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ििचार

Vicharslide

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The Thought Process described in terms of vedanta in hindu scriptures

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Page 1: Vicharslide

ििचार

Page 2: Vicharslide

जानिर पेट के ििए शम करता है।

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मनषुय पेट के ििए शम करता है।

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जानिर पजनन करता है।

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मनषुय पजनन करता है।

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जानिर इििियो का भोग करता है।

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मनषुय इििियो का भोग करता है।

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कया है

जानिर और मनषुय मे अितर ?

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मनषुय ििचार कर सकता है

जानिर ििचार नहीं कर सकता।

और

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ििचार एक शिि है

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और यिि इसको सुवयिििित कर ििया जाये,

तो यह शिि अजेय हो जाती है।

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जब आप किब के बारे मे सोचते है

और घर से बाहर िनकिते है,

आप किब की ओर जाते है,

न िक माकेट, िियेटर अििा आििस की ओर।

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हमारी शििशािी भािनाये ही हमारे कमो मे अिभवयि होती है।

हमारी बाह िियाये हमारे गहन ििचारो और भािनाओं की िपष सचूक होती है।

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गीता मे भगिान कृषण कहते है।

हे कुितीपतु, िह सिा उसी भाि मे रंगा रहने के कारण उसे ही पाप होता है

मनुषय मतृयु के समय िजस- िजस भाि का िमरण करते हुए शरीर का तयाग करता है

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साधक जीिन भर िजन ििचारो का िचितन करता रहा िा,

िही ििूि शरीर की मतृयु के पशात सूकम शरीर की उडान की अिितम ििशा का िनशय करते है।

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अपने जीिन मे ििचारो की शुिि करे।

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ििचार शुि तो िाणी और आचार शुि

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यही साधन है आनिि और मुिि का