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ǒबĐम सàबत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 1 of 25 BIKRM SAMBAT वĐमाǑद×य वĐमाǑद×य संèकत : वĐमाǑद×य (.पू.102 से 15 ईèवी तक) उÏजैन, भारत के अनĮत राजा थे , जो अपने £ान, वीरता और उदारशीलता के लए Ĥसƨ थे . "वĐमाǑद×य" कȧ उपाध भारतीय इǓतहास मɅ बाद के कई अÛय राजाओं ने ĤाÜत कȧ थी, िजनमɅ उãलेखनीय हɇ गÜत सĨाट चंġगÜत िÙवतीय और सĨाट हेमचÛġ वĐमाǑद×य (जो हेमु के नाम से Ĥसƨ थे ). राजा वĐमाǑद×य नाम, वĐमvikrama यानी "शौय[ " और आǑद×य[[|Āditya]] , यानी अǑदǓत के पğु के अथ[ सǑहत संèकत का त×पǽष है . अǑदǓत अथवा आǑद×या के सबसे Ĥसƨ पğɉ मɅ से एक हɇ देवता सय[ , अतः वĐमाǑद×य का अथ[ है सय[ , यानी "सय[ के बराबर वीरता (वाला)". उÛहɅ वĐम या वĐमाक [ भी कहा जाता है (संèकत मɅ अक [ का अथ[ सय[ है ). वĐमाǑद×य ईसा पव[ पहलȣ सदȣ के हɇ. कथा सǐर×सागर के अनसार वे उÏजैन परमार वंश के राजा महġाǑद×य Ʌ के पğु थे . हालांक इसका उãलेख लगभग 12 शतािÞदयɉ के बाद कया गया था. इसके अलावा, अÛय İोतɉ के अनसार वĐमाǑद×य को Ǒदãलȣ के तअर राजवंश का पव[ज माना जाता है . [1][2][3][4][5] ǑहÛदू शशओं मɅ वĐम नामकरण के बढ़ते Ĥचलन का Įेय आंशक Ǿप से वĐमाǑद×य कȧ लोकĤयता और उनके जीवन के बारे मɅ लोकĤय लोक कथाओं कȧ दो Įंखलाओं को Ǒदया जा सकता है . 1 जैन मǓन कȧ कथा 2 वĐमाǑद×य कȧ पौराणक कथा 3 वĐम और शǓन 4 नौ र×न और उÏजैन मɅ वĐमाǑद×य का दरबार 5 वĐम संवत ् (वĐम यगु ) 6 संदभ[ 7 इÛहɅ भी दे खɅ 8 नोट जैन मǓन कȧ कथा ईसा से कई शताÞदȣ पव[ भारत भम पर एक साĨराÏय था मालव गण। मालव गण कȧ राजधानी थी भारत कȧ Ĥसƨ नगरȣ उÏजेन उÏजैन एक Ĥाचीन गणतंğ राÏय था Ĥजावा×सãया राजा नाबोवाहन कȧ Ĩ×यु के पæचात उनके पğु गंधव[सेन ने "महाराजाधराज मालवाधपǓत"कȧ उपाध धारण करके मालव गण को राजतÛğ मɅ बदल Ǒदया उस समय भारत मɅ चार शक शासको का राÏय था। शक राजाओं के ħçट आचरणɉ कȧ चचा[एँ सनकर गंधव[सेन भी कामक Ǔनरंकश हो गया। एकं बार मालव गण कȧ राजधानी मɅ एक जैन साÚवी पधारȣ।उनके Ǿप कȧ सÛदरता कȧ चचा[ के कारण गंधव[ सेन भी उनके दश[न करने पहच गया साÚवी के Ǿप ने उÛहɅ कामांध बना Ǒदया। महाराज ने साÚवी का अपहरण कर लया तथा साÚवी के साथ जबरदèती ववाह कर लया। अपनी बहन साÚवी के अपहरण के बाद उनके भाई जैन मǓन कलकाचाय[ ने राçŢयġोह करके बदले कȧ भावना से शक राजाओं को उÏजैन पर हमला करने के लए तैयार कर लया। शक राजाओं ने चारɉ और से आĐमण करके उÏजैन नगरȣ को जीत लया.शोषद वहाँ Print to PDF without this message by purchasing novaPDF (http://www.novapdf.com/)

BIKRM SAMBAT jव मा Ñद×य · अपलक को भैरव सेना का सेनाप Óत बना Ñदया गया। धन क ुåयवèथा

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 1 of 25

    BIKRM SAMBAT व मा द य

    व मा द य सं कतृ : व मा द य (ई.पू.102 से 15 ई वी तक) उ जैन, भारत के अन तु ु राजा थे, जो अपने ान, वीरता और उदारशीलता के लए स थे. " व मा द य" क उपा ध भारतीय इ तहास म बाद के कई अ य राजाओ ंने ा त क थी, िजनम उ लेखनीय ह ग तु स ाट चं ग तु ि वतीय और स ाट हेमच व मा द य (जो हेमु के नाम से स थे). राजा व मा द य नाम, व मvikrama यानी "शौय" और आ द य[[|Āditya]] , यानी अ द त के पु के अथ स हत सं कतृ का त प षु है. अ द त अथवा आ द या के सबसे स पु म से एक ह देवता सयू, अतः व मा द य का अथ है सयू, यानी "सयू के बराबर वीरता (वाला)". उ ह व म या व माक भी कहा जाता है

    (सं कतृ म अक का अथ सयू है).

    व मा द य ईसा पवू पहल सद के ह. कथा स र सागर के अनसारु वे उ जैन परमार वंश के राजा मह ा द य के पु थे. हालां क इसका उ लेख लगभग 12 शताि दय के बाद कया गया था. इसके अलावा, अ य ोत के अनसारु व मा द य को द ल के तअरु राजवंश का पवजू माना जाता है.[1][2][3][4][5]

    ह द ू शशओंु म व म नामकरण के बढ़ते चलन का ेय आं शक प से व मा द य क लोक यता और उनके जीवन के बारे म लोक य लोक कथाओ ंक दो ंखलाओंृ को दया जा सकता है.

    1 जैन म नु क कथा 2 व मा द य क पौरा णक कथा 3 व म और श न 4 नौ र न और उ जैन म व मा द य का दरबार 5 व म संवत ्( व म यगु) 6 संदभ 7 इ ह भी देख 8 नोट जैन म नु क कथा

    ईसा से कई शता द पवू भारत भ मू पर एक सा रा य था मालव गण। मालव गण क राजधानी थी भारत क स नगर उ जेन । उ जैन एक ाचीन गणतं रा य था । जावा स या राजा नाबोवाहन क यु के प चात उनके पु गंधवसेन ने "महाराजा धराज मालवा धप त"क उपा ध धारण करके मालव गण को राजत म बदल दया । उस समय भारत म चार शक शासको का रा य था। शक राजाओ ं के ट आचरण क चचाए ँसनकरु गंधवसेन भी कामकु व नरंकशु हो गया। एकं बार मालव गण क राजधानी म एक जैन सा वी पधार ।उनके प क स दरताु क चचा के कारण गंधव सेन भी उनके दशन करने पहचु गया । सा वी के प ने उ ह कामांध बना दया। महाराज ने सा वी का अपहरण कर लया तथा सा वी के साथ जबरद ती ववाह कर लया। अपनी बहन सा वी के अपहरण के बाद उनके भाई जैन म नु क लकाचाय ने रा य ोह करके बदले क भावना से शक राजाओ ंको उ जैन पर हमला करने के लए तैयार कर लया। शक राजाओ ंने चार और से आ मण करके उ जैन नगर को जीत लया.शोषद वहाँ

