा होती ह।

(2) ठड पानी म भिगोकर चोट या जखम पर रखन स यह खन बनद करता ह ओर जखम. को शीघर भरता ह । आज क वजञानिको न यदह

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विचितर किनत सतय ! सवय परखिए 239

सिदध कर दिया ह कि इस रतन की यह विशषता आयरन आकसाइड (षण

0५०८) होन क कारण ह ओर चिकितसा म लामदायक ह ।

3) जिस समय सरय वशचिक राशि का हो उस समय इन रतनो

पर विचछ‌ की तसवीर नककाशी कर क चादी की अगढी म दाय हाथ क

अगढ म धारण करन स मतराशय की पथरी ठीक हो जाती ह।

4) अगर किसी को नकसीर (नाक स खन बहना) की बीमारी

हो ओर चिकितसा करान पर भी ठीक नही हई हो तो अणड क आकार क

इस रतन को चादी की जजीर दवारा धारण करन स जीवन भर नकसीर `

रोग नही हो सकता ।

सचना-- इस रतन को कवल चोदी म दही धारण किया जा सकता

ह, अनय किसी धात म नही । यह रतन परषो क लिए ही उपयकत ह ओर

सतरियो को एकवामरीन (५१००१००९) धारण करना चाहिए ।

फीरोजा या हरिताशम (1५११५०५९) ईस अलपमोली अपारदरशक

रतन को विशव-मर का रतन माना गया ह । हालाकि कभी-कभी गलती स

इसको शनि का रतन भी कहा गया ह, इस रतन क अधिपति गर ओर बघ

ह । यह शकर की दोनो राशि वष व वला को परमावित करता ह । परनत

विशष रप स इसको वष राशि का रतन कना ही उपयकत होगा ।

यह एक मलायम चिदरपरण रतन ह ओर ईरान दश का राषटरीय रतन

ह । ससार म शायद पहली वार फीरोजा दही रतन क रप म परयोग म आया

था । रस म अधिकतर यह रतन विवाह की अगही क रप म भट म दिया

जाता ह।

मौसम क अनसार इस रतन का रग बदलता रहता ह । अगर सबह

इसका रग नीला होगा तो उस दिन का मौसम साफ रहगा । खरीदत समय

डस रतन को किसी अचछ जोहरी स लना चाहिए कयोकि इस रतन का

उपयोग ओर इसकी लौकपरियता क कारण इसम अधिकतर नकली रतन

आन लग ह।

यह रतन अधिकतर यनतर, ताबीज या कवच (रकषा यनतर) क रप म

परयोग म आता द, कयोकि इस रतन की कई अदमत विशषता ह । भारत

म भी अधिकतर ताबीज आदि इसक दी बनत ह । योदधा ओर शिकारी

सफलता क लिए इस रतन को अपन घनष म परयोग करत ह ।

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240 रतन-परदीप

पराचीन काल म अधिकतर मसलिम जाति क लोग इस रतन को

करान शरीफ की आयत नककाशी करक धारण करत थ । पराचीन काल म तरक जाति का यह दद विशवास था कि यह घडसवार का रतन ह । इस रतन को सवय धारण करन स ओर घोड क गल म बघन स कमी किसी परकार की दरघटना या हानि घोड या सवय को नही हो सकती । यह रतन धारक की हर परकार स रकषा करगा ।

मधय यग स लकर आज तक यह धारणा चली आई ह कि फीरोजा नफरत को शानत करता ह । यह सिरदरद जस रोग स रकषा करता द। कोई भी कषट या रोग आन स पहल यह रतन अपना रग बदल दता ह ओर पीलपन पर आ जाता ह । इस रतन का रग बदलना सथायी नही ह | जस ही कषट या रोग दर हो यह रतन फिर अपन असली रगमआ जायगा ।

विशषताए--

(1) यह रतन मनषय क सवासथय का दयोतक ह । रोग होन पर पीला पड जाएगा ओर मतय होन पर इसका रग समापत हो जायगा, परनत जस ही दसरा सवसथ मनषय इस रतन को धारण करगा इस रतन का अपना असली रग वापस लौट आयगा । इस रतन की सबस बडी विशषता यह ह कि शरीर म गय विष या जहरील पदारथ को नषट करक उसस शरीर की रकषा करता ह । एसा भय होत ही यह रतन अपना रग बदल दगा ओर इसस पानी जाना आरमभ हो जायगा । इस रतन क धारण करन स विष का कोई असर नही होता ।

(2) यह रतन सचची मितरता का दयोतक ह | यह रतन आन वाल कषट को अपन ऊपर ल लता ह ओर घारण करन वाला बच जाता ह. परनत इस रतन का यह गण तमी होगा जव इस कोई भट क रप म परदान करगा, (4 मलय स खरीदकर धारण नही किया जायगा । इतिहास इसका परमाण र।

„ © इस रतन को ओख पर रखन स व धीर-धीर मलन स अख की सजन दर हो जाती ह । पानी बहना बनद हो जाता द । पराय ओख की रोशनी वापस लौट आती ह । ।

4 अगर इस रतन क धारक क खिलाफ कोई षडयनतर हो तो 1 वा

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विचितर किनत सतय ! सवय परखिए 241

ओर सफलता का परतीक द ओर इसको धारण करन स किसी की नजर

नी लग सकती ।

हकीक [५६०५८] एक परकार का चमकीला रतन ह ओर कई परकार

क रगो म मिलता ह । परनत अधिकतर सफद ओर लाल रग की पटिटयो

काही परापत होता ह । कयोकि इस रतन का सफद भाग रगा जा सकता

ह, इसलिय यह रतन नील, हर बादामी ओर कई परकार क विभिनन रग म

भी मिलता ह । इस रतन म कई बार सवामाविक रप स वकष, बादल, घास,

पौध आदि क चिनह पाए जात ह । रोमन काल म इस रतन की अधिक

मानयता थी ओर रतन म भिनन-भिनन परकार क सवामाविक रप क चिनह का

होना इस बात का परमाण माना जाताथा कि ईशवर न इस रतन को दविक

शकति परदान की ह । पराचीन काल म एसा विशवास था कि यह रतन दवदत

लोक की आख ह ओर इस रतन को धारण करन स रात को नीद न आन

का रोग नही होता । भयानक सवपन नही अति । रोमन इस रतन को

अधिकतर तावीज, कवच तथा ओषधि क रप म परयोग करत थ । रोमनो का

विशवास था कि अगर इस रतन को दाय बाज‌ म बोधा जाय तो ईशवर की

अति कपा रहगी ओर इस रतन को खती बोत समय बल क गल म लटकान

पर पदावार अधिक होगी ओर खतो को किसी परकार की हानि नही होगी ।

ङस रतन म लोहा (पण) ओर मगनीशियम (वानञणण) अधिकता

म पाय जात ह । इसी कारण इस रतन को इसक रग ओर रप क अनसार

-भिनन-भिनन नामो स पकारा जाता ह । इस रतन को आखो की बीमारी म

भी लाभदायक माना गया ह । इस कारण पराचीन काल क ॐोकटिर, वदय व

हकीम ओख की दवाई इस पतथर पर ही बनात थ । इस रतन क अधिपति

बध ओर शकर ह ।

विशषताए--

(1) इस रतन को पीसकर पाउडर क रप म शराव क साथ सवन

करन स किसी भी परकार क जहरील सोप क काट का विष नही चढता ।

(2) इस पीसकर पाउडर क रप म सब क साथ सवन करन स

पागलपन जसी दषट बीमारी दर हो जाती ह।

(3) हकीक को यदि बिचछ क काट पर कसकर बाध दिया जाय

तो विष नही फलता ओर दरद दर हो जाता ह।

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242 रतन-परदीप `

4) गरमी क मौसम म इस रतन को मह म रखन स ल‌ नही

लगती । परतयक विवाहित सतरी को जिसका सरय, चनदरमा या जनम लगन मिथन

राशि का हो, जीवन म सभी परकार की सख व शानति क लिए इस रतन

को धारण करना चाहिय ।

(5) अगर इस रतन को सिहनी क बाल म बोधकर गल म धारण

किया जाय तो राज दरबार म सममान मिलता ह ओर मान मरयादा बढती

ह, विशषतः परमी ओर परमिका का सहयोग मिलता ह ओर कोई मितर धोखा नी दता । ।

पलिनी (71४) का एसा विशवास था कि इन रतनो को जलान स तफान नही आत । इस धारण करन स हिममत, ताकत ओर सफलता मिलती ह । आज क ससार म इसका रतन क रप म कोई महततव कम नही हआ ह । गडा हआ या खोया हआ धन पान म यह रतन विशष रप स महततवपरण ओर लाभदायक ह । मरा अपना अनभव ह कि मनोविजञान क लिए इसस बढकर दसरा कोई रतन नही ह, हालाकि यह बहत ही ससता रतन ह ।

