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babaji-shankara
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The Thought Process described in terms of vedanta in hindu scriptures
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ििचार
जानिर पेट के ििए शम करता है।
मनषुय पेट के ििए शम करता है।
जानिर पजनन करता है।
मनषुय पजनन करता है।
जानिर इििियो का भोग करता है।
मनषुय इििियो का भोग करता है।
कया है
जानिर और मनषुय मे अितर ?
मनषुय ििचार कर सकता है
जानिर ििचार नहीं कर सकता।
और
ििचार एक शिि है
और यिि इसको सुवयिििित कर ििया जाये,
तो यह शिि अजेय हो जाती है।
जब आप किब के बारे मे सोचते है
और घर से बाहर िनकिते है,
आप किब की ओर जाते है,
न िक माकेट, िियेटर अििा आििस की ओर।
हमारी शििशािी भािनाये ही हमारे कमो मे अिभवयि होती है।
हमारी बाह िियाये हमारे गहन ििचारो और भािनाओं की िपष सचूक होती है।
गीता मे भगिान कृषण कहते है।
हे कुितीपतु, िह सिा उसी भाि मे रंगा रहने के कारण उसे ही पाप होता है
मनुषय मतृयु के समय िजस- िजस भाि का िमरण करते हुए शरीर का तयाग करता है
साधक जीिन भर िजन ििचारो का िचितन करता रहा िा,
िही ििूि शरीर की मतृयु के पशात सूकम शरीर की उडान की अिितम ििशा का िनशय करते है।
अपने जीिन मे ििचारो की शुिि करे।
ििचार शुि तो िाणी और आचार शुि
यही साधन है आनिि और मुिि का