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 2 of 25

    का शासक बना दया गया। गंधव सेन सा वी और अपनी रानी सो यादशन के साथ व धयाचल के वन म छपु गये.सा वी सर वती ने महारानी सो या से बहतु दलारु पाया तथा सा वी ने भी गंधव सेन को अपना प त वीकार कर लया । वन म नवास करते हएु ,सर वती ने एक पु को जनम दया, िजसका नाम भरत हर र खा गया.उसके तीन वष प चात महारानी सो या ने भी एक पु को जनम दया.िजसका नाम व म सेन र खा गया। वं याचल के वन म नवास करते हएु एक दन गंधव सेन आखेट को गये,जहा ँ वे एक सहं का शकार हो गये। वह ं सा वी सर वती भी अपने भाई जैन म नु क लकाचाय के रा ोह से छ दु थी।महाराज क यु के पशचात उनहोने भी अपने पु हर को महारानी को स पकर अ न का याग कर दया।और अपने ाण याग दए। उसके प चात महारानी सो या दोन पु को लेकर कषणृ भगवान ्क नगर चल गई,तथा वहा ँपर आ ातवास काटने लगी। दोन राजकमारु म ताहर चतंन शील बालकथा,तथा व म म एक असाधारण यो ा के सभी गनु व यमान थे। अब समय धीरे धीरे समय अपनी कालप र मा पर तेजी से आगे बढने लगा। दोन राजकमारु को पता चल चकाु था क शको ने उनके पता को हराकर उ जैन पर अ धकार कर लया था,तथा शक दशको से भारतीय जनता पर अ याचार कर रहे है। व म जब यवाु हआु तब वह एक सग ततु शर र का वामी व एक महान यो ा बन चकाु था। धनषबाणु , खडग, असी, सलू,व परश ुआ द म उसका कोई सानी नह था.अपनी ने य करने क छमता के कारन उसने एक सै य दल भी ग ठत कर लया था। अब समय आ गया था ,क भारतवष को शक से छटकाराु दलाया जाय।वीर व म सेन ने अपने म ो को संदेश भेजकर बलाु लया.सभाओ ंव मं णा के दौर शु हो गए। नणय लया गया क

    ,सव थम उ जैन म जमे शक राज शोशाद व उसके भतीजे खारोस को यु म परािजत करना होगा।पर तु एक अड़चन थी क, उ जैन पर आ मण के समय सौरा का शकराज भमकु व त ला का शकराज कशलकु ु ु शोशाद क साहयता के लए आयगे। व म ने कहा क , शक राजाओ ंके पास वशाल सेनाये है,सं ाम भयंकर होगा,तो उसके म ो ने उसे आ वासन दयाक , जब तक आप उ जैन नगर को नह जीत लगे ,तब तक सौरा व त ला क सेनाओ ंको हम आप के पास फटकने भी न दगे। व म सेन के इन म म सौवीर गन रा य का यवराजु ध नु , क नदंु गन रा य का यवराजु भ बाहु,अमग तु आ द मखु थे। अब सव थम सेना क सं या को बढ़ाना व उसको स ढ़ु करना था। सेना क सं या बढ़ाने के लए गाव ंगाव ंके शव मं दर म भैरव भ त के नाम से गाव के यवकु को भरती कया जाने लगा। सभी यवकु को शलू दान कए गए। यवकु को पास के वन म शा ा यास कराया जाने लगा.इस काय म वनीय छे बहतु साहयता कर रहा था। इतना बड़ा काय होने के बाद भी शक को कानोकान भनक भी नह लगी. कछु ह समय म भैरव सै नक क सं या लगभग ५० सह हो गई.भारत वष के वतमान क हलचल देखकर भारत का भ व य अपने सुनहरे वतमान क क पना करने लगा। लगभग दो वष भाग दौर म बीत गए.इसी बीच व म को एक नया सहयोगी मल गया अ पलक। अ पलक आ के महाराजा शवमखु का अनजु था। अ पलक को भैरव सेना का सेनाप त बना दया गया। धन क यव था का भार अमग तु को सोपा गया। अब जहाँ भारत का भ व य एक च वाती स ाट के वागत के लए आतरु था,वह ं चारो शक राजा भारतीय जनता का शोषण कर रहे थे और वलासी जीवन म ल त थे। इशा क थम शता द म महाक भु के अवसर पर सभी भैरव से नको को साधू-संतो के वेश म उ जैन के सैकडो गाव के मं दर म ठहरा दया गया . तेक गाँव का आर मि दर मनो शव के टांडाव ्के लए भ मू तैयार कर रहा था। महाक भु का नान समा त होते ह सै नको ने अपना अ भयान शु कर दया। भैरव सेना ने उ जैन व व दशा को घेर लया gayaa . भीषण सं ाम हआ।ु वदेशी शक को बरु तरह काट डाला गया। उ जैन का शासक शोषद भाग खड़ा हआु .तथा मथराु के शासक का पु खारोश व दशा के यु म मारा

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 3 of 25

    गया। इस समाचार को सनतेु ह सौरा व मथराु के शासक ने उ जैन पर आ मण कया। अब व म के म क बार थी, उ ह ने सौरा के शासक भमकु को भैरव सेना के साथ राह म ह घेर लया,तथा उसको बरु तरह परािजत कया, तथा अपने म को दया वचन पराू कया। मथराु के शक राजा रा बलु से व म वम टकरा गया और उसे बंद बना लया। आं महाराज स कारणी के अनजु अ पलक के ने त य म परुे म य भारत म भैरव सेना ने अपने तांडव से शक सेनाओ ंको समा त कर दया। व म सेन ने अपने ाता भरथर को उ जैन का शासक नय तु कराया। तीनो शक राजाओ ंके परािजत होने के बाद ताि शला के शक रजा कशलकु ु ु ने भी व म से सं ध कर ल । मथराु के शासक क महारानी ने व म क माता सौ या से मलकर छमा मांगी तथा अपनी प ीु हंसा के लए व म का हाथ मांगा । महारानी सौ या ने उस बंधन को तंरतु वीकार कर लया। व म के ाता भरथर का मन शासन से अ धक यान व योग म लगता था इस लए उ ह ने राजपाट याग कर स यास ले लया। उ जैन नगर के राजकमारु ने पनु: वष प चात गणतं क थापना क यव था क पर तु म व जनता के आ ह पर व म सेन को महाराजा धराज व माि व य के नाम से सहंासन पर आसीत ्होना पडा। लाख क सं या म शक का या होपवीत हआ।ु शक हदं ूसं क तृ म ऐसे समा ंगए जैसे एक नद समु म मलकर अपना अि त व खो देती है। वदेशी शक के aakramano से भारत म तु हआु तथा हदं ूसं ती का सार सम त व व म हआ।ु इसी शक वजय के उपरांत इशा से ५७ वष पवू महाराजा व मा ट के रा या भषेक पर व मी संवत क थापना हई।ु आगे आने वाले कई च वाती स ाट ने इ ह स ाट व मा द य के नाम क उपा ध धारण क .

    व मा द य क पौरा णक कथा

    अन तु ु व मा द य, सं कतृ और भारत के े ीय भाषाओ,ं दोन म एक लोक य यि त व है. उनका नाम बड़ी आसानी से ऐसी कसी घटना या मारक के साथ जोड़ दया जाता है, िजनके ऐ तहा सक ववरण अ ात ह , हालां क उनके इद- गद कहा नय का पराू च फला-फलाू है. सं कतृ क सवा धक लोक य दो कथा- ंखलाएंृ ह वेताल पंच वशं त या बेताल प चीसी (" पशाच क 25 कहा नया"ं) और सहंासन- वा ं शका (" सहंासन क 32 कहा नया"ं जो सहांसन ब तीसी के नाम से भी व यात ह). इन दोन के सं कतृ और े ीय भाषाओ ंम कई पांतरण मलते ह.