ऋराइसोपरज (८५० १४८) यह सलमानी रतन परिवार का अलपमोली, पारदरशक रतन ह ओर इसक अधिपति बध ओर शकर ह । रतन पील हर रग स लकर मल सफद हर रग म पाया जाता ह । इस रतन को जयादा समय तक धप म रखन स इसका रग खराब हो जाता ह । परनत नमक क तजाब ओर गिलट क रासायनिक घोल म डबान स इस रतन का असली रप फिर वापस आ जाता ह । पराचीन हतिहास क अनसार इस रतन को महान‌ सिकनदर न कवच क रप म धारण किया था ।

इस रतन की विशषता यह ह कि इसको धारण करन स बर ओर भयानक सवपन नही आत । भत-परत जसी आतमाय कषट नही दती । मनषय को मान-मरयादा तो परापत होती ही ह, परनत वह सनतोषी हो जाता ह ओर लोभी व लालची नही रहता । एसा मरा भी अपना वयकतिगत अनभव ह । यह रतन वाकपटता भी परदान करता ह ।

सनधिवात, गरथिवात ओर गणया जसी बीमारी क लिए यह रतन विशष रप स फलदायक ह ओर जाद‌ का काम करता ह । इस रतन की विशषता यह ह कि अगर अपराधी इस रतन को मख म रख ल तो उस मतय -दणड नही होता, परनत यह अतिशयोकति भी हो सकती ह ।

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विचितर किनत सतय ! सवय परखिषए , 243

यह रतन किसी भी हाथम या गल म धारण किया जा सकता

ह । परनत जिनकी सरय, कनया या मीन राशि हो, उनको यह रतन (५६२८ ०7 05071०5८) धारण नही करना चाहिए ।

चनदरकानतमणि (4००) 50<)-- जसा कि इसक नाम स सपषट द कि इस अलपमोली रतन का समबनध चनदरमा स द । इस रतन का अपना कोई रग नी ह । यह पारदरशक ह । इस रतन की चमक ओर रोशनी चनदरमा की रोशनी स मिलती ह । इसलिए इस रतन का नाम भारत म चनदरकानत मणि ह। इस रतन म एक किनार स दसर किनार तक एक चमकदार लाइन होती ह जो रतन को हिलान-डलान पर आग-पीठ चलती ह । उस समय एसा लगता ह कि मानो चनदरमा की किरण जल पर खल रही हो । यह रतन सोना, चौदी, पलटीनम किसी भी धात म धारण किया जा सकता ह । इसका अधिपति चनदरमा ह ।

चनदरकानत मणि एक मलायम शरणी का रतन ह । इसलिए इस रतन को अगठी म नी पहनना चाहिए । इस रतन को चनदरमा की पतरी भी कहा

गया ह ओर भारत म पराचीन काल स एक पवितर रतन माना जाता ह। यह रतन अधिकतर महिलाओ क लिए दही उपयकत ह । कई बार यह रतन पील रग म भी मिलता ह ओर इसका विडालाकष (6५५७ 1#८) स धोखा हो

जाता ह । इस रतन म चार लाइन वाला सितारा भी मिलता ह, परनत एसा

रतन धारण करन की दषटि स अशभ माना गया ह ।

भारतीयो का एसा विशवास ह कि परतयक 2 वरष क बाद सरय

चनदरमा म सडौल समबनध होता द तव जवार-भाट म यह रतन बहकर आत

ह । यह रतन अपन धारण करन वालो को सौमागय परदान करता ह । पलिनी

का कहना ह कि यह रतन चनदरमा का परतिरप ह ओर चनदरमा क अनसार

घटता-बदढता द ।

विशषताए--

(1) यातरा म-- समदर स हो या पथवी पर-वाय स नही, अपन

धारण करन वाल को कषट ओर दरघटना स बचाता ह ।

2) जलोदर रोग या दसर पानी क रोग म, जिनका समबनध करक

राशि स हो, रकषा व उसकी चिकितसा करता ह ।

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244 रतन-परदीप

(3) मानसिक पररणा दता ह ओर परम म सफलता परदान करता

ह ।

(4) अगर जनम कषण पकष का हो तो इसको धारण करन वाला

भविषय को दख सकता ह ओर अगर जनम शकल पकष का हो तो विवाहित

जीवन म किसी भी परकार क मनमटाव को दर करता ह।

७) इस रतन को मख म रखन स यह मालम हो जाता ह कि

उस मनषय को कौन-सा कारय करना चाहिय ओर कौन-सा नही । जिस

कारय कौ करना ठीक होगा, वह दिमाग पर बना रहगा ओर जो कारय ठीक

नही ह उसको भल जायगा । इस परकार इस रतन को दविक शकति का

रतन कहना उपयकत ही र ।

वदरय या लहसनिया (८०५५ ®,)-- यह अलपमोली, अरदधपारदरशक

रतन ऋाइसोबरील (८५०४५) या अगट (५४०५९) परिवार का रतन ह । यह

रतन अलपमोली होकर भी आज बहमलय रतन की कीमत क बराबर ह ओर

आसानी स नही मिलता । इस रतन म एक विशष परकार की रोशनी (लाइन

क रप म) एक किनार स दसर किनार तक पाई जाती ह । यह रतन सफद,

पील, लाल ओर बादामी रगो म मिलता ह । इस रतन क अधिपति शकर व

बध दह।

परवी दशो म एसा विशवास था कि यह अकला रतन ही इस ससार

क सब कषटो स रकषा करता ह । मोशनस का कहना ह कि यह रतन ज खलन वालो क लिए अधिक सौभागयशाली ह, चाह वह जआ जीवन का हो या धन का । इस रतन की भारत म बहत ही मानयता ह। यह रतन अपन धारण करन वालो को धनधानय स लाम ही नी दता, वरन‌ उनको नीच गिरन स बचाता ह । यह एक दविक रतन ह ओर ताबीज या कवच

क रप म धारण किया जाता ह।

विशषताए--

(1) अगर इस रतन को गल म लाकोट क रप म धारण किया जाय तो दम जस भयानक रोग दर हो जात ह। बचचो की शवास नली की सजन जसी बीमारी स आरोगय बनाता ह । मानसिक व आखो की बीमारी म बहत ही लाभपरद सिदध हआ ह ।

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विचितर किनत सतय ! सवय परखिए 245

ष 2) सटटा, जआ, लोटरी, घडदौड आदि म सफलता क लिए ससार म इसस बदकर कोई रतन नही ह । इस रतन को धारण करन क बाद रात को भयानक सवपन नही आ सकत ।

विशष-- यह रतन सिरफ चदी म ही धारण किया जा सकता ह, अनय किसी धात म नही । सोन म यह अशम होगा ।

सफटिक ((५४।०।)-- यह एक अपारदरशक अलपमोली रतन र जो जम बरफ की तरह साफ ओर सफद होता ह । पराचीन काल स यह विशवास चला आ रहाह कि इस रतन की गोल गद म मनषय अपना भविषय दख सकता ह । इस रतन की विशषता यह ह कि सरय क सामन रखन पर इस रतन म स निकली किरणो को शरीर पर डालन स ओख समबनधी हर रोग म लाभ होता ह।

जिनका सरय मष व तला राशि का हो उनको चनदरकानत मणि (4०01 5101९}, मोती (एतवा), लहसनिया (15 [ॐ#८), पनना (हालत) व सफटिक

(८५७०) रतन धारण नही करन चाहिए ।

सारडानिकस (58५०४) एक गहर लाल-बादामी रग का अलपमोली

रतन ह । इस रतन का ऊपरी भाग कलसडोनी (©।५।०५५०४) या साड स ठका होता ह जिसक बीच म नीच का भाग मद पील रग का नजर आता