    पशाच (बेताल) क कहा नय म बेताल, प चीस कहा नया ंसुनाता है, िजसम राजा बेताल को बंद बनाना चाहता है, और वह राजा को उलझन पैदा करने वाल कहा नया ंसनाताु है और उनका अंत राजा के सम एक न रखते हएु करता है. व ततःु पहले एक साधु, राजा से वनती करते ह क वे बेताल से बना कोई श द बोले उसे उनके पास ले आएं, नह ंतो बेताल उड़ कर वापस अपनी जगह चला जाएगा. राजा केवल उस ि थ त म ह चपु रह सकते थे, जब वे उ तर न जानते ह , अ यथा राजा का सर फट जाता. दभा यवशु , राजा को पता चलता है क वे उसके सारे सवाल का जवाब जानते ह; इसी लए व मा द य को उलझन म डालने वाले अं तम सवाल तक, बेताल को पकड़ने और फर उसके छटू जाने का सल सला चौबीस बार चलता है. इन कहा नय का एक पांतरण कथा-स र सागर म देखा जा सकता है.

    सहंासन के क़ से, व मा द य के उस सहंासन से जड़ेु हएु ह जो खो गया था, और कई स दय बाद धार के परमार राजा भोज वारा बरामद कया गया था. वयं राजा भोज भी काफ़ स थे और कहा नय क यह ंखलाृ उनके सहंासन पर बैठने के यास के बारे म है. इस सहंासन म 32 पत लयांु लगी हईु थी,ं जो बोल सकती थी,ं और राजा को चनौतीु देती ह क राजा केवल उस ि थ त म ह सहंासन पर बैठ सकते ह, य द वे उनके

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 4 of 25

    वारा सनाईु जाने वाल कहानी म व मा द य क तरह उदार ह. इससे व मा द य क 32 को शश (और 32 कहा नया)ं सामने आती ह और हर बार भोज अपनी ह नता वीकार करते ह. अंत म पत लयांु उनक वन ता से स न होकर उ ह सहंासन पर बैठने देती ह.

    व म और श न

    श न से संबं धत व मा द य क कहानी को अ सर कनाटक रा य के य गान म ततु कया जाता है. कहानी के अनसारु , व म नवरा का पव बड़े धमू -धाम से मना रहे थे और त दन एक ह पर वाद- ववाद चल रहा था. अं तम दन क बहस श न के बारे म थी. ा मण ने श न क शि तय स हत उनक महानता और प वीृ पर धम को बनाए रखने म उनक भ मकाू क या या क . समारोह म ा मण ने ये भी कहा क व म क ज म कंडलु के अनसारु उनके बारहव घर म श न का वेश है, िजसे सबसे खराब माना जाता है. ले कन व म संत टु नह ं थे; उ ह ने श न को महज लोककंटक के प म देखा, िज ह ने उनके पता (सयू), गु (बह प तृ ) को क ट दया था. इस लए व म ने कहा क वे श न को पजाू के यो य मानने के लए तैयार नह ंह. व म को अपनी शि तय पर, वशेष प से अपने देवी मा ंका कपाृ पा होने पर बहतु गव था. जब उ ह ने नवरा समारोह क सभा के सामने श न क पजाू को अ वीकतृ कर दया, तो श न भगवान ो धक हो गए. उ ह ने व म को चनौतीु द क वे व म को अपनी पजाू करने के लए बा य कर दगे. जैसे ह श न आकाश म अंतधान हो गए, व म ने कहा क यह उनक खश क मतीु है और कसी भी चनौतीु का सामना करने के लए उनके पास सबका आशीवाद है. व म ने न कष नकाला क सभंवतः ा मण ने उनक कंडलु के बारे म जो बताया था वह सच हो; ले कन वे श न क महानता को वीकार करने के लए तैयार नह ंथे. व म ने न चयपवकू कहा क "जो कछु होना है, वह होकर रहेगा और जो कछु

    नह ंहोना है, वह नह ंहोगा" और उ ह ने कहा क वे श न क चनौतीु को वीकार करते ह.

    एक दन एक घोड़े बेचने वाला उनके महल म आया और कहा क व म के रा य म उसका घोड़ा खर दने वाला कोई नह ंहै. घोड़े म अ तु वशेषताए ंथी ं- जो एक छलांग म आसमान पर, तो दसरेू म धरती पर पहंचताु था. इस कार कोई भी धरती पर उड़ या सवार कर सकता है. व म को उस पर व वास नह ंहआु , इसी लए उ ह ने कहा क घोड़े क क़ मत चकानेु से पहले वे सवार करके देखगे. व े ता इसके लए मान गया और व म घोड़े पर बैठे और घोड़े को दौडाया. व े ता के कहे अनसारु , घोड़ा उ ह आसमान म ले गया. दसरू छलांग म घोड़े को धरती पर आना चा हए था, ले कन उसने ऐसा नह ं कया. इसके बजाय उसने व म को कछु दरू चलाया और जंगल म फक दया. व म घायल हो गए और वापसी का रा ता ढंढ़नेू का यास कया. उ ह ने कहा क यह सब उनका नसीब है, इसके अलावा और कछु नह ंहो सकता; वे घोड़े के व े ता के प म श न को पहचानने म असफल रहे. जब वे जंगल म रा ता ढ़ढ़नेू क को शश कर रहे थे, डाकओंु के एक समहू ने उन पर हमला कया. उ ह ने उनके सारे गहने लटू लए और उ ह खबू पीटा. व म तब भी हालत से वच लत हएु बना कहने लगे क डाकओंु ने सफ़ उनका मकटु ु ह तो लया है, उनका सर तो नह .ं चलते-चलते वे पानी के लए एक नद के कनारे पहंचेु . ज़मीन क फसलन ने उ ह पानी म पहंचायाु और तेज़ बहाव ने उ ह काफ़ दरू घसीटा.

    कसी तरह धीरे-धीरे व म एक नगर पहंचेु और भखूे ह एक पेड़ के नीचे बैठ गए. िजस पेड़ के नीचे व म बैठे हएु थे, ठ क उसके सामने एक कंजसू दकानदारु क दकानु थी. िजस दन से व म उस पेड़ के नीचे बैठे, उस दन से दकानु म ब बहतु बढ़ गई. लालच म दकानदारु ने सोचा क दकानु के बाहर इस यि त के होने से इतने अ धक

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 5 of 25

    पैस क कमाई होती है, और उसने व म को घर पर आमं त करने और भोजन देने का नणय लया. ब म लंबे समय तक वृ क आशा म, उसने अपनी प ीु को व म के साथ शाद करने के लए कहा. भोजन के बाद जब व म कमरे म सो रहे थे, तब प ीु ने कमरे म वेश कया. वह ब तर के पास व म के जागने क ती ा करने लगी. धीरे- धीरे उसे भी नींद आने लगी. उसने अपने गहने उतार दए और उ ह एक ब तख के च के साथ लगी क ल पर लटका दया. वह सो गई. जागने पर व म ने देखा क च का ब तख उसके गहने नगल रहा है. जब वे अपने वारा देखे गए य को याद कर ह रहे थे क दकानदारु क प ीु जग गई और देखती है क उसके गहने गायब ह. उसने अपने पता को बलायाु और कहा क वह चोर है.

    व म को वहा ं के राजा के पास ले जाया गया. राजा ने नणय लया क व म के हाथ और पैर काट कर उ ह रे ग तान म छोड़ दया जाए. जब व म रे ग तान म चलने म असमथ और ख़नू से लथपथ हो गए, तभी उ जैन म अपने मायके से ससरालु लौट रह एक म हला ने उ ह देखा और पहचान लया. उसने उनक हालत के बारे म पछताछू क और बताया क उ जैनवासी उनक घड़सवारु के बाद गायब हो जाने से काफ चं तत ह. वह अपने ससरालु वाल से उ ह अपने घर म जगह देने का अनरोधु करती है और वे उ ह अपने घर म रख लेते ह. उसके प रवार वाले मक वग के थे; व म उनसे कछु काम मांगते ह. वे कहते ह क वे खेत म नगरानी करगे और हांक लगाएंगे ता क बैल अनाज को अलग करते हएु च कर लगाएं. वे हमेशा के लए केवल मेहमान बन कर ह नह ंरहना चाहते ह.