ह । अगर यह रतन कलसडोनी (००५५०) या साड स ठका न हो तो

कारनीलियन (3719) क नाम स पहचाना जाता ह । सबस सनदर किसम

का यह रतन भारत म पाया जाता ह । यह रतन विशष रप स नककाशी क

काम लाया जाता ह, कयोकि यह कठोर शरणी का रतन ह ओर इस पर

सनदर पालिश हो सकती ह । इस रतन क अधिपति शनि ओर मगल ह ।

पराचीन काल म इस रतन क लोकपरिय होन का कारण यह था

कि दसर बहमलय ओर अलपमोली रतन कम मातरा म मिलत थ ओर सिरफ

राजवश ओर समानत वरग क लोगो को दी मिल सकत थ । यह रतन काफी

मातरा म मिलता था ओर इसको साधारण वयकति खरीद सकता था । रोमन

काल म वीर योदधा ओर नता इस रतन को अपनी तलवार पर धारण करत

थ |

आज स करीब 4000 वरष परव मिख दश म य रतन पवितर गबरला

व भारी मगरा की शकल क काटकर गल म ताबीज क रप म धारण किय

जात थ । रोमनो का एसा विशवास था कि अगर इस रतन पर मगल गरह

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246 रतन-परदीप

की नककाशी करक धारण किया जाय तो मनषय को निडर व बहादर बनाता

ह।

ङस रतन को आख की पलक पर धीर-धीर मलन स ओख का

रोग व सजन समापत हौ जाती ह । अगट (^४०।९) रतन की तरह यह रतन

भी धारण करन वालो को जहरील सप व जनत क काट क विष स रकषा

करता ह, विशष रप स विचछ क काट क विष स । सकरामकरोगसभी

बचाता ह । अगर इस रतन को गल म धारण किया जाय तो सब परकार

क दरद व पीडा स मकति मिलती ह । आतमविशवास बढाता ह । मितरो स

लाभ व विवाह समबनधी परसननता को निशचित करता ह । काननी विषयो म

सफलता परदान करता ह ओर अनतिक जीवन स रोकता ह ।

ऋराइसोलाइट ((१>४०।५०)- पील हर रग का पारदरशक अलपमोली

रतन ह । यह रतन भिनन-भिनन रगो म मिलता ह । जस-जस इसक रग

बदलत र उसी तरह इस रतन क नाम भी बदल जात ह । जब यह रतन

गहर हर रग का होता र तो इसको परीडाट (7५491) क नाम स पकारा

जाता ह । जब यह जतनी हर रग का होता ह तो ओलिवाइन (0८) क नाम स जाना जाता ह । यह कठोर रतनो म सबस अधिक मलायम शरणी का रतन ह । एक समय था जब परीडाट (7५५०) रतन हीर (५0१५) स भी अधिक मलय का था।

पराचीन काल म यह रतन भत-परत स रकषा, मानसिक रोगो की चिकितसा आदि क लिए धारण किया जाता था । मारबोडस (१०००५५७) का कहना ह कि इस रतन को हमशा सोन (७०५) म ही परयोग करना चाहिए ।

मधयकाल स लकर आज तक य रतन दर दषटि ओर दिवय दषटि क लिए धारण किय जात ह । इस रतन की धारण करन स दविक शकति

परापत होती ह । इसको मानसिक (7७!) रतन कहा जाता ह ।

परीडाट (५०५ पराचीन काल म यह रतन बहत लोकपरिय था, परनत अब यह रतन कठिनता स मिलता ह । अलपमोली रतनो म सनदर रतन ह । अलपमोली रतनो म एस बहत कम रतन ह जो एक ही सवाभाविक रग म पाय जात होः एस रतनौ म यह एक रतन ह । परीडाट आज क मिस दश का राषटरीय रतन ह । इस रतन का अकसर दसर हर रगो स धोखा हो जाता ह । यह एक पारदरशक ओर साफ रतन ह । यह इतना मलयवान रतन.

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विचितर किनत सतय ! सवय परखिए 247

नही द जितना इस रतन को दखकर भरम हो सकता ह । इस रतन की भी वही विशषतारण ह जो एलगजणडाइट (^।५५०7५)८) रतन की ह |

पराचीन काल स रोम क लोग इस रतन को भत-परत, जाद‌-टोन आदि स बचाव क लिए धारण करत थ । वरतमान काल म यह विशवास ह कि इस रतन म सराख करक किसी पश क बाल म पिरोकर धारण करन स भत-परत जसी आतमा कषट नही द सकती । इगलणड क समराट‌ सपतम एडवरड न इस रतन को ताबीज क रप म धारण किया था ।

एलगजणडाइट (^1५\270111८) इस पारदरशक अलपमोली रतन की मखय

विशषता यह ह कि इसम दो रग होत ह । सब रतनो म सिरफ यदी एसा

रतन ह जिसम यह विशषता पाई जाती ह । अगर इस रतन को सरय की

रोशनी म दखा जाए तो यह रतन पनन क हर रग की तरह हरा नजर

आयगा, लकिन रात को बिजली की रोशनी म वगनी या गहर नील रग

का नजर आयगा । जौहरियो का कहना ह कि यह रतन दिन म `पननीः

ओर रात म `माणिकय' होता ह । यह गिरगिट की तरह.रग बदलन वाला

रतन दो तरह स मगध करन वाला रतन ह । कयोकि हरा ओर लाल रस दश

क राषटरीय रग ह, इसलिए इस रतन की रस म बहत मानयता ह | 1839 म

जब रस का यवराज 21 वरष का हआ तब यह रतन रस म परकट हआ था

-ओर इस रतन को यवराज क नाम स सशोभित किया गयाथा । इसलिए

अगरजी म इस रतन का नाम आज भी बड ^ स लिखा जाता ह ।

इस रतन की विशषता मखय रप स वरणित नही की जा सकती,

परनत रसियो का विशवास ह कि इस रतन को धारण करन स मान सममान

ओर सफलता परापत होती ह ।

दरमलीन (01७५०१९) पराचीन ओर मधयकाल क लोग इस रतन

को नही जानत थ । यह आधनिक काल का रतन ह । यह विलकषण परकति

का रतन ह । इस रतन म विदयत क गण द । जब इस रतन को एक किनार

स गरम करोग या किसी रशमी या ऊनी कपड पर रगडोग तो धन विदयत‌

परकट जो जायगी ओर यह छोट-छोट तिनको व कागज क टकडो आदि

को अपनी ओर आकरषित करन लगगा, जब कि दसर किनार पर ऋण विदयत

होगी ओर वह इनको आकरषित नही करगी । इस रतन को एक ओर स

दखन पर पारदरशक दिखाई पडगा ओर दसरी ओर स दखन पर अपारदरशक ।

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6 रतन-परदीप

यह रतन भारत ओर दसर दशो म बहतायत म पाया जाता ह\ तरमली लका की भाषा का शबद ह जिसका अरथ ह रगीन पतथर । यह रतन नीला, लाल, बादामी, गलाबी, पील, हर काल व सफद रग म मिलता ह | कई बार एक रतन म दो रग भी होत ह । एक तरफ स दखन पर हरा ओर दसरी ओर स दखन पर गलाबी-लाल । लाल रग का रतन माणिकय

की तरह का होता ह ओर इसको रबलाइट (1९०८९) क नाम स पकारत ह । हरा रग पनन की तरह का होता ह । इसको बराजील पनना (णया ?7०1।0) कहत ह । यह बराजील दश का राषटरीय रतन ह । इसक दोष रहित

.रतन परयापत मलयवान होत ह ।

इस रतन पर सरय की रोशनी का बहत अधिक परभाव पडता ह

ओर विदयत पदा हो जाती ह । यह रतन चिनता व विवाद स रकषा करता ह । मन अपन अनमव स इस रतन को विशष उतकषट पाया ह । अपन मितर को अधिकतर इस रतन का परयोग करन को कहा ह ओर कमी भी असनतोष नही पाया ह । परतयक मनषय ससार की परतयक समसया क समाधान क लिए इस रतन को धारण कर सकता ह । यह रतन कमी भी अशभ नही होता ओर निशचित रप स लामपरद ही सिदध होता ह ।

विशषताए-

(1) अगर इस रतन को रशम की थली म डालकर रोगी क गाल पर धीर-धीर मला जाय तो उसका कषट दर हो जाएगा । रोगी धीर-धीर सवसथ होगा ओर उस बदिया नीद आयगी ।

2) इस रतन को शानति रतन कहना उचित होगा । इसको धारण करन स मनषय भयभीत नदी होता ओर शानत रहता ह । इस रतन की दसरी विशषता यह ह कि कोई भी दरघटना आन स पहल सवपन म चतावनी द दताह। वयापार म लाम क लिए हर रग का दरमलीन बहत ही शम ह ओर सफलता निशचित ह ।

(3) आपतति क समय वयकति को गलाबी रग का रतन धारण करना ८५ । जिनका सरय तला राशि का हो उनक लिए यह रतन बहत ही शम

|

८) अभिनता, लखक तथा कलाकारो क लिए यह रतन विशष रप स सौभागयवरदधक सिदध हआ ह । हर रग क टरमलीन की सबस बडी विशषता

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विचितर किनत सतय ! सवय परखिए 249

उन बचचो क लिए ह जो पढाई म कमजोर ह या जिन को मानसिक कषट

रहता ह ।

विशष-इस रतन को चादी मही धारण करना चाहिए ।

अमबर (^४०)-- समी रतनो म शायद यह सबस पराचीन रतन

ह ओर पराचीन काल म बहमलय रतन था । इस रतन को तणमणि क नाम स जाना गया ह । यह अलपमोली अरदधपारदरशक रतन खनिज पदारथ नही ह । परनत फिर भी इसकी रतनो म गिनती ह । इस रतन क बार म करई

गाथा परचलित ह, जिन सबका यौ वरणन करना समभव नदी ह । यह रतन

एक वकष की लाख स बनता द । रतनो म यह सबस हलका ओर मलायम

रतन ह । इस रतन का अधिपति सरय ह ।

इस रतन की विशषता यह ह कि इसको बचच क गल म धारण

करान स जाद‌-टोन व भत-परत का असर नही होता । विषली हई ओषधि

व पदारथ स यह रकषा करता द । ओषधि क रप म इस रतन क परयोग

, अनगिनत ह । इस रतन को पाउडर बनाकर परयोग करन स या गल म

घारण करन स पागलपन जसा रोग नही होता । एसा कयो होता ह? यहा

` यह बताना तो कठिन द, परनत शायद यह रतन शरीर स सपरश करत ही

गरम हो जाता ह ओर गल को ठड लगन स बचाता ह । इतना ही नही,

डस रतन स पदा हई विदयत‌ धारा अपना बहाव निशचित रप स कम करती

रहती र ।

पलिनी (४) का विचार ह कि पराचीन समय म महिलाय इस रतन

को गल म जवाहरात क रप म परयोग करती शी जिसका सबस बडा कारण

यह था कि इसक परयोग स घघा (५०) जसा रोग नही हो पाता था जी

आमतौर पर उस समय का पानी पीन स हो जाया करता था।

ङस रतन को बहरपन, पट की तकलीफ, सरदी, नजला, पीलिया,

दात गिरना आदि स बचाव क लिए परयोग किया जाता था । दात निकलत

समय तकलीफ स बचान क लिए इस रतन को बचच क गल म ताबीज

क रप म परयोग किया जाता था।

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250 रतन- परदीप

जिनका सरय वष व वशचिक राशि का हो उनको साडोनिकस

(ऽवा०ा४म). ऋराइसोलाइट (5०0111८), टरमलीन (वणणण०।१८) अमबर जस रतन

धारण नी करन चादि ।

कारनलियन (@317८।3१)--- यह कलसडोनी ((॥०।९८५०४) रतन- समह

का एक रतन ह जो लाल, पील ओर सफद रग म पाया जाता ह। कई

बारदोयादो स जयादा रग भी एक रतन म मिलत ह । अगर इस रतन,

को धप म रखा जाए तो इसका रग गहरा ओर चमकदार हौ जाता ह जबकि तज रोशनी म रखन स एसी कोई परतिकरिया नही होती । कठोरता

क कारण इस रतन पर बहत बदिया पालिश की जा सकती ह। इस

विशषता का यह रतन भारत म ही पाया जाता ह । इस रतन क अधिपति गर, मगल ओर सरय ह । मसलिम धरम क पगमबर महममद साहब इस रतन का परयोग करत थ ओर उनका आदश था कि इस रतन को धारण करन

वाला जीवन-भर सफल रहगा ।

अरब दशो म यह रतन, खासतौर स जनतर या ताबीज क रपम

अधिक परचलित ह । एक आशचरयजनक बात यह ह कि मसलिम लोग इस रतन पर करान शरीफ की आयत नककासी कराक ईसाई पादरियो को भट

क रप म दत थ जिनका आशीरवाद उनक भविषय क जीवन म सफलता का दयोतक था ।

पराचीन काल म यह मानयता थी कि इस रतन को धारण करन वाल पर कोड जाद‌-टोना नही कर सकता । कोई बरी दषटि स नही दख सकता जिसको आज क समय म नजर लग जाना कहत ह । इस रतन को धारण करन वाला हर परकार क रोग स बचा रहता ह । पलग की बीमारी म तो इस रतन का ओर भी अधिक महतव ह ।

= `मारबोडस (५०००५००) क अनसार इस रतन को गल या अगली म धारण करन स करोघ नी आता, घणातमक भावना दर भागती ह जब कि ` कमिलस' (७५०) का कहना ह कि यह रतन बिजली ओर तफान स रकषा करता ह । बरी आदतो ओर जाद‌-टोन स बचाता ह । बखार ओर खन को विषाकत होन स बचाता ह । हर परकार की खन की वीमारी, जस नकसीर व बवासीर स बचाता ह। मारसलस एमपीयरिकस 0

५५९५०) न पलयरीसी (५७) स बचन क लिए इसको रप म धारण करन क लिए कहा ह । इसको कवच क स

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विचितर किनत सतय ! सवय परखिए 251

सपन म इस रतन का परयोग हिममत बढान, भाषण म सहयोग दन

ओर आवाज बलनद करन क लिए किया जाता था । चीनी लोगो का एसा

विशवास ह कि इस रतन को धारण करन स कभी पट ऊरी बीमारी नही हो

सकती ।

पराचीन समय म मीक दश की महिलाय सफद रग क इस रतन

को जवर क रप म धारण करती थी । उनका विशवास था कि इस रतन को

धारण करन स गठिया, सनधिवात, नाडी दरद जस रोग नदी होत ।

इसक धारण करन स मोटर गाडी स दरघटना नही हो सकती

ओर शायद आज क ससार म यही इस रतन की बहत बडी विशषता ह।

यह पारिवारिक जीवन म सख ओर सफलता क लिए विशष रतन ह।

इस रतन को चादी या पलटीनम म ही धारण करना चाहिए ।

जिनका सरय कनया राशि का हो, उनह कमी पील रग क रतन नही धारण

करन चाहिरप ।

जड (1०0०)-- यह अलपमोली रतन एक बहत ही कठोर शरणी का

रतन ह जो सफद रग स लकर गहर हर रग म मिलता ह । यह रतन

अपारदरशक ओर अरदधपारदरशक होता ह । इस रतत को चीन म अधिक

मानयता परापत द; व इसको चमगादड, सारस, नाशपाती आदि की शकल

म बनाकर विशष रप स दीरघाय क लिए कवच या ताबीज क रप म धारण

करत ह । सातवी शताबदी म हए वानचग (१५०१०५१६) का विचार था कि

जड रतन मनषय को नौ परकार क गण दता द । सनतान इस रतन को अपन

माता-पिता को जनम दिवस क उपहार क रप म भट करत थ जो दीरघाय

का दयोतक ह।

सबस सनदर जड चीन म ही पाया जाता ह । चीनवासियो का

कहना र कि जड पयास बञञाता ह, वाक‌-पदता बदाता ह, परनत एस रतन

पर किसी परकार की नवरकाशी नदी होनी चाहिए । पराचीन जयोतिष क

अनसार यह रतन परम का दयोतक ह।

एशिया क निवासियो का एसा विशवास ह कि इस रतन क धारण

करन स जीवन म कोई दरघटना नही हो सकती ओर धारक को जाद‌-टोन

स कोड हानि नही पचाई जा सकती ।

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252 रतन-परदीप

यनानियो व रोमन का एसा विशवास था कि इसक धारण करन

स मिरगी व नतर शोध जस रोग नही हो सकत । यह तो समसत ससार

का विशवास ह कि इस रतन को धारण करन स पट ओर गरद (कलः) का रोग नही हो सकता । गालन (७०1८) का कहना ह कि जब उसन जड