    एक शाम जब व म काम कर रहे थे, हवा से मोमब ती बझु जाती है. वे द पक राग गाते ह और मोमब ती जलाते ह. इससे सारे नगर क मोमबि तयां जल उठती ह - नगर क राजकमारु ने त ा क थी क वे ऐसे यि त से ववाह करगी जो द पक रागगाकर मोमब ती जला सकेगा. वह संगीत के ोत के प म उस वकलांग आदमी को देख कर च कत हो जाती है, ले कन फर भी उसी से शाद करने का फैसला करती है. राजा जब व म को देखते ह तो याद करके आग-बबलाू हो जाते ह क पहले उन पर चोर का आरोप था और अब वह उनक बेट से ववाह के यास म है. वे व म का सर काटने के लए अपनी तलवार नकाल लेते ह. उस समय व म अनभवु करते ह क उनके साथ यह सब श न क शि तय के कारण हो रहा है. अपनी मौत से पहले वे श न से ाथना करते ह. वे अपनी ग़ल तय को वीकार करते ह और सहम त जताते ह क उनम अपनी है सयत क वजह से काफ़ घमंड था. श न कट होते ह और

    उ ह उनके गहने, हाथ, पैर और सब कछु वापस लौटाते ह. व म श न से अनरोधु करते ह क जैसी पीड़ा उ ह ने सह है, वैसी पीड़ा सामा य जन को ना द. वे कहते ह क उन जैसा मजबतू इ सान भले ह पीड़ा सह ले, पर सामा य लोग सहन करने म स म नह ंह गे. श न उनक बात से सहमत होते हएु कहते ह क वे ऐसा कतई नह ंकरगे. राजा अपने स ाट को पहचान कर, उनके सम समपण करते ह और अपनी प ीु क शाद उनसे कराने के लए सहमत हो जाते ह. उसी समय, दकानदारु दौड़ कर महल पहंचताु है और कहता है क बतख ने अपने मंहु से गहने वापस उगल दए ह. वह भी राजा को अपनी बेट स पता है. व म उ जैन लौट आते ह और श न के आशीवाद से महान स ाट के प म जीवन यतीत करते ह.

    नौ र न और उ जैन म व मा द य का दरबार

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 6 of 25

    भारतीय परंपरा के अनसारु धनवंतर , पनक, अमर सहं, शकुं, खटकरपारा, का लदास, वेतालभ (या (बेतालभ ), वर च, और वराह म हर उ जैन म व मा द य के राज दरबार का अंग थे. कहते ह क राजा के पास "नवर न" कहलाने वाले नौ ऐसे व वान थे.

    का लदास स सं कतृ राजक व थे. वरा म हर उस यगु के मखु यो तषी थे, िज ह ने व मा द य क बेटे क मौत क भ व यवाणी क थी. वेतालभ एक धमाचाय थे. माना जाता है क उ ह ने व मा द य को सोलह छंद क रचना "नी त - द प" (Niti-pradīpa सचमचु "आचरण का द या") का ेय दया है.

    व माक य आ थाने नवर ना न

    ध व त रः पणको मर सहं शकूं वेताळभ घट कपर का लदासाः। यातो वराह म हरो नपतेृ सभायां र ना न वै वर च नव व म य।।

    व म संवत ्( व म यगु)

    म यु लेख : Vikrama Samvat

    भारत और नेपाल क हदं ूपरंपरा म यापक प से य तु ाचीन पंचाग ह व म संवत ्या व म यगु. कहा जाता है क ईसा पवू 56 म शक पर अपनी जीत के बाद राजा ने इसक श आतु क थी.

    संदभ

    द कथा स रत सागर, या ओशन ऑफ़ द स ऑफ़ टोर , सी.एच टॉने वारा अन दतू , 1880 व म एंड द वै पायर रचड आर. बटन वारा अन दतू , 1870 द इनरो स ऑफ़ द काइ थयंस इनटू इं डया, एंड द टोर ऑ कलकाचाय , रॉयल ए शया टक सोसायट क मंबईु शाखा क प का, VVol. IX, 1872

    व माज़ एडवचस ऑर द थट -टू टे स ऑफ़ द ोन , सं कतृ मलू के चार अलग संपा दत पाठ संशोधन ( व म-च रत या सहंासन- वा ं शका), क लन एजरटॉन वारा अन दतू , हावड य नव सटू ेस, 1926.

    इ ह भी देख

    ग तु सा ा य हदं ूपंचांग INS व मा द य नवर न रोर राजवंश शाल वाहन यगु तोमर राजपतू व म संवत ् व मा द य VI

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 7 of 25

    स ाट हेमचं व मा द य व मा द य क महानता दशाने वाल कहा नय का सं ह 1 2 3 4 5

    का लदास

    का लदास सं कतृ भाषा के सबसे महान क व और नाटककार थे। का लदास शव के भ त थे। उ ह ने भारत क पौरा णक कथाओ ंऔर दशन को आधार बनाकर रचनाए ंक । क लदास अपनी अलंकार य तु संदरु सरल और मधरु भाषा के लये वशेष प से जाने जाते ह। उनके ऋतु वणन अि वतीय ह और उनक उपमाएं बे मसाल। संगीत उनके सा ह य का मखु अंग है और रस का सजनृ करने म उनक कोई उपमा नह ं। उ ह ने अपने शगंारृ रस धान सा ह य म भी सा हि यक सौ दय के साथ-साथ आदशवाद परंपरा और नै तक म यू का सम चतु यान रखा है। उनका नाम अमर है और उनका थान वा मी क और यास क पर परा म है।

    1 समय 2 जीवनी 3 रचनाए ं

    3.1 नाटक 3.2 महाका य 3.3 अ य

    3.3.1 का लदास क अ य रचनाए ं 4 का य सौ दय 5 आध नककालु म का लदास 6 गाथाए ं 7 संदभ

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 8 of 25

    8 यह भी देख 9 बा य क ड़यॉ

    समय

    का लदास के जीवनकाल के बारे म थोड़ा ववाद है। अशोक और अि न म के शासनकाल से ा त द तावेज के अनसारु , का लदास का जीवनकाल पहल शता द से तीसर शता द ईसा पवू के बीच माना जाता है। का लदास ने ि वतीय शगुं शासक अि न म को नायक बनाकर माल वकाि न म म ्नाटक लखा। अि न म ने १७० ईसापवू ् म शासन कया था, अतः का लदास का जीवनकाल इसके बाद माना जाता है। भारतीय पर परा म का लदास और व मा द य से जड़ीु कई कहा नया ं ह। इ ह व मा द य के नवर न म से एक माना जाता है। इ तहासकार का लदास को ग तु शासक चं ग तु व मा द य और उनके उ तरा धकार कमारग तु ु से जोड़ते ह, िजनका शासनकाल चौथी शता द म था। ऐसा माना जाता है क चं ग तु ि वतीय ने व मा द य क उपा ध ल और उनके शासनकाल को वणयगु माना जाता है। यहा ंयह उ लेखनीय है क का लदास ने शगुं राजाओ ंके छोड़कर अपनी रचनाओ ंम अपने आ यदाता या कसी सा ा य का उ लेख नह ं कया। स चाई तो यह है क उ ह ने प रवाु और उवशी पर आधा रत अपने नाटक का नाम व मोवशीयम ्रखा। का लदास ने कसी ग तु शासक का उ लेख नह ं कया। व मा द य नाम के कई शासक हएु , संभव है क का लदास इनम से कसी एक के दरबार म क व रहे ह । अ धकांश व वान का मानना है क का लदास शगुं वंश के शासनकाल म थे, िजनका शासनकाल १०० सद ईसापवू ् था।

    पर परा के अनसारु का लदास उ ज यनी के उन राजा व मा द य के समकाल न ह िज ह ने ईसा से 57 वष पवू व म संवत ्चलाया। व मोवशीय के नायक प रवाु के नाम का व म म प रवतन से इस तक को बल मलता है क का लदास उ जयनी के राजा व मा द य के राजदरबार क व थे।

    अि न म , जो माल वकाि न म नाटक का नायक है, कोई स व यताु राजा नह ं था, इसी लए का लदास ने उसे व श टता दान नह ंक । उनका काल ईसा से दो शता द पवू का है और व दशा उसक राजधानी थी। का लदास के वारा इस कथा के चनावु और मेघदतू म एक स राजा क राजधानी के प म उसके उ लेख से यह न कष नकलता

    है क का लदास अि न म के समकाल न थे।

    यह प ट है क का लदास का उ कष अि न म के बाद (150 ई.पू.) और 634 ई. पवू तक रहा है, जो क स ऐहोल के शलालेख क त थ है, िजसम का लदास का महान ्क व के प म उ लेख है। य द इस मा यता को वीकार कर लया जाए क मा डा क क वताओ ंया 473 ई. के शलालेख म का लदास के लेखन क जानकार का उ लेख है, तो उनका काल चौथी शता द के अ त के बाद का नह ंहो सकता।

    अ वघोष के ब च रतु और का लदास क क तयृ म समानताए ंह। य द अ वघोष का लदास के ऋणी ह तो का लदास का काल थम शता द ई. से पवू का है और य द का लदास अ वघोष के ऋणी ह तो का लदास का काल ईसा क थम शता द के बाद ठहरेगा।

    ऐसी मा यता है क का लदास ग तु काल के थे और वे उन च ग तु ि वतीय के रा य म थे िज ह व मा द य’ क पदवी ा त थी, वे 345 ई. म स ता म आए और उ ह ने 414 ई. तक शासन कया। हम कोई भी त थ वीकार कर, वह हमारा उ चत अनमानु भर है और इससे अ धक कछु नह ं।

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 9 of 25

    जीवनी

    का लदास श लो-सरतू से संदरु थे और व मा द य के दरबार के नवर न म एक थे। ले कन कहा जाता है क ारं भक जीवन म का लदास अनपढ़ और मखू थे। का लदास क शाद व यो तमा नाम क राजकमारु से हई।ु ऐसा कहा जाता है क व यो तमा ने त ा क थी क जो कोई उसे शा ाथ म हरा देगा, वह उसी के साथ शाद करेगी। जब व यो तमा ने शा ाथ म सभी व वान को हरा दया तो अपमान से दखीु कछु व वान ने का लदास से उसका शा ाथ कराया। व यो तमा मौन श दावल म गढ़ू न पछतीू थी, िजसे का लदास अपनी बु से मौन संकेत से ह जवाब दे देते थे। व यो तमा को लगता था क का लदास गढ़ू न का गढ़ू जवाब दे रहे ह। उदाहरण के लए व यो तमा ने न के प म खलाु हाथ दखाया तो का लदास को लगा क यह थ पड़ मारने क धमक दे रह है। उसके जवाब म का लदास ने घसंाू दखाया तो व यो तमा को लगा क वह कह रहा है क पाँच इि या ँभले ह अलग ह , सभी एक मन के वारा संचा लत ह। व यो तमा और का लदास का ववाह हो गया तब व यो तमा को स चाई का पता चला क का लदास अनपढ़ ह। उसने का लदास को ध कारा और यह कह कर घर से नकाल दया क स चे पं डत बने बना घर वा पस नह ंआना। का लदास ने स चे मन से काल देवी क आराधना क और उनके आशीवाद से वे ानी और धनवान बन गए। ान ाि त के बाद जब वे घर लौटे तो उ ह ने दरवाजा खड़का कर कहा - कपाटम ्उ घा य स दरु (दरवाजा खोलो, स दरु )। व यो तमा ने च कत होकर कहा -- अि त कि च वाि वशेषः(कोई व वान लगता है)। का लदास ने व यो तमा को अपना पथ दशक गु माना और उसके इस वा य को उ ह ने अपने का य म जगह द । कमारसंभवमु ्का ारंभ होता है- अ य तर याु म ् द श… से, मेघदतमू ्का पहला श द है- कि च कांता…, और रघवंशमु ्क श आतु होती है- वागाथ वव… से।

    का लदास के ज म थान के बारे म भी ववाद है, ले कन उ जैन के त उनक वशेष ेम को देखते हएु लोग उ ह उ जैन का नवासी मानते ह। सा ह यकार ने ये स कया है क महाक व का लदास का ज म उ तराखंड के

    याग िजले के क व ठा गांव म हआु था। का लदास ने यह ंअपनी ारं भक श ा हण क थी औऱ यह ंपर उ ह ने मेघदतू, कमारसंभवु औऱ रघवंशु जै◌ी महाका य क रचना क थी। क व ठा चारधाम या ा माग म ग तकाशीु म ि थत है। ग तकाशीु से काल मठ स पीठ वाले रा ते म काल मठ मं दर से चार कलोमीटर आगे क व ठा गांव ि थत है। क व ठा म सरकार ने का लदास क तमा था पत कर एक सभागार क भी नमाण करवाया है। जहा ंपर हर साल जनू माह म तीन दन तक गो ठ का आयोजन होता है..िजसम देशभर के व वान भाग लेते ह। कहते ह क का लदास क ीलंका म ह या कर द गई थी।

    रचनाएं

    चं कू का लदास ने अपने बारे म बहतु कम कहा है अतः उन अनेक रचनाओ ंके बारे म जो उनक मानी जाती ह, न चय कछु नह ंकहा जा सकता। फर भी, न न ल खत रचनाओ ंके संबंध म आम सहम त यह है क वे का लदास क ह -:

    1. अ भ ान शाक तलमु ्: सात अंक का नाटक िजसम द य तु और शक तलाु के ेम और ववाह का वणन है।

    1. व मोवशीयम ्: पांच अंक का नाटक िजसम प रवाु और उवशी के ेम और ववाह का वणन है।

    1. माल वकाि न म म ्: पांच अंक का नाटक िजसम मा ल वका और अि न म के ेम का वणन है।

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 10 of 25

    1. रघवंशमु ्: उ नीस सग का महाका य िजसम सयवंशीू राजाओ ंके जीवन च र ह।

    1. कमारसंभवमु ्: स ह सग का महाका य िजसम शव और पावती के ववाह और कमारु के ज म का वणन है जो यु के देवता ह।

    1. मेघदतू : एक सौ यारह छ द 1 क क वता िजसम य वारा अपनी प नी को मेघ वारा पहंचाएु गए संदेश का वणन है।

    1. ऋतसंहारु : इसम ऋतओंु का वणन है।

    नाटक : अ भ ान शाक तलमु ,् व मोवशीयम ्और माल वकाि न म म।् महाका य : रघवंशमु ्और कमारसंभवमु ्ख डका य : मेघदतमू ्और ऋतसंहारु

    नाटक

    का लदास के मखु नाटक ह- माल वकाि न म म ्(माल वका और अि न म ), व मोवशीयम ्( व म और उवशी), और अ भ ान शाक तलमु ्(शकंतलाु क पहचान)।

    माल वकाि न म म ्का लदास क पहल रचना है, िजसम राजा अि न म क कहानी है। अि न म एक नवा सत नौकर क बेट माल वका के च के ेम करने लगता है। जब अि न म क प नी को इस बात का पता चलता है तो वह माल वका को जेल म डलवा देती है। मगर संयोग से माल वका राजकमारु सा बत होती है, और उसके ेम-संबंध को वीकार कर लया जाता है।