रतन की बनी हई माला पहनी तो उसक पट की तकलीफ दर हो गई |

पिजजासो (१,०७०) न जब भकसिको को जीता तो उसन दखा कि व क

निवासी गदो क रोग स बचन क लिए जड रतन धारण करत ह । सर वालटर रल (अ ४५३४८ २३।ल ह) ओर हमबोलद (ण०न५ा) का कहना ह

कि मधयकालीन अमरीका इस रतन को पट व गरदो क रोग, मतराशय की पथरी आदि क रोगो स मकति पान स लिए धारण करत थ । मिसरदशम मी इस रतन का तावबीज व जनतर क रप म परचलन था।

वरतमान समय म यह रतन खल क मदान म सफलता का दयोतक

ह । परनत विशष रप म घडदौड की सफलता म जड का बहत महतव ह ।

जिनका सरय धन या मिथन राशि क! हो उनको जड (1५५५) या कारनलियन (०५०) रतन धारण नही करन चाहिए । य रतन सिरफ चोदी मही गल या अगठी म धारण किय जा सकत ह ।

ओपल (0?)-- ससकत म इस उपल कहत ह । यह मलयवान पतथर द । रतनो म सबस अधिक सनदर ओर रहसयपरण रतन ह । इस म इनदरधनष क सभी रग पाय जात ह जो रोशनी पडन पर चमक उठत ह । इस रतन क लिए यह कहना उपयकत ही होगा कि इस रतन म सब रतनो कौ सनदरता विराजमान ह । इस रतन की सनदरता का कारण इसकी दरारो महवा का रह जाना ह । इस रतन की विशषता इसक रगो पर द ओर एस रतन सबस अधिक मलयवान व महतवपरण मान जात ह ।

व पराचीन काल म इस रतन को कई बार अशम माना गया द। बीसवी शताबदी क आरमभ म भी इस रतन को अशभ माना गया था । इसी व बहत सनदर होत हए भी आज इस रतन का इतना सममान नही

|

मर अपन निजी अनमव क अनसार इस रतन को अशभ ` मानन की धारणा गलत ह । यह रतन दसर रतनो की अपकषा अशम नही ह । परनत जिनक जनम काल म शकर अशभ या ऋर हो उनको यह रतन धारण नही

करना चाहिय ।

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विचितर किनत सतय ! सवय परखिए 253

यह रतन सब रतनो स कोमल ह । शरीर की गरमी स यह रतन चमकता ह । परनत जयादा गरमी स टट जाता ह ओर मनद पड जाता ह। जरा सी लापरवाही स इस रतन पर निशान पड जात ह, कयोकि इसकी

कठोरता सिरफ नन शरणी की ह । इस रतन की सवस बडी विशषता यह र

कि यह रतन अपन धारण करन वाल की चिततवतति क अनसार अपन रग को बदलता रहगा । अगर मनषय परसननचित होगा तो यह रतन लान क रग का हो जायगा ओर अगर वह चितत स करोधी होगा तो यह रतन हर रग का हो जायगा इतयादि ।

इस रतन पर वायमणडल क परिवरतन का बहत परमाव पडता ह । इसकी चमक तापमान क अनसार कम जयादा होती रहती ह । पराचीन काल

म यह विशवास था कि इस रतन की चमक एक दविक शकति क कारण

ह | जब यह रतन चमकदार होगा उस समय परतयक कारय म सफलता

मिलगी ओर जिस समय यह रतन मद होगा वह अवसथा असफलता की

दयोतक ह ।

चौदहवी शताबदी म इस रतन को ओख का रतन का जाता था,

कयोकि इस रतन को धारण करन स ओख की रोशनी बढती ह । एसी उस

समय की मानयता थी । भारत म आज भी यह विशवास ह कि इस रतन

को ओख की भोहो पर मलन स याददाशत बढती ह ओर दिमाग की परशानी

दर होती ह।

परवी दशो म इस रतन को एक पवितर रतन माना गया ह जिस

पर सतय की आतमा का आधिपतय ह । पराचीन काल म यनानी इस रतन

की दिवय दषटि ओर भविषय बनान की शकति म विशवास करत थ-इस शरत

पर कि परोपकार क लिए हो ओर अपन लिए न हौ । इस रतन का गलत

परयोग अशभ माना गया द, विशषकर परम भावना क लिए । इसी कारण

किसी यग म भी इस रतन को विवाह कौ अगढ क रपम भट नही किया

गया द । इस रतन क गलत परयोग स हर कारय म बाधा ओर आपततियो

आरयगी । ।

इस रतन को आशावादी रतन कहना उपयकत होगा । इस धारण

करन क बाद मनषय को आशा वधी रहती ह । जिस समय यह रतन लालिमा

पर हो उस समय कोई भी कारय करन स आशा परण होती ह ।

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254 रतन-परदीप

यह रतन धारण करन वालो को बतला दता ह कि यहशमदहया

अशम । अगर धारण करत समय ईस रतन की चमक बनी रहगी तो यह

रतन उसक लिए शम ह ओर अगर धारण करत समय मनद पड जायगा

तो अशम ।

लाजवरत (1.25 1.32५1)-- यह गहर रग का एक अपारदरशक

अलपमोली रतन ह । पराचीन काल म करीब-करीब परतयक दश म इस रतन

को मानयता परापत थी | कभी-कभी इस रतन पर‌ सनहर निशान पाय जात

ह । य निशान इस रतन की रचना क समय सोना-मकखी क पतथर मिल

जान स आ जात ह । ।

इस रतन का सनदर नीला रग होन स इसको शकर-गरह का रतन

माना गया ह । इस रतन को विशष रप स मिरगी रोग, मरछा, पलीहा, चरमरोग

ओर खन की बीमारी दर करन क लिए धारण किया जाता ह । इस माला

म धारण करन स हिममत बढती ह । विषाद रोग दर भागता ह ओर हर

परकार का मान, सममान व सफलता परापत होती ह ।

जिनका सरय करक व मकर राशि का हो उनको उपल (0२०), मगा

(८०), व लाजवरत (1५95 1५५५1) रतन धारण करन चारण ।

{ मोरगनाइट (4011९) बरील (<) तथा एकवामरीन

(^\व४७१ 917८) इन तीनो रतनो क अधिपति शकर ओर मगल ह ओर इनको

चनदरमा का रतन माना गया ह । य तीनो रतन अलपमोली, पारदरशक तथा एक

ही परिवार क ह । सिरफ अनतर यह ह कि एकवामरीन (^\१५५०१९) सागर. क पानी की तरह हलक हर रग का होता ह । अगर इस रतन को समदर क

पानी म लटका दिया जाय तो नजर नही आयगा । मोरगनाइट (141४९1९)

पारदरशक गहर गलाबी रग का रतन ह ओर इसका मलय इतना अधिक ह

कि इसकी गिनती बहमलय रतनो म होन लमी र । बरील (1८) नील रग स लकर सफद रग तक का होता ह । आज क समय म जौहरी इन रतना

म कोई अनतर नही समडत ओर कई लोग इस रतन को दसर नाम स पकारत ह । बनावट म इन रतनो म बहमलय रतन पनना, माणिकय, नीलम,

हीरा आदि स कम अनतर ह, परायः जौहरी इन रतनो को बहमलय कहकर बच दत ह । कठोरता म इन रतनो का सथान हीरा, नीलम, माणिकय, एलकजणडाट (^\1८\4101116) ओर पखराज क बाद आता टा ह । सिरफ इसी बात स इनकी पहचान हो सकती ह । र

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विचितर किनत सतय ! सवय परखिए 255

रोमन काल म एसा विशवास था कि इस रतन म चिकितसा समबनधी ओर आरोगय करन वाली विशषता ह । यह पट, जिगर जबडा व मख क रोगो को दर करता ह । जरमनी म पहली बार बरील (९०२) ओर एकवामरीन (^व८बााक7९८) रतन स दही चशम क तल (1.56) बन थ।

मधयकाल म इस रतन को विषातक ओषधि क रप म दिया जाता था । इसम दविक, रहसयमयी व आतमा समबनधी शकतिया होन की मानयता थी |

आज क ससार म इस रतन को तीवर बदधि, मान, सफलता, आदि विशषताए परदान की गई ह । विवाहित सतरी परष क लिए यह रतन शम ह ओर इआढी निनदा या बदनामी स बचाता ह । इस रतन को धारण करन स आलसय दर होता ह । विशष रप स यह रतन नाविक ओर साहसिक लोगो क लिए लामदायक ह, कयोकि यह दरघटना स बचाता ह ओर किसी भी परकार क रोग स रकषा करता ह।

कारबकल (५१८९) -- यह गारनट रतन का दसरा नाम ह । दोनो रतनो म सिरफ अनतर यह ह कि गारनट (७००८) को पहलदार बनाया

जाता ह ओर कारबकल (८५१५१८९) गोल होता ह । पराचीन काल म अनधर

म रोशनी करन क लिए इस रतन को परयोग म लात थ । जिन मनषय को दविक शकति की परापति ह व इस रतन क चारो ओर एक अजीब परकार

का परकाश दख सकत ह । कमिलस लियोनाडस (०१५५ 1.०१४०५5) का कहना था कि यह रतन विष ओर सकरामक रोग स रकषा करता ह, अपवयव

स बचाता ह ओर धारण करन वालो का मान-सममान बढाता ह।

मधयकालीन लोगो को एसा विशवास था कि यह रतन पलग जस

रोग स रकषा करता ह । चिनता दर रखता ह । बरी भावनाओ स बचाता ह,

इनदरियासकति को दबाता ह, मितरो म दवष पदा नही होन दता ओर परतयक

कारय म सफलता दिलाता ह । अगर इस रतन को गल म धारण करिया जाए

तो पट ओर गल की बीमारियो स रकषा करता ह ।

पलिनी (11१४) का विचार ह कि इस रतन म सतरी व परष जाति

क रतन होत र । गहर लाल रग क रतन को परष ओर हलक रग क रतन

को सतरी रतन कहा जाता ह। एसा विचार दसर रतनो म भी कहा जा

सकता ह।

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256 रतन-परदीप

लोडसटोन (1.०2 ७७१९)--- यह रतन पटा ओकसाङड (५०० ००९)

ओर परो ओकसाडड («० ०५५८ षणा) सर मिलकर बना ह ओर डस रतन

म चमबकीय विशषता र । मसलिम जाति म इस रतन की बहत मानयता ह

ओर उनका विचार ह कि इस रतन को ताबीज क रपम धारण करन स

मत-परत का असर नी होता । पराचीन काल म नाविक का विशवास था

कि इस रतन को धारण करन स उनक जहाज क साथ कोई दरघटना नही

हो सकती ओर गठिया जसी बीमारी नही हो सकती ।

भारतीयो का विशवास ह कि. अगर पति-पतनी इस रतन को धारण

कर तो उनक विवाहित जीवन म कभी कोई कलश नी होगा 1

जिनका सरय कमम या सिह राशि का हो उनह मोरगनाइट (40/०९)

बरील (8०) एकवामरीन (^व४दपराया7९) कारबकल (८७१४५१५९) ओर लोड सटोन

(1.9५ 5७१८) धारण नी करन चारि ।

टोपाज (10")-- यह रतन पखराज परिवार का एक पारदरशक

अलपमोली रतन द । इस रतन को हिनदी म पखराज ही कहत ह । पखराज

दो परकार का होता द-बहमलय ओर अलपमोली । इस अधयाय म हम

अलपमोली रतन क बार म ही लिखग ।

वद क अनसार टोपाज सौभागय दन वाला रतन ह । जिनका सरय

धन राशि काहो व यदि इस रतन पर बाज पकषी की नककाशी करक धारण

करग तो उनह राज दरवार म सथान अवशय मिलगा । यह चनाव म विजय

परदान कराता ह, परनत सरय धन राशि का री होना चाहिए ।

मिसर ओर रोमन क लोगो का कहना ह कि ओख की रोशनी करम

होन पर या किसी परकार क ओख क रोग को दर करन क लिए विशष

रप स इस रतन को धारण करना चाहिए । पलिनी (1) क अनसार पलग

जस रोग क लिए यह एक विशष रतन ह ।

व डस रतन को शकति का रतन कहा गया ह ओर इसक धारण करन

वालो को शकति (शारीरिक ओर आरथिक) परापत होती ह। टोपाज गरम

पानी म डालन स पानी ठणडा हो जाता ह जबकि माणिकय को दणड पानी

म डालन स वह पानी गरम हो जायगा । इस रतन क बहत गण ह । यह

अपन धारण करन वालो को दीघय. मान, सममान, मितरता. सफलता,

सनदरता ओर बदधिमतता परदान करता ह । यह रतन भितरता का दयोतक ह ।

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विचितर किनत सतय ! सवय परखिए 257

इस रतन को पाउडर बनाकर शराब म मिलाकर तीन दिन ओर

तीन रात छोड दो । उसक बाद इस ओषधि को सोन स पहल ओख की

पलक पर मलन स ओखो क हर रोग को दर करता ह ।

बचचा पदा होन क समय इस रतन को सतरी क हाथ मरबोधदो।

उस सतरी को बचचा होन म कषट नही होगा । इस रतन को गल या बाय

हाथ क बाज म धारण करन स भत-परत स रकषा होती द ।

जिनका सरय मीन व कनया राशि काहो उनको यह रतन धारण

नी करना चाहिय ।

मलाकाइट (1५212९111<}-- हर रग का एक अपारदरशक अलपमोली

रतन ह । इस रतन म तबा विशष रप स अधिक होता द । इस कारण इस

रतन म हज, गठिया व उदरशल जस रोग स रकषा करन की शकति ह ।

मधयकालीन लोग इस रतन पर सरय की नककाशी करक धारण

करत थ, कयोकि उनका विशवास था कि यह रतन धारण करन स सवासथय

ठीक रहता ह ओर भत-परत जसी आतमा कषट नी द सकती ।

इस रतन की मखय विशषताए- बिजली क भय स बचाता ह,

सरामक रोग स रकषा करता ह ओर परतयक कारय म मान, सममान व सफलता

परापत होती ह । इस रतन को धारण करन स बचचा सोत हए डरता नही ।

काला गोमदक (99५ 0/9 इस रतन का वरणन पहल

साडोनिकस (७५१५०४१) क नाम स कर चक ह, परनत इस रतन क कालया

गहर बादामी रग की अपनी विशषता द । इस रतन पर सफद रग की

जाती ह । य लाइन कभी सीधी एक किनार स दसर किनार लाइन पाई जा

|

तक ओर कमी गोल चककर क रप म पाई जाती ह । यह रतन सबस अचछी

किसम का भारत मही पाया जाता ह ।

सनयासियो का रतन कहा जाता ह । इस रतन को

धारण करन स विषय भोग की इचछा नदी रहती ओर यह आतमिक शकति

परदान करता द । विशष रप स यह हर परकार क दौर (1७) पडन क रोग

स रकषा करता ह। जयोतिष शासतर का एसा विशवास ह कि जनमकाल म

{जनका शनि अशभ ह उनको यह रतन धारण करन पर भत-परत का परहार

इस रतन को

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र रतन-परदीप

होगा, रात को सवपन म डर लगगा, लडाई-अगड, मकददमबाजी आदि

होग ओर सारा दिन परशानी ओर चिनताओ स भरपर रहगा । जिस काम

म हाथ डारलग नकसान होगा, धन हानि होगी । एस मनषय को काल गोमद

(019५ 07) की जगह. साडोनिकस (59५०४) रतन धारण करना चाहिय ।

जिनक जनमकाल म शनि अशम हो ओर जिनका सरय तला या

मष राशि का हो उनको मानिक मालाकाइट (५०।०५१'८) तथा काला गोमद

(।०९ 0४९) रतन धारण नही करन चाहिय ।

जिरकान (21८01), जीनिथ (1011110). हीसिनथ (1 एलताा))) ओर जारगनस

(0475) य सब रतन एक ही परकार क ह । सफद जिरकान (,।९०१) को जारगनस क नाम स जाना जाता ह ओर परायः हीर स धोखा हो जाता ह। भोरत म कभी-कभी जौहरी भी हीर क सथान म जारगनस द दत ह | गहर सतरी रग क जिरकान को जीनिथ कहत ह ओर इसका असली पखराज स धोखा हो जाता ह। उजजवल लाल रग क जिरकान को हीसिनथ क