    अ भ ान शाक तलमु ्का लदास क दसरू रचना है जो उनक जगत स का कारण बना। इस नाटक का अनवादु अं ेजी और जमन के अलावा द नयाु के अनेक भाषाओ ंम हआु है। इसम राजा द यंतु क कहानी है जो वन म एक प र य त ऋ ष प ीु शक तलाु ( व वा म और मेनका क बेट ) से ेम करने लगता है। दोन जंगल म गंधव ववाह कर लेते ह। राजा द यंतु अपनी राजधानी लौट आते ह। इसी बीच ऋ ष दवासाु शकंतलाु को शाप दे देते ह क िजसके वयोग म उसने ऋ ष का अपमान कया वह उसे भलू जाएगा। काफ मा ाथना के बाद ऋ ष ने शाप को थोड़ा नरम करते हएु कहा क राजा क अंगठू उ ह दखाते ह सब कछु याद आ जाएगा। ले कन राजधानी जाते हएु रा ते म वह अंगठू खो जाती है। ि थ त तब और गंभीर हो गई जब शकुंतला को पता चला क वह गभवती है। शकंतलाु लाख गड़ गड़ाई ले कन राजा ने उसे पहचानने से इनकार कर दया। जब एक मछआरेु ने वह अंगठू दखायी तो राजा को सब कछु याद आया और राजा ने शकंतलाु को अपना लया। शकंतलाु शगंारृ रस से भरे संदरु का य का एक अनपमु नाटक है। कहा जाता है का येषु नाटकं र यं त र या शक तलाु (क वता के अनेक प म अगर सबसे स दरु नाटक है तो नाटक म सबसे अनपमु शक तलाु है।)

    का लदास का नाटक व मोवशीयम बहतु रह य भरा है। इसम प रवाु इं लोक क अ सरा उवशी से ेम करने लगते ह। प रवाु के ेम को देखकर उवशी भी उनसे ेम करने लगती है। इं क सभा म जब उवशी न यृ करने जाती है तो प रवाु से ेम के कारण वह वहा ंअ छा दशन नह ंकर पाती है। इससे इं ग सेु म उसे शा पत कर धरती पर भेज देते ह।

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 11 of 25

    हालां क, उसका ेमी अगर उससे होने वाले पु को देख ले तो वह फर वग लौट सकेगी। व मोवशीयम ्का यगत स दय और श प से भरपरू है।

    महाका य

    इन नाटक के अलावा का लदास ने दो महाका य और दो गी तका य क भी रचना । रघवंशमु ्और कमारसंभवमु ्उनके महाका य के नाम है। रघवंशमु ्म स पणू रघवंशु के राजाओ ंक गाथाए ँह, तो कमारसंभवमु ्म शव-पावती क ेमकथा औरका तकेय के ज म क कहानी है।

    मेघदतमू ्और ऋतसंहारःु उनके गी तका य ह। मेघदतमू ्म एक वरह-पी ड़त नवा सत य एक मेघ से अनरोधु करता है क वह उसका संदेश अलकापरु उसक े मका तक लेकर जाए, और मेघ को रझाने के लए रा ते म पड़ने वाले सभी अनपमु य का वणन करता है। ऋतसंहारु म सभी ऋतओंु म क तृ के व भ न प का व तार से वणन कया गया है।

    अ य[संपा दत कर]

    इनके अलावा कई छटपटु रचनाओ ंका ेय का लदास को दया जाता है, ले कन व वान का मत है क ये रचनाए ंअ य क वय ने का लदास के नाम से क । नाटककार और क व के अलावा का लदास यो तष के भी वशेष माने जाते ह। उ तर कालामतमृ ्नामक यो तष पि तकाु क रचना का ेय का लदास को दया जाता है। ऐसा माना जाता है क काल देवी क पजाू से उ ह यो तष का ान मला। इस पि तकाु म क गई भ व यवाणी स य सा बत ह ।ु

    का लदास क अ य रचनाए ं

    तबोधमु ् ंगारृ तलकम ् ंगृार रसाशतम ् सेतका यमु ् कपरमंजरू प पबाणु वलासम ् यामा दंडकम ् यो त व याभरणम ् ((कनारामसे

    का य सौ दय

    का लदास अपनी वषय-व तु देश क सां क तकृ वरासत से लेते ह और उसे वे अपने उ े य क ाि त के अन पु ढाल देते ह। उदाहरणाथ, अ भ ान शाक तलु क कथा म शक तलाु चतरु , सांसा रक यवाु नार है और द य तु वाथ ेमी है। इसम क व तपोवन क क या म ेमभावना के थम फटनु से लेकर वयोग, क ठाु आ द क अव थाओ ंम से होकर उसे उसक सम ता तक दखाना चाहता है। उ ह ं के श द म नाटक म जीवन क व वधता होनी चा हए और उसम व भ न चय के यि तय के लए स दय और माधयु होना चा हए।

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 12 of 25

    ैग यो वमु ्अ लोक-च रतम ्नानतमृ ् यते। ना यम ् भ न- चेर जन य बहधा पु एकम ्समाराधनम।।्

    का लदास के जीवन के बारे म हम वशेष जानकार नह ंहै। उनके नाम के बारे म अनेक कवदि तया ं च लत ह िजनका कोई ऐ तहा सक म यू नह ं है। उनक क तृ य से यह व दत होता है क वे ऐसे यगु म रहे िजसम वभैव और सखु-स वधाएंु थीं। संगीत तथा न यृ और च -कला से उ ह वशेष ेम था। त काल न ान- व ान, व ध और दशन-तं तथा सं कार का उ ह वशेष ान था।

    उ ह ने भारत क यापक या ाए ंक ंऔर वे हमालय से क याकमारु तक देश क भौगो लक ि थ त से पणतःू प र चत तीत होते ह। हमालय के अनेक च ांकन जसेै ववरण और केसर क या रय के च ण (जो क मीर म पैदा होती है)

    ऐसे ह जैसे उनसे उनका बहतु नकट का प रचय है।

    जो बात यह महान कलाकार अपनी ले खनी के पश मा से कह जाता है। अ य अपने वशद वणन के उपरांत भी नह ं कह पाते। कम श द म अ धक भाव कट कर देने और कथन क वाभा वकता के लए का लदास स ह। उनक उि तय म व न और अथ का तादा मय मलता है। उनके श द- च सौ दयमय और सवागीण स पणू ह, जैसे – एक पणू ग तमान राजसी रथ ( व मोवशीय, 1.4), दौड़ते हएु मगृ-शावक (अ भ ान-शाक तलु , 1.7), उवशी का फटू -फटकरू आसंू बहाना ( व मोवशीय, छ द 15), चलायमान क पवृ क भां त अ त र म नारद का कट होना ( व मोवशीय, छ द 19), उपमा और पक के योग म वे सव प र ह।

    सर सजमन व ंु शवैालेना प र य ंम लनम प हमांशोल म ल मी ंतनो त। इय मधकमनो ा व कलेना प त वी क मह मधराणांु म डन ंनाकतीनाम।।ृ ्

    ‘कमल य य प शवाल म लपटा है, फर भी स दरु है। च मा का कलंक, य य प काला है, क तु उसक स दरताु बढ़ाता है। ये जो sukumar क या है, इसने य य प व कल-व धारण कए हएु ह तथा प वह और स दरु दखाई दे रह है। य क स दरु प को या सशो भतु नह ंकर सकता ?’