नाम स जाना जाता ह ओर इसका माणिकय स धोखा हो जाता ह। इन रगो क अतिरिकत बाकी रगो क, उदाहरण क रप म पील, बादामी, हर ओर भर रग क रतन को जिरकान कहा जाता ह । अगर इस रतन को सोन की अगठी म दाय हाथ की सरय अगली म धारण किया जाय तो मन कौ शानति मिलती ह । दिल क रोग क लिए जीनिथ रतन विशष रप स उपयोगी ह ।

मधयकालीन यग म एसा विशवास था कि इस रतन को धारण करन क बाद मनषय को परतयक कारय म सफलता मिलगी । पाचन शकति ठीक रहगी । बखार, पीलिया, जलोदर रोग हानिकारक कलपना आदि स छटकारा मिलगा ।

मारत म इस रतन का महतव पराचीन काल स आज तक बराबर बना हआ ह । भारतीयो का विशवास ह कि यह रतन विष स रकषा करता ह, धनधानय स सख दता ह, मान-सममान बढाता ह, बदधि बढाता ह ओर भत-परत, बिजली व तफान स रकषा करता ह । ।

इस रतन को सोन म ही धारण करना चाहिय । एमीथिसट (^<) इस रतन को हिनदी म कटला कहत ह

ओर सिरफ यही पारदरशक अलपमोली रतन ह जो एक ही रग म मिलता र। यह रवजनी रग का रतन जितन अधिक गहर रग का होगा उतना ही लाभपरद होगा । सब रतनो म यही एक एसा रतन ह जो कमी अशम नही होता ।

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विचितर किनत सतय ! सवय परखिए 259

पहल इस रतन की गिनती बहमलय रतनो म होती थी : परनत बाद म यह

बराजील म बहतायत म पाया गया ओर अब यह अलपमोली रतन म गिना

जाता ह इस रतन क अधिपति गर ओर मगल ह ।

पलिनी (४) का कहना ह कि अगर इस रतन पर सरय व चनदरमा

की नककाशी करक धारण किया जाय तो जाद‌-टोन का असर नही होता ।

राज-दरबार म सममान मिलता ह ओर मकददम म सफलता मिलती ह ।

यह रतन बरी भावनाओ का दमन करता ह । काम-वासना को कम करता

ह ओर अधिक शराब पीन की आदत स ठटकारा दिलाता द । सवामाविक

ह कि जब मनषय म कोई बरी आदत नही रहगी, तो सममान मिलगा ओर

वयवसाय म परण लाम होगा ।

पराचीन समय क हिबर लोगो का कहना ह कि इस रतन को धारण

करन स दिवय दषटि मिलती ह जिसस वह भविषय को दख सकता ह ।

मिख निवासी इस रतन को कवच या ताबीज क रप म धारण करत थ ।

उनका विशवास था कि इस रतन को पान की शकल का बनाकर धारता

करन क बाद उनह कोई धोखा नही द सकता । इसस दीरघाय होती द ।

जरमनी दश क विचार स जो मनषय मीन राशि म पदा हआ हो

वह इस रतन को अगढी म धारण कर तो उसको कलीन ओर सचरितर

पतनी मिलमी ओर अगर सतरी इस रतन को धारण कर तो उसका विवाहित

जीवन बहत सखद रहगा ।

मधयकाल क लोगो का एसा विशवास था कि यह रतन विष,

वयकतिगत भय ओर बीमारी स रकषा करता ह । एसा कोई कषट आन स

पहल इस रतन का रग फीका पड जाता हि । इस रतन को दिल की शकल

का बनाकर भट क रपमदन स परमी ओर परमिका दोनो को ससार क

सखो की परापति होगी ।

पराचीन काल स आज तक इस रतन की एक विशष मानयता ह

ओर उस दषटिकोण स यह रतन सब रतनो स महान ह । वह विशषता

ह-मनषय को लिपतता स बचाना । मरा अपना ॐ वरष का अनमव ह कि

जब कभी रमन किसी को इस रतन को धारण करन को कहा, उसन शराब

पीना छोड दिया ओर दसरी बरी. आदतो स नफरत करन लगा । यह रतन.

धारक को करोध, नफरत आदि बर कामा स रोकता ह । जिसस मानसिक

शानति ओर सनतोष मिलता ह ।

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रतन-परदीप 260 दीप

डस रतन को गल म धारण करन स मरछा रोग समबनधी या नीद

न आन क रोग दर हो जात ह । सब परकार की समसयाओ का हल सनदर

तरीक स निकलता ह । किसी परकार की चोरी नदी होती ओर निषकपट

मनषयो स मितरता होती ह ।

जनमकाल म अगर मीन राशि किसी कारण अशभ हो गईदहो तो

उसम यह रतन अति उततम ह । पराचीन काल म रोम क निवासी शराब पीन

क लिए इस रतन क बन पयाल ही इसतमाल करत थ ताकि व अधिक

शराब पीकर बहोश न हो जाय ।

ङस रतन को पाउडर क रप म शहद क साथ खान स मानसिक

शकति बढती ह, बदधि तीवर होती ह ओर जाद‌ टोन का परभाव नही होता ।

कालसीडोनी (009५ 7०9) यह अलपमोली अपारदरशक रतन शकर,

गर, बध ओर शनि क आधिपतय म ह । अगर सरय मकर राशिकादहोतो इस रतन को धारण करन स ओख का रोग नही होता, रात को भयानक सवपन नही आत । यह रतन आज स करीब 6000 वरष पराना ह ओर उस समय क लोग इस रतन क दषट ओर बराई स बचन क लिए धारण करत थ ।

मधयकालीन लोग इस रतन पर मनषय की तसवीर नककाशी करक, जिसम मनषय अपना दायो हाथ ऊपर उठाय हए ह, कवच क रप म धारण करत थ । उनका एसा विशवास था कि एसा करन स मकददम म सफलता मिलगी, सवासथय ठीक रहगा, यातरा म कोई दरघटना नही होगी । जिनका सरय, चनदरमा या जनमलगन मकर राशि का ह ओर उनक पास माणिकय खरीदन की सामरथय नही ह उनह जीवन म हर परकार क कषट स मकत रहन क लिए इस रतन को धारण करना चाहिए |

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महामनय (साधना एव पिदध। डो. रदरदव तरिपादी

भला मतय असमय म आ जाए, एसा कौन चाहगा? लकिन आन वाली | अकाल मतय, रोग व घोर कषटो का निवारण कौन कर सकता ह?

भगवान भत भावन सदर रप म ससार का सहार करत ह तो शकर रप स | मनषयो को कषटो का छटकारा दिलात ह । अकाल मतय की तो कया मजाल

साकषात‌ मतय भी जिनक सामन थररती ह, व ह अमत रप भगवान महामतयजय | अरथात‌ मतय को जीतन वालो म सरवशरषठ । इनही भगवान‌ महामतयजय की साधना व सिदधि का यह परिपरण किनत सरल परयास निशचय ही आपको परण शानति

| दगा । महामतयजय का अमत सकत, कवच व सहसरनाम सतोतर इस गरनथ की विशिषट उपलवधिरयो ह ।

एक अकषर वाल महामतयजय मनतर स लकर एक हजार अकषर वाल अमोघ | मतय विदारक मनतरौ का समपरण सवरप व उनकी साधना का परकार आपको अनय कही एक सथान पर दखन को भी नही मिलगा । सब कठ इतनी सरल शली म कि आप सवय आसानी स कर सकग तथा परामाणिकता एसी कि मानो किसी विदवान‌ पणडित स टी कराया गया हो।

मानसिक शानति, अकाल मतय स वचाव, अचानक होन वाल कषटो स

छटकारा, रोग-शोक का समल नाश, निरवधि जीवन एव इचछा सिदधि क लिए

अवशय पद ओर परयोग म ल ।

नवीन सशोधित ससकरण मलय 50 रपए

आपकी राजि भविषय की ाकी

(समपरण जीवन का राशिफल)

इस अनपम पसतक म कवल नाम क परथम अकषर अनसार अपनी

नाम राशि स किसी भी वयकति का सवभाव, शरीर, आकति, शिकषा, परम,

विवाह, सनतान, धन, वयवसाय, आय आदि का सरलता स अनमान लगाया

जा सकता ह।

अपन विषय पर सरवपरथम, परामाणिक रचना जिसकी सहायता स

भविषय का मारग तय करन म सफलता मिल सकमी।

मलय 50 रपय

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विशव-विखयात पामिसट

अमरिकन विदवान बनहम (छषरपत ) दारा लिखित

हसत रखाओ का गहन अधययन हिनदी भाषा म सरवपरथम परकाशित

@ ससार म भत, भविषय, वरतमान जानन की जितनी भी विधा ह इनम सबस परामाणिक एव सरल विधा ह- हसत रखाओ का अधययन।

, © रखाए सवक हाथ म विदयमान ह, आवशयकता ठ मातर. इनक अधययन की एव

परिपकव मसतिषक की । @ आप हसत विदया क कषतर म नय जिजञास हो अथवा गहरा अधययन किए हो, दोनो

ही दशाओ म नयी एव गोपनीय जानकारी मिलगी ओर वह भी एसी, जिस

जानकर आप चकित हो उदग।

सतत सतक ससार की सरवशवषठ एव बनोड पसतक म च एक

समञचान की दषटि स चितर की सघया 450

दो भाग म मलय 100 रपय सजिलद ससकरण 125 रपय

लाल किताब मल सिदधानत ओर टोटक

अनिषट-निवारण क उपायो ओर टोटको की परसिदध पसतक लाल किताब क लिए ओपचारिक परिचय की आवशयकता नी ह। जो इस जानत ह उनका इसक परति अटट विशवास ह। सकट क समय इसक आलोचक भी टोटको का परयोग करक लाभ परापत । ह ओर चमतकार दखत ह; किनत लाल किताब क उपायो ओर यटको की सटीकता तथा परभाव भमता का रसय बहत कम लोग जानत ह । परसतत रचना म विदान‌ लखक न लाल किताव की मनोवजञानिक तथा दारशनिक पषठभमि पर परकाश डालत हए इसक उपायो ओर टोटको की उपयोगिता सिदध की ह। इसक अधययन दारा टोटको क परयोग का समयक‌ जञान परापत करक पाठक अवशय ही लाभानवित हग।

मलय : 80 रपय

इसको पढकर आप आशचरय चकित हो उठग।

Page 267: 0.69 @7€868 अध्वन । लण्

आवय तरिवणी ८ करो.)

कीरो की गणना इस शताबदी क महानतम सिदधा म की जाती ह।

कीरो दारा लिखित भागय तरिवणी नामक पसतक की सहायता स आप अपन

हाथ क आकार तथा उसम रखाओ की भाव सथिति दखकर अपन भागय

को जान सकत ह । इस पसतक की इति जयोतिष क मातर सामदरिक शासतर

नामक अग की जानकारी दकर ही नही हो जाती, साथ म यह पसतक अक

योतिष व जयोतिष सहित जातक को सौर मासो क अनसार 12 भागो म

विभकत कर उनक सवभाव, परकति आदि को भी समयक रपण रपायित

करती ह। सामदिकशासतर, अक विदया, जयोतिषशासतर का न कवल परारमभिक

वरन‌ अचछा जञान परपत हो सकगा ओर उनक लिए जयोतिष की यह शरषठ

पसतक सिदध होगी । मलय 50 रपए

अको प छिपा भविषय (कीरो ) (वि (0.0 लष)

आपक समपरण जीवन का नकशा

कवल जनमतारीख स भविषय जानन की

अदभत पसतक इस पकर आप जान सकग कि आपको मल परकति तथा सवभाव कया

ह ? कोन स वरष आपक जीवन म महतवपरण रहग, कौन वयकति आपका

सबस उपयकत जीवन साथी हो सकता ह, किन वयवितियो क साथ मतरी तथा

साजञदारी आपक लिए लाभदायक रहगौ ? कोन स दिन आपक लिए

भागयशाली सिदध होग ? आपक सवासथय कौ कया दशा रहगी ओर आपक

लिए भविषय कया-कया सभावना लकर उपसथित हो सकता ह, आदि

विचितर जानकारी पाकर परसनन हो जारएग। मलय 50 रपए

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जयोतिष विदया पर महतवपरण गरथ

जयोतिष सरवसव लखक- डो. सरशचद मिशर जयोतिषाचारय, एम. ए पौ-एच. डी.

जयोतिष एक समपरण शासर ह । शासतर का करमिक व परामाणिक जञान तथा

वयावहारिक समनवय य दो ततव मिलकर एक निपण जयोतिषी का निरमाण

करत ह । जयोतिष की आधनिक जानकारियो स यकत ओर शासतर क परायः

सभी विभागो का उपयोगी जञान दन वाल इस गरथ म जातक, परशन, महरत,

ताजिक (वष) एव सिदधानत क सभी आवशयक व लोकोपयोगी पकषो का विशष

सावधानी स विवचन करिया गया ह ।

सरल हिनदी भाषा म

इस अनमोल मनथ म आप पारग ? 7 जनम पतर निरमाण क सभी पहलओ का विसतत व सोदाहरण विवचन,

गरहभाव साधन, दशवरग, सदरशन, आरढ, रशम, अवसथा, इषट, कषट

आदि अनक विषय । षडवरग कडलियो क विशिषट फलित सतर । वरषफल क सभी विषय, सहम व हीनाश, पातयश दशा सहित । मलापक का समपरण विषय एक विशष आकरषण । परशन शाखा क सभी रहसय । सिदधानत शाखा का परवश दवार । महरत विचार, यातरा व गह निरमाण पर विशष सामगरी । . भारतीय व अगरजी पदधातियो का यथावसर निरपण व तलनातमक अधययन । सवय पचाग रचना की विधि । परायः सभी कयो ? कस ? का समाधान आदि आदि । जञान की सरचिपरण, सरल व करमिक परसतति । समय की क माग अनसार ।

जयोतिष जञान क लिए समपरण गौरव परथ मलय 150 रपय, पषठ सखया 540

1 © 11711

निनान

पतर लिखकर वी. पी. स मगारण

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गरनथ - परिचि

मानव का सदव स ही रतनो क परति आकरषण रहा ह । हमार दनिक जीवन म अनिषट गरहो की शानति, सख-समदधि एव पराकतिक विपततियो स बचाव क साथ-साथ शरीर की सजावट क लिए भी रतनो का परयोग बढता जा रहा ह ।

परसतत गरनथ लखक क गहन अधययन एव दीरधकालीन अनभव का सपरिणाम ह । विदवान लखक न अतयनत परिशरम स पराचीन भारतीय गरनथो व आधनिक नवीन खोजो क आधार पर इस गरथ की रचना कौ ह--

गरनथ क मखय आकषण

नवरतन (ए1९६(0ए$) व उपरतनो (ऽा- एर ६005) को जाच परख, जयोतिष क आइन म रतन -चनिए रतनो का चिकितसा म परयोग, दवो शकति व बरकत, बहमलय रतनो का बदल (58577) कया ह ? क रतन मलपमोली अवदय, परनत गणो म चमतकारी, विचितर छनत सतय ! सवय परखिए ।

रनथ जवाहरात क वयवसायी बनधओ क लिए माग- दशक तो ह ही, साथ ही जयोतिष रमियो, चिकितसको व रतन खरीदन वालो क लिए भी परण सहायक ह ।

सकष प म, लखन शली रोचक, भाषा सरल, एतिहासिक व वजञानिक आधार इस गरनथ की -महततवपण विशषताए ह । बदिया कागज, सवचछ छपाई । ` `