    का लदास क रचनाओ ंम सीधी उपदेशा मक शलै नह ंहै अ पतु ीतमा प नी के वन नवेदन सा मनहारु है। म मट कहते ह : ‘का तासि मततयोपदेशायजे।ु ’ उ च आदश के कला मक ततीकरणु से कलाकार हम उ ह अपनाने को ववश करता है। हमारे सम जो पा आते ह हम उ ह ं के अन पु जीवन म आचरण करने लगते ह और इससे हम यापक प म मानवता को समझने म सहायता मलती है।

    एक महान ्सां क तकृ वरासत पर का लदास के समृ एवं उ जवल यि त व क छाप है और उ ह ने अपनी रचनाओ ंम मो , यव था और ेम के आदश को अ भ यि त द है। उ ह ने यि त को संसार के द:ुख-दद और संघष से अवगत कराने के लए, ेम-वासना, इ छा-आकां ा, आशा- व न, सफलता वफलता आ द को अ भ यि त द है। भारत ने जीवन को अपनी सम ता म देखा है और उसम कसी भी वख डन का वरोध कया है।

    क व ने उन मान सक व व का वणन कया है जो आ मा को वभ त करते ह और इस तरह उ ह ने इसे सम ता म देखने म हमार सहायता क है।

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 13 of 25

    का लदास क रचनाओ ंम हमारे लए स दय के ण, साह सक घटनाएं, याग के य और मानव मन क नत- नत बदलती मनः ि थ तय के प संर त ह। उनक क तयांृ मानव ार ध के वणनातीत च ण के लए सदैव पढ़ जाती रहगी य क कोई महान ्क व ह ऐसी त तयांु दे सकता है। उनक अनेक पंि तया ंसं कतृ म सि तयांू बन गई ह। उनक मा यता है क हमालय े म वक सत सं क तृ व व क सं क तयृ क मापद ड हो सकती है। यह सं क तृ मलतःू आ याि मक है। हम सभी सामा यतः समय-च म कैद ह

    और इसी लए हम अपने अि त व क संक ण सीमाओ ंम घरे ह। अतः हमारा उ े य अपने मोहजाल से म तु होकर चेतना के उस स य को पाने का होना चा हए जो देश-काल से परे है जो अज मा, चरम और कालातीत है। हम इसका चतंन नह ंकर सकते, इसे वग , आकार और श द म वभािजत नह ंकर सकते। इस चरम स य क अनभ तु ू का ान ह मानव का उ े य है। रघवंशु के इन श द को दे खए - ‘ माभयमू ्ग तम ्अजागम।्’ ानीप षु कालातीत परम स य के जीवन को ा त होते ह।

    वह जो चरम स य है सभी अ ान से परे है और वह आ मा और पदाथ के वभाजन से ऊपर है। वह सव , सव यापक और सवशि तमान है। वह अपने को तीन प म य त करता है ( म तू ) मा, व णु और शव – क ता, पालक तथा संहारक। ये देव समाज पद वाले ह आम जीवन म का लदास शवतं के उपासक ह। तीन 1.अ भ ान शाक तलाु , 1.17 नाटक – अ भ ान शाक तलु , व मोवशीय, माल वकाि न म – क आरि भक ाथनाओ ं से कट होता है क का लदास शव-उपासक थे। दे खए रघवंशु के आरि भक लोक म :

    जगतः पतरौ व दे पावती-परमे वरौ।

    य य प का लदास परमा मा के शव प के उपासक ह तथा प उनका ि टकोण कसी भी कार संक ण नह ं है। पर परागत ह द ूधम के त उनका ि टकोण उदार है। दसरू के व वास को उ ह ने स मान क ि ट से देखा। का लदास क सभी धम के त सहानभ तु ू है और वे दरा हु और धमा धता से म तु ह। कोई भी यि त वह माग चनु सकता है जो अ छा लगता है य क अ ततः ई वर के व भ न प एक ह ई वर के व भ न प ह जो सभी प म नराकार है।

    का लदास पनज मु के स ा त को मानते ह। यह जीवन म पणताू के माग क एक अव था है। जैसे हमारा वतमान जीवन पवू कम का फल है वैसे ह हम इस ज म म यास से अपना भ व य सधारु सकते ह। व व पर सदाचार का शासन है। वजय अ ततः अ छाई क होगी। य द का लदास क रचनाएं दखा तु नह ंह तो उसका कारण यह क वे सामंज य और शाल नता के अि तम स य को वीकारते ह। इस मा यता के अ तगत वे अ धकांश ी-प षु के दःखु -दद के त हमार सहानभ तु ू को मोड़ देते ह।

    का लदास क रचनाओ ं से इस गलत धारणा का नराकरण हो जाता है क ह द ूमि त क ने ान- यान पर अ धक यान दया और सांसा रक दःखु -दद क उ ह ने अवहेलना क । का लदास के अनभवु का े यापक था। उ ह ने जीवन,

    लोक, च और फलू म समान आन द लया। उ ह ने मानव को सि टृ ( मा ड) और धम क शि तय से अलग करके नह ंदेखा। उ ह मानव के सभी कार के दःखु , आकां ाओ,ं णक ख शयु और अ तह न आशाओ ंका ान था।

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 14 of 25

    वे धम, अथ, काम और मो – मानव जीवन के चार प षाथु म सामंज य के पोषक थे। अथ पर, िजसम राजनी त और कला भी सि म लत है धम का शासन रहना चा हए। सा य और साधन म पर पर सह-संबंध है। जीवन वैध (मा य) संबंध से ह जीने यो य रहता है। इन संबंध को व छ और उ जवल बनाना ह क व का उ े य था।

    इ तहास ाक तकृ त य न होकर नै तक स य है। यह काल- म का लेखा-जोखा मा नह ं है। इसका सार अ या म म न हत है जो आगे क पी ढ़य को ान दान करता है। इ तहासकार को अ ान को भेद कर उस आ त रक नै तक ग तशीलता को आ मसात करना चा हए। इ तहास मानव क नै तक इ छा का फल है िजसक अ भ यि तया ं वतं ता और सजनृ ह।

    रधवंशु के राजा ज म से ह न कलंक थे। धरती से लेकर समु तक (आसम तसानामु )् इनका यापक े म शासन था। इ ह ने धन का सं ह दान के लए कया, स य के लए चनेु हएु श द कहे, वजय क आकां ा यश के लए क और गह थृ जीवन प े णाु के लए रखा। बचपन म श ा, यवाव थाु म जीवन के सखभोगु , व ाव थाृ म आ याि मक जीवन और अ त म योग या यान वारा शर र का याग कया।

    राजाओ ं ने राज व क वसलू जन-क याण के लए क , ‘ जानाम ् एव ं भ याथमू ’् जसेै सयू जल लेता है और उसे सह गणाु करके लौटा देता है। राजाओ ंका ल य धम और याय होना चा हए। राजा ह जा का स चा पता है, वह उ ह श ा देता है, उनक र ा करता है और उ ह जी वका दान करता है जब क उनके माता- पता केवल उनके भौ तक ज म के हेतु ह। राजा अज के रा य म येक यि त यह मानता था क राजा उनका यि तगत म है।

    शाक तलंु म तप वी राजा से कहता है : ‘आपके श त और पी ड़त क र ा के लए ह न क नद ष पर हार के लए।’ ‘आत ाणाय वाह श म ्न हारतमु ्अनग स।’ द य तु एवं शक तलाु का पु भरत, िजसके नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा है, सवदमन भी कहलाता है – यह केवल इस लए नह ं क उसने केवल भयानक व य पशओंु पर वजयी पायी अ पतु उसम आ मसंयम भी था। राजा के लए आ मसंयम भी अ नवाय है।

    रघवंशु म अि नवण दराचारु हो जाता है। उसके अ तःपरु म इतनी अ धक ना रयां ह क वह उनका सह नाम तक नह ंजान पाता। उसे य हो जाता है और उस अव था म भी भोग का आन द नह ंछोड़ पाता और उसक म यृ ु हो जाती है। शाल न मानव-जीवन के लए संयम अ नवाय है। का लदास कहते है : ‘हे क याणी, खान से नकलने के उपरांत भी कोई भी र न वण म नह ंजड़ा जाता, जब तक उसे तराशा नह ंजाता।’

    य य प का लदास क क तयृ म तप को भ यता दान क गई है और साधु और तपि वय को पजनीयू प म ततु कया गया है, तथा प कह ंभी भ ापा क सराहना नह ंक गई।

    धम के नयम जड़ एवं अप रवतनीय नह ंह। पर परा को अपनी अ त ि ट और ान से सह अथ दया जाना चा हए। पर परा और यि तगत अनभवु एक-दसरेू के परकू ह। जहा ंहम एक ओर अतीत वरासत म मला है वह ंहम दसरू ओर भ व य के यासधार ( ट ) ह। अपने अि तम व लेषण म येक को सह आचरण के लए अपने अ तःकरण म झांकना चा हए। भगवतगीता के आरि भक अ याय म जब अजनु य होने के नाते समाज वारा आरो पत यु करने के अपने दा य व से मना करते ह और जब सकरातु कहते ह, ‘एथसवा सय ! म ई वर क आ ा का पालन क ं गा, त हारु आ ा का नह ं।’ तो वे ऐसा अपनी अ ता मा के नदश पर कहते ह न क कसी बंधे-बंधाए नयम के अनपालनु के कारण। आरि भक वै दक सा ह य म जड़-चेतन क एक पता का न पण है और अनेक वै दक देवी-देवता क तृ के

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 15 of 25

    मखु प का त न ध व करते ह। आ म ान क खोज म क तृ क शरण म जाने, हम ंगृ पर जाने या तपोवन म जाने का शकार बहतु ाचीन काल से हमारे यहा ं व यमान रहा है। मानव के प म हमार जड़े क तृ म ह और हम नाना प म इसे जीवन म देखते ह। रात और दन, ऋतु-प रवतन – ये सब मानव-मन के प रवतन, व वधता और चंचलता के तीक ह। का लदास के लए क तृ य वत और नज व नह ं है। इसम एक संगीत है। का लदास के पा पेड़-पौध , पवत तथा न दय के त संवेदनशील ह और पशओंु के त उनम ात भावना है। हम उनक क तयृ म खले हएु फलू , उड़ते प ी और उछलते-कदतेू पशओंु के वमन दखाई देते ह। रघवंशु म हम गाय के ेम का अनपमु वणन मलता है। ऋतसंहारु म षट ऋतओंु का दय पश ववरण है। ये ववरण केवल का लदास के ाक तकृ -सौ दय के त उनक ि ट को नह ंअ पतु मानव-मन के व वध प और आकां ाओ ंक समझ को भी कट करते ह। का लदास के लए

    न दय , पवत , वन-वृ म चेतन यि त व है जैसा क पशओंु और देव म है।

    शाक तलाु क तृ क क या है। जब उसे उसक अमानषीु मा ंमेनका ने याग दया तो आकाशगामी प य ने उसे उठाया और तब तक उसका पालन-पोषण कया जब तक क क ठ ऋ ष आ म म उसे नह ंले गए। शक तलाु ने पौध को सींचा, उ ह अपने साथ-साथ बढ़ते देखा और जब उनके ऊपर फल-फलू आए तो ऐसे अवसर को उसने उ सव क भां त मनाया। शाक तलाु के ववाह के अवसर पर वृ ने उपहार दए, वनदे वय ने प पु -वषा क , कोयल ने स नता के गीत गाए। शकंतलाु क वदाई के समय आ म दःखु से भर उठा। मगृ के मखु से चारा छटू कर गर पड़ा, मयरू का न यृ क गया और लताओ ंने अपने प के प म अ ु गराए।

    सीता के प र याग के समय मयरू ने अपना न यृ एकदम ब द कर दया, वृ ने अपने प पु झाड़ दए और म गयृ ने आधे चबाए हएु दवादलू को मंहु से गरा दया।

    का लदास कोई वषय चनतेु ह और आखँ म उसका एक सजीव च उतार लेते ह। मानस- च क रचना म वे बेजोड़ ह। का लदास का क तृ का ान यथाथ ह नह ंथा अ पतु सहानभ तु ू भी था। उनक ि ट क पना से संय तु है। कोई भी यि त तब तक पणतःू म हमामि डत नह ंहो सकता जब तक क वह मानव जीवन से इतर जीवन क म हमा और म यू को नह ंजानता। हम जीवन के सम प के त संवेदना वक सत करनी चा हए। सि टृ केवल मन यु के लए नह ंरची गई है।

    प षु और नार के ेम ने का लदास को आक षत कया और ेम के व वध प के च ण म उ ह ने अपनी समृ क पना का खलकरु उपयोग कया है। इसम उनक कोई सीमाए ंनह ंह। उनक ना रय म प षु क अपे ा अ धक आकषण है य क उनम कालातीत और सावभौम गणु ह जब क प षु पा संवेदना श यू और अि थर बु ह। उनक संवेदना सतह है जब क नार का दःखु -दद अ तरतम का है।

    प षु म पधा क भावना और वा भमान उसके कायालय, कारखाने या रण े म उपयोगी हो सकते ह पर उनक तलनाु नार के ससं कारु , सौ दय और शाल नता के गणु से नह ंहो सकती। अपने यव था और सामंज य के ेम के कारण नार पर परा (सं क तृ ) को जी वत रखती है।

    जब का लदास नार के सौ दय का वणन करते ह तो वे शा ीय शलै को अपनाते ह और ऐसा करते समय वे अपने ववरण के वासनाज य होने या अ त व ततृ हो जाने का खतरा मोल लेते ह। मेघदतू म ‘मेघ’ को ‘य ’ अपनी प नी का ववरण (ह लयाु ) इस कार देता है :

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  • ब म स बत Created by JAGDISH PD. YADAV JAYNAGAR Created on 16-Jan-14 9:30:00 PM Page 16 of 25

    ‘ना रय म वह ऐसी है मानो वधाता ने उसका रचना सव थम क है, पतल और गोर है, दांत पतले और स दरु ह। नीचे के ओ ठ पके ब ब फल (कंदु ) क भां त लाल है। कमर पतल है। आखँ उसक च कत हरणी जैसी ह। ना भ गहर है तथा चाल उसक नत बभार से म द और तनभार से आगे क ओर झकु हईु है।’

    का लदास वारा ततु क गई ना रय म हम अनेक रोचक कार दखाई देते ह। उनम से अनेक को समाज के पर परागत बहान और सफाई क आव यकता नह ं है। उनके व व और तनाव को सामंज य क आव यकता थी। प षु संदेहम तु अनभवु करते थे और वे पणू सर तु थे। बह ववाहु उनके लए आम बात थी, पर तु का लदास क ना रयां क पनाशील और चतुर ह अतः वे संदेह और अ न चय के घेरे म आ जाती ह। वे सामा यतः अि थर नह ंह पर तु वे व वसनीय, न ठावान तथा ेममय ह।

    ेम के लए झेल गई क ठनाइया ंऔर यातनाए ं ेम को और गहन बनाती ह। मेघदतू म अज वलाप और र त वलाप म वयोग क क णामय मा मक अ भ यि त है। ेम का संयोग प व मोवशीय म है।

    माल वकाि न म म रानी को ध रणी कहा गया है य क वह सब कछु सहती है। उसम ग रमा और स ह णताु है। इरावती कामकु , अ ववेक , शकंालु, अत तृ और मनमानी करने वाल है। जब राजा ने उसे छोड़कर माल वका को अपनाया तो वह कठोर श द म शकायत करती है और कटु श द म राजा को फटकारती है।

    माल वका के त अि न म का ेम इि परक है। राजा दासी क स दरताु और लाव य पर मो हत है। व मोवशीय म पा म दैवी और मानवीय गणु का म ण है। उवशी का च र सामा य जीवन से हटकर है। उसम इतनी शि त है क अ य प से वह अपने ेमी को देख सकती है तथा उसक बात सनु सकती है। उसम मात ेमृ नह ंहै य क वह अपने प त को खोने के थान पर अपने ब चे का प र याग कर देती है। उसका ेम वाथज य है।

    पु रवा भाव व वल होकर ेम के गीत गाता है िजसका भावाथ यह है क व व क स ता उतनी आन ददायक नह ंिजतना ेम आन ददायक है। वफल ेमी के लए ससंार दःखु और नराश